Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन : षष्ठ उद्देशक : सूत्र ४६-४९
- २७ ४६. जो वनस्पतिकायिक जीवों पर शस्त्र का समारंभ करता है, वह उन आरंभों/आरंभजन्य कटुफलों से अनजान रहता है। (जानता हुआ भी अनजान है।) .. जो वनस्पतिकायिक जीवों पर शस्त्र का प्रयोग नहीं करता, उसके लिए आरंभ परिज्ञात है।
४७. यह जानकर मेधावी स्वयं वनस्पति का समारंभ न करे, न दूसरों से समारंभ करवाए और न समारंभ करने वालों का अनुमोदन करे। ४८. जिसको यह वनस्पति सम्बन्धी समारंभ परिज्ञात होते हैं, वही परिज्ञातकर्मा (हिंसा-त्यागी) मुनि है।
॥ पंचम उद्देशक समाप्त ॥
छट्ठो उद्देसओ
षष्ठ उद्देशक संसार-स्वरूप
४९. से बेमि - संतिमे तसा पाणा, तं जहा - अंडया पोतया जराउया रसया संसेयया सम्मुच्छिमा उब्भिया उववातिया। एस संसारे त्ति पवुच्चति । मंदस्स अवियाणओ।
__णिज्झाइत्ता पडिलेहित्ता पत्तेयं परिणिव्वाणं ।सव्वेसिं पाणाणं सव्वेसिं भूताणं सव्वेसि जीवाणं सव्वेसिं सत्ताणं अस्सातं अपरिणिव्वाणं महब्भयं दुक्खं ति बेमि ।
तसंति पाणा पदिसो दिसायु य । तत्थ तत्थ पुढो पास अतुरा परिताति । संति पाणा पुढो सिया । ४९. मैं कहता हूँ
ये सब त्रस प्राणी हैं, जैसे - अंडज, पोतज, जरायुज, रसज, संस्वेदज, सम्मूछिम, उद्भिज और औपपातिक। यह (बस जीवों का समन्वित क्षेत्र) संसार कहा जाता है । मंद तथा अज्ञानी जीव को यह संसार होता है।
मैं चिन्तन कर, सम्यक् प्रकार देखकर कहता हूँ - प्रत्येक प्राणी परिनिर्वाण (शान्ति और सुख) चाहता है।
सब प्राणियों, सब भूतों, सब जीवों और सब सत्त्वों को असाता (वेदना) और अपरिनिर्वाण (अशान्ति) ये महाभयंकर और दुःखदायी हैं। मैं ऐसा कहता हूँ।
ये प्राणी दिशा और विदिशाओं में, सब ओर से भयभीत/त्रस्त रहते हैं। तू देख, विषय-सुखाभिलाषी आतुर मनुष्य स्थान-स्थान पर इन जीवों को परिताप देते रहते हैं। त्रसकायिक प्राणी पृथक्-पृथक् शरीरों में आश्रित रहते हैं। पाठान्तर- संसेइमा।