Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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आचारांग सूत्र / प्रथम श्रुतस्कन्ध
ग्रन्थ के दो भेद हैं- द्रव्य ग्रन्थ और भाव ग्रन्थ । द्रव्य ग्रन्थ दश प्रकार का परिग्रह है - ( १ ) क्षेत्र, (२) वास्तु, (३) धन, (४) धान्य, (५) संचय तृणकाष्ठादि, (६) मित्र - ज्ञाति - संयोग, (७) यान - वाहन, (८) शयानासन, (९) दासी - दास और (१०) कुप्य ।
भावग्रन्थ के १४ भेद हैं- (१) क्रोध, (२) मान, (३) माया, (४) लोभ, (५) प्रेम, (६) द्वेष, (७) मिथ्यात्व, (८) वेद, (९) अरति, (१०) रति, (११) हास्य, (१२) शोक, (१३) भय और (१४) जुगुप्सा । १
8.
प्रस्तुत सूत्र में हिंसा को ग्रन्थ या ग्रन्थि कहा है, इस सन्दर्भ में आगम-गत उक्त सभी अर्थ या भाव इस शब्द ध्वनित होते हैं। ये सभी भाव हिंसा के मूल कारण ही नहीं, बल्कि स्वयं भी हिंसा हैं। अत: 'ग्रन्थ' शब्द में ये सब भाव निहित समझने चाहिए। ·
'मोह' शब्द राग या विकारी प्रेम के अर्थ में प्रसिद्ध है। जैन आगमों में 'मोह' शब्द अनेक अर्थों में प्रयुक्त हुआ है। राग और द्वेष दोनों ही मोह हैं। सदसद् विवेक का नाश, हेय - उपादेय बुद्धि का अभाव, अज्ञान ५, विपरीतबुद्धि, मूढ़ता ७, चित्त की व्याकुलता ', मिथ्यात्व तथा कषायविषय आदि की अभिलाषा ९, यह सब मोह
हैं।
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ये सब 'मोह' शब्द के विभिन्न अर्थ हैं। सत्य तत्त्व को अयथार्थ रूप में समझना दर्शन-मोह, तथा विषयों की संगति (आसक्ति) चारित्रमोह हैं। १° धवला (८ । २८३ । ९) के अनुसार भाव ग्रन्थ के १४ भेद मोह में ही सम्मिलित हैं। उक्त सभी प्रकार के भाव, हिंसा के प्रबल कारण हैं, अतः स्वयं हिंसा भी हैं।
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'मार' शब्द मृत्यु के अर्थ में ही प्रायः प्रयुक्त हुआ है। बौद्ध ग्रन्थों में मृत्यु, काम का प्रतीक तथा क्लेश के अर्थ में 'मार' शब्द का प्रयोग हुआ है । ११
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१२.
'नरक' शब्द पापकर्मियों के यातनास्थान १२ के अर्थ में ही आगमों में प्रयुक्त हुआ है । सूत्रकृतांगटीका में 'नरक' शब्द का अनेक प्रकार से विवेचन किया गया है। अशुभ रूप-रस- गन्ध-शब्द-स्पर्श को भी 'नोकर्म द्रव्यनरक' माना गया है। नरक प्रायोग्य कर्मों के उदय (अपेक्षा से कर्मोपार्जन की क्रिया) को 'भावनरक' बताया है। हिंसा को इसी दृष्टि से नरक कहा गया है कि नरक के योग्य कर्मोपार्जन का वह सबसे प्रबल कारण है, इतना प्रबल, कि वह स्वयं नरक ही है। हिंसक की मनोदशा भी नरक के समान क्रूर व अशुभतर होती है । १३ ...
१३.
बृहत्कल्प उद्देशक १ गा. १०-१४
सूत्रकृतांग श्रु० १ अ० ४ उ० २ गा० २२
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उत्तराध्ययन ३
विशेषावश्यक (अभि. रा. 'मोह' शब्द)
सूत्रकृतांग १, अ. ४ उ. १ गा. ३१
प्रवचनसार ८५
आगम और त्रिपि० ६६७
(अ) पापकर्मिणां यातनास्थानेषु - सूत्र० वृत्ति २ । १
(ब) राजवार्तिक २।५० । २-३
सूत्रकृतांग, १ । ५ । १ नरकविभक्ति अध्ययन
स्थानांग ३ | ४
उत्तराध्ययन ३
ज्ञाता १।८
आचा० शी० टीका