Book Title: Agam 01 Ang 01 Acharanga Sutra Part 01 Stahanakvasi
Author(s): Madhukarmuni, Shreechand Surana, Shobhachad Bharilla
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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प्रथम अध्ययन : तृतीय उद्देशक: सूत्र २७-३१
अनगार दर्शन में जल के तीन प्रकार बताये हैं- (१) सचित्त - जीव- सहित । (२) अचित्त - निर्जीव । (३) मिश्र - सजीव-निर्जीव जल । सजीव जल की शस्त्र - प्रयोग से हिंसा होती है । जलकाय के सात शस्त्र प्रकार बताये हैं १ -
उत्सेचन - कुएँ से जल निकालना,
गालन
जल छानना,
धोवन - जल से उपकरण / बर्तन आदि धोना,
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स्वकायशस्त्र - एक स्थान का जल दूसरे स्थान के जल का शस्त्र है,
परकायशस्त्र - मिट्टी, तेल, क्षार, शर्करा, अग्नि आदि,
तदुभयशस्त्र - जल से भीगी मिट्टी आदि,
भावशस्त्र असंयम ।
जलकाय के जीवों की हिंसा को 'अदत्तादान' कहने के पीछे एक विशेष कारण है। तत्कालीन परिव्राजक आदि कुछ संन्यासी जल को सजीव तो नहीं मानते थे, पर अदत्त जल का प्रयोग नहीं करते थे । जलाशय आदि स्वामी की अनुमति लेकर जल का उपयोग करने में वे दोष नहीं मानते थे । उनकी इस धारणा को मूलतः भ्रान्त बताते हुए यहाँ कहा गया है - जलाशय का स्वामी क्या जलकाय के जीवों का स्वामी हो सकता है ? क्या जल के जीवों ने अपने प्राण हरण करने या प्राण किसी को सौंपने का अधिकार उसे दिया है ? नहीं। अतः जल के जीवों का प्राणहरण करना हिंसा तो है ही, साथ में उनके प्राणों की चोरी भी है। इससे यह भी स्पष्ट होता है कि किसी भी जीव की हिंसा, हिंसा के साथ-साथ अदत्तादान भी है। अहिंसा के सम्बन्ध में यह बहुत ही सूक्ष्म व तर्कपूर्ण गम्भीर चिन्तन
है।
२.
२७. कप्पइ णे, कप्पइ णे पातुं, अदुवा विभूसाए । पुढो सत्थेहिं विउट्टंति ।
२८. एत्थ वि तेसिं णो णिकरणाए ।
२९. एत्थ सत्थं समारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति ।
एत्थ सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेते आरंभा परिण्णाया भवंति ।
३०. तं परिण्णाय मेहावी णेव सयं उदयसत्थं समारंभेज्जा, णेवण्णेहिं उदयसत्थं समारंभावेज्जा, उदयसत्थं समारंभंते वि अण्णे ण समणुजाणेज्जा ।
३१. जस्सेते उदयसत्थसमारंभा परिण्णाया भवंति से हु मुणी परिण्णतकम्मेत्ति बेमि ।
॥ तइओ उद्देसओ समत्तो ॥
२७. 'हमें कल्पता है । अपने सिद्धान्त के अनुसार हम पीने के लिए जल ले सकते हैं।' (यह आजीवकों एवं
निर्युक्ति गाथा ११३ - ११४
आचा० शीला० टीका पत्रांक ४२