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भावार्थ :- बारबार शब्दादि में आसक्त हो कर उनका उपभोग करने वाला पुरुष कुटिल आचरण करने वाला होता है और इनकी प्राप्ति के लिए वह हिंसा, झूठ आदि सभी पापों का सेवन करता है ॥ ४३ ॥
एवं चासौ नितरां जितः शब्दादिविषयसमास्वादनात् इदमाचरति.. पमत्ते अगारमावसे ॥ ४४ ॥ प्रमत्तः अगारं - गृहम् आवसति ॥ ४४ ॥
अन्वयार्थः-४ पु३५ पमत्ते - प्रमाही अर्थात् शाह विषयोमा मासत छ. ते अगारं - स्थपासमा आवसे - निवास ४३ ७.
ભાવાર્થ :- જે પુરૂષ શબ્દાદિ વિષયોમાં આસક્ત થઈ ગયેલો છે તે જ વિષયોના સેવન માટે ગૃહસ્થાવાસમાં રહે છે. પરંતુ જે એનાથી વિરક્ત છે તે ગૃહસંબંધોને छोडीने मामल्याएमा प्रवृत्त थाय छे. ॥ ४४ ॥
भावार्थ :- ऊपर कहे हुए शब्दांदि विषयों में जो पुरुष आसक्त हैं वे ही इन विषयों के सेवन के लिए गृहस्थवास में निवास करते हैं किन्तु जो इनसे विरक्त हैं वे गृहसम्बन्ध को छोड़ कर आत्म-कल्याण में प्रवृत्त हो जाते हैं ॥ ४४ ॥ . . अन्यतीर्थिकाः पुनः सर्वदा सर्वथाऽन्यथावादिनोऽन्यथाकारिण इति दर्शयितुमाह
लजमाणा पुढो पास, अणगारा मोत्ति एगे पवयमाणा जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं वणस्सइ-कम्मसमारंभेणं वणस्सइसत्यं समारंभमाणे अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ, तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया, इमस्स
चेव जीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाए जाइमरणमोयणाए दुक्खपडिघायहेउं से सयमेव वणस्सइसत्थं समारंभइ, अण्णेहिं वा वण्णस्सइसत्थं समारंभावेइ, अण्णे वा वणस्सइसत्थं समारंभमाणे समणुजाणइ, तं से अहियाए तं से अबोहिए, से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाय, सोच्चा भगवओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसि णायं भवइ, एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए, इच्चत्थं
श्री आचारांग सूत्र 0000000000000000000000000000( ३५