Book Title: Acharang Sutram Pratham Shrutskandh
Author(s): Vikramsenvijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

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Page 284
________________ बलणे जणने भएावावाणो मायणे - मात्र खेटले } परिभागने भगवावानी खणण्णे - क्षाराने, अवसरने भएावावाजो विणयण्णे - विनयने भगवावाणो समयण्णे - समयने भावावाणी छे, ते परिग्गहं - परिग्रह ५२ अममायमाणे भमत्व न उरतो जेवो काण - अणथी उट्ठाई - उठवावानी अपडिण्णे प्रतिज्ञारहित खेटले } हो पाए। प्रारना नियाशाथी रहित दुहओ - बाह्य अने खल्यंतर, जन्ने प्रहारना बंधनाने छित्ता - छेहन रीने णियाइ - संयममार्गमां गमन डरे छे. ભાવાર્થ :- વસ્તુના સાચા સ્વરૂપને જાણવાવાળો રાગ-દ્વેષરહિત પુરૂષ સઘળી અવસ્થાઓમાં પ્રાણિયો ઉપર દયા જ કરે છે. કાલ-બલ-પરિમાણ-ક્ષણ-વિનય અને સમય એટલે આગમને જાણવાવાળો તે પુરૂષ કોઈ પણ પદાર્થ ઉપર મમત્વભાવ ન राजतो वो संयममार्गमां सारी रीते वियरे छे. ॥। २०८ ।। भावार्थ:--वस्तु के यथार्थ स्वरूप को जानने वाला राग द्वेष रहित पुरुष सब अवस्थाओं में प्राणियों पर दया ही करता है । काल, बल, परिमाण, क्षण, विनय और समय यानी आगम को जानने वाला वह पुरुष किसी भी पदार्थ पर ममत्व भाव न रखता हुआ संयम मार्ग में भली भांति विचरता है ॥ २०९॥ तस्य च संयमानुष्ठाने परिव्रज़तो यत्स्यात्तदाह तं भिक्खुं सीयफासपरिवेवमाणगायं उवसंकमित्ता गाहावई बूया आउसंतो समणा ! नो खलु - गामधम्मा उब्वाहंति, सीयफासं च नो खलु अहं संचाएमि अहियासित्तए, नो खलु मे कम्पइ अगणिकायं उज्जालित्तए वा पज्जालित्तए वा कार्य आयावित्तए वा पयावित्तए वा, अन्नेसिं वा वयणाओ, सिया स एवं वयंतस्स परो अगणिकायं उज्जालित्ता पज्जालिता कायं आयाविज वा, पयाविज्ज वा, तं च भिक्खू पडिलेहाए आगमित्ता आणविज्जा अणासेवणाए त्ति बेमि ॥२१०॥ तं भिक्षु शीतस्पर्शपरिवेपमानगात्रमुपसंक्रम्य शंकमानो गृहपति ब्रूयात् भो आयुष्मन् श्रमण ! न खलु त्वां - भवन्तं ग्रामधर्मा - विषया उब्दाधन्ते ? साधुराह - आयुष्मन् गृहपते ! न खलु मां ग्रामधर्मा उब्दाधन्ते, शीतस्पर्शं च न खलु अहं शक्नोमि अधिसोढुम । न खलु मे कल्पते श्री आचारांग सूत्र ७७७७ এ७७७७७७७७७७७७७ २६१

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