Book Title: Acharang Sutram Pratham Shrutskandh
Author(s): Vikramsenvijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

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Page 337
________________ जो बाते पहले कही गई हैं और जो आगे बताई जायेंगी उनका आचरण साधारण पुरुष नहीं कर सकता । भगवान् महावीर स्वामी का आचरण ऐसा ही था। जिसका आचरण साधारण पुरुषों द्वारा नहीं हो सकता । यदि कोई भगवान् को वन्दना करता तो वे उससे बोलते नहीं थे और जो वन्दना नहीं करता उस पर क्रोध भी नहीं करते थे । प्रतिकूल उपसर्ग होने पर वे चित्त में खिन्न नहीं होते थे । जब भगवान् अनार्य देश में पधारे तब वहाँ के अनार्य लोगों ने भगवान् को अनेक प्रकार से कष्ट पहुँचाया तो भी भगवान् सदा शान्त और समभावी बने रहे ॥८॥ फरुसाइं दुत्तितिक्खाइं, अइअच मुणी परक्कममाणे । आघाय नट्टगीयाई, दण्डजुद्धाइं मुट्ठिजुद्धाइं ॥९॥ गढिए मिहुकहासु, समयंमि नायसुए विसोगे अदक्खु । एयाइ से उरालाई, गच्छइ नायपुत्ते असरणयाए ॥ १०॥ अवि साहिए दुवे वासे, सीओदं अभुचा निक्खन्ते । एगत्तगए पिहियचे से अहिन्नायदंसणे सन्ते ॥ ११ ॥ परुषाणि - वाग्दुष्टानि दुस्तितिक्षाणि अतिगत्य मुनि पराक्रममाणस्तितिक्षते । आख्यातगीतनृत्यानि दण्डयुद्धानि मुष्टियुद्धानि उद्दिश्य कौतुकादिरहितो भवति ॥ ९ ॥ गृद्धान् मिथःकथासु तस्मिन् समये ज्ञातसुतः वर्धमानस्वामी विशोकः - मध्यस्थोऽद्राक्षीत् । एतानि दुःखानि उदारणि - दुष्प्रधृष्याणि अस्मरन् गच्छति - पराक्रमते ज्ञातपुत्रः अस्मरणाय अशरणाय वा शरणं - गृहं नात्र शरणमस्तीत्यशरणः संयमस्तस्मै ॥ १०॥ अपि साधिके द्वे वर्षे शीतोदकमभुक्त्वा निष्क्रान्तः । एकत्वगतः पिहितार्चः - पिहितक्रोधज्वालो गुप्ततनुर्वा स अभिज्ञातदर्शनः शान्तः ॥११॥ अन्वयार्थ :- दुत्तितिक्खाइं - मुलीथी सन ४२५॥ योज्य फरूसाई - ४२ qयनोने परक्कममाणे - ते ५२५ उत्कृष्ट ५२॥ईभी मुणी - मावान अइयच्चे - अइयच्च - sis old नsidu, परंतु सभामा पूर्व तेने सन २al &tu. आधायणट्टगीयाई - 5था, नृत्य भने olla तथा दंडजुद्धाई - दंडजुज्झाई - ६४ युद्ध भने मुट्ठिजुद्धाई - मुट्ठिजुज्झाई - मुष्टियुद्धने भिवानी. २७॥ २२मता नslat || ८ ॥ णायसुए - Aldपुत्र. मपान मडावी२२वामी या३ ५५ मिहुकहासु - ५२२५२ qualuuvi गढिए - तसिन पु३षोने अथवा स्त्रियाने अदक्खू - पिता सता, त्यारे समयम्मि ते समयमा विसोए - ६२हित थईने मध्यस्थ २४ता sal. All 4.51रे एयाई (३१४ JODIODIODIOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO | श्री आचारांग सूत्र |

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