Book Title: Acharang Sutram Pratham Shrutskandh
Author(s): Vikramsenvijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

View full book text
Previous | Next

Page 287
________________ तानि अपरिगोपयन् ग्रामान्तरेषु अवमचेलिको व्रजेत् । एतत् खलु वस्त्रधारिणः सामग्ग्रमिति ॥२११॥ . ___अन्वयार्थ :- जे - ४ भिक्खू - साधु तिहिं - ९ वत्थेहिं - वस्त्र भने पायचउत्थेहि - यो) पात्र परिपुसिए - २॥ उपधिनी साथे २ छ तस्स णं - तेने एवं - २मा प्र.२नो वियार णो भवइ - नथी. थतो हुं चउत्थं वस्त्रं - योथा वस्त्रानी जाइस्सामि - यायना ४११. से - ते साधु अहेसणिज्जाई - भेषनी अनुसार वत्थाई - १२त्रानी जाइज्जा - यायन। ४३. अने. अहापरिग्गहियाई - ४ प्रभाए. वस्त्र प्रहरी २८ ते प्रभाए. ४. धारिजा - घा२९॥ ४३. णो धोइज्जा - ते वस्त्रीने धावे नहीं णो रइज्जा - रंगे नहीं भने धोयरत्ताई - धोयेद तथा गेला अथवा पडे धोने पछीथी रंगे॥ वत्थाई - वस्त्राने णो धारिज्जा - ५।२९॥ ४३ नहीं गामंतरेसु - Glon. xतो वो साधु अपलिउंचमाणेअपलिओवमाणे - स्वयंना वस्त्राने न पावतो भयो तथा ओमचेलिए - थोड। भूट्यवाणा १स्त्रीने न पा२७. ४२तो मेवो. य. खु - निश्चयथा वत्थधारिस्स - पत्रधारी साधुनी एयं - मा सामग्गिय - सामग्री छे. ભાવાર્થ :- જે અભિગ્રહધારી સાધુ ત્રણ વસ્ત્રોને ધારણ કરવાનો નિયમ રાખે છે તેઓએ ઠંડી આદિના વખતે ત્રણ વસ્ત્રોથી જ સંતોષ રાખવો જોઈયે, ચોથા વસ્ત્રની માંગણીની ક્યારેય પણ ઈચ્છા ન કરવી જોઈએ, તેને વસ્ત્રોને ન ધોવા જોઈએ, તેને અલ્પ પરિમાણ અને અલ્પમૂલ્યવાળા જ વસ્ત્ર રાખવા જોઈએ. નિશ્ચયથી વસ્ત્રધારી સાધુની આ સામગ્રી છે બીજી વધારાની નહીં. તે ૨૧૧ / भावार्थः- जो प्रतिमाधारी साधु तीन वस्त्रों को धारण करने का नियम रखता है उसे शीत आदि के समय तीन वस्त्रों से ही संतोष रखना चाहिए, चौथे वस्त्र को मांगने की कभी इच्छा न करना चाहिए। उसे वस्त्रों को न धोना चाहिए और न रङ्गना चाहिए । ग्रामादि में जाते समय वस्त्रों को छिपाना न चाहिए । उसे अल्प परिमाण और अल्प मूल्य वाले ही वस्त्र रखना चाहिए ॥२११॥ शीतापगमे तान्यपि वस्त्राणि त्याज्यान्येतदर्शयितुमाह - ___ अह पुण एवं जाणिजा-उवाइकंते खलु हेमंते गिम्हे पडिवन्ने अहापरिजुन्नाइं वत्थाई परिद्वविजा, अदुवा संतसत्तरे अदुवा ओमचेले अदुवा एगसाडे अदुवा अचेले ॥२१२॥ अथ पुनरेवं जानीयात्-अपक्रान्तः खलु हेमन्तो ग्रीष्मः प्रतिपन्नस्ततो यथापरिजीर्णानि वस्त्राणि परिष्ठापयेत् अथवा क्षेत्रकालपुरुषगुणाद् भवेत् शीतं ततः आत्मपरितुलनार्थं शीतपरीक्षार्थ (२६४ )OODIODODIODIODOOOOOOOOOOOOOOOOO | श्री आचारांग सूत्र

Loading...

Page Navigation
1 ... 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372