Book Title: Acharang Sutram Pratham Shrutskandh
Author(s): Vikramsenvijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

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Page 307
________________ शीतस्पर्श, उष्णस्पर्श और डांस मच्छर आदि के परीषह को तथा और भी नाना प्रकार के परीषहों को सहन करने में समर्थ हूँ किन्तु स्वभाव से ही लज्जाशील होने के कारण मैं गुप्त अंग को ढकने वाले वस्त्र का त्याग करने में समर्थ नहीं हूँ इस प्रकार का विचार करने वाले साधु को चोलपट्टा धारण करना कल्पता है । यदि उसके हृदय में ऐसा विचार न हो तो वह बिना वस्त्र ही विचर सकता है ॥२२३॥ पुनरेतानि कारणानि न स्युस्ततोऽचेल एव पराक्रमेत । अचेलतया शीतादिस्पर्श सम्यगधिसहेतेति । एतत्प्रतिपादयितुमाह अदुवा तत्थ परक्कमंतं भुञ्जो अचेलं तणफासा फुसन्ति सीयफासा फुसन्ति तेउफासा फुसन्ति दंसमसगफासा फुसन्ति एगयरे अन्नयरे विरूवरूवे फासे अहियासेइ, अचेले लाघवियं आगममाणे जाव समभिजाणिया ॥२२४॥ ५ __ अथवा तत्र संयमे पराक्रममाणं भूयोऽचेलं तृणस्पर्शाः स्पृशन्ति, शीतस्पर्शा स्पृशन्ति, तेजः स्पर्शा स्पृशन्ति, दंशमशकस्पर्शाः स्पृशन्ति तदा एकतरान् अन्यतरान् विरूपरूपान् स्पर्शान् अधिसहते अचेलो लाघविकम् आगमयन् यावत् समभिजानीयादिति ॥ २२४ ॥ अन्वयार्थ :- अदुवा - २५२१। तत्थ - त्या अचेलं - ११२81 25ने परक्कमंतं - वियरत भेव साधुने भुज्जो - वारंवार तणफासा - तृस्पर्श फुसंति - ४४४ मापे छ सीयफासा फुसंति - शीतस्पशष्ट मापे छ तेउफासा फुसंति - (स्पर्श ४ मापे छे भने समसगफासा फुसंति - iस भने भ७२नो स्पर्श ४८४ मापे छ. मा प्ररे ते एगयरे - भेट अथवा अण्णयरे - ओली % तथा विरूवरूवे - विविध प्रा२न। फासे - टोने अहियासेइ - सउन ४३ ७. अचेले - ते वस्त्र हित ने लाघवियं - स्वयं स्वयंने लघु उडो आगममाणे - ४२तो मेवो वियरे, मा प्र.७२थी से - तेने तवे - तपनी अभिसमण्णागए - प्राप्ति भवइ - थाय छे. जहा - ४ ५२थी इयं - मा भगवया - (भगवाने पवेइयं - ३२भावेद छ. तमेव - तेने अभिसमिच्चा - 2ीने संवओ - पधा ५१२थी भने सव्वत्ताए - सात्म३५था समत्तमेव - समभावथी समभिजाणिया - घा२९॥ ભાવાર્થ - તે અભિગ્રહધારી સાધુ પૂર્વોક્ત કારણથી વસ્ત્ર ધારણ કરી શકે છે પરંતુ તે લજ્જિત ન થતો હોય તો તે સર્વથા વસ્ત્રનો ત્યાગ કરીને વિહાર કરે અને ઠંડી-ગરમી તથા ડાંસ આદિના પરિષદોને સમભાવપૂર્વક સહન કરતો એવો શુદ્ધ संयमर्नु पालन ४३. ॥ २२४ ॥ (२८४ ) 0OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO | श्री आचारांग सूत्र

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