Book Title: Acharang Sutram Pratham Shrutskandh
Author(s): Vikramsenvijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra

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Page 283
________________ आहारोपचया देहा येषां ते आहारोपचितदेहा अपि परीषहभङ्गुराः पश्यत एके सर्वेन्द्रियैः परिग्लायमानैः क्लीबतामीयुः ॥ २०८ ॥ अन्वयार्थ :- देहा - शरी२ आहारोवच्या आहारथी वृद्धिवंत थाय छे अने परीसहपभंगुरा - परीषहने पाभी भंगने प्राप्त थाय छे एगे - डेटलाई पुरुष परीषहो खावे त्यारे सव्विंदिएहिं - अधी न्द्रियोथी परिगिलायमाणेहिं - सानिने प्राप्त थाय छे અર્થાત્ તેઓ શિથીલ થઈ જાય છે. - ભાવાર્થ :- આહારથી શરીરની વૃદ્ધિ થાય અને તેના અભાવમાં શરીર કૃશ થાય અને પરિષહથી શરીરનો નાશ ભંગ થાય છે. પરિષહો આવવાથી કેટલાક લોકો કાયર ડરપોક થઈ જાય છે તેઓની ઈન્દ્રિયો શિથિલ થઈ જાય છે, ભુખ અને તરસથી પીડિત દુઃખી થઈને તે પુરૂષ દેખવામાં, સાંભળવામાં, સુંધવામાં પણ અસમર્થ થાય છે, પરંતુ वीरपु३षे धैर्यनी साथै परिषहोने सहन ४२वा भेईये ॥ २०८ ॥ भावार्थ:- आहार से शरीर की वृद्धि होती है और आहार के अभाव में शरीर म्लान हो जाता है एवं परीषह से शरीर का भङ्ग हो जाता है। परीषहों के आने पर कितनेक लोग कायर हो जाते हैं, उनकी इन्द्रियाँ शिथिल हो जाती हैं भूख और प्यास से पीड़ित होकर वे पुरुष देखने सुनने और सूंघने में भी असमर्थ हो जाते हैं, किन्तु वीर पुरुष को धैर्य के साथ परीषहों को सहन करना चाहिए ॥ २०८॥ विदितवेद्यश्च परीषहपीडितोऽपि किं कुर्यादित्याह - - ओए दयं दयइ, जे संनिहाणसत्थस्स खेयन्ने सेभिक्खू कालन्ने बन्ने मायने खणन्ने विणयन्ने समयन्ने परिग्गहं अममायमाणे कालेणुट्ठाई अपडिन्ने दुहओ छित्ता नियाई ॥ २०९॥ निधीयते ओजः रागद्वेषरहितो दयां दयते - पालयति । यः सन्निधानशास्त्रस्य - सम्यग् नारकादिगतिषु येन तस्तन्निधानं कर्म तस्य शास्त्रं तस्य खेदज्ञः निपुणो, यदिवा सन्निधानशस्त्रस्य सन्निधानस्य कर्मणः शस्त्रं संयमः सन्निधानशस्त्रं तस्य खेदज्ञः स भिक्षुः कालज्ञो बलज्ञो मात्रज्ञः क्षणज्ञो विनयज्ञः समयज्ञः परिग्रहं अममायमानः कालेनोत्थायी अप्रतिज्ञो द्विधा-रागेण वा द्वेषेण वा या प्रतिज्ञा तां छित्त्वा संयमानुष्ठाने निर्यातीति ॥ २०९ ॥ - अन्वयार्थ :- ओए - रागद्वेष रहित ५३ष दयं ध्या ४ दयइ - ४२ छे, जे. - ४ भिक्खू - साधु सण्णिहाणसत्थस्स - र्मोना स्व३पने टेपाडवावाणा शास्त्रना ज्ञानभां अथवा संयभभां खेयण्णे - निपुए। छे से - ते कालण्णे - उर्तव्यना डालने भगवावाणी (२६०00000000000oppo श्री आचारांग सूत्र

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