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जमिणं विरूवरूवेहिं सत्थेहिं तसकाय समारंभेणं तसकायसत्थं समारंभमाणं अण्णे अणेगरूवे पाणे विहिंसइ, तत्थ खलु भगवया परिण्णा पवेइया, इमस्स चेव जीवियस्स परिवंदणमाणणपूयणाए जाइमरणमोयणाए दुक्खपडिघायहेउं से सयमेव तसकायसत्थं समारंभइ, अण्णेहिं वा तसकायसत्थं समारंभावेइ, अण्णे वा तसकायसत्थं समारंभमाणे समणुजाण, तं से अहियाए तं से अबोहिए, से तं संबुज्झमाणे आयाणीयं समुट्ठाय, सोच्चा भगवओ अणगाराणं वा अंतिए इहमेगेसिं णायं भवइ, एस खलु गंथे, एस खलु मोहे, एस खलु मारे, एस खलु णरए, इच्चत्थं गढिए लोए, जमिणं विरूवरूवेहिं सत्येहिं तसकायसमारंभेणं तसकायसत्थं समारंभमाणे अण्णे. अणेगरूवे. पाणे विहिंसइ ॥ ५२ ॥
पूर्ववत् व्याख्येयम् नवरं त्रसकायालापकेनेति ॥ ५२ ॥ · अन्वयार्थः- पूर्ववत्, सूत्र नं. २३ प्रभाो सम४वो.
ભાવાર્થ :- સૂત્ર નં. ૨૩ માં અપ્કાયનું વર્ણન છે અને આ સૂત્રમાં ત્રસકાયનું वर्शन छे. इस्त भेटलो ४ ३२४ छे. जीभे सर्व अर्थ समान छे. ॥ ५२ ॥
भावार्थ :- इस सूत्र का भावार्थ सूत्र नं. २३ के समान ही है। उस सूत्र में अप्काय का वर्णन किया गया है और इस सूत्र में सकाय का वर्णन है। सिर्फ इतना ही फर्क है। बाकी सारा अर्थ समान है ॥ ५२ ॥ यानि कानिचित् प्रयोजनान्युद्दिश्य त्रसवधः क्रियते तानि दर्शयितुमाह
से बेमि- अप्पेगे अच्चाए वहंति, अप्पेगे अजिणाए वहंति, अप्पेगे मंसाए वहंति, अप्पेगे सोणियाए वहति एवं हिययाए पित्ताए बसाए पिच्छाए पुच्छाए बालाए सिंगाए विसाणाएं दंताए दाढाए हाए हारुंणीए
४२ popopop श्री आचारांग सूत्र