Book Title: Acharang Sutram Pratham Shrutskandh
Author(s): Vikramsenvijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
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समारभ्य क्रीतं प्रामित्यम् आच्छिद्यम् अनिसृष्टम् अभ्याहृतं ददासि आवसथं च आश्रयस्थानं
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समुच्छ्रिणोसि अपूर्वं करोसि । अहं विरतोऽस्मि आयुष्मन् ! भो ! गृहपते ! एतस्य भवदुपन्यस्तस्याऽकरणतयेति ॥ २०२ ॥
अन्वयार्थ :- से - सर्व सावद्ययोगोनो त्यागी ते भिक्खू - साधु परक्कमिज्ज विहार डरतो होय वा - अथवा चिट्टिज्ज - उभेलो होय वा अथवा णिसीइज्ज - बेहेलो
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होय वा - अथवा तुयट्टिज्ज - सुतेसो होय वा अथवा सुसाणंसि - श्मशानमां सुण्णागारंसि - शून्य ध२भां गिरिगुहंसि - पर्वतनी गुझभां रुक्खमूलंसि - वृक्षनी नीये कुंभाराययणंसि - कुंभारनी शाणाभां वा अथवा कहिंचियां हुरत्था - अन्यत्र रहेलो होय वा - २अथवा विहरमाणं - विहार ४२तो होय तं ते भिक्खुं साधुनी उवसंकमित्तु - नभां खावीने गाहावई - डोह गाथापति बुया - डे आउसंतो समणा - डे आयुष्यमन् ! श्रभए। ! खलु - निश्चयथी अहं - हुं तव अट्ठाए - तमारा भाटे असणं-पाणंखाइमं वा साइमं वा - अशन, पाशी, जाहिम भने स्वाहिम तथा वत्थं - वस्त्र पडिग्गहं
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पाहोन समुद्दिस्सतभारा भाटे
पात्र कंबलं - डामणी वा जने पायपुंच्छणं पाणाई - प्राए भूयाई भूत जीवाई - ७१ ने सत्ताई - सत्त्वोनों समारम्भ खारंभ दुरीने जनावेस छे. वा अथवा कीयं जरीहेस छे वा अथवा पामिच्चं -
वा
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श्रेर्धनी पासेथी उधार सीधेस छे, वा अथवा अच्छिज्जं जीभ पासेथी सुंवीने सीधेस छे अणिस - श्रीभखोनुं भारी पासे राजेस छे. अभिहडं - सामे लावेसुं छेतेने आहड्ड - हुं भारा घरमांथी लावीने चेएमि - आपने आयुं छं. वा - अथवा आवसहं - तमारा भाटे भान समुस्सिणोमि - जनावुं छु भने भट्टानने रंगाम खाहि दुरा छं. ठेथी आउसंतो समणा - हे आयुष्मन् श्रमश ! तभी से आ अशनाहिने भुंजह भोगवो खने आवसहं वसह - भानभां निवास उरो तो भिक्खू - साधु तं - तेने समणसं - सौभ्यताथी अने सवयसं - स्नेहभर्या वयनथी अथवा जी रीते गाहावई - गृहपतिने पडियाइक्खे - २॥ प्रमाणे निषेध ४२ 3 आउसंतो गाहावई - हे आयुष्मन् गृहपति ! खलु - निश्चयथी हुं ते - तभारा वयणं - ते वयनोनो णो आढामि - आ६२ ४२तो नथी भने खलु - निश्चयथी हुं ते - तमारा वयणं - ते वयनोनो णो परिजाणामि - स्वीकार नथी झुरतो जो तुमं तभो मम अट्ठाए - भारा भाटे असणं - पाणं - खाइमं वा साइमं
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- अशन, पानी, षाहिम अने स्वाहिभ वा तथा वत्थं - वस्त्र पडिग्गहं - पात्र कंबलं - अभणी वा अने पायपुंच्छणं पाहयच्छनने समुद्दिस्स - आश्रयी पाणाई - भूयाईजीवाई-वा-सत्ताई समारब्भ - प्राशी, भूत, व अने सत्त्वोनो आरंभ उरीने जनावेस छे, कीयं - जरीहेल छे, पामिच्चं उधार सीधेस छे अच्छिज्जं - जीभखो पासेथी
(२५२००००००००००० श्री आचारांग सूत्र
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