Book Title: Acharang Sutram Pratham Shrutskandh
Author(s): Vikramsenvijay
Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra
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परवागरणेणं अन्नेसि वा मुचा अयं खलु गाहावई मम अट्ठाए असणं वा (४) वन्यं वा (४) जाव आवसहं वा समुस्सिणाइ, तं च भिक्खू पडिलेहाए
आगमित्ता आणविजा अणासेवणाए त्ति बेमि ॥२०३॥ स भिक्षु पराक्रमेत वा यावद् बहिर्वा क्वचिद् विहरन्तं भिक्षुमुपसंक्रम्य गृहपतिरात्मगतया प्रेक्षया अशनं वा वस्त्रं वा यावत् आहत्य ददाति आश्रयस्थानं वा समुच्छृिणोति अपूर्वं करोति भिर्दू परिघासयितुं भोजयितुं तच अशनादिकं भिक्षुर्जानीयात् स्वसम्मत्या चा परव्याकरणेन, अन्येभ्यो वा श्रुत्वा - अयं खलु गृहपतिर्ममार्थाय अशनं वा ४ वस्त्रं वा ४ यावद् आश्रयस्थानं वा समुच्छ्रिणोति, तच्च-अशनादिकं भिक्षु प्रत्युपेक्ष्य अवगम्य-ज्ञात्वा गृहपति ज्ञापयेद् अनासेवनयेति ब्रवीमि ॥ २०३ ॥ .
अन्वयार्थ :- से - ते भिक्खू - साधु परक्कमिज्ज - इयां ४६ २ढ्यो डोय वा - अथवा स्मशानभ २४दो डोय जाव - यां सुधी हुरत्था - अन्यत्र कहिंचि - इयां विहरमाणं - विहार 3री २ढ्यो डोय तो तं - ते भिक्खू - साधुनी उवसंकमित्तु - पासे ४७ने गाहावई - 505 Psपति आयगयाए पेहाए - स्वयंनी गुद्धिथी असणं-पाणं - २६शन ugl माह जाव - *यां सुधा वत्थं - वस्त्र-पात्र-siमणी मने ५६७ मा पाणाई-भूयाइं-जीवाईसत्ताई - प्रा., भूत, ७५, सत्त्वोनो समारब्भ - माम रीने तैयार ४३ भने भिक्खू - साधुने परिघासिउं - १५२११माटे आह? - स्वयंन। घरेथी दावीने चेएइ - मा वा - तथा आवसहं - माननो समुस्सिणाइ - सं२।२ ४२॥ अथवा मन बना तो को भिक्खू - साधु तं - तेने सह सम्मइयाए - स्वयंनी भुद्धिथी वा - अथवा परवागरणेणं - alnil पाथी वा - २अथवा अण्णेसि - Gl80 पासेथी सुच्चा - Aiमणीने जाणिज्जा - onell a. 3 खलु - निश्चयथा अयं - २॥ गाहावई - गृपति मम अट्ठाए - भा२॥ माटे असणं - २मशन-पान माह वा - तथा वत्थं - वस्त्र-पात्र मा पाणाई - प्रारी, भूत, ®प, सत्वनो समारब्भ - भार ४३रीने बनावेद छ. जाव - *यां सुधी. आवसहं - माननो समुस्सिणाइ - सं२७॥२ ४२।वे अथवा मन बनाये तो भिक्खू - साधु तं - तेनो पडिलेहाए - विया२ रीने च - मने आगमित्ता - nीने अणासेवणाए - तेनु सेवन न ६२१॥ 43 आणविज्जा - गस्थने म मापे मथात् गृहस्थने ४३ ४ २१२ तैयार કરેલ અશનાદિ તથા મકાન આદિને ભોગવવા અમારા જેવા સાધુઓને કલ્પતા નથી.
(२५४ ) OOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO | श्री आचारांग सूत्र

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