________________
જીવો એવા હોય છે કે કોઈ પણ પ્રયોજન (કારણ) વિના પોતાના ચિત્તને આનંદ થાય માટે તથા પ્રમાદના કારણથી ત્રસ પ્રાણિયોની હિંસા કરે છે. આ બધુ કર્મબંધનું કારણ છે. એટલે જ્ઞાની (મુમુક્ષુ) પુરૂષ સંયમ ધારણ કરીને ઉપર જણાવેલ હિંસાનો સર્વથા त्याग छे. ॥ ५ ॥
भावार्थ :- इस जगत् में बहुत से विषयासक्त प्राणी अपने स्वार्थों की पूर्ति के लिए भिन्न-भिन्न प्रयोजनों से त्रस प्राणियों की हिंसा करते हैं और बहुत से अज्ञानी जीव ऐसे भी होते हैं जो बिना प्रयोजन केवल अपने चित्त विनोद के लिए तथा प्रमाद के कारण त्रस प्राणियों की हिंसा करते हैं । यह सब कर्म बन्ध का कारण है। अतः मुमुक्षु ज्ञानी पुरुष संयम धारण करके उस हिंसा का सर्वथा त्याग कर देते हैं ॥ ५३ ॥ . एवमनेकप्रयोजनोपन्यासेन हननं त्रसविषयं प्रदर्य उद्देशकार्थमुपसञ्जिहीर्षुराह
एत्थ सत्यं समारंभमाणस्स इच्चेए आरंभा अपरिण्णाया भवंति, एत्थं सत्थं असमारंभमाणस्स इच्चेए आरंभा परिणाया भवंति, तं परिणाय मेहावी णेव सयं तसकायसत्थं समारंभेज्जा, णेव अण्णेहिं तसकायसत्थं ... समारंभावेज्जा, णेव अण्णे तसकायसत्थं समारंभंते समणुजाणेज्जा, जस्सेए तसकायसमारंभा परिणाया
भवंति से हु मुणी परिण्णायकम्मे ॥ ५४ ॥ ति बेमि ॥ पूर्ववत् व्याख्येयमिति नवरं त्रसकायालापकेनेति ॥ ५४ ॥ अन्वयार्थः- पूर्ववत्, सूत्र नं५२ 30 ने अनुसार सम४वो.
ભાવાર્થ :- સૂત્રમાં અપકાયનું વર્ણન છે અને આ સૂત્રમાં ત્રસકાયનું વર્ણન, ફક્ત આટલો જ ફરક બાકી સર્વ અર્થ સમાન છે. પૂર્વની માફક. ./ પ૪ /
भावार्थ :- इस सूत्र का भावार्थ सूत्र नं. ३० के समान ही है । उस सूत्र में अकाय का वर्णन किया गया है और इस सूत्र में त्रसकाय का वर्णन है । सिर्फ इतना ही फर्क है । बाकी सारा अर्थ समान है ॥ ५४ ॥
४४ JOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOOO000|श्री आचारांग सूत्र)