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આવશે અને આ ધનની ઈચ્છા પ્રમાણે ઉપભોગ કરશું અને આ ધનથી અમે અમારી રક્ષા કરી શકશું આવો વિચાર કરી વિવિધ પ્રકારે કષ્ટ સહન કરી ધનનો સંગ્રહ કરે છે. તેઓ પોતે પેટ ભરીને ખાતા નથી અને પોતાના પરિવારને પેટ ભરીને ખાવા દેતા नथीः ॥ ६॥
भावार्थ :- संसारी जीव नाना कष्ट उठा कर धन सञ्चय करते हैं । वे समझते हैं कि यह संग्रह किया हुआ द्रव्य भविष्य में हमारे तथा हमारे सम्बन्धियों के काम में आयेगा तथा इस धन को यथेच्छ उपभोग करेंगे
और इन धन से हम अपनी रक्षा कर सकेंगे ऐसा सोच कर नाना प्रकार के कष्ट सहन करके धन का संग्रह करते है। वे न तो स्वयं पेट भर खाते हैं और न अपने परिवार वालों को ही खाने देते हैं । परन्तु इस तरह कष्ट पूर्वक उपार्जन किया हुआ धन भी उनकी रक्षा नहीं कर सकता। बहुत बार यह भी देखा जाता है कि भोगने के समय में उस पुरुष को रोग आकर घेर लेते हैं और वह उस संचित धन का भोग नहीं कर सकता । दूसरे लोग ही उस धन का उपभोग करते हैं । वह तो केवल परिश्रम और पाप का भागी होता है। इसलिए बुद्धिमान् पुरुषों को धन की तृष्णा से अपने अमूल्य समय को नष्ट करना उचित नहीं है ॥ ६७ ॥ किमालम्ब्य रोगवेदनाः सोढव्या इत्याह
जाणित्तु दुक्खं पत्तेयं सायं ॥ ६८ ॥ ज्ञात्वा दुःखं प्रत्येकं प्राणिनां सात-सुखं वेति ॥६८॥
यावश्च जराजीर्णं न निजाः, परिवदन्ति, यावाचानुकम्पया न पोषयन्ति, रोगाभिभूतं च न परिहरन्ति तावदात्मार्थोऽनुष्ठेय इत्येतदर्शयति
..अणभिक्कंतं च खलु वयं संपेहाए ॥ ६९ ॥ ___अनभिक्रान्तं च खलु वयः सम्प्रेक्ष्य “आयर्लं संमं समणुवासेन्जासि' इत्युत्तरेण सूत्रेण ' सम्बन्धः, आत्महितं कुर्यादित्यर्थः ॥६९॥ .. किमनतिक्रान्तवयसैवात्महितमनुष्ठेयमुतान्येनापीति ? परेणापि लब्धावसरेणात्महितमनुष्ठेयमित्येतद्दर्श
यति : . ... खणं जाणाहि पंडिए ॥ ७० ॥ - अन्वयार्थः- प्रारियों ने सायं -शाता-सु५ मने दुक्खं - दु:५पत्तेयं - प्रत्ये भेटले. असा मला भोगवj ५3 छ. जाणित्तु - मीने रोग मापे त्यारे ते टोने સમભાવ-સમતા પૂર્વક સહન કરવા જોઈએ.
अणभिक्कतं - नवादी स्वयंनी वयं - आयुष्यने संपेहाए - हेपाने खलु - નિશ્ચયથી વિવેકી પુરૂષ ખરેખર આત્મકલ્યાણ માટે પ્રયત્ન કરે.
शास्त्र.२ संसारी प्रालियोने स्वयं समक्ष राजीने छ : पंडिए - हे पंडित ! · भात मात्मतत्त्व ! तभो खणं - ॥ १॥ने धर्मसेवनन। भवस२. ३५ जाणाहि - • समो.
श्री आचारांग सूत्र 0000000000000000000000000000( ५९