Book Title: Aavashyaksutram Part 02
Author(s): Haribhadrasuri,
Publisher: Agamoday Samiti
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नमस्कार
आवश्यकहारिभद्रीया
वि०१
॥४३५॥
पणच्चिओ,भणइ-'दो मज्झ धाउरत्ता कंचणकुंडिया तिदंडं च रायाविय वसवत्ती एत्थवि ता मे होलं वाएहि अण्णो असहमाणो भणति-गयपोययस्स मत्तस्स उप्पइयस्स जोअणसहस्सं पए पए सयसहस्सं एत्थवि ता मे होलं वाएहिं। अन्नो भणइ-16 तिलआढयस्स वुत्तस्स निप्फण्णस्स बहुसइयस्स तिले तिले सयसहस्सं तामे हालं वाएहि अण्णो भणइ-नवपाउसंमि पुण्णाए गिरिणईयाए सिग्घवेगाए एगाहमहियमेत्तेण नवणीएण पालि बंधामि एत्थवि ता मे होलं वाएहि, अन्नो भणइ-जच्चाण नवकिसोराण तद्दिवसेण जायमेत्ताण केसेहिं नहं छाएमि एत्थवि ता मे होलं वाएहि, अन्नो भणइ-दो मज्झ अत्थि रयणा सालि पसूई य गद्दभिया य छिन्ना छिन्नावि रुहंति एत्थवि ता मे होलं वाएहि, अन्नो भणइ-*सयसुक्किलनिच्चसुयंधो भज अणुवय नत्थि पवासो निरिणो य दुपंचसओ एत्थविता मे होलं वाएहिं, एवं णाऊण रयणाणि मग्गिऊण कोहाराणि सालीण भरियाणि, गद्दभियाए पुच्छिओ छिन्नाणि२ पुणो पुणो जायंति, आसा एगदिवस जाया मग्गिया | एगदिवसियं णवणीयं, एस पारिणामिया चाणक्कस्स बुद्धी ॥ थूलभद्दस्स पारिणामिया-पिइम्मि मारिए गंदेण भणिओ
प्रणर्तितः, भणति-द्वे मम धातुरक्ते काञ्चनकुण्डिका त्रिदण्डं च राजाऽपिच वशवी अत्रापि तन्मे झल्लरी वादय, अन्योऽसहमानो भणति-गजपोतस्य मत्तस्योत्पतितस्य योजनसहस्रं पदे पदे शतसहस्र अत्रापि तन्मे झल्लरी वादय, अन्यो भणति-उप्तस्य तिलाढकस्य निष्पन्नस्य बहुशतिकस्य तिले लिले शतसहस्रं | तन्मे झल्लरी वादय, अन्यो भणति-नवप्रावृषिपूर्णाया गिरिनद्याः शीघ्रवेगाया एकाहमथितमात्रेण नवनीतेन पाली बध्नामि अत्रापि तन्मे झल्लरी वादय, अन्योभणति| जात्यानां नवकिशोराणां तदिवसजातमात्राणां केशैर्नभश्छादयामि अत्रापि तन्मे झल्लरी वादय, अन्यो भणति-द्वे ममास्ति शालिरत्र-प्रसूतिश्च गर्दभिका च, छिन्ना V | छिन्ना अपि रोहन्ति, अत्रापि तन्मे झल्लरी वादय, अन्यो भणति-सदाशुक्लो नित्यसुगन्धो भार्या अनुवर्तिनी नास्ति प्रवासो निर्ऋणश्च द्विपञ्चशतिकः अत्रापि तन्मम झल्लरी वादय, एवं ज्ञात्वा रत्नानि मार्गयित्वा कोष्ठागाराणि शालीभिर्भूतानि गर्दभिकया पुच्छिको (धान्यभाजनविशेषः) छिन्ना छिन्ना पुनः पुनर्जायन्ते इति, अश्वा एकदिवसजाता मार्गिताः, एकदिवस नवनीतं, एषा पारिणामिकी चाणक्यस्य बुद्धिः। स्थूलभद्रस्य पारिणामिकी-पितरि मृते नन्देन भणित:-*सुय०प्र०
॥४३५॥
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