Book Title: Kya Swad Hai Zindagi ka
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुखी, सार्थक और मधुर जीवन जीने का सुनहरा रास्ता क्यार जिंदगी কচI PAAAN महोपाध्याय ललितप्रभ सागर For Personal & Private Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Full form of FAMILY FATHER AND MOTHER I LOVE YOU For Personal & Private Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्या स्वाद है जिंदगी का स्वस्थ, सुरखी और मधुर जीवन जीने का रास्ता बताने वाली लोकप्रिय पुस्तक महोपाध्याय ललितप्रभ सागर viodes For Personal & Private Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्या स्वाद है जिंदगी का श्री ललितप्रभ प्रकाशन-वर्ष : जनवरी 2011 प्रकाशक : श्री जितयशाश्री फाउंडेशन बी-7 अनुकम्पा द्वितीय, एम. आई. रोड, जयपुर (राज.) आशीष : गणिवर श्री महिमाप्रभ सागर जी म. मुद्रक : हिन्दुस्तान प्रेस, जोधपुर मूल्य : 30/ For Personal & Private Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहला स्वाद जीवन का सफ़र बहुत रोमांचक और विविधतापूर्ण है। हर व्यक्ति जीना चाहता है, लेकिन इसे कैसे जिया जाए कि इसका सौंदर्य परिपूर्ण और शांतिदायक रहे, इसका उसे प्राय: कम ही भान होता है। सफल और सार्थक जीवन के लिए हमारी दैनंदिनी में किन बातों का समावेश हो इसके लिए पूज्य गुरुवर महोपाध्याय श्री ललितप्रभ सागर जी ने सारगर्भित प्रभावी प्रवचन दिए हैं। उन्हीं में से कुछ विशिष्ट प्रवचनों का समावेश प्रस्तुत पुस्तक क्यास्वाद है जिंदगी का' में किया गया है। अपने प्रभावी व्यक्तित्त्व और विशिष्ट प्रवचन-शैली के लिए देश भर में लोकप्रिय संत श्री ललितप्रभ जी ने जहां भी जनमानस को संबोधित किया है वहां सुधार की लहर चल पड़ी। लोगों में चेतना जागी और वे अंधविश्वास के अंधकूप से निकलकर सामाजिक और आध्यात्मिक प्रगति की राह की ओर अग्रसर हुए। उन्होंने जाना कि जीवन कितनी सहजतापूर्वक जिया जा सकता है और जीवन को कितनी सहजता से आध्यात्मिक सौन्दर्य प्रदान किया जा सकता है। चिंता, तनाव, क्रोध जैसे विकारों से बचकर यदि व्यक्ति प्रेम, मित्रता, पारिवारिकता और शांति जैसे तत्त्वों को महत्त्व दे तो निश्चय ही जिंदगी का आध्यात्मिक आनंद लिया जा सकता है। पूज्यश्री ने सहज सरल भाषा में जीवन की आम सच्चाइयों को उद्घाटित किया है। मनुष्य आज जहां पारिवारिक और सामाजिक दायित्वों का विस्मरण कर तथाकथित भौतिक प्रगति का अनुसरण कर रहा है वहां प्रस्तुत पुस्तक ठहरकर जीवन को समझने का बोध प्रदान करती है। हमारी जीवनशैली और मानसिकता को बेहतर बनाने के लिए पूज्यश्री ने इतने प्रभावी उद्बोधन दिये हैं कि अन्तर्मन में जमी For Personal & Private Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नकारात्मकता की धूल झड़ जाए और हम नए स्वरूप में निखर उठे। __ प्रस्तुत पुस्तक में गुरुश्री संकेत देते हैं कि जीवन के मूल्यों और मर्यादाओं का पालन करने से हम स्वयं परिवार, समाज और राष्ट्र सुखी सम्पन्न हो सकते हैं। मर्यादाओं का पालन करने से जहां परिवार में शांति आती है वहीं बच्चों और बड़ों में एक दूजे के प्रति सम्मान की भावना विकसित होती है। वे कहते हैं कि जीवन को सुखमय बनाने का मूलमंत्र त्याग की भावना है। जीवन में सकारात्मक सोच रखकर जीवन को सही सार्थक स्वरूप प्रदान किया जा सकता है। जीवन के प्रति स्वस्थ सोच और बेहतर नज़रिया विकसित कर जीवन को आहलादपूर्ण बनाया जाना चाहिए और इसमें वृद्ध भी पीछे न रहें। वृद्ध अपने बुढ़ापे को अभिशाप न समझें, वे अपने अनुभवों से परिवार का मार्गदर्शन करें। उन कार्यों को अंजाम दें जो युवावस्था में चाह कर भी न कर पाए हों। पूज्यश्री का वचन है कि व्यक्ति बुढ़ापे के ढलते सूरज को भी सार्थक आयाम दे। उसे बोझ समझने की बजाय स्वयं के लिए शांति और मुक्ति का द्वार समझें। हमारा आज का जीवन बहुत अस्त-व्यस्त हो गया है। सभी किसी-नकिसी प्रकार के तनाव से ग्रस्त हैं और सभी इसका सुगम समाधान भी चाहते हैं। प्रस्तुत पुस्तक जीवन के संभाव्यों का दर्शन कराती हुई सरल व अनुकरणीय समाधान देती है। 'क्या स्वाद है जिंदगी का' जीवन को समरस और सकारात्मक बनाने का सुगम मार्ग प्रदान करती है। 'द वे ऑफ लाइफ' जानने के लिए प्रस्तुत पुस्तक किसी कुंजी की तरह है। यह मनुष्य की व्यस्त जिंदगी के सुचारु प्रबंधन के सही तरीके समझाती है। हमारे लुप्त हो रहे पारिवारिक मूल्य और सामाजिक दायित्वों का नैतिक बोध कराते हुए जीवन का लुत्फ उठाने का संकेत प्रदान करती है। जिंदगी प्रकृति प्रदत्त अनमोल उपहार है, हम इसे यूं ही नहीं गंवा सकते। जब जीवन के प्रत्येक क्षेत्र का हम रसास्वादन कर लेंगे तभी तो कह सकेंगे कि क्या स्वाद है जिंदगी का।' जिंदगी के इसी आध्यात्मिक रसास्वादन में हम डूबें और पूज्यश्री की जीवन-दृष्टि में अवगाहन कर अपने आप को पहचानें एवं जीवन का सही स्वाद और आनंद लें। - लताभंडारी मीरा For Personal & Private Use Only Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अनुक्रम 1. सुखी जीवन का राज़ 2. चिंता छोड़ें, सुख से जिएं 3. किसे बनाएं अपना मित्र 4. बुढ़ापे को ऐसे कीजिए सार्थक 5. व्यवहार को प्रभावी बनाने के गुर 6. जीवन को निर्मल बनाने के सरल उपाय 7. जीवन की बुनियादी बातें 8. परिवार की खुशहाली का राज़ For Personal & Private Use Only 9 26 44 61 78 100 116 133 Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ For Personal & Private Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सुरवी जीवन का राज स्वयं को उस सरोवर और तरुवर की तरह बनाइये, जो हर हाल में दूसरों को भी सुख, शांति और मधुर फल दे। प्रत्येक मनुष्य के अन्तर्मन में यह कामना होती है कि वह अपने जीवन में अधिकतम खुशियाँ बटोर ले । प्रार्थना से पूजा तक और व्यवसाय से भोजन-व्यवस्था तक उसके द्वारा जितने भी कार्य किये जाते हैं, वे सभी जीवन में सुख और खुशियाँ उपलब्ध करने से ही संबंधित होते हैं। मनुष्य जन्म से मृत्यु तक सदा इसी चेष्टा में रहता है कि जीवन में अधिकाधिक सुविधाओं को कैसे उपलब्ध किया जा सके? व्यक्ति यह नहीं जानता कि उसे भाग्य के द्वारा सुविधाएँ तो उपलब्ध हो सकती हैं, परन्तु जीवन को सुख-शांति पूर्वक खुशियों से भरकर जीना व्यक्ति के स्वयं के हाथ में है । यद्यपि हम जीवन को सुखपूर्वक जीना चाहते हैं तथापि हम ऐसे कार्य नहीं कर पाते, जिनसे जीवन को प्रसन्नतापूर्वक जिया जा सके । हम भली-भाँति जानते हैं कि समस्त सुविधाओं के बावजूद व्यक्ति अपने ही कुछ कृत्यों के कारण सुख से वंचित रह जाता है। सुविधाएँ सुख का मापदंड नहीं हो सकती हैं हम जिसे सुविधाओं के आधार पर सुखी महसूस कर रहे हैं संभव है, वह मानसिक रूप से दुःखी हो। सच्चाई तो For Personal & Private Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यह है कि शहर के सबसे संपन्न और प्रतिष्ठित व्यक्ति को भी उसका आंतरिक दुःख उसे खोखला कर रहा है । शांति में ही सुख ' संपन्न ही सुखी है' अब इस परिभाषा को बदल दिया जाना चाहिए । मध्यमवर्गीय प्रायः अधिसम्पन्न व्यक्ति की सुविधाओं को देखकर सोचा करते हैं कि इसके पास कार है, बड़ा बिजनेस है, महलनुमा मकान है, सुंदर-सी पत्नी है - अतः यह जरूर सुखी होगा, लेकिन इस बाह्य सम्पन्नता में कितनी विपन्नता छिपी है, यह बात कोई उसके दिल से पूछे ! कितनी भागमभाग है, कितने तनाव, कितनी चिन्ताएँ हैं, यह केवल वही जानता है क्योंकि उसके पास शांति से बैठने के लिए समय ही नहीं है । वह दो घड़ी भी चैन से नहीं बिता सकता । संपन्नता व्यक्ति को सुविधा दे सकती है, किन्तु सुख नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं है कि बाहर से मुस्कुराने वाला व्यक्ति भीतर में घुट-घुट कर जी रहा हो । यदि आप धन-दौलत, जमीन-जायदाद को ही जीवन का सुख मानते हैं तो आपकी दृष्टि से मैं दुःखी हो सकता हूँ क्योंकि मेरे पास तो कुछ भी नहीं है न धन, न दो फुट ज़मीन और न ही बीवी-बच्चे ! फिर भी मैं आपसे ज़्यादा सुखी हूँ क्योंकि मेरे पास शांति है, अन्तर्मन की शांति । यदि तुम सुख की दो रोटी खा सको और रात में चैन की नींद सो सको और कोई मानसिक जंजाल न हो, तो जान लेना कि तुमसे अधिक सुखी कोई नहीं है। सुख और दुःख व्यवस्थाओं से कम, वैचारिक तौर पर अधिक उत्पन्न होते हैं। व्यवस्थाओं के यथावत् रहते हुए भी आदमी कभी दुःखी और कभी सुखी हो जाता है । निमित्तों के चलते सुख और दुःख के पर्याय बदलते रहते हैं । ये निमित्त भी बाहर ही तलाशे जाते हैं, पर हमें न तो कोई दुःख दे सकता है और न ही सुख । अपने सुख और दुःख के जिम्मेदार हम स्वयं हैं, अन्यथा जो व्यवस्था कल तक सुख दे रही थी वह आज अचानक दुःख क्यों देने लगी? कल तक जो पत्नी सुख देती हुई प्रतीत हो I 10 For Personal & Private Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रही थी, वही आज अगर क्रोध करने लगी तो दुःख क्यों हो रहा है? दरअसल सुख पत्नी से नहीं बल्कि उसके व्यवहार से था और वही व्यवहार बदला तो पत्नी दु:खदायी हो गई। सुविधाओं में सुख कहाँ देखिए आप सुखी और दुःखी कैसे होते हैं? आप एक मकान में रहते हैं, जिसके दोनों ओर भी मकान हैं। एक मकान आपके मकान से ऊँचा और भव्य है तथा दूसरा मकान आपके मकान से छोटा और झोंपड़ीनुमा है। आप घर से बाहर निकलते हैं और जब भी आलीशान कोठी को देखते हैं , आप दुःखी हो जाते हैं और जब झोंपड़ी को देखते हैं तो सुखी हो जाते हैं। भव्य इमारत को देखकर मन में विचार आता है, ईर्ष्या जगती है-यह मुझसे ज्यादा सुखी, जब तक मैं भी ऐसा तीन मंजिला मकान न बना लूँ तब तक सुखी न हो सकूँगा। लेकिन जैसे ही झोंपड़ी को देखते हैं, तो सुखी हो जाते हैं, क्योंकि आपको लगता है कि यह तो आपसे अधिक दुःखी है। प्रकृति की व्यवस्थाएँ तो सबके लिए समान हैं, लेकिन प्रायः स्वयं के अन्तर्कलह के कारण ही व्यक्ति दुःखी हो जाता है। जैसे कि आपने लॉटरी का टिकिट खरीदा। लॉटरी खुली और आपने अखबार में देखा कि उसमें वे ही नंबर छपे हैं जो आपके टिकिट पर हैं। आपकी तो किस्मत ही खल गई, आपने प्रसन्न होकर घर में बताया कि पाँच लाख की लॉटरी खुली है। सब बहुत खुश हैं। प्रसन्नता के मारे आपने एक अच्छी-सी पार्टी का आयोजन भी कर डाला। मित्र आए, ऊपरी मन से आपको बधाइयाँ भी मिली, अंदर से तो उन्हें डाह हो रही थी लॉटरी तो उन्होंने भी खरीदी थी, पर इसके कैसे खुल गई। खैर, रात में जब सोने लगे तो विचार आया कि इस इनामी राशि को कैसे खर्च किया जाए? सोचा कि एक कार ही ले ली जाए । तभी दूसरे विचार ने जोर मारा कि दो लाख रुपये जमा करा दिए जाएँ, ताकि भविष्य सुरक्षित रहेगा। इसी 11 For Personal & Private Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उधेड़बुन में रात निकली । दूसरे दिन सुबह प्रतिदिन की भाँति अखबार उठाया । जिस कोने में कल नम्बर छपे थे, आज वहीं एक अन्य विज्ञापन भी था। नजरें वहाँ गईं और आप दुःखी हो गए, क्योंकि उसमें एक कॉलम था, 'भूल सुधार' वहाँ लिखा था कि प्रथम इनाम के लिए कल जो लॉटरी खुली थी उसमें अंतिम नम्बर तीन के बजाय दो पढ़ा जाय । न रुपये आए और न गए, फिर भी वे सुख और दुःख दोनों दे गए। सुविधाओं के आधार पर जो लोग सुखी होते हैं, वे सुविधाएँ छिन जाने पर दुःखी हो जाते हैं। जो जीवन के आरपार सुखी होते हैं, वे सुविधाओं के चले जाने पर भी सुखी ही रहते हैं । आज मैं आपको कुछ ऐसे मंत्र देना चाहता हूँ कि जिन्हें यदि आप अपने पास सहेजकर रखते हैं, जिनको आप अपने मन-मस्तिष्क में प्रवेश करने के लिए स्थान देते हैं, जिन्हें आप जीवन की दैनंदिन गतिविधियों के साथ जोड़ते हैं तो ये मंत्र आपके जीवन के कायाकल्प के लिए कल्याणकारी हो सकते हैं । ये मंत्र आपके जीवन के हर पल को सुखी बना सकते हैं । मैं कभी ईश्वर से सुख की कामना नहीं करता । यह अटूट विश्वास है कि दुनिया में कोई भी व्यक्ति कभी ईश्वर से दुःख की कामना नहीं करता पर हरेक को दुःख से गुजरना होता है वैसे ही सुख की कामना की जरूरत नहीं। जब दुःख अपने आप बिन मांगे आता है तो सुख को वैसे भी बिना मांगे स्वतः आने दीजिए । जीवन में चाहे सुख आये या दुःख दोनों का स्वागत तहेदिल से कीजिए सुख का स्वागत तो हर कोई करता है पर सुखी आदमी तभी हो पाता है जब जीवन में आने वाले दुःखों का स्वागत करने के लिए भी वह तैयार हो । इसे यों समझे - जैसे हमारे घर चाचाजी मेहमान बन कर आते हैं । हम उनका सम्मान करते हैं और दो मिठाईयों के साथ उन्हें भोजन कराते हैं पर जाते समय वे हमारे बच्चे के हाथ में सौ का नोट पकड़ा जाते हैं, यानि तीस का खाया सौ दे दिए। पर हमारे घर जंवाई 12 For Personal & Private Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी आता है जिसका हम चाचाजी से भी ज्यादा सम्मान करते हैं और मानमनुहार पूर्वक चार मिठाईयों से जंवाई को भोजन भी करवाते है और चाचाजी तो जाते समय सौ रूपए देकर गए पर जंवाई को तो जाते समय सौ रूपए हम देते हैं। सुख दुःख का यही विज्ञान है। सुख आवे तो समझो चाचाजी आए है और दुःख आए तो समझो जंवाई आया है। दोनों का सम्मान करो भाई। चाचाजी के सम्मान में कमी रह जाए तो चल भी जाएगा पर जंवाई के सम्मान में चूक न हो, सावधानी रखना। सादगी सर्वश्रेष्ठ श्रृंगार यदि आप जीवन में खुशियाँ बटोरना चाहते हैं तो पहला मंत्र हैजीवन को सादगी-पूर्वक जीने की कोशिश करें। आपने सुना है-सादा जीवन उच्च -विचार। व्यवहार में सादगी हो, आचरण में श्रेष्ठता हो और विचारों में पवित्रता हो। तुम जितने ऊपर उठोगे उतनी ही विनम्रता तुम्हारे व्यवहार में आ जाएगी। आम के पेड पर लटकती हई कैरी जब कच्ची होती है, तब तक अकड़ी हुई रहती है लेकिन जैसे-जैसे वह कैरी रस से भरती है, मिठास और माधुर्य पाती है, वैसे-वैसे वह आम में तब्दील होती हुई झुकना शुरू हो जाती है। जो अकड़ कर रहती है वह कच्ची कैरी और जो झुक जाय वह पका हुआ आम। जीवन में महानताएँ श्रेष्ठ आचरण से मिलती हैं-वस्त्र-आभूषण और पहनावे से नहीं। इसलिए जीवन को सादगीपूर्ण ढंग से जिएँ। सादगी से बढ़कर जीवन का अन्य कोई शृंगार नहीं है। ईश्वर को जो शारीरिक सौन्दर्य देना था, वह तो उसने दे दिया। उसे और भी अधिक सुंदर बनाने के लिए 'उच्च विचार और सादा जीवन' अपनाएँ, न कि कृत्रिम सौन्दर्य-प्रसाधन। क्या आप नहीं जानते कि जिन कृत्रिम सौंदर्य प्रसाधनों का उपयोग आप कर रहे हैं वे हिंसात्मक रूप से तैयार किए गए हैं? क्या आपने यह जानने की कोशिश की है कि आपकी शृंगार सामग्री के निर्माण में कितने पशुओं का करुण-क्रंदन छिपा हुआ है? क्या लिपिस्टिक लगाने वाली 13 For Personal & Private Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किसी भी महिला ने यह जानने की कोशिश की कि लिपिस्टिक में क्या है ? आखिर चौबीस घंटे तो बन-ठनकर नहीं जीया जा सकता। क्यों न हर समय सहज रूप में रहें ताकि हमारा सहज सौन्दर्य भी उभर सके । सादगी से बढ़कर सौन्दर्य क्या ? राष्ट्रपति कलाम साहब जब राष्ट्रपति पद के लिए नामांकित हुए तो समाचार पत्रों में उनके चित्र आने लगे कि अगर वे अपने बाल चित्रों में बताए गए तरीके से कटवा लेंगे या संवारने लगेंगे तो अधिक खूबसूरत लगेंगे, या कहा गया कि वे अपनी वेशभूषा में कुछ परिवर्तन कर लेंगे तो अधिक प्रभावशाली लगेंगे। लेकिन मैं सोचा करता कि अगर यह व्यक्ति काबिल है तो राष्ट्रपति बनने के बाद भी ऐसा ही रहेगा और मैं प्रशंसा करूँगा कलाम साहब की कि वे आज भी देश के साधारण व्यक्ति के समान ही जी रहे हैं । यही उनका श्रृंगार है - 'सादा जीवन, उच्च-विचार' । सादगी से बढ़कर और कोई शृंगार नहीं होता । अंत: सौंदर्य की सुवास वस्त्रों और आभूषणों से जीवन में कृत्रिम सुंदरता पाने की बजाय आप उत्तम विचार और आचार से जीवन के वास्तविक सौन्दर्य के मालिक बनें। आपके पहनावे का भड़कीलापन कुछ मनचलों को आपकी ओर आकर्षित कर सकता है, पर आपकी सादगी और जीवन की श्रेष्ठता किसी महान व्यक्ति को भी आपकी ओर आकर्षित कर सकती है। वस्तुओं को बटोरना तो सामान्य बात है, लेकिन बटोरी हुई वस्तुओं का त्याग करना जीवन की महानता है। वैभव की व्यवस्था केवल आपके ही पास नहीं है। महावीर और बुद्ध भी ऐसे ही सम्पन्न थे, लेकिन उन्होंने देखा कि बाहर का वैभव आंतरिक वैभव के समक्ष फीका है । महावीर निर्वस्त्र रहते थे तब भी लोग उनके पास जाया करते थे, क्योंकि उनके पास आंतरिक सौंदर्य की सुवास थी और यही उनका शृंगार था। जो अपने जीवन को सादगीपूर्वक उच्च विचारों के साथ जीते हैं, वे कितने भी बूढ़े क्यों न हो जाएं, कुरूप नहीं हो सकते। आपने महात्मा 14 For Personal & Private Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गांधी के युवावस्था और बुढ़ापे के चित्र देखे होंगे। मेरी नज़र में उनका बुढ़ापे में चेहरा अधिक सुंदर हो गया था। श्री अरविंद के बुढ़ापे के चित्रों में भी कितना सौंदर्य छलक रहा है! रवीन्द्रनाथ टैगोर का सौंदर्य भी वृद्धावस्था में निखर आया था। जैसे-जैसे हमारे विचार निर्मल होते हैं, व्यवहार पवित्र होता है हमारा चेहरा भी उतना ही तेजस्वी होता जाता है, जिसके पास जीवन का सौन्दर्य है, उसे कभी शरीर का सौन्दर्य नहीं लुभाता। जीवन ही हर व्यवस्था में स्वयं को अनुकूल करने का प्रयास करें और अपने बच्चों में भी यह संस्कार अवश्य डालें कि जीवन में चाहे जो भी दुविधाएँ आएं वे उन्हें जीने और भोगने में समर्थ हो सकें। अन्यथा आज की सुविधाओं को तो वे आराम से भोग लेंगे लेकिन दुविधा आने पर रोने-धोने के अलावा कुछ न कर सकेंगे। अपनी संतान को इस बात का अहसास कराते रहें कि हर हरी घास एक दिन सूख जाती है, अत: उसका प्रेमपूर्वक मुकाबला करने के लिए हमें हमेशा तैयार रहना चाहिये। काया नहीं, हृदय संवारें र जीवन का दूसरा मंत्र है-'अपने शरीर पर अधिक ध्यान न दें।' शरीर जीवन जीने का, जीने की व्यवस्थाओं को सम्पादित करने का साधन मात्र है। बार-बार आईने में न देखें कि चेहरे पर यहाँ कैसा दाग़ है या यह सांवला क्यों? शरीर के प्रति अधिक अनुरक्ति न रखें। अगर हर समय शरीर का ही ध्यान रहेगा तो छोटी-छोटी तकलीफों को सहन कैसे कर पाएँगे? रोज रोज यह क्या कि सिर दुख रहा है या पेट दर्द हो रहा है । छोटी-छोटी तकलीफों को जीने की कोशिश करें। अगर हाथ में फोड़ा हो गया है तो तटस्थता अनुभव करें कि 'मैं' अलग हूँ और शरीर अलग है। जो इस बोध के साथ जीता है उसके जीवन में चाहे जितने उपद्रव आएँ, लेकिन वे उसे सता न सकेंगे। वरना एक छोटे-से फोड़े में आह-ऊह-ओह दिनभर चलती रहेगी। 15 For Personal & Private Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शरीर के रंग का भी क्या देखना ! अगर देख सकते हो तो हृदय की सुंदरता देखो। मैं देखा करता हूँ कि कुछ लड़के कुंवारे रह जाते हैं क्योंकि उन्हें बहुत सुंदर पत्नी चाहिए । चेहरे की सुंदरता का कैसा मोह ? यह सुंदरता कब ढल जाएगी पता भी नहीं चलेगा। अगर बना सको तो अपने हृदय को जरूर सुंदर बनाओ। जो मिला है, उसे सहजता से स्वीकार करें और अपने शरीर पर ज्यादा ध्यान देने की कोशिश न करें। मैं देखा करता हूँ कि लोग स्वयं के शरीर को सजाने-संवारने में घंटों खर्च कर देते हैं। मैं ऐसे लोगों को भी जानता हूँ जो रोज तैयार होने में दो घंटे लगाते हैं लेकिन वे मंदिर जाते होंगे तो दो मिनट ही वहाँ बैठ पाते होंगे। देह के प्रति कितनी अनुरक्ति है उन्हें ! शरीर का मोह छोड़िए अगर आपके शरीर पर कोई दाग हो गया है और अगर आप उसी का चिंतन करते रहे तो जीवन भर दुखी रहेंगे, पर यदि यह सोचेंगे कि ठीक है शरीर पर दाग है, मुझ पर नहीं, तो सुखी होंगे। शरीर से अनासक्ति रखें। आज जवानी है, कल बचपन था, परसों बुढ़ापा आएगा और फिर कहानी खत्म! सूरज की तरह जीवन है, कि रात होते ही जीवन भी समाप्त हो जाता है । रोज सुबह और सांझ के रूप में जन्म और मृत्यु हमारे द्वार पर दस्तक दे रहे हैं आप नहीं बता सकते कि किस दिन से आपके बाल सफेद होने शुरू हुए या किस तारीख को आपके बाल उड़ गए ? दिन प्रतिदिन शरीर ढलता जा रहा है और काले बाल सफेदी की ओर बढ़ रहे हैं। I कहते हैं, दशरथ नहा-धोकर आईने के सामने खड़े हुए तो उन्होंने देखा कि उनके सिर का एक बाल सफेद हो गया है । एक सफेद बाल देखकर उनकी चेतना हिल गई कि अब सूचना आ गई है कि अब अपने मन को भी सफेद कर लो। यहाँ तो लोगों के सिर के सारे बाल सफेद हो जाते हैं तब भी मन की कालिमा बरकरार रहती है । जिन्होंने जैन रामायण पढ़ी है वे जानते हैं, कि दशरथ महल के रनिवास में जाते हैं और संसारत्याग का निर्णय सुना देते हैं। तीनों रानियाँ स्तब्ध रह जाती हैं कि रात में 16 For Personal & Private Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो संसार में रमे थे और सुबह वैराग्य ! यह कैसा निर्णय । दशरथ ने कहा, 'देखो मेरे सिर का एक बाल सफेद हो गया है, और मुझे संसार से वैराग्य / संन्यास लेने का संदेश आ गया है।' सिर का एक सफेद बाल देखकर दशरथ वैराग्य-वासित हो जाते हैं और हमारे सारे बाल भी सफेद हो जाएँ तो भी हम नहीं जाग पाते । चेतना में कोई बोध नहीं जगता कि हम किस ओर जा रहे हैं । यह जो बहुत सुंदर चेहरा है, इस पर एक दिन झुर्रियाँ छा जाने वाली हैं, यह सीधी कमर एक दिन झुक जाने वाली है, आंखों से एक दिन रोशनी कम हो जाने वाली है, कानों से सुनने की शक्ति भी कम हो जाने वाली है। यह शरीर जिसे तुम इतना सजा-सँवार रहे हो, एक दिन यह भी टूट जाने वाला है ।‘अंगम् गलितम्, पलितम् मुंडं दशनविहीनं जातम् तुडं, वृद्धोयाति गृहीत्वा दंडम्, तदपि न मुंचति आशापिंडम्', आचार्य शंकर कहते हैं अंग गल गए हैं, कमर झुक गई है, आँखें देख नहीं पा रही हैं, कान सुनने में असमर्थ हैं, वाणी बंद हो रही है, सिर के बाल सफेद हो गए हैं लेकिन फिर भी शरीर का मोह है कि छूटता ही नहीं है । काम से प्यार करें सुखी जीवन का तीसरा मंत्र है 'अपने कार्य के प्रति ईमानदार रहें ।' अगर आप डॉक्टर हैं तो अपने पेशे के प्रति जागरूक रहें, दुकान चला रहे हैं तो दुकान के कार्य से प्यार करें। अगर किसी के यहाँ नौकरी कर रहे हैं तो उसके प्रति कार्य में प्रतिबद्धता रखें। मैं कहना चाहूँगा कि आप किसी के यहाँ नौकरी करके पाँच हजार का वेतन पाते हैं तो सात हजार का काम अवश्य करें। ऐसा न हो कि तीन हजार का काम करें और वेतन पाएं पांच हजार। सरकारी कर्मचारी हैं तो ऐसा न करें कि ऑफिस में कुर्सी पर बैठकर गप्पे मारें या नींद निकालें। सरकार के आधे काम इसीलिए अटक जाते हैं और दुगुने ऑफीसर इसीलिए चाहिये क्योंकि आधे लोग तो झपकियाँ ही लेते रहते हैं या काम करने की बजाय गप्पे मारते रहते हैं । 17 For Personal & Private Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जितना वेतन लेते हैं, उतना काम अवश्य करें और वह भी ईमानदारी से करें। तब बॉस भी आपके अधीन हो जाएगा और वह आपको नौकरी से न निकाल सकेगा। याद रखें कहीं भी, कभी भी इतना अवकाश न लें कि बॉस यह समझे कि बिना आपके काम चल सकता है। हम अपने जीवन में काम से प्यार करने की कोशिश करें। अपने जीवन को व्यर्थ न गंवाएँ । जानते हैं न, खाली दिमाग शैतान का घर होता है। हर पल का उपयोग करें। जिस कार्य से आप जुड़े हैं, उसे तत्परता, तन्मयता, एकाग्रता, लयबद्धता से पूर्ण करें। आप अनुभव करेंगे ऐसा करके आप सच्चे कर्मयोगी बन गये हैं । निर्मल करें स्वभाव चौथा मंत्र देना चाहूँगा, आप अपने स्वभाव के प्रति सजग रहें। यदि आप स्वयं सुखी रहना चाहते हैं और दूसरों से भी सुख पाना चाहते हैं तो अपने स्वभाव का अवलोकन जरूर करें। आप देखें कि पूरे सप्ताह में आपने क्या अच्छा और क्या बुरा किया ? किससे प्रेम किया और किसके प्रति क्रोध किया ? किसके प्रति क्षमा- भाव रखा और किसे अपशब्द कहे ? सप्ताह में एक दिन तय कर लें कि आप अपने क्रिया-कलापों का उस दिन पर्यवेक्षण करेंगे। दूसरे दिन उन सभी कार्यों को दोहराएँ और संकल्प लें कि अच्छे काम अधिक करेंगे और बुरे तथा गलत कार्यों को छोड़ने का प्रयास करेंगे। सदा श्रेष्ठ कार्यों से प्यार स्वयं ईश्वर से प्यार करने के बराबर है यदि जीवन में सत्संग करने के बाद भी हमारा स्वभाव नहीं बदल रहा है तो मनन करें कि हमने आखिर क्या पाया? तीस दिन पहले भी आप क्रोध करते थे और आज भी आपको गुस्सा आ रहा है तो आप यहाँ आकर व्यर्थ का एक घंटा न गंवाएँ। आप और कुछ काम करें। अगर आप अपने जीवन को रूपान्तरित करने के प्रति सजग नहीं हैं तो यहाँ सत्संग में आने का औचित्य ही क्या हैं ? 18 For Personal & Private Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आप अपने स्वभाव को पढ़ें कि उसमें क्या विकृति या सुधार आया है ? स्वभाव में कितनी अनुकूलता या प्रतिकूलता आई है? अगर आप चाहते हैं कि जीवन में आपको लोगों का प्यार मिले और मरने के बाद दुनिया आपको याद रखे तो आप अपनी ओर से सबको प्रेम और मधुर व्यवहार दें। आपका निर्मल और पवित्र स्वभाव जीवन-विकास के मार्ग खोलेगा। शांत स्वभाव के लोग जहाँ झोंपड़ी में स्वर्ग की शांति पाते हैं, वहीं कड़वे और झगड़ालू स्वभाव के लोग महल में रहकर भी नरक को जीने को मजबूर हो जाते हैं। संतोषी, सदा सुखी सुखी जीवन का अगला मंत्र है-'संतुष्ट रहना।' हम कहते हैं - 'संतोषी सदा सुखी'। और अतिलोभी सदा दुःखी। जिसके जीवन में संतोष-धन आ जाता है वह अपार सुख का मालिक हो जाता है। जो मिला है, जैसा मिला है, जिस रूप में मिला है, उसे स्वीकार करना सीखें। अति लोभ विनाश का कारण बनता है। लोभ तो पाप का बाप है। भगवान् महावीर ने कहा है-'क्रोध प्रीति का नाश करता है, मान विनय का नाश करता है, माया मित्रता का और लोभ सब कुछ नाश कर देता है' है इसलिए संतोष रूपी धन बटोर लें। विधाता और भाग्य ने जो दिया है, अच्छा दिया है। श्रेष्ठ दिया है अतः सुखी जीवन के लिए इससे बढ़कर दूसरा धन और क्या हो सकता है? तरुवर बनें, सरोवर बनें जीवन में दूसरों के काम आना - यह भी सुखी जीवन का एक मंत्र है। इसमें हमारे मन को तो सुकून मिलता ही है, साथ ही साथ मानवता के कल्याण में भी हम सहयोगी बनते हैं। आप जिंदगी में दूसरों के काम आने की कोशिश करें। आप देखते हैं, वृक्ष फल स्वयं नहीं खाते और वे दूसरों के लिये उन्हें गिरा देते हैं। सरोवर दूसरों की प्यास बुझाने को सदा तत्पर रहते हैं। 19 For Personal & Private Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ BHARA हमारी महानता इसी में है कि हम दूसरों के काम आ सकें। आप अपने घर में ऐसा पेड़ लगाएँ जिसकी छाया पड़ौसी के घर तक जाए। पड़ौसी को अपने व्यवहार से सुकून दें। स्वयं की सुविधा, स्वयं की भलाई तथा खुद के विकास की संभावनाएँ तो सभी ढूंढते हैं लेकिन महान वे हैं जो औरों के लिए स्वयं को समर्पित कर देते हैं। हृदय में करुणा, मैत्री, प्रार्थना हो तथा जीव-जन्तुओं के प्रति भी दया-भाव हो। जीवन में कोई आपके लिए कितना भी बुरा क्यों न करे, लेकिन आप उसके प्रति उदारता रखें और उसकी विपत्ति में काम आएँ। अगर हमारे पास अधिक धन है तो उसे सेवाकार्य में खर्च करें। जीवन में ऐसे कुछ नेक कार्य करें कि ऊपर जायें तो ऊपर वाले के सामने हमारा चेहरा दिखाने लायक अवश्य हो। एक दफा अकबर ने बीरबल से पूछा-'मेरी हथेली में बाल क्यों नहीं हैं?' अजीब सा प्रश्न था, लेकिन पूछा भी तो बीरबल से था। तुरंत उत्तर मिला, 'जहाँपनाह, आप अपने हाथों से निरंतर दान करते हैं, इसीलिए आपकी हथेलियों के बाल घिस गए हैं।' 'बात तो ठीक है, लेकिन बीरबल जो देते नहीं हैं उनकी हथेलियों में बाल भी क्यों नहीं होते?' सम्राट ने अगला सवाल किया।, 'बादशाह। वे लोग लेते हैं इसलिए लेतेलेते उनके बाल घिस जाते हैं', बीरबल ने उत्तर दिया। अकबर ने कहा, 'यह भी ठीक है, लेकिन जो न देते हैं और न लेते हैं उनकी हथेलियों में बाल क्यों नहीं होते?' बीरबल ने जो जवाब दिया वह गंभीरता से ग्रहण करने लायक है। बीरबल ने कहा, 'जहाँपनाह । वे हाथ मलते रह जाते हैं इसलिए उनकी हथेलियों में बाल नहीं होते।' हम भी कहीं हाथ मलते न रह जाएँ। प्रकृति हमें देती है, नदी हमें देती है, वृक्ष -जमीन और आकाश भी हमें देते हैं, फिर हम देने में कंजूसी क्यों करें! हम देने की भाषा सीखें, देने का पाठ पढ़ें। हमारे पास जरूरत से ज्यादा वस्त्र हैं तो फटेहाल जिंदगी जीने वालों की सहायता करें। अगर आपके पास पचास साड़ियाँ हैं तो उनमें से पाँच साड़ियाँ झोंपड़-पट्टी में 20 For Personal & Private Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाकर उन्हें दे दें, जिन महिलाओं के दो साड़ियाँ भी नहीं हैं। इससे हमारी संग्रहवृत्ति कम होगी और उसका कल्याण होगा। यह अपरिग्रह व्रत का जीवन्त आचरण होगा। हम अपने हृदय में करुणा लाएँ। औरों के जीवन की विपदाओं को हम कम करने की, ठीक करने की कोशिश करें। कोई आपका कितना भी अहित करे, पर आप उसका अहित न करें। जो तोके कांटा बुवै, ताहि बोय तू फूल तोको फूल को फूल है, वाको है त्रिशूल। पहले दिन आप अपने कार्य का पर्यवेक्षण करें। दूसरे दिन उन सभी कार्यों को दोहराएँ और संकल्प लें कि अच्छे काम पुनः करेंगे और बुरेगलत कार्यों को छोड़ने का प्रयास करेंगे। श्रेष्ठ कार्यों से प्यार करें और जीवन को श्रेष्ठ बनाएँ। सजगता रखिए जीवन-रूपांतरण के प्रति लोग मुझसे कहते हैं 'चातुर्मास शुरू हो गया, पर तपस्या, उपवास कम हो रहे हैं।' मैं कहता हूँ 'इस बार उपवास तो कम हो सकते हैं, शायद पिछले वर्ष अधिक तपस्या हुई हो, उसके पिछले वर्ष और भी अधिक उपवास हुए हों। इस बार उपवास तो कम हुए हैं, मगर एक और चीज भी कम हुई है, वह यह कि लोगों का क्रोध बहुत कम हो गया है।' यह जीवन का बहुत बड़ा उपवास है। उपवास करके भी क्रोध कर लिया तो उपवास व्यर्थ है और भोजन करके भी विपरीत वातावरण में शान्त और तटस्थ हैं तो उपवास सध गया है। अगर हम अपने स्वभाव को सुधार लेते हैं, उसे पवित्र और निर्मल बना लेते हैं तो इससे बड़ी जीवन की तपस्या अन्य क्या होगी? तेला करने से पहले कहीं जरूरी है झमेले मिटाना। इस वर्ष तपस्या भले ही कम हुई हो, पर घर-घर की समस्याएं भी कम हुईं। 21 For Personal & Private Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपने भगवान महावीर के जीवन की बहुत-सी घटनाओं को पढ़ा होगा। लेकिन आज मैं जिस घटना की चर्चा करने जा रहा हूँ, वह हमारे जीवन से छूट गई है, क्योंकि हमने महावीर के जीवन को आधा-अधूरा ही पढ़ा है। हम यह तो जानते हैं कि महावीर के कानों में कीलें ठोंकी गईं और वे उन्हें सहन कर गए। हम यह भी जानते हैं कि उनके पांव में चंडकौशिक सर्प ने डंक मारा और उसे भी वे सहन कर गए। उनके पांवों में अंगीठी जलाई गई और उन्होंने उसे भी सहन कर लिया। उन्हें कुएँ में उल्टा लटकाया गया और वे सहन कर गए। उनके पीछे कुत्ते छोड़े गए और वे सहन कर गए। कानों में कीलें ठोके जाने की घटना तो हम सब जानते हैं, लेकिन आगे का प्रसंग बहुत मार्मिक है। कुछ दिनों बाद एक वैद्य ने उन कीलों को बाहर निकाला। जिस समय कान में से कीलें निकाली जा रही थी; सम्पूर्ण साधनाकाल के दौरान पहली बार, भगवान की आँखों में से आँसू आ गए। वैद्य ने पूछा, 'क्षमा करें भगवन् , क्या इतनी | अधिक पीड़ा हो रही है? मैं तो आपकी पीडा को दूर कर रहा हूँ, आपके हर दर्द को कम करने की कोशिश कर रहा हूँ। क्या इतनी पीड़ा हो रही है जिससे कि आपकी आँखों में आँस आ गए ?' भगवान ने करुणा भरे भाव से कहा, 'वत्स, मेरी आँखों में आँसू पीड़ा से नहीं आए हैं, ये आँसू तो करुणा और दया के आँसू हैं, मैं सोच रहा हूँ कि जब मैं साधना काल में था तो मेरे कानों में कीलें ठोंकी गईं और मैं सहन कर गया, लेकिन जब उस ग्वाले के कान में कीलें ठोंकी जाएंगी तो वह बेचारा कैसे सहन करेगा!' इसे कहते हैं प्रेम और अन्तर् हृदय की करुणा कि जिसने कान में कीलें ठोंकी, उसके प्रति भी कल्याण की कामना। महावीर तो वही होता है जो जीवन में महानता को जीता है। जो तुम्हें क्रॉस पर लटकाये, तुम उसके लिए भी कल्याण की कामना करो, तभी तुम जीसस बन पाओगे। 22 For Personal & Private Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आप अपने द्वारा त्याग की भावना को प्रस्तुत करें। अगर आप शिक्षक हैं तो किसी भी एक गरीब छात्र को निःशुल्क पढ़ाएँ। यदि आप डॉक्टर है तो प्रतिदिन किसी एक जरूरतमंद रोगी का इलाज नि:शुल्क करें । अगर आप व्यवसायी हैं तो अपने व्यापार का गुर किसी एक व्यक्ति को सिखाकर उसे पांवों पर खड़ा करने का पूण्य अवश्य कमायें। आपका यह छोटा-सा सहयोग मानवता के लिए स्वस्तिकर होगा। समतामय जीवन ही साधना सुखी जीवन का एक सूत्र यह भी है कि आप अपने जीवन को समतापूर्वक जीने की कोशिश करें। उठापठक तो सभी के जीवन में आती है लेकिन इससे अपने हृदय को आन्दोलित न करें। भाग्यवश आपके पांव में अगर जूते नहीं हैं तो दुःखी न हों। आप यह सोचें कि दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जिनके पांव भी नहीं हैं । कम से कम उनसे तो आप भारत उत्तर- ARATISTITAND ज्यादा सुखी हैं। ईश्वर को धन्यवाद दें कि उसने जूते नहीं दिये तो क्या हुआ, उसने पांव तो दिए हैं। जीवन में मिलने वाली हर चीज को हम प्रेम से स्वीकार करें। परिवर्तन को हँस कर झेलने की कोशिश करें क्योंकि परिवर्तन तो जीवन में आएँगे ही। सुख आने पर गुमान और दुःख आने पर गम, दोनों ही आपके लिए घातक है। संत फ्रांसिस अपने शिष्य लियो के साथ एक नगर से दूसरे नगर की ओर जा रहे थे। वे जंगल से गुजर रहे थे और भंयकर बारिश हो रही थी। शिष्य पीछे और गुरु आगे चल रहे थे। मिट्टी गीली हो गई थी और दोनों के पाँव फिसल रहे थे। कपड़े मिट्टी से गंदे हो गए, पाँवों में कीचड़ लग गया, और तो और; हाथ की अंगुलियाँ और हथेली भी मिट्टी से सन गईं। बारिश में भीगते हए शिष्य लियो ने अपने गुरु संत फ्रांसिस से पूछा, 'गुरुवर, यह बताएँ कि दुनिया में संत कौन होता है?' फ्रांसिस ने कहा, 'वह संत नहीं है जो पशु-पक्षियों की आवाज समझ लेता है।' दो मिनट बाद लियो ने फिर पूछा, 'संत कौन होता है ? 'लियो, वह व्यक्ति भी संत 23 For Personal & Private Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ .0018965486 नहीं होता जो कपड़े बदलकर साधु हो जाए।' शिष्य ने फिर पूछा, 'प्रभु, तो फिर संत कौन होता है ?' संत ने कहा, 'लियो संत वह भी नहीं होता जो अंधों को आँखें और बहरों को आवाज दे दें।' शिष्य चकराया कि अगर वह भी संत नहीं है तो फिर संत कौन है? उसने अपना प्रश्न पुनः दोहराया। फ्रांसिस ने कहा, 'संत वह भी नहीं है जो गरीब को अमीर बना दे।' लियो चकराया कि मेरा प्रश्न तो यह है कि संत कौन होता है और मेरे गुरु बार-बार यह बता रहे हैं कि संत कौन नहीं होता। वह झुंझला गया और कहा, 'गुरुवर, आप साफ-साफ बता दें कि आखिर संत कौन होता है?' ___ गुरु ने कहा, 'सुनो, हम लोग जब तक नगर में , पहुंचेंगे, मध्य रात्रि हो जाएगी। बारिश हो रही है हाथ-पांव-कपड़े सब गीले होकर मिट्टी से सन . गए हैं ऐसे में रात्रि के एक-डेढ़ बजे तक नगर में पहुँच पाएँगे। वहाँ पहुँचकर किसी धर्मशाला के द्वार पर जाकर उसे खटखटाएँगे। तब भीतर से चौकीदार पूछेगा, ‘बाहर कौन है?' हम कहेंगे, 'दो संत हैं। सराय में रहना चाहते हैं।' तब वह गुस्से में कहेगा, 'भगो-भगो, पता नहीं कहाँ से संत आ जाते हैं ? पैसा तो देंगे नहीं, रात की नींद खराब करेंगे, चलो भगो।' तब पन्द्रह मिनट बाद हम लोग फिर से दरवाजा खटखटाएँगे कहेंगे, ‘भैया दरवाजा खोलो।' भीतर सोया हुआ चौकीदार पूछेगा, ‘बाहर कौन?' तब हम फिर कहेंगे 'वही दो संत।' चौकीदार कहेगा 'अरे, क्या तुम अभी तक बैठे हो ? भगो यहाँ से, नहीं तो डंडा मार कर भगाऊंगा। मैं तुम लोगों के लिए दरवाजा नहीं खोलूँगा। मुफ्तखोरों! एक कौड़ी देकर नहीं जाओगे। रात की नींद बिगाड़ रहे हो, भगो यहाँ से।' ___'लियो, पन्द्रह मिनिट बाद हम फिर दरवाजा खटखटाएँगे। फिर वह पूछेगा, ‘बाहर कौन?' तब भी अपना जवाब होगा, 'वे ही दो संत। और तब वह चौकीदार हाथ में डंडा लेकर बाहर आएगा और दरवाजा खोलते ही हम लोगों की पीठ पर आठ-दस डंडे मारेगा।' लियो, जब वह हमें 24 For Personal & Private Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ डंडे मार रहा हो तब भी हमारे हृदय में अगर उसके लिए प्रेम उमड़ता रहे तो समझना हम सच्चे संत हैं।' इस तरह का व्यवहार किए जाने के बाद भी हमारे हृदय में प्रेम और भाईचारे की भावना पलती रही तो मान लेना कि हम सच्चे संत हैं। जीवन की उठापटक में समतापूर्वक जीवन जीना ही साधना है। ____ तो ये हुई कुछ बातें जीवन को सुखमय, शांतिमय जीने के लिए। मन की शांति को सर्वाधिक मूल्य दीजिए। संतोष रखें और सादगी से जिएँ। शरीर के सौन्दर्य से भी ज्यादा अच्छे स्वभाव और हृदय के गुण-सौन्दर्य को महत्त्व दीजिए। स्वयं को सरोवर और तरुवर की तरह बनाइए जो हर हाल में अपनी ओर से दूसरों को सुख और शीतलता की छाया देता है। 25 For Personal & Private Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिंता छोड़ें, सुरव से जिएं चिता हमारे शव को जलाती है, लेकिन चिंता जीते-जागते इंसान को जला डालती है। मनुष्य अपने जीवन में बचपन से लेकर पचपन तक और जवानी से लेकर बुढ़ापे तक किसी-न-किसी रूप में चिंता, घुटन, अवसाद या तनावग्रस्त होता है। दुनिया में कई करोड़ लोग ऐसे हैं जो कैंसर से ग्रस्त हैं तो कई करोड़ लोग ऐसे हैं जो हृदय-रोग से ग्रस्त हैं। कई करोड़ ऐसे हैं जो एड्स ग्रस्त हैं और कई करोड़ पक्षाघात से ग्रस्त हैं। लेकिन दुनिया में सामान्य तौर पर दिखने में जितने भी लोग निरोग नज़र आते हैं वे अपने भीतर एक विशेष रोग पाले हुए हैं, जो उनके जीवन का सहज स्वभाव बनता जा रहा है और वह रोग है चिंता। आपने महसूस किया होगा कि जैसे ही हम बचपन पार करते हैं हमारे साथ ताउम्र चिंता चलती रहती है। तनाव और टेंशन ये एक अर्थ में जुड़े दो भाषा के शब्द हैं। बचपन तक हरेक टेंशन फ्री रहता है लेकिन जैसे बाल्यावस्था बीतती है, वैसे ही व्यक्ति की महत्वाकांक्षाएँ बढती हैं और मनो-मस्तिष्क में चिंताएं चलने लगती हैं। 26 For Personal & Private Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिंताओं ने छीना चैन यदि कोई विद्यार्थी स्कूल जाता है तो पढ़ाई और परीक्षा की चिंता, परीक्षा देने के बाद परिणाम की चिंता। आगे बढ़ने पर कॉलेज की पढ़ाई की चिंता और आगे कैरियर की, व्यक्तित्व-निर्माण की, नौकरी, धंधे तथा व्यवसाय की चिंता। उसके बाद शुरू होती है कभी विवाह की चिंता, कभी घर-खर्च की चिंता, कभी लड़के-लड़की के विवाह की चिंता। इस तरह न जाने कितनी चिंताएं व्यक्ति को घेरती रहती हैं। भविष्य की चिंता, सेहत की चिंता, कभी प्रमोशन की चिंता, पति-पत्नी की चिंता। दिन में जितने घंटे होते हैं, चिंताएं उससे ज्यादा ही होती हैं। समझिए आदमी बूढ़ा हो गया तो बुढ़ापे के सार-सम्हाल की चिंता। अगर तबियत बिगड़ गयी तो ठीक होगी या नहीं, इसी की चिंता। अगर तबियत ठीक न हुई और मृत्यु के करीब पहुंच गये तो मरने के बाद स्वर्ग में जाऊँगा या नरक में इसी बात की चिंता। भाई इसमें चिंता की बात क्या है ? अगर मरने के बाद स्वर्ग में चले जाओ तो चिंता की बात नहीं क्योंकि तुम स्वर्ग में ही जाना चाहते थे और नरक में चले जाओ तो चिंता की क्या बात है हमारे कई यार-दोस्त पहले से वहाँ पहुँचे हुए हैं, उनके साथ बतियाते रहना और जिंदगी निकाल देना। आप अनुभव करते होंगे कि आप मंदिर में हैं पर आपके मन में चिंता का भूत सवार है। दुकान से घर, घर से दुकान जाते हैं तो चिंता और तो और रात में जब बिस्तर पर जाते हैं, बिस्तर में उठते हैं हर पल आपके भीतर कोई-न-कोई चिंता सवार रहती है। हकीकत तो यह है कि जो चिंतामुक्त होने की सलाह देता है वह भी चिंता से घिरा रहता है। रात डेढ़ बजे आपकी नींद खुलती है। नींद खुलने के साथ ही आपके मनोमस्तिष्क में मंडराती है कोई घटना, कोई बात, अतीत या भविष्य की कोई चिंता। आप किसी को दो लाख रूपये देते हैं ब्याज पर और वर्ष भर बाद आपको अचानक पता चलता है कि उसने रूपये दबा लिये या दिवाला 27 For Personal & Private Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निकाल दिया। आप घर आए, रात भर सोचते रहे, चिंता करते रहे। पत्नी ने कहा, सो जाओ। तुम सो नहीं पाए। कमरे में ए.सी. चल रहा था तम पसीने से तर-बतर । एक ही चिंता, 'ये रूपये कैसे डूब गए, आखिर मैंने दिये ही क्यों?'। धन तो गया सो गया ही सुख की रोटी और चैन की नींद भी साथ ही चली गयी। लग न जाए यह घुन __चिंतन व्यक्ति के जीवन में विकास के द्वार खोलता है और चिंता विकास के द्वारों को अवरूद्ध कर देती है। चिंता घुन है, वहीं चिंतन धुन। चिंतन हमारी बुद्धि को प्रखर करता है लेकिन चिंता बुद्धि को जाम कर देती है पर ऐसा लगता है चिंता हमारे साथ घुलमिल गई है। जब कभी आप अपनी सफलताओं से, अपने सुख-विकास से वंचित रह जाते हैं, तो केवल चिंता के दायरे में जिया करते हैं। जैसे गेहूं को घुन भीतर ही भीतर खाकर खत्म कर देती है ऐसे ही चिंता मनुष्य को भीतर से खोखला कर देती है। मैंने ऐसे कई लोगों को देखा है जो सम्पन्न हैं, जिनके पास ऐशो-आराम के सभी साधन होते हैं, पर उनके चेहरों पर तो मायूसी ही नज़र आती है। वे या तो चिंताग्रस्त हैं या तनावग्रस्त। गरीब धनहीन होकर भी खुश और प्रसन्न हो सकता है, वहीं अमीर सम्पन्न होकर भी दुःखी, तनावग्रस्त और चिंतातुर हो सकता है। किसी अमीर को उदास देखता हूँ तो लगता है कितना अच्छा होता यह व्यक्ति सम्पत्ति का मालिक होने की बजाय शांति का मालिक हो जाता। गरीब, फुटपाथ पर भी सो रहा है, तो भी खुश है, लेकिन अमीर आदमी को सोने के लिए नींद की तीन-तीन गोलियाँ लेनी पड़ती हैं, फिर भी नींद नहीं आती । मज़दूर तो फुटपाथ पर अखबार बिछाकर सो जाते हैं, वे कभी नींद की गोलियाँ नहीं खाया करते। स्वभाव से प्रसन्न हैं, अन्तर्हदय में शांत हैं वे झोंपड़ी में भी मस्ती की नींद लेते हैं। तनावग्रस्त और चिंतित आदमी अगर महल में भी सो रहा है तो ठीक से नहीं सो पाता है। इसलिए व्यक्ति 28 For Personal & Private Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपने जीवन को सुखी - सफल बनाने के लिए सबसे पहले अपनी चिंता की आग बुझाये। अगर इंसान सुख-दुःख की चिंता से ऊपर उठ जाये, तो वह मन की शांति का शाश्वत मालिक हो सकता है । चिंता से तो चिता भली चिंता वह आग है जो चिंतन को जला डालती है । चिंता ही चिता बन जाती है । मैं तो कहूंगा भगवान चिता पर भले ही सुला दे, पर कभी चिंता की सेज पर न सुलाये । चिता हमारे शव को जलाती है, लेकिन चिंता जीते जागते इंसान को जला डालती है। यह हमारा रक्त चूस लेती है । यह हमारे जीवन के प्रत्येक पहलू पर आघात करती है, परिणाम स्वरूप हम पारिवारिक, सामाजिक और व्यावहारिक क्षेत्र में कमजोर हो जाते हैं । चिंताग्रस्त व्यक्ति हर समय स्वयं को दुःखी और हताश महसूस करता है। चिंताग्रस्त व्यक्ति का न स्वयं पर विश्वास होता है न औरों पर । वह दूसरों को संदेह की नज़र से देखता है । अपनी शक्तियों पर उसे विश्वास नहीं रहता । उसकी स्मरणशक्ति कमजोर हो जाती है। उसे जो कार्य करने होते हैं हर समय चिंताग्रस्त रहने के कारण उन कार्यों को भी भूल जाता है । चिता एक बार जाती है लेकिन चिंता बार-बार जलाती रहती है। क्या हम यह पहचानने की कोशिश करेंगे कि हम चिंतित क्यों हैं ? अगर हम जीवन को सहजता से, सरलता से स्वीकार कर लें तो हजार तरह की चिंताओं से बच सकते हैं । ज़िंदगी को युद्ध मानने की बजाय जिंदगी को खेल मानकर चलें । क्या है चिंता, चिंता के परिणाम क्या हैं, चिंता से कैसे बचा जा सकता है ? हम विचार करते हैं इन बिन्दुओं पर । चिंता नहीं, चिंतन करें घटित या घटित होने वाली घटना के प्रति अपनी मानसिकता को लगातार जोड़े रखने का नाम ही चिंता है। किसी एक बिंदु पर व्यक्ति ने सोचा और निर्णय कर लिया इसका नाम है 'चिंतन' और किसी एक बिंदु पर आदमी लगातार सोचता रहा लेकिन कोई निर्णय नहीं कर पाया इसका नाम है 29 For Personal & Private Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चिंता। अनिर्णय की स्थिति में लगातार किया गया चिंतन चिंता का विकराल रूप ले लेता है और निर्णय की स्थिति में किया गया चिंतन सफलता के द्वार खोल देता है। छोटी-छोटी बातों के कारण तनाव आ जाते हैं। अगर किसी को पूछो कि तुम्हें कोई चिंता है ? वह साफ इन्कार कर देगा, जबकि पूछने वाला और जिससे पूछा जा रहा है दोनों चिंता में हैं । देखा करता हूं लोगों के पास सब कुछ है-पहनने के लिये रंग-बिरंगे अच्छे कपड़े हैं, हाथ में अच्छी घड़ी बंधी है, पांवों में जूते हैं, रहने के लिए अच्छा सुंदर मकान है, महिलाओं के हाथों में चूड़ियाँ, पाँवों में पायल है, हीरे का सुन्दर-सा हार गले में है, फिर भी चेहरे पर उदासी है। सारी सुविधाओं के बावजूद यदि उदासी है तो मानना होगा कि सुख कहीं और है। जाको कछु न चाहिए आपकी रुग्णता का कारण भी मन में चलने वाली चिंता है। रोग मन में पैदा होते हैं और धीरे-धीरे उनका प्रभाव शरीर पर परिलक्षित होता है। सफलताओं के शिखर छने की आकांक्षा में चलने वाली बेलगाम इच्छाएं जब असफलता से दो-चार होती हैं, तो ये इच्छाएं उसे चिंताग्रस्त कर देती है। चिंता पर वही व्यक्ति विजय प्राप्त कर सकता है, जो चाह पर लगाम लगा चुका है। ___ अपने मन में जरा झांकें कि किस-किस तरह की चिंताएं आपको घेरे रहती हैं। बेटे की बहू आई, अगर वह स्वभाव से थोड़ी कठोर निकल गई, आपके स्वभाव के अनुकूल न निकली, तो इसी बात को लेकर चिंताग्रस्त हो जाएँगे। मेरी मौसी ने इतनी अच्छी लड़की बताई थी लड़के के लिए, उसको तो मना कर दिया और इस लड़की को ले आए, पता नहीं हमारे भाग्य ही ऐसे हैं। अब सास इसी चिंता में सूखती जा रही है। बड़ी जबरदस्त चिंताएं है लोगों की। खाना खाने बैठे तो बैंक बैलेंस की चिंता। बेटा कहीं बाहर गया है तो उसकी चिंता। जहाँ बैठे हो वहाँ का ही सोचना चिंतन है और जहाँ बैठे हो वहाँ किसी अन्य जगह का किया गया चिंतन चिंता है। चिंताएं भी कैसी-कैसी। महिलाएं रात को सोई हैं कि ख्याल आता है 30 For Personal & Private Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कल चतुर्दशी है सूखी सब्जी बनानी है क्या बनाऊं गट्टे की बनाऊं, चने की बनाऊं, पापड़ की बनाऊं या किसी और की बनाऊं ? सब्जी बनेगी कल और चिंता हो रही है रात में । महिला सोचती है फ्रिज में चार तरह की सब्जी रखी हैं भिंडी, करेले, तुरुई, ककड़ी। क्या-क्या बनाऊं तभी मन कहता है तीन दिन हो गए हैं, ककड़ी रखी है, पड़े-पड़े सड़ जाएगी, ऐसा करूंगी सुबह सबसे पहले ककड़ी की सब्जी ही बना लूंगी। सब्जी बनेगी कल और चिंता पाली जा रही हैं आज। इसमें चिंता का क्या कारण है ? हां, आप देखना आपके अंदर पलने वाली चिंताएं आपसे कम जुड़ी होती हैं, अनावश्यक इधर-उधर की चिंताएं अधिक होती हैं। हताशा में चिंता का मूल चिंता प्रकट होने का पहला कारण है . व्यक्ति का निराशावादी दृष्टिकोण। व्यक्ति हर समय निराश रहता है, उसे अपनी क्षमताओं पर संदेह रहता है। वह सोचा करता है कि उससे कुछ नहीं होगा, उसकी तक़दीर साथ नहीं देगी, उसमें कुछ करने की शक्ति नहीं है। निराशावादी दृष्टिकोण वाला व्यक्ति अपने भाग्य को कमज़ोर ही आँकने की भूल करता है । जो निराशावादी होते हैं, वे अपने मन में चिंतित बने रहते हैं और जीवन में कुछ कर नहीं पाते। अगर आप उन्हें उत्साहित भी करेंगे तो भी वे कुछ नहीं करेंगे, बल्कि कहेंगे उनसे ऐसा नहीं हो सकता। उनकी आदत रहती है हर काम में 'माइनस पाँइट' ढूंढ़ने की। फिर वे लम्बे अरसे तक उत्साहहीन होकर कुछ नहीं कर पाते। फिर मानसिकता विकृत होती है। परिणाम स्वरूप ऐसे लोग जीवन में केवल एक काम करते हैं जो जीवन में आगे चल रहे हैं, उनकी टांग खींचने की कोशिश करते हैं। अगर कोई कुछ कर रहा है तो वह उसे अनुत्साहित करते हैं कि तुम कुछ कर नहीं पाओगे। मेरी नज़र में जिंदगी में तैरना सीखना चाहते हो तो उसके लिये पानी में उतरने का हौसला होना ज़रूरी हैं। एक बार मैं किसी के घर गया। वहां देखता हूं कि एक बालक बिस्तर पर हाथ-पांव चला रहा था। दस मिनट 31 For Personal & Private Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हो गये उसे यों बिस्तर पर हाथ-पाँव चलाते। मैंने पूछा, 'ये तुम क्या कर रहे हो ? बिस्तर पर हाथ-पांव क्यों चला रहे हो ?' कहने लगा, 'तैरना सीख रहा हूं।' मैंने कहा, 'बिस्तर पर कोई कैसे तैरना सीख सकता है?' कहने लगा, 'तैरना तो पानी में ही सीखा जाता है पर क्या करूं पानी में उतरने में डर लगता है।' जो पानी में नहीं उतरेंगे वे जीवन में कभी तैरना नहीं सीख सकते। भगाएं भय का भूत चिंता का दूसरा कारण भय है। व्यक्ति के मन में हमेशा भय की ग्रंथि बनी रहती है कि कहीं उसके साथ कुछ हो न जाय, कोई उसके साथ कुछ कर न दे, कोई उसका कुछ बिगाड़ न दे। थोड़ा-सा बीमार पड़ा कि भयभीत होता है कहीं मर न जाऊं। जो होना है, वह होकर रहता है। होनी को टाला नहीं जा सकता। अनहोनी को किया नहीं जा सकता, फिर भय किस बात का। दुनिया में जो जन्मता है, निश्चित ही मरता है, कौन अमर हुआ है? जो भी मरे हैं वे सोमवार से रविवार तक ही मरे हैं। कोई आठवां वार हुआ नहीं है। फिर फिक्र कैसी, क्योंकि मरना तो निश्चित ही है। याद रखें, भयग्रस्त व्यक्ति सदा चिंताग्रस्त रहता है छोटी बातों का बड़ा सिरदर्द ___ जीवन में चिंता का चौथा कारण है-छोटी-छोटी बातों पर माथापच्ची। कोई बहुत बड़ी बात को लेकर व्यक्ति आपस में उलझे, चर्चा भी करे, बात भी करे तो समझ में आये, लेकिन छोटी-छोटी बातों को लेकर झगड़े होते हैं। घर में सोने-चांदी, कपड़े-मकान-दुकान को लेकर झगड़े नहीं होते, बहुत छोटी बातें, बड़ी बातें बन जाती हैं और झगड़े शुरू हो जाते हैं। एक छोटा-सा समाधान बहुत बड़ी समस्या को समाप्त कर सकता है और एक छोटी-सी उलझन जिंदगी में बहुत बड़ी समस्या को पैदा कर सकती है। व्यक्ति अपने जीवन में छोटी-छोटी बातों की मग़जमारी से मुक्त रहे। चिंता का एक और कारण है जीवन में पलने वाली छोटी-छोटी बातों के For Personal & Private Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ लिए वैर-विरोध की गांठ । कुछ लोग ऐसे होते हैं जो छोटी-छोटी बातों की गांठ बांध लेते हैं और गांठ भी ऐसी कि चाहे जितनी कोशिश करो, गांठ नहीं खुले। भगवान से पूछा गया प्रभो! दुनिया में बंधन और मुक्ति क्या है ?' भगवान ने कुछ उत्तर न दिया।थोड़ी देर बाद उन्होंने पास पड़ा एक वस्त्र उठाया, पता नहीं क्या मन में आया, हाथ में लेकर उसमें गांठ लगा दी। शिष्य को आश्चर्य हुआ कि उसने तो भगवान से पूछा था कि बंधन क्या है तो भगवान ने कोई जवाब नहीं दिया, बल्कि कपड़े में गांठ लगाकर उसे भी रख दिया। शिष्य ने थोड़ी देर बार पूछा 'भगवन ! मुक्ति क्या है?' भगवान फिर भी मौन रहे। उन्होंने उस वस्त्र को पुनः उठाया, उसकी गांठ खोली, वापस समेटा और अपने पास रख लिया। शिष्य ने कहा 'प्रभो ! मैं तो आपसे प्रश्न पूछ रहा हूँ और आप तो नई पहेली खड़ी कर रहे हैं, कपड़े में गांठ लगाते हैं और कभी खोलते हैं। भगवान ने कहा 'वत्स, मैं तुम्हारे प्रश्नों का ही जवाब दे रहा हूँ।' जिंदगी में बंधन वही होता है, जहाँ गांठ होती है और मुक्ति वहीं मिल जाती है, जहाँ व्यक्ति अपने मन की गांठों को खोल देता है।' सुविधाएँ सारी, पर नींद नहीं ___ कोई बहुत बड़े संकट जिंदगी में V चिंता के कारण नहीं बनते हैं बल्कि छोटी-छोटी बातों के कारण ही व्यक्ति चिंताग्रस्त हो जाता है। चिंता के दुष्परिणाम आपने देखे हैं ? आप चिंता का एक भी अच्छा परिणाम नहीं पाएंगे। चिंता में सबसे पहले नींद जाती है। भले आप मखमल के गद्दे पर ए.सी. में सोए हों, लेकिन चिंता आपके साथ है तो आप सुख की नींद नहीं सो पाते। अमेरिका में तो तीस प्रतिशत लोग ऐसे हैं, जो नींद की गोली न लें तो नींद नहीं आती। सुविधाएं सारी हैं, पर चैन की नींद नसीब नहीं। नींद न आना, चिंता का पहला दुष्परिणाम है। ___ अच्छी नींद के लिए आप एक प्यारी-सी विधि से गुजर सकते हैं। पहले आँखे बंद करके लेट जाएं। स्वयं को अनर्गल विचारों से मुक्त करें और अनुभव करें कि हर सांस के साथ आप एकदम अच्छा और शांत महसूस कर रहे हैं। 33 For Personal & Private Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उसके बाद धीरे-धीरे सांस छोडें और साथ ही शरीर को भी ढीला छोड़ दें। जो सांस आप बाहर छोड़ रहे हैं, उसके साथ महसूस करें कि आप पूरे दिन की थकान और चिंता को बाहर छोड़ते जा रहे हैं और खुद विश्राम पा रहे हैं । आठदस बार ऐसा करें । अन्तर्मन में केवल शांति का अनुभव करें। ___पाचन शक्ति समाप्त होना चिंता का दूसरा दुष्परिणाम है। अगर आप कब्जियत से पीड़ित हैं तो मान ही लीजिये कि आप चिंताग्रस्त हैं । चिंता कब्जी का मूल कारण है । एक व्यक्ति को कब्ज का रोग था। वह डॉक्टरों के पास गया, अलग-अलग तरह के उपचार किए गए, सभी परीक्षण हो गए, लेकिन रोग का पता न चल सका। कुछ दिनों बाद वह हमारे पास आया और कहा कि उसे पेट का रोग है, हम ही कुछ उपचार कर दें। ____ मैंने उसके चेहरे को पढ़ा और कहा 'रोग तुम्हारे पेट में नहीं है।' वह सकपकाया और कहने लगा 'सारे डॉक्टर पेट का इलाज़ कर रहे हैं और आप कहते हैं रोग पेट में नहीं है।' मैं उसे अलग कमरे में लेकर गया और प्यार से पूछा 'सच बताओ तुम्हें किसी बात की खास चिंता है क्या ?' पहले टाल-मटोल करते रहे फिर उसके मन को टटोलने की कोशिश की तो कहने लगा 'साहब! एक बात की जबर्दस्त चिंता है कि आजकल मार्केट बहुत डाउन होता जा रहा है।' मैं समझ गया कि इस व्यक्ति के रोग का क्या कारण है ? धंधा मंदा चल रहा है' कहने लगा 'पिछले साल मैंने फैक्ट्री में बीस लाख रुपए कमाए थे, जबकि इस साल केवल आठ लाख ही कमा पाया। बस यही चिंता सता रही है कि अगर ऐसा ही धंधा चला तो अगले वर्ष क्या होगा ?' आठ लाख कमाए इसका संतोष उसे नहीं है, किन्तु बारह लाख न कमा पाया, इसका दुःख चिंता बनकर धीरे-धीरे उसके पेट तक पहुँचा और पेट के रोग पैदा हो गए। चिंता से हमारी मन की शांति तो भंग होती ही है साथ ही आध्यात्मिक शक्तियाँ भी नष्ट हो जाती हैं। चिंता नदे कोई हल हम चिंतामुक्त ज़रूर हो सकते हैं लेकिन उससे पहले पूछना चाहूंगा कि 34 For Personal & Private Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हम चिंता किसलिए करते हैं ? इस दुनिया में कोई व्यक्ति चिंता करके समस्या का समाधान नहीं निकाल पाया है। जीवन में जो होता है उसे प्रेम से स्वीकार करो। यही सोचो कि जो होता है अच्छे के लिए होता है। प्रकृति का सिद्धांत है जो जीवन देता है वह जीने की व्यवस्था भी देता है। अगर हम प्रकृति के सान्निध्य और उसकी गोद में जीने की कोशिश करें तो जान लेंगे कि जन्म देने से पहले प्रकृति हमारे लिए माँ का आंचल दूध से भर देती है जब प्रकृति हरेक की व्यवस्था कर रही है तो हम किस बात को लेकर चिंताग्रस्त हों ! जीवन में जो हुआ है वह केवल आपके साथ ही नहीं हुआ, किसी के साथ भी वैसा हो सकता है। जो होता है अच्छे के लिए होता है। इसलिए लाख आ जाएं तो खुशी नहीं, लाख चले जाएं तो कोई रंज या गम नहीं। जीवन में घटित होने वाली आधी घटनाएं ऐसी होती हैं जिनके लिए यह सोचना हितकारी है कि भगवान जो करता है, अच्छे के लिए करता है । अगर कुछेक घटनाओं के लिए हम यह सोच न बना पाएं तो यह सोचकर मन को सांत्वना दे सकते हैं कि जीवन में वही होता है जो होना होता है। जो हुआ, अच्छा हुआ स्वेट मार्डन दुनिया के महान चिंतक हुए हैं। जब वे बीस वर्ष के थे तो किसी लड़की के चक्कर में पड़ गए। दोनों का प्रेम दो-तीन वर्ष तक चलता रहा। स्वेट मार्डन उस लड़की को प्राणों से ज्यादा चाहने लगे, लेकिन एक दिन अचानक खबर मिली कि स्वेट मार्डन जिस लड़की से बेहद प्यार करते थे, उसने दूसरे से शादी कर ली। स्वेट मार्डन भीतर से टूट गये। उन्हें इतना धक्का लगा कि खाना-पीना छूट गया, नींद हराम हो गई, धंधा छूट गया। कहते हैं उन्होंने घर से निकलना भी बंद कर दिया। घर में पड़े रहते । सोचते 'ईश्वर ने मेरे ही साथ ऐसा क्यों किया। आखिर, जिसके लिये मैं कुछ भी करने को तैयार था उसने मुझे धोखा क्यों दिया।' दो साल तक वे इन्हीं चिंताओं से घिरे रहे। चेहरे पर दाढ़ी 35 For Personal & Private Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बढ़ गई, चेहरा सिकुड़ गया, शरीर कमजोर हो गया। स्वेट मार्डन घर के पिंजरे में ही कैद होकर रह गये। एक दिन उन्होंने सुबह के अखबार में पढ़ा कि एक युवक ने आत्महत्या कर ली। जब उन्होंने संपूर्ण विवरण पढ़ा तो पता लगा कि वह युवक उसी युवती का पति था जिसके प्रेम में वे पागल थे। समाचार था कि वह लड़की बहुत क्रोधी स्वभाव की थी, उसके गुस्से से तंग आकर उस युवक ने आत्महत्या कर ली थी। उसने मरने से पहले नोट लिखा कि, 'मुझे इतनी गुस्सैल पत्नी मिली है कि मैं सहन नहीं कर पा रहा हूं और आत्महत्या कर रहा हूं।' स्वेट मार्डन जो अब तक उदासी के समंदर में डूबे थे, एकदम किनारे आ लगे कि, 'ओह! ईश्वर जो करता है अच्छे के लिये करता है।' अगर मैं उस लड़की से शादी कर लेता तो आज अखबार में मेरी आत्महत्या करने की खबर होती। शुक्रिया या रब, अच्छा किया आपने बचपन में एक कहानी सुनी होगी कि एक राजा का अंगूठा कट गया। उसने यह बात मंत्री को बताई। मंत्री ने कहा, ' उदास न हों राजन् जो होता है अच्छे के लिये होता है।' राजा यह बात सुनकर क्रोधित हो गया कि उसका तो अंगूठा कट गया है और मंत्री कह रहा है जो होता है अच्छे के लिये होता है। उसने मंत्री को कारागार में डलवा दिया। कई दिन बीते, राजा जंगल में शिकार खेलने गया। सैनिक इधर-उधर भटक गये वह अकेला चलता फिरता आदिवासियों की एक बस्ती में पहंच गया। वे क्या । जानें कि कौन राजा कौन प्रजा! उन्होंने उसे पकड़ लिया क्योंकि उन्हें किसी न किसी आदमी की बलि देनी थी। उनके गुरु ने कहा था कि अपना कार्य सिद्ध करना चाहते हो तो किसी श्रेष्ठ पुरुष की बलि दो, तुम्हारा काम सिद्ध हो जाएगा। आदिवासी उस राजा को पकड़कर गुरु के सामने लाए और कहा, 36 For Personal & Private Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 'लीजिए इसकी बलि दीजिए।' राजा ने बहुत समझाया पर वह भीड़ कहाँ मानने को तैयार थी, गुरु ने मंत्रोच्चार आरंभ किये और आदेश दिया कि बलि चढ़ाई जाए। तभी यकायक उसकी नजर पड़ी कि राजा का अंगूठा नहीं है। गुरु ने कहा, 'इसे छोड़ दो क्योंकि इसका अंग भंग है और जिसका अंग-भंग हो उसकी बली देवी स्वीकार नहीं करती।' राजा को छोड़ दिया गया। वह गंभीर चित्त होकर महल में पहुंचा उसे लगा कि सचमुच, मंत्री ने जो कुछ कहा वह सही कहा अगर मेरा अगूंठा न कटा होता तो, आज मेरी बलि तय थी। राजा दरबार में पहुंचा और ससम्मान मंत्री को बुलवाया और सारी घटना बताते हुए कहा, 'तुमने जो कहा, सच कहा कि जीवन में जो होता है अच्छे के लिए होता है। मेरा अंगूठा कटा हुआ था अत: आदिवासियों ने मेरी बलि नहीं चढ़ायी, लेकिन यह तो बताओ कि तुम जो कारागार में पन्द्रह दिन रहे, यह तुम्हारे लिए अच्छा कैसे रहा।' मंत्री ने कहा, 'महाराज मैं आज भी कहता हूं जिंदगी में जो होता है, अच्छे के लिये होता है। मैं कारागार में था यह भी भगवान ने अच्छा किया। अगर कारागार में न होता तो मैं भी आपके साथ जाता और आपके साथ मैं भी पकड़ा जाता । राजन्, आपका अंगूठा कटा था इसलिए आप तो बच जाते, पर बलि का बकरा मैं बन जाता।' ____ जीवन में जो मिले उसका स्वागत करो और । जो खो जाए उसको भी प्रेम से स्वीकार करो। दुःख और सुख दोनों समान भाव से स्वीकारो।। सुख को भोग रहे हो तो पीड़ाओं को भोगने में संकोच क्यों कर रहो हो? अगर अनुकूलता का तुम जीवन भर स्वागत करते रहे तो प्रतिकूलता के लिये क्यों चिंतित हो रहे हो। चिंता से बचने का पहला सूत्र है-जिंदगी में जो हो जाय उसे प्रेम से स्वीकार कर लें। किसी बात को लेकर मन में तनाव, चिंता, टेन्शन पालने के बजाय प्रकृति की गोद में जियो और सोचो कि ज़िंदगी में जो हुआ है अच्छा हुआ है। उस व्यवस्था को सहजता से स्वीकार करो। अगर ऐसे स्वीकार कर लोगे तो दुःख कभी पास न फटकेंगे। चिंता का दूसरा कारण यह है कि हम बीती बातों के बारे में बहुत ज्यादा सोचते हैं । यह हुआ, ऐसा हुआ, ऐसा किया, अगर मैं ऐसा करता तो, अगर मैं 37 For Personal & Private Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वैसा करता तो, उस समय मुझे ऐसा नहीं कहना चाहिए था।' वह आदमी चला गया आप उसके बारे में अब सोच-विचार कर रहे हैं। टांग दें अतीत-भविष्य को खूटियों पर । ___ 'रात गई तो बात गई'- जो इस भाव में जीता है उसके पास भला तनाव कहाँ से आएगा? रात की बात को सुबह लाना और सुबह की बात को रात तक खींचकर ले जाना ही तो चिंता का बसेरा बसाना है। अगर आप जी सकें तो वर्तमान में जीने की कोशिश कीजिये। जो जैसा मिला है उसे जिया जाए। जैसे आप अपने घर में खूटियों पर कपड़े लटकाते हैं वैसे ही उन खूटियों पर अतीत की यादें लटका दें, भविष्य की कल्पनाओं को लटका दें और आप वर्तमान में जिएं। जो वर्तमान में जीता है जैसी व्यवस्था मिलती है उसे स्वीकार कर लेता है, वह चिंतामुक्त है। कोटरी का भी स्वागत करो और कोठी का भी स्वागत करो। वर्तमान में जीते हुए प्रकृति के सान्निध्य में रहने की कोशिश करें। प्रकति जो कर दे वही ठीक है। चिंता करने से जीवन के संयोग नहीं बदलते। चिंताओं से समस्या का समाधान भी नहीं निकला करता। ___ अच्छा होगा चिंता करने की बजाय चिंतन करें, निर्णय लें तदनुसार कार्य करें, परिणाम जो आये उसका स्वागत करें। एक अन्य काम और करें कि जीवन में घटी दुघर्टना को अधिक तवज्जो न दें। उठा-पटक हर किसी की जिंदगी में होती है तभी तो आदमी को 'समझ' आती है। लेकिन जो बात तनाव दे जाए उसे अहमियत न दें। अगर कुछ विपरीत हो जाये तो उसे सहजता से लें। जिसके जैसे होंठ रहे उसने वैसी बात कही। किसी ने गीत गाये तो ठीक, गालियाँ दी तो भी ठीक। चिंता से बचने का एक अन्य उपाय है, निरर्थक बातों में वहम न पालें। अगर आपकी पत्नी फोन पर किसी पुरुष से बात कर रही है तो शक न करें। पत्नी को तो पता नहीं आप वहम कर रहे हैं, लेकिन वहम करके आप अपने को अंदर से खोखला ज़रूर कर रहे हैं । बार-बार वहम करके आप मानसिक तौर पर दुःखी हो जाते हैं। एक-दूसरे पर विश्वास रखें । 38 For Personal & Private Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यक्तित्व को जुझारू बनाएं। चिंता से बचने के लिए जीवन से जूझने का प्रयास करें। जो होगा, सो देखा जाएगा। क्यों व्यर्थ के तनाव और चिंता पालें. अपने जीवन में आने वाली चुनौतियों से व्यक्ति जूझने का प्रयास करे। अपने प्रयास पर अटल रहें, अन्यथा छोटी-छोटी बातों को लेकर आप तनाव पालते जाएंगे और जीवन में कभी कोई निर्णय नहीं कर पाएंगे। चिंतन करें, पर चिंता से बचें। अच्छी और श्रेष्ठ किताबें अवश्य पढ़ें। याद रखें, एक अच्छी पुस्तक हमारी सहचर होती है और वक्त-बेवक्त में हमें सही मार्गदर्शन देती है। अगर आप अच्छी किताबें पढ़ते हैं तो आपकी चिंता चिन्तन में परिणित हो सकती है। दुःख की दवा चिंता नहीं है। अगर आप चिंता से बचना चाहते हैं तो मुस्कुराना सीखें। हर समय मुंह लटकाये न बैठे रहें। जब मिलें जोश, उमंग, उत्साह से मिलें। सूर्योदय से पहले जगें और थोड़ा सा टहल लें ताकि आप चिन्ता से दूर हो सकें। सुबह की सैर मानसिक तरोताजगी के लिए काफी उपयोगी है। थोड़ा सा व्यायाम करें और संभव हो तो पन्द्रह मिनट तक ध्यान अवश्य करें। ध्यान आपके चिंतन को प्रखर करेगा और आपको चिन्तामुक्त करने का प्रयास करेगा। अपने आज्ञाचक्र पर यदि आप प्रतिदिन पन्द्रह मिनिट ध्यान करते हैं तो आप अनुभव करेंगे कि आप दिन भर की सौ तरह की चिंताओं से मुक्त हो गये हैं। ध्यान के बाद आप एक कागज पर दिन भर के वे कार्य लिखें जो आपको करने हैं । व्यवस्थित रूप से काम लिखें और एक-एक काम पूर्ण करना शुरू कर दें। सांझ तक सारे काम पूरे हो जाएंगे और आप चिंता से मुक्त रहेंगे। नज़र-नज़र का फेर चिंता से बचने के लिए सकारात्मक विचारों में जीने की कोशिश करें और नकारात्मकता का त्याग करें। जब भी किसी के प्रति गलत विचार आये, अशुभ सोच बने अपनी दृष्टि को सकारात्मक बनाएं । माना कि का For Personal & Private Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Please एक गिलास में आधा पानी भरा हुआ है सकारात्मक दृष्टिवाला कहेगा कि गिलास आधी भरी हुई है और नकारात्मक दृष्टि वाला कहेगा कि गिलास आधी खाली है। तुम्हारे देखने के नज़रिये का यह फर्क है। आपको अपना विकास करने का पूरा अधिकार है लेकिन दूसरे के अधिकार का हनन करके नहीं। अपनी लकीर बड़ी करने के लिए दूसरे की लकीर मिटाएं नहीं। उस लकीर के नीचे बड़ी लकीर खींच दें। दूसरे की लकीर खुद-ब-खुद छोटी हो जायेगी। अपने विकास के स्वतंत्र द्वार खोलें बजाय कि दूसरे के विकास को देखकर ईर्ष्यालु हों। मस्त रहो मस्ती में __ चिन्ता से मुक्त होने का अंतिम ARCH सूत्र है : हर हाल में मस्त रहो। श्री चन्द्रप्रभ जी कहा करते हैं कि हर समय व्यस्त रहो और हर हाल में मस्त रहो। जो व्यस्त और मस्त रहता है वह । ज़िंदगी में कभी चिन्ताग्रस्त नहीं हो सकता। कितनी भी आपदा या विपत्ति आये, लेकिन हमारे हाथ से मस्ती छूट न जाय। एक घटना याद आ रही है। कहते हैं, संत नानइन गांव के बाहर किसी पेड़ के नीचे बैठे रहते थे। पहनने के लिये फटे पुराने कपड़े, बिछाने के लिए फटा आसन और खाना खाने के लिये टूटी-फूटी मिट्टी की थाली - यही उनकी सम्पत्ति थी। लेकिन वे इतने मस्त, इतने प्रसन्नचित्त, इतने आनंदित थे कि जब देखो वे मुस्कुराते ही रहते । परमात्मा में लीन होते तो अपने दोनों हाथ ऊपर करते और कहते, 'तू बड़ा दयालु है मेरी हर ज़रूरत का ध्यान रखता है।' सदा इसी बात को दोहराते रहते। कुछ सम्पन्न लोग जो प्रतिदिन उधर से गुजरा करते थे उसकी मस्ती को देखकर ईर्ष्याग्रस्त हो जाते । सोचते हमारे पास सारी सुविधाएं हैं पर मस्ती नहीं और इस फकीर के पास कुछ भी नहीं तब भी इतनी मस्ती में। आखिर एक सम्पन्न व्यक्ति कुछ दूरी पर बैठ गया और सोचने लगा, आखिर इस फकीर की मस्ती का राज क्या है? मैं इस राज़ को ढूंढ कर ही रहूंगा।' वह बैठा रहा। उधर फकीर भी अपनी प्रार्थना कर रहा था।दोपहर के दो बज रहे थे, फकीर भूखा था। 40 For Personal & Private Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वह संम्पन्न व्यक्ति सोच रहा था, 'बंदा सुबह से भूखा है फिर भी कहे जा रहा है कि भगवान, मेरी हर जरूरत का ध्यान रखता है।' आश्चर्य, तभी एक राहगीर आया और उसने फकीर की थाली में रोटी डाल दी। फकीर तो आंखें बंद करके बैठा था । दो मिनिट बाद आंखें खोली, थाली में रोटी देखी और कहा, 'देखो, ईश्वर कितना ध्यान रखता है, भूख लगी तो भोजन की व्यस्था कर दी।' भोजन के लिए ईश्वर को धन्यवाद देने के लिए आंखें बंद की और अपनी वही बात फिर दोहरा दी। तभी एक कुत्ता आया और थाली में से रोटी ले भागा। अब उस संपन्न आदमी ने मन ही मन कहा अब पता लगेगा इसकी मस्ती का। जब आंख खोलेगा और देखेगा कि थाली में से रोटी गायब तो भगवान और कुत्ते को गालियां देगा। फकीर ने ! आंख खोली, रोटी के लिए हाथ बढ़ाया, थाली में नज़र डाली तो रोटी गायब। दूर देखा तो वह कुत्ता रोटी खा रहा था। अब अमीर आदमी ने सोचा कि यह फकीर खड़ा होगा और कुत्ते को डंडे से पीटेगा और सच में फकीर खड़ा हो गया। अमीर ने सोचा अब तो जरूर यह कुत्ते की पिटाई करेगा और इसका भगवान..... । लेकिन आश्चर्य जो फकीर अब तक बैठकर प्रार्थना कर रहा था, खड़े होकर दोनों हाथ ऊंचे किये और कहने लगा, 'अरे वाह खुदा! तू सचमुच बहुत दयालु है तू मेरी हर जरूरत का ध्यान रखता है, ' मेरी हर जरूरत पूरी करता है । तेरी परम कृपा है कि कभी-कभी मुझे उपवास करने का मौका भी दे देता है। तू तो परम दयालु है, मेरी साधना का भी ध्यान रखता है, मेरी आराधना का ध्यान रखता है, ऐसा करके तून मुझे उपवास का मौका दे दिया। अब आप ही बताएं भला ऐसे आदमी की मस्ती को कौन छीन सकता है। उसकी शांति और साधुता को कौन छीन सकता है। आप तनाव, चिन्ता, घुटन में से बाहर निकलना चाहते हैं तो हर समय व्यस्त और मस्त रहें और ध्यान रखें बूढ़े भी हो जायें तो काम से जी न चुरायें। छोटे-छोटे ही काम करें पर कर्मयोग अवश्य करें। साथ ही अपने भीतर की मस्ती को बरकरार रखें । अगर आप 41 For Personal & Private Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ इतना करते हैं तो निश्चित ही चिन्तामुक्त जीवन जीने में समर्थ हो जाएंगे। प्रकृति की गोद में रहें जैसा हो रहा है, जो हो रहा है, जिस रूप में हो रहा है उसे स्वीकार करें। सुख, सुविधाओं में नहीं है। सुख भीतर की मस्ती में है, मन की शांति में है । चिता जलायें चिंता की वक्त-बेवक्त, वजह - बेवजह दिमाग पर हावी चिंताएं हमें अंदर से खोखला करती हैं। अच्छा होगा हमेशा चिंताओं के निमित्त पालने के बजाय उन्हें भूलने की कोशिश की जाए । सकारात्मक सोच हमारी चिंताओं को चिन्तन में तब्दील कर सकती है। एक बार संबोधिध्यान शिविर में हमारा उद्बोधन था चिंता, चिंतन और चिता विषय पर । मैंने हॉल में बैठे सभी लोगों से पूछा कि यहाँ बैठे लोगों में से कितने लोग ऐसे हैं, जिन्हें कोई-नकोई चिंता हमेशा सताती रहती है। हॉल में बैठे लगभग सभी लोगों ने अपने हाथ उठाकर संकेत दिया कि सभी लोग चिंतित है । I मैंने कहा कि यदि आप चिंतातुर रहेंगे तो मेरी बातों को न तो गहनता से समझ पाएंगे और न ही चिंताओं से मुक्त हो पाएंगे। मैंने कहा, मेरा उद्बोधन सुनने से पहले में आप सब लोगों की चिंताए आप लोगों से लेकर अपने पास रख लेता हूँ ताकि आप चिंता मुक्त होकर मेरी बातों को ग्रहण कर सकें। मैंने एक-एक काग़ज़ सभी श्रोताओं के पास भिजवा दिया और कहा कि आप केवल एक काम करें, इस कोरे काग़ज़ पर अपनी-अपनी चिंताएं लिखकर काग़ज़ मुझे सौंप दें और आप चिंता मुक्त हो जाएं। जब तक व्यक्ति चिंतामुक्त न होगा तब तक चिंतामुक्ति के उपाय समझ भी न पाएगा। सच्चाई तो यह है कि हमारी एक - एक चिंता हमारी ही चिता की एकएक लकड़ी होती है और उस लकड़ी को हम स्वयं टुकड़ा टुकड़ा कर इकठ्ठा करते हैं। जैसे कई लकड़ियाँ जलाओ और उसमें कुछ सूखी और गीली लकड़ियाँ हो तो सूखी लकड़ियाँ तो आराम से जल जाती है जबकि गीली लकड़ियाँ जल तो नहीं पाती पर धुआँ ही उगलती है । हमारी चिंताओं की 1 42 For Personal & Private Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्थिति भी ऐसी ही है, कुछ चिंताएँ तो सूखी लकड़ियों की तरह होती हैं जो आज है और कल जलकर खत्म हो जाएंगी लेकिन कुछ चिंताएँ गीली लकड़ियों की तरह होती हैं जो हमारे भीतर ही भीतर धुआँ उठाती है और हमें मानसिक संताप देती हैं। जो चिंताएँ गीली लकड़ियों की तरह होती हैं वे हमें परेशान ही करती हैं समाधान का सूत्र कभी नहीं बन पातीं। जिस समस्या का कोई हल नज़र न आए और पुनः पुनः वही सोच होती रहे तो वही हमारे लिए चिंता का कारण बन जाती है और गीली लकड़ी की तरह हमें तिल-तिल कर जलाती है। सच्चाई तो यह है कि जीवन भर चिंताओं के साथ रहते-रहते हमें चिंताएं पालने का शौक-सा हो जाता है। पर सावधान रहें ! चिंताएँ रोग हैं, अच्छा होगा इससे बचने के लिए हम कुछ आत्मिक, आध्यात्मिक उपाय कर सकते हैं। अगर लगे कि चिंता हमें ज्यादा ही सता रही है तो अपने अंतरमन को अन्य किसी निमित्त से जोड़ने की कोशिश कीजिए। विधाता के विधान पर विश्वास करते हुए जो कुछ हो जाए उसे सहजता से स्वीकार कीजिए। चाहें तो किसी संत के प्रवचनों सुनने का सौभाग्य भी प्राप्त कर सकते हैं। चिंता के निमित्तों से अपने मन को हटाएं ओर किसी श्रेष्ठ कार्य में मन को नियोजित करके चिंता की छुट्टी कर दें। 43 For Personal & Private Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ किसे बनाएं अपना मित्र स्वार्थी मित्र हमारे साये की तरह होते हैं, जो सुख की धूप में साथ चलते हैं, परन्तु संकट के अंधेरे में साथ छोड़ देते हैं। I जीवन में तीन चीजें व्यक्ति को नसीब से मिला करती हैं। अच्छी पत्नी, अच्छी संतान और अच्छा मित्र । हकीकत तो यह है कि पत्नी और संतान से भी ज्यादा अच्छे नसीब होने पर अच्छा मित्र मिलता है । पत्नी अच्छी या बुरी मिली है तो इसमें सारा श्रेय या सारा दोष हमारा नहीं है । पत्नी का चयन परिवार के द्वारा किया गया था। उसके चयन में शायद उतनी बड़ी भूमिका तुम्हारी नहीं थी, जितनी कि तुम्हारे माता-पिता की थी। संतान प्रकृति की देन है । वह अच्छी निकलेगी या बुरी इसमें भी हमारा शत-प्रतिशत हाथ नहीं होता है, लेकिन मित्रों का चयन व्यक्ति स्वयं करता है । इसलिए अपने विवेक, अपनी प्रज्ञा, बुद्धि और सजगता का उपयोग करता है । पत्नी और संतान के चयन में किसी और की भूमिका रह सकती है लेकिन मित्रों का चयन तो हमने स्वयं किया है और मित्र वैसे ही होते हैं जैसे हमारा व्यक्तित्व होता है, जैसे हमारे विचार होते हैं, हमारी सोच होती है। मित्र तो ढ़ाई अक्षर का वह रत्न है, जिसकी महिमा में दुनियाभर के शब्द भी कम पड़ेंगे। 44 For Personal & Private Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जैसे मित्र, वैसा चरित्र हम अगर किसी की खामियाँ या खूबियाँ, उसका व्यक्तित्व या उसकी निजी जिंदगी को जांचना और परखना चाहते हैं तो न उसके परिवार से पूछें, न ही पड़ौसियों से केवल इतना-सा पता लगा लें कि उसके मित्र कैसे हैं ! जैसे व्यक्ति के मित्र होते हैं, परिचित होते हैं, जिन लोगों के साथ उसकी संगति होती है, मानकर चलें कि वह व्यक्ति लगभग वैसा ही होता है । पति या पत्नी के चयन में रखी गई सावधानी यदि जीवन को 60 प्रतिशत दुःखों से बचा सकती है तो मित्रों के चयन में उससे भी अधिक सावधानी रखकर जीवन के अस्सी प्रतिशत गलत कार्यों से स्वयं को बचाया जा सकता है। लड़की की शादी करते समय हम ध्यान रखते हैं कि वर में कौन-कौन-सी योग्यताएँ हों और जब बहु को लेकर आना है तो पता करते हैं कि लड़की का स्वभाव कैसा है। जितनी सावधानी पति और पत्नी के चयन में रखी जानी चाहिए, मित्रों के चयन में उससे अधिक सावधानी रखें। से भर सौम्य स्वभाव की पत्नी न मिली तो वह तुम्हारे जीवन को दुःख देगी, लेकिन गलत स्वभाव का मित्र मिल गया तो वह तुम्हारी सात पीढ़ियों को दुःखी कर देगा। गुस्सैल या गलत स्वभाव वाला पति मिल गया तो वह तुम्हारे जीवन को दुःखी करेगा लेकिन गलत आदत वाला मित्र मिल गया तो पूरे परिवार को ही दुःखी और पीड़ित कर देगा । व्यक्ति जैसा स्वयं होता है वैसा ही अपने मित्रों का चयन करता है । अथवा इसे यों भी समझ सकते हैं कि व्यक्ति के जैसे मित्र होते हैं वैसा ही वह स्वयं बन जाता है । व्यक्ति का जैसा नज़रिया और स्तर होता है, मित्र वैसा ही होता है । 1 क्षणिक परिचय मित्रता नहीं व्यक्ति की जैसी सोच, मानसिकता, चयन - दृष्टि होती है वह वैसे ही मित्र बनाता है। आदमी को पता नहीं है कि वह किस तरह के दोस्त चाहता है, उसमें कौनसी खासियत होनी चाहिए। बस, कहीं मिले थे, बचपन में स्कूल में पढ़ते 45 For Personal & Private Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ थे, या ट्रेन में सफर करते हुए मिले थे या फिल्म देखने जा रहे थे तब मिले थे, या सत्संग में जाते हुए मिल गए धीरे-धीरे परिचय बढ़ा, हमने अपना विजिटिंग कार्ड उसे दिया, उसने अपना विजिटिंग - कार्ड हमें दिया। मेल-मिलाप बढा। इस तरह के मेल-मिलाप से मित्रता बढ़नी शुरू हो गई। न हम जांच-पड़ताल कर पाए कि सामने वाला व्यक्ति कैसा है और न ही वह जाँच-परख पाया कि हम कैसे हैं? ____ मैत्री-भाव सबके साथ रखा जाना चाहिए। जीवन में 'वसुधैव कुटुम्बकम्' की भावना सबके साथ रखनी चाहिए। मैत्री-भाव का जितना विस्तार हो, अच्छी बात है लेकिन निजी मित्रता बहुत सजगता और सावधानी के साथ हो क्योंकि हमारा मित्र हमारा प्रतिरूप हमारा सहचर होता है। वह जीवन के साथ जुड़ा रहता है। व्यक्ति सर्वाधिक मित्रों से प्रभावित होता है, माँ और पत्नी की बात कभी टाल भी सकता है, पर मित्र की बात नहीं टाल पाता। इसलिए भूलकर भी कोई ऐसा व्यक्ति हमारा प्रतिरूप न बन जाए, हमारा निकटवर्ती न बन जाए जो किन्हीं गलत मार्गों पर चल रहा हो या गलत आदतों का शिकार हो। अपनी संतान को इस बात का विवेक अवश्य दें कि वह जीवन में सबके साथ मैत्रीभाव, प्रेम और दया रखे, लेकिन जिसे वह अपना मित्र, सखा, सहचर या जीवन का अंग कह सके उसके लिए ऐसे व्यक्ति का चयन करना है, जिससे तुम भी गौरवान्वित हो, तुम्हारे जीवन का भी विकास हो और तुम्हारे जीवन में अच्छे संस्कारों की शुरुआत भी हो। मित्र में दाग़, तुरंत दें त्याग आपका कोई ऐसा परम मित्र होगा जो बचपन से ही आपके साथ रहा है, आप लोग स्कूल एक साथ गए हैं, कॉलेज में भी एक साथ पढ़े हैं, एक ही साइकिल या स्कूटर पर बैठकर आए गए हैं, लेकिन जिस दिन आपको खबर लगे कि आपका घनिष्ठतम मित्र भी किसी गलत सोहबत में पड़कर, गलत आदतों और गलत संस्कारों की गिरफ्त में आ गया है तो उन गलत बातों को 46 For Personal & Private Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नजरअंदाज न करें। अपने मित्र को समझाने की कोशिश करें, उसे सही रास्ते पर चलने की फरियाद करें। तब भी अगर आप महसूस करें कि आपका मित्र गलत आदतों का त्याग करने के लिए तैयार नहीं है तो आपके हित में है कि आप अपने उस घनिष्ठ मित्र का भी त्याग कर दें। उसकी कुटेव को नज़रअंदाज़ न करते हुए आप उसे ही छोड़ दें। मित्र वह नहीं जो हाँ में हाँ मिलाये । सच्चा मित्र वही है जो हित में हाँ मिलाये। अगर आपके जीवन में गलत आदत है तो खोजिए कि ऐसा किस कारण है, व्यक्ति जन्म से न तो सभ्य होता है, न फूहड़। अगर व्यक्ति सभ्य है तो जरूर ही उसके आसपास के लोग जिनके बीच वह जी रहा है वे भी सभ्य हैं । व्यक्ति के जीवन में असभ्यता और फूहड़पन है तो जान लें कि वह असभ्य और फूहड़ लोगों के बीच जीया है। अगर आपकी आदत सिगरेट पीने की, गुटखा चबाने की, शराब पीने की है या और कोई बुरी आदत हो तो उस पहले दिन को याद करें कि यह आदत आपमें कहाँ से और कैसे आई। ये गलत आदतें, गलत संस्कार या दुर्व्यसन हमारी जिंदगी में कहाँ से आए। तब आपको पता चलेगा कि कहीं न कहीं किसी गलत व्यक्ति का साथ रहा होगा और आपको पता ही न चला और कुछ ही दिनों में उसने एक गलत संस्कार आपकी जिंदगी में छोड दिया। काम पड़ने पर जब आप सजग हुए तो आपने उस आदमी को तो छोड़ दिया लेकिन वह छूटा हुआ आदमी गलत संस्कार आपके जीवन में छोड़ गया। इसलिए सदैव सजग और सावधान रहें कि आप किन लोगों के बीच हैं और आपका पुत्र किन लोगों के बीच है। मित्र घर के बाहर भले जब आप यह ध्यान रखते हैं कि आपका बच्चा स्कूल में क्या पढ़ाई कर रहा है, कितने अंक ला रहा है, तब इस बात के लिए भी सजग रहें कि वह किन्हें अपना मित्र बना रहा है। अगर आपके पुत्र के दोस्त आपके घर पर आ रहे हैं तो इस बात की सावधानी रखें कि वे कौन हैं। अपने पुत्र को बताते रहें कि 47 For Personal & Private Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मित्र स्कूल के होते हैं, बाजार के होते हैं, व्यापार के होते हैं, लेकिन उनके पाँव घर तक नहीं पहुँचने चाहिए। अगर आपका पुत्र जवान हो चुका है, उसके मित्र घर पर आ रहे हैं और घर के सदस्यों से निकटता बना रहे हैं तो आपके घर में कोई अनहोनी हो सकती है। पुत्र के दोस्त बाहर तक रहें तो ज्यादा अच्छा है, जिस दिन पुत्र के दोस्त घर तक पहुँच गए, जान लें कि अब आपकी बहु-बेटी सुरक्षित नहीं रहेगी। मित्र बनाएं लेकिन एक सीमा तक। दोस्तों की भीड़ इकट्ठी न करें। कुछ लोगों की आदत होती है अपने परिचयों को बढ़ाने की। मेरे यह भी परिचित, वह भी परिचित हैं, थोड़ी सी बात चलाओ तो तुरंत कहेंगे हाँ, हाँ वह तो मेरा परिचित है, खास दोस्त है। न तो राह चलते आदमी का विजिटिंग कार्ड लो और न ही हर किसी को अपना विजिटिंग कार्ड दो। ज्यादा परिचयों को बढ़ाना अच्छी बात नहीं है। अगर आपके ढेर सारे मित्र हैं तो मानकर चलें कि आपका एक भी मित्र नहीं है। बुरे वक्त में सारे मित्र यही सोचेंगे कि अगर हम काम नहीं आए तो क्या और भी मित्र तो हैं । जैसे ज़िंदगी में पति या पत्नी एक होती हैं, संतानें दो-चार होती हैं, माता-पिता एक होते हैं वैसे ही जीवन में मित्र भी दो-चार से ज्यादा नहीं होने चाहिए। मैत्रीभाव सबके साथ रखो, प्रेम की भावना भी सबसे रखो, लेकिन जिन्हें अपना मित्र मानते हैं, उनके प्रति बहुत सजग रहें। हम कहते हैं 'मित्ती मे सव्व भूएसु' यह प्राणीमात्र के प्रति मैत्रीभाव की सोच है, लेकिन निजी मित्र सावधानी से बनाएँ। व्यक्ति के जीवन में संगत का सर्वाधिक प्रभाव पड़ता है। व्यक्ति को जैसी सोहबत और निकटता मिलती है, वह धीरे-धीरे वैसा ही होता जाता है। अगर आप चरित्रवान लोगों के बीच जीते हैं तो आप चरित्रशील होंगे। अगर आप सेवाभावी लोगों के बीच रहते हैं तो आपके भीतर सेवा की भावना पैदा होगी। अगर आप सुसंस्कारित लोगों के बीच रह रहे हैं तो आपके भीतर ससंस्कार आएंगे। अगर आप दूध की दुकान पर खड़े होकर शराब पिओगे तो लोग समझेंगे दूध पी रहे हो और शराब की दुकान पर खड़े होकर दूध भी पिओगे तो लोग यही 48 For Personal & Private Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समझेंगे कि शराब पी रहे हो। जिन लोगों के बीच, जिनके साथ तुम जी रहे हो । तुम वैसे ही बनोगे, लोगों का दृष्टिकोण भी तुम्हारे प्रति वैसा ही बनता जाएगा । संकट: मित्रता की कसौटी तुलसीदास जी ने कहा था ' धीरज, धर्म, मित्र अरु नारी, आपतकाल परखिए चारी ।' हरेक व्यक्ति को लगता है कि उसमें बहुत धैर्य है, वह धर्मात्मा भी है, उसकी पत्नी सन्नारी है और मित्र का सहयोग भी अच्छा है, लेकिन इन चारों की परख किसी विपत्ति, आपदा या संकट के समय ही होती है । विपरीत वातावरण में भी जब तुम अपने धीरज को बरकरार रख सको, तभी तुम धैर्यवान कहला सकोगे। यूं तो हर कोई धार्मिक है लेकिन जब भी मन को प्रलोभन, वासना का निमित्त, स्वार्थ की पूर्ति का साधन मिलता है तो वह विचलित हो जाता है। इन विपरीत वेलाओं में भी जो अपने धर्म को स्थिर रखने में सफल होता है वही वास्तविक धार्मिक है। यूं तो हर व्यक्ति को अपनी पत्नी अच्छी लगती है लेकिन जब जीवन में राम की तरह चौदह वर्ष वनवास जाने का मौका आ जाए, उस समय अगर वह तुम्हारे साथ जिए तो समझना अच्छी पत्नी है। जब तुम सुखी थे तो अनेक मित्र तुम्हारे इर्द-गिर्द मंडराया करते थे और आज जब विपत्ति की वेला आ गई है और तुम अपने दोस्त को मोबाइल भी कर रहे हो पर वह तुम्हारा नंबर देखकर स्विच बंद कर रहा है। वह जानता है कि तुम उसे फोन क्यों कर रहे हो ! मुख मीठा सज्जन घणा मिल जा मित्र अनेक, काम पड्यां कायम रहे सो लाखन में एक । कभी जीवन में ऐसा वक्त आ जाए कि तुम्हारा कोई भी न बचा तो ऐसे में जो तुम्हारे काम आ जाए वही वास्तविक मित्र है। मित्र हो पानी में मछली की तरह कि मछली पानी के बिना रह भी न पाये । सरोवर में पंछी की तरह मित्र न हों, कि थोड़ी देर साथ रहे और उड़ जाए । मित्रता तो मोमबत्ती और धागे की तरह हो- जैसे धागा जलता है तो मित्रता निभाने के लिए, मोमबत्ती का मोम 49 For Personal & Private Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भी पिघलता है । मित्र तो ढ़ाल की तरह होना चाहिये जो भले ही पीठ पर रहे पर संकट की वेला में हमारी रक्षा के लिए आगे हो जाये। सज्जन ऐसा कीजिए, ढ़ाल सरीखा होय। दुख में तो आगे रहे, सुख में पाछो होय॥ भला मित्र तो एक ही भला ___ मैं प्रायः देखा करता हूं कि व्यक्ति अपने मित्रों का दायरा बढ़ाता है क्योंकि वह सोचता है कि महफिल सजाएंगे, होटलों में जाएंगे, मस्ती लूटेंगे, घूमेंगे फिरेंगे।खाओ-पिओ-मौज उड़ाओ की मित्रता व्यक्ति की जिंदगी में चलती रहती है। अगर आपका कोई मित्र नहीं है तो फिक्र न करें। गलत आदतों वाले व्यक्ति को मित्र बनाने की बजाय, तुम बिना मित्र के रहो तो ज्यादा अच्छा है। हर किसी को मित्र बनाने की प्रवृत्ति घातक हो सकती है। मूर्ख, स्वार्थी और चापलूस को कभी भी मित्र न बनाएं। मुझे याद है - एक राजा और एक बंदर में मित्रता हो गई। बंदर रोज राजमहल में आता तो राजा की उससे निकटता हो गई। राजा ने सोचा आदमी तो धोखा भी दे सकता है लेकिन बंदर मुझे कभी धोखा नहीं देगा। यहाँ तक कि राजा ने अपनी निजी सुरक्षा भी बंदर को सौंप दी। एक दिन राजा बगीचे में घूमने गया।शीतल मंद हवा चल रही थी, राजा एक पेड़ के नीचे बैठा था कि उसे नींद आ गई । बंदर भी राजा के पास ही बैठा रखवाली कर रहा था। तभी एक मक्खी आई। कभी वह राजा के सिर पर बैठे, कभी नाक पर, कभी छाती पर और कभी राजा की गर्दन पर । बंदर ने बार-बार मक्खी को हटाने की कोशिश की, लेकिन जितनी बार वह हटाता, मक्खी उड़ती और फिर आकर कहीं न कहीं बैठ जाती। बन्दर को गुस्सा आ गया कि यह मक्खी बार-बार मेरे मित्र को तंग कर रही है। उसने राजा की तलवार उठाई यह सोचकर कि मक्खी को जान से ही मार देता हूँ। मक्खी राजा की नाक पर बैठी थी कि बंदर ने तलवार चला दी, मक्खी तो उड़ गई पर राजा की नाक कट गई। नादान और मूर्ख की दोस्ती से अच्छा है कि बिना मित्र के रह जाएँ। 50 For Personal & Private Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिंहन के वन में वसिये, जल में घुसिये, कर में बिछुलीजे । कानखजुरे को कान में डारि के, सांपन के मुख अंगुरी दीजे ॥ भूत पिशाचन में रहिये अरु जहर हलाहल घोल के पीजे । जो जग चाहै जिओ रघुनन्दन, मुरख मित्र कदे नहीं कीजे ॥ सांप, बिच्छू और कानखजुरे उतने खतरनाक नहीं होते और शायद हलाहल ज़हर भी उतना नुकसानदेह नहीं होता है जैसा मूर्ख मित्र । तुम तो रहोगे उसके प्रति विश्वस्त और वह तुम्हें नुकसान पहुँचाता ही रहेगा। मूर्ख मित्र की बजाय बुद्धिमान दुश्मन कहीं ज्यादा अच्छा होता है । इसीलिए तो कहते हैंसांड के अगाड़ी से, गधे की पिछाड़ी से पर मूर्ख मित्र से चारों ओर से बचना चाहिए । - बचें, स्वार्थी मित्रों से जितने नुकसानदेह मूर्ख मित्र होते हैं उतने ही नुकसानदेह स्वार्थी और चापलूस मित्र होते हैं। अगर आप बच सकते हैं तो जिंदगी में उन शत्रुओं से नहीं, उन मित्रों से बचिए जो चापलूस होते हैं। सामने आपकी तारीफ़ करते हैं, पर भीतर - घात करते रहते हैं। स्वार्थी मित्र हमारे साये की तरह होते हैं, जो सुख की धूप में साथ चलते हैं, परन्तु संकट के अंधेरे में साथ छोड़ देते हैं । मुझे याद है दो मित्र, झील के किनारे घूम रहे थे, तभी एक मित्र ने देखा कि झील पर एक बोर्ड लगा था जिस पर लिखा था डूबते हुए को बचाने वाले को पाँच सौ रुपये का ईनाम! उसने अपने मित्र से कहा कि मैं पानी में उतरता हूँ, तुम्हें तैरना आता ही है । मैं कहूँगा बचाओ- बचाओ, तुम मुझे बाहर निकाल लाना पाँच सौ रुपये का ईनाम आधा-आधा बांट लेगें। वो व्यक्ति पानी में उतरा, गहरे पानी में चला गया और चिल्लाया, बचाओ- बचाओ ! किनारे पर खड़ा मित्र सुन रहा है, पर बचाने के लिए नहीं आ रहा, तो डूबते हुए मित्र ने कहा, मेरी आवाज़ सुन रहे हो फिर बचाने के लिए क्यों नहीं आते ? उसने कहा, मित्र तूने बोर्ड का एक तरफ का ही भाग पढ़ा है इसमें दूसरी तरफ लिखा है कि मरे की लाश निकालने वाले को एक हजार रुपये का ईनाम ! 51 For Personal & Private Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 बचो! अगर बच सकते हो तो ऐसे स्वार्थी मित्रों से बचो । मनुष्य मैत्रीभाव का विस्तार करे और वक्त आने पर दुश्मनों के भी काम आने का प्रयास करें। घटना दूसरे विश्व-युद्ध की है । है तो चार पंक्ति की घटना, पर है बड़ी प्रभावी ! कहते हैं— द्वितीय विश्व-युद्ध में एक जापानी सैनिक कंधे पर गोली लगने के कारण मैदान में घायल होकर गिर पड़ा। वह दर्द के मारे कराह रहा था तभी एक भारतीय सैनिक जो युद्ध के मैदान में खड़ा था, उसके मन में करुणा जगी, उसने सोचा, अंतिम क्षणों में कौन-सी शत्रुता । वह कप में चाय लेकर उसके पास गया, अपनी गोद में उसका सिर पर रखा और यह कहते हुए चाय पिलाने लगा कि तुमने भारतीय सैनिक की मोर्चे पर वीरता देखी है, अब उसकी दयालुता भी देखो। वह उसे चाय पिलाने के लिए जैसे ही झुका कि जापानी सैनिक ने अपने पास छिपाकर रखे हुए चाकू को उसकी छाती में घोंप दिया । भारतीय सैनिक भी घायल हो गया और दोनों ही सैनिक उपचार के लिए एक ही अस्पताल में भर्ती किए गए। तीसरे दिन भारतीय सैनिक को होश आया, उसने देखा कि उसके पास ही तीसरे पलंग पर वही जापानी सैनिक लेटा हुआ है। वह जब उसके पास पीने केलिए चाय की प्याली आई तो उसे लेकर उस जापानी सैनिक के पास गया और कहा, 'लो भैया ! चाय पी लो। मैं उस दिन तो यह इच्छा पूरी नहीं कर पाया।' भारतीय सैनिक के इस व्यवहार को देखकर वह जापानी सैनिक भाव-विह्वल हो गया। उसकी आँखें भर आईं और कहा आज मुझे पता चला कि आखिर बुद्ध का जन्म भारत में ही क्यों हुआ ? मित्र हो अपने से बेहतर मित्र बनाना आसान होता है, लेकिन उन्हें निभाना बहुत मुश्किल होता है। अच्छा दोस्त बनाना आपकी सोच पर निर्भर है। किसी को दोस्त बनाने में, उससे निकटता बढ़ाने में सालों-साल लग सकते हैं, लेकिन दोनों के मध्य का विपरीत वातावरण उस दोस्ती को दस मिनट में अलग कर सकता है। मित्र और संबंध बनाना सरल हो सकता है, लेकिन उन्हें दीर्घ अवधि तक यथावत बनाए रखना बहुत मुश्किल 52 For Personal & Private Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होता है। इसलिए मैं कहता हूं कि अपनी दृष्टि उदार रखो, केवल मित्र को ही मित्र न मानो, सभी से मैत्री रखो। पता नहीं जीवन में कब किससे क्या काम पड़ जाए। दुश्मन भी अगर है तो मन में उसके प्रति भी प्रेम भाव रखें। कभी दुश्मन को मिटाने की न सोचें, सोचते हैं तो दुश्मनी मिटाने की सोचें। उसके साथ भी मैत्री व्यवहार बढ़ाने की ही सोचें क्योंकि पता नहीं, कब वह आपके जीवन में किस रूप में काम आ जाए। __महावीर और मैक्यावली के सिद्धांत में यही तो फ़र्क था कि महावीर कहते थे -- तुम अपने दुश्मन को भी दोस्त मानो और मैक्यावली कहते थे तुम अपने दोस्त के साथ भी दुश्मन की तरह सावधानी रखो। इसलिए मित्र ऐसे बनाएं जो आपसे बेहतर हों। बचपन में हमारे पिता हमसे कहते थे कि अपने से बड़े-बूढ़े लोगों को अपना मित्र बनाओ ताकि तुम्हारे संस्कार परिष्कृत हो सकें और उनके जीवन के अनुभवों का लाभ भी तुम्हें मिल सके। जीवन में आप मित्र बनाना चाहते हैं तो अपने से बेहतर लोगों को ही मित्र बनाएं। अगर आप किशोरावस्था के हैं, युवावस्था के हैं तो किसी से अधिक मित्रता न बढ़ाएँ। अगर मित्रता बढ़ भी गई है और आपकी जानकारी में उसकी गलती आ गई है तो तत्काल उससे दूरी बना लें। दूसरे अपने मित्रों को ज्यादा घर में आवागमन न दें। अगर ज्यादा मित्र घर में आ रहे हैं तो ध्यान रखें घर में आप अकेले नहीं आपकी पत्नी भी है। आप पति-पत्नी ही नहीं आपकी बेटी भी है, केवल बेटी ही नहीं परिवार के अन्य सदस्य भी हैं। इसलिए जब तक आप पूरी तरह संतुष्ट न हो जाएँ दोस्तों को घर में प्रवेश न दें। यह दुनिया तो ऐसी हो गई है कि अपने खून के साथ भी पूरा भरोसा नहीं रख सकती तो दोस्तों के प्रति भरोसा कैसे रखा जा सकता है। घर, घर वालों के लिए ही ___अपने घर का पता या फोन नंबर हर किसी को न दें। दुकान का काम दुकान तक रहे, मित्रों का काम समाज व संस्था तक रहे। घर में तो परिवार के लोग ही आएं-जाएं तो ही अधिक अच्छा है। आप अपने पुत्र को निःसंकोच कह सकते हैं कि तुम्हारे मित्रों का रात बारह-एक बजे तक आना-जाना न तो तुम्हारे हित में है और न 53 For Personal & Private Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ही हमारे हित में है। उसे यह भी सलाह दें कि देर रात तक भटकते रहना भी उसके हित में नहीं है। आज तो पुत्र आपके अंकुश में है, उसे समझा सकते हैं। और एक बात और ! अगर ऐसे ही नज़रअंदाज करते रहे तो बड़े होकर वह आपकी कोई बात नहीं सुनने वाला है। एक बात और ! अगर आप सुंदर हैं, सम्पन्न हैं तो हर कोई आपसे दोस्ती बनाना चाहेगा। इन दोनों में दोस्ती के लिए प्रमुख बात होती है- मन में छिपी हुई वासना और सम्पन्न की मित्रता में स्वार्थवृत्ति प्रमुख रहते हैं। जैसे फूल पर मधुमक्खी भिनभिनाती है, मैंने देखा है कि लोग सुंदर और सम्पन्न के आसपास भिनभिनाते हैं। इसलिए सावधान रहें उनका दृष्टिकोण अलग हो सकता है, उनकी मानसिकता अलग हो सकती है। अगर लड़की है तो किसी लड़के को अपना मित्र बना सकती है, और युवक हैं तो किसी युवती को अपना मित्र बना सकते हैं, पर सतर्क जरूर रहें कि कहीं आप उलझ न जाएं और कहीं वह आपको उलझा न लें। अपनी लड़की को अगर अपने शहर से बाहर पढ़ने भेज रहे हैं तो उसे समझा दें कि मित्रता में सावधानी रखे और अपने विवेक के अंकुश का प्रयोग करती रहे। कुछ दिन पहले की बात है कि एक माँ अपनी पुत्री के साथ हमारे पास आई। माँ ने बताया कि पुत्री दिल्ली पढ़ने जा रही है। यूं तो वह हमारे प्रवचन सुनती रहती थी फिर भी माँ की अपेक्षा थी कि हम उससे कुछ कहें। मैंने कहा 'बेटा, तुम्हारे माँ-बाप मन में बहुत बड़े अरमान पालकर न जाने कितनी अच्छी सोच बनाकर, अपना धन खर्च करके तुम्हें दूर रखने की रिस्क उठाकर, तुम्हें अकेले दिल्ली भेज रहे हैं, जीवन में सावधान रहना किसी एक के दिल को रखने के लिए ज़िंदगी में दो दिलों को मत दुखाना।' सखा हो कृष्ण-सुदामा जैसे ___ आप कॉलेज में पढ़ते हैं, युवकयुवतियों को दोस्त बनाएं पर अपनी सीमाएं जरूर रखें। दोस्ती के बीच अगर आप सीमाएं नहीं रखते तो यह अमर्यादित मित्रता मित्र और आपके अपने घर, दोनों के लिए 54 For Personal & Private Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 1 विनाश का कारण बन सकती है । ढेर सारे मित्रों को एकत्र करने का कोई औचित्य नहीं है, अगर वे आपके विकास में सहायक न बन सकें। आपको पता है कि अर्जुन और श्रीकृष्ण में अच्छी मित्रता थी । यद्यपि गुरु-शिष्य का भाव था, भगवानभक्त का भाव था। इसके अतिरिक्त तीसरा भाव था- सखा-भाव, मित्रता का भाव । जिसके कारण कृष्ण जैसे महापुरुष भी अपने सखा - भाव को रखने के लिए अर्जुन का रथ हांकने के लिए सारथी बन जाते हैं। मित्रता का आदर्श है कृष्ण और अर्जुन का परस्पर व्यवहार । एक नुस्खा आजमाइए कि कल तक जो आपका मित्र था, जिसे आज भी आप अपना मित्र मानते हैं, और संयोग की बात कि वह कलेक्टर, एस.पी या इसी तरह के किस उच्च पद पर पदस्थ हो गया है। आप उससे मिलने जाइएगा, आपको एक ही दिन में पता लग जाएगा कि वह कैसा आदमी है और उसके साथ कैसी मित्रता थी । आपकी मित्रता का सारा अहंकार, सारा भाव दो मिनट में खंडित हो जाएगा जब आप उसके पास जाएंगे। मित्र तो कृष्ण जैसे ही हो सकते हैं कि सुदामा जैसा गरीब ब्राह्मण सखा जब उनके द्वार पर आता है, तो कृष्ण मित्रता के भाव को रखने के लिए कच्चा सतू भी खा लेते हैं और जब सुदामा वापस अपने घर पहुंचता है तो आश्चर्यचकित रह जाता है कि टूटे-फूटे खपरैल की झौंपड़ी की जगह आलीशान महल खड़ा है । ऐसी मैत्री धन्य होती है जहाँ एक ओर दुनिया का महासंपन्न अधिपति है, दूसरी ओर ऐसा व्यक्ति है जिसके पास खाने को दाना नहीं, पहनने को कपड़े नहीं । सुदामा जब कृष्ण के द्वार पर जाता है, तो कृष्ण यह नहीं कहते कि मैंने तुम्हें पहचाना ही नहीं । उसका परिचय नहीं पूछते, न ही कहते हैं कि कभी मिले तो. थे, पर याद नहीं आ रहा है, बल्कि उसके पांवों का प्रक्षालन करते हैं, मित्र का स्वागत करते हैं, उसकी गरीबी दूर करते हैं। सच्चा मित्र वही होता है जो मित्र को भी अपने बराबरी का बनाने का प्रयास करे। जिनके चरण सदा महालक्ष्मी के करतल में रहते हैं वे प्रभु कृष्ण रूप में ग्वालों के संग मैत्री भाव में कांटों पर - 55 For Personal & Private Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चलते हुए नज़र आते हैं । श्री कृष्ण तो मैत्री भाव के प्रतीक हैं । I यहाँ तो सब काम निकालने के चक्कर में लगे हुए हैं। जब तक मेरा काम आपसे निकल रहा है मैं आपका मित्र हूँ और आपका काम मुझसे निकल रहा है आप मेरे मित्र हैं । स्वार्थ भरी दुनिया में सब एक-दूजे से काम निकालने में लगे हुए हैं, मतलब सिद्ध करने में जुटे हुए हैं। कौन अपना और कौन पराया ! ज़िंदगी का सच तो यह है कि अपने भी कभी अपने नहीं होते । यहाँ कौन किसके सब रिश्ते स्वार्थ के । I न कोई कामना, सिर्फ प्रेम-भावना भगवान महावीर से जब पूछा गया कि व्यक्ति किसे अपना मित्र बनाए, किसके साथ अपनी दोस्ती का हाथ बढ़ाए तो महावीर ने कहा सत्त्वे मैत्री - तुम उनके साथ मित्रता करो, जिनके जीवन में सत्व हो, यथार्थ हो, जिनकी जिंदगी दोहरी न हो, जो अच्छे संस्कारों था -- , से युक्त हों, जिनके जीवन में धर्म और अध्यात्म के लिए जगह हो । जो नेक दिल हों, बुरी आदतों से बचे हों, बुरे काम से डरते हों, अच्छे कामों में विश्वास करते हों । मित्र का चयन मौज-मस्ती के लिए न करें। हमारी मित्रता न तो स्वार्थ से जुड़े, न कामना से, न वासना से, न तृष्णा से । मित्रता केवल प्रेमभावना से जुड़े। मित्र वही जो एक-दूसरे के बुरे वक्त में काम आ सके। ध्यान रखें कि मित्र का दृष्टिकोण आपके प्रति कैसा है। बचपन में जब मैं संस्कृत का अध्ययन कर रहा था तब मैंने पंचतंत्र की कहानियाँ पढ़ी थीं । उन कहानियों में मित्रता से संबंधित कहानियाँ भी थी। बंदर और मगरमच्छ की कहानी आप सभी जानते हैं, जिसमें बंदर रोज मगरमच्छ को जामुन खिलाता और उसकी पत्नी के लिए भी दे देता । रोज मीठे-मीठे जामुन खाकर मगरमच्छ की पत्नी जिद कर बैठी कि जिसके दिए जामुन इतने मीठे हैं, वह खुद कितना मीठा होगा, इसलिए वह उसे ही खाना चाहती है । पत्नी की बात और पति न माने! पहले तो समझाने की कोशिश की लेकिन अन्ततः उसकी बात माननी ही पड़ी और तट पर आकर बंदर से कहा, 'तुम्हारी भाभी ने तुम्हें भोजन पर 56 For Personal & Private Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुलाया है, वह तुमसे मिलना चाहती है।' बंदर ने इंकार कर दिया कि वह पानी में कैसे जाएगा। उसे तो तैरना भी नहीं आता। तब मगरमच्छ ने समझाया कि वह उसे अपनी पीठ पर बिठाकर ले जाएगा। बंदर राजी हो गया। मगरमच्छ ने जब आधी नदी पार कर ली तो यह सोचकर कि अब यह बंदर कहाँ जाएगा, पानी में तैर तो नहीं सकता, पेड़ भी बहुत दूर छूट चुका। उसने राज खोल दिया तुम रोज मीठेमीठे जामुन खाते हो तो तुम्हारा दिल भी बहुत मीठा होगा। सो मेरी पत्नी तुम्हारा दिल खाना चाहती है।' बंदर ने सुना तो दंग रह गया। सोचा कि बुरे फंसे, अब क्या करूँ लेकिन बंदर था बुद्धिमान। उसने संकट को भांपकर कहा 'अरे, यह बात तुमने मुझे पहले क्यों नहीं बताई कि भाभी ने दिल मंगाया है, मैं अपना दिल तो उसी जामुन के पेड़ पर छोड़ आया हूँ। वहीं कह देते तो अपना दिल पेड़ से उतारकर दे देता।' मूर्ख मगरमच्छ को पछतावा हुआ और वह उसे वापस तट पर ले गया। तट पर पहुँचकर बंदर ने छलांग लगाई और चढ़ गया पेड़ पर। मगरमच्छ इंतजार ही करता रह गया पर बंदर वापस न आया। मगरमच्छ के बुलाने पर उसने कहा 'तुम दगाबाज निकले। जिसने ताउम्र तुम्हें और तुम्हारी पत्नी को मीठे फल खिलाये तुम उसी को खाने को तैयार हो गए?' जीवन में मगरमच्छ जैसे दोस्त बनाने की बजाय बिना दोस्त के रह जाना श्रेयस्कर है। सो गंगोदक होय प्राय: स्कूल या कॉलेज से मित्रता की शुरुआत होती है। हम जिन लोगों के बीच रहते हैं, अपना अधिकांश समय व्यतीत करते हैं, उनसे हमारा परिचय होता है, संबंध प्रगाढ़ होते हैं, मित्रता बढ़ती है और हमको लगता है कि ये सब हमारे मित्र हैं, क्या वे वाकई हमारे मित्र हैं, हम अपना विवेक जगाएँ और देखें कि क्या वाकई वे सभी हमारी मित्रता के लायक हैं ? अगर किसी में कोई कुटेव है तो आप तुरंत स्वयं को अलग कर लें, नहीं तो वे आदतें आपको भी लग जाएँगी। अगर आपको सिगरेट पीने की आदत पड़ चुकी है तो झाँके अपने अतीत में। आपको दिखाई देगा कि आप विद्यालय या महाविद्यालय में पढ़ते थे, चार मित्र मिलकर एक सिगरेट लाते थे और किसी पेड़ की ओट में जाकर 57 For Personal & Private Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सिगरेट जलाते और एक ही सिगरेट को बारी-बारी से चारों पीते थे। पहले छिप-छिपकर, फिर फिल्म हॉल में गए तब, फिर इधर-उधर हुए तब, फिर बाथरूम में पीने लगे और धीरे-धीरे सबके सामने पीने लगे । इस तरह पड़ी जीवन में एक बुरी आदत और आपने उन्हीं लोगों को अपना मित्र मान लिया, जिन लोगों ने आपके जीवन में बुरी आदत लगाई । 1 अगर आप गुटखा खाते हैं तो सोचें कि इसकी शुरुआत कहाँ से हुई । जरूर आपकी किसी ऐसे व्यक्ति से जान पहचान थी जो इसे खाने का आदी था । आप उसके निकट आए, धीरे-धीरे उसके बुरे संस्कार आप में आ गए। अच्छे आदमी के पास रहकर अच्छाइयाँ तो सीख नहीं पाते। हाँ, बुरे आदमी की संगति से बुराइयाँ जरूर सीख जाते हैं। अगर नाला गंगा में मिलता है तो गंगाजल कहलाता है लेकिन गंगा का पानी नाले में डाल दें तो वह भी अपवित्र हो जाता है 1 कबीरा गंदी कोटची पानी पिवे न कोय, जाय मिले जब गंग में, सो गंगोदक होय । किले के चारों ओर खुदी खंदक का पानी कोई नहीं पीता, लेकिन वही पानी जब गंगा में मिल जाता है तो गंगोदक बन जाता है और लोग चरणामृत मानकर उसे ग्रहण भी कर लेते हैं । आप अपने इर्द-गिर्द रहने वाले लोगों को तो लें कि वे किस स्तर के हैं ? आपके जीवन में मित्रों की क्वान्टिटी कम हो तो कोई बात नहीं, लेकिन जितने भी मित्र हों, अच्छी क्वालिटी के हों। अच्छे लोगों के साथ, महान लोगों के साथ जिओ, क्योंकि जिनके साथ हम रहेंगे, वैसे ही बन जाएंगे। आदमी तो क्या तोता भी जिनके बीच रहता है, वैसा ही बनता चला जाता है। जैसा साथ, वैसी बात किसी व्यक्ति के पास दो तोते थे। उसने एक तोता दिया डाकू - शैतान को, 58 For Personal & Private Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दूसरा दिया एक संत को, भगवान के भक्त को। तोते दोनों एक जैसे। दो माह बाद जब वह व्यक्ति उस संत के यहाँ पहुँचा तो तोते ने कहा 'राम-राम, घर पर आया मेहमान, 'राम-राम' उस व्यक्ति ने सोचा 'अहा! तोता कितना अच्छा है। मेहमान का स्वागत करता है 'राम' का नाम भी लेता है।' वह आगे चला और पहुँचा डाकू सरदार के यहाँ जहाँ उसने दूसरा तोता दिया था। ____ दूर से आते हुए व्यक्ति को देखकर तोता चिल्लाया, 'अरे आओ, मारोमारो, काटो-काटो, लूटो-लूटो'। उस व्यक्ति ने सोचा- ये दोनों तोते एक माँ के बेटे. दोनों भाई लेकिन दोनों में कितना अंतर! एक कहता है- आओ स्वागतम्, राम-राम। दूसरा कहता है- मारो-काटो-लूटो। उसे समझते देर न लगी कि तोता तो तोता है जिसके पास रहा, जैसी संगति में रहा वैसा ही उस पर असर हुआ।अगर डाकू साधु की संगति पाता है तो वह डाकू नहीं रहता बल्कि महान संत और 'रामायण' का रचयिता बन जाता है। व्यक्ति जैसी सोहबत पाता है वैसा ही बनता जाता है। आप अपना आकलन कर लें कि आप किन लोगों के साथ रह रहे हैं, किस तरह के लोगों के बीच रह रहे हैं। उल्लंघन न हो सीमाओं का मित्र दो अक्षर का ऐसा रत्न है जिसकी संज्ञा हर किसी को नहीं दी जा सकती। केवल मौज-मस्ती के लिए न तो किसी को निकट आने देना चाहिए और न ही किसी के निकट जाना चाहिए। मित्रता का अर्थ प्रेम या रोमांस नहीं होता। स्वार्थी का मित्रों से जितना दूर रहा जाए उतना ही अच्छा। कोई महिला अगर किसी पुरुष को अपना मित्र बना रही है तो उसे इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए कि कहीं वो किसी ऐसे पुरुष को मित्र न बना बैठे जो उसके महिला होने का फायदा उठाने की सोच रखता हो । स्त्री और पुरुष की मित्रता आज के परिवेश में अनुचित नहीं कहीं जा सकती और कहींकहीं तो यह आवश्यक भी है, पर इस मित्रता में मर्यादा तो होनी ही चाहिए। आपका व्यवहार अपने पुरुष या स्त्री मित्र के प्रति इतना खुला हुआ भी नहीं होना चाहिए कि हमारे मित्रतापूर्ण सम्बन्धों पर लोग अंगुलियाँ उठाने लग For Personal & Private Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाएँ। कई दफा होता यह कि जब हम अपनी सीमाएँ मित्रता के नाम पर खो बैठते हैं तो कई पति-पत्नी एक-दूजे के लिए शक के दायरे में आ जाते हैं। ऐसे लोगों को सदा इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि जब उनके इन सम्बन्धों का कभी खुलासा हो जाता है तो उनकी स्थिति धोबी के गधे की तरह ही होती ___मैं अपनी ओर से केवल इतना निवेदन करना चाहूँगी कि जिस तरह पतिपत्नी का एक-दूजे पर विश्वास रखना जरूरी है उसी तरह विश्वास पर खरा उतरना भी जरूरी है। हर पति-पत्नी को चाहिए कि वह औरों से मित्रता स्थापित करने में अपनी सीमाओं का पूरा ख्याल रखें, क्योंकि दाम्पत्य जीवन प्रेम, लगाव, सम्मान और विश्वास पर ही टिका रहता है। निर्मल हृदय, निर्मल आचरण ___ अच्छे, नेक मित्र बनाएँ। ऐसे मित्र बनाएँ जिनके साथ रहना गौरवपूर्ण हो, जीवन संस्कारित और नेक बन सके, बदी से बच सकें और प्रगति के सोपान चढ़ सकें। जीवन में भले ही एक मित्र हो, लेकिन वह ऐसा हो जो आपकी छाया हो, प्रतिरूप हो। आप सबसे सब कुछ छिपा सकते हैं, लेकिन अपने मित्र से जिंदगी की कोई बात नहीं छिपा सकते। इसलिए ऐसा मित्र बनाएँ जिसका हृदय निर्मल हो, मन विराट, दृष्टि पवित्र, मानसिकता श्रेष्ठ और आचरण निर्मल हो। जीवन में आप अगर ऐसे किसी व्यक्ति को, महिला या पुरुष को मित्र बनाते हैं तो यह आपके लिए और उसके दोनों के लिए कल्याणकारी है। शेष तो ब्रह्माण्ड के सभी प्राणियों के लिए मैत्रीभाव, प्रेम और प्रमोद भाव रखें। रवीन्द्रनाथ टैगौर ने कहा है - यदि तोरे डाक सुने कोई न आचे तोए एकला चलो रे - अगर तुम्हारे साथ कोई अच्छा व्यक्ति नहीं है तो चिंता न करो, बुरे लोगों के साथ जीने के बजाय अकेले चलो। तुम अपने मित्र स्वयं बनो। यह एकाकीपन भी तुम्हारे लिए कल्याणकारी होगा। 60 For Personal & Private Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुढ़ापे को ऐसे कीजिए सार्थक बुढ़ापे को भुनभुनाते हुए जीने की बजाय गुनगुनाते हुए जियें। मनुष्य का जीवन सूर्य की तरह गतिमान है। सूर्योदय के पूर्व भोर की प्यारी-सी सुबह को माँ के गर्भ में हमारा आगमन समझें । सूर्योदय हमारा जन्म है, दोपहर जवानी है और सांझ हमारा बुढ़ापा है। रात तो जीवन की कहानी के समापन का प्रतीक है। जीवन-मृत्यु दोनों सत्य यह जीवन का परम सत्य है कि जिसका जन्म है उसकी मृत्यु है, यौवन है तो बुढ़ापा है। जिसकी मृत्यु है उसके जन्म की संभावना है। जन्म, जरा, रोग और मृत्यु की धारा में मनुष्य-जाति तो क्या, ब्रह्माण्ड के हर प्राणी के साथ करोड़ों वर्षों से यही सब होता रहा है। सुखदायी होती है जवानी और सही ढंग से जीना न आए तो बड़ी पीड़ादायी होती है बुढ़ापे की कहानी । जवानी तो बहुत सुख से बीत जाती है, लेकिन जवानी का सुख बुढ़ापे में कायम न रह सके तो बुढ़ापा कष्टदायी हो जाता है। जवानी तो सभी जी लेते हैं, पर जो जवानी में बुढ़ापे की सही व्यवस्था कर लेते हैं, उनका बुढ़ापा स्वर्णमयी हो जाता है। 61 For Personal & Private Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बुढ़ापा न तो जीवन के समापन की शुरुआत है और न ही जीवन का कोई इतिवृत्त है और न ही जीवन का अभिशाप है। बुढ़ापा तो जीवन का सुनहरा अध्याय है । जिसे जीवन जीना आया, जिसने जीवन के उसूल जाने और जीवन की मौलिकता को समझने का प्रयास किया, उसके लिए बुढ़ापा अनुभवों से भरा हुआ जीवन होता है जिसमें जाने हुए सत्य को जीने का प्रयास करता है। हर किसी दीर्घजीवी व्यक्ति के लिए बुढ़ापा आना तय है। यह न समझें कि । हमें ही बुढ़ापा आया है या आने वाला है। महावीर को भी बुढ़ापा आया था, राम और कृष्ण भी बूढ़े हुए थे। दुनिया में कोई भी व्यक्ति ऐसा नहीं है जो लम्बे अर्से तक जीया हो और बुढ़ापा न आया हो। भले ही व्यक्ति जन्म, जरा (बुढ़ापा), मृत्यु के निवारण के लिए प्रार्थना करता है पर ये सब स्वाभाविक सहज प्रक्रिया हैं। ___ जवानी में तो व्यक्ति दूसरों के लिए जीता है, लेकिन बुढ़ापे में व्यक्ति अपने जीवन के कल्याण और मुक्ति की व्यवस्था के लिए अपने क़दम बढ़ाता है। इतिहास ग़वाह है कि प्राचीन युग के राजा-महाराजा बुढ़ापे में वानप्रस्थ और संन्यास के मार्ग को अंगीकार कर लेते थे, ताकि मृत्यु के आने से पूर्व अपनी मुक्ति का प्रबंध कर सकें। जो बुढ़ापे को ठीक से जीने का प्रबंध नहीं कर पाते हैं, उन्हें बुढ़ापा मृत्यु देता है और जो बुढ़ापे को स्वीकार कर मुक्ति के साधनों के लिए प्रयास करते हैं उनके लिए बुढ़ापा मुक्ति का साधन बन जाता है। बुढ़ापे से बचने के लिए और जवानी को बचाने के लिए लोग दवाएँ ले रहे हैं पर बुढ़ापा सब पर आना तय है, इसमें कोई रियायत नहीं है। केवल तुम्हारे बाल ही सफेद नहीं हो रहे हैं अतीत में भी मनुष्य के सिर के बाल सफेद होते रहे हैं। यह न समझो कि केवल तुम्हारे ही कंधे कमजोर हो रहे हैं, चेहरे पर झुर्रियाँ पड़ रही हैं, दृष्टि कमज़ोर हो रही है, कानों से ऊंचा सुनाई देने लगा है, दाँत गिर रहे हैं यह हर किसी के साथ होता है । इसके लिए हताश होने की जरूरत नहीं है। बुढ़ापे में भी बसंत है बुढ़ापा जीवन का महत्वपूर्ण पड़ाव है। यह समस्या नहीं, नैसर्गिक 62 For Personal & Private Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यवस्था है। यह सार नहीं जीवन का हिस्सा है। यहाँ आकर व्यक्ति स्वयं के लिए चिंतन करता है, अन्तर्मन की शांति को जीने का प्रयास करता है। जीवन भर जो परिश्रम किया है बुढ़ापे में उससे शांति, विश्राम और आनंद से जीने की कामना रखता है। हम देखते हैं कि प्रायः लोग बुढ़ापे से बचना चाहते हैं। व्यक्ति लम्बी उम्र तो चाहता है, पर बुढ़ापा नहीं। लेकिन बुढ़ापा आना तो तय है और जब चेहरे पर कोई । झुरीं दिखाई देती है, तो वह सोचता है - चलो कुछ योगासन , कर लूं ताकि बुढ़ापे से बच सकूँ। जैसे ही बुढ़ापा झलकना शुरू होता है, व्यक्ति कुछ पौष्टिक पदार्थ खाने की सोचने लगता है ताकि बुढ़ापे को थोड़ा टाला जा सके। सफेद होते हुए बालों को रंगकर काले करने की कोशिश करता है कि बुढ़ापे को झलकने से रोक सके। बाल काले करके बुढ़ापे को ढका जा सकता है, पर उससे बचा नहीं जा सकता है हम बुढ़ापे को रोकने की कोशिश करते हैं। मेरी नज़र में जीवन का बसंत जवानी नहीं, बुढ़ापा है। जिसने जीवन को सही ढंग से जीने की कला जान ली है उसके लिए बुढापा फूल बनकर आता है। उसके लिए बुढ़ापा जीवन की शांति बन जाता है और अहोभाव, आनन्द और पुण्यभाव का रूप लेकर आता है। बचपन ज्ञानार्जन के लिए है, जवानी धनार्जन और बुढ़ापा पुण्यार्जन के लिए है। सुख भोगने के लिए जवानी है तो शांति और आनंद को जीने के लिए बुढ़ापा है। भारतीय संस्कृति में जीवन जीने के चार चरण हैं । ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास । पहला चरण शिक्षा-संस्कार के लिए, दूसरा चरण संसार-सुख के लिए, तीसरा पुण्यधर्म के लिए और चौथा शांति-मुक्ति के लिए है। धन्य है वह घर-द्वार जिस घर में वृद्ध होते हैं, जहाँ वृद्ध माँ-बाप का आशीर्वाद होता है, जहाँ बड़े-बुजुर्गों का साया होता है वह घर स्वर्ग होता है, जिस घर में वृद्धों का साया उठ जाता है वहाँ की शांति भी धीरे-धीरे कम होती जाती है। भाग्यशाली होते हैं वे जिन्हें बुजुर्गों का सान्निध्य, सामीप्य और प्रेम मिला करता है। सौ किताबों का ज्ञान एक तरफ और एक वृद्ध का अनुभव एक तरफ। जहाँ सौ पुस्तकों का ज्ञान असफल हो जाता है वहाँ एक वृद्ध की दी गई सही सलाह, उसका अनुभव कारगर हो जाता है। वे घर धन्य होते हैं जहाँ सुबह उठकर घर के सभी लोग 63 For Personal & Private Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कदम रख। अपने बूढ़े माँ-बाप को प्रणाम करते हैं, उनका सम्मान करते हैं । वे लोग कृतपुण्य होते हैं जो रात में सोने से पहले माता-पिता, दादा-दादी के पाँव दबाते हैं, उनकी सेवा और सत्कार का पुण्य प्राप्त करते हैं। घर के वृद्ध का दुनिया से चले जाने के बाद उनके नाम से प्याऊ खोलने की बजाय अच्छा होगा, उनके जीते जी उन्हें पानी पिलाया जाए। उनके नाम से धर्मशाला बनाने की बजाय उनके जीते जी उन्हें घर के सबसे अच्छे कक्ष में रखें। मैंने देखा है कि एक परिवार जो हर तरह से सम्पन्न था उसमें दादी माँ को कार के गैरेज में रखा हुआ था। मैंने परिवार वालों से पूछा ‘ऐसा क्यों? ' कहने लगे 'दादी माँ को यहाँ पर सुविधा रहती है। कृपया अपने वृद्ध माता-पिता को अपने घर के सबसे सुन्दर कक्ष में रखें।अगर वे रुग्ण हैं तो हो सकता है वे बिस्तर गंदा करते हों, उल्टी भी हो जाती होगी तब भी उन्हें सुविधायुक्त कमरे में रखें। उनके मरने के बाद समाज के किसी भवन में संदर कमरा बनवाने की बजाय जीते जी उन्हें सुन्दर कमरे में रखें। उनकी आरामयुक्त ज़िंदगी की व्यवस्था कीजिए। उनके मरने के बाद उनके चित्र पर फूल चढ़ाने और अगरबत्ती जलाने से अच्छा है उनके साथ इतने मधुर शब्दों में बोलें कि हमारी वाणी ही उनकी सेवा बन जाए। जब हम बच्चे थे तो उन्होंने हमारी प्रसन्नता से देखभाल की थी पर आज जब वे बूढ़े हो गए तो उनकी सार-सम्हाल भारी मन से कर रहे हैं। जिस घर में बूढ़े माँ-बाप और दादा-दादी के साथ सम्मानपूर्वक व्यवहार किया जाता हो, मैं समझता हूँ कि उन लोगों का बुढ़ापा सफल हो जाता है, उन लोगों का बुढ़ापा सार्थक होता है और वे शांति और आनंद से भरे रहते हैं। ___वे घर धन्य होते हैं जहाँ बूढ़े माँ-बाप के मान-सम्मान और गौरव का पूरा-पूरा ध्यान रखा जाता है। उन घरों का दर्जा मध्यम है, जहाँ माँ-बाप को उनके भाग्य-भरोसे छोड़ दिया जाता है । वे घर अधम होते हैं जहाँ जीते जी माँबाप का अपमान किया जाता है। शायद नरक उससे बढ़कर नहीं होता जहाँ संतान अपने माँ-बाप पर हाथ उठाने से बाज नहीं आती। अच्छा होता ऐसी संतानें धरती पर जन्म न लेतीं। 64 For Personal & Private Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अगर जीवन है, जीवन की व्यवस्था है तो बुढ़ापा भी आना तय है, लेकिन जो बुढ़ापे में पहुंचकर भी अपने मन को बूढ़ा नहीं होने देता वह नब्बे वर्ष का होकर भी जवान हुआ करता है। बुढ़ापा उसे सताता है जो मन से बूढ़ा हो जाता है। बुढ़ापे का प्रभाव पहले शरीर पर नहीं, मन पर आता है और उसका असर तन पर दिखाई देता है। जिसके मन में शिथिलता आई, जिसके मन में नपुंसकता का प्रवेश हो गया वह जवानी में ही बूढ़ा हो जाता है। अन्यथा समय के अनुसार बुढ़ापा तो आएगा ही फिर चाहे आप बाल काले करें या नई बत्तीसी लगवाएँ। बुढ़ापा तो जीवन का हिस्सा है। जैसे बचपन था, जैसे जवानी थी, वैसे ही बुढ़ापा भी है। बुढ़ापे को दीजिए सार्थकता ___ बुढ़ापे को व्यर्थ न समझें । प्रायः लोग कहते हैं, 'अजी छोड़िये अब कितने साल की ज़िंदगी बची है' भारतीय लोगों का मन, उनका सोच-विचार बहुत जल्दी बूढ़ा हो जाता है। साठ के पार आदमी सोचने लगता है – अब मुझे क्या करना है, अब मैं क्या कर सकता हूँ। अब जो जिंदगी बची है वह एक्स्ट्रा प्रोफिट की है, जैसे-तैसे जी लेंगे। अब क्या माथा लगाना, अब तो बूढ़े हो गए हैं । बुढ़ापा जीवन की हताशा नहीं, जीवन का उत्साह होना चाहिए। जब व्यक्ति के मन में हताशा आ जाती है तब वह पचास वर्ष की आयु में ही बूढ़ा हो जाता है और जिसके मन में उत्साह रहता है वह अस्सी वर्ष का होकर भी जवान होता है। याद रखिए बुढ़ापा पहले मन में आता है फिर तन में। बुढापा जीवन को सार्थकता प्रदान करने का चरण है। आप जानते हैं हमने संन्यास लिया बचपन में और हमारे पिता ने लिया पचपन में। पचपन बचपन का पुनरागमन होता है । जो बचपन से ही अपनी बुद्धि का सार्थक प्रयोग करना शुरू कर देता है उसका पचपन सार्थक हो जाता है। जिस उम्र में लोग परिवार के राग में उलझे रहते हैं, जिस उम्र में लोगों का घर से तीन दिन के लिए निकलना मुश्किल होता है उस उम्र में अगर व्यक्ति जीवन भर के लिए घर 65 For Personal & Private Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिवार, पति, पत्नी, दुकान, धन-वैभव, मकान के मोह का परित्याग करके साधना के मार्ग पर कदम बढ़ा दे तो क्या यह कम तारीफ़ की बात है। सचमुच जिसने बुढ़ापे को सही दिशा देने की विद्या पा ली उसी का बुढ़ापा सार्थक हो जाता है। कल तुम्हें, आज उन्हें ज़रूरत __ जो स्थितियाँ बचपन में होती हैं वही स्थितियां लगभग बुढ़ापे में भी होती हैं। आप देखें - जब आप बच्चे थे तो अपने आप खडे नहीं हो पाते थे। मम्मी-पापा ने आपको अंगुली दी और खड़ा होना तथा चलना सिखाया। आज तुम्हारी माँ पिचयासी साल की हो गई है, वह खड़ी नहीं हो पा रही, चल नहीं पा रही है। तब तुम्हारी अंगुली कहाँ चली गई है? बचपन में तुम बिस्तर गीला कर देते थे, गंदा कर देते थे। सोचो कभी ऐसा भी हुआ होगा कि तुम छोटे रहे होगे तब तुम्हारी माँ खाना खा रही थी कि तुमने शौच कर दी थी। तुम्हारी माँ ने खाना बीच में ही छोड़कर तुम्हारे शरीर की शुद्धि की, हाथ धोए और पुनः खाना खाने बैठ गई। यही उदारता क्या तुम अपनी माँ के बुढ़ापे में एक बार भी दिखा पाओगे? बचपन में तुम अपने हाथ से खाना नहीं खा पाते थे, बुढ़ापे में उन्हें भी बहुत दिक्कत होती है। बचपन में तुम्हें अकेले रहना अच्छा नहीं लगता था, बूढों की मजबूरी है कि वे अकेले रहने को विवश हो जाते हैं। फ़र्क केवल इतना है कि जब तुम बच्चे थे तो माँ-बाप ने तुम्हे बड़े प्रेम से पाला था और आज जब वे बूढ़े हो गए हैं तो तुम्हारे भीतर उन्हें पालने के लिए उतना प्रेम नहीं है। जब तुम बच्चे थे तो उन्होंने खुशियों से पाला था लेकिन उनके बुढ़ापे को सुखमय, आनंदमय करने के लिए तुम्हारे अन्तर्मन में कोई खुशियाँ नहीं कि तुम अपने माँ-बाप या दादा-दादी की सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त करो। ___ मैंने देखा है जो अपना बुढ़ापा नहीं साध पाते उनका बुढ़ापा कितना त्रासदी से भरा होता है। भगवान, जितना रोग से बचाए उतना उस बुढ़ापे से भी बचाए जिसमें व्यक्ति मोहासक्त तो रहता है पर जीवन का ज्ञान नहीं हो पाता। आचार्य 66 For Personal & Private Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शंकर काशी में थे, वे भगवान विश्वनाथ के दर्शन कर गंगा के तट पर आए। वहाँ उन्होंने दो बूढ़े व्यक्तियों को देखा। उनमें से एक व्याकरण के सूत्रों को याद कर रहा था और दूसरा बूढ़ा अपने पोते-पोतियों के मायाजाल में उलझा हुआ था। तब आचार्य शंकर ने कहा - अरे, तेरे अंग गल गए हैं, दाँत टूट गए हैं, चेहरा झुक गया है, चेहरे पर झुर्रियाँ छा गई हैं, कमर झुक गई है। आँख से देख नहीं सकते, कान से सुन नहीं पाते, लेकिन इसके बाद भी संसार की मोह-माया और जिजीविषा तुम्हारे भीतर अभी भी जवान है। अब तो आत्म-चिंतन, ईश्वर का चिंतन करना शुरू कर दो। अब तो कम से कम अपने जीवन के लिए कोई बोध, कोई होश, कोई जागरूकता की बात उठानी शुरू कर दो। अपने हाथ से तुमने स्वर्गीय दादा-दादी को जलाया था, पर होश नहीं आया। और तो और बीस साल के बेटे का भी अपने हाथों से दाह संस्कार किया था तब भी तुम्हारे अन्तर्मन की आसक्ति में कोई कटौती नहीं हुई। हाँ, हम अपने बुढ़ापे को सार्थक कर सकते हैं, इसे नई दिशा दे सकते हैं, इसे बंधन के बजाय जीवन-मुक्ति का पर्याय बना सकते हैं। रफ़्ता-रफ़्ता रिस रही ज़िंदगी व्यक्ति जब पचास वर्ष का हो जाए तो वृद्धावस्था की तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। यह न सोचें कि बुढ़ापा मुझे नहीं मेरे पड़ौसी को आया है। तब तो मुश्किल हो जाएगी क्योंकि एक दिन बुढ़ापा आपको अपने चंगुल में फँसा ही लेगा। जीवन तो शिवलिंग पर लटका हुआ पानी का वह घड़ा है जिसमें नीचे की ओर छेद है और बूंद-बूंद कर पानी रिस रहा है। कौन-सी बूंद अंतिम बन जाएगी इसकी तो हमें खबर भी नहीं हो पाएगी। हमारी जिंदगी धीरे-धीरे रिस रही है। सभी रफ्ता-रफ्ता मृत्यु की ओर बढ़ रहे हैं। हम बुढ़ापे को इस तरह जिएँ कि वह जीवन का पड़ाव बनें, मृत्यु का नहीं। ____ मैं उन लोगों को सतर्क करना चाहता हूँ जो आज बुढ़ापे की दहलीज़ पर हैं, लेकिन आने वाला कल बुढ़ापे का है। सावधान हो जाएँ वे लोग जो कल तक तो जवान थे पर आज बुढ़ापे में जीने को मज़बूर हैं। जिन्हें जीवन जीने की 67 For Personal & Private Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कला आई, जिन्हें जीवन जीने का मार्ग मिला उनके लिए जीवन धन्य हो गया। यह आप पर निर्भर है कि आप अपने जीवन को गुनगुनाते हुए जियें या भुनभुनाते हुए जिएँ। बुढ़ापा है तो अच्छे गीत गाओ, अच्छी कविताएँ गाओ, अच्छे चित्र बनाओ, प्रकृति के अच्छे नज़ारे देखो, अच्छे बोल बोलो, अच्छे संवाद करो और अच्छी जिंदगी जीने की कोशिश करो। यह हम पर निर्भर है कि हम जीवन को कौन-सी दिशा और मार्ग दे रहे हैं। अगर जवानी सुख भोगने के लिए है तो बुढ़ापा दुःख भोगने के लिए नहीं है। बुढ़ापा पीड़ाओं को भोगने या शैय्या पर पड़े रहने के लिए नहीं है और न ही बेकार की बकवास करने के लिए है। बुढ़ापा तो शांति से जीने के लिए है। जवानी में व्यक्ति शांति नहीं पा सकता क्योंकि जवानी में उधेड़बुन रहती है, मैं कहूँगा कि जवानी को अगर सुख से जीओ, तो बुढ़ापे को शांति से जीओ। हम ऐसा क्या करें कि हमारा बुढ़ापा सार्थक हो जाए। हमारा बुढ़ापा हमारे लिए उपयोगी बन जाए। मृत्यु से पहले हमारी मुक्ति का मार्ग खुल जाए। बुढ़ापे के लिए तीन संकेत आपको देता हूँ जिससे हम अपने बुढ़ापे को सही तरीके से जी सकें, स्वस्थ और प्रसन्न मन से जी सकें। बुढ़ापा हो – स्वस्थ, कार्यरत और सुरक्षित। लीजिए उचित आहार और व्यायाम बुढ़ापे में पहली सावधानी रखी जानी चाहिए उचित आहार की। संयमित व संतुलित आहार लें। ज़वानी में तो आप सब कुछ हज़म कर लेते थे, तीखा-खट्टा-मीठा-चरपरा सब पच जाता था, लेकिन बुढ़ापे में आप ऐसा नहीं कर पाएँगे क्योंकि पाचनतंत्र कमजोर हो जाता है। आहार-विहार, खान-पान का संयम बुढ़ापे में लाभकारी रहता है। समारोह में विभिन्न व्यंजनों को देखकर ललचाएँ नहीं। ये आपके स्वास्थ्य पर विपरीत प्रभाव डालते हैं। महीने में एक बार किसी चिकित्सक से अपने शरीर की जांच जरूर कराएँ । कहीं ब्लड शुगर तो नहीं बढ़ गई है, रक्तचाप में बार-बार परिवर्तन तो नहीं हो रहा है, कोई रोग आपके शरीर में जगह तो नहीं बना रहा है ? चिकित्सकीय परीक्षण से सारी संभावनाओं का 68 For Personal & Private Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पता चल जाता है और आप स्वयं पर नियंत्रण रखने में सफल हो सकते हैं। आहार-संयम का पूरा-पूरा ध्यान रखें। बुढ़ापे में दूसरी बात जो करनी चाहिए वह है उचित व्यायाम । यह न सोचें कि बूढ़े हो गए हैं तो व्यायाम और योगासन कैसे कर सकते हैं। ढेर सारे व्यायाम कर सकें या न कर सकें पर संधिस्थलों के व्यायाम चाहे जितनी उम्र हो जाए, अवश्य करना चाहिए। स्वास्थ्य एवं हड्डियों की मज़बूती के लिए, शरीर की जकड़न को दूर करने के लिए, गठिया जैसे रोगों से बचने के लिए, घुटनों के दर्द और पीड़ाओं से मुक्ति पाने के लिए, पीठ-दर्द से बचने के लिए हर व्यक्ति को कम से कम अपने संधि-स्थलों का व्यायाम जरूर कर लेना चाहिए। पन्द्रह मिनट भी अगर आप संधि-स्थलों के व्यायाम कर लेंगे तो बहुत से रोगों से मुक्त हो सकेंगे। सुखी और स्वस्थ बुढ़ापे के लिए पन्द्रह मिनट प्रातः भ्रमण अवश्य करें। अगर आधा घंटा टहल सकें तो बहुत ही अच्छा, अन्यथा पन्द्रह मिनट अवश्य घूमे। शरीर की हड्डियाँ मशीन की तरह है। अगर उपयोग किया तो काम की रहेंगी, नहीं तो धीरे-धीरे इसमें जंग लग जाएगा और जकड़ जाएंगी। शरीर का यह स्वभाव है कि जब तक इससे काम लो यह काम का रहता है और जैसे ही काम लेना बंद किया कि नाकाम हो जाता है। मैंने अनुभव किया है कि भोर की किरणें आपके शरीर पर पड़ती है तो वे अमृत का काम करती हैं। सुबह की हवा सौ दवा के बराबर है। इसलिए जितना आपसे संभव हो उतना व्यायाम अवश्य करें। स्वास्थ्य-रक्षा के लिए प्राणायाम को भी जोड़ लें। योग और प्राणायाम में हमारे स्वास्थ्य की आत्मा छिपी है। स्वास्थ्य पर रखिए सतर्क निगाहें तीसरा बिंदु है - आरोग्य के प्रति हर बूढ़ा व्यक्ति सतर्क रहे। शरीर में होने वाले किसी रोग को नज़रअंदाज़ करने की बजाय तत्काल उसका समाधान करने की कोशिश करें। यह न सोचें कि अब क्या करना है, बूढ़े हो गए हैं, कौन डॉक्टर को दिखाए, कौन दवा का खर्चा करे, जैसे-तैसे ठीक 69 For Personal & Private Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हो जाएँगे। जीवन भर दुकान, मकान, कोठी पर खर्च करते रहे लेकिन आप अपने स्वास्थ्य की अवहेलना न करें। किसी भी प्रकार के रोग के लक्षण नजर आए तो उसके प्रति सावधानी रखें। उसका तुरंत इलाज कराएं ताकि रोग भयावह रूप धारण न कर सके। आप जो दवाएँ ले रहे हैं उनको निर्देश के अनुसार जारी रखें। कभी शरीर में थकान, टूटन, जकड़न या कमजोरी महसूस हो रही हो तो दूध के साथ हल्दी ले लिया करें। इससे हड्डियां मजबूत होती हैं। कभी आपके पेट में तकलीफ हो जाए या शरीर में कहीं हल्का-फुल्का दर्द उठ जाए तो घरेलू उपचार भी किए जा सकते हैं। आपकी रसोई भी छोटा-सा दवाखाना है। इसमें रखी हुई हल्दी, मैथीदाना, अजवाइन का भी यदा-कदा सेवन करते रहें। ये हैं तो बहुत छोटी चीजें, पर हैं बहुत लाभकारी। ये आपके शरीर पर दवा का काम करते हैं। हम अगर अपने शरीर के प्रति सतर्क रहते हैं तो स्वस्थ व निरोगी जीवन जी सकते हैं। बचें दखलअंदाज़ों से ___ अपना दैनिक कार्यक्रम बनाएँ। घर में अधिक दखलअंदाज़ी न करें। जो जैसा कर रहा है उसे करने दें। घर में रहते हुए अधिक दखलअंदाजी करेंगे तो दो नुकसान होंगे, एक तो परिवार के लोग आपसे टूटेंगे, आपकी बात नहीं सुनेंगे, दूसरा आप मानसिक रूप से अशांत रहेंगे। आपने अनुभव किया होगा कि जब आप घर की बहुओं को लेकर नुक्ताचीनी करते हैं या छोटी-छोटी बातों पर हस्तक्षेप करते हैं, तो परिवार वाले आपकी उपेक्षा करने लगते हैं। हां, अगर कोई बहुत बड़ी घटना हो जाए तो कम-से-कम शब्दों में हिदायत दें। अरे, आपका बेटा तीस साल का हो गया है, उसे उसकी समझ से भी कार्य करने दो। अगर आप बार-बार बोलेंगे तो परिवार के लोग मानसिक रूप से आपसे किनारा कर लेंगे। बहुएँ सोचेंगी ससुर जी दिन भर घर में बैठे रहते हैं, हम अपना मनचाहा कुछ भी नहीं कर सकते। तब आपका घर में रहना भारभूत बन सकता है। इसलिए व्यर्थ की झंझटबाजी मोल न लें, यह आपके मन को अशांत करेगी। 70 For Personal & Private Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आपकी संतान आपका कहना माने तो श्रेष्ठ और न माने तो चिंतित न हों क्योंकि अब कहने से भी मुक्ति मिली। सोचो क्या आपको अपने बच्चों के लिए ही सारी सिरपच्ची करनी है । मैंने अनुभव किया है कि पुत्र अगर किसी प्रकार के घाटे में चला जाए तो पुत्र तो निश्चिंत रहता है और पिता फिक्रमंद हो जाते हैं । ऐसे पिता हमारे पास आते हैं और कहते हैं गुरुवर, बेटे ने पच्चीस-पचास लाख का घाटा दे दिया है, कोई उपाय, कोई मंत्र बताएँ। मैं कहता हूं जिसने घाटा लगाया उसे कोई चिंता नहीं है, आप क्यों दुबले हुए जा रहे हैं ? अब भी अगर डूबने और खोने की सोचते रहोगे तो हर घड़ी अपने मन को पीड़ित और अशांत करते रहोगे । किस बात की चिंता करें ? व्यर्थ की चिंताएँ न पालें । जवानी में चिंताओं का बोझ सहन किया जा सकता है, लेकिन बुढ़ापे में चिंताओं का बोझ व्यर्थ ही शरीर को तोड़ देता है । तुम्हारी चिंताएँ अगर कोई समाधान नहीं दे पा रही हैं तो व्यर्थ की चिंता करने की बजाए उसे समय पर छोड़ दें। 1 मेरी तो यही सोच है कि अगर समाधान नहीं निकल पा रहा है, तो उसकी चिंता करने से अच्छा है उसे समय पर छोड़ दें। समय अपने आप उस कार्य को पूर्ण कर देगा। अब बेटा बिगड़ैल निकल गया, तुमने खूब समझाया पर वह अपनी बुरी आदतों को नहीं छोड़ पा रहा तो तुम उसके पीछे मत पड़ो। तुम अपनी सोचो। उसे तुम्हारी चिंता नहीं है, फिर तुम क्यों उसकी चिंता में नाहक कष्ट उठा रहे हो। मैंने तो यही पाया है कि बहू-बेटों को अपने माँ-बाप की उतनी चिंता नहीं होती, जितनी माँ-बाप को अपने बहू-बेटों की रहती है। वे ऐसी चिंताएँ लादे रहते हैं जिनका कोई अर्थ नहीं होता लेकिन इस कारण अपना बुढ़ापा ज़रूर बिगाड़ लेते हैं । अधिक आशा से उपजे निराशा बुढ़ापे में अपने भाग्य का रोना न रोएँ । जो प्रकृति से मिल रहा है उसे प्रेम से स्वीकार करें। बच्चों से अधिक आशाएँ न रखें । लोग प्राय: कहते हैं कि बेटा तो बुढ़ापे का सहारा है, पर मैं कहता हूँ ज्यादा आशा न पालें । जीवनभर अगर आशाएँ रखी हैं तो बुढ़ापे में निराश होना पड़ सकता है। अगर आशा ही न रखोगे तो निराश भी नहीं होना पड़ेगा। देखते तो हो कि पड़ौसी 71 For Personal & Private Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का बेटा अपने पिता की सेवा नहीं कर रहा, तुम भी अपने पिता की सेवा नहीं कर रहे तो अपने बेटे से यह आशा क्यों कर रहे हो। ये आशाएँ जब टूटती हैं तो बुढ़ापे में सिवाय दुःख के कुछ हासिल नहीं होता। तुम नि:स्वार्थ भाव से बेटों के लिए जितना कर सको, कर दो, पर वापसी की अपेक्षा न रखो। ___ अनावश्यक हठ भी न करें । घर में रहकर यह न कहें कि जो आपने कह दिया वह क्यों नहीं हुआ। कई बार बूढ़े लोग घर में रहकर झगड़ पड़ते हैं या दु:खी हो जाते हैं कि मैंने कहा था और घर में लोगों ने ऐसा किया या ऐसा क्यों नहीं किया। वाक्युद्ध शुरू हो जाता है और घर में अशांति छा जाती है। घर के लोगों को अगर तुम्हारी सलाह की ज़रूरत है, तो वे ज़रूर पूछेगे और अगर तुम बिन माँगे दिन भर अपनी सलाह देते रहोगे तो उस सलाह की कोई क़ीमत न होगी। घर के लोग अगर आपके लिए कुछ काम करें तो उन्हें साधुवाद दो, कहो-मेरा बेटा बहत अच्छा है, मेरा बहुत ध्यान रखता है। भले ही न रखता हो–पर शायद तुम्हारे इस प्रकार कहने से ही ध्यान रखना शुरू कर दे। एक बात और ध्यान रखें कि घर में कभी व्यंग्यात्मक भाषा का प्रयोग न करें। कई बार बूढ़े लोग व्यंग्य में ऐसी बातें कह जाते हैं जो घर के लोगों को चुभने लगती है। आक्रोश में ग़लत कठोर शब्दों में कहने की बजाय उसी बात को सरल शब्दों में कहने से वह बात अधिक प्रभावी होती है। आप अशक्त हो चुके हैं, आपसे काम नहीं बन रहा है तो व्यंग्यपूर्वक बोलने की बजाय मधुरता से बोलें और अपना कार्य करवा लें। सीखें सत्तर पार भी एक बात और, सीखने की कोई उम्र नहीं होती है। शरीर से भले ही बूढ़े हो जाएं, पर मन को कभी अशक्त न मानें। सत्तर वर्ष के हो गए हो तब भी अच्छी किताबों को पढ़ें, उनका स्वाध्याय करें, कुछ अच्छी बातें सीखने की कोशिश करें। भारतीय लोग स्वयं को बहुत जल्दी बूढ़ा मानने लगते हैं, क्योंकि वे अपने दिमाग़ का उपयोग बंद कर देते हैं। उन्हें तो लगता है हम बूढ़े हो गए हैं 72 For Personal & Private Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अब क्या करें। मुझे याद है - एक जहाज में बूढ़ा जापानी यात्रा कर रहा था । आयु होगी लगभग अस्सी वर्ष की । वह जहाज में बैठा एक पुस्तक खोलकर कुछ पढ़ रहा था । एक अन्य महानुभाव जो उसी जहाज में यात्रा कर रहे थे, उन्होंने उससे पूछा – अरे, भाई क्या कर रहे हो ? उसने कहा - चीनी भाषा सीख रहा हूँ। वे सज्जन बोले- अस्सी साल के हो गए लगते हैं । बूढ़े हो गए, मरने को चले हो । अब - चीनी भाषा सीखकर क्या करोगे ? जापानी ने पूछा, क्या तुम भारतीय हो ? उसने कहा- हाँ हूँ तो मैं भारतीय, पर तुमने कैसे पहचाना ? जापानी व्यक्ति ने कहा- मैं पहचान गया। भारतीय आदमी जीवन में यही देखता है कि अब तो मरने को चले, अब क्या करना है । हम मरने नहीं चले हैं, हम तो जीने चले हैं । मरेंगे तो एक दिन जब मृत्यु आएगी, लेकिन सोच-सोचकर रोज क्यों मरें ? जीवन में बुढ़ापे को विषाद मानने के बजाय इसे भी प्रभु का प्रसाद मानें। विषाद मानने पर जहाँ आप निष्क्रिय और स्वयं के लिए भारभूत बन जाएंगे, वहीं प्रमाद त्यागने पर आप नब्बे वर्ष के होने पर भी गतिशील रहेंगे। महान दार्शनिक सुकरात सत्तर वर्ष की आयु में भी साहित्य का सर्जन करते थे । उन्होंने कई पुस्तकें बुढ़ापे में ही लिखी थी । कीरो ने अस्सी वर्ष की उम्र में भी ग्रीक भाषा सीखी थी। पिकासो नब्बे वर्ष के हुए तब तक चित्र बनाते रहे थे । यह हुई बुढ़ापे की ज़िंदादिली । 1 ज़िंदगी में अपने मन को कमज़ोर करने की बजाय कुछ-न-कुछ सीखते रहें । हर उम्र में व्यक्ति सीख सकता है । संबोधि - धाम में जय श्री देवी मनस चिकित्सा केन्द्र चलता है । उस चिकित्सालय के प्रभारी चिकित्सक ने अपने पैंसठ वर्ष की आयु में पढ़ाई शुरू की और निरंतर पांच वर्ष तक अध्ययन करने के पश्चात आज वे वहाँ का चिकित्सालय संभाल रहे हैं। इसके पूर्व वे भूजल विभाग में उच्च अधिकारी थे । वहाँ से सेवानिवृत्त होने के बाद वे हमारे पास आए और बोले कि वे अपना जीवन कुछ अच्छे कार्य के लिए समर्पित करना चाहते हैं। हमने चिकित्सालय में कार्य करने का सुझाव दिया। प्रारंभ में तो वे सहयोगी के रूप में कार्य करते थे लेकिन मन में उत्सुकता जगी और पढ़ाई 73 For Personal & Private Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रारंभ की। वे महाशय डॉ. जे.एल. बोहरा हैं । संबोधि-धाम में बैच-फ्लॉवर' रैमेडीज से चिकित्सा की जाती है जो जर्मनी से संबंधित है। उन्होंने जर्मन से अध्ययन शुरू किया, परीक्षाएँ दी और जिंदगी के बहत्तरवें वर्ष में वे डॉक्टर बने, है न प्रशंसा की बात ! आदमी बनना चाहे और न बन सके ! जो बनना चाहता है वह बुढ़ापे में भी बन सकता है और जिसे बिगड़ना हो वह जवानी में भी बिगड़ सकता है। इसलिए स्वयं को कभी कमज़ोर महसूस न करें। अपने दिमाग़ को उज्ज्वल, निर्मल और पवित्र रखें। जो है उसे प्रेम से स्वीकार करें। मुझे याद है महात्मा गांधी एक बार श्रीलंका गए थे, कस्तूरबा भी साथ ही थी। वहाँ उन्हें किसी समारोह की अध्यक्षता करनी थी। वहाँ उनका स्वागत-सत्कार हुआ। संयोजक महोदय खड़े हुए और बोले यह हमारा सौभाग्य है कि आज हमारे यहाँ भारत के एक महापुरुष महात्मा गांधी पधारे हैं, उनके साथ उनकी माँ कस्तुरबा भी आई है। गुजराती में माँ को 'बा' कहते हैं, सो उसने समझा कि ये गांधी जी की माँ होंगी। सभा में बैठे हुए लोग चौंक गए कि संयोजक महोदय यह क्या बोल गए? क्या उन्हें नहीं मालूम कि कस्तूरबा उनकी पत्नी है, माँ नहीं। किसी ने जाकर उन्हें बताया 'बा' माँ नहीं, गांधीजी की पत्नी है। वह खड़ा हुआ और माफ़ी मांगने लगा कि उससे भूल हो गई। संयोजक चुप हो, इससे पहले ही गांधी जी खड़े हो गए और कहने लगे, 'इस व्यक्ति ने मेरी सोच को सुधारा है, मैं तो बुढ़ापे की ओर ही जा रहा हूँ। अगर इस व्यक्ति से मेरी पत्नी के लिए माँ का संबोधन निकला है तो आज मैं इस मंच से घोषणा करता हूँ कि आज के बाद कस्तूरबा मेरे लिए मातृवत् ही रहेगी।' पंचरत्न की पोटली ___जीवन में जिस व्यक्ति की उन्नत सोच होती है, वह हर आने वाले मोड़ को सही तरीक़े से स्वीकार कर लेता है। मैं सभी वृद्धों से कहना चाहता हूँ कि शरीर भले ही बूढ़ा हो । जाए, लेकिन अपनी बुद्धि, अपने विचार, अपने मन को कभी बूढ़ा न होने दें। हम अपने बुढ़ापे को कैसे सार्थक करें? इसके लिए आपको पांच सूत्र देना चाहूँगा। 1. मोहासक्ति से ऊपर उठने की कोशिश करें। अगर 74 For Personal & Private Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आप अपने बुढ़ापे को सुखमय और सार्थकता से जीना चाहते हैं, तो आपके मन में घर-परिवार और विशेषकर धन के प्रति जो मोह - वृत्ति है उससे बाहर आएँ । ज्यादा कंजूसी अच्छी बात नहीं है । बुढ़ापे में भी यह सोच रहे हैं कि अपने बच्चों के लिए संग्रह कर लूँ तो छोड़ें इस बात को । बच्चों के पंख लग गए हैं, वे उड़ T रहे हैं, अपनी व्यवस्था खुद कर रहे हैं, आप क्यों कंजूसी कर रहे हैं । व्यर्थ की मोहासक्ति और व्यर्थ की लोभ की प्रवृत्ति त्याग दें । व्यवस्थित जिएँ, ताकि बुढ़ापा आप पर प्रभाव न डाल सके। एक प्यारी घटना बताता हूँ। हम नाकोड़ा में थे, जोधपुर से एक वृद्ध दम्पति दर्शनार्थ वहाँ आए हुए थे । वे हमसे भी मिले। थोड़ी कंजूस प्रकृति के थे। मैंने कहा, भोजन कर लीजिए। पत्नी कहने लगी, तीर्थ में आए हैं तो धर्म की रोटी नहीं खाएँगे, टोकन से ही खाएँगे। मैंने कहा जैसी आपकी मर्जी, आप लोग खाना खाकर आ जाएँ । उनका विचार था कि भोजनशाला में जाएँगे तो दो थाली के पैसे लग जाएंगे। एक थाली यहीं मंगा लेता हूँ। दोनों एक ही थाली में खा लेंगे। मैंने कहा - ठीक है, यहीं व्यवस्था करा देता हूँ। मैंने एक व्यक्ति को भेजा और खाना मंगवा दिया और कहा कि पास में जो कमरा है उसमें बैठकर भोजन कर लीजिए। पति खाना खा रहा था और पत्नी यूं ही बैठी थी । मैंने कहा सर्दी का मौसम है, खाना ठंडा हो जाएगा। आप साथ में ही खा लीजिए। कहने लगी- नहीं, ये खा लें फिर मैं खा लूंगी। मैंने तीन बार कहा, पर नहीं मानीं । कहने लगी- बात कुछ और है। मैंने पूछा, क्या मतलब? बताया- ये खाकर खड़े होंगे तो मैं खाऊंगी, क्योंकि हम दोनों के बीच हमारी बत्तीसी एक ही है। ऐसी कंजूसी भी किस काम की ? T दूसरा रत्न - स्वयं को स्वस्थ महसूस करें और सक्रिय रहें । आप दीर्घजीवी के साथ स्वस्थ जीवी हों। आप जब तक सक्रिय रहेंगे, बुढ़ापा आपसे दूर रहेगा। अगर जवानी में भी निष्क्रिय हो गये तो गये काम से। बुढ़ापा रोकने के लिए - सदा गतिशील रहें । जहाँ तक संभव हो अपने कार्यों के लिए औरों 75 For Personal & Private Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर आश्रित होने की बजाय अपने कार्यों को स्वयं सम्पादित करने का प्रयास करें। इससे आप स्वावलम्बी भी रहेंगे और सक्रिय भी। शरीर का जितना उपयोग करें यह उतना ही चार्ज होता जाएगा। घर के छोटे-मोटे कार्यों में हिस्सा बंटाते रहें। इससे आप थोड़े व्यस्त रहेंगे और जिंदगी में खालीपन नहीं लगेगा। आप सदैव चैतन्य शक्ति से भरपूर रहें । शारीरिक शक्ति के कमजोर पड़ने पर भी प्राणशक्ति को कभी भी कमज़ोर न हो दें। बुढ़ापे में आर्थिक, शारीरिक और पारिवारिक समस्याएं बढ़ सकती हैं, पर आप अपने मनोबल से इनसे पार लग सकते हैं। तीसरा रत्न-घर में निर्लिप्त भाव से रहें । निर्लिप्तता शांति और मुक्ति देती है। ध्यान रखें, अपनी संतानों में जब धन का बंटवारा करें तो एक हिस्सा अपने और पत्नी के लिए अवश्य रखें, साथ ही यह भी व्यवस्था दें कि आपकी मृत्यु के बाद आपके हिस्से का धन पुनः संतानों में बंटने की बजाय उस धन का मानवता के कल्याण के लिए खर्च हो ताकि आप मानवता के कर्ज से उबर सकें। नहीं तो परिवार के लोगों की जीते जी भी तुम्हारे धन पर ही नज़र होगी और मरने पर भी। अगर आपके संतान नहीं है तो धन-सम्पति में आसक्त होने की बजाय निष्पृह-भाव से उसका सामाजिक हितों में उपयोग करें। चौथा रत्न - प्रतिदिन सुबह-शाम भगवान की भक्ति अवश्य करें। अनावश्यक इधर-उधर की बातें करने की बजाय प्रभु की प्रार्थना या आराधना कर लें।बुढ़ापे में भगवान की भक्ति मन की शांति का आधार बनेगी। __ पाँचवां रत्न - प्रतिदिन आधा घंटा अच्छी पुस्तक अवश्य पढ़ें ताकि मति संमति रहे, आपके मन की गति सद्गतिमय रहे । __ ये पाँच बातें बुजुर्गों के बुढ़ापे की सार्थकता के लिए पांच रत्न की पोटली के समान हैं। टिप्स स्वस्थ बुढ़ापे के स्वस्थ बुढ़ापे के लिए ज़रूरी है कि हम श्वास सही तरीके से लें। प्राय: बुढ़ापे में थोड़ासा भी रुग्ण होने पर व्यक्ति की श्वास असंतुलित हो जाती है। स्वस्थ व्यक्ति एक मिनट 76 For Personal & Private Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ में औसतन 16श्वास लेता है यानि प्रतिदिन चौबीस घंटे में 23040 श्वास ली जाती है। श्वास वह है जो हमारे प्राण की आधार तो है ही, साथ ही हम सर्वाधिक अपने शरीर में इसी का उपयोग करते हैं। जीवन को खेल समझें। जीवन हंसता-- खिलता एक खिलौना है। इस खिलौने को उतना ही चलना है जितनी इसमें चाबी भरी गई है। प्रायः लोग जवानी को उमंग से जी लेते हैं पर बुढ़ापे में निराश हताश हो जाते हैं। बुढ़ापा उनके लिए भारभूत हो जाता है । शांतिपूर्ण बुढ़ापे के लिए मुक्त रहें। मौत प्रत्येक व्यक्ति को जिंदगी में एक बार ही मारती है और समय से पहले मारना मौत के हाथ में नहीं होता। पर अन्तर मन में पलने वाला मृत्यु का भय हमें बार-बार मारता है, समय से पहले मारता है। ___ अच्छा होगा आप तनाव और चिंता से भी बचकर रहें। चिंता बुढ़ापे का दोष है इसका त्याग करें। हर दिन की शुरुआत प्रसन्नता से करें । परिस्थितियों के बदलने के बावजूद अपने मन की स्थिति न बदलें। घरेलू व्यवस्थाओं में ज्यादा हस्तक्षेप न करें। अगर आप निर्लिप्त भाव से घर में रहेंगे तो सौ तरह के मानसिक क्लेशों से बचे रहेंगे। बुढ़ापे को विषाद की बजाय प्रसाद मानकर इसका शांति और मुक्ति के लिए उपयोग करें। बुढ़ापा यानी संत-जीवन-मुक्ति का जीवन, शांति का जीवन । बस, इतना याद रखिए और बुढ़ापे को सार्थक कीजिए। बुढ़ापे की धन्यता के लिए कुछ बातें निवेदन की हैं, इन्हें ध्यान में रखिए और आनंदित बुढ़ापे के स्वामी बनिये। 77 For Personal & Private Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यवहार को प्रभावी बनाने के गुर चेहरे का रंग देना कुदरत का काम है, पर जीवन को सही ढंग देना आपका। हर व्यक्ति के पास अपने व्यवहार का आईना होता है। उस आईने में व्यक्ति अपने स्वभाव, व्यक्तित्व, चरित्र और शालीनता का परिचय प्राप्त करता है। हमारा व्यवहार ही हमारे व्यक्तित्व की पहचान है। यही चरित्र का प्रतीक, कुलीनता का परिचायक और निजी स्वभाव का प्रत्यक्ष स्वरूप दिखलाता है। दुनिया में कई लोगों का व्यवहार इतना शालीन और मधुर होता है कि उनके पास बैठने और उनके साथ जीने से स्वयं का भी विकास और निर्माण होता है। दूसरी ओर कई लोगों का व्यवहार इतने निम्न स्तर का होता है कि उनके साथ जीने से हमारा व्यवहार भी निकृष्ट और कपटपूर्ण हो जाता है। हम जीवन की ऊँचाइयों को छूने से वंचित रह जाते हैं। व्यवहार एक आईना व्यक्ति अपने व्यवहार के आईने में अपने अंतरंग और बाह्य दोनों जीवन को प्रकट कर देता है। महान लोग शत्रु के साथ भी ऐसा मधुर व्यवहार करते हैं कि वे शालीनता और महानता के प्रतिमान बन जाते हैं और निम्न स्तरीय लोग 78 For Personal & Private Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपने मित्र के साथ भी क्रूर और अनपेक्षित व्यवहार करते हैं । जब तक व्यक्ति के जीवन में बाहर कुछ और भीतर कुछ की व्यवस्था चलती रहती है तब तक वह बाह्य रूप से तो शालीन नज़र आता है पर भीतर धूर्तता समाई रहती है । ऐसी दोहरी ज़िंदगी जीने वालों के लिए उनका जीवन ही प्रश्न-चिह्न बन जाता है । जब तक व्यक्ति की सोच, विचार और व्यवहार में एकरूपता स्थापित नहीं होती, तब तक उसका व्यवहार बाहरी तौर पर खुशमिज़ाज और भीतरी रूप से धूर्त हो सकता है, लेकिन उसके जीवन का श्रेष्ठ चरित्र नहीं हो सकता । व्यवहार व्यक्ति के विचार से, विचार मानसिक सोच से और मानसिक सोच आत्मिक चेतना से बनती है । जैसी व्यक्ति की सोच होती है, वैसी विचारधारा बनती है, जैसी विचारधारा होती है वैसी बुद्धि बनती है और विचार से ही आचार और व्यवहार बनते हैं । अपनी पहचान आप I पहले चरण में आपकी वाणी की शालीनता, शब्दों का चयन और जीने का तौर-तरीक़ा सामने वाले व्यक्ति को प्रभावित करता है । आप किसी के पास बैठे हैं, बातचीत कर रहे हैं, तो इसमें ख़ास यह है कि आप कैसे बैठे हैं, कितना बोल रहे हैं। किसी व्यक्ति का वाणी-व्यवहार, जीवन का व्यवहार, उठनेबैठने का सलीका यह दर्शाता है कि कौन ऊँचे कुल का है और कौन निम्न कुल का है। किसी की कुलीनता न तो पहनावे से, न ही उसके मकान, गाड़ी, कोठी, जमीन-जायदाद से प्रदर्शित होती है, वह तो उसके व्यवहार की शालीनता से प्रकट होती है। किसी भी व्यक्ति के व्यवहार को देखकर, उसके जीने के तौरतरीके, जीवन की व्यवस्था और वाणी - व्यवहार को देखकर हम पहचान सकते हैं कि वह कौन है और कैसा है । एक अंधा व्यक्ति सड़क के किनारे बैठा है कि तभी एक व्यक्ति वहाँ से 79 For Personal & Private Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ निकलता है और कहता है 'सुन ओ अंधे, तुमने इधर से किसी को जाते हए महसूस किया?' उसने कहा, 'नहीं, मैंने तो महसूस नहीं किया। सेनापति तुम जाओ।' तभी उसके पीछे दूसरा व्यक्ति आया और पूछता है 'सूरदास, तुमने इधर से किसी को जाते हुए पाया?' अंधे व्यक्ति ने कहा 'हाँ, तुमसे पहले सेनापति आया था और महामंत्री तुम उसके बाद जा रहे हो।' तभी तीसरा व्यक्ति आया और उसने भी पूछा, 'हे प्रज्ञाचक्षु, हे महात्मन्, क्या आपने यहाँ से किसी को जाते महसूस किया है ?' उसने कहा 'हाँ, पहले सेनापति गया, फिर मंत्री गया और अब तुम राजन् उनके पीछे जाओ।' व्यक्ति की वाणी सुनकर अंधा भी समझ लेता है कि व्यक्ति किस श्रेणी का है। इंसान अपने व्यवहार को सुधारकर जिंदगी को बेहतर बना सकता है। हम ही जीवन-शिल्पी __आप काले हैं या गोरे, इससे क्या फ़र्क पड़ता है। गोरा और काला होना आपके हाथ में नहीं है, लेकिन अच्छा व्यवहार आपके हाथ में है। ऊँचा कुल नसीब से मिलता है, लेकिन सद्व्यवहार आपको कुलीन बना सकता है। वैसे भी मैं नसीब की बातें नहीं करता क्योंकि उसे बनाना, सुधारना या बिगाड़ना हमारे हाथ में नहीं है पर जो खुद के हाथ में है वह जीवन हम ही सुधार या बिगाड़ सकते हैं। शरीर का रंग-रूप तो सदा एक जैसा रह भी सकता है, लेकिन मैं उस जीवन की बात करता हूँ जिसे हम रंग-रूप देते हैं, दे सकते हैं। मैं जीवन का वह संगीत देना चाहता हूँ जिसकी झंकार सुनकर आप अपना जीवन बदल सकते हैं। जीवन के व्यवहार को बदलना और उसे बेहतर बनाना हर किसी के हाथ में है। आप सम्पन्न घर में पैदा हुए या विपन्न घर में यह नसीब की बात है। आपके पिता सद्व्यवहार करते हैं या दुर्व्यवहार, यह भी नसीब की बात है, लेकिन आप औरों के साथ कैसे पेश आते हैं, आपकी सोच और विचार कैसे हैं, आपका व्यवहार कैसा है यह नसीब की नहीं, आपकी अपनी देन है। इसलिए मैं आपसे आपके नसीब को नहीं व्यवहार को सुधारने की बात कहता 80 For Personal & Private Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हूँ।नसीब भी तब सुधर जाता है जब आप खुद सुधर जाते हैं। ___मेरे पास एक महानुभाव आये और कहने लगे, 'अगर आपका दिमाग़ मुझे मिल जाता तो मैं एक बेहतर इन्सान बन जाता।' मैंने कहा, 'इस बात को छोड़ो, तुम एक बेहतर इंसान बन जाओ मेरा दिमाग़ तुम्हें अपने आप मिल जाएगा।' मेरा दिमाग़ देना तो मेरे हाथ में नहीं है लेकिन अगर आप बेहतर इंसान बन गए तो स्वयं का दिमाग विकसित करने में स्वयं समर्थ हो जाओगे। बाहर-भीतर बनें अभेद हम देखें कि हमारा व्यवहार कैसा है। एक बार आत्मावलोकन कर लें कि हमारा व्यवहार, हमारा विचार, हमारी सोच, हमारा अंतरंग जीवन इनमें कहीं भेद-रेखा तो नहीं है? एक बार देख लें कि हमारी हँसी के भीतर कोई कुटिलता तो नहीं है। हमारी मुस्कान में कहीं कृत्रिमता तो नहीं है। हम जो दूसरों से गले मिलने की योजना बना रहे हैं इसमें कोई धूर्तता तो नहीं है। हमारी मित्रता में कोई शठता की सोच तो नहीं है। एक बार जरूर अपने में झाँक लें क्योंकि आदमी बाहर से अपने आपको जितना अच्छा दिखाता है, जरूरी है कि वह भीतर से उससे दोगुना अच्छा हो । दुनिया का एक मशहूर टॉवर है ‘कैलगेरी', उसकी ऊँचाई एक सौ नब्बे मीटर और वजन है दस हजार आठ सौ टन । वह टॉवर पृथ्वी सतह पर जितना ऊँचा है उसका चालीस प्रतिशत बाहर और साठ प्रतिशत जमीन के अंदर है। बाहर के हिस्से में चार हजार टन लोहा और ज़मीन के भीतरी हिस्से में छह हजार टन से अधिक लोहा लगा है। किसी भी टॉवर की मज़बूती के लिए ज़रूरी है कि वह जितना बाहर दिखता है उससे अधिक भीतर हो और आदमी के श्रेष्ठ व्यवहार के लिए ज़रूरी है कि जितना उसका अच्छा व्यवहार बाहर हो उतना ही अच्छा मन भीतर भी हो। न बनें काग़ज के फूल खोखली जड़ों को लेकर अगर कोई पेड़ अपने आपको शोभायुक्त समझता है तो यह शोभा शीघ्र ही समाप्त हो जाने वाली है। व्यक्ति जैसा अपने 81 For Personal & Private Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Alata ? आपको बाहर से दिखाता है उसका निजी और अंतरंग जीवन साठ प्रतिशत अच्छा हो। आपने देखा होगा कि पानी से भरे ड्रम में अगर हम बर्फ की शिला डालते हैं तो उसका नब्बे प्रतिशत भाग पानी के भीतर रहता है और दस प्रतिशत बाहर। वहीं हवा से भरा गुब्बारा पानी में छोड़ा जाए तो उसका दस प्रतिशत भाग पानी को छूता है और नब्बे प्रतिशत बाहर रहता है। व्यक्ति को अपना व्यवहार बर्फ की शिला की तरह रखना चाहिए। जितना श्रेष्ठ स्वयं को व्यवहार में दिखाए उससे ज्यादा श्रेष्ठ भीतर से होना चाहिए। यही है जीवन का रहस्य। जो लोग अपने जीवन को बेहतर तरीके से जीना सीख लेते हैं, बाहर और भीतर से जीवन को एकरूप बनाते हुए जीवन की महानताओं को आत्मसात कर लेते हैं वे बर्फ की तरह होते हैं। वे दस प्रतिशत तो बाहर की तरफ दिखाते हैं और नब्बे प्रतिशत भीतर से अच्छे होते हैं, लेकिन कुछ लोग कृत्रिम ज़िंदगी जीया करते हैं -प्लास्टिक और कागज के फूलों की तरह। जो दिखने में तो अति सुंदर लगते हैं, लेकिन सुगंध नदारद रहती है। ऐसे लोग बाहर से अपने आपको नब्बे प्रतिशत अच्छा दिखाते हैं पर भीतर दस प्रतिशत भी अच्छे नहीं होते। झूठी मुस्कान, कृत्रिम हँसी, किसी सेल्समेन की तरह । जैसे सेल्समेन को प्रशिक्षित किया जाता है कि कैसे ग्राहकों के आने पर उन्हें मधुर व्यवहार करते हुए समझाया / पटाया जाए कि वे शोरूम से खाली हाथ वापस न जा सकें। ऐसे ही लोग कृत्रिमता ओढ़े रहते हैं। सेल्समेन का उद्देश्य किसी की सेवा नहीं है, बिज़नेस है। न जियें, दोहरी जिंदगी ___ जीवन में कभी दोहरी जिंदगी न जियें, बाहर कुछ और भीतर कुछ। आरोपित मुखौटे को उतारें। बाहर मुस्कान और भीतर कुटिलता के भेद को समाप्त करें। अन्यथा आप उस आभूषण की तरह हो जायेंगे जिस पर झोल तो सोने का चढ़ा है, पर भीतर वह पीतल का है। ऐसे दो मुंहे इंसान कहेंगे कुछ, और करेंगे कुछ। ये काफी खतरनाक लोग होते हैं। एक बार हम कोलकाता में 82 For Personal & Private Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सांपों के संग्रहालय में थे, वहाँ अनेक प्रजातियों के साँप देखने को मिले । संग्रहालय के निदेशक हमारे साथ चल रहे थे। मैंने पूछा शास्त्रों में दो मुँहे साँप का उल्लेख आता है, अपने संग्रहालय में क्यों नहीं है । कहने लगे जब से दो मुँह इंसान पैदा होने शुरू हो गए हैं तब से दो मुँहे साँप पैदा होने बंद हो गए हैं। शायद ! दो मुँहे साँप से भी ज्यादा ख़तरनाक दो मुँहे इंसान होते हैं । सौंपिए सूरज को अपना अंधेरा आप अपने व्यवहार को बेहतर बनाएँ और 'इसके लिए ज़रूरी है कि आप अपने विचारों को बेहतर बनाएँ । विचार और व्यवहार का संतुलन होना चाहिए । जब भी किसी से मिलें हीनता का भाव न रखें, न ही हीन भावना के विचार व्यक्त ) करें। मैंने लोगों को कहते पाया है 'ठीक है यार, जी रहे हैं, ठीक है, भैय्या वक्त काट रहे हैं, क्या करें जैसे-तैसे रोटी का जुगाड़ हो रहा है, अरे भैय्या क्या बताएँ किस्मत ही खराब है, अरे कैसी क़िस्मत फूटी जो इस औरत से मेरी शादी हुई' । पता नहीं, व्यक्ति कैसी-कैसी विपरीत टिप्पणी अपनी क़िस्मत और अपने बारे में करता रहता है। याद रखिए, सूरज की किरणें केवल आपकी परछाइयाँ बनाने के लिए नहीं हैं, सूरज की किरणें आपके जीवन को प्रकाशित करने के लिए हैं। जो सूर्य की किरणों से केवल अपनी छाया और परछाई देखता रह जाता है उसके लिए सूरज व्यर्थ है और जो सूरज की किरणों का उपयोग जीवन प्रकाश के लिए करता है उसके लिए ही सूरज सार्थक है। रोशन कीजिए सूरज की किरणों से अपने जीवन को । - व्यवहार में न तो अकड़ दिखाएँ और न ही हीनता । जब तक व्यक्ति मन का निर्धन होता है, तब तक अपने धन की शेखी बघारता रहता है और जब तक अज्ञानी होता है तब तक अपने आपको ज्ञानी मानता है, जिसे अपने अज्ञान का बोध हो जाए वही वास्तव में ज्ञानी हो जाता है। याद रखें, जिसे अपने जीवन में अपार सम्पन्नता पाने के बाद भी सम्पन्नता का अहंकार नहीं होता, वही महान | अहंकार किसका और कैसा ! आकाश को देखो तो तुम्हें प्रेरणा मिलेगी कि एक दिन तुम्हें ऊपर उठना है, कैसा अहंकार ! और ज़मीन को देखो तो तुम्हें प्रेरणा मिलेगी कि एक दिन तुम्हें ज़मीन में समा जाना है, फिर कैसा अहंकार ! 83 For Personal & Private Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जब भी किसी से मिलो, सहजता, सरलता और सहृदयता से मिलो। बड़ा वह नहीं जो सम्पन्न है या बड़ी-बड़ी बातें करता है, बड़ा वह होता है जो जीवन में, व्यवहार में बड़प्पन दिखाता है। औरों से ऐसे मिलो कि हमारा किसी से मिलना यादगार बन जाए। हमारे व्यवहार में इतनी विनम्रता और शालीनता तो होनी ही चाहिए कि दूसरों के द्वारा खुद को मान दिये जाने पर हम भी उसके मान का सम्मान कर सकें। सम्मान देकर सम्मान लें याद रखें, जीवन में मान पाने के लिए नहीं, देने के लिए होता है । इसे औरों को देकर खुश होइये। जीवन में सम्मान पाने की कोशिश न करें। जो व्यक्ति - सम्मान पाने की ख्वाहिश रखता है, वही अपमानित होता है। जिसके भीतर सम्मान पाने की आकांक्षा नहीं है वह कभी अपमानित नहीं हो सकता। आप कितने भी महान क्यों न हों, लेकिन छोटे-से-छोटे व्यक्ति का भी मान करना सीखें। अगर आप किसी मीटिंग में बैठे हैं और एक अदना सा व्यक्ति जो न तो सम्पन्न है, न किसी संस्था या संगठन का अध्यक्ष या मंत्री है, लेकिन वह विलम्ब से पहुँचा है तो आपका कर्त्तव्य है कि आप खड़े होकर उसका सम्मान करें। ऐसा करके आप स्वयं सम्मानित होंगे। जो भी आपके द्वार पर आए उसे सम्मान दें, फिर चाहे वह आपका शत्रु ही क्यों न हो । फ्रांस के सम्राट हेनरी अपने सभासदों के साथ राजमार्ग से जा रहे थे । उन्होंने देखा एक भिखारी सड़क पर खड़ा है। राजा को देखकर वह सड़क पर खड़ा हो गया। राजा के निकट आने पर उसने अपनी टोपी उतारी और राजा को प्रणाम किया। सम्राट ने जब यह देखा तो वे अधिकारियों के साथ पांच सैकण्ड के लिए वहीं खड़े हो गए और उन्होंने भी अपनी टोपी उतारी और भिखारी को प्रणाम किया। अधिकारियों में फुसफुसाहट हुई कि यह क्या, हमारे सम्राट भिखारी को भी प्रणाम करते हैं ? सम्राट ने सुना तो कहा 'मैं यह उदाहरण नहीं छोड़ना चाहता कि हेनरी भिखारी से निम्न स्तर का है कि भिखारी उसे प्रणाम करे, उसका सम्मान करे तो क्या हेनरी किसी भिखारी को सम्मान देना नहीं जानता ?' इसलिए याद रखें कि भले ही आप सत्तासीन हों, सम्पन्न हों, ऊँचे पद 84 For Personal & Private Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पर हों लेकिन सबसे पहले मनुष्य हैं और मनुष्य होने के नाते एक-दूजे को सम्मान अवश्य दें। किसी दूसरे का किया गया सम्मान स्वयं अपना ही सम्मान है। बोलें प्यार की बोली ___ मनुष्य होने के नाते आपका कर्त्तव्य है कि आप औरों के साथ सभ्यता से पेश आएँ, फिर वह आपकी पत्नी या संतान ही क्यों न हो। आपकी पत्नी आपकी अर्धांगिनी है. सम्मानपूर्वक आप उसे अपने घर लाए हैं उसे भी 'तुम' न कहें, शालीनतापूर्वक व्यवहार करें। हो सके तो अपने बच्चों को भी 'आप' कहिए। अगर आप घर में 'आप' की भाषा बोलते हैं तो घर में सभी 'आप' और सम्मान की भाषा बोलेंगे और आप घर में 'तूतू, मैं-मैं' की भाषा बोलते हैं तो घर का हर सदस्य बातचीत में 'तू-तू, मैं-मैं' का ही प्रयोग करेगा। हमारी एक साधिका बहिन है, अंजु जी गर्ग। उनकी भाषा की शिष्टता गजब की है। हर किसी को प्रभावित करता है उनका वाणी व्यवहार । इस युग में जहाँ पति-पत्नी भी एक दूजे को तुम कहते हैं । लोग अपने बड़े भाई-बहिन को भी तुम कहते हैं, वहाँ वे अपनी सन्तानों को भी आप कहती हैं। कोई अपने से छोटा भी क्यों न हो, पर उसके साथ भी व्यवहार तो सम्मानपूर्वक ही होना चाहिए। हमें इतना महान होना चाहिए कि नौकर के साथ भी हम सम्मानपूर्ण भाषा का प्रयोग करें। अरे नौकरी करना तो उसकी मजबूरी है वरना वह भी तुम्हारा मालिक बन सकता था। ____ मुझे याद है-मुम्बई में एक भिखारी सड़क के किनारे बैठा था। तभी उधर से एक सम्पन्न व्यक्ति निकला। भिखारी ने कहा, 'माई-बाप कुछ दीजिए।' उस व्यक्ति ने झल्लाकर कहा, 'हुंह, बैठ जाते हैं भीख मांगने, भीखमंगे कहीं के थोड़ी गालियाँ भी दी और कहा 'मेरी दुकान पर आकर बैठ, कुछ काम कर, तीस रुपये रोज के दे दूंगा।' भिखारी बोला, 'साहब आप तीस रुपये की बात करते हैं। आप मेरी दुकान पर मेरे साथ बैठ जाओ मैं आपको 85 For Personal & Private Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साठ रुपये रोज के दूंगा।' अब सम्पन्न व्यक्ति का चेहरा देखने लायक था। मैंने देखा एक व्यक्ति की विचित्र आदत थी। कोई व्यक्ति अगर उनसे मिलने घर आता तो वे उसे भोजन का आग्रह करते और वह जब भोजन करते हुए दो कौर भी नहीं खा पाता तो कहते – 'अच्छा हुआ आपने खाने की हाँ कर ली मैं अभी ये खाना कुत्तों को ही डाल रहा था।' तुम भोजन कराकर भी अपनी ओछी वाणी के चलते उसे राख कर देते हो। सभी को सम्मान देना सीखो। भिखारी को देने के लिए तुम्हारे पास कुछ नहीं है तो कम-से-कम प्रेम भरे दो बोल तो बोल सकते हो। प्रेम के मीठे दो बोल तुम्हारी दो रोटियों से भी ज्यादा मूल्यवान होंगे। ___आप किसी को मान नहीं दे सकते तो कम-से-कम अपमान की भाषा तो मत दीजिए। याद रखें, एक दिन अपमानित उसी को होना होता है जो दूसरों को अपमानित करता है। सफल लोग अपने व्यवहार को खुशनुमा और आकर्षक बनाने का प्रयास करते हैं। मैं कहना चाहता हूँ, यही प्रार्थना भी करता हूँ कि भले ही ईश्वर हमारे प्रवचन की चमक को कमजोर कर दे, लेकिन हमारी शालीनता को कभी हमसे न छीने। ऐसा न हो कि कोई सम्पन्न आए तो उसके सम्मान में गलीचे बिछा दें और गरीब या मध्यम वर्गीय आए तो बैठने के लिए भी न कहें । कम-से-कम संतों के द्वार तो सभी के लिए समान रूप से खुले रहने चाहिए। अगर मंदिरों और संतों के द्वार पर भी संपन्न और निर्धन की भेदरेखा बनी रहेगी तो आम लोग धर्म से दूर होते जाएंगे। मैं संतों से निवेदन करता हूँ कि वे मानवता का सम्मान करें केवल पैसे वालों के पिछलग्गू न बनें। पैसे वाला प्रसन्न होगा तो तुम पर थोड़ा पैसा खर्च कर देगा, पर अगर गरीब को भी प्रसन्न रखोगे तो वह श्रद्धा से भरा हुआ अपना सब कुछ तुम पर कुर्बान करने को तैयार हो जाएगा। कोई द्वार तो ऐसा हो जहाँ निर्धन को भी पूरा सम्मान मिले। सम्पन्न तो जहाँ जाएगा सम्मानित हो जाएगा, लेकिन हमारे व्यवहार की शालीनता ऐसी हो कि हमारे द्वार पर अगर कोई गरीब, विधवा, NANGER DANGER DANGER OANG 86 For Personal & Private Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विकलांग, दुःखी, पीड़ित व्यक्ति आ जाए तो निराश होकर न जाए। खाली नहीं, खुला रखें दिमाग ___ व्यक्ति अपने उठने-बैठने, चलने-फिरने, बोलचाल, व्यवहार में शालीनता का ध्यान रखता है तो यही उसकी कुलीनता है। अच्छा जीवन इन्सान के अच्छे नज़रिये से, अच्छे तौर-तरीके और अच्छे व्यवहार से बनता है। केवल सुन्दर पहनावा, सुन्दर जूते, आकर्षक शृंगार मात्र दो घंटे के लिए आपकी सुन्दरता को बढ़ा सकते हैं, लेकिन अच्छा व्यवहार सदा सुंदर बनाए रखता है। गोरा रंग तीन दिन और अधिक धन तीस दिन अच्छा लगता है। उसके बाद व्यक्ति न तो रंग के साथ जीता है, न धन के साथ, वह तो व्यवहार के साथ जीता है। गोरा पति या पत्नी थोड़े समय ही अच्छे लगते हैं, धन भी कुछ देर तक साथ निभा देता है, लेकिन अंतत: तो स्वभाव और अच्छा व्यवहार ही साथ रहने योग्य रहता है। काली पत्नी चलेगी बशर्ते उसका स्वभाव और व्यवहार अच्छा हो ।वह गोरा पति या पत्नी किस काम के जो झगड़ालू, कषायग्रस्त, वैर-विरोध की गाँठ बांधे रहें और सदा गुस्से से भरे रहें । वे तो उस चूने की तरह हैं जो दिखने में सुंदर-सफेद हैं, पर एक चम्मच मुँह में डालो तो अक्ल ठिकाने पर आ जाती है। जीवन में रंग-रूप और धन की इतनी कीमत नहीं है जितनी कि नेक व्यवहार, श्रेष्ठ आचार और निर्मल विचारों की है। चरित्र और व्यवहार में मेलजोल बनाएँ। जीवन में खाली नहीं, खुले दिमाग़ के रहें । हर किसी की बात को खुले दिमाग़ से सुनो फिर चाहे उसे स्वीकारो या न स्वीकारो, पर सुनने के लिए दिमाग़ खुला तो रखो। अच्छाई मेरी तो बुराई भी व्यक्ति अपने व्यवहार से अपनी शख्सियत को प्रभावी बना सकता है। बेहतर जीवन और प्रभावी शख्सियत के निर्माण के लिए आवश्यक है कि आप अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन करें। जो आपकी ज़वाबदारियाँ हैं उनसे मुँह मोड़ने की बजाय उन्हें पूरा करने की कोशिश करें। अपने घर में हर अच्छे कार्य का श्रेय अगर आप लेना चाहते हैं तो 87 For Personal & Private Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जब कुछ बुरा घट जाए तो उसकी जिम्मेदारी भी आप ही लेना। अच्छे कार्य का श्रेय तो सभी लेना चाहते हैं, लेकिन बुरा काम दूसरे के नाम मढ़ देते हैं। ऐसा कभी न करें। उस बुरे या गलत काम की जिम्मेदारी आप स्वीकार करें, दूसरों पर न डालें। ध्यान रखें, घर में कभी किसी पर इल्ज़ाम लगाने की कोशिश न करें। अपने आप को बचाने के लिए सास-बहू पर, देवरानी जेठानी पर, जेठानी ननद पर, ननद भाभी पर दोष लगाती हैं। आप ऐसा कभी न करें। दसरे पर दोष लगाने की बजाय अपनी सोच को बेहतर बनाते हुए अपनी जिम्मेदारी खुद समझें। अगर ग़लती हो गई है तो जिम्मेदारी उठाएँ। माता-पिता को दोष न दें। भगवान को भी दोष न दें कि उसने किस माँबाप के घर में पैदा कर दिया। अपने ग्रह और नक्षत्रों को भी दोष न दें किसी ग़लत काम के लिए। देखता हूँ, अगर किसी व्यक्ति को अपने धंधे में नुकसान हो जाए तो सीधा ज्योतिषी के पास जाता है, और ज्योतिषी जन्मपत्री देखकर कह देता है, तुम्हारे शनि की महादशा थी इसलिए नुकसान लगा, फिर आदमी अपने नुकसान का सारा दोष शनि के मत्थे मंडता है। परिणामतः वह उस नुकसान से कभी उबर नहीं पाता। अच्छा होता, वह किसी शनि की दशा को दोष देने की बजाय अपनी कार्यशैली के दोषों को मिटाता तो शीघ्र ही वह घाटे से उबर जाता। अपने काम की जिम्मेदारी खुद लें। अगर ग़लत काम आपके द्वारा हुआ है तो किसी शनि की महादशा को दोष देने की बजाय अपनी सोच और कार्यशैली के दोष को पहचानें । जो अपनी जिम्मेदारी स्वीकार नहीं करता वह जीवन के हौंसले से पस्त हो जाता है। मुझे याद है - घर में अलमारी का काँच फूट गया। सास ने बहू से पूछा बेटा, यह काँच किसकी गलती से फूटा।' बहू ने कहा 'मम्मी! यह काँच तो आपके बेटे की गलती से फूटा।' सास ने कहा बेटे की गलती से ? बताओ तो क्या हुआ, वह काँच से क्या कर रहा था।' 'मैं गुस्से में थी', बहू ने कहा मैंने आपके बेटे को मारने के लिए बेलन फेंका, आपका बेटा नीचे झुक गया तो बेलन काँच पर जा लगा। ग़लती सरासर आपके बेटे की ही है।' 88 For Personal & Private Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपनी ग़लती को व्यक्ति स्वीकार नहीं कर रहा है । उसकी ज़वाबदारी और ज़िम्मेदारी दूसरे पर डाल रहा है। जीवन में अपने द्वारा होने वाली ग़लती को स्वीकार करने की आदत डालें | हज़ार तरह के बहाने बनाकर और जैसेतैसे अपनी ग़लती को ढँकने की कोशिश न करें। ग़लती किसी से भी हो सकती है । ग़लती न करे वो भगवान है, पर जो ग़लती कर सुधर जाए वो नेक इंसान ही कहलाएगा। सबके सुख में मेरा सुख । व्यवहार को प्रभावी बनाने के लिए दूसरा क़दम है -- दूसरों के प्रति हितकारी सोच | हमेशा अपने लिए ही न सोचें । यह हमारे विचार और व्यवहार को दोष है कि हम अपने बीवी-बच्चे और परिवार की तो सोचते हैं लेकिन दूसरों के बारे में नहीं सोचते । एक परिवार में बाज़ार से ब्रेड मंगवाई गई । उस पैकेट को जब खोला तो उसमें दुर्गंध आ रही थी। उसने अपनी बीवी-बच्चों को हिदायत दी कि ब्रेड न खायें। साथ ही कहा कि बाहर जो भिखारी बैठा है उसे ले जाकर दे दो। क्या आपके भीतर जरा भी इन्सानियत है ? सुबह की दाल, गर्मी के कारण खट्टी हो गई। आप कहते हैं कि फेंकना मत, कोई भिखारी जा रहा हो तो उसे दे देना। सावधान ! कहीं पुण्य के नाम पर हम पाप तो नहीं कमा रहे हैं। जो चीज तुम खुद नहीं खा सकते, अपने बच्चे को नहीं खिला सकते वह किसी निर्धन के बच्चे को खिलाकर उसे बीमार करने की कोशिश कर रहे हो । अगर तुम देना ही चाहते हो तो वही दो जिसका तुम खुद उपयोग कर सको । बची हुई रोटी देने तक की सोच न रखें। जब आटा भिगोओ तब तुम उसमें दो मुट्ठी आटा ज्यादा भिगोना और उसकी रोटी किसी ग़रीब भिखारी को दे देना, तुम्हारे तो आटे के डिब्बे भरे हैं, अतः दो मुट्ठी आटा निकालने पर फ़र्क नहीं पड़ेगा, पर उस ग़रीब के तो दो रोटी में काफ़ी फ़र्क पड़ जाएगा। अमेरिका में एक बालक आइसक्रीम की दुकान पर गया और आइसक्रीम की कीमत पूछी तो वेटर ने बताया पिचहतर सेंट। बालक ने अपनी जेब में हाथ डाला तो पाया उसके पास पिचहतर सेंट ही है। उसने कहा ' क्या और छोटा कप 89 For Personal & Private Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ या कॉन नहीं है ?' वेटर ने कहा 'हाँ है, पैंसठ सेंट का ' । बालक ने पैंसठ सेंट वाली आइसक्रीम के कप का ऑर्डर दिया। बच्चे ने आइसक्रीम खाई और चला गया। वेटर जब खाली कप और प्लेट उठाने आया तो देखा कि प्लेट में दस सेंट रखे हुए हैं । आप अपने कल्याण और सुख की सोचने के साथ दूसरों के हित का भी ध्यान रखें। हमारे सभी शास्त्र, वेद, उपनिषद और आगम यही तो पाठ दे रहे हैं कि हम केवल अपने सुख की कामना तक सीमित न रहें, बल्कि अपने जीवन में 'सर्वे भवन्तु सुखिन: ' की कामना लेकर चलें। हम अपने मानवीय दृष्टिकोण को उदात्त करें । यह अच्छा है कि आप समाज के मंच पर खड़े होकर पाँच लाख का दान करते हैं पर हमारे नौकर की पत्नी अगर बीमार हो जाए और वो हमसे बीस हजार रुपये पत्नी के इलाज के लिए उधार मांग ले तो हमें देने में क्यों हिचकिचाहट होती है ! न लौटेंगे शब्दों के तीर व्यवहार को प्रभावी बनाने के लिए तीसरी बात है कि शब्दों का चयन सावधानी से करें । हर बात सोचने की तो होती है पर हर बात कहने की नहीं होती । बुद्धिमान सोचकर बोलता है और बुद्धू बोलकर सोचता है। इससे अधिक फर्क नहीं है बुद्धिमान और बुद्ध में । इसलिए बोलने में अपने शब्दों का चयन सावधानीपूर्वक करें। सतर्कतापूर्वक करें। जीभ तो आपकी अपनी है और इस पर नियंत्रण भी आपको ही रखना पड़ेगा। हमारी एक जीभ की रक्षा बत्तीस पहरेदार करते हैं लेकिन जीभ का अगर ग़लत उपयोग कर लिया तो बत्तीस पहरेदार (दाँत) भी संकट में पड़ जाएँगे। यह अकेली बत्तीसी को तुड़वा सकती है। इसलिए ग़लत टिप्पणी न करें और न ही व्यंग्य में अपनी बात को पेश करें। किसी को आप खाने में चार मिठाई भले ही न खिला सकें लेकिन आपके चार मीठे बोल खाने को जायकेदार बना देंगे। वाणी का बेहतर उपयोग करना सीखें, क्योंकि मुँह से निकले हुए शब्द कभी लौटाये नहीं जा सकते हैं । 90 For Personal & Private Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुझे याद है कि एक किसान ने अपने पड़ौसी की खूब निन्दा की, अनर्गल बातें उसके बारे में बोली। बोलने के बाद उसे लगा कि उसने कुछ ज्यादा ही कह दिया, गलत कर दिया। वह पादरी के पास गया और बोला 'मैंने अपने पड़ौसी की निन्दा में बहुत उल्टी-सीधी बातें कर दी हैं, अब उन बातों को कैसे वापस लूँ?' पादरी ने वहाँ बिखरे हुए पक्षियों के पंख इकट्ठा करके दिये और कहा शहर के चौराहे पर डालकर आ जाओ। जब वापस आ गया तो पादरी ने कहा, 'अब जाओ और इन पंखों को वापस इकट्ठा करके ले आओ।' किसान गया, लेकिन चौराहे पर एक भी पंख नहीं मिला। सब हवा में तितर-बितर हो चुके थे। किसान खाली हाथ पादरी के पास लौट आया। पादरी ने कहा, 'यही जीवन का विज्ञान है कि जैसे पंखों को इकट्ठा करना मुश्किल है वैसे ही बोली हुई वाणी को लौटाना हमारे हाथ में नहीं है। जैसे कमान से निकला हुआ तीर वापस नहीं लौटता वैसे ही मुंह से निकले हुए शब्द कभी वापस नहीं लौटाये जा सकते ।' सत्य बोलें, पर मधुर बोलें। ऐसे सत्य को भी कम बोलने का प्रयास करें जो दूसरे की भावना को ठेस पहुँचाए। कभी दूसरों की कमज़ोरी का मज़ाक न उड़ायें। व्यंग्य भरी भाषा से बचें। आप नहीं जानते आपका छोटा-सा व्यंग्य सामने वाले के लिए बाण का काम कर सकता है और वह जीवन भर के लिए आपसे गाँठ बाँध सकता है। हर सास इस बात का ध्यान रखे कि अपनी बह से कभी व्यंग्य में न बोलें। आप बहू के पीहर के लिए छोटी-सी टिप्पणी करते हैं पर उसके लिए वह बाण का काम कर सकता है। अगर आपकी बहू ग़रीब घर से आयी हो तो भी उसे बातों में उसके पीहर की गरीबी याद न दिलायें। महाभारत का कारण केवल जुआ या चीर-हरण ही नहीं था, अपितु द्रौपदी की वह व्यंग्यात्मक टिप्पणी थी जिससे दुर्योधन के मन में द्रौपदी के प्रति विरोध की गाँठ बँधी। ज़मीन पर चलते समय पानी का भ्रम और पानी में उतरते समय ज़मीन का भ्रम, दुर्योधन चूक खा जाता है और द्रौपदी बोल पड़ती है अंधे का बेटा अंधा होता है। दुर्योधन को यह बात 91 For Personal & Private Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ HARE बाण की तरह चुभती है और वह द्रौपदी के अपमान के लिए विद्वेष की गाँठ बाँध लेता है। पालें कोच' की सोच व्यवहार को प्रभावी बनाने के लिए चौथा गुर है कि आप कभी किसी की आलोचना न करें। न तो औरों की आलोचना करें न ही दूसरों के द्वारा की जा रही आलोचना सुनें। ध्यान रखें, जो आज आपके सामने किसी की आलोचना कर रहा है कल वह दूसरों के सामने आपकी आलोचना भी कर सकता है। अगर आपको परिवार के किसी व्यक्ति की गलती दिखाई देती है तो आलोचना करने के बजाय 'कोच' बनने की कोशिश करें। जैसे खेल का कोच टोकता है, समझाता भी है, खेलने के गुर भी सिखाता है, इशारे भी देता है और आलोचना भी करता है, लेकिन उसका लक्ष्य, उसकी सोच, उसकी मानसिकता खिलाड़ियों को बेहतर बनाने की होती है। आप भी ऐसे ही कोच कताकि व्यक्ति बेहतर जीवन जीने का मार्ग खुद को भी और औरों को भी दे सके। मुझमें कमियाँ आप निकाल सकते हैं और आप में मैं कमियाँ निकाल सकता हूँ। यह तो नज़रिया है कि व्यक्ति महान से महान पुरुष में भी कमियाँ निकाल सकता है और कमज़ोर से कमज़ोर व्यक्ति में भी विशेषताओं को ढूँढ सकता है। ___ आप लोग मेरी यह सफेद चादर देख रहे हैं न, दो मिनट में यह काली हो सकती है, कैसे? बस आप अपनी आँखों पर काला चश्मा चढ़ा लीजिए, हो गई न काली! सामने वाला न तो सफेद है न काला है; वह तो जैसा है वैसा ही है। फ़र्क आपकी नज़रों का है कि आप उसे कैसे देखते हो। नज़ारा वैसा बनता है जैसी हमारी नजरें होती हैं। इसलिए नज़रों को न बिगाड़ें। किसी को देखकर, किसी के साथ रहकर, किसी के साथ जीकर, किसी के साथ अपने आपको जोड़कर व्यक्ति अपनी नज़रों को हमेशा निर्मल बनाने की कोशिश करे। कहना भी हो तो अकेले में कह दें ताकि आलोचना न हो और उसे सुधरने का अवसर मिल सके। 92 For Personal & Private Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहते हैं बीरबल ने अकबर का बहुत सुंदर चित्र बनाया और अकबर को भेंट कर दिया। अकबर ने अपने अन्य प्रिय सभासदों को वह चित्र दिखाया और कहा -- देखो, इसमें कुछ कमी है क्या ? एक ने वह चित्र देखा और एक गोल बिंदी बनाई कि इसमें यहाँ कमी है, दूसरे ने भी कहीं कमी बताई, तीसरे ने कहीं और गोला बनाया कि यहाँ कमी है और दरबार के उन आठों रत्नों ने आठ जगहों पर निशान लगाए कि यहाँ-यहाँ कमी है। बीरबल सारी बातें चुपचाप सुनता रहा। जब जहाँपनाह ने वह चित्र बीरबल को वापस दिया और कहा, 'देखो इन लोगों ने इस चित्र में यहाँ-यहाँ कमी दिखाई है।' बीरबल ने कहा, 'जहाँपनाह इस चित्र को तो छोड़िये। मैं अपने साथ आठ कोरे कागज़ लाया हूँ और आप ये कागज़ इन्हें दे दीजिए और कहिये कि ये सभी एक-एक चित्र बनाएँ। तब पता लगेगा कि चित्र बनाना क्या होता है और चित्र में कमी निकालना क्या होता है।' व्यक्ति चित्र तो नहीं बना सकता लेकिन चित्र में कमियाँ निकाल सकता है। कृपया अपनी इस आदत को सुधारिये। न तो अज्ञानतावश और न ही ईर्ष्यावश, किसी की आलोचना मत कीजिये। मुस्कुराएँ जी भरकर व्यवहार को प्रभावी बनाने की अगली सीढ़ी है सदा मुस्कुराते रहें और अपने हृदय में दयालुता के भाव अवश्य रखें। मुस्कान का आदान-प्रदान जीवन की मुस्कान का राज है। जीवन की मधुरिमा मुस्कान में छिपी है। सुबह उठकर सबसे पहला काम करें एक मिनट तक तबीयत से जी भरकर मुस्कुराएँ। जो मुस्कान में जीता है और अपनी ओर से मुस्कान बाँटता है, उसका जीवन परमात्मा का पुरस्कार बन जाता है। हाँ, कभी भी किसी घटना को मानसिक तनाव न बनाएँ। जो होना था सो हुआ। होनी को टाला नहीं जा सकता, अनहोनी को किया नहीं जा सकता। फिर व्यर्थ की चिन्ता क्यों पालें। फिर हम अपने स्वभाव को क्यों चिड़चिड़ा बनाएं, क्यों हर समय बिसूरते रहें ? मुस्कुराते रहें और सोचें कि जो मिला है सो अच्छा मिला है। जीवन में होने वाले हर अनुकूल प्रतिकूल वातावरण को प्रेम से 93 For Personal & Private Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ स्वीकार करें । सदैव स्वीकार करें जो होता है सो अच्छे के लिए होता है। अगर यह भी न स्वीकारें तो यह तो जीवन का सच है कि वही होता है जो होना होता है। 11 कहें तो सुनें भी अगला क़दम है : दूसरों के व्यवहार का हमेशा सही अर्थलगाएँ। किसी ने आपसे कोई बात कही है तो उसे सही अर्थों में ग्रहण करें। माना कि आपने किसी को फोन किया और वह नहीं मिला तो आपने संदेश दिया कि जब आएँ तब बात करा देना और किसी कारणवश वापस फोन नहीं आया तो आप रुष्ट हो गए कि उसने वापस फोन क्यों नहीं किया।नाराज़ न हों। संभव है सामने वाले ने फोन किया हो और न मिला हो। हो सकता है कि आपने जो नंबर दिये वह बच्चे ने ग़लत लिख लिया हो या हो सकता है कि सामने वाला व्यस्त रहा हो और यह भी हो सकता है कि उसे संदेश ही न मिला हो। इसलिए कभी भी किसी के व्यवहार का ग़लत अर्थ न निकालें। आपको अपनी बातें दूसरों से कहने की आदत है, तो दूसरों की बातें सुनने की भी आदत डालें। घर में बच्चा भी है, पत्नी-बहु, बेटी भी है। उनकी बातों को नज़र अंदाज़ न करें। उनकी बातें भी धैर्यपूर्वक, शांतिपूर्वक सुनने का प्रयास करें। अगर आप दूसरों की बात सुनने की आदत डालेंगे तो आपको उसका व्यवहार नहीं चुभेगा। खुले दिल से करें तारीफ़ सफल व्यवहार के लिए अगला सूत्र है -- जीवन में ईमानदारी से औरों की प्रशंसा करें। चापलूसी की कोशिश न करें। ग़लती सभी से होती है, लेकिन उन पर टिप्पणी करने के बजाय, उनकी प्रशंसा करने की उदारता दिखाएँ। जो ग़लती नहीं करता उसे भगवान कहते हैं और जो गलती करके सुधर जाता है उसे इन्सान कहते हैं, लेकिन जो ग़लती पर ग़लती करे उसे शैतान कहते हैं । हम 94 For Personal & Private Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ THANK YOU ... तो इंसान हैं, अपनी ग़लती को सुधारें और सच्चाईपूर्वक औरों की योग्यताओं की प्रशंसा करने की कोशिश करें। औरों की प्रशंसा करके ही अपने जीवन की प्रशंसा को पा सकते हैं। अपनी ग़लती को स्वीकार करने में सकुचाए नहीं। सावधानी रखें कि ग़लती न हो, फिर भी अगर ग़लती हो जाए तो उसे सहजता से स्वीकार कर लें। स्वीकार कर लेने से वह ग़लती न तो हमें कचोटती है और न ही घर के वातावरण को कलुषित करती है। जीवन में कभी किसी का मज़ाक न उड़ाएँ। याद रखें हमारे पास वापस वही लौटकर आता है जो हम अपने द्वारा आज किया करते हैं। जीवन और कुछ नहीं एक इको साउण्ड जैसी व्यवस्था है। हम जैसा बोलेंगे वापस वैसा ही आएगा। किसी लंगड़े, अंधे, बहरे, गूंगे, व्यक्ति की मज़ाक उड़ाने की बजाय अच्छा होगा, हम उसके सहयोगी बनें। अगर हम सहयोगी बनेंगे तो वापस भविष्य में कभी हमें सहयोग मिलेगा और मज़ाक करना वापस मज़ाक बनकर ही लौटेगा। एक व्यक्ति जो किसी अंधे व्यक्ति की अंधेरी जिंदगी को देखकर हँस तो सकता है पर उसका हमदर्द नहीं बन सकता। वह व्यक्ति आधे घंटे तक अपनी आँख के आगे पट्टी बाँधकर देखे तो अनुभव होगा कि किसी अंधे व्यक्ति की जिंदगी कैसी होती है। मैं तो कहँगा कि मज़ाक का भी एक सीमित मात्रा में उपयोग किया जाए ठीक वैसे ही जैसी सब्जी में नमक का उपयोग किया जाता है। सीमित मात्रा में डाला गया नमक जहाँ सब्जी में स्वाद देता है, वहीं बेहिसाब डाला गया नमक उसी सब्जी को बेस्वाद बना देता है। मज़ाक सलिके की हो तो चुभती नहीं है। नहीं तो कई बार कोई मज़ाक वैर की गाँठ का कारण बन जाता है और सामने वाला व्यक्ति वापस हमारी मज़ाक उड़ाने का अवसर ढूँढने लग जाता है। मुझे याद है सम्राट अकबर के मन में एक बार बीरबल की मजाक उड़ाने की सूझी और उन्होंने राजसभा में आते ही बीरबल से कहा, 'बीरबल ! आज 95 For Personal & Private Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैंने एक सपना देखा। मैंने देखा कि हम दोनों साथ-साथ जंगल में चल रहे थे। रास्ता भटक गए, रात जंगल में ही गुजारनी पड़ी और अंधेरे में जब हम रात को थोड़े चले तो मैंने देखा कि हम दो गड्ढों में गिर गए। मैं अमृत के गड्ढे में गिरा और तुम कीचड़ के गड्ढे में ।और जैसे ही हम दोनों गड्ढे में गिरे, मेरा सपना टूट गया।' अकबर का इतना कहना था कि सभासदों ने जोरदार तालियाँ बजाई और बीरबल की मजाक उड़ाने लगे। अब बारी बीरबल की थी। उसने कहा--जहाँपनाह ! सपना तो जो आपने देखा, हू-ब-हू वैसा ही सपना मैंने भी देखा, पर मैंने देखा कि अपन दोनों गड्ढ़े में से बाहर आये और मैं आपको चाटने लगा और आप मुझे ...... । बीरबल की बात सुनकर सभासद झेंप गए और अकबर का मुँह देखने लायक था। ___ याद रखो तुम किसी की मजाक उड़ाओगे तो वापस तुम्हारे साथ वैसा ही होने वाला है। तर्क करें, तक़रार नहीं ___अगला पाठ है, तर्क भले ही करें, पर तकरार न करें। आप समाज में उच्च पदस्थ हैं तो अपनी बात ज़रूर रखें, तर्क के साथ रखें, पर उसे बहस पर ले जाकर तक़रार करना ओछापन है। अपनी बात सम्मानपूर्वक शालीनता के साथ औरों के सामने पेश करें, लेकिन अपनी बात को सिद्ध करने के लिए कुतर्क करने की बजाय सहज रूप से पेश करें। अगर आप सही हैं तो कोई माने या न माने उसकी मर्जी। आप बहस करेंगे तो आग ही निकलेगी और वहीं तर्क से रोशनी निकलेगी। आपकी बात में तर्क और बुद्धि की रोशनी तो हो लेकिन तक़रार और बहस की आग न हो। अपने विचारों को खुला रखें, व्यर्थ की बहसबाजी और तक़रार में न उलझें। एक व्यक्ति सुअर से कुश्ती लड़ने गया। अब अगर वह जीतेगा तो भी कपडे गंदे होंगे और हारेगा तो भी कपडे गंदे होंगे। सूअर से कुश्ती लड़ोगे, तो उसका कुछ न बिगड़ेगा। हार और जीत में कपड़े तो तुम्हारे ही गंदे होंगे। ऐसी कुश्ती का क्या लाभ जिसमें तुम्हारे कपड़े गंदे हों। 96 For Personal & Private Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पिछले दिनों हम जयपुर में थे। वहाँ एक महानुभाव बहुत-सी संस्थाओं से जुड़े हुए किसी के अध्यक्ष थे, किसी के मंत्री। मैंने पूछा, 'आप इतनी संस्थाओं को कैसे संभालते हैं, इन सबके बीच अपने मन को कैसे शांत रख पाते हैं और कैसे समझाते हैं।' उन्होंने कहा, 'मैं ऐसी मीटिंग में ही बैठता हूँ जो शांतिपूर्वक सम्पन्न होती है। अगर कोई भी जोर से बोलता है तो मैं वहाँ से खड़ा हो जाता हूँ। मीटिंग का मूल्य है, समाज का मूल्य है, उस व्यक्ति का भी मूल्य है पर उससे भी ज्यादा मूल्यवान मेरे मन की शांति है। जहाँ मेरे मन की शांति भंग होती है मैं ऐसी सभा में बैठना पसंद नहीं करता। उस सभा से मैं निकल आता हँ और कह आता हूँ कि जब आप शांत हो जाएँ तो मुझे बुला लेना।' बहस, तर्कबाजी और व्यर्थ में किसी बात को घसीटना कब तक करोगे। सारी दुनिया को सुधारने का ठेका तुमने तो नहीं ले रखा है। अगर किसी को तुम्हारी बात नहीं माननी तो कब तक घसीट-घसीट कर मनवाने की कोशिश करोगे। एक व्यक्ति से किसी ने पूछा 'तुम्हारा नाम क्या है ?' उसने कहा 'घ.....घ......घ...... घसीटाराम' फिर उसने पूछा 'तुम्हारा क्या नाम है?' पहले वाले ने कहा 'नाम तो मेरा भी घसीटाराम है, पर मैं इतना घसीट कर नहीं बोलता।' ___ बात तो आप भी कहते हैं और मैं भी करता हूँ फ़र्क सिर्फ इतना है कि घसीट-घसीट कर हम बात को कमज़ोर कर देते हैं और जब किसी बात का अधिक दबाव बनाते हैं, तर्क करते हैं तो बात तक़रार में बदल जाती है। नरम लफ़्ज़ों में ठोस बात कहें, लेकिन कड़े लफ़्ज़ों में कभी भी ओछी बात न कहें। पीठपीछे भी तारीफ़ . व्यवहार के आईने को साफ-सुथरा रखने के लिए अगली बात है कि किसी के के बारे में पीठ पीछे टिप्पणी न करें। यह आपके व्यवहार का दोष है। जब सामने वाले व्यक्ति को ख़बर लगती है 97 For Personal & Private Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो वह मानसिक रूप से आपसे टूटता है । अगर आपको कहना है तो उसी के सामने सम्मानपूर्वक अपनी बात कहें, क्योंकि हो सकता है कि दूसरे के सामने आपने उसकी बात की, उसने किसी दूसरे से कही और उसने उसी व्यक्ति को जाकर कह दी, जिसके संबंध में आपने कहा था। चार मुँह से निकली बात मिर्च-मसाले के साथ संबंधित व्यक्ति तक पहुँचेगी तो आपकी छवि का क्या हश्र होगा। आपके संबंधों में दरार आ सकती है और आपका व्यवहार कमज़ोर हो सकता है । निभाएँ प्रतिज्ञा और वचन को प्रभावी शख़्सियत के लिए जरूरी है कि अपने द्वारा किये गए वायदों को ज़रूर पूरा करें। अगर आप वचन देते हैं तो उसे पूर्ण करने की जिम्मेदारी निभाएँ। जीवन में दिए गए वचन पूर्ण करने के लिए हैं । आपकी बुद्धिमत्ता इसी में है कि वचन देने के पहले हजार दफा सोच लो । अपने दिए गए वचन को मरकर भी निभाने की कोशिश करें । ली गई प्रतिज्ञा और दिये गये वचन हर हालत में निभाए जाने चाहिए । अपनी ओर से अगली बात कहना चाहता हूँ : आप अहसानमंद रहें पर किसी पर अहसान जतलाने की कोशिश न करें। जीवन में किसी से पाकर कभी कृतघ्न न बनें और किसी का कुछ करके उससे कृतज्ञता की अपेक्षा भी न करें । नेकी कर, दरिया में डाल - किसी का कुछ करो, तो इसी भावना से । बेवक्त में काम आएँ जीवन का अगला क़दम है कि भरोसेमंद बनें और वफ़ादारी निभाने की कोशिश करें । जब जिसके साथ कोई बात कही गई, कोई करार किया तो विपत्ति से विपत्ति की वेला में भी प्राणप्रण से उसके मददगार बनिये और उसके काम आने की कोशिश कीजिए। यह होगी आपकी वफ़ादारी और भरोसे का इम्तहान । जीवन में कभी किसी से द्वेष न रखें, क्षमा करें और कड़वी बातों को भूल 98 For Personal & Private Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ TV जाएँ। आप राग को नहीं छोड़ सकते, कोई बात नहीं, पर किसी के प्रति द्वेष न पालें। अपनी ओर से क्षमा करें और ग़लत वातावरण, अशुभ व्यवहार को जीवन में भूलने की कोशिश करें। सच्चाई, ईमानदारी, निष्कपट व्यवहार के साथ जीवन जीएँ। प्रभावी व्यवहार का अंतिम सूत्र है कि अपने जीवन में सदा विनम्र बने रहें। जो जितना महान होता है, वह उतना ही विनम्र होता है। कैरी जब तक कच्ची होती है तब तक अकड़कर रहती है लेकिन जैसे ही वह रस से भरती है, माधुर्य से भरती है, कैरी चुपके-चुपके आम बन जाती है और धीरे से झुक जाती है। ___ ये जीवन की गीता के अध्याय हैं, सूत्र हैं, जो मैंने आपके सम्मुख रखे हैं। आप अपने जीवन में इन्हें उतारेंगे तो निश्चय ही आप बन सकेंगे प्रभावी शख्सियत के मालिक। 99 For Personal & Private Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन को निर्मल बनाने के सरल उपाय मधुर वचनों से प्रेम के पुल निर्मित होते हैं, वहीं कटु वचन से द्वेष की दीवारें । हमारा जीवन प्रकृति का अनमोल उपहार है । प्रकृति के लिए सूरजचांद-सितारे-आसमान का मूल्य है। नदी - झील-झरनों का मूल्य है, पर्वत और वन-सम्पदा का मूल्य है, लेकिन इन सबसे भी कहीं अधिक संपूर्ण ब्रह्माण्ड में हमारा जीवन ही बहुमूल्य है । वह जीवन जिसके रहने पर पृथ्वी ग्रह की उपयोगिता है और जिसके न रहने पर पृथ्वी केवल पानी और ज़मीन का विशाल भाग भर रह जाएगी। जीवन के होने से ही मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और गिरिजाघरों का मूल्य है । जीवन स्वयं मंत्र हमने अपने जीवन में देवी-देवताओं की आराधना के लिए मंत्रों का जाप किया है, किसी ने शक्ति की भक्ति की है। किसी ने दुर्गा की पूजा की है, किसी ने महावीर और बुद्ध की उपासना की है तो किसी ने राम और कृष्ण के मंत्र का जाप किया है । पर हमने अपने जीवन में छिपी हुई शक्तियों को कभी पहचानने 100 For Personal & Private Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की कोशिश नहीं की है। ____ मैं मानता हूं नवकार मंत्र का मूल्य है, गायत्री मंत्र का भी मूल्य है, मैं यह भी जानता हूं कि संसार में जितने मंत्र हैं उन सभी का मूल्य है, पर आप यह सोचें कि अगर जीवन ही न रहा तो इन मंत्रों का क्या उपयोग होगा। आज जब हम जीवन के बारे में समझने का प्रयास कर रहे हैं तो समझेंगे कि जीवन के ऐसे कौनसे मंत्र होते हैं जिन्हें अगर हम जिएँ, जिह्वा से गुनगुनाएं, कानों से श्रवण करें, आंखों से देखें और जीभ से चखें तो मंत्र हमारे जीवन का कायाकल्प कर सकते हैं। ये वे मंत्र हैं जो हमारे जीवन की दशा और दिशा बदल सकते हैं । जीवन का पुनरुद्धार कर सकते हैं। संसारका मायाजाल ___ वृक्ष की जड़ें जैसे जमीन में होती हैं, मैं देख रहा हूं कि मनुष्य की जड़ें भी वैसे ही संसार में फंसी हुई हैं। व्यक्ति अभी तक अपने जीवन का कोई मार्ग तय नहीं कर पाया है। वह चला जा रहा है, क्योंकि चलने का रास्ता सामने है। जीवन के प्रति लोगों का कोई साफ-साफ दृष्टिकोण नहीं है कि वे कहाँ पहुँचना चाहते हैं, क्या बनना चाहते हैं, क्या पाना चाहते हैं और जिंदगी में क्या होना चाहते हैं। जैसे-जैसे वृक्ष बड़ा होता है, उसकी जड़ें गहरी होती हैं, वैसा ही मनुष्य के भी साथ होता है। वह जैसे-जैसे उम्र से बढ़ता जाता है उसकी जड़ें भी संसार में गहरी होती जाती हैं। परिणामतः जो व्यक्ति शांति पाने की कोशिश करता है, उसे अशांति मिलती है। जो मुक्ति पाने की कोशिश करता है उसे संसार की धारा मिलती है। व्यक्ति जो महानताओं को पाना चाहता है, क्षुद्र तत्वों और वस्तुओं के मायाजाल में उलझकर रह जाता है। आज व्यक्ति के लिए धर्म पूजा-पाठ और आराधना का निमित्त तो ज़रूर है पर यह बाह्य धर्म मनुष्य के मन को शांति नहीं दे पा रहा है। देखता हूं, चालीस साल तक मंदिर में पूजा करने वाला व्यक्ति जब हमारे 101 For Personal & Private Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पास आता है तो कहता है क्या बताऊं, मन में अभी भी शांति नहीं है । ये वर्षों से सामायिक करने वाले भाई और बहनें भी यह कह रहे हैं कि मन में शांति नहीं है । और तो और तीस साल से संत का जीवन जीने वाला व्यक्ति भी इसी उधेड़बुन में है कि मन में शांति नहीं है । धर्म तो वास्तव में जीवन को सुख और शांति से जीने की कला ही देता है । व्यक्ति के जीवन की निर्मलता में ही धर्म और शांति छिपी है । जितना साफ सुथरा घर के देवालय या मंदिर के मूल गर्भगृह को रखने की कोशिश करते हैं, हम अपने जीवन के देवालय को भी उतना ही निर्मल और साफ रखें क्योंकि यह सारी धरती परमात्मा का तीर्थ है, हमारा शरीर परमात्मा का मंदिर है और इस शरीर के भीतर विद्यमान आत्म-तत्व ही परमात्म-ज्योति है । ईमानदारी से ज़रा अपने आप को टटोलें । कहने को बाह्य रूप से व्यक्ति ईमानदार होता है लेकिन बेईमानी का मौका मिलने पर आदमी चूकता नहीं है। अगर हम अपना आत्मावलोकन करें तो पाएंगे कि हमारी मनःस्थिति क्या है, हमारी मानसिकता कैसी है, हमारे कर्म कैसे हैं, हमारी दृष्टि कैसी है, हम कैसे काम कर रहे हैं, किस तरह का व्यवसाय कर रहे हैं, हमारे जीवन में कितना अंधेरा छाया है । दुनिया में एक गंगा वह है जो कैलाश पर्वत के गोमुख से निकलकर आती है । हम उस गंगा को निर्मल कहते हैं। मैं चाहता हूं कि व्यक्ति का जीवन भी इतना निर्मल बन जाए कि उसे निर्मल बनाने के लिए किसी गंगा या शत्रुंजय नदी में स्नान करने की आवश्यकता न पड़े। उसका अपना जीवन ही गंगा की तरह निर्मल हो जाए, पवित्र हो जाए। बनें निर्मल सोच के स्वामी जीवन की निर्मलता का पहला मंत्र दे रहा हूं जिसे हमें अपने जीवन में जीना है, उतारना है, आचमन करना है । पल-प्रतिपल इस मंत्र को जीना है । जीवन के कायाकल्प के लिए पहला मंत्र है - व्यक्ति अपनी सोच को निर्मल बनाए। आपने सामायिक की या नहीं, मंदिर गए या नहीं, सुबह उठकर गायत्री मंत्र का जाप किया या नहीं, आगम या गीता का पारायण किया या नहीं, ये सब बातें गौण है । पहले अपनी सोच को निर्मल बनाएँ । यह वह मंत्र है जो सुबह भी हमें आनंद से 102 For Personal & Private Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भरेगा, सांझ भी आनंद से भरेगा और भरी दोपहर में भी आपके मन को शांति देगा। हर व्यक्ति दूसरे से महान और श्रेष्ठ होना चाहता है, पर श्रेष्ठताएँ धन या सौन्दर्य अथवा पद से नहीं अपितु बेहतर सोच से आती है । अपनी सोच को निर्मल बनाएं। उत्तम जीवन जीने के लिए ज़रूरी है कि व्यक्ति अपनी सोच को उत्तम बनाए । घटिया सोच रखने वाला व्यक्ति कभी भी बढ़िया जीवन नहीं जी सकता। अच्छा जीवन जीने के लिए सोच भी उच्च स्तर की होनी चाहिए। जब तक व्यक्ति की सोच नहीं सुधरेगी, तब तक व्यक्ति का जीवन नहीं सुधर पाएगा। , आप देखें कि आपकी सोच में क्या है ? कहीं ऐसा तो नहीं है कि आपकी प्रार्थनाओं में विश्व-कल्याण की भावना है और सोच में है औरों के अनिष्ट की कामना। ईमानदारी से देखें - जब आप सुबह प्रार्थना करते हैं तो होठों पर होता है 'सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे सन्तु निरामया' सभी सुखी हो, सभी निरोगी हो सभी भद्र और कल्याण के मार्ग पर चलें । लेकिन अपनी अन्तर्सोच को देखें, वह क्या कह रही है । हम केवल होठों से औरों के कल्याण की प्रार्थना करते हैं, पर हम अपनी सोच में औरों के अनिष्ट की कामना ही करते रहते हैं । मेरा भला हो, औरों का दीवाला हो, स्वार्थवश ऐसी सोच हो जाती है हमारी। I 1 सुंदर सोच का सौंदर्य अपनी सोच में इंसान जितना गिरता है मैं नहीं सोचता कि वह अन्य कहीं गिर सकता है । घटिया सोच से उसका आचरण घटिया होता है । सोच के बिगड़ने से उसका विचार बिगड़ता है, व्यवहार बिगड़ता है, जीवन जीने की शैली बिगड़ती है । आप स्वयं देखें कि आपकी सोच में पुण्य की कामना और भावना कितनी है ? । आप सड़क पर चल रहे हैं, वहाँ किसी सुंदर महिला को देखकर सीता का भाव आता है या घटिया स्तर की भावना पैदा होती है। सड़क पर चलते हुए लंगड़े आदमी को देखकर हम हंस सकते हैं, पर हमारी जो सोच लंगड़ी होती जा रही है, उसके लिए हम क्या कर रहे हैं ? अंधा व्यक्ति अगर चलते हुए गिर पड़े तो हम हंस देते हैं, लेकिन हमारी सोच जो अंधी होती जा 103 For Personal & Private Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रही है, उसका क्या, उससे अनभिज्ञता क्यों ? किसी बौने आदमी को देखकर हम मज़ाक उड़ाने वाले लोग क्या अपनी बौनी सोच को देखते हैं? बुरी सोच हमारे आचरण को दूषित करती है और व्यवहार को कुटिल बनाती है । आप बहुत सुंदर दिखाई दे सकते हैं लेकिन याद रखिए आप तब तक सुंदर नहीं हो सकते जब तक आपकी सोच सुंदर न हो । सुंदर चेहरा शरीर का सौंदर्य हो सकता है, लेकिन सुंदर सोच जीवन का सौंदर्य है । जन्म से आप नाटे, काले, मोटे होंठ, मोटी नाक वाले असुंदर हो सकते हैं, क्योंकि यह आपके हाथ में नहीं था । इससे अधिक फ़र्क़ भी नहीं पड़ता कि आप दिखने में कैसे दिखते हैं, लेकिन अपनी सोच को सुंदर बनाना अवश्य ही आपके हाथ में है। ऊंचे कुल में, धनी या निर्धन घर में पैदा होना आपके हाथ में नहीं है । उसका शिकवा न करें, आपके हाथ में है आपकी सोच का स्तर। जो आपके हाथ में है उसे जरूर सुधारें। जैसे घर के आंगन में हम हर रोज़ कचरा निकालते हैं, पौंछा लगाते हैं वैसे ही रोज अपने दिमाग में झाडू ज़रूर निकाले लें, कोई दुर्विचार का कचरा आ गया है तो उसे बाहर निकाल दें। अपने चिंतन को स्व सुख के बजाय सर्वसुख से जोड़ने की कोशिश करें। जब भी कामना करें स्वसुख के बजाय सर्वसुख की कामना करें। जब आप सबके कल्याण की सोचते हैं तो अखिल मानवता के कल्याण की बात होती है और जब केवल अपने कल्याण की सोचते हैं तो यह स्वार्थ की बात होती है । यह खुदगर्जी की बात है कि व्यक्ति केवल अपने तक कल्याण भरी सोच को सीमित रखता है । नकारात्मक सोच जीवन का ज़हर है। नकारात्मक नज़रिये के लोग सदैव औरों का नुकसान करके प्रसन्न होते हैं । आप देखते होंगे, रात को आपने स्कूटर घर के बाहर रखा और सुबह गये तो देखा स्कूटर की सीट कटी हुई है। रात को किसी ने ब्लेड चला दी। उधर स्कूटर स्टार्ट करो तो हॉर्न बजना शुरू हो जाता है, पता लगता है किसी ने हॉर्न का स्वीच तोड़ दिया और हॉर्न बंद होने का नाम नहीं ले रहा। रात को आपने मोटर साइकिल में पेट्रोल भरवाया था, सुबह कहीं जाना था, सुबह गये मोटरसाइकिल स्टार्ट की, तो पता लगा कि पेट्रोल की टंकी 104 For Personal & Private Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ खाली है। किसी ने टंकी की नलकी खोल दी है। पता है ये सब काम कौन करते हैं, घटिया सोच के वे लोग जिनके पास करने को कुछ नहीं, वे फुरसतिया लोग दिनभर हा-हा-ही-ही - ही करते रहते हैं । मैं एक महिला को जानता हूं जो अपनी बहू के व्यवहार से कभी खुश नहीं थी। अगर खाना स्वादिष्ट बनाये और कोई तारीफ़ करे तो मसालों को श्रेय देगी । मैं अभी अमुक मसाले मंगवाये इसलिए सब्जी स्वादिष्ट हुई। बच्चों की प्रशंसा में दो शब्द कहें तो वह महिला सीधे कहती है ये पोते-पोतियाँ तो बिल्कुल मुझ पर गए हैं। यदि कोई ग़लती हो बच्चों से तो कहेगी बहू से यही सब सीख रहे हैं। यानी सदा अपनी सोच का ग़लत उपयोग । विचार पर करें विचार विचार तीन तरह के होते हैं- विचार, अविचार, निर्विचार । विचार की स्थिति वह है जहाँ व्यक्ति सामान्य रूप में सोच रहा है। अविचार की स्थिति वह है जहाँ व्यक्ति के पास सोचने की क्षमता नहीं है, वह जड़बुद्धि है । निर्विचार की स्थिति वह है जहाँ व्यक्ति अनावश्यक विचारों से स्वयं को बचाए रखता है। अब देखें कि दिनभर कितने विरोधाभासी 1 विचार आपके दिमाग़ में पनपते रहते हैं। शायद आप जानते हों कि मस्तिष्क में पनपने वाले विचारों का एक दिन में पांच प्रतिशत ही उपयोग हो पाता है । पिच्यानवें प्रतिशत विचारों का जीवन में कोई सीधा ताल्लुक नहीं होता । परिणामतः आप रात में सोए हैं तो विचार आपको प्रभावित कर रहे हैं । अगर आप तनावग्रस्त हैं तो इसका कारण है कि आपके विचार संतुलित नहीं है । आप चिंताग्रस्त हैं तो इसका कारण आपके विचारों का उखड़ापन है । आप अवसाद या घुटन से भरते जा रहे हैं तो यह जान लें कि आप अपने विचारों का संतुलन बिठाने में असमर्थ हैं। और तो और, घर में लड़ाई-झगड़ा शुरू हो गया है तो इसका मूल कारण है कि हम घर में वैचारिक सामंजस्य नहीं बना पा रहे हैं विरोधाभाषी विचार ―― सुबह कुछ, दोपहर कुछ और सांझ को कुछ और 105 For Personal & Private Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ होता है । दस मिनट पहले हमारे मन में जिसके प्रति मैत्री के विचार थे दस मिनट बाद ही उसके प्रति मन में द्वेष के, दुश्मनी के विचार उत्पन्न हो जाते हैं। थोड़ी देर पहले आप शांत थे लेकिन थोड़ा-सा निमित्त मिलते ही दो मिनट बाद आप अशांत हो जाते हैं । निराशा, अनुत्साह, तनाव, भय, चिंता, अवसाद, क्रोध, कुंठा ये सभी दोष इसीलिए होते हैं कि हम अपनी वैचारिक स्थिति को संतुलित नहीं रख पाते हैं । व्यक्ति के देखने और सोचने के दो नज़रिये होते हैं व्यग्रता से सोचना, समग्रता से सोचना । I कभी कोई अचानक दुर्घटना हुई, कभी किसी ने अप्रिय शब्द कहे, हम समाज के मध्य बैठे और हमारे विरुद्ध गलत टिप्पणी हुई कि हम तत्काल अपनी सोच को व्यग्र कर लेते हैं और ग़लत निर्णय कर लेते हैं । एक व्यक्ति रोज़ स्थानक में जाता था । संयोग की बात कि स्थानक में दूसरे पदाधिकारी से उसका मनमुटाव हो गया । व्यग्रता में उसने निर्णय ले लिया कि आज के बाद वह स्थानक में पांव नहीं रखेगा। व्यग्रता में लिए गए निर्णय हमेशा ग़लत होते हैं । - दूसरी सोच होती है समग्रता की । इधर का भी देखो, उधर का भी देखो, लाभ-हानि, आगे-पीछे इन सबका विवेकपूर्वक निर्णय करने के बाद अपने जीवन में निर्णय करो। एक होता है सकारात्मक चिंतन, दूसरा है नकारात्मक चिंतन । जब आप किसी के बारे में नकारात्मक चिंतन लेकर चल रहे हैं तो जब भी उसके बारे में बात करेंगे आपका दृष्टिकोण उसे काटना ही होगा। दो तरह के लोग होते हैं एक कैंची की प्रकृति के, दूसरे सुई की प्रकृति । जो कैंची की प्रकृति की सोच का मालिक है वह जहाँ बैठेगा, जिसकी सुनेगा, जिसको पढ़ेगा उसका काम होगा काटना । वह ढूंढेगा कि इसमें यह कमी है, उसमें यह कमज़ोरी है । पर सुई की प्रकृति के लोग हमेशा संयोजन और जोड़ने की सोच ही पालेंगे । ― 106 For Personal & Private Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सकारात्मकता का अमृत आप अपने आप को देखें कि आप किस सोच के धनी हैं? कहीं आपके भीतर नकारात्मक सोच तो नहीं पल रही है? नकारात्मकता हमारे जीवन का ज़हर और सकारात्मकता हमारे जीवन का अमृत है। अगर आप किसी फैक्ट्री के मालिक हैं या किसी दुकान के मालिक हैं, किसी संस्था के अध्यक्ष हैं, किसी समाज का संचालन कर रहे हैं, घर और परिवार के मुखिया हैं तो उसके सही संचालन की पहली अनिवार्यता है कि आपकी सोच सकारात्मक हो, विधायक हो। अगर आपकी सोच सकारात्मक है तो आप सही नज़रिये से निर्णय करेंगे। सास और बहू घर में दो महिलाएँ हैं और तो और अगर किसी आश्रम में भी दो लोग हैं। अगर ये वहाँ परस्पर दिन भर नकारात्मक रवैया अपना रहे हैं तो मान लीजिए ये दोनों दिन भर अशांत हैं और अगर दोनों सकारात्मक रवैया लेकर चल रहे हैं तो दोनों ही शांत हैं। सभी के जीवन में विपरीतताएं आती हैं। नकारात्मक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति विपरीतता को देखकर परेशान हो जाता है कि अब वह जीवन में कुछ नहीं कर सकता, जबकि सकारात्मक दृष्टिकोण वाला विपदा के आने पर यह सोचता है कि एक दरवाजा बंद हो गया है तो दूसरे दरवाज़े की तलाश करो, दूसरा बंद हो गया है तो तीसरे की तलाश करो, तीसरा बंद हो गया है तो चौथे की तलाश करो। वह जानता है कि प्रकृति की व्यवस्था है कि निन्यानवें द्वार बंद हो जाएँ तब भी एक द्वार खुला ज़रूर रहता है । जीवन में बंद द्वारों को देखने और बंद देखकर रोने की बजाय अच्छा होगा कि आप खुले द्वार की तलाश करें। सकारात्मक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति अपने भाग्य की रेखाओं को बदलने में समर्थ होता है और नकारात्मक दृष्टिकोण वाला व्यक्ति अपनी सुधरी हुई रेखाओं को भी बिगाड़ देता है। संशय से सर्वनाश मनुष्य की सोच के तीन दोष होते हैं - आशंका, आग्रह की भावना और 107 For Personal & Private Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आवेश। जिस समय ये तीन दोष हमारे मस्तिष्क में उथल-पुथल मचा रहे हों, उस समय लिए गए सही निर्णय भी गलत परिणाम दे जाते हैं। गीता में श्रीकृष्ण कहते हैं - संशयात्मा विनश्यति - जिसके भीतर संशय की ग्रंथि बन गई है, वह नष्ट हो जाता है । संशय विचार का दोष है। मैंने अगर ऐसा किया और वैसा न हुआ तो, मैं घर से बाहर निकला और दुर्घटना हो गई तो, दुकान खोली और न चली तो? संशय हमें नकारात्मक दृष्टिकोण देता है। जब भीतर में संशय है तो सफल होते हुए कार्य भी असफल हो जाते हैं, इसलिए व्यक्ति अपने मन में कभी संशय की, आशंका की ग्रंथि लेकर कार्य न करे। एक किसान खेत में बीज का वपन करता है और उसके मन में एक संशय पनप गया कि मैं बीज तो बो रहा हूं और बारिश न हुई तो ? ऐसे में क्या वह बीजों का वपन कर पाएगा? जिसके भीतर संशय जगा उसकी श्रद्धा समाप्त, उसका विश्वास विछिन्न । संशय के द्वार पर खड़ा हुआ व्यक्ति जीवन का कोई निर्णय करने में समर्थ नहीं होता है। वह त्रिशंकु की तरह आसमान में लटकता रह जाता है। नआवेश, न आग्रह __ आवेश या क्रोध की वेला में जब भी कोई व्यक्ति सोचेगा, वह शुभ नहीं होगा। जब आप आवेश में हों और उस वक्त कोई निर्णयात्मक बात आ गई है तो आप उसे टाल दें। कह दें कि तीन घंटे बाद निर्णय लेंगे, ताकि आप भली-भाँति शांत मन से उसके बारे में सोच सकेंगे। जब आप सोच चुके हैं कि मुझे ऐसा ही करना है, मुझे ऐसा ही बनना है, मेरे द्वारा ऐसा ही कहा जाएगा तब आप किसी बात को सुलझा नहीं सकते। किसी समाज की मीटिंग होती है बात को सुलझाने के लिए। दस लोग इकट्ठे होते हैं। पहले से दोनों पक्ष सोचकर आये हैं कि हमें किसी भी हालत में इस बात को नहीं मानना है । आप ही बताएं कि तब __ 108 For Personal & Private Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दस घंटे तक भी चर्चा चलती रहे तो भी क्या निर्णय हो सकेगा? अनिर्णय रहेगा। जब पहले से ही सोचकर बैठे हैं कि हमें इस बात को नहीं मानना है तो निर्णय कैसे होगा। हाँ अगर वे सोच लें कि हमें जैसे-तैसे इस बात का समाधान निकालना ही है, तो समाधान ज़रूर हो जाएगा। हमारी छोटी-सी ग़लतफहमी किसी भी बात को बढ़ा देती है और बात का समाधान करने का छोटा-सा रवैया बड़ी बात को समाप्त कर देता है। अब यह हम पर निर्भर है कि हम अपनी सोच और मानसिक दशाओं को किस तरह का रखते हैं, किस तरह का बनाते हैं । हम अपनी मानसिकता को निर्मल बनाने की कोशिश करें। हमारा मन अगर आवेश, आशंका और आग्रह की ग्रंथि से अलग हट चुका है तो हमारी सोच निर्मल हो सकेगी।हम अपने दिमाग़ से इस कचरे को बाहर निकाल फैंकें। ____ कोई हमें कड़वे शब्द कह दे तो हम क्या करेंगे? कह दीजिए हमें ज़रूरत नहीं है। जब आपके घर कोई साधु-संत आते हैं और आप उन्हें कोई चीज देते हैं और उन्हें आवश्यकता न हो तो वह कहते हैं 'खप' नहीं है। दुनिया की हर खपत को मिटाने का एक ही उपाय है, जब भी कोई ऐसीवैसी बात हो आप तत्काल कहें 'मुझे यह बात खपती नहीं है।' इतना भर कहने से, आप अनुभव करेंगे कि आप कई दुविधाओं से बच गए। गांधीजी ने तीन बंदर दिए थे - बुरा मत सुनो, बुरा मत देखो, बुरा मत बोलो। आज एक बंदर मैं भी दे रहा है। जिसकी एक अंगुली होगी सिर पर कि बुरा मत सोचो। गांधीजी के तीनों बंदर अपूर्ण हैं जब तक यह चौथा बंदर न होगा कि बुरा मत सोचो। अगर व्यक्ति की सोच ही बुरी है तो वह बुरा देखता है, बुरा बोलता है, बुरा सुनता है। इसलिए आदमी अपनी सोच को सुधारने की कोशिश करे। आपका जीवन आपके हाथों में है। आप किराए की जिंदगी नहीं लाए हैं और न ही किराए का जीवन जी रहे हैं। किराए के मकान की मरम्मत आप यह सोचकर नहीं करते कि एक दिन छोड़ना है, पर आपकी 109 For Personal & Private Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिंदगी किराए की नहीं है। इसलिए देखें कि इसमें क्या-क्या चल रहा है। नीर-सा निर्मल मन ____ जीवन की निर्मलता का दूसरा मंत्र है मन को निर्मल रखें। हम देख लें कि हमारे मन में क्या भरा है। नगरपालिका की कचरा पेटी में शायद उतनी गंदगी नहीं । होगी जितनी गंदगी मनुष्य के मन-मस्तिष्क में भरी । होती है। मनुष्य का निर्मल मन किसी मंदिर के समान, होता है जहाँ व्यक्ति अपने आराध्य को स्थापित कर सकता है। मन की निर्मलता में ही व्यक्ति की शांति और जीवन की भक्ति है। जिसका मन निर्मल व शांत है, जिसके मन की दशा पवित्र है वही साधना के योग्य है। हम ध्यान-साधना करने के लिए मन को एकाग्र करने की कोशिश करते हैं, लेकिन मेरा मानना है कि मन को एकाग्र करने से पूर्व मन को निर्मल करने की जरूरत है। अगर अपवित्र मन के साथ आपने साधना कर ली और उसका परिणाम भी प्राप्त हो गया, तो यह परिणाम एक दिन आपको रावण और कंस बनाकर छोड़ेगा। कोई देव प्रसन्न होकर आए और कहे कि मैं तुम्हें अमृत देता हूं, संयोग की बात तुमने प्याला आगे कर दिया और वह प्याला अगर पहले ही जहर से सना हुआ है तो उसमें डाला हुआ अमृत भी जहर हो जाएगा। पवित्र मन किसी तीर्थ की तरह है। निर्मल मन में ही प्रभु का बसेरा होता है।मन मंदिर है, इसमें जाल न जमने दें। मन के आईने में ___ आप सत्संग में आ रहे हैं तो आपकी पहली शुरुआत हो निर्मल सोच से और दूसरे चरण में हो मन की निर्मलता। अपने मन पर विवेक का अंकुश लगाने की कोशिश करें। अपने मन को एकाग्र करने के बजाय पहले निर्मल करें । मन को ऐसा बना लें कि वह मंदिर बन जाए, तीर्थ बन जाए, परमात्मा को विराजित करने के लिए आसन बन जाए। प्रायः लोग कहते हैं कि पापी पेट का सवाल है, पर पाप पेट में नहीं, मन में होता है। पेट को दो रोटी चाहिए, जो चाहिए आदमी के मन को चाहिए। मन के दर्पण में वही दिखाई देता है जो आप होते हैं। 110 For Personal & Private Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मुझे याद है-एक आदिवासी किसान खेत में हल चला रहा था कि खेत में एक चमकीली चीज निकली। . वह एक आईना था। किसान ने उसे उठाया, अपनी आँखों के सामने लाया तो र वह आश्चर्यचकित हो गया, क्योंकि उस साल चमकीली चीज में उसका खुद का चेहरा नज़र आ रहा था। उसे याद आया लोग कहते हैं कि मेरे पिता का चेहरा बिल्कुल मेरे जैसा ही था। शायद खेत में से मेरे पिता का ही चित्र निकला है । यह सोचकर वह उस आइने को घर ले आया और अलमारी में रख दिया। जब किसान बाहर जाता तो घर से निकलने से पहले प्रतिदिन अलमारी खोलता और चेहरे के दर्शन करता फिर रवाना हो जाता। इस तरह 15-20 दिन बीत गए। पत्नी सोचती कि रोज़ मेरा पति यह क्या करता है, अलमारी में उसने कोई चीज लाकर रखी है। रोज़ अलमारी खोलता है, मुस्कुराता है और चला जाता है, आखिर वह चीज क्या है। एक दिन जब पति बाहर गया हुआ था, तो पीछे से पत्नी ने अलमारी खोली और ढूंढकर वह चमकीली चीज, वह आईना निकाला और अपने चेहरे के सामने लाकर देखा तो एक महिला का चेहरा नज़र आया। उसने सोचा, ओह ! तो मेरा पति इस 'चुडैल' के चक्कर में है। मैं सोचती थी कि यह रोज़ अलमारी खोलकर क्या देखता है। आज इसका रहस्य पता चल गया। वह दौड़ी-दौड़ी अपनी सास के पास गई और बोली 'माताजी देखिए, आपका बेटा किसी दूसरी के चक्कर में लगता है। एक और बह लेकर आएगा।' सास ने उस आइने को अपने चेहरे के पास ले जाकर देखा और कहा, 'मेरा बेटा दूसरी बहू तो ला रहा है, पर यह बूढी क्यों ला रहा है।' __आपका मन आपके जीवन का आईना है। जैसा आपका मन वैसा ही जीवन । जैसी हमारी मानसिकता, जैसी हमारी सोच, जैसी हमारी अन्तःस्थिति, वैसी ही हमारे जीवन की स्थिति होने वाली है। माला-जाप, मंदिर-गमन, सामायिक, मंत्र जाप ये सब बाद में हो, पहले हो मन की निर्मलता। निर्मल मन के साथ अगर आपने सात दफा मंत्र जपा तो वह बेहतर है और अगर कुटिल 111 For Personal & Private Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ । मन के साथ जीवन भर भी जाप करते रहे तो कुछ परिणाम नहीं निकलने वाला है। जब हम मंदिर जाते हैं तो कहा जाता है कि नहा धोकर, धुले हुए वस्त्र पहनकर जाओ, मैं कहना चाहूंगा इसके साथ निर्मल मन भी लेकर जाएं। शायद बिना नहाए और बिना धुले वस्त्र पहनकर जाने से भगवान अप्रसन्न नहीं होंगे, पर गंदे मन से भगवान नाखुश होंगे। गंदा मन लेकर कभी मंदिरों में न जाना। क्योंकि वहां भी तुम किसी सुंदर महिला और पुरुष को ही देखते रहोगे। ___ अपने मन की दशा को निर्मल रखें। कभी किसी के लिए गलत न सोचें, अशुभ चिंतन न करें। अगर आप किसी के कारण दुःख से घिर भी जाएं, तो भी उसके लिए हमेशा सुख की कामना करें। जिसने आपके लिए अशुभ किया उसके लिए भी आप शुभ चिन्तन करें। मन के दोष हैं तीन हमारे मन की निर्मल दशा, निर्मल सोच, निर्मल भावना यही तो जीवन की निर्मलता है। हमारे जीवन की सबसे बड़ी उपलब्धि है कि हमने अपनी मनोदशा को निर्मल कर लिया है। हमारा यह मन, हमारे अन्तर्हदय में परमात्मा को विराजमान करने का दिव्य सिंहासन बन सकता है। आप उसे अपवित्र न करें, उसे बिगाड़ने की कोशिश न करें। लोग कहते हैं कि मैं क्या करता, उस समय मुझे गुस्सा आ गया। मैं पूछता हूँ कि कहाँ से आ गया, किस लोक से आ गया। गुस्सा कहीं से आया नहीं, यह तो हमारे भीतर दबा हुआ ही था, मन की वृत्ति में। निमित्त मिलते ही वह उजागर हो गया। मन के तीन दोष हैं-मूर्छा, वासना, आवेश । मूर्छा मन में पलने वाली आसक्ति है। अति लगाव की भावना भी मूर्छा है। संसार क्या है? मनुष्य के मन में पलने वाली आसक्ति और मूर्छा ही तो है जिसने इसका त्याग कर दिया, उसी का मन शांत हो सकेगा। किसी ने पत्नी छोड़ी या न छोड़ी, परिवार का त्याग किया या न किया, दुकान, मकान, पद, वैभव छोड़ा या न छोड़ा लेकिन जिसने आसक्ति और मूर्छा का त्याग कर दिया उसका मन शांत हो गया।अगर आप मूर्छा-भाव को हटाना चाहते हैं तो इसके लिए निर्लिप्तता का उपयोग 112 For Personal & Private Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करें। सबके साथ, सबके बीच रहकर भी सबसे ऊपर उठे रहें, निर्लिप्त रहें। संसार में कमलवत रहें। जैसे धाय माता बच्चे को खिलाती है, वह जानती है कि यह बच्चा मेरा नहीं है, किसी और का है। वैसे ही अपने घर, परिवार, ऑफिस में निर्लिप्त रहो। पांव भले ही कीचड़ में हों, पर मनोमस्तिष्क कीचड़ से बाहर रहे। भगवान कृष्ण के लिए अनासक्त कर्मयोगी शब्द का प्रयोग किया गया है। जबकि कहा जाता है कि उनके सोलह हजार पत्नियां थी। तुम तो एक में ही जिंदगी भर के लिए धंसे रह गए। अभी भी अगर मुक्ति की वेला आती है तो आदमी कहता है मेरा मन तृप्त नहीं हुआ। मनुष्य का जीवन पूर्ण हो जाता है, लेकिन उसके मन की कामनाएँ कभी पूर्ण नहीं होती। मन का दूसरा दोष है - वासना। अगर व्यक्ति के भीतर वासना की भावना पल रही है तो वह उस गिद्ध की तरह है तो धरती से कोसों ऊपर भी चला जाएगा, तब भी मांस के टुकड़े को देखते ही तुरन्त धरती पर मांस का टुकड़ा तलाशेगा। जो व्यक्ति कितना भी ऊपर उठ जाएगा, लेकिन निमित्त मिलते ही, वासना के अंकुरित होते ही दुष्कर्म की ओर बढ़ जाएगा। वासना के आगे तो बड़े-बड़े ऋषि-महर्षि भी धराशायी हो गए हैं। अगर विश्वामित्र गिरते हैं तो इसका दोष किसी मेनका को देने की बजाय, विश्वामित्र के मन के अंदर छिपे वासना के बीज को ही है, जो मेनका का निमित्त पाकर उजागर हो गया। इसलिए मनुष्य टटोले अपने आपको कि वह वासना से कितना ऊपर उठ पाया है।आप ईमानदारी से अपने भीतर झांकेऔर देखे कि क्या मन तृप्त हो गया है? जैसी नज़र वैसा नज़ारा ____ तीसरा मंत्र देना चाहूंगा नजर की निर्मलता का । जब भी किसी को देखें पवित्र आँखों से देखें। आपको सुंदर महिला और सुंदर पुरुष को देखने का पूरा हक़ है लेकिन शर्त यही है कि निर्मल आँखों से देखें । पवित्र आँखों से दुनिया के सौन्दर्य को देखें। मनुष्य सुंदरता ज़रूर देखे पर सही नज़रिये से देखे। जैसी हमारी नज़रें होती है, नज़ारा वैसा ही होता है। जैसी दृष्टि होगी वैसी 113 For Personal & Private Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ही सृष्टि भी होगी। तुम अपनी आँखों पर काला चश्मा चढ़ा लो तो सफेद दीवार भी काली हो जाएगी। ज़रूरत दीवार या दुनिया को बदलने की नहीं है, ज़रूरत है व्यक्ति की दृष्टि को बदलने की। बिना सम्यक दृष्टि, बिना निर्मल दृष्टि जब भी किसी को देखोगे मलीनता ही होगी । मीरा गाती थी - 'बसो मेरे नैनन में नंदलाल ' हे प्रभु! मेरी आँखों में आकर ही बस जाओ, फिर मैं किसी को देखूं भी तो मुझे तुम ही नज़र आओ। जहाँ नजर डालूं, वहीं तुम दिखाई दो। इसलिए अपनी आँखों कों, नज़ारों को निर्मल बनाएं। जब भी किसी को देखें तो सतर्क रहें कि कहीं आपकी नजरों में विकृति तो नहीं है, आँखों में विकार की ग्रंथि तो नहीं है। बुरी नजरों से आप किसी अच्छे व्यक्ति को भी देखेंगे तो आपको उसमें बुराई ही नज़र आएगी । आप हमसे मिलने आते हैं और हम आपको अच्छे लगते हैं, क्योंकि आपकी आँखों में अच्छाई है और अगर हम बुरे लग जाएं तो दोष अपनी आँखों को देना क्योंकि हम तो जैसे हैं वैसे ही हैं । वास्तव में हम जैसे होते हैं, वैसा ही दूसरों को देखते हैं । बोली है अनमोल निर्मल जीवन का चौथा मंत्र है निर्मल वाणी । जब भी किसी से बोलें, किसी से बातचीत करें मधुर भाषा का प्रयोग करें। याद रखें, मुसीबत सदा मुंह से ही आती है । जब भी आप अपनी जीभ का गलत उपयोग करेंगे, तब यह जीभ गलत परिणाम लाएगी। अगर आप किसी के लिए दो शब्द प्रशंसा के नहीं कह सकते तो कृपया किसी की निंदा तो मत कीजिए। जीभ को व्यर्थ में मत घिसिए। जब हम बोलते हैं तो जीभ भीतर की ओर रहती है यह इस बात का संकेत है कि जैसा वह बोल रहा है स्वयं भी वैसा ही है। मधुर वचनों से प्रेम के पुल निर्मित होते हैं वहीं कटु वचनों से द्वेष की दीवारें। याद रखें बाण के घाव तो भरे जा सकते हैं, पर वचन के घाव कभी नहीं भर पाते । बुरा आदमी औरों की बुराइयाँ और अच्छा आदमी अच्छाइयाँ बतलाता है। अगर आप प्रेमपूर्वक सम्मान की भाषा बोल सकें तो बहुत अच्छी बात है आप औरों को सम्मान दें दूसरे भी आपको सम्मान देंगे। दूसरों को 'तू-तू ' 114 For Personal & Private Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहने वाला 'तू-तू' सुनता है और दूसरों को 'आप-आप' कहने वाला खुद के लिए भी 'आप' सुनता है। आप जैसी भाषा और वाणी बोलेंगे वैसी ही आप पर लौटकर आएगी। यह तो ईको साउण्ड है। अगर आप कुएं के पास जाकर कुएं में 'गधा' बोलेंगे तो 'गधा' ही वापस लौटकर आएगा और 'गणेश' बोलेंगे तो 'गणेश' ही वापस लौटने वाला है। जैसा हम बोल रहे हैं वैसा ही हम पर प्रतिध्वनित होने वाला है। इन होंठों और जबान से गीत भी गुनगुना सकते हो और चाहो तो गाली भी निकाल सकते हो। यह हम पर निर्भर है कि हम इस जबान का कैसा और क्या उपयोग करते हैं। हम एकाकीपन में भी अपने आत्म-संयम को बरकरार रखें। एक संयमी की प्रशंसा करना सरल है, पर वैसा संयमी जीवन जीना मुश्किल है। उत्तम कर्म ही हमारी पूजा बने और वही हमारा आशीर्वाद। 115 For Personal & Private Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन की बुनियादी बातें जो व्यक्ति अपने जीवन में बेलगाम आकांक्षाएँ रखता है वह सुख की रोटी खाने को तरस जाता है। रिमझिम बारिश और सुहावने मौसम के बीच आज हम अपने ही जीवन से जुड़ी कुछ बुनियादी बातें करेंगे। पहले एक प्यारी-सी घटना को लेते हैं - एक सम्राट किसी फ़क़ीर के पास बैठा हुआ अपनी सत्ता, सम्पत्ति, वैभव और राज्य की यशोगाथाएँ सुना रहा था। वह कह रहा था, 'फ़क़ीर साहब जितना सुंदर राजमहल मेरा है, उतना सुंदर राजमहल दुनिया में शायद ही दूसरा हो। राजमहल की दीवारों में सामान्य रंग नहीं है। उन पर सोने के बरक़ लगाए गए हैं। सम्पूर्ण भरतखंड में मेरे विशाल साम्राज्य के समान दूसरा न होगा। फ़कीर साहब जितनी सुंदर राजरानियाँ मेरे महल में है, अन्य कहीं देखने को भी नहीं मिलेंगी। जितना विशाल राजकोष मेरे पास है, किसी अन्य सम्राट के पास नहीं होगा।' जैसा कि होता है प्रत्येक सम्पन्न व्यक्ति अपनी सम्पन्नता और वैभव की गाथाएँ कहते पाए जाते हैं वैसे ही वह सम्राट भी फ़क़ीर के सामने अपने ऐश्वर्य का बखान कर रहा था। 116 For Personal & Private Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सत्ता से बड़ी एक सत्ता सम्राट बोलता रहा, फ़क़ीर शांत भाव से सब कुछ सुन रहा था। अन्ततः सम्राट चुप हो । गया। अब बोलने की बारी फ़क़ीर की थी। जब फ़क़ीर ने कहा, 'सम्राट, तुम मेरे एक प्रश्न का जवाब दो। सोचो कि तुम अपने सैनिकों के साथ ) खेलने जंगल में गए। वहाँ तुम मार्ग भटक गए और अपने सैनिकों से बिछुड़ कर जंगल में बिलकुल अकेले पड़ गए। गर्मी तेज थी वहाँ तुम्हें जोर की प्यास लगी। आसपास खूब तलाश करने के बाद भी तुम्हें कहीं पानी न मिला। न तालाब दिखा, न कुआँ और तो और कहीं नाला भी न मिला। भयंकर गर्मी में तुम प्यास से तड़पने लगे। तुम्हें लगा कि अब आधा एक घंटा और पानी नहीं मिला तो प्यास के मारे तुम्हारे प्राण ही निकल जाएँगे। तुम्हारा मन प्यास से आकुल-व्याकुल हो रहा है। तभी एक युवक वहाँ पहुंचता है और तुमसे कहता है कि उसके पास एक लोटा ठंडा मीठा पानी है क्या तुम पीना चाहोगे?' ___'तुम यकायक पानी देखकर एकदम प्रसन्न होकर पानी पीना चाहोगे लेकिन युवक तुमसे इस पानी की कीमत मांगेगा। तब तुम क्या करोगे?' सम्राट ने कहा एक स्वर्ण मुद्रा दे दूंगा। फ़क़ीर ने कहा, अगर तब भी वह पानी न दे तो? सम्राट ने कहा, 'दस स्वर्ण मुद्रा दे दूंगा।' फ़क़ीर ने कहा, 'अगर तब भी वह पानी न दे तो?' सम्राट ने कहा, ' सौ स्वर्ण मुद्राएं दे दूंगा फिर भी नहीं देगा तो हजार या लाख स्वर्ण मुद्राएं भी दे दूंगा।' फकीर ने पूछा, 'अगर तब भी वह पानी न दे तो?' सम्राट ने कहा, 'मरता क्या न करता, मैं अपना अंतिम दाँव खेलूंगा, क्योंकि प्यास तो जरूर बुझाऊंगा, उसे आधा साम्राज्य दे दूंगा और एक लोटा पानी ले लूंगा।' फ़क़ीर ने कहा, 'तुम्हारा आधा साम्राज्य भी अगर एक लोटा पानी न दिला सके और वह युवक फिर भी इनकार कर दे तो?' सम्राट ने कहा, 'तब मैं उसी से पूछ लूंगा कि वह क्या कीमत चाहता है।' फ़क़ीर ने कहा, वह कहे कि मुझे तुम्हारा पूरा साम्राज्य चाहिए तब तुम्हें एक लोटा पानी मिल सकता है। एक ओर तुम्हारा जीवन दूसरी ओर पूरा राज्य, बोलो सम्राट 117 For Personal & Private Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सोचकर निर्णय दो कि तब तुम क्या करोगे?' कुछ क्षणों तक सम्राट मौन रहा। फ़क़ीर ने पूछा, 'क्या तुम मना कर दोगे?' सम्राट ने कहा, 'नहीं। सत्ता और साम्राज्य से भी बड़ी आदमी की जिंदगी होती है और जिंदगी बचाने के लिए सत्ता और साम्राज्य की कुर्बानी दी जा सकती है।' फ़क़ीर साहब, तब मैं अपनी जिंदगी और प्राणों को बचाने के लिए अपना सारा साम्राज्य उस युवक के नाम करने को तैयार हो जाऊंगा।' फ़क़ीर मुस्कुराये और बोले, 'तो यही है तुम्हारे इस तथाकथित अकूत वैभव और ऐश्वर्य का मोल । पता है तुम्हारे इस सम्पूर्ण राज्य का मोल कितना है? एक लोटा पानी जितना। मैं तुम्हें यही बोध देना चाहता था कि तुम जो इतना यशोगान कर रहे हो इसकी कीमत केवल एक लोटा पानी है। धन नहीं,जीवन-धन जिसने अपने जीवन का मूल्यांकन करना सीख लिया है, जिसने अपने जीवन की महानताओं को पहचान लिया है, जिसने अपनी मूल्यवत्ता जान ली है वह दुनिया की सम्पत्ति से ऊपर अपने जीवन को रखेगा इस जीवन का उपयोग करेगा और जीवन को बचाने की कोशिश करेगा। याद रखें, धन से सब कुछ पाया जा सकता है, सत्ता से सब कुछ पाया जा सकता है लेकिन इनसे जीवन नहीं पाया जा सकता। सत्ता और वैभव जीवन से अधिक महान नहीं हो सकते। याद है ना जब सिकंदर भारत-विजय पर आया था तब उसे अस्सी वर्षीय वृद्धा मिली थी। उसने सिकंदर से पूछा, 'तुम कौन हो और कहाँ से आए हो?' सिकंदर ने कहा, 'मैं सिकंदर महान हूँ, विश्व-विजेता हूँ और यूनान से आया हूँ।' वृद्धा ने कहा, 'क्यों आया है?' उसने कहा, 'विश्वविजय के अंतर्गत भारत को जीतने के लिए आया हूँ।' वृद्धा ने कहा, 'जब भारत को जीत लेगा तब क्या करेगा?' 'और जो पड़ोसी देश हैं उन्हें 118 For Personal & Private Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीतूंगा।' 'उसके बाद क्या करेगा?' 'सारी दुनिया को जीत लूँगा।' 'उसके बाद क्या करेगा?' वृद्धा ने फिर पूछा। सिकंदर ने कहा, 'उसके बाद सुख की रोटी खाऊंगा।' वृद्धा ने कहा, 'आज तुझे कौन-सी सुख की रोटी की कमी है जो जान बूझकर दुःख की रोटी की ओर क़दम बढ़ा रहा है। याद रखना जो व्यक्ति अपने जीवन में बेलगाम आकांक्षाएँ रखता है वह सुख की रोटी खाने को तरस जाता है।' __ ऐसा ही हुआ, सिकंदर अपनी आयु के पैंतीस वर्ष भी पूर्ण नहीं कर पाया था कि बीमार हो गया। रोग भी ऐसा लगा कि चिकित्सकों ने कह दिया कि उसे रोगमुक्त कर पाना मुश्किल ही नहीं नामुमकीन है। उसकी आयु के एक-दो घंटे ही शेष रहे थे कि चिकित्सकों ने कह दिया कि अब उसे जो कछ करना है कर ले। सिकंदर अपनी माँ को बहुत प्यार करता था। वह चाहता था कि उसकी माँ जो उससे बहुत दूर यूनान में थी उसका मुँह देख ले और उसकी गोद में सिर रखकर अपने प्राण छोड़े, लेकिन यह असंभव था। चिकित्सक कुछ नहीं कर पा रहे थे। तब सिकंदर ने वही किया, जो हर सम्पन्न व्यक्ति करता है, उसने अपना दाँव खेला और कहा, 'अगर तुम लोग मुझे चौबीस घंटे की जिंदगी दे सके तो मैं प्रत्येक डॉक्टर को एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ दूंगा।' डॉक्टरों ने कहा, 'कैसी मज़ाक करते हो सिकंदर। क्या धन से, सोने से जिंदगी खरीदी जाती है?' तब हताश हुए सिकंदर ने अपनी जिंदगी का दूसरा दाँव खेला। उसने कहा, 'तुम मुझे केवल बारह घंटे की जिंदगी दे दो मैं तुम्हें अपने विश्व साम्राज्य का आधा हिस्सा दे दूँगा।' डॉक्टरों ने कहा, 'हम कोशिश कर सकते हैं, लेकिन बचाना हमारे हाथ में नहीं है।' ___ और हताश होकर सिकंदर ने जीवन का अंतिम दांव लगाया कि अगर कोई मुझे दस घंटे की जिंदगी दे दे तो दुनिया का सारा साम्राज्य उसके नाम कर दूंगा।' लेकिन कोई ऐसा न कर सका। सिकंदर देखता रहा कि उसकी सांस धीमी पड़ने लगी, उसके प्राण निकलने को हो गए, तब उन क्षणों में मरने से 119 For Personal & Private Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ पहले, अपने पास खड़े लोगों से कहा, 'मेरे मरने के बाद लोगों को बताना कि सिकंदर जिसने सारी दुनिया को जीता, पर अपनी ज़िदंगी से हार गया।' जीवन नहीं है बोझ मेरी बातें भी इसी से संबंधित हैं। मैं आपको यही बताना चाहता हूँ कि कहीं आप अंतिम समय में जिंदगी से न हार जाएँ, आपको यह न लगे कि सब कुछ पाकर भी आपने I जीवन को खो दिया। पानी व्यर्थ बहता हो तो खटकता है, बल्ब फिजूल जल रहा हो तो खटकता है, कुछ भी । अनावश्यक हो रहा हो तो खटकता है - यह अच्छी बात है पर व्यर्थ जाती हुई जिंदगी हमें क्यों नहीं खटकती। मनुष्य की यह बेशकीमती जिंदगी जिसमें वह अपनी महानताओं को उपलब्ध कर सकता है, इस जिंदगी के प्रति सचेत क्यों नहीं रहता। आप यह सावधानी तो रखते हैं कि कहीं धंधे में घाटा न लग जाए, बेटा बिगड़ न जाए, पत्नी किसी और के साथ न हो जाए - इनमें बहुत सावधानी रखी जाती है लेकिन अपनी जिंदगी के प्रति क्या इतनी ही सावधानी रखते हैं? अनावश्यक कार्यों में, दोस्तों के साथ निरर्थक बातों में, ताश-जुएँ में, अपना समय बर्बाद करते रहे हैं। और तो और, पूछने पर कि भई क्या कर रहे हो तो उत्तर मिलता है टाइम-पास कर रहे हैं। क्या जिंदगी केवल 'पास' करने के लिए है? क्या हमारी ज़िदंगी इतनी भारभूत बन गई है कि हमें जिंदगी को पास करना पड़ रहा है। जीवन गतिशील हो, कृत्रिम नहीं वास्तविक हो। अपनी जिंदगी में देखें कि हमारी मुस्कान कृत्रिम है या वास्तविक है ? जीवन जो इतनी सुखसुविधाओं से भरा है यह कृत्रिम है या इसमें सहज आनंद भी है? व्यक्ति के जीवन का सुख-शांति-आनंद सब कुछ कृत्रिम हो गया है। भीतर कुटिलता से भरा हुआ आदमी बाहर से कोमल नज़र आ रहा है। बाहर से मुस्कुराने वाला भीतर से कैंची चलाने की कोशिश कर रहा है। बाहर से अपनत्व दर्शाने वाला भीतर से गिराने और काटने की कोशिश कर रहा है। मेरे देखे, व्यक्ति की जिंदगी इतनी दोहरी हो गई है कि बाहर का चेहरा कुछ और है, भीतर का चेहरा कुछ और। 120 For Personal & Private Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बाहर धर्म, तो भीतर अधर्म क्यों? आपने दो मुंहे सांप के बारे में सुना होगा। दो मुंहे इंसान सांपों से ज्यादा ज़हरीले होते हैं। सांप का काटा तो शायद बच भी जाए, पर दो मुंहे इंसान के काटे को तो भगवान भी नहीं बचा सकते। हम देखें कि कहीं हमारी ज़िंदगी दोहरी तो नहीं होती जा रही है। हम बाहर से धार्मिक हैं, लेकिन भीतर से अनैतिक हैं। बाहर से तो प्रसन्न नज़र आ रहे हैं, लेकिन भीतर से कुटिल हैं । हम बाहर से तो सामाजिक एकता की बात कर रहे हैं, लेकिन भीतर से समाज में घात कर रहे हैं। बाहर से तो हम अहिंसा और शांति की बातें करते हैं, लेकिन भीतर से अशांति और क्रूरता को जन्म दे रहे हो । ईमानदारी से अपने मन को टटोलें कि बाहर से अच्छे नज़र आने वाले हम लोग भीतर से कैसे हैं? छत्त हम लोग किसी के घर ठहरे हुए थे। दो मंज़िल का मकान था, थी, बरामदा भी था। बरामदे में उस व्यक्ति ने विभिन्न प्रकार के फूलों के गमले लगा रखे थे। सांझ को जब मैं बरामदे में घूम रहा था तो पाया कि फूल भी नकली थे और गमले भी कृत्रिम थे । उन्होंने कई तरह के नकली फूल सजा रखे थे। सुबह जब मकान मालिक उठा तो उसने उन नकली फूलों पर पानी भी छिड़का । मैंने सोचा, आखिर इन प्लास्टिक के फूलों पर पानी छिड़कने का क्या औचित्य? आखिर मैंने पूछ ही लिया कि इन प्लास्टिक के फूलों पर पानी क्यों छिड़क रहे हो? उसने जवाब दिया ताकि, पड़ौसियों को लगता रहे कि असली फूल हैं। आपके चेहरे पर यह जो मुस्कान है वह प्लास्टिक के फूलों पर छिड़का गया पानी है बस ! भीतर की मुस्कान, भीतर की शांति, भीतर का आनंद मरता जा रहा है । हमारे अन्तर्मन का प्रेम मृतप्रायः होता जा रहा है। जीवन उस साईकिल की तरह हो गया है जो चल तो रही है पर वहीं की वहीं खड़ी है । व्यायाम करने के लिए लोग साइकिल चला तो रहे हैं, पर साइकिल वहीं की वहीं है। कहीं हमारी स्थिति भी ऐसी तो नहीं है? 121 For Personal & Private Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैं जीवन की जो बुनियादी बातें बताना चाहता हूँ, अगर उन्हें जीवन में जी लिया जाए तो जीवन का कायाकल्प हो सकता, जीवन का रूपान्तरण हो सकता है। जीवन में चिर- शांति और चिर- आनंद पाया जा सकता है। ये बातें अगरबत्ती की सुगंध की तरह हैं, जो नासापुटों में अपने आप भर जाती हैं । इन्हें आप अपने भीतर तक उतरने दें, दिमाग में रखने की बजाय दिल तक लाने की कोशिश करें । इच्छाओं का अंत कहाँ जीवन की पहली बुनियादी बात है, अगर आप अपने जीवन में शांति और आनंद पाना चाहते हैं तो दो बातों से जरूर बचें, पहली - आकांक्षाओं का मकड़जाल और दूसरी- व्यर्थ की कल्पनाँ । अगर आपके भीतर चिंता का भूत सवार है, तनाव, अवसाद है, घुटन है, विफलता के कारण कुछ कर नहीं पा रहे हैं, तो इसका मूल कारण है व्यर्थ की कल्पनाएँ और आकांक्षाओं का मकड़जाल। एक इच्छा को पूरी कर देने से क्या इच्छाएँ समाप्त हो जाती हैं? जितनी इच्छाएँ पूरी करते हैं, उतनी ही बढ़ती जाती हैं। आदमी का अंत होता है, लेकिन इच्छाओं का अंत नहीं होता । हमारी इच्छाएँ आकाश के समान अनंत है। जैसे आकाश मकान के पार समाप्त होता दिखाई देता है, लेकिन वहाँ जाकर देखने से वह फिर उतना ही दूर हो जाता है जितना पहले था। वैसे ही जीवन में इच्छाएँ चाहे जितनी पूरी करते जाएँ, फिर भी वह पकड़ से बाहर रहती हैं। ये भी पा लूं, वह भी बटोर लूं और बटोरते - बटोरते घर में कितना संग्रह करते जा रहे हैं। कभी घर में देखा है आपने कितना कूड़ा-करकट इकट्ठा कर रखा है। खाली डिब्बे काम के न थे पर रख लिये कि भविष्य में कभी काम आएँगे। ये चीज काम की नहीं है पर अभी रख लूँ भविष्य में कभी काम आएगी । हम घरों में पचास प्रतिशत सामान ऐसा रखते हैं जिनका उपयोग छह महीनों में कभी नहीं करते। बेवज़ह का संग्रह ! जो लोग बेवज़ह संग्रह करते हैं वे जीवनभर तो संग्रह करते ही हैं, मृत्यु के 122 For Personal & Private Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कगार पर पहुँचकर उनके प्राण इसी संग्रह में अटक जाते हैं। मुझे याद है-एक संपन्न व्यक्ति की पत्नी बीमार हो गई। इतनी बीमार कि मरणासन्न हो गई। उसकी दशा देखकर पति भी व्याकुल रहता कि कितनी तकलीफ उठा रही है फिर भी प्राण नहीं निकलते थे। एक दिन पति ने पूछ ही लिया कि उसे क्या तकलीफ है। पत्नी ने कहा-मेरे पास जो इतना जेवर है, सैकड़ों साडियाँ हैं उनका क्या होगा। पति ने मजाक में कह दिया मैं पहन लूंगा। इतना सुनते ही पत्नी का देहांत हो गया और वर्षों गुजर गये पति आज भी महिलाओं के वस्त्र पहनता है और वैसा ही शृंगार करता है। ___ व्यक्ति जीवन में केवल आवश्यकताओं की पूर्ति करे। आपकी आवश्यकता बीस साड़ियों की है लेकिन आकांक्षा पचास साड़ियों की है। पुरुष लोग ही एक छोटा-सा नियम ले लें कि वे एक ही रंग के कपड़े पहनेंगे जैसे कि केवल सफेद कपड़े पहनेंगे। अब हमें देखिए हमारा नियम है श्वेत कपड़े पहनने का अब कितना संग्रह करेंगे। जब आपका भी नियम होगा तो कितने वस्त्र इकट्ठे करेंगे एक रंग के? लोगों में रंग का भी राग है। कपड़े सब कपड़े हैं पर रंगों का फ़र्क है। महिलाएँ बेहिसाब साड़ियाँ इकट्ठी करती हैं पर पहन कितनी पाती हैं । एक बार में एक ही साड़ी पहनोगे ना, दो तो नहीं पहन पाओगे। लोगों का रंगों का भी राग है । कपड़े सब कपड़े हैं पर रंगों का फर्क है। ___ रंगों का भी अपना राज है । यह आपके स्वभाव के प्रतीक होते हैं। किसी को लाल रंग पसंद है तो किसी को गुलाबी, तो किसी को पीला रंग पसंद होता है। जिसका स्वभाव तेज होता है उसे लाल रंग पसंद होता है। जिसका स्वभाव थोड़ा मीठा होता है उसे गुलाबी रंग अच्छा लगता है। जिसका स्वभाव खट्टीमीठी प्रकति का होता है उसे पीला रंग अच्छा लगता है। जो शांत स्वभाव का होता है उसे सफेद रंग अच्छा लगता है। जिसकी जैसी चित्त की प्रकृति होती है वैसे-वैसे रंग के कपड़े पहनने की कोशिश करता है। व्यक्ति आकांक्षाओं के मकड़जाल में न उलझे, अपनी आवश्यकताओं और आकांक्षाओं की सीमा बनाए।रहने के लिए मकान है, खाने के लिए रोटी है, पहनने के लिए कपड़े हैं, 123 For Personal & Private Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ समाज में इज्जत की जिंदगी है तो विश्राम लो। अपनी आवश्यकता जितना ही धन कमाओ और बेवज़ह उलझकर रातों की नींद न गंवाओ और न दिन का चैन खोओ। कल नहीं, बस यही पल ___ कल्पनाओं की उधेड़बुन मन को अशांत करती है। कल्पनाओं में खोकर आज का सुख-चैन समाप्त न करो। हम आज के लिए केवल दस प्रतिशत सोचते हैं और कल के लिए नब्बे प्रतिशत सोचते हैं । जो आज है व्यक्ति उसके बारे में कम चिंतन करता है और जो भविष्य है जिसका आज कुछ पता ही नहीं उसके लिए अपना वर्तमान गंवाता रहता हैं। कल की जिंदगी मिलेगी तो कल की व्यवस्था भी मिलेगी। हम आज में जिएं, न कि भविष्य की योजनाओं में। व्यक्ति को चिंता रहती है कि छह पीढ़ियाँ तो आराम से रह सकेंगी पर सातवीं पीढ़ी का क्या होगा। तुम अपनी सोचो जो कल होगा उसकी बच्चे खुद व्यवस्थाएं करेंगे। भविष्य की चिंता में आज के आनन्द से क्यों वंचित रहते हो। मुझे याद है - एक दंपति के संतान नहीं थी। शादी को सोलह वर्ष हो चुके थे, लेकिन उन्हें न तो पुत्र हुआ और न ही । पुत्री। सभी देवी-देवताओं को मनाया, तंत्र-मंत्र सब किया, लेकिन कोई लाभ न हुआ। आखिर एक ज्योतिषी के पास गए, उन्होंने सुन रखा था कि वह ज्योतिषाचार्य जो कहता है वह जरूर हो जाता है। उसे उन्होंने अपनी जन्म पत्रियाँ दिखाईं। ज्योतिषी ने जन्मपत्री देखकर कहा कि संतान का योग तो है और ठीक नौ महीने बाद तुम्हारे संतान होने वाली है। उन्होंने ज्योतिषाचार्य को पांच सौ रुपये भेंट किये और खुशी-खुशी घर आए कि नौ माह बाद अपने यहाँ बेटा होने वाला है। अब उन्होंने योजनाएँ बनानी शुरू कर दी कि बेटा होने वाला है तो क्याक्या करना है। सोचने लगे कि सोलह-सत्रह साल बाद बेटा होगा और वे नगर 124 For Personal & Private Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ के सर्वाधिक सम्पन्न लोगों में से हैं सो शहर के सारे लोगों को बुलाएँगे, सूची बनाई गई। कुछ सुझाव पत्नी ने भी दिये। उसके लिए कैसे खिलौने लाने हैं इसकी चर्चा हुई, क्या कपड़े बनवाएँ जाएंगे इस पर भी बात कर ली। लड़का बड़ा होगा तो उसे पढ़ाएंगे लिखाएंगे, अच्छे स्कूल में शिक्षा दिलवाएंगे। लेकिन वह बड़ा होकर क्या बनेगा? पति ने कहा 'अपने बेटे को तो डॉक्टर बनाएंगे' पत्नी ने कहा 'अरे छोड़ो आजकल डॉक्टरों को पूछता कौन है, थोड़े दिनों बाद हालत यह हो जाएगी कि डॉक्टर ठेलागाड़ी लेकर चलेंगे और आवाजें लगाएँगे इंजेक्शन लगवा लो, इंजेक्शन। मैं तो अपने बेटे को एम.बी.ए. कराऊँगी। आजकल उसकी ज्यादा कीमत है।' पति ने कहा 'नहीं, एम.बी.ए. नहीं कराएँगे, डॉक्टर ही बनाएँगे।' दोनों में तनातनी हो गई, दोनों ही अपनी बात पर अड़ गए। बात बढ़ती गई और रात भर विवाद चलता रहा। दोनों एक दूसरे से नाराज़ हो गए। पति ने कहा 'तू मेरी बात क्यों नहीं मानती।' पत्नी ने कहा 'जब बात नहीं मानते तो साथ रहने का मतलब क्या।' पत्नी मायके चली गई। बात बढ़ती जा रही थी, मामला तलाक तक जा पहुंचा। दोनों न्यायालय तक पहुंच गए अपनी-अपनी बात पर अड़े हुए। पत्नी ने कहा 'अब भी मान जाओ, बेटे को एम.बी.ए. बना दो।' पति ने कहा 'नहीं, मर जाऊँगा पर बेटे को डॉक्टर ही बनाऊँगा।' दोनों ही जिद्दी प्रकृति के थे। न्यायालय में न्यायाधीश ने वाद-प्रतिवाद सुना और कहा 'आप दोनों ही भले नज़र आते हो फिर तलाक क्यों ले रहे हो? कारण बताओ तो मैं कोई समाधान कर दूं।' पति ने कहा 'मेरी पत्नी चाहती है कि अपने बेटे को एम.बी.ए कराये और मैं उसे डॉक्टर बनाना चाहता हूं।' न्यायाधीश ने कहा 'इसमें लड़ने-झगड़ने की या तलाक लेने की क्या बात है। इसका समाधान मैं कर देता हूं। तुम्हारा लड़का कहाँ है उसे बुलाओ उसी से पूछ लेते हैं, वह क्या बनना चाहता है।' पति-पत्नी एक-दूसरे का मुँह देखने 125 For Personal & Private Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ "सायदव लगे कि लड़का कहाँ है। न्यायाधीश ने पूछा 'क्या बात है लड़का कहीं बाहर गया है क्या?' जवाब मिला 'बाहर नहीं गया है लड़का तो अभी जन्मपत्री में है।' ____ व्यर्थ की कल्पनाएँ । याद रखें, जो कल देता है वह कल की व्यवस्थाएँ भी देता है। बच्चे का जन्म बाद में होता है, माँ का आंचल दूध से पहले भर जाता है, यह है प्रकृति की व्यवस्था। यह प्राणीमात्र के लिए प्रकृति की व्यवस्था है कि जो चोंच देता है वह चुग्गे की व्यवस्था भी ज़रूर करता है। परिजन अतिथि, अतिथि देव दूसरी बात जो कहना चाहता हूँ वह है-अपने । व्यवहार में शालीनता रखें। जब भी किसी के साथ पेश आएँ, किसी के सामने अपनी बात रखें तो शालीनता बनाए रखें। पत्नी को भी कभी 'तुम' न कहें। मैंने कई घरों में एक विचित्र बात देखी है लोग अपनी माँ को भी 'तुम' कहते हैं और ऊपर से यह भी कि इसमें प्यार और अपनापन होता है। यह कोई प्रेम नहीं है, औरों को सम्मान देना सीखें। अगर आप 'तुम' कहकर बात करोगे तो आपकी संतान भी आपको 'तुम' ही कहेगी। औरों को 'आप' कहकर 'आप' कहलाया जाता है और 'तुम' कहकर 'तुम' कहलाया जाता है। अगर आपका नौकर भी है तो यह नहीं कि हमेशा उससे झगड़ते रहें, उसे डांटते रहें, अपशब्द बोलते रहें । नौकरी उसकी मज़बूरी है, वरना वह भी आपकी तरह सेठ हो गया होता। नौकर के साथ भी सम्मानपूर्ण भाषा का उपयोग करें। एक महिला मुझसे कह रही थी 'क्या बताऊँ महाराज जी मेरे पति बहुत झगड़ालू हैं, गुस्सैल हैं, ये हैं, वो हैं पर मैं किसी से नहीं कहती। ' मैंने कहा 'तब मुझे क्यों कह रही हो।' व्यक्ति शालीनता नहीं रख पाता कि कब कहाँ कौन-सी बात कही जाए। पूर्ण कोई भी नहीं है, सभी में कुछ-न-कुछ कमियाँ ज़रूर होती है। पति में कमियाँ न होतीं तो वह तुमसे शादी ही क्यों करता? मेरे 126 For Personal & Private Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साथ ही न आ जाता? एक-दूसरे की कमियाँ उघाड़ने की बजाय शालीनता से पेश आएँ । याद रखें वह आपकी अर्धांगिनी है नौकरानी नहीं। माना कि आप उसके पति हैं, संरक्षक हैं, फिर भी पत्नी इज्जत की हक़दार है। अगर आप इज्जत पाना चाहते हैं तो इज्जत देना सीखें। ____ मैं तो कहूँगा अपने बच्चों को भी इज्जत दो। अपने पति को भी इज्जत दो। पति की तारीफ़ करने की आदत डालें। मैंने अनेक लोगों पर प्रयोग करके अनुभव किया है कि अगर मैं किसी पुरुष से कहूँ कि 'आपकी पत्नी बहुत सुशील है, अच्छी कुलीन है,शांत स्वभाव की है।' तो वह कहेगा सब आपकी कृपा है, बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद है, आप सही कहते हैं महाराज।' और अगर यही बात मैं उसकी पत्नी को कहूँ तो वह तुरंत कहेगी, 'रहने दीजिए महाराज, मैं जानती हूँ हकीकत क्या है।' अगर मैं कहूँ कि आपके पति देव हैं तो वह कहेगी आपके सामने देव हैं, पर मैं जानती हूँ वे कैसे देव हैं।' औरों की तारीफ़ करने की और सुनने की आदत डालें। घर के सदस्यों को हमेशा अतिथि मानकर चलें, ताकि उनके सम्मान में कभी कमी न आए और अतिथि को हमेशा भगवान । अगर अतिथि से कोई कांच की गिलास फूट, जाए तो आप कहते हैं न् ठीक है, ठीक है, कोई बात नहीं। अतिथि के सामने तो इतना बड़प्पन दिखाते हो और अगर घर की बहू से ग्लास फूट जाए तो उसे अपमानित करने में कोई कसर नहीं छोड़ते। घर के सदस्य को भी अतिथि का दर्जा दो ताकि तुम उनके साथ ग़लत तरीके से पेश न आओ और अतिथि को भगवान का स्वरूप मानो ताकि उन्हें पूर्ण सम्मान दे सको। शालीनता में ही कुलीनता विनम्र रहें और मधुर वाणी का उच्चारण करें। आपके व्यवहार की शालीनता आपके जीवन को ऊंचा उठाएगी। किसी की कुलीनता की पहचान उसकी सम्पत्ति से नहीं उसकी शालीनता से होती है। आप किसी मीटिंग में हैं और एक अन्य व्यक्ति थोड़ी देर से आता है तो आप उसके सम्मान में खड़े 127 For Personal & Private Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हो जाएँ यह आपकी शालीनता है। देकर पाएं मान-सम्मान दुनिया में सम्मान पाने का एक ही तरीक़ा है कि औरों को सम्मान दो। गाली-गलौच आपको शोभा नहीं देती। दोस्तों के बीच, यह सोचकर कि यहाँ तो सब चलता है, उल्टी-सीधी भाषा का प्रयोग करना, अपशब्द बोलना तुम्हें शोभा नहीं देता। क्या आप शराबी हो, पियक्कड़ हो जो ऐसी भाषा का प्रयोग कर रहे हो । शब्दों का उपयोग तौल-तौलकर किया जाए। कुछ लोग होते हैं, जो बोलने के बाद सोचते हैं, कुछ लोग बोलते हुए सोचते हैं और कुछ ऐसे भी होते हैं, जो बोलने से पहले सोचते हैं। जो बोलने के बाद सोचते हैं उनके पास सोचने के अलावा कुछ नहीं होता, लेकिन जो सोचने के बाद बोलते हैं उन्हें बोलने के बाद कभी सोचना नहीं पड़ता। आप नहीं जानते आप मज़ाक-मज़ाक में किस तरह के अपशब्द कह देते हैं। घर में बहू-बेटियाँ होती हैं और आप बैठक-रूम में बैठकर भद्दे मज़ाक करते रहते हैं। किसी एक के पीछे घर की मान-मर्यादा को भंग नहीं किया जा सकता। व्यक्ति से बढ़कर घर की मर्यादा और कुलीनता होती है जिसे घर की मर्यादा और कुलीनता का ख्याल नहीं, वह घर में रखने लायक नहीं होता, क्योंकि एक व्यक्ति के गलत आचरण को समूह ढोये, यह सही नहीं है। आप अपनी मनमर्जी को घर वालों के लिए भारभूत ना बनाएँ। याद रखें, जब बोलें तो किसी का मज़ाक उड़ाते हुए न बोलें। आप नहीं जानते आप तो मज़ाक के मूड में बोल रहे हैं, पर सामने वाला किसी गंभीर मूड में आया है। तब आप उसके मन को बहुत बड़ी चोट पहुँचा रहे होते हैं। जब भी मज़ाक करें इस बात का ध्यान रखें कि सामने वाला भी मज़ाक के मूड में है या नहीं। जिह्वा आपको ज़रूर मिली है पर इसके चारों ओर बत्तीस पहरेदार भी हैं। ये बत्तीस दांत आपकी जीभ को बचा रहे हैं लेकिन इस जीभ का आपने गलत उपयोग कर लिया तो यह जीभ बत्तीस दांत तुड़वा भी सकती है। इसलिए 128 For Personal & Private Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भद्र शब्दों का प्रयोग करें, शालीनता बनाए रखें। ___ एक बात और, सड़क चलते खाद्य पदार्थों का सेवन न करें। राह के किनारे खड़े चाट-पकौड़ों के ठेले से वस्तुएं लेकर खाते लोगों को देखा करता हूँ। चले जा रहे हैं सड़क पर कि ठेला दिखाई दिया और खड़े हो गए। हाथ धोए नहीं, घर से चले थे जब जूते बांधे थे, गाड़ी चला रहे थे तो धूल-गंदगी हाथों पर आ गई, लेकिन लिया दोना और झट से खाना शुरू कर दिया। विवेक रखें, खानपान में विवेक रखें। शालीनता हो खाने-पीने में, उठने-बैठने में। जो भी काम आप कर रहे हैं, हर उस काम के साथ शालीनता जुड़ी रहे। आएँ औरों के काम एक अन्य बात जो जीवन में जीने जैसी है वह है-वक्त-बेवक्त औरों के काम आना सीखें। ज़िंदगी में कभी किसी का समय एक जैसा नहीं रहता है, न मेरा और न ही आपका । अगर मैं अहंकार करूं कि मुझे सुनने के लिए हजारों लोग आते हैं - पर पता नहीं है कि मेरा कल क्या होगा। आज मुझे सुनने के लिए लोग तड़पते हैं - यह सोचकर अहंकार न करें बल्कि यह सोचकर विनम्र रहें कि भगवान ने जब तक यह ज़बान दी है तब तक है, दुनिया में कई लोग हैं जिनकी ज़बान को लकवा हो गया और उनकी बोलती बंद हो गई। कब तक किसकी चली है। अगर कोई ऊपर बैठा है तो ऊपर नहीं हो जाता और जो नीचे बैठा है वह नीचे नहीं हो जाता। कौन बड़ा कौन छोटा, किस बात का अहंकार। हर व्यक्ति समय का गुलाम है वह जीवन में घटने वाली घटनाओं के सामने मजबूर होता है। बड़े से बड़ा और महान से महान व्यक्ति भी परिस्थितियों का दास होता है। इसलिए आज अगर आपका वक्त अच्छा है तो उन लोगों के काम आएँ जिनका वक्त बिगड़ा हुआ है, क्योंकि पता नहीं कल को आपका वक्त कैसा हो। आप कार से जा रहे हैं और आपकी कार खाली है तो किसी बुजुर्ग के लिए मददगार बनिए। चौराहे से जा रहे हों तो बीच चौराहे पर गाड़ी रोककर खड़े न हो जाए। कल ही मैं मंदिर जा रहा था तो देखा कि 129 For Personal & Private Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बीच चौराहे पर केले का ठेलेवाला खड़ा है और आते-जाते लोग अपनी गाड़ियाँ रोककर केले खरीद रहे हैं। मंदिर में आने-जाने वालों को दुविधा हो रही थी। ऐसा न करें । अपनी सुविधा के लिए औरों को दुविधा देना दोष है। कब, कहाँ, कैसे नियमों का पालन किया जाए, इसका ध्यान रखें। ___ सड़क पर जाते हुए अगर कोई घायल व्यक्ति मिल जाए तो यह न सोचें कि पुलिस के लफड़े में कौन पड़े। पुलिस के लफड़े से बचना भी चाहें तो जरूरी नहीं कि बच ही जायें कोई दूसरा निमित्त आपको फंसा सकता है। घायल व्यक्ति को देखकर नज़रअंदाज न करें, अन्यथा ऐसा कर आप अपने भविष्य को बिगाड़ रहे हैं। हो सकता है कल को आप सड़क पर घायल पड़े हों और कोई उठाने वाला न हो। मैं तो कहूंगा कि घायल जानवर या कोई पक्षी भी दिख जाए तो उसके मुंह में भी दो बूंट पानी डाल दें। अगर आप और कुछ नहीं कर सकते तो नवकार मंत्र या गायत्री मंत्र का श्रवण करा दें, उसे ईश्वर की शरण दिला दें। हो सकता है मरते समय आपके द्वारा दिया गया धर्ममंत्र का पाठ फिर से किसी धरणेन्द्र और पद्मावती को पैदा करने का सौभाग्य दिला सके। मदद करें,अहसान नहीं ___ आप अपने पुत्र को व्यवसाय के लिए पांच लाख रुपये दे सकते हैं तो क्या अपने भाई को, चाहे वह आपसे अलग भी हो चुका है, पर दुविधा में पांच लाख रुपये व्यवसाय के लिए नहीं दे सकते? अगर आपके बेटे ने कुछ गलत काम कर दिया, कहीं रुपये डूबो दिये, दिवाला निकाल दिया या शेयर मार्केट में पच्चीस लाख डूबा दिये तो आप अपना मकान बेचकर भी कहते हैं कि बेटा नुकसान कर आया तो भी इज्ज़त तो रखनी ही पड़ेगी। अरे, भाई के साथ ऐसा हो जाए तब? तब भी काम आओ। अगर आपके पडोसी के कार आ जाए तो जलना मत कि उसके कार आ गई और मेरे तो अभी स्कूटर ही है। यह सोचना कोई बात नहीं। उसके कार आ गई, अच्छा हो गया, मेरी गली में तो एक भी कार नहीं थी, माँ 130 For Personal & Private Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बूढ़ी है अगर कभी रात में बीमार हो गईं तो पड़ौसी इतना भला है कि कभी तो कार काम आ जाएगी। औरों के साथ निःस्वार्थ भाव से पेश आएँ। अपने मन को दूसरों के प्रति निर्मल रखें। किसी का कुछ करके कृतज्ञता पाने की कोशिश न करें और न ही किसी से कुछ पाकर कृतघ्न बनें। दूसरों के सहयोगी बनें। अगर आपको पता चल जाए कि आपका पड़ौसी दुकानदार किसी मुसीबत में आ गया है तो उसे नज़रअंदाज़ न करें । उसकी मुसीबत में सहयोगी बनें। जो मुसीबत आज उस घर में आई है कल आपके घर भी आ सकती है। याद रखें मुसीबत किसी व्यक्ति विशेष के पास नहीं आती, वह किसी का भी द्वार खटखटा सकती है। एक-दूसरे का सहयोगी बनना ही मित्रता और मानवता की कसौटी है । सबसे बड़ा सहयोग तुम्हारा आप छोटे बच्चे हैं तो भी चिंता न करें, अगर आप निर्धन हैं तब भी फिक्र न करें - जिस तरह भी आप औरों के काम आ सकते हैं आने की कोशिश करें । मुझे याद है - श्रीराम ने लंका - विजय- अभियान प्रारंभ किया। समुद्र पार करने के लिए समुद्र पर पत्थरों का पुल बनना शुरू हुआ। पत्थर पर पत्थर लगाए जा रहे थे कि तभी राम ने देखा एक गिलहरी पानी में जाती है, फिर मिट्टी पर आती है और फिर पत्थरों के बीच जाती है। वापस आती है फिर पानी में जाती है, मिट्टी पर आती है और फिर पत्थरों के बीच चली जाती है। वह बार-बार लगातार यही किए जा रही थी। राम ने सोचा, आखिर यह गिलहरी कर क्या रही है। उन्होंने हनुमान से कहा, इस गिलहरी को पकड़कर लाओ तो । हनुमान गिलहरी पकड़ लाये और राम के हाथ में दे दी। राम ने गिलहरी से पूछा, 'तुम यह बार- बार क्या कर रही हो। मैं समझ नहीं पा रहा हूँ। तुम पानी में जाती हो, फिर आकर मिट्टी में लोटपोट होती हो, फिर पत्थरों के बीच जाती हो और कुछ करके वापस आ जाती हो'। इस पर उसने कहा, 'भगवन! मैंने सोचा, सती सीता की रक्षा के लिए, उसकी आन 131 For Personal & Private Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बान और शान रखने के लिए आप लंका पर युद्ध के लिए जा रहे हैं, वानरों की सेना आपके साथ, युद्ध में सहयोगी बन रही है तो मैंने सोचा मैं भी सहयोगी बनूं । मेरे पास और तो कुछ सहयोग करने को नहीं था क्योंकि इन पत्थरों को उठाने की क्षमता तो मुझमें नहीं है तो मैंने सोचा कि इन पत्थरों के बीच जो खाली जगह है उसे मिट्टी डाल-डालकर भर दूं, ताकि जब आप सेना सहित इस पर से गुजरें तो ये पत्थर आपको न चुभे ।' । भगवान श्रीराम ने कहा, 'गिलहरी, तू महान है, पर एक बात तो बता। यहाँ तो इतनी बड़ी सेना है और तू छोटी-सी बार-बार आ जा रही है, अगर किसी के पांवों के नीचे आकर मर गई तो।' गिलहरी ने कहा, 'प्रभु! तब मैं यह सोचूंगी कि नारी जाति के शील और धर्म को बचाने के लिए जो युद्ध लड़ा गया उसमें सबसे पहले मैं काम आई।' तब राम ने गिलहरी की पीठ पर स्नेह से, प्रेम और वात्सल्य से भरकर अंगुलियाँ चलाई और कहा 'लंका-विजय अभियान में सबसे बड़ा सहयोग तुम्हारा है।' __ तुम छोटे हो तो यह मत सोचो कि तुम कुछ नहीं कर सकते। जो तुम्हारी हैसियत है तुम उतना तो करो। जो औरों के वक्त-बेवक्त में काम आता है उनका वक्त बेवक्त और बुरा नहीं आता है, जो दूसरों के लिए अपनी आहुति देता है। ईश्वर के घर से उसके लिए आहुतियाँ समर्पित होती हैं। ये वे बातें जिन्हें मैंने अपनी ओर से आपको समर्पित की हैं। ये बातें जीवन के लिए, जीवन के विकास के लिए, सुख के लिए सहज उपयोगी हैं। यदि आप इसमें से दो-चार बिन्दुओं को भी जीवन से जोड़ने में सफल हो जाते हैं, तो निश्चय ही जीवन धन्यभाग हो जाएगा! RAM 132 For Personal & Private Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परिवारकी खुशहाली का राज़ खुशहाल परिवार में हर सुबह ईद, दोपहर होली और साँझ दिवाली होती है। स्वर्ग तब धरती पर उतर आता है जब किसी परिवार में खुशहाली छाई रहती है। जहाँ लोगों के बीच प्रेम, आत्मीयता, आनन्द, सहभागिता, रूठना- मनाना, नाराजगी, आदर और सम्मान एक साथ वैसे ही पला करते हैं जैसे बगीचे में भांति-भांति के फूल खिला करते हैं तो समझ लीजिए कि स्वर्ग कहीं ओर नहीं है। जहाँ परिवार में घुटन और टूटन हैं, द्वेष और विरोध है, ईर्ष्या और विद्वेष की भावना है, समझिए वहीं नरक का बसेरा है। कुछ लोग अपने जीवन और परिवार की खुशहाली के लिए कई प्रकार की सुविधाओं को घर में इकट्ठा करते हैं ताकि उनके होने से बच्चे खुश हो जाएँ। लेकिन घर में उत्तम सामग्रियों के संचयन से स्वर्ग इजाद नहीं होता है। घर में फ्रीज और टी.वी. के होने या विदेशी वस्तुओं के संग्रहण से भी स्वर्ग नहीं होता है। संस्कारों की पहली पाठशाला परिवार में खुशहाली तब छाई रहती है, जब परिवार में आनन्द और प्रेम 133 For Personal & Private Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ का माहौल होता है, हर व्यक्ति एक दूजे के प्रति सहभागिता और त्याग की भावना से जुड़ा होता है। तब राम के वनवास में भी स्वर्ग होता है। इसके विपरीत जहाँ परिवार में द्वेष होता है वहाँ किसी का राजतिलक होते हुए भी नरक होता है। परिवार तो हमारे जीवन की पाठशाला है। विद्यालय में तो बच्चा बाद में जाता है उसके संस्कार पहले घर में पड़ते हैं। विद्यालय तो शिक्षा देने के - लिए होते हैं, लेकिन परिवार ..... अच्छे संस्कार देने वाले होते हैं। हमारे चरित्र का निर्माण हमारे परिवार के आधार पर होता है। हमारा नज़रिया हमारे पारिवारिक चरित्र से बनता है। हमारे जीवन की अच्छी और बुरी आदतों का मूल भी कहीं न कहीं हमारे परिवार के भीतर ही होता है। ___ आप बच्चों के लिए अच्छा प्रवक्ता होने के बजाय उनके सामने खुद को अच्छे उदाहरण के रूप में पेश करें। एक व्यक्ति जो अपने बच्चों के सामने ऊँची-ऊँची डींगे हाँकने की, ऊँचे-ऊँचे आदर्श स्थापित करने की, सत्य, ईमान, धर्म और संस्कार के दीप जलाने की बातें करता है उसके लिए अच्छा होगा कि वह इनके लिए भाषण देने के बजाय स्वयं को इन कार्यों के लिए समर्पित करके उदाहरण प्रस्तुत करें। ___ याद रखिए खुशियाँ कभी किराये पर नहीं मिलती। मैं प्राय: देखा करता हूँ कि हर घर में साजो-सामान लगभग एक जैसा होता है - वही दो या चार पहिया वाहन, टी.वी. फ्रीज, बीवी, बच्चे, दुकान, मकान। फिर भी एक परिवार के सात सदस्य खुश नज़र आते हैं और दूसरे परिवार के पांच सदस्य दुःखी नज़र आते हैं। एक जैसी सुविधाएं दोनों परिवारों में होने के बावजूद कहीं पर खुशियाँ हैं और कहीं ग़म है। सुबह ईद तोशाम दिवाली जहाँ परिवार खुशहाल होता है वहां की हर सुबह पर्व की तरह होती है। 134 For Personal & Private Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिन परिवारों में खुशियाँ नहीं होतीं उन्हें ईद मनाकर खुशियाँ मनानी पड़ती है, जहाँ परिवार में प्रेम और आनन्द नहीं होता उन्हें होली पर खुशियाँ पानी पड़ती हैं और जिन लोगों के अन्तर्मन में प्रेम और शांति के दीप नहीं जलते उन लोगों के लिए दिवाली आया करती है। जहाँ लोगों के घरों में खुशियाँ हैं वहाँ रोज ही होली, दीवाली और ईद का पर्व होता है। रिश्तों के अपने खास अर्थ होते हैं। हम परिवार के आपसी रिश्तों को यूं ही ऊपर-ऊपर न लें, क्योंकि इन्हीं रिश्तों में आदर होता है, इन्हीं में सम्मान होता है, हर रिश्ते में प्रेम और त्याग की भावना भी जुड़ी होती है। ___परिवार के हर सदस्य की अलग-अलग खूबियाँ होती हैं। कोई यह न सोचें कि परिवार के सभी सदस्य एक जैसा ही सोचेंगे। यह भी संभव नहीं है कि परिवार के सारे लोग एक जैसे कर्म करें, एक जैसी आदत और एक जैसा स्वभाव रखें। जैसे हर कुएं के पानी का स्वाद अलग होता है वैसे ही परिवार के हर सदस्य का स्वभाव भी अलग-अलग होता है। जैसे कुछ लोगों की खास खूबियाँ होती हैं वैसे ही कुछ लोगों की खास खामियाँ, खास कमजोरियाँ भी होती हैं। अलग-अलग किस्म के और अलग-अलग स्वभाव के लोग एक परिवार में जीते हैं । इन कमजोरियों, खूबियों, खामियों और आदतों में जीते हुए भी अगर एक-दूसरे के साथ सामंजस्य के भाव बने रहते हैं तो वह परिवार समन्वित होता है। समन्वय के भावों से परिवार में खुशहाली रहती है। वहाँ भाई, भाई से टूटकर नहीं, मिलकर रहता है। ननद और भोजाई आपस में नाक सिकोड़कर नहीं, प्रेम और आत्मीयता से जीते हैं । सास और बहू एक-दूसरे से कटकर, हटकर नहीं बल्कि दूध में शक्कर जैसे घुलमिलकर रहते हैं। स्वर्ग की सावधानियाँ हाँ, परिवार को स्वर्ग बनाया जा सकता है, परिवार को खुशहाल और खुशियों से लबरेज किया जा सकता है। बस जरूरत है कुछ सावधानियों की। व्यवहार की थोड़ी-सी असावधानियाँ जहाँ परिवार को नरक बना देती हैं, वहीं 135 For Personal & Private Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ व्यवहार की थोड़ी-सी सावधानियाँ हमारे परिवार को स्वर्ग बनाए रखती हैं। घर का कोई सदस्य गुस्सैल या क्रोधी प्रकृति का है तो ऐसा न समझें कि उसे अलग कर दिया जाए बल्कि यह सोचें कि इस सदस्य के साथ अपना तालमेल कैसे स्थापित करें। दूसरे यह कोशिश करें कि उसके साथ घर के सभी सदस्यों का ऐसा सरलतम व्यवहार हो कि धीरे-धीरे उसका क्रोध, अहंकार, गुस्सा भीतर-ही-भीतर गलना-पिघलना शुरू हो जाए। ईश्वर तो वैसे जोड़े बनाकर ही भेजता है। पति का स्वभाव अगर तेज होता है तो पत्नी का स्वभाव शीतल बनाकर भेजता है और पत्नी का स्वभाव तेज तो पति को शांत बनाकर भेजता है। इसके बावजूद घर के अन्य सभी सदस्य इस तरह का माहौल बनाकर रखें कि किसी एक के मन में पीड़ा है तो सभी उसकी पीड़ा को समझें । अगर किसी एक के मन में किसी बात को लेकर ईर्ष्या के भाव जग गए हैं तो परिवार के लोग नज़रअंदाज़ करने के बजाय उसे समझें। अगर परिवार में कोई महिला घुटन या कुंठा महसूस कर रही है तो अन्य सभी उसकी कुंठा और घुटन को समाप्त करने की कोशिश करें। हरदम न होगी हरियाली ___ परिवार में हम लोगों का एक-दूसरे के साथ कैसा व्यवहार हो? सबसे पहले देखें . बच्चों के प्रति। अपने बच्चों को । सिखायें कि उन्हें जन्म से सुविधाएँ तो मिली हैं, पर जीवन में सुविधाभोगी न बनें। जिन्हें बचपन से सारी सुविधाएँ मिलती हैं और जो अपने बच्चों को संघर्ष का च्यवनप्राश नहीं खिलाते उनके आगे के जीवन में कोई दुःख की वेला आ जाए, किसी असुविधा का सामना करना पड़ जाए तो वे बच्चे जीवन से हार जाया करते हैं। एक बात का ध्यान रखें कि जीवन में हरी घास कभी-न-कभी सूखती अवश्य है। अपने बच्चों को इस बात का अहसास कराते रहें कि उन्हें जो हरी घास जन्म से मिली है उसे सूखने में ज्यादा वक्त नहीं लगता है। उन्हें इस बात का संकेत देते रहें कि जितने मजे से आज हरी घास में खेल रहे हैं अगर जीवन में सूखी घास भी आ जाए 136 For Personal & Private Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तो उतने ही प्रेम से उसका भी सामना करने का हौंसला रखना । उन्हें समझाएँ कि पैसा बहुत परिश्रम से कमाया जाता है, इसलिए उस पैसे से पढ़े-लिखें, योग्य बनें, फिर खुद कमाकर उपभोग करें। पिता के पैसे पर ऐश न करें। इस बात का उन्हें हमेशा अहसास कराते रहें कि पैसा न तो जमीन खोदकर निकाल सकते हैं, न आकाश से बरसता है । पैसे को परिश्रम से कमाते हैं इसलिए बच्चे पैसे का मूल्यांकन करें। आप पैसे का इसलिए मूल्यांकन कर रहे हैं कि आपने बड़ी मेहनत से कमाया है । जब इसी मेहनत से कमाए गए पैसे को बेटा व्यर्थ ही उड़ाता है तो पिता को तक़लीफ होती है। इसलिए उसे अहसास कराएँ कि जो पैसा उसने मोबाइल पर, गप्पे मारने में खर्च कर दिया, वह उन्होंने परिश्रम करके पाया था । उसे समझना होगा कि दोस्तों के काम पर जो वह इधर-उधर भटक रहा है, गाड़ी चला रहा है उस गाड़ी का पैट्रोल कोई नल में पानी की तरह नहीं आया है, अपितु पैट्रोल में लगे पैसों को अपने परिश्रम से कमाया है। आपको वह सब करना होगा अगर आप चाहते हैं कि आने वाला कल आपके बच्चों के जीवन में दुविधाएँ खड़ी न करें । हमारे पास अधिकांश लोग यही शिकायत लेकर आते हैं कि बच्चे उनके कहने में नहीं है, बुरी संगत, बुरी आदतों से घिर गए हैं, बच्चा मनमानी करता है, उन पर हाथ उठाने लगा, सामने जवाब देने लगा है, जान से मरने-मारने की धमकी दे रहा है । इस तरह उनका बच्चा बिगड़ता जा रहा है। मैंने देखा है कि बच्चा बाईस वर्ष का होता है उससे पहले ही अपने माँ-बाप का जीवन नरक बना देता है । इसलिए उन्हें अहसास करा दिया जाए कि वे मोबाइल पर जो गप्पे लगा रहे हैं या दोस्तों की महफिल में जाने के लिए कार में पेट्रोल फूंक रहे हैं इसका उपयोग अपनी जिंदगी में अपने ही बलबूते पर करें। पहले खुद कमाओ, फिर उसका उपयोग करो । सुख नहीं, दुःख जुटा रहे हैं कई लोगों की सोच होती है कि उन्होंने बचपन में दुःख उठाए हैं अब अपने बच्चों को क्यों वही दुःख उठाने दें? सो वे बच्चों के लिए हर सुविधा का 137 For Personal & Private Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सामान जुटा देते हैं। पर याद रखें, आप तो दुःख के दिनों से उबरकर सुख में आ गए हैं लेकिन आपके बच्चे सुख देखकर दुःख में जाने वाले हैं। तुमने दुःख के, परिश्रम के संघर्ष के दिन देखे थे इसलिए तुम्हें खबर है पैसा कैसे कमाया जाता है और उसने बचपन में सुख के दिन देखे हैं, इसलिए आगे जाकर वह दु:ख के दिन देखने वाला है। इसलिए उसे अहसास कराएँ कि बेटा, जीवन में धन का कितना उपयोग है और उसे कितनी मितव्ययता के साथ खर्च किया जाना चाहिए। उन्हें बुद्धिमान बनाएँ, पर इतना भी न बनाएँ कि वह आपको ही बुद्धू बनाने लगे । कुछ वर्षों पूर्व हम जयपुर में किसी परिवार में एक दिन के लिए ठहरे हुए थे। मैंने पूछा, 'बिटिया कहाँ है?' कहने लगे, 'बाहर गई है गाड़ी लेकर' दोपहर में फिर पूछा, 'बिटिया नहीं आई ?' बताया कि वह अपनी सहेलियों के साथ घूमने-फिरने गई है। सांझ को फिर पूछा तो बताया गया कि वह अपनी सहेलियों के घर से अभी तक नहीं आई है, जिस घर में इतना भी अंकुश नहीं है कि बेटी कितनी देर तक घर के बाहर रहे और माता-पिता को यह भी खबर नहीं है कि बेटी किस सहेली के यहाँ गई है। क्षमा करें ऐसी लड़की जब बीस साल की हो जाएगी तो वह कभी तुम्हारे हाथ की रहने वाली नहीं है। यदि तुम अपने बच्चे को बचपन में हद से ज्यादा सुविधाएं देते रहे तो ये सुविधाएँ ही उनके और तुम्हारे लिए दुविधाएँ बन जाएँगी, क्योंकि जैसे-जैसे बच्चा बड़ा होगा वह और अधिक सुविधाभोगी बनता जाएगा और उसके बाईस साल के होने पर जब आप ब्रेक लगाने की कोशिश करेंगे तब आपका ब्रेक फेल हो जायेगा। उस वक्त आप सोचेंगे कि अब इस पर रोक लगाऊं कि अब यह ये-ये काम न करें, दोस्तों की महफिल में न जाए, खाने-पीने की गलत आदतों से न जुड़े, रात को देर तक घर से बाहर न रहे, पर तब तक देर हो चुकी होगी और बच्चा आपके कहने में न होगा। मैं कहा करता हूँ, अपने बेटे को इतना लायक भी मत बना देना कि वह तुम्हें ही नालायक समझ बैठे । 138 For Personal & Private Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ amayikas चूक जाएँगे,सुधार लें चूक मैं चाहता हूं कि हम अपने बच्चे को बहुत प्रेम दें, प्यार दें लेकिन काम पड़ने पर अपने बच्चे को डाँटने की हिम्मत भी रखें। उसे प्यार करें लेकिन वक्त आने पर उसे अहसास करा दें कि बेटा, अब तुम्हारी सीमा हो गई। अगर आप ऐसा करने में संकोच कर रहे हैं, हिचकिचा रहे हैं कि ऐसा कहने से मेरा बेटा कहीं नाराज न हो जाए, कहीं कुछ गलत न कर बैठे तो जान लें कि आप चूक खा रहे हैं । एक खुशहाल परिवार हमारे द्वारा, हमारी संतान के द्वारा नरक बना दिया जाएगा। अपने बच्चों को केवल विश्वविद्यालय की डिग्री तक सीमित न करें, उसे लौकिक व्यवहार की सीख भी दें, अपने परिवार, घर व समाज की मर्यादाओं की डिग्री दें। अगर आपका बेटा आपके घर की मर्यादाओं का पालन नहीं कर रहा है तो मैं कहना चाहूंगा कि ऐसा बेटा घर में रखने लायक नहीं होता है। जो बच्चे अपनी मर्जी के मालिक हैं और अगर आप उन पर अंकुश नहीं लगा पा रहे हैं तो आगे जाकर आप दुःखी हो सकते है। हम सोचते हैं कि यह तो बच्चा है, चलो इसका कहा मान लेते हैं, पर क्या यह जरूरी नहीं है कि बच्चा भी हमारा कहना माने। जैसे आप बच्चे की मर्जी पूरी करते हैं तो क्या यह जरूरी नहीं हैं कि बच्चा भी आपकी मर्जी का ख्याल रखें। परिवार के हर सदस्य की भावना का मूल्य होना चाहिए, पर परिवार की मर्यादाओं के मौल पर नहीं। आपका बच्चा अगर गलत जा रहा है तो आप समझाएं और उसे लाख समझाने के बावजूद वह सही रास्ते न आए तो मोह में बंधकर सहन करने की बजाए उसका बहिष्कार एवं त्याग करने की हिम्मत दिखाएं। परिवार के सदस्यों की भावना का मूल्य हैं पर याद रखें घर की भी अपनी मर्यादाएँ होती है। ___आप अपने घर में ऐसे कार्य करें कि जिन्हें करके आप स्वयं को गौरवान्वित महसूस कर सकें और बच्चा उन कार्यों का अनुसरण करे तो वे कार्य घर को स्वर्ग का स्वरूप देने का कार्य कर सकें। दुनिया की श्रेष्ठतम रिकॉर्डिंग व्यवस्था बच्चे के दिमाग में स्थापित है। आप जो कह रहे हैं, कर रहे हैं वह सब भविष्य के लिए उसमें रिकॉर्ड होता जा रहा है और समय आने पर भविष्य में 139 For Personal & Private Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ वही रिकॉर्डिंग आपके लिए दोहराई जाएगी। बच्चा व्यवहार को दोहराएगा । जो आप आज कर रहे हैं, कल वह वही करने वाला है । ईर्ष्या का नहीं, प्रेरणा का पाठ पढाएँ I तीसरी बात यह कहना चाहूंगा - बच्चों से अधिक अपेक्षाएं न पालें । आप बार-बार उनसे कहते हैं कि देख यह तेरी क्लास के बच्चे की फोटो अखबार में छपी है । वह खेलने में कितना तेज है, गोल्ड मेडल मिला है । कभी आप कहते हैं कि पड़ौसी का बच्चा अपनी क्लास में फर्स्ट आया है। तुम तो पढ़ते ही नहीं, बुद्ध हो - ऐसा ही काफी कुछ कहते रहते हैं। बच्चों की किसी से तुलना न करें और न ऐसी अपेक्षा रखें कि मेरा बच्चा ऐसा हो, मेरे बच्चा अन्य किसी के जैसा हो । उसे उसका नैसर्गिक विकास प्रदान कीजिए। वह आपका पप्पू है, पीपाड़ी नहीं कि जब चाहें तब उसका बाज़ा बजाने लग जाएँ । कुछ दिन पहले एक महानुभाव अपने दो बच्चों को लेकर हमारे पास आए और कहने लगे कि यह छोटा बच्चा पढ़ने में बहुत होशियार है, बुद्धिमान है, लेकिन यह बड़ा वाला थोड़ा कमजोर है। मैंने पूछा - मतलब ? वार्षिक अंक कितने आते हैं ? कहने लगे - ठीक है, अभी 82 प्रतिशत आए हैं। मैंने कहा तुम्हारा यह बड़ा बच्चा चौथी कक्षा में इंग्लिश मीडियम में 82 प्रतिशत अंक लाया है और तुम कहते हो कि यह कमजोर है । ईमानदारी से बताओ कि जब तुम आठवीं में पढ़ते थे, तब क्या 42 प्रतिशत अंक भी ला पाए थे? आप बच्चों को अखबार में छपी फोटो दिखाते हैं और अपेक्षा करते हैं कि वह भी कर दिखाए, लेकिन अगर आपका बच्चा आपसे सफल मित्र की छपी तस्वीर दिखाकर कहे कि देखो, आप भी कुछ ऐसा करें कि अखबार में आपके दोस्त जैसी तस्वीर छप सके, तब आपका चेहरा कैसा होगा। एक पिता ने अपने पुत्र से कहा मैं तुम्हारी उम्र में था तो बारहवीं पास कर गया था, तू अभी तक नौंवी में ही है । बच्चा तपाक से बोला- रहने दीजिए पापा, राजीव गांधी आपकी उम्र में देश के प्रधानमंत्री बन गए थे, पर आप ? अगर आप बच्चे से अधिक योग्यताएं पाने की उम्मीद करेंगे तो बच्चा भी आपमें उच्च योग्यताओं 140 1 For Personal & Private Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को पाने की अपेक्षा रखेगा। इसलिए कोशिश करें कि सहज रूप में बच्चे के जीवन का विकास हो । बच्चे को प्रेरणा का पाठ पढ़ाइये, उसे आंशिक रूप से स्पर्धा का पाठ भी पढ़ाईये, लेकिन ऐसा न हो कि पढ़ाते-पढ़ाते बच्चे को ईर्ष्या का पाठ पढ़ाना शुरू कर दें। आप प्रेरणा का पाठ पढ़ाइये कि वह औरों के जीवन को देखकर अपने जीवन के विकास की संभावनाओं की तलाश करे। आप बच्चे का सर्वतोभावेन विकास चाहते हैं तो उससे अधिक अपेक्षाएं न रखें। उसके जीवन का सहज विकास होने दें। जब उसके जीवन का सहज विकास होगा तो वह तनावमुक्त होगा और जब आप उसे असहज कर देंगे तो उसे अपना जीवन तनावपूर्ण लगने लगेगा। ध्यान रखें, अपने बुढ़ापे के लिए भी उससे अधिक अपेक्षाएं न रखें कि मैंने इसके लिए क्या-क्या सपने देखे थे, इसके लिए क्या-क्या सोचा था। इसके लिए मैंने क्या-क्या नहीं किया और आज क्या दिन देखने पड़ रहे हैं। आपके मन में यह जो जंजाल चलेगा, वह आपका जीवन नारकीय बना देगा। संतानें आपकी बात मान लें तो अच्छी बात है, स्वीकार कर लें तो ठीक है और अस्वीकार कर दें तो खास बात नहीं है। टोकें,रोके,रखें निग़ाह ___ एक बात और कि आप अपने बच्चों के चरित्र के प्रति सजग रहें । केवल पढ़ाई के नाम पर उनका बचपन 'कॉन्वेंट' स्कूलों के नाम न कर, अपना समय भी उन्हें दे। यह देखने, परखने की भी कोशिश करें कि आपका बच्चा कहाँ जा रहा है, किन लोगों के बीच रह रहा है। अगर वह थोड़ी-सी भी गलत राह पर जा रहा है तो आप नज़रअंदाज करने की बजाय उसे हिदायत दें, उस पर अंकुश लगाएँ, उसे संकेत दें। और तो और उसे टोकने की हिम्मत रखें। अगर वह गलत दोस्त के साथ जा रहा है तो यह न सोचें कि इसे मैं अलग से एकांत में कहूँ कि बल्कि उस दोस्त के सामने उसे टोकने की हिम्मत रखें। बिगडैल बच्चे के माँ-बाप कहलाने के बजाय आप बिना बच्चे के रहें तो ज्यादा अच्छा है। आप कम दुःखी होंगे। गांधारी अगर बिना संतान की होती तो शायद उतनी दुःखी न होती जितनी दुःखी वह दुर्योधन और दुःशासन जैसे सौ पुत्रों को 141 For Personal & Private Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जन्म दे कर हुई थी। मेरे पास बिगड़ी संतानों के माता-पिता आते रहते हैं। मैं उनसे यही कहता हूँ कि आप थोड़ी हिम्मत दिखाओ और अपने बच्चों को सुधारने की कोशिश करो। एक पिता ने मुझे बताया कि उनका बेटा उनके हाथ से निकल गया है, कछ भी कह देता है और अब तो हद हो गई है कि वह उन पर हाथ भी उठा देता है। मैंने पूछा, तुम क्या कर रहे हो। कहने लगे, सहन कर रहा हूँ। मैंने पूछा- अगर तुम्हारे पड़ौसी ने तुम्हें चांटा मारा होता तो तुम क्या करते? उन्होंने कहा साहब, पुलिस में रिपोर्ट लिखवाता। मैंने कहा - यह तुम्हारे जीवन की पहली भूल थी कि बच्चे ने तुम पर हाथ उठाया और तुमने उसके हाथ सही सलामत रहने दिये। अगर उसी दिन तुम उसका हाथ मरोड़ने की हिम्मत रखते तो जिंदगी में उसकी अंगुली भी तुम्हारी ओर नहीं उठती। अपने बच्चे को प्रेम करने का जज्बा रखते हैं तो मौका पड़ने पर उसे ललकारने का हौंसला भी रखें। ऐसा करके आप अपने भविष्य को नरक बनाने से बच जाएंगे। मैं अहमदाबाद के एक परिवार को जानता हूं - बहुत सम्पन्न है । उनके पुत्र के दोनों जेबों में मोबाइल रहते हैं। स्कूल जाने के लिए कई कारें - जब जिसमें जाना चाहे, जाए, न जाना चाहे तो न जाए। पैसा खर्च करने की बेहिसाब छूट माँ को अपने क्लबों और किटी पार्टियों से फुर्सत नहीं है और पिता अपने व्यवसाय में व्यस्त हैं बच्चे की तरफ कौन ध्यान दे। जब वह बालक ग्यारह वर्ष का था, तब से मैं उन्हें जानता हूं। अक्सर मैं कह भी देता था कि जरा बच्चे का भी ध्यान रखें, पर फुर्सत कहाँ । अब वह लड़का सत्रह वर्ष का हो गया है। एक दिन माँ मेरे पास आई, रोने लगी वह, बहुत दुःखी थी, बता रही थी कि एक दिन मैंने बच्चे को किसी बात पर कह दिया कि ज्यादा शैतानी की तो चाँटा मार दूंगी तो उसने पलटकर जवाब दिया - अगर तू मुझे चाँटा मार सकती है तो भगवान ने मुझे भी हाथ दिए हैं। माँ तो अपने बेटे की यह बात सुनकर ही अवाक रह गयी। उसकी आँखों में आँसू के अलावा कुछ नहीं था कि अब ये दिन भी देखने पड़ रहे हैं। 142 For Personal & Private Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बच्चों को दीजिए संस्कार की पूंजी ऐसा तभी होता है जब हम कुछ ज्यादा ही लाड-प्यार में बच्चों को रखते हैं और दूसरा उन्हें टोकने का हौंसला नहीं रखते । इसलिए मैंने पहले ही कहा कि अपने बच्चे को संघर्ष, आत्मविश्वास और परिश्रम का च्यवनप्राश खिलाइये। ___ वे माता-पिता सामान्य होते हैं जो बच्चे को जन्म देते हैं और उन्हें उनकी तक़दीर पर छोड़ देते है कि भगवान उन्हें जैसा चाहे, वैसा पाले। वे माता-पिता मध्यम होते हैं जो बच्चे को जन्म देकर बहुत सारा धन देते हैं। उनके नाम जमीन-जायदाद, मकान-सम्पत्ति आदि छोड़ जाते हैं। श्रेष्ठ और उत्तम प्रकृति के माता-पिता वे होते हैं जो अपने बच्चे को सुसंस्कार की पूंजी दिया करते हैं। वे जीवन का पाठ पढ़ाते हैं, जीवन के नैतिक संदेश देते हैं जिनके चलते वह अपने जीवन का चहुंमुखी विकास करने में सक्षम व समर्थ होता है। ___दो चार फूलों के खिलने से बाग उपवन नहीं होता, वह उपवन तब होता है जब वहाँ कई तरह के फूल खिले होते हैं। अगर आप परिवार में कई सदस्य हैं तो ये अलग-अलग तरह के खिले हुए फूल हैं और इन फूलों से हम अपने घर, जीवन और परिवार के उपवन में खुशहाली और स्वर्ग को संजो सकते हैं। जीवन-विकास के लिए दीजिए धरातल अन्तिम बात जो बच्चों के संबंध में कहना चाहूंगा कि आप अपनी ओर से बच्चों को विकास का मौका दें। यह न सोचें कि बच्चा है, अभी पढ़ने दो। जैसे ही बच्चा सोलह वर्ष की उम्र पार करे, उसे पढ़ाई के साथ अपने बिजनेस से जोड़ने की कोशिश करें। ईश्वर ऐसा न करे, लेकिन यह भी हो सकता है कि आपका बच्चा पढ़ाई पूरी करे, उससे पहले आपके साथ कुछ अनहोनी हो जाए तो आप उसे अपने ऑफिस, दुकान, व्यवसाय से जरूर जोड़ें ताकि शिक्षा के साथ वह व्यवसाय में भी पारंगत होना शुरू हो जाए। आप उसे जीवन-विकास के लिए ज़मीन दें। अगर 143 For Personal & Private Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आप उसे छोटा कैनवास देंगे तो वह वहीं तक सीमित रहेगा, लेकिन बड़ा कैनवास देंगे तो वह जीवन में उतना ही बड़ा चित्र उकेरने में सफल और सक्षम होगा। अगर पुस्तक को पढ़ना है तो उसे आँख से थोड़ा दूर रखना होता है। अधिक पास रखने से आँख खराब हो सकती है, वैसे ही बच्चे का भविष्य संवारना है तो उसे भी आँख से दूर रखने की हिम्मत जुटाइये। जब वह आँख से दूर होगा तो आत्मनिर्भर होगा। ___ मैंने देखा है कि बच्चे घर में माँ से कहते हैं मुझे यह सब्जी नहीं सुहाती, मुझे यह अच्छा नहीं लगता, वह अच्छा नहीं लगता, आज ये बनाओ। माँ खाने का आग्रह करती है और बच्चे ना-नुकुर करते रहते हैं पर वही बच्चे जब हॉस्टल में चले जाते हैं तब उसी सब्जी के लिए लाइन में लगना पड़ता है, गर्म पानी के लिए लाइन में खड़े होना पडता है, जैसा खाना मिले खाने के लिए मजबर होते हैं। तब वे आत्मनिर्भर होना शुरू होते हैं । जब उन्हें ग्राउण्ड मिलता है तब वे अपने विकास के लिए समर्थ होते है । हाँ, अपने बच्चों को व्यावहारिक शिक्षा भी दें। अकेले ही सब्जी खरीदने न जाएं । अपने बच्चे को भी साथ ले जाएं ताकि वह समझ सके कि कौनसे फल या सब्जी काम के हैं या अच्छे हैं, ताकि बड़े होने पर आपके बच्चे औरों के सामने केवल यह न कहते रहें कि हमारे पिताजी बहुत अच्छी कच्चीकच्ची भिंडी लाते थे, या क्या मटर लाते थे छांट-छांटकर, अपितु वे स्वयं भी उतनी ही अच्छी सब्जियां ला सकें। अपने बच्चे को जीवन की पाठशाला की डिग्रियां भी जरूर दीजिए। जब वह इस प्रकार की छोटी-छोटी चीजों के साथ वाकिफ होता रहेगा तो शिक्षा की डिग्रियों के साथ जीवन की व्यावहारिक पाठशाला की डिग्रियां भी अर्जित कर लेगा। ___ बच्चों और अभिभावकों के बीच संबंधों की चर्चा के बाद हम पति-पत्नी के रिश्ते पर बात करते हैं। यह एक नाजुक रिश्ता है। जब पति-पत्नी के बीच तालमेल नहीं होता है तो अग्नि की साक्षी में लिए गए फेरे मुश्किल में पड़ जाते हैं और घर घुटन, तनाव, अवसाद से घिरकर नरक बन जाता है। जानें, उनके बीच कैसा तालमेल हो, कैसे निभाएं यह रिश्ता? 144 For Personal & Private Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चयन जीवन-साथी का मेरा पहला संकेत है कि जीवन साथी बहुत सावधानी से चुनें। आपके अधिकांश सुख और दुःख केवल एक चयन से जुड़े हुए हैं। केवल रंग-रूप देखकर जीवन-साथी न चुन लें। गोरा रंग केवल दो दिन अच्छा लगता है और ज्यादा पैसा दो महीने अच्छा लगता है, लेकिन जीवन न तो केवल रंग के साथ और न केवल धन के साथ जिया जाता है। जीवन तो आखिर जीवन के साथ जिया जाता है। इसलिए जब आप जीवन-साथी का चयन करें तब बारीकी से ध्यान रखें। उसका स्वभाव कैसा है, उसका व्यवहार, सोच, जीवनशैली कैसी है, क्योंकि आपके जीवन के ज्यादातर सुख और दुःख आपके जीवन साथी से जुड़े हुए हैं। ___ पत्नी को अपना समय भी दें। केवल उसे पहनने के लिए कीमती सोने की चूड़ियाँ और वस्त्र ही न दें अपना कीमती समय भी उसे दें क्योंकि वह आपसे थोडा समय भी चाहती है। आप ऑफिस से घर पहंचे और देखा कि पत्नी सोई है, क्योंकि उसके सिर में भयंकर दर्द हो रहा है। आप उसके पास गए और उसके सिर पर हाथ रखा और कहा - यह क्या हो गया, चलो तुम्हें डॉक्टर के पास ले चलूं डॉक्टर को दिखा लाता हूं। पत्नी की आँख में आँसू आ जाते हैं। तुम परेशान हो जाते हो कि मैं तो इसके डॉक्टर के पास ले जा रहा हूं और यह तो रोने लग गई है। आँसू इसलिए आए कि तुमने प्रेमभरा हाथ उसके माथे पर रखा उसने महसूस किया कि मेरे पति के पास मेरे लिए समय भी है। पत्नी अर्धांगिनी है , गुलाम नहीं तुम्हारा समय धन कमाने में, दोस्तों, परिचितों में चला जाता है, अपनी पत्नी को भी समय देना सीखिए। आपका समय आपकी पत्नी के लिए सबसे बड़ा उपहार है । वह आपसे समय चाहती है, उसकी उपेक्षा न करें। न ही उसे अपने अहंकार का पोषण करने का माध्यम ही बनाएं। अपने क्रोध को प्रकट करने का पात्र भी उसे न बनाएं। याद रखें, वह आपकी अर्धांगिनी है, पत्नी है - 145 For Personal & Private Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नौकर और गुलाम नही। मैंने देखा है, लोग बाहर दूसरों के साथ बहुत नरम होते हैं, और घर । जाकर पत्नी के साथ छोटी-छोटी बात में - गरम हो जाते हैं। एक व्यापारी जो व्यापार में । ग्राहकों के साथ नरम थे, समाज की मीटिंगों में सब लोगों के साथ नरमाहट से पेश आते थे लेकिन जैसे ही घर में घुसते सीना तानकर खड़े हो जाते, आँख ऊंची करके गम्भीर हो जाते, नरमाहट गरमाहट में बदल जाती । क्यों? अपनी पत्नी को हर समय कोप का भाजन न बनाएं। ऐसा न हो कि बाजार की झंझटबाजी आप घर पर ले आएं, पत्नी भी तो बेचारी घर में पिसती रही है। घर में आपके बच्चों को संभाल रही है, आपकी माँ ने भी उसे कुछ सुना दिया है, आपकी बहन भी कम नहीं है। कुछ-न-कुछ कड़वी बातें बोलती रहती है - एक वह अकेली है और घर के बाहर से आई है और घर में सात सदस्य पहले से हैं । वह घर में सभी का व्यवहार सहन कर रही है और आप घर में पहुंचे और विस्फोट कर बैठे तो उस बेचारी का कौन होगा ? याद रखें पराई बेटी को बहू बनाकर अपने घर लाना सरल है, पर उसके दिल को जीतना मुश्किल है। लक्ष्मी लाएँ तो लक्ष्मी समझें भी। वह अपने आप आपके घर नहीं आई है। आप घोड़ी पर चढ़कर बैंड-बाजों के साथ नाचते-गाते उसके हाथ थामकर सम्मान के साथ लाए हैं। अगर आप अपने घर लक्ष्मी को लेकर आए हैं तो उसे लक्ष्मी जैसा सम्मान देना भी सीखिए। हर समय अपनी पत्नी पर धौंस न जमाइए। अगर हर समय धौंस जमाते रहे तो मानसिक तौर पर पत्नी आपके विपरीत हो सकती है। मुझे याद है - एक व्यक्ति शादी करने के लिए तैयार नहीं था क्योंकि कुछ लोगों ने उसे कह दिया था कि शादी मत करना। शादी करने के बाद बहुत दुःख उठाने पड़ते हैं । पत्नी अगर गुस्सैल हो तो जीवन नरक बना देती है। घर में हर समय तानाशाही और मनमर्जी चलाती है और आदमी से जो चाहे सो कराती है। उसने सोचा कि जानबूझकर मैं यह आफत मोल नहीं लूंगा। वह अट्ठाईस साल का हो गया तब तक शादी नहीं की। 146 For Personal & Private Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक दिन उसके दोस्त ने कहा 'अरे भाई शादी क्यों नहीं करते?' उसने कहा 'क्या बताएं जमाना बहुत बदल गया है, पत्नी आती है तो धौंस जमाती है, अपने से यह सब सहन नहीं होगा, अकेला रहूंगा और शादी-वादी नहीं करूंगा।' दोस्त ने कहा 'मैं तुम्हें एक उपाय बताता हूं जिससे पत्नी जीवनभर तुम्हारी दासी बनकर रहेगी।' उसने उपाय बताया कि जैसे ही शादी करके पत्नी आए तुम अगले ही दिन से पत्नी पर धौंस जमाना शुरू कर देना। उसने पूछा ‘कैसे?' मित्र ने कहा 'दूसरे ही दिन से अकड़कर ही बोलना और साथ में यह भी जोड़ देना, ऐसा काम करो नहीं तो?' उसने कहा, 'यह ठीक है, पत्नी को पहले दिन से ही दबाकर रखो तो जीवनभर दबी रहेगी।' ऐसा ही हुआ, उसने शादी कर ली और अगले दिन सुबह ऑफिस जाना था। उसने कहा, 'मेरे लिए जल्दी से नाश्ता तैयार करो नहीं तो?' पत्नी ने सोचा आज तो पहला दिन है और यह शुरुआत ही 'नहीं तो' से! फिर उसने कहा, 'जल्दी से मेरे जूतों की पॉलिश करो नहीं तो?' पत्नी और घबराई। दोपहर में ऑफिस से आया और बोला 'मेरे लिए खाना बनाओ नहीं तो ?' पत्नी बिचारी घबराई कि न जाने क्या कर्म किये थे सो ऐसा पति मिला जो हर समय धौंस जमाता रहता है। यह काम करो नहीं तो, वह काम करो नहीं तो ........ आखिर मैं करूं क्या? इस तरह छह महीने बीत गए। उस व्यक्ति ने सोचा दोस्त ने बडी जोरदार बात बताई है। इसकी तबसे हिम्मत नहीं हुई जबान चलाने की। पत्नी बेचारी सोचती न जाने क्या बात है हरदम धमकाते रहते हैं, कहीं मैं कुछ बोल दूं तो डर लगता है मुझे छोड़ ही न दें, कहीं तलाक ही न ले ले। साल भर बीत गया तब भी उस युवक की आदत नहीं सुधरी। जब भी कुछ काम कहता 'नहीं तो जरूर जोड़ देता। एक दिन पत्नी अपनी पड़ोसन के यहाँ गई जो थोड़ी उम्रदराज थी। उसने बातों-बातों में बताया कि मेरा पति जो 147 For Personal & Private Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कहता है मैं करने को तैयार रहती हूँ, आज तक 'ना' नहीं कहा है, लेकिन जबसे इस घर में आई हूं मेरे साथ एक बात हो रही है। वे हमेशा कहते हैं कि यह काम करो नहीं तो, वह काम करो नहीं तो, ऐसा करो नहीं तो, वैसा करो नहीं तो, मेरे साथ हर वक्त नहीं तो, नहीं तो क्यों होता है। आप मुझे कोई उपाय बताएं। पड़ोसन ने कहा 'ठीक है, आज जब वह ऑफिस से आए और तुम्हें कोई काम बताए और कहे नहीं तो, तो तुम पूछ लेना नहीं तो क्या कर लोगे।' उसने कहा 'नहीं, नहीं यह नहीं पूछ सकूँगी, कहीं नाराज हो गए तो, मुझसे तलाक ही ले लिया तो?' पड़ौसन ने कहा 'तू चिंता मत कर, हिम्मत करके आज पूछ ही लेना। मैं सब जानती हूँ तेरा पति कितना दब्बू है। वह कुछ नहीं कर सकता है।' शाम को पति घर आया, जनवरी का महीना था आते ही उसने कहा मुझे नहाना है मेरे लिए पानी गर्म कर नहीं तो .......' पत्नी ने हिम्मत बटोरी और पूछ ही लिया नहीं तो आप क्या कर लेंगे?' अब बारी पति की थी उसने सोचा दोस्त ने यहीं तक बताया था आगे तो बताया ही नहीं था और कुछ उपाय सूझा नहीं सो कहा नहीं तो क्या ठंडे पानी से नहा लूंगा।' सावधान रहिये, अगर आपके पति में ज्यादा धौंस जमाने की आदत रखते हैं तो मेरी बहिनों हौंसले कभी पस्त न होने देना और हिम्मत करके यह बात पूछ ही ले ना - नहीं तो क्या कर लोगे? वो ठंडे पानी से नहाने के अलावा और कुछ नहीं कर सकता। कहना-सुनना एकांत में पति-पत्नी के रिश्तों में एक बात ओर ध्यान रखें कि पत्नी के साथ प्रेमभरा व्यवहार करें। चार लोगों के बीच उसे टोकाटोकी न करें। मुझे यह बात चुभती है। एक पति-पत्नी हमसे मिलने के लिए आए। बहुत से लोग हमारे पास बैठे थे। पत्नी ने कुछ बात कही और पति ने उसे अपनी आँखें 148 For Personal & Private Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दिखानी शुरू कर दीं, पत्नी बेचारी सहमकर एक किनारे बैठ गई। तब मैं सोचने लगा आखिर आदमी ऐसा क्यों करता है? तुम्हें अपनी बात कहने का हक है तो क्या पत्नी को यह हक नहीं है। उसके अधिकारों का क्या हम यूं ही हनन करते रहेंगे? घर-परिवार में अगर आपकी वाइफ है तो उसे सही सलामत रखें । यही आपकी लाइफ है । याद रखें, वाइफ को दु:खी रखकर आप अपनी लाइफ को सुखी नहीं बना सकते। अगर आप पत्नी से अनुशासन चाहते हैं तो आप भी अनुशासन में रहें। उसकी गलती होने पर अगर उससे सॉरी की अपेक्षा रखते है तो अपनी गलती होने पर आप भी सॉरी कहें। सॉरी कहिए-समझौता कीजिए, तनाव से बचिये और मस्त रहिए। घर में छोटी-से-छोटी बात पर सॉरी कहने की हिम्मत रखिए और घर को सुखमय बनाइये। छोटी-छोटी बात को लेकर आप इतने तनाव में आ जाते हैं कि दिन-रात घर में न होते हुए भी घर को नरक बना देते हैं। कम न होने दें पति का गौरव जितना फर्ज़ पति का है घर का सुखद वातावरण बनाने का, उतना ही उत्तरदायित्व पत्नी का भी है। अपने पति को हर समय हाँकने की कोशिश मत कीजिए। अगर हर वक्त उसे हाँक रहे हैं तो एक दिन उग्र बनकर वह आपको ही मारने का प्रयास करेगा। ज़िंदगी में पति के मान-सम्मान और गौरव को बनाकर रखने की कोशिश कीजिए। पति के दोष निकालने वाली महिलाओं से कहूंगा वे पति की तारीफ करने की आदत डालें। चार लोगों के बीच आपके पति को भद्र, सज्जन बताया जा रहा है तो विपरीत टिप्पणी करके उसे दुर्जन घोषित मत कीजिए। पति के साथ लचीला व्यवहार रखें। दोष किसमें नहीं होता। उसमें दोष न होता तो तुमसे शादी ही क्यों करता, संत ही न बन जाता। कमियाँ दोनों में हैं और अगर आप दोनों एकदूसरे के साथ समझौता कर लेंगे, तो परिवार खुशहाल बन सकेगा। एक बात और, अपने पति को कभी गलत कार्य करने के लिए प्रोत्साहित न करें। पति को सुधारने में अगर पत्नी का हाथ है तो उसे बिगाड़ने में भी उतना ही हाथ पत्नी का होता है। अगर गलत काम करके पति द्वारा धन घर में लाया 149 For Personal & Private Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जाए तो उसे प्रोत्साहन न दें। आप पति को बताएं कि आप ऐसे धन को घर में रखना पसंद नहीं करते जो गलत तरीके से कमाया गया है। पति के गलत तरीके से कमाए हुए धन से आप महंगी सोने की चूड़ी खरीद कर पहन लेंगे, पर याद रखें आपके पति के हाथों में आने वाली हथकड़ियों को आप नहीं रोक पाएंगे। गलतियों को दफ़न करें कब्र में अपने घर को खुशहाल बनाना है तो परिवार का हर सदस्य अपने साथ एक कब्रिस्तान रखें और दूसरों की गलतियों को उसमें दफन कर दे। अगर आपकी भूलने । की आदत है, तो औरों की भूलों को भूलने की कोशिश करें। आप हमेशा सरल रहें, दूसरों के साथ सदा नम्र बने रहें और दूसरों को अहसास कराते रहें कि तुम्हारी यह नम्रता तुम्हारा बड़प्पन है, न कि तुम्हारी कमजोरी। जिस दिन लगे कि तुम्हारा हाथ जोड़ना दूसरे को तुम्हारी कमजोरी लग रहा है तो उसे अहसास करा दें कि तुम्हें हाथ उठाना भी आता है। ____ मैं संकेत कर रहा था कि पति को कभी गलत ढंग से धन कमाने को प्रोत्साहित न करें। मैंने सुना है एक व्यक्ति नदी के पुल से कहीं जा रहा था। वह किसी फैक्ट्री का कर्मचारी था, यात्रा पर निकला था। थोड़ी देर आराम करने के लिए रुका और कुर्सी पर बैठा। आराम कर ही रहा था कि यकायक, उसके पास जो ब्रीफकेस था वह पानी में गिर पड़ा। ब्रीफकेस तो अधिक कीमती न था, पर उसके अंदर जरूरी कागजात थे। बेचारा रोने लगा, गुहार लगाने लगा कि कोई पानी में से ब्रीफकेस निकाल दे। उसके रोने की आवाज सुनकर जल देवता वहाँ प्रकट हो गए। जल देवता ने पूछा, 'क्या हुआ भाई?' उसने कहा, 'मेरी ब्रीफकेस पानी में गिर गई है, आप उसे निकाल दें।' जल देवता पानी में गये और सुंदर-सी चमड़े की ब्रीफकेस निकालकर ले आए और पूछा क्या यही तुम्हारा ब्रीफकेस है ?' 'नहीं, यह मेरी ब्रीफकेस नहीं है, वह ईमानदार था। जल देवता फिर पानी में गए और इस बार एक संदर और मजबत ब्रीफकेस लेकर आए जिसमें रुपये भी भरे थे। ब्रीफकेस खोलकर दिखाते हुए पूछा - क्या यह उसकी ब्रीफकेस है? उसने कहा- 'नहीं-नहीं यह भी मेरी ब्रीफकेस नहीं है, मेरी ब्रीफकेस तो रेग्जीन की है, जिसके भीतर रुपये नहीं, मेरे कागज 150 For Personal & Private Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हैं।' जल देवता भीतर गए और उसकी वही रेग्जीन की ब्रीफकेस लेकर आ गए और पूछा, 'क्या यह है?' उसने तपाक से कहा, 'हाँ-हाँ यही है।' जल-देवता उसकी ईमानदारी से इतने खुश हुए कि उसकी वास्तविक ब्रीफकेस के साथ वे अन्य दोनों ब्रीफकेस भी दे दी। घर आकर उसने अपनी पत्नी को सारी बातें बताई। पत्नी खुश हो गई कि कितने अच्छे जल देवता है। उसकी नीयत डोल गई। उसने कहा 'चलो मैं भी चलूंगी नदी पर।' उसने सोचा सोने की चूड़ी डालकर हीरे की ले आऊंगी। पति-पत्नी दोनों नदी पर पहुंचे। बिना पीठ वाली कुर्सी पर बैठे। पहले तो ब्रीफकेस गिरी थी इस बार तो पत्नी ही गिर गई। पति दुःखी होकर रोने लगा, पुकारने लगा कि कोई उसकी पत्नी को बचा ले। तभी जल के देवता प्रकट हुए और पूछा 'वत्स! क्या हुआ?' उसने कहा, पत्नी के कहने पर लोभवश मैं फिर आ गया था, लेकिन इस बार तो मेरी पत्नी ही गिर गई। जल देवता इस बार मेरी पत्नी को निकालकर ला दीजिए।' जल के देवता भीतर गए और ऐश्वर्या को बाहर निकालकर लाए और पूछा 'यह है तुम्हारी पत्नी?' उसने कहा हाँ, यही है।' ऐश्वर्या को उसने अपने पास रख लिया। जल देवता ने कहा, 'भैय्या, पिछली बार जब मैं नोटों से भरा ब्रीफकेस लेकर आया था तब तो तुम्हारे मन में पाप नहीं आया, तुम सच बोलते रहे, लेकिन इस बार झूठ कैसे बोल गया? तेरी पत्नी तो अभी पानी में है। उसने कहा, 'जल देवता अब आपसे क्या छिपाना। पहले आप ब्रीफकेस लाए थे और इस बार ऐश्वर्या को लाए अगर मैं कहता यह नहीं है तो आप माधुरी को ले आते और मैं कहता यह भी नहीं है तो तीसरी बार में आप मेरी असली पत्नी को ले आते और जैसे तीन ब्रीफकेस दिये थे वैसे ही इनको मुझे सौंप देते । अगर मैं तीनों को घर ले जाता तो मुझे अपनी ज़िंदगी नरक नहीं बनानी थी जल के देवता!' ___परिवार में संतुलन रखिए। पति-पत्नी के बीच संतुलन, पिता-पुत्र के बीच संतुलन, सास-बहु के बीच संतुलन ! घर-परिवार की व्यवस्था संतुलन पर ही चलती है। आप घर में संतुलन को साधिए, संस्कारों को साधिए, घर सुखमय और स्वर्गमय बन सकेगा। 151 For Personal & Private Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ करें आपकी जिंदगी को चार्ज संबोधि-टाइम्स सबोधि टाइमम मासिक पत्रिका श्रेष्ठ ज्ञान और श्रेष्ठ चिंतन के प्रसार की पवित्र भावना से प्रकाशित, संपूर्णतः लाभ-निरपेक्ष पन्यथा नलिना - इंदौर में हुआ सत्संग का महाकंभ HAR SEARNINS wwwwwwwwwwwwwwwwwwwwwe त्रिवार्षिक : 200/ आजीवन : 600/ सदस्यता ग्रहण करने हेतु मनीऑर्डर अथवा ड्राफ्ट निम्न पते पर भेजें SRI JITYASHA SHREE FOUNDATION ___B-7, Anukampa || Phase, M. I. Road, Jaipur (Raj.) Ph. 0141-2364737 SHA For Personal & Private Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक व्यक्ति ने कहा, यदि आप जैसा दिमाग मुझे मिल जाये तो मैं बेहतर इंसान हो सकता हूँ।' मैंने कहा, 'तुम बेहतर इंसान बनने का प्रयत्न करो, तुम्हारा दिमाग खुद-ब-खुद मेरे जैसा हो जाएगा। खाली दिमाग शैतान का घर होता है। आप खाली दिमाग़ के नहीं, खुले दिमाग़ के मालिक बनिये ताकि सच्चाई और भलाई कीरोशनीहमारे भीतर आसके। जीवन में मिलने वाली विफलताओं का दोष भाग्य और ग्रह-गोचर को देने की बजाय उस कार्य-शैली को सुधारने का प्रयत्न करें जिसके कारण हमें विफलताओं का सामना करना पड़ा है। आपकी ज़बान आपका सेनापति है और बत्तीस दांत उसके अंगरक्षक।ज़बान ढंग से चले तो दांतों की सुरक्षा-शक्ति बनी हुई रहती है। ज़बान का अगर ग़लत इस्तेमाल कर बैठे तो सावधान ! यह सुरक्षाकी बत्तीसीतुड़वासकती है। जब कोई आप पर क्रोध के अंगारे बरसाए तो आप बदले में प्रेम और शांति की गंगा बहाएँ।परिणाम यह निकलेगा कि अंगारे तो राख होंगे ही, उसकी राख में से भी शांति और क्षमा के फूल खिल उठेंगे। औरों के बीच में सुख-शांति का आनंद लेने के लिए अपने अन्तरमनको संतोषी सदासुखी'की प्रेरणा देते रहें। आधे भरेहए गिलासको आधाखाली मानेंया आधा भरा, यह आप पर निर्भर है।खुशरहना चाहते हैं तो जीवन की गिलासको आधा भरा देखें।यह फार्मुला परेशानी से मुक्ति दिलाता है। इसे जीवन के हर पहलू में अपनाइये। -श्री ललितप्रभ Rs30/ For Personal & Private Use Only 8836