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दूसरा दिया एक संत को, भगवान के भक्त को। तोते दोनों एक जैसे। दो माह बाद जब वह व्यक्ति उस संत के यहाँ पहुँचा तो तोते ने कहा 'राम-राम, घर पर आया मेहमान, 'राम-राम' उस व्यक्ति ने सोचा 'अहा! तोता कितना अच्छा है। मेहमान का स्वागत करता है 'राम' का नाम भी लेता है।' वह आगे चला और पहुँचा डाकू सरदार के यहाँ जहाँ उसने दूसरा तोता दिया था। ____ दूर से आते हुए व्यक्ति को देखकर तोता चिल्लाया, 'अरे आओ, मारोमारो, काटो-काटो, लूटो-लूटो'। उस व्यक्ति ने सोचा- ये दोनों तोते एक माँ के बेटे. दोनों भाई लेकिन दोनों में कितना अंतर! एक कहता है- आओ स्वागतम्, राम-राम। दूसरा कहता है- मारो-काटो-लूटो। उसे समझते देर न लगी कि तोता तो तोता है जिसके पास रहा, जैसी संगति में रहा वैसा ही उस पर असर हुआ।अगर डाकू साधु की संगति पाता है तो वह डाकू नहीं रहता बल्कि महान संत और 'रामायण' का रचयिता बन जाता है। व्यक्ति जैसी सोहबत पाता है वैसा ही बनता जाता है। आप अपना आकलन कर लें कि आप किन लोगों के साथ रह रहे हैं, किस तरह के लोगों के बीच रह रहे हैं। उल्लंघन न हो सीमाओं का
मित्र दो अक्षर का ऐसा रत्न है जिसकी संज्ञा हर किसी को नहीं दी जा सकती। केवल मौज-मस्ती के लिए न तो किसी को निकट आने देना चाहिए और न ही किसी के निकट जाना चाहिए। मित्रता का अर्थ प्रेम या रोमांस नहीं होता। स्वार्थी का मित्रों से जितना दूर रहा जाए उतना ही अच्छा। कोई महिला अगर किसी पुरुष को अपना मित्र बना रही है तो उसे इस बात का जरूर ध्यान रखना चाहिए कि कहीं वो किसी ऐसे पुरुष को मित्र न बना बैठे जो उसके महिला होने का फायदा उठाने की सोच रखता हो । स्त्री और पुरुष की मित्रता आज के परिवेश में अनुचित नहीं कहीं जा सकती और कहींकहीं तो यह आवश्यक भी है, पर इस मित्रता में मर्यादा तो होनी ही चाहिए। आपका व्यवहार अपने पुरुष या स्त्री मित्र के प्रति इतना खुला हुआ भी नहीं होना चाहिए कि हमारे मित्रतापूर्ण सम्बन्धों पर लोग अंगुलियाँ उठाने लग
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