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अपने जीवन को सुखी - सफल बनाने के लिए सबसे पहले अपनी चिंता की आग बुझाये। अगर इंसान सुख-दुःख की चिंता से ऊपर उठ जाये, तो वह मन की शांति का शाश्वत मालिक हो सकता है ।
चिंता से तो चिता भली
चिंता वह आग है जो चिंतन को जला डालती है । चिंता ही चिता बन जाती है । मैं तो कहूंगा भगवान चिता पर भले ही सुला दे, पर कभी चिंता की सेज पर न सुलाये । चिता हमारे शव को जलाती है, लेकिन चिंता जीते जागते इंसान को जला डालती है। यह हमारा रक्त चूस लेती है । यह हमारे जीवन के प्रत्येक पहलू पर आघात करती है, परिणाम स्वरूप हम
पारिवारिक, सामाजिक और व्यावहारिक क्षेत्र में कमजोर हो जाते हैं । चिंताग्रस्त व्यक्ति हर समय स्वयं को दुःखी और हताश महसूस करता है। चिंताग्रस्त व्यक्ति का न स्वयं पर विश्वास होता है न औरों पर । वह दूसरों को संदेह की नज़र से देखता है । अपनी शक्तियों पर उसे विश्वास नहीं रहता । उसकी स्मरणशक्ति कमजोर हो जाती है। उसे जो कार्य करने होते हैं हर समय चिंताग्रस्त रहने के कारण उन कार्यों को भी भूल जाता है । चिता एक बार जाती है लेकिन चिंता बार-बार जलाती रहती है। क्या हम यह पहचानने की कोशिश करेंगे कि हम चिंतित क्यों हैं ? अगर हम जीवन को सहजता से, सरलता से स्वीकार कर लें तो हजार तरह की चिंताओं से बच सकते हैं । ज़िंदगी को युद्ध मानने की बजाय जिंदगी को खेल मानकर चलें ।
क्या है चिंता, चिंता के परिणाम क्या हैं, चिंता से कैसे बचा जा सकता है ? हम विचार करते हैं इन बिन्दुओं पर । चिंता नहीं, चिंतन करें
घटित या घटित होने वाली घटना के प्रति अपनी मानसिकता को लगातार जोड़े रखने का नाम ही चिंता है। किसी एक बिंदु पर व्यक्ति ने सोचा और निर्णय कर लिया इसका नाम है 'चिंतन' और किसी एक बिंदु पर आदमी लगातार सोचता रहा लेकिन कोई निर्णय नहीं कर पाया इसका नाम है
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