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चिंता। अनिर्णय की स्थिति में लगातार किया गया चिंतन चिंता का विकराल रूप ले लेता है और निर्णय की स्थिति में किया गया चिंतन सफलता के द्वार खोल देता है। छोटी-छोटी बातों के कारण तनाव आ जाते हैं। अगर किसी को पूछो कि तुम्हें कोई चिंता है ? वह साफ इन्कार कर देगा, जबकि पूछने वाला और जिससे पूछा जा रहा है दोनों चिंता में हैं । देखा करता हूं लोगों के पास सब कुछ है-पहनने के लिये रंग-बिरंगे अच्छे कपड़े हैं, हाथ में अच्छी घड़ी बंधी है, पांवों में जूते हैं, रहने के लिए अच्छा सुंदर मकान है, महिलाओं के हाथों में चूड़ियाँ, पाँवों में पायल है, हीरे का सुन्दर-सा हार गले में है, फिर भी चेहरे पर उदासी है। सारी सुविधाओं के बावजूद यदि उदासी है तो मानना होगा कि सुख कहीं और है। जाको कछु न चाहिए
आपकी रुग्णता का कारण भी मन में चलने वाली चिंता है। रोग मन में पैदा होते हैं और धीरे-धीरे उनका प्रभाव शरीर पर परिलक्षित होता है। सफलताओं के शिखर छने की आकांक्षा में चलने वाली बेलगाम इच्छाएं जब असफलता से दो-चार होती हैं, तो ये इच्छाएं उसे चिंताग्रस्त कर देती है। चिंता पर वही व्यक्ति विजय प्राप्त कर सकता है, जो चाह पर लगाम लगा चुका है। ___ अपने मन में जरा झांकें कि किस-किस तरह की चिंताएं आपको घेरे रहती हैं। बेटे की बहू आई, अगर वह स्वभाव से थोड़ी कठोर निकल गई, आपके स्वभाव के अनुकूल न निकली, तो इसी बात को लेकर चिंताग्रस्त हो जाएँगे। मेरी मौसी ने इतनी अच्छी लड़की बताई थी लड़के के लिए, उसको तो मना कर दिया और इस लड़की को ले आए, पता नहीं हमारे भाग्य ही ऐसे हैं। अब सास इसी चिंता में सूखती जा रही है। बड़ी जबरदस्त चिंताएं है लोगों की। खाना खाने बैठे तो बैंक बैलेंस की चिंता। बेटा कहीं बाहर गया है तो उसकी चिंता। जहाँ बैठे हो वहाँ का ही सोचना चिंतन है और जहाँ बैठे हो वहाँ किसी अन्य जगह का किया गया चिंतन चिंता है।
चिंताएं भी कैसी-कैसी। महिलाएं रात को सोई हैं कि ख्याल आता है
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