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कल चतुर्दशी है सूखी सब्जी बनानी है क्या बनाऊं गट्टे की बनाऊं, चने की बनाऊं, पापड़ की बनाऊं या किसी और की बनाऊं ? सब्जी बनेगी कल और चिंता हो रही है रात में । महिला सोचती है फ्रिज में चार तरह की सब्जी रखी हैं भिंडी, करेले, तुरुई, ककड़ी। क्या-क्या बनाऊं तभी मन कहता है तीन दिन हो गए हैं, ककड़ी रखी है, पड़े-पड़े सड़ जाएगी, ऐसा करूंगी सुबह सबसे पहले ककड़ी की सब्जी ही बना लूंगी। सब्जी बनेगी कल और चिंता पाली जा रही हैं आज। इसमें चिंता का क्या कारण है ? हां, आप देखना आपके अंदर पलने वाली चिंताएं आपसे कम जुड़ी होती हैं, अनावश्यक इधर-उधर की चिंताएं अधिक होती हैं। हताशा में चिंता का मूल
चिंता प्रकट होने का पहला कारण है . व्यक्ति का निराशावादी दृष्टिकोण। व्यक्ति हर समय निराश रहता है, उसे अपनी क्षमताओं पर संदेह रहता है। वह सोचा करता है कि उससे कुछ नहीं होगा, उसकी तक़दीर साथ नहीं देगी, उसमें कुछ करने की शक्ति नहीं है। निराशावादी दृष्टिकोण वाला व्यक्ति अपने भाग्य को कमज़ोर ही आँकने की भूल करता है । जो निराशावादी होते हैं, वे अपने मन में चिंतित बने रहते हैं और जीवन में कुछ कर नहीं पाते। अगर आप उन्हें उत्साहित भी करेंगे तो भी वे कुछ नहीं करेंगे, बल्कि कहेंगे उनसे ऐसा नहीं हो सकता। उनकी आदत रहती है हर काम में 'माइनस पाँइट' ढूंढ़ने की। फिर वे लम्बे अरसे तक उत्साहहीन होकर कुछ नहीं कर पाते। फिर मानसिकता विकृत होती है। परिणाम स्वरूप ऐसे लोग जीवन में केवल एक काम करते हैं जो जीवन में आगे चल रहे हैं, उनकी टांग खींचने की कोशिश करते हैं। अगर कोई कुछ कर रहा है तो वह उसे अनुत्साहित करते हैं कि तुम कुछ कर नहीं पाओगे।
मेरी नज़र में जिंदगी में तैरना सीखना चाहते हो तो उसके लिये पानी में उतरने का हौसला होना ज़रूरी हैं। एक बार मैं किसी के घर गया। वहां देखता हूं कि एक बालक बिस्तर पर हाथ-पांव चला रहा था। दस मिनट
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