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________________ होता है । दस मिनट पहले हमारे मन में जिसके प्रति मैत्री के विचार थे दस मिनट बाद ही उसके प्रति मन में द्वेष के, दुश्मनी के विचार उत्पन्न हो जाते हैं। थोड़ी देर पहले आप शांत थे लेकिन थोड़ा-सा निमित्त मिलते ही दो मिनट बाद आप अशांत हो जाते हैं । निराशा, अनुत्साह, तनाव, भय, चिंता, अवसाद, क्रोध, कुंठा ये सभी दोष इसीलिए होते हैं कि हम अपनी वैचारिक स्थिति को संतुलित नहीं रख पाते हैं । व्यक्ति के देखने और सोचने के दो नज़रिये होते हैं व्यग्रता से सोचना, समग्रता से सोचना । I कभी कोई अचानक दुर्घटना हुई, कभी किसी ने अप्रिय शब्द कहे, हम समाज के मध्य बैठे और हमारे विरुद्ध गलत टिप्पणी हुई कि हम तत्काल अपनी सोच को व्यग्र कर लेते हैं और ग़लत निर्णय कर लेते हैं । एक व्यक्ति रोज़ स्थानक में जाता था । संयोग की बात कि स्थानक में दूसरे पदाधिकारी से उसका मनमुटाव हो गया । व्यग्रता में उसने निर्णय ले लिया कि आज के बाद वह स्थानक में पांव नहीं रखेगा। व्यग्रता में लिए गए निर्णय हमेशा ग़लत होते हैं । - दूसरी सोच होती है समग्रता की । इधर का भी देखो, उधर का भी देखो, लाभ-हानि, आगे-पीछे इन सबका विवेकपूर्वक निर्णय करने के बाद अपने जीवन में निर्णय करो। एक होता है सकारात्मक चिंतन, दूसरा है नकारात्मक चिंतन । जब आप किसी के बारे में नकारात्मक चिंतन लेकर चल रहे हैं तो जब भी उसके बारे में बात करेंगे आपका दृष्टिकोण उसे काटना ही होगा। दो तरह के लोग होते हैं एक कैंची की प्रकृति के, दूसरे सुई की प्रकृति । जो कैंची की प्रकृति की सोच का मालिक है वह जहाँ बैठेगा, जिसकी सुनेगा, जिसको पढ़ेगा उसका काम होगा काटना । वह ढूंढेगा कि इसमें यह कमी है, उसमें यह कमज़ोरी है । पर सुई की प्रकृति के लोग हमेशा संयोजन और जोड़ने की सोच ही पालेंगे । Jain Education International ― 106 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003873
Book TitleKya Swad Hai Zindagi ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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