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या कॉन नहीं है ?' वेटर ने कहा 'हाँ है, पैंसठ सेंट का ' । बालक ने पैंसठ सेंट वाली आइसक्रीम के कप का ऑर्डर दिया। बच्चे ने आइसक्रीम खाई और चला गया। वेटर जब खाली कप और प्लेट उठाने आया तो देखा कि प्लेट में दस सेंट रखे हुए हैं ।
आप अपने कल्याण और सुख की सोचने के साथ दूसरों के हित का भी ध्यान रखें। हमारे सभी शास्त्र, वेद, उपनिषद और आगम यही तो पाठ दे रहे हैं कि हम केवल अपने सुख की कामना तक सीमित न रहें, बल्कि अपने जीवन में 'सर्वे भवन्तु सुखिन: ' की कामना लेकर चलें। हम अपने मानवीय दृष्टिकोण को उदात्त करें । यह अच्छा है कि आप समाज के मंच पर खड़े होकर पाँच लाख का दान करते हैं पर हमारे नौकर की पत्नी अगर बीमार हो जाए और वो हमसे बीस हजार रुपये पत्नी के इलाज के लिए उधार मांग ले तो हमें देने में क्यों हिचकिचाहट होती है !
न लौटेंगे शब्दों के तीर
व्यवहार को प्रभावी बनाने के लिए तीसरी बात है कि शब्दों का चयन सावधानी से करें । हर बात सोचने की तो होती है पर हर बात कहने की नहीं होती । बुद्धिमान सोचकर बोलता है और बुद्धू बोलकर सोचता है। इससे
अधिक फर्क नहीं है बुद्धिमान और बुद्ध में । इसलिए बोलने में अपने शब्दों का चयन सावधानीपूर्वक करें। सतर्कतापूर्वक करें। जीभ तो आपकी अपनी है और इस पर नियंत्रण भी आपको ही रखना पड़ेगा। हमारी एक जीभ की रक्षा बत्तीस पहरेदार करते हैं लेकिन जीभ का अगर ग़लत उपयोग कर लिया तो बत्तीस पहरेदार (दाँत) भी संकट में पड़ जाएँगे। यह अकेली बत्तीसी को तुड़वा सकती है। इसलिए ग़लत टिप्पणी न करें और न ही व्यंग्य में अपनी बात को पेश करें। किसी को आप खाने में चार मिठाई भले ही न खिला सकें लेकिन आपके चार मीठे बोल खाने को जायकेदार बना देंगे। वाणी का बेहतर उपयोग करना सीखें, क्योंकि मुँह से निकले हुए शब्द कभी लौटाये नहीं जा सकते हैं ।
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