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अपने मित्र के साथ भी क्रूर और अनपेक्षित व्यवहार करते हैं । जब तक व्यक्ति के जीवन में बाहर कुछ और भीतर कुछ की व्यवस्था चलती रहती है तब तक वह बाह्य रूप से तो शालीन नज़र आता है पर भीतर धूर्तता समाई रहती है । ऐसी दोहरी ज़िंदगी जीने वालों के लिए उनका जीवन ही प्रश्न-चिह्न बन जाता है ।
जब तक व्यक्ति की सोच, विचार और व्यवहार में एकरूपता स्थापित नहीं होती, तब तक उसका व्यवहार बाहरी तौर पर खुशमिज़ाज और भीतरी रूप से धूर्त हो सकता है, लेकिन उसके जीवन का श्रेष्ठ चरित्र नहीं हो सकता । व्यवहार व्यक्ति के विचार से, विचार मानसिक सोच से और मानसिक सोच आत्मिक चेतना से बनती है । जैसी व्यक्ति की सोच होती है, वैसी विचारधारा बनती है, जैसी विचारधारा होती है वैसी बुद्धि बनती है और विचार से ही आचार और व्यवहार बनते हैं ।
अपनी पहचान आप
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पहले चरण में आपकी वाणी की शालीनता, शब्दों का चयन और जीने का तौर-तरीक़ा सामने वाले व्यक्ति को प्रभावित करता है । आप किसी के पास बैठे हैं, बातचीत कर रहे हैं, तो इसमें ख़ास यह है कि आप कैसे बैठे हैं, कितना बोल रहे हैं। किसी व्यक्ति का वाणी-व्यवहार, जीवन का व्यवहार, उठनेबैठने का सलीका यह दर्शाता है कि कौन ऊँचे कुल का है और कौन निम्न कुल का है। किसी की कुलीनता न तो पहनावे से, न ही उसके मकान, गाड़ी, कोठी, जमीन-जायदाद से प्रदर्शित होती है, वह तो उसके व्यवहार की शालीनता से प्रकट होती है। किसी भी व्यक्ति के व्यवहार को देखकर, उसके जीने के तौरतरीके, जीवन की व्यवस्था और वाणी - व्यवहार को देखकर हम पहचान सकते हैं कि वह कौन है और कैसा है ।
एक अंधा व्यक्ति सड़क के किनारे बैठा है कि तभी एक व्यक्ति वहाँ से
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