________________
निकलता है और कहता है 'सुन ओ अंधे, तुमने इधर से किसी को जाते हए महसूस किया?' उसने कहा, 'नहीं, मैंने तो महसूस नहीं किया। सेनापति तुम जाओ।' तभी उसके पीछे दूसरा व्यक्ति आया और पूछता है 'सूरदास, तुमने इधर से किसी को जाते हुए पाया?' अंधे व्यक्ति ने कहा 'हाँ, तुमसे पहले सेनापति आया था और महामंत्री तुम उसके बाद जा रहे हो।' तभी तीसरा व्यक्ति आया और उसने भी पूछा, 'हे प्रज्ञाचक्षु, हे महात्मन्, क्या आपने यहाँ से किसी को जाते महसूस किया है ?' उसने कहा 'हाँ, पहले सेनापति गया, फिर मंत्री गया और अब तुम राजन् उनके पीछे जाओ।' व्यक्ति की वाणी सुनकर अंधा भी समझ लेता है कि व्यक्ति किस श्रेणी का है। इंसान अपने व्यवहार को सुधारकर जिंदगी को बेहतर बना सकता है। हम ही जीवन-शिल्पी __आप काले हैं या गोरे, इससे क्या फ़र्क पड़ता है। गोरा और काला होना आपके हाथ में नहीं है, लेकिन अच्छा व्यवहार आपके हाथ में है। ऊँचा कुल नसीब से मिलता है, लेकिन सद्व्यवहार आपको कुलीन बना सकता है। वैसे भी मैं नसीब की बातें नहीं करता क्योंकि उसे बनाना, सुधारना या बिगाड़ना हमारे हाथ में नहीं है पर जो खुद के हाथ में है वह जीवन हम ही सुधार या बिगाड़ सकते हैं। शरीर का रंग-रूप तो सदा एक जैसा रह भी सकता है, लेकिन मैं उस जीवन की बात करता हूँ जिसे हम रंग-रूप देते हैं, दे सकते हैं। मैं जीवन का वह संगीत देना चाहता हूँ जिसकी झंकार सुनकर आप अपना जीवन बदल सकते हैं।
जीवन के व्यवहार को बदलना और उसे बेहतर बनाना हर किसी के हाथ में है। आप सम्पन्न घर में पैदा हुए या विपन्न घर में यह नसीब की बात है। आपके पिता सद्व्यवहार करते हैं या दुर्व्यवहार, यह भी नसीब की बात है, लेकिन आप औरों के साथ कैसे पेश आते हैं, आपकी सोच और विचार कैसे हैं, आपका व्यवहार कैसा है यह नसीब की नहीं, आपकी अपनी देन है। इसलिए मैं आपसे आपके नसीब को नहीं व्यवहार को सुधारने की बात कहता
80
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org