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नौकर और गुलाम नही। मैंने देखा है, लोग बाहर दूसरों के साथ बहुत नरम होते हैं, और घर । जाकर पत्नी के साथ छोटी-छोटी बात में - गरम हो जाते हैं।
एक व्यापारी जो व्यापार में । ग्राहकों के साथ नरम थे, समाज की मीटिंगों में सब लोगों के साथ नरमाहट से पेश आते थे लेकिन जैसे ही घर में घुसते सीना तानकर खड़े हो जाते, आँख ऊंची करके गम्भीर हो जाते, नरमाहट गरमाहट में बदल जाती । क्यों? अपनी पत्नी को हर समय कोप का भाजन न बनाएं। ऐसा न हो कि बाजार की झंझटबाजी आप घर पर ले आएं, पत्नी भी तो बेचारी घर में पिसती रही है। घर में आपके बच्चों को संभाल रही है, आपकी माँ ने भी उसे कुछ सुना दिया है, आपकी बहन भी कम नहीं है। कुछ-न-कुछ कड़वी बातें बोलती रहती है - एक वह अकेली है और घर के बाहर से आई है और घर में सात सदस्य पहले से हैं । वह घर में सभी का व्यवहार सहन कर रही है और आप घर में पहुंचे और विस्फोट कर बैठे तो उस बेचारी का कौन होगा ? याद रखें पराई बेटी को बहू बनाकर अपने घर लाना सरल है, पर उसके दिल को जीतना मुश्किल है। लक्ष्मी लाएँ तो लक्ष्मी समझें भी। वह अपने आप आपके घर नहीं आई है। आप घोड़ी पर चढ़कर बैंड-बाजों के साथ नाचते-गाते उसके हाथ थामकर सम्मान के साथ लाए हैं। अगर आप अपने घर लक्ष्मी को लेकर आए हैं तो उसे लक्ष्मी जैसा सम्मान देना भी सीखिए। हर समय अपनी पत्नी पर धौंस न जमाइए। अगर हर समय धौंस जमाते रहे तो मानसिक तौर पर पत्नी आपके विपरीत हो सकती है।
मुझे याद है - एक व्यक्ति शादी करने के लिए तैयार नहीं था क्योंकि कुछ लोगों ने उसे कह दिया था कि शादी मत करना। शादी करने के बाद बहुत दुःख उठाने पड़ते हैं । पत्नी अगर गुस्सैल हो तो जीवन नरक बना देती है। घर में हर समय तानाशाही और मनमर्जी चलाती है और आदमी से जो चाहे सो कराती है। उसने सोचा कि जानबूझकर मैं यह आफत मोल नहीं लूंगा। वह अट्ठाईस साल का हो गया तब तक शादी नहीं की।
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