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________________ पर हों लेकिन सबसे पहले मनुष्य हैं और मनुष्य होने के नाते एक-दूजे को सम्मान अवश्य दें। किसी दूसरे का किया गया सम्मान स्वयं अपना ही सम्मान है। बोलें प्यार की बोली ___ मनुष्य होने के नाते आपका कर्त्तव्य है कि आप औरों के साथ सभ्यता से पेश आएँ, फिर वह आपकी पत्नी या संतान ही क्यों न हो। आपकी पत्नी आपकी अर्धांगिनी है. सम्मानपूर्वक आप उसे अपने घर लाए हैं उसे भी 'तुम' न कहें, शालीनतापूर्वक व्यवहार करें। हो सके तो अपने बच्चों को भी 'आप' कहिए। अगर आप घर में 'आप' की भाषा बोलते हैं तो घर में सभी 'आप' और सम्मान की भाषा बोलेंगे और आप घर में 'तूतू, मैं-मैं' की भाषा बोलते हैं तो घर का हर सदस्य बातचीत में 'तू-तू, मैं-मैं' का ही प्रयोग करेगा। हमारी एक साधिका बहिन है, अंजु जी गर्ग। उनकी भाषा की शिष्टता गजब की है। हर किसी को प्रभावित करता है उनका वाणी व्यवहार । इस युग में जहाँ पति-पत्नी भी एक दूजे को तुम कहते हैं । लोग अपने बड़े भाई-बहिन को भी तुम कहते हैं, वहाँ वे अपनी सन्तानों को भी आप कहती हैं। कोई अपने से छोटा भी क्यों न हो, पर उसके साथ भी व्यवहार तो सम्मानपूर्वक ही होना चाहिए। हमें इतना महान होना चाहिए कि नौकर के साथ भी हम सम्मानपूर्ण भाषा का प्रयोग करें। अरे नौकरी करना तो उसकी मजबूरी है वरना वह भी तुम्हारा मालिक बन सकता था। ____ मुझे याद है-मुम्बई में एक भिखारी सड़क के किनारे बैठा था। तभी उधर से एक सम्पन्न व्यक्ति निकला। भिखारी ने कहा, 'माई-बाप कुछ दीजिए।' उस व्यक्ति ने झल्लाकर कहा, 'हुंह, बैठ जाते हैं भीख मांगने, भीखमंगे कहीं के थोड़ी गालियाँ भी दी और कहा 'मेरी दुकान पर आकर बैठ, कुछ काम कर, तीस रुपये रोज के दे दूंगा।' भिखारी बोला, 'साहब आप तीस रुपये की बात करते हैं। आप मेरी दुकान पर मेरे साथ बैठ जाओ मैं आपको 85 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003873
Book TitleKya Swad Hai Zindagi ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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