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________________ साठ रुपये रोज के दूंगा।' अब सम्पन्न व्यक्ति का चेहरा देखने लायक था। मैंने देखा एक व्यक्ति की विचित्र आदत थी। कोई व्यक्ति अगर उनसे मिलने घर आता तो वे उसे भोजन का आग्रह करते और वह जब भोजन करते हुए दो कौर भी नहीं खा पाता तो कहते – 'अच्छा हुआ आपने खाने की हाँ कर ली मैं अभी ये खाना कुत्तों को ही डाल रहा था।' तुम भोजन कराकर भी अपनी ओछी वाणी के चलते उसे राख कर देते हो। सभी को सम्मान देना सीखो। भिखारी को देने के लिए तुम्हारे पास कुछ नहीं है तो कम-से-कम प्रेम भरे दो बोल तो बोल सकते हो। प्रेम के मीठे दो बोल तुम्हारी दो रोटियों से भी ज्यादा मूल्यवान होंगे। ___आप किसी को मान नहीं दे सकते तो कम-से-कम अपमान की भाषा तो मत दीजिए। याद रखें, एक दिन अपमानित उसी को होना होता है जो दूसरों को अपमानित करता है। सफल लोग अपने व्यवहार को खुशनुमा और आकर्षक बनाने का प्रयास करते हैं। मैं कहना चाहता हूँ, यही प्रार्थना भी करता हूँ कि भले ही ईश्वर हमारे प्रवचन की चमक को कमजोर कर दे, लेकिन हमारी शालीनता को कभी हमसे न छीने। ऐसा न हो कि कोई सम्पन्न आए तो उसके सम्मान में गलीचे बिछा दें और गरीब या मध्यम वर्गीय आए तो बैठने के लिए भी न कहें । कम-से-कम संतों के द्वार तो सभी के लिए समान रूप से खुले रहने चाहिए। अगर मंदिरों और संतों के द्वार पर भी संपन्न और निर्धन की भेदरेखा बनी रहेगी तो आम लोग धर्म से दूर होते जाएंगे। मैं संतों से निवेदन करता हूँ कि वे मानवता का सम्मान करें केवल पैसे वालों के पिछलग्गू न बनें। पैसे वाला प्रसन्न होगा तो तुम पर थोड़ा पैसा खर्च कर देगा, पर अगर गरीब को भी प्रसन्न रखोगे तो वह श्रद्धा से भरा हुआ अपना सब कुछ तुम पर कुर्बान करने को तैयार हो जाएगा। कोई द्वार तो ऐसा हो जहाँ निर्धन को भी पूरा सम्मान मिले। सम्पन्न तो जहाँ जाएगा सम्मानित हो जाएगा, लेकिन हमारे व्यवहार की शालीनता ऐसी हो कि हमारे द्वार पर अगर कोई गरीब, विधवा, NANGER DANGER DANGER OANG 86 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003873
Book TitleKya Swad Hai Zindagi ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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