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पता चल जाता है और आप स्वयं पर नियंत्रण रखने में सफल हो सकते हैं। आहार-संयम का पूरा-पूरा ध्यान रखें।
बुढ़ापे में दूसरी बात जो करनी चाहिए वह है उचित व्यायाम । यह न सोचें कि बूढ़े हो गए हैं तो व्यायाम और योगासन कैसे कर सकते हैं। ढेर सारे व्यायाम कर सकें या न कर सकें पर संधिस्थलों के व्यायाम चाहे जितनी उम्र हो जाए, अवश्य करना चाहिए। स्वास्थ्य एवं हड्डियों की मज़बूती के लिए, शरीर की जकड़न को दूर करने के लिए, गठिया जैसे रोगों से बचने के लिए, घुटनों के दर्द और पीड़ाओं से मुक्ति पाने के लिए, पीठ-दर्द से बचने के लिए हर व्यक्ति को कम से कम अपने संधि-स्थलों का व्यायाम जरूर कर लेना चाहिए। पन्द्रह मिनट भी अगर आप संधि-स्थलों के व्यायाम कर लेंगे तो बहुत से रोगों से मुक्त हो सकेंगे।
सुखी और स्वस्थ बुढ़ापे के लिए पन्द्रह मिनट प्रातः भ्रमण अवश्य करें। अगर आधा घंटा टहल सकें तो बहुत ही अच्छा, अन्यथा पन्द्रह मिनट अवश्य घूमे। शरीर की हड्डियाँ मशीन की तरह है। अगर उपयोग किया तो काम की रहेंगी, नहीं तो धीरे-धीरे इसमें जंग लग जाएगा और जकड़ जाएंगी। शरीर का यह स्वभाव है कि जब तक इससे काम लो यह काम का रहता है और जैसे ही काम लेना बंद किया कि नाकाम हो जाता है। मैंने अनुभव किया है कि भोर की किरणें आपके शरीर पर पड़ती है तो वे अमृत का काम करती हैं। सुबह की हवा सौ दवा के बराबर है। इसलिए जितना आपसे संभव हो उतना व्यायाम अवश्य करें। स्वास्थ्य-रक्षा के लिए प्राणायाम को भी जोड़ लें। योग और प्राणायाम में हमारे स्वास्थ्य की आत्मा छिपी है। स्वास्थ्य पर रखिए सतर्क निगाहें
तीसरा बिंदु है - आरोग्य के प्रति हर बूढ़ा व्यक्ति सतर्क रहे। शरीर में होने वाले किसी रोग को नज़रअंदाज़ करने की बजाय तत्काल उसका समाधान करने की कोशिश करें। यह न सोचें कि अब क्या करना है, बूढ़े हो गए हैं, कौन डॉक्टर को दिखाए, कौन दवा का खर्चा करे, जैसे-तैसे ठीक
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