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व्यवस्था है। यह सार नहीं जीवन का हिस्सा है। यहाँ आकर व्यक्ति स्वयं के लिए चिंतन करता है, अन्तर्मन की शांति को जीने का प्रयास करता है। जीवन भर जो परिश्रम किया है बुढ़ापे में उससे शांति, विश्राम और आनंद से जीने की कामना रखता है। हम देखते हैं कि प्रायः लोग बुढ़ापे से बचना चाहते हैं। व्यक्ति लम्बी उम्र तो चाहता है, पर बुढ़ापा
नहीं। लेकिन बुढ़ापा आना तो तय है और जब चेहरे पर कोई । झुरीं दिखाई देती है, तो वह सोचता है - चलो कुछ योगासन
, कर लूं ताकि बुढ़ापे से बच सकूँ। जैसे ही बुढ़ापा झलकना शुरू होता है, व्यक्ति कुछ पौष्टिक पदार्थ खाने की सोचने लगता है ताकि बुढ़ापे को थोड़ा टाला जा सके। सफेद होते हुए बालों को रंगकर काले करने की कोशिश करता है कि बुढ़ापे को झलकने से रोक सके। बाल काले करके बुढ़ापे को ढका जा सकता है, पर उससे बचा नहीं जा सकता है हम बुढ़ापे को रोकने की कोशिश करते हैं। मेरी नज़र में जीवन का बसंत जवानी नहीं, बुढ़ापा है। जिसने जीवन को सही ढंग से जीने की कला जान ली है उसके लिए बुढापा फूल बनकर आता है। उसके लिए बुढ़ापा जीवन की शांति बन जाता है और अहोभाव, आनन्द और पुण्यभाव का रूप लेकर आता है। बचपन ज्ञानार्जन के लिए है, जवानी धनार्जन और बुढ़ापा पुण्यार्जन के लिए है। सुख भोगने के लिए जवानी है तो शांति और आनंद को जीने के लिए बुढ़ापा है। भारतीय संस्कृति में जीवन जीने के चार चरण हैं । ब्रह्मचर्य, गृहस्थ, वानप्रस्थ और संन्यास । पहला चरण शिक्षा-संस्कार के लिए, दूसरा चरण संसार-सुख के लिए, तीसरा पुण्यधर्म के लिए और चौथा शांति-मुक्ति के लिए है। धन्य है वह घर-द्वार
जिस घर में वृद्ध होते हैं, जहाँ वृद्ध माँ-बाप का आशीर्वाद होता है, जहाँ बड़े-बुजुर्गों का साया होता है वह घर स्वर्ग होता है, जिस घर में वृद्धों का साया उठ जाता है वहाँ की शांति भी धीरे-धीरे कम होती जाती है। भाग्यशाली होते हैं वे जिन्हें बुजुर्गों का सान्निध्य, सामीप्य और प्रेम मिला करता है। सौ किताबों का ज्ञान एक तरफ और एक वृद्ध का अनुभव एक तरफ। जहाँ सौ पुस्तकों का ज्ञान असफल हो जाता है वहाँ एक वृद्ध की दी गई सही सलाह, उसका अनुभव कारगर हो जाता है। वे घर धन्य होते हैं जहाँ सुबह उठकर घर के सभी लोग
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