SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 57
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चलते हुए नज़र आते हैं । श्री कृष्ण तो मैत्री भाव के प्रतीक हैं । I यहाँ तो सब काम निकालने के चक्कर में लगे हुए हैं। जब तक मेरा काम आपसे निकल रहा है मैं आपका मित्र हूँ और आपका काम मुझसे निकल रहा है आप मेरे मित्र हैं । स्वार्थ भरी दुनिया में सब एक-दूजे से काम निकालने में लगे हुए हैं, मतलब सिद्ध करने में जुटे हुए हैं। कौन अपना और कौन पराया ! ज़िंदगी का सच तो यह है कि अपने भी कभी अपने नहीं होते । यहाँ कौन किसके सब रिश्ते स्वार्थ के । I न कोई कामना, सिर्फ प्रेम-भावना भगवान महावीर से जब पूछा गया कि व्यक्ति किसे अपना मित्र बनाए, किसके साथ अपनी दोस्ती का हाथ बढ़ाए तो महावीर ने कहा सत्त्वे मैत्री - तुम उनके साथ मित्रता करो, जिनके जीवन में सत्व हो, यथार्थ हो, जिनकी जिंदगी दोहरी न हो, जो अच्छे संस्कारों था -- , से युक्त हों, जिनके जीवन में धर्म और अध्यात्म के लिए जगह हो । जो नेक दिल हों, बुरी आदतों से बचे हों, बुरे काम से डरते हों, अच्छे कामों में विश्वास करते हों । मित्र का चयन मौज-मस्ती के लिए न करें। हमारी मित्रता न तो स्वार्थ से जुड़े, न कामना से, न वासना से, न तृष्णा से । मित्रता केवल प्रेमभावना से जुड़े। मित्र वही जो एक-दूसरे के बुरे वक्त में काम आ सके। ध्यान रखें कि मित्र का दृष्टिकोण आपके प्रति कैसा है। बचपन में जब मैं संस्कृत का अध्ययन कर रहा था तब मैंने पंचतंत्र की कहानियाँ पढ़ी थीं । उन कहानियों में मित्रता से संबंधित कहानियाँ भी थी। बंदर और मगरमच्छ की कहानी आप सभी जानते हैं, जिसमें बंदर रोज मगरमच्छ को जामुन खिलाता और उसकी पत्नी के लिए भी दे देता । रोज मीठे-मीठे जामुन खाकर मगरमच्छ की पत्नी जिद कर बैठी कि जिसके दिए जामुन इतने मीठे हैं, वह खुद कितना मीठा होगा, इसलिए वह उसे ही खाना चाहती है । पत्नी की बात और पति न माने! पहले तो समझाने की कोशिश की लेकिन अन्ततः उसकी बात माननी ही पड़ी और तट पर आकर बंदर से कहा, 'तुम्हारी भाभी ने तुम्हें भोजन पर 56 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003873
Book TitleKya Swad Hai Zindagi ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy