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जितना वेतन लेते हैं, उतना काम अवश्य करें और वह भी ईमानदारी से
करें। तब बॉस भी आपके अधीन हो जाएगा और वह आपको नौकरी से न निकाल सकेगा। याद रखें कहीं भी, कभी भी इतना अवकाश न लें कि बॉस यह समझे कि बिना आपके काम चल सकता है।
हम अपने जीवन में काम से प्यार करने की कोशिश करें। अपने जीवन को व्यर्थ न गंवाएँ । जानते हैं न, खाली दिमाग शैतान का घर होता है। हर पल का उपयोग करें। जिस कार्य से आप जुड़े हैं, उसे तत्परता, तन्मयता, एकाग्रता, लयबद्धता से पूर्ण करें। आप अनुभव करेंगे ऐसा करके आप सच्चे कर्मयोगी बन गये हैं ।
निर्मल करें स्वभाव
चौथा मंत्र देना चाहूँगा, आप अपने स्वभाव के प्रति सजग रहें। यदि आप स्वयं सुखी रहना चाहते हैं और दूसरों से भी सुख पाना चाहते हैं तो अपने स्वभाव का अवलोकन जरूर करें। आप देखें कि पूरे सप्ताह में आपने क्या अच्छा और क्या बुरा किया ? किससे प्रेम किया और किसके प्रति क्रोध किया ? किसके प्रति
क्षमा- भाव रखा और किसे अपशब्द कहे ? सप्ताह में एक दिन तय कर लें कि आप अपने क्रिया-कलापों का उस दिन पर्यवेक्षण करेंगे। दूसरे दिन उन सभी कार्यों को दोहराएँ और संकल्प लें कि अच्छे काम अधिक करेंगे और बुरे तथा गलत कार्यों को छोड़ने का प्रयास करेंगे। सदा श्रेष्ठ कार्यों से प्यार स्वयं ईश्वर से प्यार करने के बराबर है
यदि जीवन में सत्संग करने के बाद भी हमारा स्वभाव नहीं बदल रहा है तो मनन करें कि हमने आखिर क्या पाया? तीस दिन पहले भी आप क्रोध करते थे और आज भी आपको गुस्सा आ रहा है तो आप यहाँ आकर व्यर्थ का एक घंटा न गंवाएँ। आप और कुछ काम करें। अगर आप अपने जीवन को रूपान्तरित करने के प्रति सजग नहीं हैं तो यहाँ सत्संग में आने का औचित्य ही क्या हैं ?
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