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इतना करते हैं तो निश्चित ही चिन्तामुक्त जीवन जीने में समर्थ हो जाएंगे। प्रकृति की गोद में रहें जैसा हो रहा है, जो हो रहा है, जिस रूप में हो रहा है उसे स्वीकार करें। सुख, सुविधाओं में नहीं है। सुख भीतर की मस्ती में है, मन की शांति में है ।
चिता जलायें चिंता की
वक्त-बेवक्त, वजह - बेवजह दिमाग पर हावी चिंताएं हमें अंदर से खोखला करती हैं। अच्छा होगा हमेशा चिंताओं के निमित्त पालने के बजाय उन्हें भूलने की कोशिश की जाए । सकारात्मक सोच हमारी चिंताओं को चिन्तन में तब्दील कर सकती है। एक बार संबोधिध्यान शिविर में हमारा उद्बोधन था चिंता, चिंतन और चिता विषय पर । मैंने हॉल में बैठे सभी लोगों से पूछा कि यहाँ बैठे लोगों में से कितने लोग ऐसे हैं, जिन्हें कोई-नकोई चिंता हमेशा सताती रहती है। हॉल में बैठे लगभग सभी लोगों ने अपने हाथ उठाकर संकेत दिया कि सभी लोग चिंतित है ।
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मैंने कहा कि यदि आप चिंतातुर रहेंगे तो मेरी बातों को न तो गहनता से समझ पाएंगे और न ही चिंताओं से मुक्त हो पाएंगे। मैंने कहा, मेरा उद्बोधन सुनने से पहले में आप सब लोगों की चिंताए आप लोगों से लेकर अपने पास रख लेता हूँ ताकि आप चिंता मुक्त होकर मेरी बातों को ग्रहण कर सकें। मैंने एक-एक काग़ज़ सभी श्रोताओं के पास भिजवा दिया और कहा कि आप केवल एक काम करें, इस कोरे काग़ज़ पर अपनी-अपनी चिंताएं लिखकर काग़ज़ मुझे सौंप दें और आप चिंता मुक्त हो जाएं। जब तक व्यक्ति चिंतामुक्त न होगा तब तक चिंतामुक्ति के उपाय समझ भी न पाएगा।
सच्चाई तो यह है कि हमारी एक - एक चिंता हमारी ही चिता की एकएक लकड़ी होती है और उस लकड़ी को हम स्वयं टुकड़ा टुकड़ा कर इकठ्ठा करते हैं। जैसे कई लकड़ियाँ जलाओ और उसमें कुछ सूखी और गीली लकड़ियाँ हो तो सूखी लकड़ियाँ तो आराम से जल जाती है जबकि गीली लकड़ियाँ जल तो नहीं पाती पर धुआँ ही उगलती है । हमारी चिंताओं की
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