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________________ परिवार, पति, पत्नी, दुकान, धन-वैभव, मकान के मोह का परित्याग करके साधना के मार्ग पर कदम बढ़ा दे तो क्या यह कम तारीफ़ की बात है। सचमुच जिसने बुढ़ापे को सही दिशा देने की विद्या पा ली उसी का बुढ़ापा सार्थक हो जाता है। कल तुम्हें, आज उन्हें ज़रूरत __ जो स्थितियाँ बचपन में होती हैं वही स्थितियां लगभग बुढ़ापे में भी होती हैं। आप देखें - जब आप बच्चे थे तो अपने आप खडे नहीं हो पाते थे। मम्मी-पापा ने आपको अंगुली दी और खड़ा होना तथा चलना सिखाया। आज तुम्हारी माँ पिचयासी साल की हो गई है, वह खड़ी नहीं हो पा रही, चल नहीं पा रही है। तब तुम्हारी अंगुली कहाँ चली गई है? बचपन में तुम बिस्तर गीला कर देते थे, गंदा कर देते थे। सोचो कभी ऐसा भी हुआ होगा कि तुम छोटे रहे होगे तब तुम्हारी माँ खाना खा रही थी कि तुमने शौच कर दी थी। तुम्हारी माँ ने खाना बीच में ही छोड़कर तुम्हारे शरीर की शुद्धि की, हाथ धोए और पुनः खाना खाने बैठ गई। यही उदारता क्या तुम अपनी माँ के बुढ़ापे में एक बार भी दिखा पाओगे? बचपन में तुम अपने हाथ से खाना नहीं खा पाते थे, बुढ़ापे में उन्हें भी बहुत दिक्कत होती है। बचपन में तुम्हें अकेले रहना अच्छा नहीं लगता था, बूढों की मजबूरी है कि वे अकेले रहने को विवश हो जाते हैं। फ़र्क केवल इतना है कि जब तुम बच्चे थे तो माँ-बाप ने तुम्हे बड़े प्रेम से पाला था और आज जब वे बूढ़े हो गए हैं तो तुम्हारे भीतर उन्हें पालने के लिए उतना प्रेम नहीं है। जब तुम बच्चे थे तो उन्होंने खुशियों से पाला था लेकिन उनके बुढ़ापे को सुखमय, आनंदमय करने के लिए तुम्हारे अन्तर्मन में कोई खुशियाँ नहीं कि तुम अपने माँ-बाप या दादा-दादी की सेवा करने का सौभाग्य प्राप्त करो। ___ मैंने देखा है जो अपना बुढ़ापा नहीं साध पाते उनका बुढ़ापा कितना त्रासदी से भरा होता है। भगवान, जितना रोग से बचाए उतना उस बुढ़ापे से भी बचाए जिसमें व्यक्ति मोहासक्त तो रहता है पर जीवन का ज्ञान नहीं हो पाता। आचार्य 66 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003873
Book TitleKya Swad Hai Zindagi ka
Original Sutra AuthorN/A
AuthorLalitprabhsagar
PublisherJityasha Foundation
Publication Year2011
Total Pages154
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size17 MB
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