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THE FREE INDOLOGICAL
COLLECTION
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-The TFIC Team.
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वीर सेवा मन्दिर दिल्ली
क्रम गया
कान न...
खण्य
७८
22
नहटा
33
Page #3
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Jaina Vividha Sahitya Shastra Mald No. 8.
JAINA INSCRIPTIONS.
Containing Index of Plases, glossary of names of Shravaka Castes and Gotras of Gachhas and Acharyas with dates.
Collected & Compiled
BY
Puran Chand Nahar, M. A.,B.I., M.R A.S.,
Vakil, High Court; Examiner, Calcutta University; Member, Asiatic Society of Behar & Orissa Research Society; Sahitya Parishad, Calcutta ; Jaina Shwetambar Education Board, Bombay; &c. &c.
Bengal
PART I.
(With plates)
CALCUTTA, 1918
C.G. BOOK STAL', 9, Shama Ch. De St., Calcutta.
Price Rs. 51
Page #5
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Printed by PUNDIT KRISHNA GOPAL MISHRA
At the
B. L. PRESS 1.2, Machuabazar Street, Calcalta. Except pp 1-63 Printed by Randhan Singh at the Vishvavinode Press, Azimgang.
AND Pnbushed by V. J JOSHI, Hony Manager, Jana Vividha Sahitya Shastra Mala Othee, Henares City.
Page #6
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अन-विविघ-साहित्य-शाखमाला [८1
जैन लेख संग्रह । कतिपय चित्र और आवश्यक तालिकायों से युक्त ।
प्रथम खण्ड।
संग्रह कर्ता पूरणचन्द नाहर, एम. ए., बि. एल., वकील, हाईकोर्ट, रयाल एसियाटिक सोसायटी, एसियाटिक सोसायटीगाल,रिसार्च सोसाइटी बिहार-उड़िसा आदि के मेंबर, चिश्वविद्यालय कलकत्ता के परीक्षक इत्यादि २
पीरसंवत् २४४४
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SAIN INSCRIPFIONS.
जैन लेख संग्रह।
भारतके प्राचीन इतिहासके प्रमाणोंके प्रधान साधन लेख ही है। विशेषतः जैनियोंके सिलसिले वार इतिहासके अभाव में इन्हों के लेखों का संग्रह बहुत ही आवश्यक है। इतिहास का बहुतसा भाग शिलालेख पर निर्भर है। जो वात शिलालेखसे जानी जा सकती है वह इतिहाससे नहीं, क्योंकि इतिहास में समय परिवर्तनसे फेरफार पड़ जाता है किन्तु पत्थर पर जो कुछ लिखा गया यह पत्थर के अन्त तक बना रहता है । अतएव लेखों से इतिहास को बहुत सी सहायता मिल जाती है। यह आनन्द की बात है कि भाज कल बहुतसे सजनोंकी इस पर दृष्टी भी आकर्षित हुए है। में इस विषय पर अधिक लिखकर पाठकोंका समय नष्ट करना नहीं चाहता, किन्तु संक्षेपमें कुछ सूचना देता ताकि इस ओर भौर भी लोग ध्यान देकर ऐसे संग्रहसे लाभ उठावें और मेरा परिश्रम सफल करें। मुझे लेखों का यहुत दिनों से प्रेम था, खास करके हमारे जैन लेख देखतेही मेरा जी हराभरा हो जाता था, परन्तु अगरेजी जर्नेल, पत्रिका, रिपोर्ट और स्वदेशो भाषाके पत्र या पुस्तकों में लेख देखने के सिवाय स्वयं कोई लेख देखने का अवसर न मिला था। कुछ दिनोंसे यह जैन लेखों की उपयोगिता मेरे मस्तिष्क में ऐसी घुम पड़ी कि जहां कहीं किसीके पास लेखका हाल सुना या किली मन्दिरादि स्थानों में गया तो वहां के लेन देखे बिना चित्त को शांति नहीं होती थी। इस कारण मैंने स्वयं जो लेख पढ़ें है इतने हक हो गये कि उसका एक संग्रह हो सकता है। इसी विचारसे यह कार्यों में प्रवृत्त हुआ है। मेरा संस्कृत आदि भाषाओं में अधिक प्रवेश नहीं है या मैं कोई बड़ा विद्वान नहीं हूँ, विशेष कर जैन शास्त्र में मेरा स्खला प्रवेश है, इस कारण बहुतसे लेख पढ़ने में भ्रम हो गया होगा सो, भाशा है, कृपया मुधी जन सुधार कर पढ़ेंगे।
लेख स्वास करके पत्थर और धातु पर ही होते हैं। पत्थर परका लेख धातु से शीघ्र भय हो जाता है। इस कारण प्रायः पत्थर पर का लेख कुछ काल में अस्पष्ट हो जाता है। अतएव मैंने विशेष करके धातु परके लेखों को अधिक पढ़ने का प्रयास किया है। लेखों पर प्रायः निम्नलिखित बातें लिखी रहती हैं:
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[ 2 ]
१ । वर्ष, मास, तिथि, वार आदि । २ । वंश, गोत्र, कुलों के नाम । ३ । कुर्शिनामा । ४ । गच्छ, शाखा, गण आदिके नाम । ५ । आचाय्योंके नाम, शिष्यों के नाम, पहावली ।
६ । देश, नगर, ग्रामों के नाम । ७ । कारिगरों के, खोदनेवालो के नाम | ८ । राजाओं के, मंत्रियों के नाम । ८ । समसामयिक वृत्तान्त इत्यादि । ऊपरोक्त विवरणों में जैन श्रावकोंकी ज्ञाति, वंश, गोत्रादि और जैन आचार्योंके गच्छ शाखादिकी दो सूची पाठकों की सेवा उपस्थित की जायगी, जिसमें सुगमता के लिये ( १ ) ज्ञाति, वंश, गोत्र ( २ ) संवत्, आयायके नाम और गच्छ रहेगा। सुन पाठकगणको ज्ञात होगा कि बहुतसे लेखोंमें वंश, गोत्रादिका उल्लेख पूर्णरीतिले पाया नहीं जाता हैः-जैसे कि कोई २ लेखमे केवल गोत्र ही लिखा है, ज्ञाति, वंशका नाम या पता नहीं है । ज्ञाति वंशादिके नाम भी कई प्रकारसे लिखे हुए मिलते हैं, जैसे कि " ओसवाल" ज्ञातिके नाम लेखों में आठ प्रकार से लिखे हुए मिलते हैं । १ । उपकेश [२] उकेश [ ३ ] उचएश [ ४ ] ऊपश [५] जयसवाल ६] ओसलवाल [७] ओश [ ८ ] ओसवाल | लिखना निष्प्रयोजन है कि यहां सूचीमें ऐसे आठ प्रकार नामको एक 'ओसवाल' हेडिङ्ग में दिया गया है। इसी प्रकार कोई २ लेखों में आचार्यों के नाम, उनके शिष्योंके नाम, गच्छादि का विवरण पूर्णतया नहीं है । प्रतिष्ठास्थानोंके नाम भी बहुतसे लेखोंमें बिलकुल नहीं है। पुरातत्त्रप्रेमी सज्जनगण अच्छी तरह जानते हैं कि प्राचीन विषय में ऐसी बहुतसी कठिनाइयां मिलती हैं, स्थान २ में प्राचीन लेख घिस गये हैं, इस कारण बहुत सी जगह प्रयत्न करने पर भी खुलासा पढ़ा नहीं गया है
यह "लेख संग्रह" संग्रह करनेमें हमें कहां तक परिश्रम और व्यय उठाना पड़ा है सो सुन्न पाठक समझ सक्त हैं: "महि] वन्ध्या विजानाति गर्भप्रसववेदनाम्।” अधिक लिखना व्यर्थ है। यह संग्रह किसी भी विषय में उपयोगी हुआ तो मैं अपना समस्त परिश्रम सफल समझंगा ।
आशा है कि और २ आचार्य, मुनि, विद्वान् और सज्जन लोग भी जैन लेख संग्रह करनेमें सहायता पहुंचायें और उनके पास के, या जिस स्थान में वे विराजते हों वहांके जैन लेखों को प्रकाशित करें तो बहुत लाभ होगा और शीघ्र ही एक अत्युत्तम संग्रह बन जायगा । किं बहुना ।
कलकत्ता
इ०
१८१५ }
स० [१९१५
निवेदकपूरणचन्द नाहर |
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सूचीपत्र ।
-000
:: :: ::
पत्रांक अजिमगंज [ मुर्शिदाबाद] सुमतिनाथजीका मन्दिर पमप्रभुजीका नेमिनाथजीका ,
... ४ चिंतामणिजीका , संभवनाथजीका शांतिनाथजीका , सांवलीयाजीका , राय बुधसिंहजी का घर दे० ...
____ बालूचर [ मुर्शिदाबाद] भादिनाथजीका मन्दिर विमलनाथजीका ,, संभवनाथजीका सांवलीयाजीका दादाजीकास्थान ... ... रायधनपतसिंहजीका घर दे ... किरतचन्दजीका घर दे० ... ...
पत्रांक कलकत्ता धर्मनाथ स्वामीका मंदिर
... श६४ महावीर स्वामीका चंद्रप्रभुजीका शीतलनाथजीका , ... .. २६ माधोलाबजीका घर दे०(बड़तल्ला) माधोलालजीका घर दे० मुनिहट्टा) जीवनदासजीका घर दे० पन्नालालजीका घर दे. आदिनाथजीका देरासर ... ... ३६३
चंपापुरी [भागलपुर] वासुपूज्यजीका मंदिर
नाथनगर (भागलपुर) सुखराजजीको घर देरासर
भागलपुर वासुपूज्यजीका मंदिर ... ... ३८
काकंदी [विहार] सुविधिनाथजीका मंदिर ... ... ४१
क्षत्रिय कुंड [विहार ] महावीर स्वामीजीका मंदिर ... ... ,
गुणाया [ विहार] श्रीमहावीरजीका मंदिर ... ... २
पावापुरी [ विहार] . समवसरण जलमंदिर गांव मन्दिर ... ... ...
मादिनाथजीका मन्दिर
महिमापुर [मुर्शिदावाद]
महिमा गासी जगत्शेठजीका मन्दिर ... ... ... १८
कासिमबाजार [ मर्शिदाबाट नमिनाथजीका मंदिर
. दस्तुरहाट [ मुर्शिदाबाद] जीर्ण मन्दिर ..
"
२१
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मथियान महल्लाका मन्दिर
चंद्रप्रभुजीका यादिनाथजीका
पार्श्वनाथजी का मंदिर
बिपुलगिरि
रत्नागिरि
उदयगिरि
स्वर्णगिरि
वैभारगिरि
...
भादिनाथजीका मंदिर
शेठ सुदर्शनजीका
ऋजुवालुका
मधुधन टोंक के चरणों पर
पार्श्वनाथजीका मंदिर
दादावाड़ी
राजगृह
जादुघर
बिहार
N
लभद्रजीका मंदिर
कुंडलपुर
...
"
पटना
....
...
33
समेत शिखर
रायमेघराजजी का मंदिर
543.
तेजपुर [ आसाम ]
म्युनिक [जर्मनी ]
पत्रांक
:::
***
[ * ]
:
५२
५४
५५० बाई
५८
६४
६५
8 =
६७
"
७०
७१
23
८४
༥*
पत्रक
चिकागो [ अमेरीका ]
इङ्गलेग्ड
डॉ० कुमार स्वामी...
६३
जयपुर [ राजपूताना ] व्यापारीओं के पासकी मूर्ति पर अजमेर [ राजपूताना ]
बारली गाव से प्राप्त पत्थर
बनारस [ काशी]
सुतटोला का मंदिर
जीका पटनीटोलेका
चुभीजीका
रामचन्द्रजीका
प्रतापसिंहजीका कुशला शीका
"
"
"
સ્
८३ कुशलाजीका मंदिर
"
"
19
21
सिंहपुरी [ बनारस ]
मिर्जापुर
पचायती मंदिर धनसुखदासजीका,
चेलपूरीका मंदिर नवघरेका
चिरेखानेका छोटे दादाजीका
६६ हजार मलजी का घर दे०
दिल्ली
"
६७
25
३८
६६
ܕܕ
39
१००
१०२
१०१
१०३
१०५
१०६
१०९
११६
१.३
१२१
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पत्रांक
१६५
पत्रांक अजमेर।
शत्रुजय पर्वत। गौडी पार्श्वनाथजी का मन्दिर
१२४ / साकरचन्द प्रेमचन्दको टुक सम्भवनाथजी का ,
प्रेमामाई हेमाभाईकी , दावाजीकी छत्री ,
प्रेमचन्द मोदीको
शेठ वाल्हाभाईको जयपुर।
शेठ मोतीशाको , यति श्यामलालजीके पास मूर्तियों पर ... " १४ मूल (मादिश्वरकी ) , पति किशनचन्दजी के पास मूर्तियों पर ... ... १३५
राणकपुर। जोधपुर।
आदिनाथजीका मन्दिर महावीर स्वामीजीका मन्दिर ...
सादडी।। केसरीयानाथजीका , ...
पार्श्वनाथजीका मन्दिर मुनिसुव्रत स्वामीजीका , ... धर्मनाथजीका , ...
नाकोडा। दिनाजपुर ।
जैनमन्दिर चन्द्रप्रभु स्वामीका मन्दिर ...
बालोतरा। धुलेवा रिखमदेव ( मेवाड ) शीतलनाथजीका मन्दिर केसरीयानाथजीका मन्दिर . ... ... १५८ | केसरीयानाथजीका मन्दिर ... दादाजीकी छत्री
बाड़मेड़। पगलीयाजी
बडा मन्दिर श्रीपार्श्वनाथजोका ... पालीताणा ( काठियावाड )
यति इन्द्रचन्दजीका उपाश्रय मोतीसुखीयाजीका मन्दिर
गोपोंका शेठ नरसिंह केशवजीका ,
मेडता। शेठ नरसिंह नाथाका , शेठ कस्तुरचन्दजीका ,
श्रादिनाथजोका मन्दिर मोडी पार्श्वनाथजीका ,
पार्श्वनाथजीका मन्दिर यति करमचन्द हेमचन्दका ,,
| वासुपूज्यस्वामीका , बड़ा मन्दिर (गांवमें) ,
धर्मनाथजीका , दिगंबरीका पञ्चायती
आदिश्वरजीका नया ,
१७)
:
१८१
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पत्रांक
पत्रांक
२२१
.."
२२६
| সালাহলীজা মলি •
सेवाडी। महावीरजीका मन्दिर ...
• सांडेराव । शान्तिनाथजीका मन्दिर
नाना। जैन मन्दिर
लालराई। जैन मन्दिर
...
२२०
...
२२१
हटुंदी
चिन्तामणिपार्श्वनाथका,, कडलाजीका महावीरजीका सपगच्छका उपाश्रय
ओसिया। महावीर स्वामीका मन्दिर सचियाय माताका " " इंगरीके चरण पर
पाली। नौलखा मन्दिर गोडीपार्श्वनाथका मन्दिर लोढारो वासका शान्तिनाथजीका, सोमनाथजीका ,
नाडोल आदिनाथजीका मन्दिर ताम्र शासनमें
नाडलाई। मदिनाथजीका मन्दिर नेमिनाथजीका ,
कोट सोलंकी। जैन मन्दिर
घाणेराव। जैन मन्दिर
घेलार। भादिनाथाजीका मन्दिर
फलोदी। बड़ा जैन मन्दिर
२३३ २३४
महावीरजीका मन्दिर ... माताजीका . खण्डरमें मिला हुआ पत्थर पर ...
जालोर। महावीरजीका मन्दिर चामुखजीका तोपखानामें
हरजी। जैन मन्दिर
...
२४३
...
२३८
जूना।
जैन मन्दिर
...
२४४
जूना बेडा।
जैन मन्दिर
नगर गांव।
२२१
जैन मन्दिर
...
२४१
Page #13
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________________
पत्रांक
रत्नपुर
...
२६७
....२४८ जैन मन्दिर ... २५० जैन मंदिर
नोदिया
--
...
पत्रांक सांचोर
वीणा जैन मंदिर ... ...
२४८ जैन मन्दिर -
लाज-नीतोडा. जैन मंदिर
बिलाडा जैन मंदिर
जैन मंदिर घोहिया (मारवाड़)
कोटरा जैन मंदिर
__... २५० जैन मंदिर कोटार [ गोड़वाड़]
घरमाण जैन मन्दिर
जैन मन्दिर किराडू
लोटाना कुमारपालका जीर्ण मन्दिर ....
जैन मन्दिर सुंधा पहाड़ी
माकरोरा जैन मन्दिर
... २५३ जैन मन्दिर घटियाला
धवली जम मन्दिर पिंडवाडा
सीवेरा जैन मन्दिर वीरवाडा
जोरावल पार्श्वनाथ जम मन्दिर बसंतगढ़
जैन मंदिर ... ... ... अन मन्दिर
अंजारा पार्श्वनाथ पालडी जैन मन्दिर
कापडा पार्श्वनाथ कालाजर
जैन मन्दिर ... ... ... मंन मन्दिर
अलवर कामद्रा
... ... जैन मंदिर
.... ... ... साम मंदिर . ... उपमा
पटना म्युमयम जर मन्दिर "
.. २६६/ पाषाणके चरणों पर .. .
जैन मंदिर
जीन मंदिर
"
२०
२७०
जैन मंदिर
२७३
२७४
२७७
Page #14
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________________
लेखांक
लेखांक प्रतिष्ठा स्थान। ".
१७३
४८१ ४७१
अलवर
""
६.७
૮૪ ६४२ ६५२
२०६
८९६
२२१
१२५ ३२७
कलागर (कालाजर)"
काकंदी अजमेर
काकर अजिमगा (मुर्शिदाबाद)
८५७६।१४२ कायषा भतरी
४० कालघरी
कालुपुर अधार
५३२ कास्माबजार ( मुर्शिदाबाद) अहमदाबाद " ६६१७१११२३५३६०३७२।३८२ कीराट कूप
४४४।५२६ कोठारा अहिलाणी
... ४४० कोरडा आगरा
२६५३०३०६।३२००३१९ खडा
३२२१४३३१५०६ खुदीमपुर भामेण
गणवाड़ा भारामपुर
गंधार आवरणी
गुनशिला भासलपुर
५६ गुब्यर ग्राम (बड़गांव) इटर
६२७
ग्रेहडी इन्द्रप्रस्थ ( दिल्ली)
गोरईया उदयगिरि ( राजगृह ) ...
२५३३२५४।२५५
। गोलकुंडा उदयपुर
६४५/७४४ गोलीपा उन्नतनगर
चंपक दुर्ग उपकेश । ओसिया) ...
१३४ चंपकनर उमापुर
४८९ चंपानगर जुवालुका
चंपापुरी कड़ी
चिमणीया कमलमेरु
४८३
चंपरा ग्राम कपरहेटक
जयनगर फलकत्ता
जलवाह कलपी
७६७५/७६ जवाच
६४७ ३ ०८६५३७६६ १७७/१२८।१७६।१८०
२७१
::
५२६
9५२ ४१६
: :: :: :: ::
४.४ १४३१६५ १३७१४१५८
३५
२९ १६
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________________
लेखांक
[ 1 लेखांक " २३ नन्दियाक (नोदिया ) ८३०१०५ नल
७१५ नलीतपुर CERIEND नागपुर EGHIERE नाणा ६७७/नापलीया ।
पत्तन "६१२।२८०३८
६५४४६५५ ५८०६१३
२११५११५४११६१५५ ५०४।५४५५६५६८८५१
१२१
...
पाटण
...
"८०८१३८१४८९५।८३२
जाणांधारा जालोर कावरनगर नावालीपुर जीरावला पार्श्वनाथ ... जीर्णदुर्ग जैनगर जोधपुर झूझणू डिडिला प्राम देया বিড়া। दंतराई दधालीया दिल्लि दिवसा द्विपयन्दर देवक पसन धंध का धमडका (कच्छ) धांदू
पल्लिका पालिका पाली पल्यपत्र पाटलिपुत्र
८२५४८२६।८२७
४९६
पाट
५२७
पाटलिपुर
३०५ ३२०।३२८१३३०
३२४ ३१३३१४
पाडली पोडलीपुर पडलीपुर
२७३
पटना
१२
४२२
धुलेवा मडुल
पाटझलि ( पालड़ी) ३२१ पाटरी
पानविहार ८३७४८३६३८४५४८९२
पावापुरी .. १४३६४४
पींडरवाड़ा ८४११८४३४८४६०८५७ ८४२८५४।०५६८५८
पीडवाड़ा
प्रयाग ८५२ फलवद्धिका
मडल डागिका नडुलाइ माडलाई मन्दकुलपती
१८४।१६.१९२११६७४२०६२१०
७१९४१९४६/१४८
EYE६५१५१ ... १४० " ८७०1८७१
८४७
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________________
लेखांक
...
९२२
. ...
... . २३३
४५५, ५४३, ७५०, ७५४, ७८३, ७८४,७८७, ८२६,८२६, ०१, ... ... १५
७६५
....
...
३
लेखांक बम्बई ... ... ... ३७०, ३७४ मानपुर बरागाम ... ... ... ... २१७ | मालवक बहादूरपुर ... ... ... ८५ माल्यबन बहषिध ... ... ...
माल्हेणस पालुचर ( मुर्शिदाबाद) "" ३१, ३२, ४५, ४६,२३८ मिथिला बाहड़मेर
मिरजापुर बीकानेर ... ... ... ... १३ मुंजिगपुर बौलाहा ... ... ...
मुर्शिदाबाद
मेरुता ( मेहता ) ... बूबूयाणा बेगमपुर (पटना)
मेलीपुर ... भट्टनगर
मोढ़ भरतपुर
मोरकरा भाणावट
रणसण भारठा भिनमाल
रतनगिरि (राजगृह) भिलमाल
रत्नपुर भुडपट
राजगृह
राजपुर मंडपदुर्ग
राणपुर मंडपाचल
लच्छवाड मंडोवर
लीवरी महुपे ...
वगुद्रा मनेर माफोडा
वडनगर माडपा
वरजा मानंदपुर
वलहरा
५७४
.:: :: :: :: :: :: ::
... २४६, २५०, २५१, २५२
६३५, ६३६ " ५४०
भेया
७००,७१३, ७१४, १६
रोहिन्सकृप
: :: :: :: :: .
१७४ १८२८५
वघणार
२९४
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________________
२७
लेखांक
लेखांक बलहारो ... ... ... ... ६६३ सनीपुर ... वसंतनगर ... ... ... ... ३९ सद्र'छलिया ... . ... ४.२ वसंतपुर
१५४ सम्मेदशिखर ...
३५५७ ३६६, ४४९ बहडा ... ... ... .२३, ६२५ स्वर्णगिरि ( जालोर) ... ... ___१०३, ६०४ बाकपत्राकानगर
सहयाला ... वाघसीण (पघाणा) ... ... ५६ स्तंभतीर्थ २५, ११४, ६०५, ६५०, पाराणसी ... ... ... ३३५, ३४५ सांवोसण ... ... वासहड ... ... ... ... ८८० स्याहजानाबाद । दिल्ली) ... विक्रमनगर ... ... ... ... ७६५ सिरुत्रा ... ... ... १५ विक्रमपुर
सिवना ... .. ... ४.३ विपुलांगरि ( राजगृह) ... ... ... २४५
सिंहपुर ... .... पिपुलाचल ( गजगृह ) ... २३६, २४६, २४७, २४६ सीणोत घीजापुर .. ... ... ... ६.१ सीणरा
२८०,४८४, ५५६ यीरमग्राम ... ... ... ... ८४६ सीतामढी (मिथिला) वीरमपुर ... ... ... १२३, ७२४. ९२२ सीवेरा
__... ७२ वीरपली ... ... ... ...
सीरोही ... ... वीरवाडा
सेरपुर (ढाका) . वासलनगर ... ... ... ६४६, १७७ हस्थिकुडि (इथु'डि) ... ८६७, ८६८ घोसाडा
... ... ... ६३३, ८३४ क्षत्रियकु ... ... ... २०८, २०६
... ... ... २४ बंदर वैभारगिरि ( राजगृह) ... २५७, २५८, २६०, २६३
२६४, २६५, २६६, २६७ व्यवहारगिरि ( राजगृह ) ... २६१, २६२, ५२५५ शंडली
... .. ... १४५ शमीपाटी ... ... ८७, ८६४. ८६५ शीलबंदडी पंढेरक ... ... ८८१, ८८२, ८८३, ८८४ सत्यपुर
घमुज
६२
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JAIN INSCRIPTIONS
जैन लेख संग्रह।
प्रान्त -पूर्व। जिला मुर्शिदाबाद । स्थान अजिमगञ्ज । श्री सुमतिनाथजी का मन्दिर छ ।
धातुर्यों के मूर्ति पर।
51 श्री सरवाल गठे असामूकेन कारित ॥ संतु १११० ४ । ** नाहारा के पूजा के प्रतिष्ठित जिनालयों में यह एक मन्दिर ग्रामकं मध्य भागमें विद्यमान है । स्वगीया श्रीमति मयाकुमर के पुत्र स्वर्गीय बाबु गुलालचन्दनी तत्युत्र संग्रह कत्तीके परम पूज्य पिता राय सेतावचन्द नाहार बाहादुर हैं। पूर्व मन्दिर गङ्गासातसे नष्ट हो जानेसे आप यह नवीन चैत्य संवत १९५४ में निर्माण करवाया है। प्रथम मन्दिरका लेख- ॥ श्री ॥ सं १९१३ मिति वैशाख सुदि ५ शुक्रवासरे श्री जिन भाकि सूरि साखायो र श्री आनन्द बल्लभ गणि । तत् शिष्य पं । प्र । सदालाभ मुनि उपदेशात् श्री अजिमगम वास्तव्य नाहर श्री खड्गसिंहजी तत्पुत्र श्री उत्तमचन्दनी तत्भायाँ श्री मयाकुमर एषः श्री सुमति जिन मासाद कारितः प्रतिष्ठाप्य श्री संवाय समपितश्च विधिना सतां ॥ जं । यु । प्र । श्री जिन सौभाग्य सूरिजी विजय राज्य ॥ श्री रस्तः ॥ कल्याणमस्तः ॥ श्रीः॥ श्रीः ॥१॥
* यह लेख श्री पार्श्वनाथजी के मूर्ति के पीछे खुदा भया है, अक्षर बहोत प्राचीन है। मुसल्मानोंने चितोर दसल करनेके पूर्वमें यह मूर्ति वहां पर थी।
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(२)
121
सं० १४६ए वर्षे माघ सुदि ६ रचौ श्री यांचल गछे प्रग्वाट ज्ञातीय व्य० उदा जा वत्त तत्पुत्र जोखा नार्या डमणादे तत्पुत्रेण व्य मुंडनेन श्री गछेश श्री मेरुतुंग सुरीणामुपदेशेन त्राता श्रेयो) श्री पार्श्वनाथ विवं कारितं प्रतिष्टितं श्री सूरिनिः।
[3]
संवत १४ बर्षे पोष वदि ५ शुक्रे ग्रेहमी बास्तव्य श्रीमान झाती अंग प्रतापसीह जा सोहगदे सुत दाकेन पितु मातु श्रेयोर्थ श्री वासुपूज्य विंबं कारित पूर्णिमा गर्छ प्रतिष्ठितं श्री सूरि जिनबद्धन सूरि ।
[43
सं० १५१० व० फा० शु० १२ उकेश वंशे जाणेचा गोत्रे सा० पदम पुत्र रउला सु० साजण जाग जइसिरि पु० षेढा जा कणसिरि षेता जा० वषमसिरि पुत्र ३ कालु वेमधर देवराज ना चां५ सा हापाकेन ना० ३ गूजरि सु० पुंजा राजीदि कुटुंब युतन स्वश्रेयस श्रीश्रेयांस चतुर्विंशति पट्टः कारितः तपा श्रीरत्नशेखरसूरि श्रीउदयनंदिसूरिनिः प्रतिष्टितः ।
सं १५१७ वर्षे माह सु०५ शुक्र श्री उपकेश ज्ञाती नाहर गोत्रे सालेला पु० लाघा नाण साहिगि पु० चांपा सालू लादा सहितैः पितु श्रेयसे श्री श्रेयांस नाथ विवं का प्रति श्री धर्मघोष ग श्री जियचंड सूरि पट्टे न० श्री साधू रत्नसूरिनिः ।
6
संवत् १५३६ बर्षे मार्गशिर सु० ६ शुक्र श्री श्रीमान हा व्यव० श्राका नार्या रातदे सुत लागकेन ना मानू नापा निति । श्री शांतिनाथ वियं कारा०प्र० पिक श्री मुनि सिंधु सरि पदे भी अमरचंड सूरिनिः ॥ नापलिया प्रामे ।
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(३)
[7]
संवत् १६४१ बर्षे मागसर मासे । सी० श्री राजा जा० रजमलदे पु० दोसा ठाकुर धना हाथी लीवा हाथा जा० इषमदे पु० जीवा एतत् स्वकुटुंब युतैः श्री पार्श्वनाथ विंबं का पितं श्री संडेर गठे वा० श्री सहिज सुंदर पदे उ० क्षेमासुंदर पट्टे ज०भीनय सुंदर प्रविष्ठितं !
॥ श्री पद्मप्रभुजी का मंदिर ॥
[8]
संवत १४८७ वर्षे मार्गशीर्ष वदि ३ बुधे उकेश वंशे लूणीया गोत्रे साः षीमा पुत्र सा धारण श्रावण पुत्र सीदा सहितेन श्री पार्श्वनाथ विषं कारितं प्रतिष्ठितं श्री जिनन सूरिजिः खरतर गठे ।
[9]
संवत १५१ बर्षे वैशाख शु० ३ श्रीमाल ज्ञातीय सा० लाईयाकेन जाय गांगी पुत्र दासावि कुटुंब युतेन पुत्री रमाई श्रेयोर्थं श्री शांतिनाथ विंबं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीतपा गठे श्री रत्नशेखर सूरि पट्टे श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिः । धंधूका वास्तव्य ॥
[ 10 ]
संवत १५५० बर्षे माघ सुदि ११ गुरौ श्रोकेश ज्ञातीय नारा त मेदा जायी पदमाई श्रेयसे जणसाखी पताकेन श्रीवासुपूज्य विंबं का रितं प्रतिष्ठितं खरतर गष्ठे श्री जिनहंस सुरिजिः ।
[11]
संवत १५६४ बर्षे शा० १४१४ वर्त्तमाने मालक देस ॥ उपकेस ज्ञातौ सा० होली To मा पु० सा० सागा जा० रूपणं पुत्र जलपान ना० मी पुत्र रक्षा
प्रतिति ।
पाठे श्री.
(वि) सूरिति
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(५)
[12] संवत १०० मिति थाषाढ़ सित ए गुरौ श्री श्रादिनाथ विवं प्रतिष्ठितं । बृहत खरतर जहारक गलेश ज० । श्री जिन हर्ष पट्टे दिनकर ज० श्री जिन सौलाग्य सुरिजिः कारितंच श्रीमाल बंशे टाक गोत्रे मोहया दास पुत्र हनुतसिंहस्य नार्या फूलकुमार्या स्यश्रेयोर्थ ।
॥ श्री नेमिनाथजी का पंचायति मन्दिर ॥
[13] संवत १५११ व० माघ सु० ५ सोमे उसवाल ज्ञाती लिगा गोत्रे समदडीया उडकेण सुड्डा ना० सुहागदे पु० कम्माकेन ना0 कस्मीरदे पु० हेमा संसारचंद देवराज युतेन खश्रेयसे श्री नमिनाथ विंबं का रितं श्री उपकेश गछे श्री कुकुदाचार्य संताने प्र० श्री कक्क सूरिनिः ।
[14] संवत १५५३ वर्षे बैशाख बदि ५ गुरौ उसवाप्त ज्ञातो कटारीया गोत्रे सा सरवण जा राणी सुत सा सिंघा ना सोमसिरि सु० सा था नाना नार्या विरणि सुत सारा पुनपाल साण सोनपाल सुरपति प्रमुग्ध कुटुंब युतेन स्वयसे श्री पार्श्वनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं च । श्री लक्ष्मीसागर सूरिनिः ॥ श्री॥
115
संवत १५५३ वर्षे वैशाग्य सुदि ® प्राग्वाट झा व्यव० षेता नार्या मदी सुत व्य जोजाकेन ना राजू बातृ राजा रत्ना देवा सहितेन स्वपुर्विज श्रेयार्य श्री शांतिनाथ विंबं का प्र० तपागछे श्री हेम विमल सूरि श्री कमल कलस सूरिनिः सिरुना बास्तव्य ।
संवस १६१५ वर्ष वैशाख पनि १० सामे जबाउ वास्तव्य दुवड ज्ञातीय मंत्रीश्वर गोत्र
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दो० स० केमाकेन ना राणी स० श्री पार्श्वनाथ विवं का० प्र० श्री तेजरत्न सुरिनिः।
॥ श्री चिंतामणि पार्श्वनाथजी का मंदिर ॥
[17]
संवत १५०५ वर्षे माघ बदि ५ रबी उशवास झातीय जएकारी गोत्रे सा गेस्हा पु० सोपी ना० पोलश्री पुरा इराकेन श्रात्म पुण्यार्थं श्री अनिनंदन विंबं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री धर्मघोष गछे ज० श्री विजयचंद्र सूरि पट्टे श्री साधुरत्न सूरिभिः ।
[18] संबत १५२५ वर्षे थे० व० ११ बुधे लांबडी बास्तव्य उकेश झातीय व्या षीमसी ना वान पुत्र व्य गणमा ना बाबू पुत्र व्य० केव्हाकेन ना मानू बृद्ध ना० घूघा पुत्र मेघादि कुटुंब युनेन श्री मुनिसुव्रत स्वामी चतुर्विंशति पट्ट कारितः प्रतिष्ठितः ॥ ७ वम्रगत चांसगीया श्री मत मूरि श्री उकेश विंवदणीक 8 गछे प्रतिष्ठा कारिता। * ( अक्षर अस्पष्ट है)।
[191 संबन १५२० बर्षे माघ वदि ५ शुक्रे मंत्रिदली वंश पुलद गोत्रे उ० पाहणमीकेन पुo d० कर्णसी उ उजयचंद का हेमा पुत्री अजाश्व सहितेन परिवार युतेन श्री शीतल नाथ विंबं का रितं श्री ग्वरतर गछे श्री जिनसागर सूरि पट्टे श्री जिनसुंदर सूरयस्तत्पट्टे श्री जिनदर्ष मूरिलिः प्रतिष्ठितं ।
[ 201 संबत १५६३ वर्षे माह सुदि ५ गुरौ श्रेष्ठि गोत्रे सा बडा ना वासहदे सुझदा जात पब्ह सु० गिरा पिरा यांवा सह लपा युतेन श्री पद्मप्रनु विंबं कारित उपकेश गछे ककुदा चार्य संताने जा श्री देवगुप्त सूरिनिः प्रतिष्ठितं ॥
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(७)
[26]
संवत १५६३ बर्षे माह बदि ११ दिने रवी श्री श्रीमाल ज्ञातीय सघु शाषायां । व्या केसब जाए नरमी सुत व्या वीका जाप संपू । नाग व्य० थासाकेन नार्या श्रमरादे जात व्य बाडप प्रमुख कुटुंब युतेन श्री वासुपूज्य चतुर्विशति पट कारितःप्र० श्री सूरिनिः श्री स्तम्न तीर्थे । कृतवपुर वास्तव्यः ॥ शुनं नवतु ।
(26] संवत १५७७ वर्षे धेशाख सुदि र सोमे मास ज्ञातीय सूराणा गोत्रे साझ शिवदास जिनदासकेन गृह गार्या नाई नारिंग सुत ना राजपाक्ष सहितेन मात्र नारिंग श्रेयोर्थ श्री
शुनाग विव श्री चतुर्विजाति जिन महिला कारापित प्रतिखित श्री धर्मपोप गले दिन दुदिले जायंट रिति
मुंबन माम सुतर --- --. .... -- -- -- --- गन्ने बटारक शुनकीनि उपदेसानासाना गोपल मोन संदार राजी सदव पुत्र संचरह राज जावी जीशी
॥ श्री शांतिनाथजी का मंदिर ॥ संवन १५१९ वर्षे पो सु० १५ शुक्रे उपकेश झातीय प. शिवा ना० प्रीमलदे सुन पा शामाकेन ना थासु प्रमुख कुंदन यतेन निज श्रेयसे श्री सुमतिनाथ विघं का प्र श्री ला मा नायक श्री श्री श्री रत्नशेखर सुरिभिः॥
[20} ॥ राय बुधसिंहजी बेड़िया का धरदेरासर ॥ संबत १५३६ वर्षे फागुण सुदि ५ दिने श्री उकेश अंश सेधि गोने श्रे सोधरेण जाय
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[25]
संवत १५६३ वर्षे माह बदि ११ दिने रखौ श्री श्रीमाल ज्ञातीय सघु शाषायां । व्य० केसव जा० नरमी सुत व्य० वीका जा० संपू । प्रा० व्य० आसाकेन जार्या श्रमरादे जात व्य० ला प्रमुख कुटुंब युतेन श्री वासुपूज्य चतुर्षिशति पट्ट कारितः प्र० श्री सूरिजिः श्री स्तम्न तीर्थे । कृतवपुर वास्तव्यः ॥ शुजं जवतु ।
[26]
संगत बर्षे वैशाख दिने निदानयहेगा बाई नाराज कंपन विष भी ची कति प्रति श्री धर्मघोष गि सप
( ७ )
सुन्द
कीनि उपदेसमझाती सोपवर्षा सेवा पुत्र से रहावी जीरी रविवा
श्री शांति
मंडन पोट १५ समानताशा
॥ संवत १५३६ वर्षे फागु
ज्ञातीय सुराणा मोत्रे साह शिवदास सहितेन मातृ नारि श्रेयोर्थ श्री
[39]
नायक श्री श्री श्री रत्नशेखर सुरिनि ॥
का मंदिर ॥
उपके तीष शिवा ना० प्रमख सुन प० न प्रेयसे श्री माविका श्री
(20)
बुधसिंहजी बेड़िया का धरदेरासर || सुदिप दिने श्री राकेश
सेठि गोत्रे श्रे० सोधरेण जाव
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( ८ )
घिरी सुलूषी पु० थावरसिंह । जटादि युतेनं स्वश्रेयोर्थ श्री पार्श्वनाथ विंबं का० प्र० श्री खर तर गठे श्री जिनजड़ सुरि पदे श्री जिनचंद्र सुरिनिः ।
॥ श्री सांवलियाजी का मंदिर - रामबाग ॥
[ 30 ]
संवत १५४६ माघ बदि ४ सुचिंतित गोत्रे सा० सोनपाल सु० सा० दासू जा० लाडो नाम्या पु० सिवराज जार्या सिंगारदे पु० चूड़धन्ना यासकरणादि सहितया स्वपुष्यार्थं श्री अजितनाथ विंबं का० प्र० उपकेश गछे कुकुदाचार्य सं० श्री देवगुप्त सुरिनिः ॥
जिला - मुर्शिदाबाद | स्थान - बालूचर । ॥ श्री आदिनाथजी का मंदिर ॥
[31]
पत्थरों परका लेख |
॥ शी जिनाय नमः ॥ शी मत्विक्रमादित्य राज्यात् संगत १८४५ मिते । श्री शालिवाहन शकाब्दा के १७१० प्रवत्तमाने । मासोत्तम माघ मासे शुक्ले पछे ३ तृतीयायां तित्रो गुरुवासरे श्री तपगाधिराज जट्टारक श्री विजय जनेंद्र सुरीश्वर विजय राज्ये । महिमापुर वास्तव्य बजलानी गोत्रे । साहजी श्री जीवणदासजी तत्पुत्र धर्मनार धुरंधर माजी श्री केशरी सिंहजी तपाय धर्म कर्मणि रता बीची सरूपांजी पं । श्री जाव बिजय गणिरुपदेशात् । स्वगृह जिन बिंबं स्थापनार्थ || बालोचर नगरे श्री जिन प्रासाद कारितं । प्रतिष्टित पं० जाव बिजय पं० गंजीर विजय गणिनिः । यावत्वरासुमेरोद्रि । यवोक्य जाखरं । तावतिष्टतु प्रासादं निर्विन्तु सुनिश्चलं ॥ १ ॥ लिपिकृतं पं० जूप बिजयेन ।
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[32] श्री जिन शासनो जयति ॥ श्री मत्तगण शुनांवर धर्मरश्मिः । श्री सूरि हीर विज योजित ज्ञान लक्ष्मी ॥ यस्योपदेश वचनाय्यवनेश मुख्यो । हिंसानिराकृत परो प्रगुणो वनूत्र १॥ तत्पट्टे क्रमतारखीव विजय जैनें सूरीश्वर । स्तपाज्ये प्रगुणो जिनालय घरो वाखोचरे इंगके ॥ श्री संघेश सहायता शुनरुचिः श्री केशरी सिंहक । स्तत्पल्या जिन राज नक्ति मशतः कारापिनायं मुदा ॥ १ ॥ श्री वीर हीर सूरीश संघाटक गुणाकरः । वाचकोत्तम सूमान्यः श्री शशि बिजयाजवत् ॥ ३॥ तछिव्य नाव विजयोपदेश वाक्येन कारित रम्ब. प्रतिष्ठितं च सदनं जिन देव निवेशनं । शुनतः॥४॥ नई जवतु संघस्य नई प्रासाद कारके तथा नई तपा गर्छ जई जवतु धर्मिणां ॥
[38]
॥ धातुर्योपरका लेख ॥ सवत १४ए बेशाख सुदि ५ जार उडिया गोत्र । सा० लोंदा सुत । सारा पदाकेन पु. फामु रजनादि सहितेन खनार्या पदम श्री पुण्यार्थ श्री विमलनाथ विवं श्रीहेमहंस सुरिनिः ।
[34] संवत १५१३ ये सुदि ५ गुरो श्री तुंबड झातीय फडी० शिवराज सुत महीया श्रेयसे । जात हीराकन घातृज कुसूया सुतेन श्री शांतिनाथ विवं कारितं प्रति वृद्ध तपा पक्ष श्री रत्नसिंह सूरिनिः॥
[35]
संवत १५२७ वर्षे माघ वदि ५ गुरौ ऊपकेश ज्ञातीय श्रेण तेजा जा तेजलदे पुत्र जून जा० पतसमादे पुत्र देवदास गणपति पोपट जेसिंग पोचा युतेन करणा श्रेयोर्थ संजवनाथ वि का श्री साधू पुर्णिमा पक्षे श्री पुण्यचं सूरीणामुपदेशेन प्र० श्री बिजयजल सुरिणा कडी वास्तव्यः ।।
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(१०)
[38] . संबत १५३४ वर्षे --शु०३ दिने सा० अरसी नाया रानू पुत्र साप खूणाकेन जायटीस प्रमुख कुटुंब युतेन खश्रेयसे श्री धर्मनाथ विंबं कारापितं प्रतिष्ठितं तपा गछे श्री लक्ष्मी सागर सारजिः पान विहार नगरे ॥
137]
संवत ११३३ वर्षे माह सदिदिले जारले वागाने सापकोड़ा जा सोनी पु० साह सोहा संहालीहा ना हो. अयोधय श्री सुनाथ वि कारित प्र श्री कारंट गड धी --- सूरिनिः ।
संघात याद
दिलासाद उसडा नात्र साद श्रीयंत्र पुत्र चौतारा चाय सजा राय
माजा माची केशी युर ना होगा पदहा शकलन का बनाया साह मानाद माद राम गायत बकरती । लामोत्या पुत्र महिला काममा लायो उदए पुन लद मा संसार आसधर जागा हामी सिकाराय IN THE RID मा सपना उन । प पुनरोदा जालगन राया भावान साथ भी शांतिनाथ चीन का to श्री शेष
पासवान सूरि पो कामना की लपटे श्री चना :
गत १४८५ बर्ष अष्ट बाधिए शामिक र सा भीडा त टाडा पुत्र लाटा दाग रग सुकनान्या टाटा पितव्य सा सहा पर श्री पाक्षिनाथ वि कारित प्र वृदयीय श्री यमरमान भूरिनिः ।। शुने निरन्तः ।
2017 संगतः १५१५ वैध ब ५ वानरी ग्रामे प्रग्बाट सा थासा नारा संसारी पुत्र साद
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( ११ )
कर्म सीन जा० सारू सुत गोइंद गोपा हापादि कुटुंब युसेन जातृज मादराज श्रेयसे श्री मुनि सुत्रत बिंयं का० प्र० तपा श्री सोम सुंदर सूरि शिष्य श्री रत्नशेखर सुरिजिः ॥
[41]
सं० १५५१ बर्षे बेशाख सुदि १३ दिने श्री उकेश वंशे सखवाल गोत्र सा० लाला जाब खादे पुत्र सा० जावडेन जा० जवणादे पुत्र रायपाल तेजा बेला बीला रामपाल जायी मां पुत्र लोट प्रमुख सपरिवार युतेन श्री मुनि सुव्रत बिंदं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर श्री ३ जिनसमुद्र सूरिनिः ॥
[42]
संवत १५७६ वर्षे श्री खरतर गछ जाड़ीया गोत्रे सा० नाथू पुत्र सा० पाल्ह सा० लकू जा० नीप्पारा - सटकया मपसीस् प्रमुख कुटुंबिकया श्री श्यादिनाथ वि० का० ज० श्री जिनदंस सुरितिः प्रतिष्ठितं ॥ श्री ॥
[43]
सं १६५० वर्षे चै० ० ५ जौमे श्रीमाल ज्ञातीय ढोर गोत्रे सा० भरमगज जार्या बीरू सुत सा० सतीदास जार्या वा० ईडाणी ताज्यां पुष्यार्थं श्री शांतिनाथ बिंवं कारितं प्र० खरतर गठे श्री जिनचंद्र सूरिजिः । श्री जिनजानु सूरीणामुपदेशेन । अजाई: ४२ वर्षे श्री अकवर राज्ये ।
[44]
॥ रौप्य के मूर्तिपर ॥
॥ सं १९२० मि । धासोज सुदि ए तिथो बुधबारे मू । बाबु श्री प्रताप सिंघजी तत्पुत्र मीत्त चि । धनपत्त छत्रसिंघ श्री आदिजिन बिंवं कारापितं वा० सदालान प्रतिष्ठितं ॥ शांति जिनं, नेम जिनं, पार्श्व जिनं, बीर जिनं पञ्चतिर्थी । मिः मिगसर सुद २ ॥ श्रीः ॥
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(१)
॥ श्री सम्नव नायजी का मन्दिर । ॥ पञ्चरोंपरका घेख ॥
[46] r... संघत १७ मिते बेशाख सुदि ५ रवौ । श्री वाखूचर पुरे। नए श्री जिन मंऽ सूरि जी विजय राज्ये वाचनाचार्य श्री अमृतधर्म मणिनां पं० क्षमाकल्याण गणिः। तय कुमारादि युतानामुपदेशतः श्री मक्सूदायाद घास्तव्य समस्त श्री सहेन भी सम्लव जिन प्रासादः कारितः प्रतिष्ठापितश्च विधिना । सतां कल्याण वृध्यर्थम् ॥
[463 । अथ चैत्य वर्णनं । निधान कोपेनवनिर्मनोरमै । विशुद्ध हेनः काशबिगजिनं । सुचारु घंटावलि कारणाकृति । ध्वनि प्रसन्नी कृत शिष्टमानसम् ॥१॥ चलत्पताका प्रकरेः प्रकाम । माकारयन्नुनमंनिन्धसत्वान् ॥ निषेधयनिश्चित फुटयुद्धीन् । पापात्मनशावततः क.अंचित् ॥ २ ॥ संसेव्यमानं सुतरां सुधीजि । जव्यात्मनिस्तिर प्रमोदात् ॥ पालूच राख्य प्रवरे पुरेदो । जीयाचिरं सम्जवनाथ चैत्यम् ॥ ३॥
धातुया निधन।
संबत १५१५ वर्षे भाषाद वदि १ उकेश पंश लीक गोत्रे म० सिवा चा0 हर्ष पुः मा हीराकेण नाग रङ्गादे पुत्री सेना प्रमुख परिवार युतेन श्री चंडवन बिवं कारितं श्री खरतर गछे श्री जिनन सूरि पढे श्री जिनचं सूरिनिः प्रतिष्ठितं श्रीः ॥
[483 सं १५१५ वर्षे थापाइ वदि १ श्री मंत्रिदलीय साधू नायां धर्मिणि पुत्र सः अवस दासन पुत्र उग्रसेन लक्ष्मीसन सूर्यसेन बुझिसेन देवपास बीरसेन पहिराजादि युतेन खश्र
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( १३ )
श्री आदिनाथ विकारिसं प्रतिष्टितं श्री खरतर मछे श्री जिनसागर सुरि पट्टे श्री जिम सुन्दर सूरि पहालङ्कार श्री जिन सुखिरैः ॥ श्री ॥
[49]
सं० १५२३ वर्षे वैशाख यदि ४ गुर्गे श्री उपकेश बंशे स० देख्दा जार्या डूब्दादे पुत्र वा सुभान के नाय मेनू पुत्र जयजस्ता पौत्र पूना सहितेन स्वश्रयसे श्री अचल गलेश्वर श्री जब केसर सुदेशेन श्री सम्जवनाय बिंवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री संघेन ।
[ 50 ]
सं १९२४ वर्षे मार्गश | सुदि १० शुक्रे उपकेश ज्ञातौ । थादित्वनाग गोत्रे सं० गुणधर पुत्र स० काला जा० कपूरी पुत्र स० क्षेमपाल जा० जिणदेवाइ पुत्र सा० सोहिलेन जातृ पास दत्त देवदत्त जायी नानू युतेन पित्रोः पुष्यार्थ श्री चंद्रप्रन चतुर्विंशति पट्टः कारितः प्रतिष्ठितः श्री उपदेश गठे कुदाचार्य सन्ताने श्री कक्क सूरिजिः श्री जट्टनगरे ॥
[51]
सं १५१५ बर्षे ज्येष्ठ व० १ शुक्रे उपके पत्तन बास्तव्य सा० देवा जा० कपूरो पु० सा आसा जा० नाऊं पु० दर्पा जा० मनी जा० साइया रत्नसी सा० आसकेन रत्नसी नमि० श्री वासुपूज्य विं उपश० श्री सिद्धाचार्य सन्ताने अज० श्री सिद्ध सुरिजिः ॥
[ 52 ]
संवत १५२७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ८ सोमे प्राग्दा झातीय बु० गांगा वु० मुजा पुत्र वु महिराज जा० रमाइ श्राविकया श्री वासुपूज्य बिंवं कारितं श्री खरतर गछे श्री जिनसागर खुरी श्री जिनसुन्दर सूरि पट्टराज श्री ३ जिनद सूरिजिः प्रतिष्ठितं श्रीरस्तु कख्याणं भूयात् ।
[53]
सं १५३४ वर्षे उपकेश ज्ञातीय बॉन गोत्रे समवी जाटा जा० जयंतलदे पु० माषिक
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(१४) अगिन्या पीरिणी नाम्न्या भी धर्मनाप किंवं कारित प्रतिष्ठितं तपा गठे श्री रत्न शेखर सरि पदे भी अमीसागर सूरिभिः॥
[64]
सं १५५१ बर्षे बैशाख बदि६ शुक्र प्राग्वाट झातीय म० पाल्हा पुत्र म पांचा नायी पाइदेल पुत्र मानाथा नार्या श्राप नाथी पुत्र म० विद्याधरेण पु० म० हंसराज हेमराज जीमा पुत्री इंशाणी इत्यादि कुटुंब युतेन श्रेयोर्थ श्री आदिनाथ विंदं कारितं प्रतिष्टितं कृतव पुरा गछे श्री इंजनन्दि सूरिपट्टे श्री सौजाग्य नन्दि सुरिनिः श्री पत्तन वास्तव्यः ॥
[56] सं० १६०० वर्षे ज्येष्ठ सुदि३ शनौ श्री श्रीमास झातीय सा जेग ना० मम्हाई पुत्र सोनाकर जा वा कमलादे पु० सोना वीराकेन श्री पूमिमा पके श्री मुनि रत्न सुरिणामुपदेशेन श्री श्रेयांसनाथ विवं कारित प्रतिष्ठितं श्री संघेन ॥ शुजं जवतु कल्याणमस्तु ।
॥ रौप्यके मूर्तिपर ॥
[56] . संवत १९०३ शाके १७६० प्र । माघ मासे कृष्ण पञ्चम्यां भृगौ वासरे श्री महुदावार वास्तव्य उसवाल ज्ञाती वृद्धशाखायां साह निहासचन्द इंशसिंघ खश्रेयार्थ श्री शांतिनाथ जिन बिंवं कारापितं । खरतर गछे श्री शांतिसागर सरिनिः प्रतिष्ठितं । तप्पा सागर गर्छ।
राय धनपत सिंहजी का घरदेरासर ।
(67) सं० १९५० फा० १०२ बुषे प्रताप सिंहजी उगढ़ भार्या महताब कुंवर अमन पर्च तीर्थीका । छ । सदा लाजेन प्र श्री अमृत चंड सूरि राज्ये सं १९४७ थापाड़ शुक १५ थात्मनः कच्यामार्ष
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किरतचन्दजी सेठिया का घरदेरासर- चावलगोला ।
[58] सं० १५३३ पेशाग्य बदि ४ प्राग्वाट व्य० श्रपा ला श्राडी पुत्र व्या जरसीइन ना पह पु- साहादि कुटुंब युनेन स्वयसे श्री वासुपूज्य विवं का०प्र० तपा रत्नशेखर सूरि पद श्री पदमीसामर सूरिभिः ।
श्री सांवलियाजी का मन्दिर-कीरतबाग ।
[50]
पाषाण के मूर्तियोंपर। ॥ श्री सं० १७३० माघ शुक्ल ५ चंडे श्री पावचंड गले उ० श्री हर्षचंदजी नित्यचंजीकानामुपदेशन । उस बंशे गांधी गोत्रे साहजी श्री कमल नयनजी तत्पुत्र सा उदय चंडजी तत्धर्मपत्नी तथा उस घं गहलड़ा गोत्रे जगत्सेठजी श्री फत्तेचं जी तत्पुत्र सेठ प्राणन्द चंजी तत्पुनी बाइ अजबोजी श्री मत्या श्वनाथ विवं कारापितं । प्रतिष्ठितच वि० सरिनिः श्री जानुचंदापति आशाकचिरं नन्दतालई जूयाञ्च श्रियं ।
[60} ॥ श्री सं० १७३० माघ शुक्ल ए चंडे श्री पाश्वचंड गछे न श्री हर्षचंडजी नित्यचंड जीकानामुपदेशेन उस बं० गांधी गात्र सा० श्री कमल नयन तत्पुत्र सा उदय चंजी तत्धर्मपत्नी तथा उस बंशे गहखड़ा गोत्रे जगत्सेठ श्री फतेचंड जी तत्पुत्र सेठ प्राणन्द चंड तत्पुत्री बा अजबोजी श्री बासुपूज्य विवं कारापितं । प्रसूरि श्रीजानुचंजणेति नई याशिवं सदा॥
[1]
पाषाणके चरणोंपर। सं० १३० वर्षे माघ शुक्ल पंजबासरे उस बंश गांधी गोत्रे सा श्री कमल नयन
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(१)
जी तत्पुत्र सा उदयचन्द जी तनार्या बाइ श्रजवोजीकेन श्री पावं प्रथम बार्यदिन गण पर पाकुका कारापितं।
[62] सं० १३० वर्षे माघ शुक्ल ५ सोमे गांधी गोत्रे सा० श्री कमल नयन जी तत्पुत्र सा. श्वी उदयचंड जी तत्धर्मपत्नी बार अजबाजीकेन श्री बासुपूज्य प्रथम सुजूम गणधर पाउका काराप्ति।
[03]
सं० १७६१ चैत्र शुक्ल पञ्चम्यां शनिवाप्सरे चंछ कुसाधिप श्री जिनदत्त सूरीयां चरण स्थापनं श्री सहाग्रहण श्री जिनहर्ष सूरीणामुपदेशाप्रतिष्ठितं ॥
[64]
धातुके मूर्तियोंपर। सं० १५१४ वर्षे बै० व० ५ उके व्या गोइन्द ना राजू पुत्र नाथू जार्या विवि मातृ-नाम्दा केन जार्या सीसू प्रमुख कुटुंब युतेन श्री श्रेयांसनाथ बिवं कारितं प्रतिष्ठित श्री सोमसुन्दर सूरिपट्टे श्री रत्नशेखर सूरि राज्यः च ॥ कालधरी ।
185; . सं० १५३० वर्षे चैत्र यदि ५ गुरू रजीआण गोत्रे हुवड़ ज्ञातीय दोसी गकुर सी जा० नाइ सो सुत दोसी घाखान हरपाल दासा पोगा युतन मातृ श्रेयसे श्री कुंथुनाथ विवं कारितं हुवड़ गछे श्री सिंघदत्त सूरि प्रतिष्टितं । उपाध्याय श्री शीसकुझर गणि।
[66
सं० १५३१ वर्षे वेशाख बदि २१ सोमे श्री श्रीमान झा० सा गोआ ना भाऊ सु. सा साजय ना मदोधरि सु० सा मटका ना पुरा सु० सा० सोम सापासा
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( १७ )
सहसा यैः पितृमातृ श्रेयसे श्री अजितनाचादि चतुर्विंशति पट्टः पूर्वसा पके श्री पुष्यरत्न सूरी शामुपदेशेम कारितः प्रतिष्ठितश्च विधिना श्री अहमदाबाद नगरे ।
श्री दादास्थान का मन्दिर ।
पाषाण के चरणोंपर ।
[87]
॥ श्री ले नमः ॥ संवत २०२१ मिति माघ सुदि १५ दिने महोपाध्याय जी श्री १०८ श्री समयसुन्दर जी गधि गजेंद्राणां शिष्य मुख्योत्तम श्री १०८ श्री हर्षनन्दन जी शाखायां पंकितोचम प्रवर श्री श्री जीमज। श्री सारङ्गजी तत्शिष्य पं० बोधाजी तत्शिष्य पं० हजारी नन्दस्य उपदेशेन सुश्रावक पुण्य प्रजावक का तेल गोत्रे सादजी श्री सोजाचन्द जी तत् जातृ मोतीचन्द जी श्री मत् बृहत खरतर गले जङ्गम युगप्रधान चारित्र चूड़ामणि जट्टारक प्रभु श्री १०० श्री दादाजी भी जिनदत्त सूरिजी दादाजी श्री १२०१ श्री जिनकुशल सूरि भूरीरायां पाडुका कारापिता मकुशूदाबाद मध्ये प्रतिष्ठितं महेंद्र सागर सूरिभिः ॥ शुभमस्तु |
168]
सं० १००६ रा वर्षे मार्गशीर्ष मासे शुरूप १० तिथौ शुक्रबारे बृहत श्री खरतर गठे जं० । ० । ० | श्री १०८ श्री जिन चंद्र सुरि सन्तानीय सकल शास्त्राशार्थ पाउन प्रधान बुद्धि निधान । श्री मडुपाध्याय जी श्री १०८ श्री रत्नसुन्दर गणिजिहूराणां चरण स्थान || साइजी दूगड़ गोत्रीय श्री बाबु श्री बुधसिंह जी तत्पुत्र बाबु श्री प्रतापसिंह जी प्रादेष प्रतिष्ठितं श्री रस्तुः कल्याणमस्तुः ।
श्री श्रादिनाथजी का मन्दिर - कठगोला ।
[ 60 ]
ॐ संवत १४०० वर्षे पोष मदि १०- गुरौ श्री नीमा ज्ञातीय गं० गड़दा जाय सक्षषु तयोः
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(१८)
मुतेन सह सायरेण खश्रेपसे श्री जीवत्खामि श्री सुपार्श्वनाथ विं कारापितं प्रतिष्ठित श्री बृहत्तण पक्षे श्री रत्नसिंह सूरिनिः शुजंनवतु ।
[70] सं० १५३० वर्षे माघ सुदि । शुक्र सांबोसण वासि प्राग्वाट झा० व्या सोना ना माऊ पु० व्या नारद बंधु व्य० बिरूयाकेन जावीदषदे पु० देधर मेला साश्यादि कुटुंब युतेन निज श्रेयसे श्री सम्नवनाथ विवं का०प्र० श्री तपा गछे श्री लक्ष्मीसागर सरिनिः ।
171]
सं० १५०३ शाके १७६० प्रवर्त्तमाने माघ कृष्ण ५ भृगु अहमदावाद बास्तव्य उसवाल झासी वृद्ध शाखायां सा केसरीसिंह तत्पुत्र साह बिसंघजि तत्जार्या रुषमणी खयर्थे श्री आदिश्वर जिन बिवं जरापितं श्री शांतिसागर सुरिनिः प्र०॥
श्री जगत्सेवजी का मन्दिर - महिमापूर ।
[72]
सं० १५५५ बर्षे माघ वदि १ गुरो प्रा शा म जेसा जा० मुरी पुत्र सर्वणेन लान रूपाइ मात पितृ श्रेयसे खश्रेयसे श्री कुंथुनाथ विवं का प्र० श्री साधु पूर्मिमा पक्षे श्री पुण्य चंड सूरीणामादशेन विधिना श्री विजयचंद्र सूरिभिः ॥ श्री रस्तु ।
173]
सं० १५३६ ब० फा० सु० १५ प्राग्वाट व्य० होरा जा रूपादे पुत्र व्यण देपा ना० गीमति पु० गांगाफेन जा नाथी पुत्र मेरा जातृ गोगादि कुटुंब युतेन श्री नमिनाथ विवं का प्र० तपा गछे श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिः । पीकरवाड़ा प्रामे मुंगलिया वंशे श्रीः ।
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[743 सं १५४ए वैशाख मुनि सामे सपकेश ज्ञातो वसहि गोत्र राका शाखायां मा पासड ला हापू पु० पेवाकेन जा० जीका पु०२ देषा पूवादि परिवार युतेन वपुण्यार्थ श्री पद्मप्रन बिवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री उपकेश गछे कदाचार्य सन्ताने न श्री सिद्ध रिजिः दन्तरा वास्तव्यः ।
[75] स्फटिक के बिंध पर।
सं १७१० ब० ज्ये० सु०१ श्री स्तम्म तीर्थ वा उकेश झा गांधि गोत्रेप-सीसीपति सा शिवा श्री कुन्थुनाच बिवं प्र० श्री विजयानन्द सूरिनिः । तप (नय ) करण ।
[78]
रोप्यके मूत्ति पर । सं० १७१६ वर्षे बैशाख शुक्ल ५ तिथो। उसवाल घंशीय श्रेष्ठ श्री माशिक चन्दजी सधर्म पस्नी माणिक देवी प्रतिष्ठितं श्रीमत् चतुर्विशति जिन विषं चिरं जयत्तात् । श्रेयोस्क्तः । न जवतुः ॥ १४ ॥श्री नमिनाथजी का मन्दिर - कासिमबजार ॥
[77]
धातुयोंके मूर्तिपर। सं० १४०० वर्षे ज्येष्ठ पदि ५ उपकेश ज्ञातीय आयचणाम गोत्रे सा पासा जा पाधि पु० माजू नाहू ना पी पु० खेमा ताम्हा सावड़ श्री नमीनाप विवं का पूर्वतखिए पुण्यात्मा मेष उपकेश कुक० प्र० श्री सिद्ध सरिभिः ।
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________________
[78]
सं० १५२० बर्षे फागुण दि १ दिने शुक्ले श्रीमाल वंशे साहू गोत्रे श्री सा० पद्दा पुत्र सा० पासा जा० पूनादे पुत्र साना पाइनादि परिवार परिवृतेन श्री श्रेयांसनाथ बिंवं स्वपु यार्थं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गछे श्री जिनन सुरि पट्टे श्री जिनचंद्र सूरिचिः ॥
( २० )
[70]
पाषाणों के मूर्ति और चरणपर ।
सम्बत १५४५ बर्षे बेशाख सुदि 9 श्री मुखसह जहारक जी श्री जिनचंद्र देव साद जीवराज पापड़ीवाल
171
1
[80]
|| सं० १९७० बर्षे मिती फागुण सुदि ५ गुरौ श्री गौतम स्वामि पाडुका कारापिसं काकरेचा मोत्रे सा० बीरदास पुत्र खषमीपतिकेन ।
[81]
सम्बत् १७०० वर्षे मिती माह बाद ३ बार गुरु दिने कारितमिदं पंसि मुनिज गणि वरेण प्रतिष्ठितञ्च विधिना उ० श्री कर्पूर प्रिय गणिनिः
• कास्माबाजार
--)
[82]
सं० १३०१ मिति थाषाढ़ शुक्ल १० तिथौ शनिबारे पूज्य श्री हीरागरिजीना पाटुका कारा पिता सेठिया गुलाबचन्द ॥
[83]
सं० २०२१ माघ शुक्ल १३ खो मद्दोपाध्याय श्री नित्यचंद्रजी स्वगंगतः । श्री पाश्वचंड सुरि गये ।
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________________
( २१ )
[84]
॥ सम्बत १०६७ वर्षे मिति आषाढ़ सुबि ए शुजदिन बुधबारे श्री जिनकुशल सुरिजी सद्गुरूषा चरणन्यासः कारितः श्री सचेन । कास्माबाजार वास्तव्य भाषकैः सुयुबोम्बलैः । पूजनीयाः प्रतिदिनं गुरुपादाः जिः १ ॥
॥ श्री सम्जवनाथजी का मन्दिर
---
---
जिमगञ्ज ॥
[85]
पाषाणकी विशाल मूल बिंव पर ।
॥ श्री बीर गतान्दा २४०३ विक्रमादित्य सम्बत १९३३ शालिवाहन १७९८ माघ शुक्ल एकादश्यां गुरुवासरे रोहिणी नक्षत्रे मीन लग्ने बङ्गदेशे मक्षुदावादांतर्गता जिमगञ्ज वासी बृहत श्रोस बंशे लुंपक गठे बुधसिंह पुत्र प्रतापसिंह तद्भार्या महताव कुमर्थ सत् बृहत पुत्र राय लक्ष्मीपतिर्सिद बहादुर तत् लघु जाता राय धनपतसिंह बहादुर स्वयं एवं गनपतसिंह नरपतसिंह सपरिवारेन श्री सम्जव जिन बिंवं शांतिनाथ जी नेमनाथ जी पार्श्वनाथ जी महाबीर जी परिकर सहित कारापितं जिकूटुरिया सम्राट विद्यामाने प्रतिष्ठितं सर्व सुरिनिः ॥
[86]
जीर्ण मन्दिर - दस्तुरहाट ।
डं जगवते नमः ॥ सम्बत अठारह से ग्यारह (२०११) कृष्ण द्वादसी भृगु बैशाख । सवाल कुल गोत्र गोखरु श्री मौन धर्मकी साख ॥ सजाचन्द के अमरचन्द सुत तिन सुत मुकमसिंह सुनाम । तिनके धाम राय मन्दिर यह जागीरची तीर विश्राम ॥
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( २२ )
!
कलकता
-बड़ाबजार ।
॥ श्री धर्मनाथ स्वामी का पञ्चायति मन्दिर ॥
पत्थर परका लेख |
---
[87]
श्री ॥ सम्थत चंद्रमुनि सिद्धि मेदिनी । २०७१ । प्रतिष्ठितं शाके रसवह्नि मुनि शश १७३ | संख्ये प्रवर्त्तमाने माघ मासे धवलषष्टि तिथौ बुधवासरे श्री शांतिनाथ जिनेंद्रापां प्रासादयम् | श्री कलकत्ता नगर वास्तव्यः श्री समस्त सङ्घन कारितः प्रतिष्ठितः श्री खरतर गलेश हारक श्री जिनदर्ष सूरिभिः । श्रीरस्तु ||
[88]
धातुयों के मूर्त्तिपर ।
सम्बत १९९४ माघ ० १४ पद्मप्र सुत स्थिरदेव पत्नी रेवलिया श्रेयो
[ 80 ]
सं० १२५ बैशाख सु० ३ बुधे सो० जेहड़ सुत सा० बहुद्देव हो जाभ्यां मातृ राज श्री श्रेयोर्थ श्री पार्श्वनाथ प्रतिमा कारिता प्रतिष्ठिता मलधारी श्री देवानन्द सूरिनिः ।
[00]
सम्बत १३४७ बर्षे ज्येष्ठ सुदि १४ बर्षे प्राग्वाट जाति० महं० सादा सुत मह० राजा श्रेयसे ससुत मद० मा दिवि श्री आदिनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठापितं ।
----|
[91]
सं० १३७५ प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे० श्रामचंद्र जायी रत्नादेवी पुत्र लहजा भी शान्तिनाथ काo श्री हेमप्र सूरिजिः प्र० महादद्दाय ।
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(२३)
[92] सं० १४३४ बर्षे ज्येष्ठ बदि १ गुरौ घरहुडिया गोत्रे सा जोजदेव पुत्र मुण् सरसति श्रेयस श्री शान्तिनाथ विवं कारितं प्रदेवाचार्य सं० -- सुरिनिः ।
[93]
सम्बत १४४ए श्राषाढ़ सुदि गुरौ श्री अञ्चल गछे उकेश बंशे गोखरु गोत्र सा नाखून मार्या तिहुणसिरि पुत्र सा नाग राजेन खपितुः श्रेयसे श्री शान्तिनाथ विवं कारित प्रति. टतच श्री सूरिभिः ।
[947
स० १४५ए षष ज्यष्ट बदि १३ शनो प्राग्वाट ज्ञातीय श्रेण रखना नाया खडसाद पुत्र मोगाकन पित्रो श्रेयसे श्री श्रादिनाय विवं का प्र० श्री - - ।
[25]
सं० १४५ए वर्षे मासि चेत वदि ? उवएस झातीय व्य० देवराज नायर्या जस्मादे पुत्र घूषा जा धलूणादे सहितेन पित्रो जातृ रामसी श्रेयसे श्री पद्मप्रन बिवं कारितं प्र० ब्रह्मा पीय गछे श्री उदयानन्द सूरिभिः ।
[28]
स्वस्ति ॥ सम्यत १४७१ वर्षे फागुण सु० १५ बुधे श्रीमान महरोल गोत्रे साईदा सुत सा खेमराजे स० महादेवेन श्री आदिनाथ विवं प्र० श्री बिजयप्रन सरिनिः ॥
[27] सं० १५०३ वर्षे माघ सुदि ५ श्रोस वंशे काकरिया गोत्रे सा साजय पुत्र सा० सालिग जाऱ्यां पाईना शान्तिनाथ विवं का प्रतिष्ठितं कृर्षणीय श्री नयचंड सरिनिः ।
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१.२४)
[98] सं० १५०६ बर्षे पोष सुदि ५ उस वंशे चत्तकरीया गोत्रे सा० पाइदेव पाकरण पुत्र सामल भार्या नयणादे पु० श्रीवन सहिता प्रारम पुण्यार्थ श्री श्रेयांस विं का०प्र० --र्षि गछे भो नयचं सूरिनिः।
[90]
सं० १५०६ वर्षे पोष सुदि १५ सोमे उपकेश वंशे श्री काकरिया गोत्रे सं० सुरजन मा. चंनी पुत्र श्रीरङ्गेन यात्म श्रेयसे निज मातृ पितृ श्रेयसे श्रीचंपन विवं का०प्र० श्रीकृर्षि गर्छ श्री नपचं सूरिजिः॥
[100] सं० १५१० वर्षे फागुण बदि३ शुक्र श्री श्रीमान ज्ञातीय उर भरणी नायर्या वाई गाड़ी सुत उकुर मांगण नार्या पाई अरघू तेन खकुटुम्ब श्रेयसे श्री आदिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं पागम गठे श्री जिन रत्न सुरिनामुपदेशेन ॥ श्रीरस्तु कल्याण ॥
[1013
सम्बत १५१३ बर्षे मा० सु०६ रबी उसवाल ज्ञातीय बहुरा गोत्रे सा स्वीमा पुत्र परषा जा वासहदे स जात रहा श्री बिमखनाथ किंवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री चित्रवाल गर्छ श्री दाणाकर सूरिभिः ।
[ 102] सं० १५१४ बर्षे थापा बदि १३ दिने बपुडाणा गोत्रे तुंमिला गोत्र सुत देवराजेन पु० पहगज युने विवं का०प्र० श्री सर्वानन्द सुरिनिः।
[ 103]
सं० १५१ए. वर्षे धापाढ़ सुदि १० मंत्रिदलीय श्री. काथा गोत्रे
बापू जाधर्मिष
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________________
(१५)
पु० च दासेन पु० उपसेन सहीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेन देवपाल वीरसेन महिराजादि युतेन श्री शान्तिनाथ का श्री जिनभड सुरि पट्टे श्री जिनचंद्र सूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥
[104]
सम्बत १५१५ बर्षे कार्त्तिक बदि ४ गुरू श्रीमाली ज्ञातीय मंत्रि देपा जार्या सहिज् सुत वरजांगकेन जातृ जेसा नरवद हापा सहितेन पितृ मातृ भेयोर्थ श्री अजितनाथादि चतुविंशति यह कारित प्रतिष्ठित श्री ब्रह्माण गष्ठे श्री मुनिचंद्र सुरि पट्टे श्री बीर सूरिजिः ॥ श्रेया वास्तव्यः श्री शुनं जनतु ॥ श्रीः ॥
[105]
सं० २२२४ ० शु० १० उकेश वेदर वासि स० महिराज नार्या चपाई सुत पद्मसिंहेन जमिनी पद्माई प्रमुख कुटुम्ब युतेन श्री शीतलनाथ बिंवं का० प्र० तपा श्री सोमसुन्दर सुरि सन्ताने श्री लक्ष्मीसागर सूरिजिः ॥ श्रीरस्तु ॥
[106]
सं० १५२४ बै० शु० प्रा० श्रे० पाता जा० बाबू पुत्र जोगाकेन जा० जावड़ि पु० रामदास जातृ अर्जुन जा० सोनाइ प्र० कृ० युतेन श्री शीतलनाथ बिंबं का० प्र० श्री सोमसुन्दर सूरि सन्ताने श्री लक्ष्मीसागर सूरिजिः ॥
[107]
सं० १५३२ बर्षे वै० सु० ६ सोमे श्री केश बंशे श्रात्रु सन्ताने ज० जोजा पुत्र नखाता इना ज० जोहड़ा नारदाच्या भो अजिनन्दन जिन बिवं कारितं प्र० श्री खरतर गले श्री जिनचंद्र सुनिः ॥
[109]
सं० १५३२ वर्षे वैशाख सु० १० शुक्रे
9
जोर गोत्रे सre वय जा
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________________
( २६ )
काही पुत्र सा० सीहा सुश्राव केण जा० सूदविदे पुत्र श्रीवंत श्रीचंद स्तदाजड रव शिवदास पौत्र सिद्धपाल प्रमुख कुटुम्ब युनेन श्री अञ्चल गणेश श्री जयकेशरि सूरीणामुपदेशन मातृ पुष्यार्थं श्री कुन्थुनाथ बिंवं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री सन ॥
[109]
सं० १५३६ बर्षे वैशाख सुदि ५ जोमे उपकेश ज्ञातीय व धरणी जा० ऊखी सु० देठाला जा० कुंती कनसू जतृ आत्म श्रेयोथं श्री धर्मनाथ बिंबं का प्रति० श्री नाणवान गर्छु भी धनेश्वर सूरिः । कोर ( वास्तव्यः ।
[ 110 ]
सम्बत १५५२ बर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ शुक्रे श्रीमाल ज्ञातीय माथलपूरा गौत्रे म० हंसराज ० दास पु० सा० बेढा जा० बीमादे आत्म श्रेयसे श्री चंद्रप्रन बित्रं कारापितं श्री ध घोष ने ज० कमलप्रसूरि तत्पट्टे ज० श्री पुष्यवर्द्धन सूरिजिः प्रतिष्ठितं ॥ छ ॥
[111]
सम्बत १५७५ बर्षे माघ सुदि ६ गुरौ श्री श्रीमाल ज्ञातीय श्रेष्ठि लागण जार्या थजी सुतवास रूढ़ा जेसिंग ढूड़ा जा० रमादे स्वपितृ मातृ श्रेयोर्थ श्री धर्मनाथ बिंवं कारित श्री आगम गछे श्रीमुनिरत्न सूरि पट्टे श्री थानन्दरत्न सूरिजिः प्रतिष्ठितं बूबूयाणा वास्तव्यः ॥
[112]
सं० १८७० वर्ष फागुण सु० ए बुधे राजाधिराज श्री नामि नरेश्वर ताया श्र| मरु देव्या तत्पुत्र श्री ५ यादिनाथ बिंबं का० इंद्राणी यनिभानेन कर्मरूपार्थं श्रेयोस्तु शुभं भवतु ॥
[113]
सं० १६५० वर्षे माघ सित पञ्चमी सोमे वृद्ध शाखार्या अहमदावाद वास्तव्य उसवाख ज्ञातीय । सा० घोघा नार्या कव्हा सुत सा० राजा जार्या श्रावक सुत सा० अयतमाख । जायी
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________________
(२७)
जीवादे सुत सागकुर नाम्ना जातृ सा पुण्यपाल सानाकर स्वनार्या गमतादे सुन लालजी घोरजी प्रमुख कुटुम्ब युतेन खश्रेयस श्री सम्नवनाथ विवं कारितं प्र० श्री तपा गठ महानृप प्रतिबोधक ज. श्री हीरविजय सूरि तत्सट्ट प्रनायक सुविहित न० श्री विजयसन सूगिनः थाचार्य श्री ५ श्री विजयदेव सूरि उपाध्याय श्री कल्याण विजय गणि प्रमुख परिवृतेः ।।
[114]
सम्बत १६ए वर्षे फागुण सित पञ्चमि गुरुवासरे श्री स्तम्नतीर्थ वास्तव्य बृद्ध शारवायां उपकेश ज्ञातीय सा० सदमीधर नाया बाई लखमाद पुत्री वा कह्न वाई नाम्न्या स्वमातृ सा० धनजी सा रतनजी सा० पभासण प्रमुख युतया श्री नमिनाथ बिवं कारितं प्रतिष्ठापितं च स्वप्रतिष्ठायां प्रतिष्टितं च तपा गया धिराज नहारक श्री विजयसेन सूरीश्वर पहालङ्कार श्री विजय देव सूरीश्वर पट्टप्रनाकराचार्य श्रीश्री विजयसिंह सुरिनिः॥
॥श्री महावीरस्वामी का मन्दिर-माणिकतला ॥
1 115] __ सं० १३५० बर्षे ----- जयसवाल ज्ञातीय सा० लाखणा श्रेयोर्थ श्री आदिनाथ वि माता चापल श्रेयोथं श्री शान्तिनाथ घिंयं कुमर सिंहेन श्रात्म पुण्यार्थ श्री पार्श्वनाथ नार्या लखमादेवी श्रेयोर्थ श्री महावीर विवं सुत खेतसिंह पुण्यार्थ श्री नेमिनाथ विवं का रितं साह कुमरसिंहेन प्रतिष्ठितं कोरंटक गछे श्री नन्न सूरि सन्ताने श्री कक्क सूरि पट्टे श्री सर्वदेव सूरिनिः।
[ 110]
सं० १४४ बर्षे श्री श्रीमाल बंशे साप लामा सा हापा सुश्रावकेण पुत्र बाढ़ा सहितेन खपुण्यार्थ श्री बर्द्धमान बिवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गछे श्री जिनराज सूरि पट्टे श्री जिनन सूरिभिः ॥
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( २८ )
[117]
सं० १५११ वर्षे पोष बदि ५ बुधे श्री ब्रह्माण गष्ठे श्री श्रीमाल ज्ञातीयः श्रे० मांझ्या जा० राणा सु० बस्ता प्रा० अलवेसरि नाम्न्या खजर्तृ श्र० श्री कुन्थुनाथ वि० प्र० श्री बिमल सूरिजिः । बगुडा बास्तव्यः ॥
[118]
सं० १५३२ बर्षे बैशाख बदि ५ रबौ श्री जावकार गठे उपकेश ज्ञातीय वांठीया गोत्रे व्य० मीमण जा० हसू पु० सादा जा० सूद्गदे पु० नेमीचन्द जानेमा पुण्या समस्त कुटुम्ब श्रेयसे श्री सुविधिनाथ प्रमुख चतुर्विंशति पट्ट का० प्र० श्री कालकाचार्य सन्ताने ज० श्री जावदेव सूरिजिः ॥ सीरोदी वास्तव्यः शुभम्भवतु ॥
――
[119]
सम्बत १५५१ बर्षे पोप सुदि १३ शुक्रे श्री श्री बंशे सा० श्रदा जा० धर्मिणि पुत्र सा० वस्ता सा० तेजा सा० पीमा सा० तेजा जार्या लीलादे सुश्राविकया स्वपुष्यार्थं श्री शान्तिनाथ बिंवं श्री अंचल गनेश श्रीमत् श्री सिद्धान्त सागर सूरीणामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं श्री पत्तन नगरे श्री सङ्केन ॥ श्रीः ॥
[120]
सं० १६६० ब० उ० ज्ञा० जड़िया गो० स० होला पुत्र स० पूरणमल्ल पुत्र सं० नूपतिना श्री विमलनाथ विं महोपाध्याय श्री विवेकदर्ष गएयुपदेशात्का० प्र० तपा गवेंद्र ज० श्री विजयसन सूरिजिः ॥
॥ श्री चंद्रप्रभु स्वामीका मन्दिर - माणिकतला ॥
ww
[121]
सं० १९११ बर्षे प्रापाद बदि ए मागा उकेश ज्ञातीय सा० जेसिंग जा० चंजी पुत्रेण
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________________
सा वीदाकन जा नषी सहितेन स्वश्रेयसे श्री पार्श्वनाथ बिवं कारित प्रतिष्ठित श्री खर तर गछे श्री जिना सूरिभिः ॥ श्री पूंजणू वास्तव्य ।
[122]
सं० १५१६ कार्तिक पदि र रबी श्री उएस बंशे लोढ़ा गोत्रे सा गजू ना० पीमिणि पु० सा गजसी जा चूरा पु० सा० धना ना धर्मादे पु० सा समधरेण जा सूहवदे सहितेन वृद्ध जात नरपति संसारचंड पुण्यार्थ श्री थादिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं रुष पल्लीय गछ श्री सामसुन्दर सूरिनिः ॥
{ 123] सम्बत १५२२ वर्षे कार्तिक बदि ५ गुरौ श्री उएस बंशे। स० घड़ीया नायर्या कपूरी पुत्र स० गोवस ना लखमाद पुत्र खेताकेन जातृ पितृ पितृव्य मातृ श्रेयसे श्री अंचलगछाधिराज श्रीश्री जयकेशरि सुरीणामुपदेशेन श्री चंप्रज स्वामी विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सकेन ॥ कदेशे धमड़का ग्रामे ॥ श्री॥
[124]
सं० १६३४ बर्षे फाण् श्रु० - शः पत्तने सं० माइणना समस्त कुटुम्ब युतेन श्री श्रेयांस नाथ विंग का प्र० श्री बृहत्तपा गाधिराज श्री हीरविजय सूरिनिः॥
॥श्री शीतलनाथ स्वामीका मन्दिर--माणिकतला ॥
[125] सं० १५५६ वर्षे बैशाख यदि १ रयो श्री श्रीमाल श्रेष्ठि श्रवण ना काउं सु० पितृ वीरा मातृ नाणादे श्रेयोर्थ सुत माहाकेन श्री नेमिनाथ बिवं कारितं श्री-पू-ए - रत्नसरि पट्टे श्री साधुसुन्दर सूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितो विधिना श्री सोना आमेण वास्तव्यः ।
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________________
(३०)
[ 126] सम्बत १५५७ बर्षे माघ बदि १५ बुधे प्रा० सा गेला ना० चा सुन सा गजा बना तपा हरपाल ना जीवेणी सु हासा वसुणलादि कुटुम्ब सहितेन कारारितं श्री कुन्थुनाथ विवं प्रतिष्ठित सूरिजिः सीणोत नगरि गोत्र लीवां ।
[127]
सं० १५५० वर्षे माघ सु०५ श्री श्रीमाल ज्ञातीय दो शिवा ना सिरियादे शृङ्गारदे सुत दो धनसिंहेन ना नांविदा मा कुंअरि जाण् देवसी धीरादि कुटुम्ब युतेन स्वश्रेयस श्री शान्ति विवं कारितं श्री सृरिनिः प्रतिष्ठितं ॥
E 1283 सं० १५६५ वर्षे बे० सु० १० रखो श्री तातहम गोत्रे स० जेतू नायर्या निपूह) पुत्र० ३ सा थाढ़ साबुत सा बाहड़ तन्मध्यात् सा हम नार्याया मेयाही नाम्न्या स्वयसे स्वपुण्यार्थच श्री सुमतिनाथ विवं का प्रा श्री उपकेश गछे ककुदाचार्य सन्ताने श्री देवगुप्त सूरिनिः॥ माधोखायजी उगड़ का घरदेरासर-बड़तला ।
[ 1201 उ सं० १५१५ वर्षे वाषाढ़ बदि श्री उकेश वंशे वरड़ा गोत्रे सा हरिपाल सुत ना० थासा साधू तत्पुत्र में ममलिक सुश्रावकेण जार्या सं० रोहिणि पुत्र स० साजण प्रमुख सपरिवार सहितेन निज श्रेयसे श्री बिमलनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं च श्री खरतर गछे श्री । जिनराज सूरि पदे श्री जिनन सूरिनिः।
माधोलाल बाबुका घरदेरासर-मूर्गीहाटा ।
[130] सं० १६ए४ बर्षे माघ सु० ६ गुरौ रेवती नक्षत्र श्री छीप बंदिर वास्तव्य श्री उकेश
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(11) झातीपरब शाखायां सा भी कर पाया भी सिरा भादि सुत सा सोपसी भार्या भी संपुराई पुत्र रल सा शवराज माना श्री आदिनाप विवं कारित खप्रतिष्ठायां प्रतिष्ठापित प्रतिष्ठित तपा गाभी विजयव सूरिनिः॥
जीवनदासमी का परदेरासर-हरिसनरोड ।
[131] सं १५७५ बर्षे जे०१०११
रोपणरी नार्या मच सुतसा 30 बराकेन खगिनी भयोथं श्री पानाच विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री मसपागडमंडन भी सोमसुन्दर सूरिभिः ।
[132] . सं १५७७ व वेशाख सु० १३ दिने श्री श्रीमाली श्रेणबहजा मा बहजादे पु० सा करणसी जाप जीवादे काना सहितेन श्री शांतिनाथ विवं का० प्र० पूर्णिमा पर्ने श्री मुनि चन्द सूरिनिः परजा पाय॥
[138] सं १६०४ बर्षे बैशाख बदि ७ सोमे श्री उसवाल शातीय सा देवदास जार्या वाण देव लदे तत्पुत्र साश्री रतनपाल जाणवाण रतनादे सपरने सा० जावड़ जावा जासखदे तस पुत्री वा जीवण श्री धरमनाथ श्रा० - जिदास परिवार वृतैः ।
४७ न० ईमियन मिरर स्ट्रीट-परमतता। भी रलप्रम सूरी प्रतिष्ठित मारवाड़ के प्रसिद्ध उपदेश (ओसियां) नगर की भी महावीर स्वामीके मन्दिरके पार्च में धर्मशालाकी नींव खोदने में मिली भई भी पार्श्वनाथ जी के मूत्तिके परकरके पश्चातका लेख ।
[134] उ संपत १०११ पेत्र सुदि६ श्री ककाचार्य शिष्य देवदत्त गुरुणा उपकेशीय चेत्य रहे बखयुज् चैत्र पठयां शांति प्रतिमा स्थापनीया गंधोदकान् दिवालिका जामुख प्रतिमा इति ।
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( ३२ )
तीर्थ श्री चंपापुरी |
यह प्राचीन जैन तीर्थ ई, आई रेलवेके लुप बेनके जागलपुर के पास नाथनगर टेसन से मिला हुवा है। यहां चंपापुरी - चंपानगर-चंपा - हाल मे जिस्को सम्पनालाजी कहते है १२ मां तीर्थङ्कर श्री वासुपूज्य स्वामीके पञ्चकख्याणक नये हैं। यहां श्वताम्बरी दिगम्बरी दोनो सम्प्रदाय के जुड़े १ मन्दिर बर्तमान हैं। राजगृहके श्रेणिक राजाका बेटा कोशिक जिस्को अजातशत्रु वा अशांकचंद्र जी कहते हैं राजगृहसे अपनी राजधानी उठाकर यहां चंपामें लायाचा । सुजा सतीजी इसी नगरकी रहनेवाली थी । तीर्थङ्कर महावीर स्वामीने यहां ३ चौमासे कियेथे और उन्के आनन्दादि मुख्य भावकीमें कामदेव श्रावक यहांका रहनेवाला था और जैनागमके प्रसिद्ध दश बेकालिक सूत्रजी श्री शय्यंजव सूरी महाराजने इसी चंपापुरी में रचा था। बसुपूज्य राजा जया रानी के पुत्र श्री वासुपूज्यस्वामीका चवन जन्म फागुण दि १४, दिक्षा- फाल्गुण सुदि १५, केवल ज्ञान- माघ सुदि २ और मोक्ष-धाबाद सुदि १४ यह पांच कल्याणक इसी नगरमें जयथे इस कारण यह पवित्र क्षेत्र है ।
1
पाषाणोंके बिंव और चरणोंपर ।
[135]
सं १६६० | श्री धर्मनाथ बिंवं का० सा० हीरानंदन । प्र० श्री जिनचंद्र सूरिजिः ॥
[136]
श्री तपा गछे श्री बीरविजय सुरिजिः प्रतिष्ठितं ।
सं २०२० वर्ष बै० सु० ११ श्री संडन ।
* यह मुशिदाबाद के प्रसिद्ध जगत्सठके पूर्वज साह हारानन्दजी है, असा सम्भव है ।
---
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[17] सम्बत १०५६ वर्षे पैशाख मास शुक्ल पके बुधवासरे। तृतीयायां। पापी तापी धिराज | श्री देवाधिदेव श्री वासुपूज्य मिन वि समस्त श्री सडेन कारितं । कोटिक गण पंज कुलालझार । श्री मत् श्री सर्व सुरिनिः प्रतिष्ठितं ।
1138] संवत १७५६ बैशाख मास शुक्ल पके बुधवासरे ३ तियो श्री अजितनाथ सामि विवं प्रतिष्ठितं । श्री जिनचं सूरिभिः बृहत् खरतर गडं कारितं मकसदावाद वास्तव्य ---।
[130] सं १७५६ शाख मासे शुक्ल पते तियो ३॥ बुधवासरे। श्री चंप्रन जिन विवं प्रति तिं श्री जिनचं सुरिनिः। वृहत् खरतर गडे कारितं च। बीकानेर वास्तव्य कोगरी अनोपचंद तत्पुत्र जेठमलेन भयो ।
[1403 सं १५६ पेशाग्व मासे शुक्ल पक्ष बुधवासरे। तृतीया तिषो। श्री महाबीर खामि विव प्रतिष्ठित। जलाश्री जिनचं सूरिनिः। बृहत् खरतर गछे कारित समस्त श्री सहेन श्रेयोप।
[141] संवत १७५६ बैशाख मास शुरु प०३ दिने । श्री शान्तिनाथ जिन विवं प्रतिष्ठितं । खर तर गछाधिराज ज०। श्री जिनसान सूरि पहासकार । ज० श्री जिनचंड सूरिनिः कारितं । --- समस्त श्री संघेन अयोर्ष ।
[142] सं १८५६ वैशाख मासे शुक्ल पके बुधवासरे ३ तिमोभीपासपूज्य स्वामि विव प्रतिहित
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"
भी जिन रिधि पद खरतर गडे बजिमना पास्तव्य कारित गोखन गोत्र-- -मालिकमा कारित (शान्तिनाथ ३ । जाड ।। पिमखनाप ---अजयराजेन मेनोपं ।)
[148] सं। २०५६ फागुष कृष्ण प्रतिपलयो श्री वासुपूज्य जिन परण न्यासः । सबै परिभिः। कारित । सर्व संपेन । पानगर मध्ये ।
[144] ॥ संबत । १०५६ वैशाख शुक्ल पके तृतीयायां तियो श्री जिनकुशन सूरि पाठक । प्रतिष्ठितं नः श्री जिनवं सूरिभिः बृहत खरतर गछे कारित । समस्त श्री संनि अयोप।
[145] . संवत ११ मिति माग शुक पव्यां शुक्रवार काष्ठासंघ माथुर गई पुस्कर गणे लोहा चार्यानाय नहारक श्री जगत्कीर्ति सदानाय अपोत कान्वये पिपल गोत्रे प्रयाग नगर वास्तव्य साक श्री हीराबास पुत्र रुपजदास पुत्र सलाख ----अगरवाल प्रजा सा --श्री पद्मन ---प्रतिष्ठा कारिता ।
[1463 संरए०० आषाढ शित ए गुरौ श्री संभवनाथ तिं प्रतिष्ठित वृहत --- सूरिजि: कारितं च गड सरूपचंद बात करमचंद हुलासचंद जननी प्राण बीबी भयोर्ष ।
[1471 संवत १९०७ वर्षे मिः फागुण सुवि३ दिने । श्री शान्तिनाथ विवं कारित मकसुदावाद वास्तव्य श्री संपेन श्रेयसे प्रतिष्ठितं च ज । श्री जिनहर्ष सूरि पशखबार जा भी जिन सोजाग्य सूरिभिः पृहत् खरतर गर्छ ।
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Foolpriots, Champapuri Temple, dated S. 1856 (1799 A.D.)
॥सा८५६फागुगलनपतिपत्तियोश्री
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MERA:
वासुपूज्यजिनचरणदासःपा
IRHEL
सर्दसूरिलिाकारितासहसंचनापान
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[148] सं १९२० मि । फा० कृष्ण २ बुध--गड़ प्रताप---
. [140] ॥ संवत १९३५ मिति जेष्ठ शुक्ल छीतीया तियो रवीवारे झूगड़ गोत्रे श्री प्रतापसिंहजी तमार्या महताब कुंवर तत्पुत्र राय सबमीपत्तसिंघ बाहाउर तत् सघुनाता राय धनपतसिंप बहाऽर तत्पनी प्राणकुंवर जन्म सफली करणार्थ । जं। युज श्री जिनहंस सूरिजी बिजेराज ॥ ज० श्री आणन्दवहन गणि तत् शिष्य उ० श्री सदालाल गणि प्रतिषिता॥ पूज्याचार्य श्री रतनचन्द सूरि ढुंपक गछे॥श्रीः॥ कल्याणमस्तु ॥ श्री नवपदजी श्री चंपा पूरोजी स्थापिताः॥ श्रीः॥
[150]
श्री वासुपूज्यजी जन्म कल्याणक । सं० १९३५ मिः फाल्गुन कृष्ण ५ तिथौ। ड्रगड़ श्री प्रतापसिंघजी तत्पुत्र राय लबमीपत्तसिंघ बहादुर तत्त्रात्र श्री धनपत्तसिंघ बहादुर कारापितं जंग। यु । प्र० । न। श्री जिनहंस सूरिजी विजैराज्ये ॥ उ० श्री सागरचन्द गणि प्रतिठितं ॥ शुजंयात् ।
[ 151]
धातुयोंके मूर्तिपर । सं १५० बर्षे ज्ये० सु० - रबी रंगू ना रमाई-- हेमा हापा खापा पु० साहस जा लक्ष्मीरूपिणि पुण्यार्थ श्री चतुर्विशति जिन प्रतिमा श्री नमिनाथ विवं का० प्र० श्री संमेर गळे श्री शांति सूरिनिः ॥श्रीः
{ 152]
संवत १५२७ वर्षे माघ व १ सोमे प्रा० सं० धारा ना० समषू सुतेन सा वेखा बंधुना
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( ३६ )
स० वनाकेन जा० सी प्रमुख कुटुम्ब युतेन निज श्रेयसे श्री सम्भवनाथ बिंयं का प्रतिष्ठितं श्री सूरिजिः ॥ माख्यवन ग्रामे ॥
[153]
सं १९३८ श्री मूलसंघे श्री मानिकचन्द देवराज प्रतिष्ठापितं
BOUR
[154]
सं० १५५१ बर्षे मा० सू० १३ गुरू उकेश बंशे सिंघाड़िया गोत्रे सा० चांपा जा० रा पु० सा० जोला जा० लहिकू पु० सा० पूजा० सा० काजा सा० राजा पु० धना सा० कालू स काजा जा० कुनिगदे इत्यादि परिवृतेन सा० काजाकेन श्री आदिनाथ चतुबिंशति पट्टे का to श्री खरतर गठे श्री जिनसागर सूरि पट्टे श्री जिनसुन्दर सूरि पट्टे श्री पूज्य श्री जि दर्ष सूरिजिः ॥
[155]
संवत १२०१ वर्षे माघ वदि १० शुक्रे श्री प्राग्वाट ज्ञा० बुद्धशाखायां व्य० सदस सु० व्य० समधर जा० बड़धू सुत देमा जार्या हिमाई सुत व्य० तेजा जीवा बर्द्धमान एते प्रतिष्ठापितं श्री निगम प्रजावक श्री श्राणंदसागर सूरिनिः ॥ श्री शान्तिनाथ बिंवं श्री रस्तु श्री पतन नगरे ॥
[157]
संवत १६०३ बर्षे माम्रशिर सुद ३ शुक्रे प्रा० ज्ञा
--|
[156]
संवत १५८५ बर्षे थाषाड़ सुदि ५ सोमे श्री जसवाल ज्ञातीय भाइचणी गोत्रे चोर बेड़ीया शाखायं सं० जता जाय जइतलदे पु० सं० चूहड़ा जाय नूरी सुत ऊधरण चंद्र पाल आत्म श्रेयोर्थं श्री आदिनाथ बिंवं कारितं श्री उपकेश गष्ठे कुक्कदाचार्य सन्ताने प्रति (ष्ठतं श्री श्री श्री सिद्धि सूरिभिः ।
-
वास्तव्य
जा० रङ्गावे सावं
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Choubisi (Metal) Champapur Temple, dated S. 1551 (1494 A.D.)
मुसा जालाना लाइ
तारा
रावारासिंघाडियागोवेस्ता नाकार
सा। कानूसा। काजाजी
प्रजासाकाजासागराज्ञा
-
ताजिनिगश्त्यहि परिटतेनसा काजाके नीअदिनानिरी शलिप कोषापारवर गारश्रीनिवासागरन्त। रिपाही जनमुर जिन
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सूरा ना सूरमादे सा० श्री रङ्ग सदारङ्ग थमीपलादि कुटुम्ब युसेन साह स चवीषण श्री सुमतिनाथ बिवं कारित प्रतिष्ठितं श्री तपा गछे श्री विशाखसोम सरि शिष्य श्रीश्री५-- सुरिजिः।
[158]
छींकार यंत्रपर।
सम्बत १६६ए बर्षे शुक्तपदे त्रयोदशी दिने शुक्रवारे श्री मूलसंधे सरस्वति गळे व कार गणे चंपापूरी नगर शुजस्थाने ---
1159] सम्बत १६७३ वर्षे मूलसंघे ज० श्री रत्नचंड उपदेशेन उपा० श्री जयकीर्ति प्रतिष्ठित - ग्रामे समस्त श्री संघेन काराप्तिं ।
बाबु सुखराज रायजी का घरदेरासर - नाथनगर
पाषाणके मूर्तिपर।
[ 160] सं० १७७७ माघ सुदि १३ बुधे श्रोस वंशे कगरा गोत्रीय साला जमनादास तन्नार्या धासकुवर तथा श्री वासुपूज्य जिन विवं कारितं मुनि हेमचंयोपदेशात्प्रतिष्ठितं श्री बृहत् खरतर गछीय श्री जिन ---- ।
पञ्चतीर्थीयों पर।
[161] सं० १५१५ --- मंत्रिवलीप श्री काणागोत्र व साधू ना पम्मिणि पु० स०
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(१८)
अचल दासेन पु० उग्रसेन बदमीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेनादि युतेन श्री शान्तिनाथ विं का प्रति श्री जिनसुन्दर सरि पट्टे श्री जिनहर्ष सूरिनिः।
[182]
सम्बत १५७१ बर्षे बैशाख सुदि ३ सोमे श्रीमत्परा ॥ ते॥ मिधूज गोत्रे । स० इम न० --- सुश्रावकेण ना जीवादे पु० आनन्द सा० सोदित प्रमुख सहितेन श्री थादिनाथ बिवं कारित प्रतिष्ठितं श्री खरतर गछे ॥ श्री जिनरत्न सूरितिः ॥
झींकारके यंत्रपर।
[1837 सम्बत १७५६ बर्षे बैशाख मासे शुक्लपदे नियो ३ बुधे श्री सिद्धचक्र यंत्र प्रतिष्ठिवं श्री जिन अक्षय सूरि पट्टालङ्कार श्री जिनचंड सुरिनिः जयनगर बास्तव्य श्री मालान्वये जरगड़ गोत्रीय सुश्रावक खुवचन्द तत्पुत्र रोमनराय बृद्धिचन्द खुस्यालचन्द सरूपचन्द मोतीचन्द रूपचन्द सपरिकरण कारित खश्रयायं ॥
स्थान-लागलपुर। श्री वासुपूज्यजी का मन्दिर ( धर्मशालामे )
पाषाणपर।
[164]
॥ शुन सं० वीर गताव्दा २४०५ विक्रम नृपात् १९३६ रा जेष्टमासे वरे शुक्लपक्षे त्रयोदश्यां तिथौ - चम्पा नगयां श्री वासुपूज्यजी पञ्चकल्याणक चूम्युपरि थोश बंशे गड़ गोत्रे बृ। शा। वा। श्री बुधसिंघजी तत्पुत्र श्री प्रतापसिंघस्य चतुर्थ वधूः महताबकुमरी खजव सफल करणार्थ श्छा कृतासिच कालवशात् सं० १९३१ श्रावण कृ०६ दिने कावधर्म प्राप्तस्य मनोरयाय सत्पुत्र राय श्री खदमीपत सिंघजी बहार राय श्री धनपत सिंघजी बहार
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Footprints from Mithila, dated S. 1875 (1818 A.D.)
*
*
•/1 4 ॥'ਸ਼ਰਧਾ (ਵੇਖਭੁਜਾਵਾਂਗੇ।
* *
ਕੀ ਸਊਸਿਰਧਾਰ: 1|nceru'ਕੋਝਾ ਭਵਿvਸਿਧਿਧੀ
:ਹੜੀ ।
ਇਰਵੇ
ਫਕਿਵੇ ਸਰਦ੨ਤਿਸੈ ਤਾ ਏਕੇਜਸੁਵਿਧਾਂਨਾਕ ਸ॥
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(३९) सेन अव्येण धर्मशाला जिनालय कारापितं प्रतिष्ठितं सर्व सुनिभिः श्रीसंघ च संजालली श्री संप मालिक श्री रस्तु श्री कल्याण मस्तु श्री जीकटरीया श्मप्रेश राज्ये पुष्टाब्द १७ए ।
पाषाणके चरणों पर।
[ 185] (१) च्यवन (२) जन्म (३) दीक्षा (५) केवख (५) निर्वाण कल्याणक पातुका । साधु ७२००० । साध्वी १५५००० । श्रावक ११५००० । श्राविका ४३६००० ॥ --- श्रीवासु पूज्य पञ्चकल्याणक चरण कारापितं चंपा नगरे श्रोशवास वृ । शा। दूगड़ गोत्रे वा। श्रो बुधसिंघजी तत्पुत्र श्री प्रतापसिंघजी तत्लायर्या महतावकुमर बीबी तत्पुत्र राय श्री सदमी पतसिंघ श्री धनपतसिंघ बहादुर कारापितं प्रतिष्ठितं सर्वसूरिनि श्री संघस्य शुजंजवतु ।।
[18]
॥ए ए॥ सम्बहाणर्षि नागेन्दो राप शुक्लादशी भृगौ मलि नम्योः पदं जीर्णमुद्धृत खरतरेण श्री जिनहर्ष निदेशी वा जाग्यधीर गणि किस माहू गोत्रस्य प्रष्णेन्दोर्वित्तमुदिश्य काय्यकृत् ५ युग्मम् ॥ सं० ११३५ मिती बैशाख मुदि १० शुके मिथिला नगा श्रीमखि जिन चरणन्यासः ॥
[167]
सं० १९३१ माघ शुक्लपक्षे १५ खुवे श्री वासुपूज्य (अजितनाथ, सम्नवनाप ) जिन
* यह चरण दरभङ्गा लैन में सीतामढी सनक पास मिथिला नगरी से उठाकर लाया भया है। वहाँ इस समय कोई जैन मन्दिर नही है। १९ मा तीर्यङ्कर भी मल्लिनाथ स्वामी के चार कल्याणक और २१ मा श्री नमि नाथ सामीके चार कल्याणक यहाँ भये थे । श्री मल्लिनाप मिथिलाके कुंभ राजा और प्रभावती रानीकी कुमरी थी। जन्म, दीक्षा, केवलझान मार्गशीर्ष सदि ११ के दिन भया था। इसी नगरके विजय राजा और विमा रानीके पुत्र भी नाममाप स्वामीका जन्म भाषण वदी , दीक्षा आषाद वदि , केवल ज्ञान मार्गशीर्ष १० ११ के दिन भयावा किसी अन्यमें "मिथिला" के स्थानमें "मयुरा" नगरी भी देखने में आया है। सत्या. सत्य मानागम्य है। चरम सीकर महावीर भगवानका भी (चौमासा यहाँ भपाया ।
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( ४० )
विं यो वंशे डूगढ़ गोत्रे बाबु प्रतापसिंह पुत्र राय बहादुर धनपतसिंहेन कारापितं मधार पूर्णिमा श्रीमद्विजय गछे जहारक श्री जिन शांतिसागर सूरिजिः ॥
[168]
॥ सं० १९३३ मा । शु । ११ श्री मल्लिजिन बिंवमिदं मकसुदावाद बास्तव्य श्रोश . बंशीय पक गणोपासक डूगड़ गोत्रीय बाबु प्रतापसिंहस्य जार्या महताव कुंवरिकस्य लघु पुत्र राय धनपतसिंहेन कारापितं प्रतिष्ठितंचाचाय्र्येण अमृतचंद्र सूरिणा लुकागठीयेन ॥ श्री मिथिलापुरवरे ।
[169]
सं० १९३३ मि । मा । सु । १२ श्री नमिजिन बिंवमिदं मकसूदाबाद बास्तब्य श्रोश बेशीय पकगणोपाशक डूगड़ गोत्रीय बाबु प्रतापसिंहस्य जार्या महतात्र कुंवरिकस्य लघु पुत्र राय धनपतसिंहेन कारापितं प्रतिष्ठितं चाचार्येण अमृतचंद्र सूरिणा कागठीयेन सीतामढ़ी मिथिलायां ।
पंचतीर्थी पर ।
[170]
॥ सं० १५ आषाढादि ए६ बर्षे आषाड़ शु० ११ दिनेः रा० जएकारी गोत्रे नं० सिवा मा० रत्नादे पु० ज० हेमराज वेला जा० वालहदे पु० पता चिंवं कारापितं पुण्यार्थं श्री संर गछे ज० श्री साल सूरिजिः प्रतिष्ठितं ।। सू० तानाकेन कृतं ।
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॥ॐ नमः सवर २२ वर्षे वैशा२मा से शुक्ल ९ रवीति श्री सुविधिनाथ ने वर वर एक
स्था
श्रीका
नगरी
कल्या
स्थान
घन
मले
वित्ते
कं दी।
म
Footprin's Kakandi Temple, dated S. 1822 (1765A. D.)
एक ।
श्री सा
जीर्णो
राशि
निंदी
द्वारक
तिर
का कंदीनामको वरः
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(१)
तीर्थ काकंदी और क्षत्रियकुण्ड ।
लखीसराय स्टेशन से ६ कोस पर काकंदी है। नवमा तीर्थंकर श्री सुविधिनाथ जी का चवन-जन्म-दीक्षा और केवल ज्ञान यह चार कल्याणक यहां जये हैं । सुग्रीव राजा रामा रानी के पुत्र थे । मृगशीर वदि ५ जन्म, मृगशीर वदि ६ दीक्षा और कार्तिक सुदी ३ के दिन केवल ज्ञान जया । जैन मुनि धन्ना काकन्दी जी यहीं जये हैं ।
यहां से नव कोस पर खत्रिय कुए आज कल लढवाड़ गांव के नामसे प्रसिद्ध है । विशमां तीर्थंकर श्री महाबीर स्वामी का चवन, जन्म और दीक्षा यह ३ कल्याणक यहां ये हैं ।
मूर्तियों पर ।
[171]
संवत १५०४ वर्षे फागुण सुदि ए महतियाण बंशे मुंकतोड़ गोत्रे । मं० महासी पुत्र स० [देपाल जाय मू० महिणि स्वकुटुंबेन जाता व० मित्र लखमी पुत्र व्य० इंसराज पुत्र - श्री महाबीर बिंवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर वा० शुजशील गणिनिः ।
[172]
संवत १५०४ फागुण सुदि ए दिने महतियाण बंशे मुंकतोड़ गोत्रे । सं० मं० महादेपाल ज० माहिणि पुत्र मं० सिवाई |
चरण पर ।
---|
--
राजपुत्र
[173]
यो नमः । संवत १८२२ बर्षे बैशाख मासे शुक्ल पक्ष षष्ठी तिथौ श्री सुविधिनाथ जिन वर चरण कमले शुने स्थापिते ॥ श्री काकंदी नगरी जन्म कल्याणक स्थाने श्री संघेन जीर्णोद्धारं कारापितं ॥ १ चिरं नन्दतु तीर्थोयं काकंदी नामको वरः ।
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(५२)
पाषाण पर।
[174] मक्रशूदावाद अजीमगज वास्तव्य दूगड़ मोने वावु प्रतापसिंहजी तमार्या महताब कुंवर तत्पुत्र राय बक्ष्मीपत तत्सघु सहोदर राय धनपतसिंह बहाउरेष न्याय अव्यण व्यय बार प्रचु का जिनालय करापितः खवाड़ मध्ये उ० श्री सागरचं गषि प्रतिष्ठितं । सं० १९३० मिती बैशाख वदी १ चन्जे--।
श्री गुनायाजी। नवादा (गया लाईन) टेसनसे १॥ माईल पर यह स्थान है। इसका नाम शास्त्र में "गुणशीख चैत्य” से प्रसिद्ध है। यहाँ २४ मां तीर्थंकर श्री महावीर स्वामीका १४ चौमासा प्रयाथा । स्थान मनोहर और श्री पावापूरी तीर्थके जलमन्दिर की तरह तालाव वा विचमें मन्दिर है।
धातुके मूर्तिपर।
[175] संवत् १५१० बर्षे फागुण पदि १५ उसवालान्वये भूधाला गोत्रे स - मीला जा० बीहू पुत्र साप तोहा जा पई नाम्न्या स्वपुण्यार्थ पद्माज बिवं कारित प्र० श्री पद्मानंद सूरिनिः।
पाषाणके चरणोंपर ।
[178] संवत १६०० वर्षे बैशाख सुदि १५ तियो मंत्रीदल बसे चोपरा गोत्रे ग विमलदास तत्पुत्र ग तुलसीदास तत्पुत्र श्री गण संग्राम गोबर्द्धनदास तस्य माता उकुरी श्री निहाखो तत्पु० भार्या करेटी यु० ज० श्री जिनकुसल सुरिका कारापिता पूज्य श्रीश्री ५ श्री श्रीराज सरि विधमाने उपाध्याय अनय धर्मेन प्रतिष्ठा कृता स्थिर बने खरतर गर्छ।
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Footprints, Gunashila (Gunawa) Temple, dated S. 1688 (1631 A. D.)
NOTERARMATIONEETTEShy
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तरिकाकारिविता
NEY.
बावान वारा ठानदेवलदान्तरलला
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निशान इतदास्त सावतामात्र
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(५३)
[177] संवत १९५४ मिति माघ कृष्ण ५ नोमे श्री गुण शिखास्ये येत्ये श्रीगड़ प्रतापसिंह बीकानां जागी महताव कुंवर तत्कृक्षितात्पन्न कनिष्ठ पुत्र श्री राय धनपतसिंह बहादुर नाना खपली प्रागनंबर जन्म सफसी करणार्य श्री श्रष्टापद तीर्थे श्री शत्रुजय निकाय मानतया श्री थादि जिन चरण का कारापिता श्री जिनजति सरि शाखारां सदा मान गणिना प्रविधिनं शुजा
[17] सं० १९३० माघ शु० ५ सय संघेन श्री वीर पाका काराप्ति स्थापितं श्री गुष शोध चेत्ये धात्महिताय ॥
पाषाण पर।
[1781
सं० १५ मिती माघ कृष्ण ५ जोमे गुणशी चले शुगड़ गोने श्री प्रासिंगजी रुतमार्या मदताव कुंवर तत्पुत्र चिरूराय बहादुर तत् अयम परली प्राकुंभर जन्म साफस्य कापिता जीणोद्धार । उ० श्री बाणंद बसन गणि ततशिष्य श्री समरचंद मणि उपपेशर ॥ श्रीः ॥ शुजंजूयात् ।
[ 1800
-- श्री जिने जगती । वस्ती भोमर वीर जिन सं० २४१ वि० सं० १९५ए बर्षे वे० वद०० बुधवारे भी तपा गछामनाय धारक मुश्रावक दसा श्रीनाछ ज्ञातीये सा. उपचन्द रंगीबदास देवचन्द पाटनशाखा हाख मुकाम रोवला मुंबई ये दनना स्मार्य तत बन्धु चतुर चन्द मत वेख बन्द पास चन्द भाग बन्द जब-३॥ श्री गुणशी त्ये या
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(४४)
धर्मशाखा पंधावी त्या देरासरमा पवासणा गोखलायो दरवाजो जमतीनी देरी = ४सहीत सस्ते पारसनु काम तथा तखावनी जीत तथा रीपर बीगेरे जीर्णोद्धार करायो श्री शुनं अवतु सदा । सलाट पाश्चंद जगजीवन मीत्री पालीताणा वाला -- ।
तीर्थ श्री पावापूरी। शासन नायक श्री महावीर स्वामीका यह निर्वाण कल्याणक का स्थान जेनीयोंका प्रसिद्ध तीर्थक्षेत्र है। २४ मा तीर्थकर के समवसरण की रचना और उनका मोक्ष यहां जये हैं। समवसरण के स्थानमें १ स्तंन वर्तमान है कोई लेख नही है। वहांसे प्राचीन चरण उगकर जखमंदिर के पासमें तलावके पाड़ पर विराजमान हुथे हैं । अग्निसंस्कार की जगह तालाव और मंदिर है। प्राचीन मंदिर १ गांवमें है और नवीन मंदिर = १ खताम्बर और १ दिगम्बरी उस तालाव के पाड़में बनाई और कई धर्मसाक्षायें है।
समवसरणजी के प्राचीन चरणों पर ।
[1011
सं० १६४५ वर्षे वैशाख सुदि३ गुरी श्री----- कनकविजय गणिनिः---। (अक्षर घस जानेके कारण पढ़ा नही जाता )
जलमंदिर - पावापुरीजी श्री गोतमस्वामीजी के चरणोंपर ।
[182]
सं० १९३५ मि० आ शुक्ल ५इदं गोतम गणधर पाउकां कारापितं उसवाल चोमिया .
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मोत्रे नानकचंद जीवनदास प्रवृ । ज० । श्री जिन नंदीवर्द्धन सूरी तशिष्य मुनि पयः जय उपदेशात् ।।
श्री सुधर्मा खामीजीके चरणोपर ।
1183]
सं० १९३५ मि श्राप शुक्ल ५ इदं पाकुका श्री सुधर्मा खामी कारापितं थोसवाल ज्ञातों धाड़वा गोत्रे - न सुख प्रतिष्ठितं वृाजा श्री जिन नंदीबर्द्धन सूरि तत् शिष्य मुनि पराजय उपदेशात् ।
पामे तर्फकी गुमटीमें १६ चरणोपर ।
[ 184] संघत १९३१ का मिती माघ शुक्ल १० तिथौ चंबारे श्री बृहत् गुजराती गुंका गर्छ। श्री पूज्याचार्य श्रीश्री १०७ श्रीश्री अक्षयराज सूरि तत्पट्टालङ्कार श्री अजयराज सरि चरण प्रतिष्ठितं सुश्रावक बाबु श्री प्रताप सिंघजी राय धनपत सिंघजी दूगड़ गोत्रीयण पोड़श महासती चरण कारापितं ॥ श्री शुनंजूयात् ॥ पावापूरीमें - स्थापितं ।।
दाहिने तर्फकी गुमटीमें चरणपर ।
[185] ॥ संघत १७५३ वर्षे आषाढ शुदि पञ्चमि दिने गणि दीप विजयणा पाऊका० ॥
गांव मंदिर - पावापूरी। पंचतीर्थीपर ।
[186] सं० १५१९ थापाद यदि १० मंत्रिवतिय श्री उसियड़ गोत्रे सा मेघराज सु० जिपदास
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( ४१ )
प्रा० कर गिपि पुत्रेण स० शुजकर जा० पद्मिन्याः पु० लक्ष्मीसेन हालू जनन्याः भेषोथं श्री संजवनाथ विंवं का० भी खरतर भी जिनच सूरि पट्टे श्री जिनचंद्र सूरिचिः प्रतिहितं श्रेयोस्तुः ॥
[187]
सं० १५६१ बर्षे वैशाख सु० १० दिने श्रीमाल ज्ञातीय गोत्रे मोठिप्पा सा० रणमल पुत्र सा० दीपचंद जार्या जीवादे कारितं । श्री खरतर गछे जहारिक श्री जिनहंस सूरि गुरुज्यो नमः ॥ प्रतिमा श्री शांतिनाथ बिंवं कारितं ॥
पाषाणके चरण पर |
सं० १६४५ बर्षे बेशास्त्र सुदि ३ गुरौ भी बर्द्धमान जिनस्येयं पाडुका कारा
[188]
5--1
-
|--
[189]
रुपचंद पुत्र जसराज प्रत्येध कर्या -
॥ संवत १७७२ बर्षे माद सुदि १३ दिने सोमवारे श्री पुएफरक चरण कमल राडुके
मध्यके चरणपर।
[180]
"
॥० ॥ स्वस्ति श्री मंगल | श्री गौतमस्वामिनोलब्धिः संवत १६ए वैशाख सुदि ५ सोमवासरे || श्री विहार नगर कचरव्य श्री कूपन जिनेश्वर प्रथम पुत्र श्री नरत चक्रवर्त्ति राजान सुरु मंदिर संतानीय मदतीयाण ज्ञाती मुख्य चोपड़ा गोशीय संघनायक मं० संग्राम | राह दिया गोत्रीय संघ० परमाखन्द प्रमुख श्री वृत्त खरतर गष्ठीय नरमणि मकित जालस्थल श्री जिनचंद्र सूरि प्रतियोषित महतीयाण श्री संघ कारित श्री वीर जिन निर्माण जूनि श्री पायरी समीपवर्त्ति वरविधानानु पर श्री बीर जिन प्रासाद
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Footprints (in the centre) Pawapuri Temple, dated S. 1698 (1641 A. D.)
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Pawapuri Temple Prashasti. dated S. 1698 (1641 A. D.)
समिश्रा सहिदण खेका मुदि५ सोमवार दे पामार यामा दिजादसकस लास वा विसथि रामे।। प्राचालितम जिना विराजबीवीरवमानसान Ranक त्या कविसावाशपरिसरातार जिन दसानदायी
सनरा मकवािस महाराज सकलमलमलमविलीदवस मनीयम् । Eamnam मागीय संघनायक संघतालमादाम नायासालामा मयाम
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214
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(४७) चमो घाम प्रतिष्ठित श्री महावीर बर्द्धमान जिनराज पाउके महतियाण श्री संघेन कारिते। प्रतिष्ठित च श्री बृहत्खरतर गवाधीश्वर श्री शत्रुजयाष्टमोबार प्रतिष्ठाकर युगप्रधान भी जिनसिंह सूरि पटोदय गिर दिनकर युगप्रधान श्री जिनराज सुरिनिः॥श्रीवतु । श्री कमल लाजोपाध्यायाः पं० बन्धकीर्ति राजहंसादि शिष्य सहिताः प्रणमंति ।
११ गणधरोंके चरणों पर।
[ 191] १ । संघति १६एउ प्रमिते । बैशाख सुदि ५ सोमबारे । श्री बिहार नगर बास्तव्य श्री जरत चक्रवर्ति महाराजात सकल मंत्रि मुख्य मंत्रिश्वर दसान्वीय नरमणि मंकित श्री जिन चंड सूरि प्रशोषित महतियाण ज्ञाति मएकन चोपड़ा गोत्रीय संघवी संग्राम सपरिवारेण ।
श्री गौतम खामि ॥ १ श्री अग्निनुति ॥ ३ श्री बायुजूति ॥ ३ श्री व्यक्तखामि ॥४ श्री सुधर्मा स्वामि ॥५ श्री मंएिककपुत्र स्वामि ॥ ६ श्री मौर्यपुत्र स्वामि ॥ श्री अकंपिक स्वामि ॥ श्री अचखत्राता स्वामि ॥ ए श्री मेतार्य स्वामि ॥ १० श्री प्रजास स्वामि ॥ ११
मंदिर प्रशस्ति ।
[ 192] ।९० ॥ स्वस्ति श्री संबति १६ए७ बैशाख सुदि ५ सोमबासरे। पातिसाह श्री साहिजां हसकल नूर माललाधीश्वर विजयिराज्ये ॥ श्री चतुर्विंशतितम जिनाधिराज श्री बीर बर्द्धमान स्वामि निर्वाण कल्याणक पवित्रित पावापूरी परिसरे श्री बीर जिन चैत्य निवेशः॥ श्री रुपन जिनराज प्रथम पुत्र चक्रवर्षि श्री जरत महाराज सकल मंत्रि मएमज श्रेष्ठ मंत्रि श्री दल संतानीय महतियाण ज्ञातिश्रृंगार चोपड़ा गोत्रीय संघनायक संघवी तुलसी जा निहालो पुत्र सं० संमाम बघुनात गोवर्धन तेजपाल नोजराज । रोह दिय गोत्रीय सण पर
* यह बेदीके अन्दर दवा भया है इस कारण सन पढ़ा नहीं गया।
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( ४८ )
1
माद सपरिवार मद्धारा श्रीय बिशेष धर्म कर्मोंयम विधायक व० दुलीचंद काड्ड्रा गोत्रीय to मदन सामीदास मनोदर कुशला सुंदरदास रोदधिया पुत्र मथुरादास नारायणदास गिरिवर संतोदास प्रसादी । वार्तिदिपा गो० गूजरमल्ल षूदड़मा मोहनदास माणिकचंद बूदमत जेठमल । व० जगन नूरीचंद । दान्हरा गो० ० कल्याणमा मलूकचंद संतोषचंद सयला गोत्राय उ० सिंह कीर्तिपाल बालूराम केसवराय सूरतिसिंघ । काऊंड़ा गो० दयान दास नोवालदाम कृपालदास मीर मुरारीदास किन्नू । काणो गोत्रीय व० राजपाल रामचंद - महावीर कीर्त्तिसिंघ ० बीचंद । जीजीयाण गा० मं० नथमल नंदलाल । नान्दड्रा गोत्रीय १३ दाल सुंदरदास सागरमति कमलदास । रो० सुंदर सूरति भूरति सवलकृती प्रताप
० मदमल जा० दरदासपुर
---1
पाषाणके मूर्त्तिपर |
--
--
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[183]
|| सिरि देव गणि खमा समया होत्ता तेसिं सिरि बीर निवायाज नवसय अमीर बरि सेदिं जिलागम रस्कगा तुछखेद कारणान त्रिमि पट्टावियं सिरि जिए मदिंद सुररीहिं ॥ सं० १९२० बर्षे मा। सु०२ ।
बेदी पर |
[194]
सं० ११०३८ मिति जेष्ठ शुक्ल ५ बुधवासरे इदं वेदिका कारापितं जसवाल तो सेठिया गोत्रे सेठजी श्री लबमणदासजी तत्पुत्र कल्लुमनी तत्जातृ घनसुख दासजी !
दाहिने तर्फ दादाजी की कोठरीके चरणोंपर !
[195]
सूरीया पाडुके
मातृ सुदि १३ दिने
---
1
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[ 1961 संबत १६७६ वर्षे - ---1 प्रवर्ग---:। श्री खरतर गछे श्री उपाध्याय रत्न सिलक सूरिनां तक शिष्येन श्री सब्धिसेन गणि श्री युगप्रधान श्री जिनचंद शाखायां कास पितं उपदेन -- गुजु -- पाठकस्य --- श्री रमतिखक गणि प्रतिष्ठितं वा लगि मन गणि प्रतिष्ठा कृता ॥ श्री रस्तु श्रीः॥१॥
[107]
मूल नायक ---- राज सनासन धारकं । । । ० गुर्जरे मह - न ति -- गोत्रे -- बेनीदास । तुलसीदास - माणिक - - दास - - कारापितं । श्री--.. स्यां पापुका श्री-- स्य गुरु -- श्री जिन लब्धिसेन सूरि कृता ॥ यस्यां पाउके दृहत् श्री खर तर गणा - यं० जुग - - श्री युगप्रधान - - श्री जिनचं सूरि शाखायां श्री उपाध्याय - श्री रत्नतिलक - - तत्पट्टालङ्कार श्री बाचनाचार्य - सब्धिसेन गणि श्रादेशेन श्री दखचंद -- - याणा वालिडिवा गोत्रे । नैरवन .. - ठार गुजरमलेन - - श्री रत्न तिलक या० ---त गय - करन प्रतिष्ठा पुनमीया --1
[ 108]
॥ संवत १७०२ वर्षे माइ सुदि १३ दिने सोमपारे श्री जिन कुशल सूरीणा पाउके । महतीयाण चोपड़ा गोत्रे । सङ्गवी तुलसी दास नार्या कल्याची निहालो पुत्र समवी संग्राम सिंह --- गणिनिःप्रतिष्ठिता श्री पावापूरी समस्त श्री सब सदिता श्री रस्तु ।
[109]
॥ सं० । १९१० वर्षे शाके १७७५ माघ शुक्ल र श्री जिनदत्त सूरी सद्गुरुणां श्री जिन धुशत सूरीणां पादन्यासो प्रतिष्ठितं० ज० श्री जिन महें सूरिजिः । का। बा । मो । श्री सिवप्रसाद पुत्र शीतल प्रसादन भेयोर्य मानंदपुरे ॥
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1.)
दाहिने श्री स्थूखनऊ कोठरी के चरणों पर ।
[200] श्री॥ नमनिधि गज गोत्रा सम्मितायां समायां ( १७९७ ) नयन रस सरत्वाञ्चन्छ युक्तेषु शाके ( १७६५ ) ॥ सित पटधर पाटो फागुने शुक्ल पक्षे जुजगपति तिथौ (५ , मार्गवे वासरे ॥१॥श्री मद्ब्रह्मचर्य धर्म वृद्धर्य श्री स्थूलनाचार्य पादपद्म प्रतिष्ठा बृहत खरतर गणेश श्री जिनहर्ष सरि पद अनाकर श्री जिन महेंज सुरिणा कारिता । श्री हीरधर्म गणि बिनय विछत्कुलका प्रनाकर श्री कुशलचंड गएयुपदेशतः। काशीस्थ श्री संधैः ॥ बदलिया गोत्रीयोत्तम चंसात्मज गुजिवासानिधेन ।
[201] (१)॥ स श्री ५ श्री जिन विमल सूरि पाका । (२)॥ श्री जिन ललित सरि पाऊका।
[202] सं० १७ए वर्षे कार्तिक मासि शुक्ल पके पूर्णिमा तिथौ १५ गुरुशासरे बृहत् खरतर मछे यु० ज० श्री जिनरंग --- ।
[203] ___ सं० १७ए७ वर्षे कार्तिक शुक्ल पक्ष राका तिथौ १५ गुरु वासरे बृहत् खरतर गछे यु जा श्री जिनरंग सरि शाखायां आचार्य श्री (जनचं सूरिणां शिष्य वा० श्री सुमतिनंदन गणिनां पादपने स्थाप्यते वा जुवनचंप्रेण । वा सुमतनन्दन गणिनां चरण कमले नवतः श्रा० श्री जिन चन्द सूरीणां चरण कमजे श्मे नवतः ।
श्री चंदनवाला कोउरी के चरणों पर ।
[ 204] ॥ सं० १७२० प्र० श्री सुजाण विजयाजी पापुका।
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(५१)
[206]
सं० २००० मा बर्षे सिते १२ ॥ बृहत् खरतर गठे यु० ज० श्री जिनरङ्ग सूरिः शाखायां शि० चरण रेणुना दीप बिजयाया: स्थापिते । श्री कीर्त्ति बिजयायां --चरण सरसीरुदे प्रतिष्ठितं । साध्वी ॥ श्री सोजाग्य बिजयाया । पादपद्मं प्रतिष्ठितं ।
[206]
सम्बत १८४० शाके १७१३ बर्षे मिति बैशाख शुक्ल ३ तिथौ भृगु बासरे श्री मत् खरतर हारक श्री जिनरङ्ग सूरि शाखायां साध्वी महत्तरा मति विजयाकस्य पाडुका शिष्यनी रूपविजिया पावापूरी मध्ये प्रतिष्ठापितेः
[207]
॥ श्री संवत १९३१ का मिति माघ शुक्ल दशमी तिथो चन्द्र बारे श्री मट्टब्लॉका गुराधिपति || श्री पूज्याचार्य जी श्रीश्री १००८ श्रीश्री अक्षयराज सूरिजी चरण कमलो स्थापितो श्री अजयराज सुरिजिः प्रतिष्ठितं च श्री शुजंजवतु =
[208]
॥ उं नमः ॥ संवत १८१५ वर्षे माघ मासे शुक्लपक्षे षष्ठी तिथौ गुरुवासरे श्री महाबीर जिनवर चरण कमले शुने स्थापिते । हुगली वास्तव्य उस वंशे गांधि गोत्रे बुलाकी दास तत्पुत्र साद माणिक चंदेन श्री क्षत्रीयकुंम नगर जन्मस्थाने जन्मकल्याणक तीर्थे जीर्णोद्धारं करापितं ॥ स्वपरयोः शुजाय ॥ १ यावन्नभस्तले सूर्य चंद्रमसौ स्थितौ बरौ तावन्नंदतु तीर्थोयं
स
-1
[209]
॥ नमः ॥ संवत १८१९ वर्षे श्री महाबीर जिन चरण कमले स्थापिते श्री क्षत्री कुं संघाटे साह माणिकचंदेन जीर्णोद्वार करापितं ॥ श्री रस्तु ॥
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(५१)
[210] सं २०३० माघ शु०५ सकल संपेन श्री वीर पाकुका कारापितं स्थापित भो पावापूर्ण। माम हितायः श्री रस्तुः॥
बिहार।
बिहार वा सूवे बिहार का प्राचीन नाम “तुंगिया नगरी” था। निकट में विशाला नगरी जी थी। जैन सहर था, पश्चात् बौद्ध लोगों के समयसे “विहार” नाम प्रसिद्ध जया।
धातुओं के मूर्ति पर। मथियान महल्ला।
[211]
सं० १४३७ श्री -- तिनाथ प्रति सा पद्मसिंहेन समस्त परिवार युतेन निज पितृ सा देव्हा पुण्यार्थ का० प्र० श्री जिनराज सूरि ।
[212] प० ॥ सं० १४६ए बर्षे माघ सुदि ६ दिने उकेश वंशे सा सामंत पुत्रेण सासषमणेन पुत्र रतना नरसिंह नयणा जा - दादि परिवार सहितेन निज पुण्यार्थ श्री शांतिनाथ बिवं कारित प्रतिष्ठितं खरतर गछे श्री जिन बर्द्धन सूरिनिः ॥
12181
___ सं० १५०६ माघ सुदि ५-- लोढ़ा गोत्र --- पुत्र काकाकेन ना जाऊ श्री पु० -- माला - ना हेम -- नाथू ना कुझिमदे खश्रेण धर्मनाथः का० प्र० चैत्रा गडे श्री मुनि तिषक सूरि।
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(2314] एसं० १५०७ वर्षे ज्येष्ठ सुदिदिने श्री उकेश पेशे लोढ़ा गोत्रे सा जोखा संतानें सा० बीरा जार्या नावसदे पुत्र सा जाडाकेन पुत्र नीसल बीसघ दामाका सहितेन श्री वासुपूज्य बिवं कारितं प्रति श्री खरतर गडाधीश श्री जिनराज सूरि पहासकार श्री जिन आज सूरि युगप्रधान गुरुराजौ।
[215]
सं० १५१५ वर्षे थाषाढ़ बदि १ मंत्रिदलीय काणा गोत्रे व नगराज सुत उप बघूनायो धामिणि पु० सं० श्री अवक्षदासेन पुत्र उ उग्रसेन सदमीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेन बीरसेन देपाल पहिराजादि परिवार वृतेन खश्रेयसे श्री थादिनाथ बिंवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गछे श्री जिनन सूरि पदे श्री जिनचं सूरिनिः॥
[216]
सं० १५१५ वर्षे थापाद यदि १ श्री मंत्रिदलीय शाखायां घायड़ा गोत्रेसा पोमराज जा सुरदेवी पुत्र उ० दासू ना कपूरदे पु० ० सदय व७ (?) प्रमुख परिवार सहितेन स्वश्रेयसे श्री शितलनाथ बिवं कारित प्र० श्री खरतर गछे श्री जिनसुंदर सूरि पट्टे श्री जिनहर्ष सुरिनिः ॥ श्री॥
[217] सं० १५१ए वर्षे थाषाढ़ पदि १ मंत्रिदलीय काणा गोत्रे व श्री नगराज सुत वा श्री बघूजार्या धर्मिणि पुत्र ससिंगारसीना कुंवरदे पु० स० राजमल सुश्रावकेण पुत्रादि परिवार सहितेन श्री थादिनाथ मूख विश्चतुर्विंशति पट्ट कारितः प्रतिष्ठितः खरतर श्री जिन जा सूरि पढे श्री जिनचंड सूरि युगप्र० परागामः ॥ ७॥
[218]
सं० १५२० वर्षे माघ मुदि दशम्या बुधे श्रीमान ज्ञातीय स० गजु जायर्या धरणी धाता
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(५५) श्रेयोर्थ श्री नेमिनाप विवं कारितं प्रतिष्ठित भी खरतर गडे श्री जिनन सूरि परे श्री जिन बंद सूरिराजेः ॥ श्री मंझपे पूर्गे महता गोत्रे ॥
श्री चंऽप्रजु खामीका मंदिर।
[210] सं० १४एए वर्षे फागुण बदि १ गुरौ उपके सूर गोत्रे सा० सिवराज ना मा पु० बासा सहसा जातृ बडराज पुण्यार्य श्री शितलनाथ बिं का प्रति श्री उपकेश गछे ककुदाचार्य संताने श्री कक सूरिनिः ॥ ५ ॥
[2203 सं० १५४० वर्षे वेशात मासे उकेश बंशे दोसी गोत्रे सा कलू पुत्र सा लषा नार्या रुपाई पुत्र लषमी धरेण नाश लीलादे सहितेन श्री अजितनाथ बिवं कारितं प्रतिष्ठित खरतर गछे श्री जिनसमुफ सुरिजिः श्रेयोस्तु ॥१॥
चतुष्कोण पट्टक पर।
[221] सं० १६३७ समये फागुण सुदी ५ नोमे श्री मूखसंघ सरस्वति गछे बलात्कार गणे श्री कुंदकुंदाचार्यान्वये न० श्री धर्मकीर्ति देव तत्पट्टे ज० श्री शीलभूषण तत्पटे ला श्री ज्ञान चूषण श्रथ जा सुमित्रनी तत्पट्टे जा श्री सुमतिकीर्ति ततशिष्य । मंएनाचार्य श्री मेरुकीर्ति गुरुपदे - ज् ॥ मगध देसे। खुदिमपुर बास्तव्य जेसवासान्वये कष्टहार गोत्रे सा वीरम तनायो वंयंत्रयोः पुत्र सहसी तम्नार्या बजेसिरि त्रयो पुत्रौ प्रथम किनू तनार्या परिमल सत्पुत्र जिनदास तमार्या मोना त्रयो पुत्र जगदीस द्वितिय संघ पति श्री रामदास जाया रुकमिनि मेतेषां मध्ये संघपति रामदास नित्यं प्रथमंति । शुजं जवतु ॥
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(१५)
लाखबाम का मंदिर।
[222]
सं० १५३ए व बै० शु०३ सोमे प्राण वृ० मं माईया ना बरजू पु० सीधर ना मांजू पुत्र गोरा ना रुकमिणि पु० बर्द्धमान मातृ पितृ श्रेश्री कुंथुनाथ विकाराप्तिं प्र तपा० श्री लक्ष्मीसागर सूरिनिः।
[223] सं० १६७३ फा० सि० ११ श्री हीर विजय शिष्य श्री विजयसेन सूरिनिःप्राथादि; नाथ ---1
1224 सं. १७७ चैत्र सु. १५ - - वि श्री जिनहर्ष सूरिणा -- महताब वदं नायो श्राविका - - ज्या गुलाबचंद पुत्र युतया -- ।
[225]
सं० १७ए ज्येष्ठ बदि पोसवाल झाती जम्मड गोत्रीय बाबु प्रेमचंद तत्पुत्र विहारी लालेन श्री सिद्धचक्र पढे कारापितं प्रतिष्ठितं विष्णुदय गणिना।
पाषाण पर।
[2261
संवत १५२४ जेष्ठ बदि ४ श्री उपकेश ज्ञातौ साह श्री शक्तिसिंघ जा सहजसदे - F- साह सोमा नार्या थापु नाम्न्या यात्म श्रेयसे श्री अजितनाथ बिवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री उपकेश गछे श्री कक्क सूरिभिः ॥ श्री अजितनाथ प्रणमति बाई श्रापू नाम्न्या :
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(५६)
[227]
गोत्रे
संवत १६०४ बर्षे माघ सुदि ९ दिने जोम बासरे श्रवण नक्षत्रे ठाकुर काडेन तत्पुत्र ठाकुर डुखीचंद श्री जिन कुशल सुरीणं पाडुके कारितं ।
ठाकुर
[228]
सं० १६०४ शाके १५५० ईश्वर बर्षे सम्बतसरं चेत्र बदि १३ शुक्रे शुभे मुहुर्त्ते दक्षिण देशे ज० श्री कुमुदचंद्र दिनंद पट्टे ज० श्री मूल शृंगार दा बघेरवाल ज्ञातौ स० श्री तोला जा० सं
पुत्र स० श्री कृष्ण ॥
देव नार्या सोहि
- श्रेयोथं
---
श्री महाबीर पाडुका स्थापितं ।
[229]
सं० २०३० माघ शुदि ५ - श्री सकल संघे श्री पार्श्व ना० पा० कारापि - |
[230]
सं० १८३० माघ शु०५ सकल संघेन शांतिनाथ पाडु० कारापिता -
[ 231 ]
सुद्ध
प्रणमदिये गूणवीस सय वरसे बसाद बद पियामद सिरि जिन कुशल सुरि पाय हवणा कारिया सिरिमाल बंसे वदलीया गुत्ते साद कमला वरणा बिसाला सुपर हिय सयल सुरीहिं ॥ श्री ॥
सं० २०४६ मीती बेसाख सुदी १३
[232]
श्री दादाजी श्री कुशल सुरजी सहाय
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१०)
[288] . सं० । १३ए फाल्गुन कृष्ण ७ गुरौ श्री जिन कुशल सुरी पादन्यास । जंग। युप्र न । श्री जिन मुक्ति सूरिश्वराणामादेशात् श्री दालचंद गणिनिः प्रतिष्ठितं ॥ सेठ गोत्रीय ताराचंदात्मज रामचंण कारितः स्वश्रेयोर्य मिरजापुर बरो
[234]
॥ ॐ नमः सिद्धम् । संवत् १एएस सि० फागुण सुदि ३ श्री मूलसंधे सरखति गछे बला त्कार गण कुंद कुंदाचार्य थाम्नाय सकल कीर्चि नहारक तत्प? । जहारक कनक कीर्चि उपदेशात् शा कुषेरचंद हरीचंद तनार्या केशरबाई खुरदेवाले प्रति
[ 235] संवत् १९५५ पोस सुद १५ गुरु ॥ श्री ढुंपक गछे श्री पूज्य अजयराज सूरिः प्रतिष्टितम् ॥ बाब सबमीपत गोविंदचंद की माजी करापितं श्री दादाजी चतुः चरण पाकेन्योः ॥ श्री स्थूलना सूरिः ॥ श्री जिनदत्त सूरिः ॥ श्री जिनकुशल सूरिः ॥ श्री जिनवं सूरिः ॥
राज गृह ।
मगध देशको राजधानी यह राजगृह ( राजगिरि ) बहुत प्राचीन नगर है । २० मां तीर्थंकर श्री मुनि सुब्रत स्वामीका ३ कल्याणक ज्येष्ट बदि-जन्म फाल्गुन सुदि-१५ दीक्षा फाल्गुन बदि-१५ केवल ज्ञान यहां होनेके कारण यह स्थान पवित्र है । २५ मां तीर्थंकर श्री नेमिनाथ के समय में जरासंघकी जी यही राजधानी थी। श्वमा तीर्थकर श्री महावीर स्वामी के समयमें प्रसिद्ध नगर था । गौतम बुद्ध की जी यही लीला चूमि थी। प्रसेन जित उनके पुत्र श्रेणिक, उनके पुत्र कोणिक यहांके राजा थे। श्री महावीर स्वामी जी १४ चौमासे यहां किये । जंबुस्वामी, धन्ना, शाखिलजी श्रादि बड़े ५ खोग यहां के रहने वाले थे। यहां
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(५८)
पर पहाड़ के निचे ब्रह्मकुरू. सूकुक यादि उम्ण कुरू बहुत से है और स्थान देखने योग्य है। पांच पाहाड़ जो सामने दिखाई देते हैं (१) विपुत्र गिरि () रत्नगिरि (३) उदय गिरि (४) वर्ष गिरि (५) वैनारगिरि । पहाड़ पर बहुतसे जैन मंदिर बने हुये हैं। बहुत से चरण वा मूर्ति इधरसे उधर विराजमान है इस कारण यहांके सब लेख प्रक साथ मिला दिया गया है।
पार्श्वनाथ मंदिर प्रशस्ति ।
[236]
(१) प० ॥ नमः श्री पार्श्वनाथाय ॥ श्रेयः श्री विपुलाचप्लामरगिरि स्थेयः स्थिति खीकृतिः पत्र श्रेणि रमा जिराम जुजगाधीशस्फटासंस्थितिः। पादासीन दिवस्पतिः शुन्न फल श्री कीर्ति पुष्पोजमः श्री संघाय ददातु बांछित फ
(१) खं श्री पार्श्वकल्पद्रुमः ॥ १ यत्र श्री मुनि सुव्रतस्य सुविनोर्जन्म व्रतं केव साम्राजां जय राम लक्षण जरासंधादि नूमीजुजां । जझे चकि वलाच्युत प्रतिदरि श्री शालिनां संनवः प्रापुः श्रेणिक जूधवादि
*"जैन तीर्थ गाईड" के तवारिख सुने विहार में उस्के ग्रंथकता लिखते है कि मर्यायान महल्लाके “ मंदिर में एक शिला लेख जो अलग रखा हुवा है - - - सवत तिथि वगेरा की जगह टुटी हुई है पंक्ति ( १६) हर्फ उमदा मगर घीस जानेकी वजह से कम पढ़ने में आता है अखीर की पंक्ति में जहां गच्छ का नाम है वहां किसीने तोड़ दिया है बन शाखा बगरह नाम बेशक मौजूद है" यह पढ़ कर मुझे देखने की बहुत अभिलाषा हुई । पता लगाने पर १७ पंक्तिका एक लेख दिवार पर लगा भया पाया। किसी२ जगह दूर गया है संबत वगेरह साफ है और दुसरा टुकड़ा मालन भया । पहिले टुकड़े के लिये बहुत परिश्रम करने पर पता लगा और अब वहाँक रईस वाच धन्नलालजी सुचंति के यहां रखा गया है । यह प्रशस्ति पूर्व देशकी अपूर्व वस्तु है आज तक अप्रकाशत था। इसमें श्री खरतरगच्छकी पट्टावली है जिस्से बहुत पक्षपातीयों का भ्रम दूर हो जावेगा। यह पांच गौ माठ वर्ष प्राचीन है और उस समयके मुसलमान सम्राट और प्रादेशिक शासन कत्तीका भी नाम विद्यमान है गाडिन्य और पद लालित्य भा पुरा है।
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(५९)
(३) जविनो वीराय जैनीं रमां ॥ २ यत्राजय कुमार श्री शालिधन्यादि माधनाः । सर्वार्थ सिद्धि संजोग जो जाता द्विधापिदि ॥ ३ यत्र श्री विपुखाजिधोवनि धरो बैजार नामापि श्री जैनेंद्र बिहार भूषण धरौ पूर्वाप
( ४ ) राशा स्थितौ । श्रेयो लोक युगेपि निश्चित मितो लज्यं बुझाते नृणां तीर्थं राजहा निधान मिड् तत्कैः कैर्न संस्तुयते ॥ ४ सत्रच संसारापार पारावार परपार प्रापण प्रवण महत्तम तीर्थे । श्री राजगृहम
(५) हातीर्थे । गजेंद्राकार महापोत प्रकार श्री विपुल गिरि विपुल चूला पीछे सकल महोपाल चक्रचूला माणिक्य मरीचि मंजरी पिंजरित चरण संरोने । सुरत्राण श्री साहि पैरोजे महीमनुशासति । तदीय
( ६ ) नियोगान्मगधेषु मलिक बयोनाम मएकलेश्वर समये । तदीय सेवक सह पास डुरदीन साहाय्येन । यादाय निर्गुण खनिर्गुणि रंग जाजं ॥ पुंमौल्किका वलि रत्नं कुरुते सुराज्यं बः श्रुती यपि शिरः
( 9 ) सुतरां सुतारा सोयं बिजाति जुवि मंत्रि दलीय बंशः ॥ ५ बंशेमुत्र पवित्र धीः सहज पालाख्यः सुमुख्यः सतां जज्ञे नन्यसमान सद्गुणमणी शृंगारितांगः पुरा । तत्सूनुस्तु जनस्तुत स्तिहु पालेति प्रतीतो जव
( 0 ) जातस्तस्य कुले सुधांशु धवले राहा निधानो धनी ॥ ६ तस्यात्मजोजनिच ठकुर inator: सद्धर्म कर्म विधि शिष्ट जनेषु मुख्यः । निःसीम शील कमलादि गुणा विधाम जज्ञे स्य गृहिणी थिर देवि नाम
(९) ॥
पुत्रास्तयोः समजवन् वमे विचित्रा: पंचात्र संतति भृतः सुगुणैः पवित्राः । तत्रादिमास्त्रय इमे सहदेव कामदेवानिधान महराज इति प्रतीताः ॥ तुर्यः पुनर्जयति संप्रति वचराजः श्री मा
(१०) न् सुबुद्धि लघु बांधव देवराजः । यायां जनाधिकतया घनपंक पूर्व देशेपि धर्म -* धुर्य पदं प्रपेदे ॥ ए प्रथम मनव माया बछराजस्य जाया समजनि रत नीति स्फीति नीति रीतिः । प्रजवति पहराजः सद्गु
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(६०) (११) श्री समाजः सुत इत शह मुख्यस्तत्परश्चोढराख्यः ॥ १०हितीया च प्रिया जाति बीधी रिति विधि प्रिया । धनसिंहादयश्चास्याः सुता बहु रमाश्रिताः ॥ ११ बजनि च दपिताधा देवराजस्य राजी गुण म ।
(१५) णि मयतारा पार शृंगार सारा । स्मनवति तनुजातो धमसिंहोत्र धुर्य स्तदनुच गुणराजः सत्कला केविवर्यः ॥ १५ अपरमथ कसत्रं पद्मिनी तस्य गेहे तत उरु गुणजातः पीमराजोंग जातः। प्रथम उदित पद्मः पद्म ।
(१३) सिंहो द्वितीयस्तदपर घमसिंहः पुत्रिका चाचरीति ॥१३ श्तश्च ॥श्रीबर्द्धमान जिनशासन मूलकंदः पुण्यात्मनां समुपदर्शित मुक्तिनंदः। सिद्धांत सूत्र रचको गणभृत सुधर्मनामाजनि प्रथम कोत्रयुग
(१४) प्रधानः॥१४ तस्यान्वये समजवदशपूर्वि वज्र खामी मनोजव महीधर जेद वजः यस्मात्परं प्रवचने प्रससार वज साखा सुपात्र सुमनः सफल प्रशाखा ॥ १५ तस्यामहर्निश मतीव विकाशवत्यां चांजेक
(१५) ले विमख सर्वकला विलासः । उद्योतनो गुरुरजाहिबुधो यदीये पट्टे जनिष्ट सु मुनि गणि बर्द्धमानः ॥ १६ तदनु जुवनाश्रांत ख्यातावदात गुणोत्तरः सुचरण रमानूरिः सरिर्वजूव जिनेश्वरः । खरतर ३
(१६) तिख्यातिं यस्मादवाप गणोप्ययं परिमलका श्रीषंद ---- गणो वनो ॥ १७ ततः श्रीजिन चंडाख्यी बनूव मुनि पुंगवः । संवेग रंगशाला यश्चकारच वनारच ॥ १७ स्तुत्वा मंत्र पदादरै रवनितः श्रीपा
उसरा पत्थर। (१७) व चिंतामणिं - - - - - ताकारिणं । स्थानेनंत सुखोदयं विवरणं चके नवान्यायके । - - ताऽ जय देव सुरिगुरव स्तेतः परं जझिरे ॥ १५ - - -
(१७)--- (जिनवबज)- - शांगनोवबनो --- - प्रियः यदीय गुण गौरवं श्रुतिपुटेन सौधोपमं निपीये शिरसो धुनावि कुरुते नकस्तां डवं ॥ २० तत्पटे जिनदत्तसूरिरजवद्योगी चूडामणि मिथ्याध्वां
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(६१)
(१९) त निरुद्ध दर्शन ---- श्रावक यान्य देशि सुगुरुः क्षेत्रेत्र सर्वोत्तमः सेव्यः पुण्यवतां सतां सुचरण ज्ञान श्रिया सत्तमः॥ १ ततः परं श्रीजिनचं सूरिर्वजुव निःसंग गुणास्त रिः। __ (२०) चिंतामणि जोलतखे यदीये ध्युवास वासादिव जाग्य बदम्याः॥ २२ पदें लक्ष्य गतेसु शासनमपि प्रेत्यापि पुःसाधनं दृष्टांत स्थिति बंध बंधुरमपि प्रवीण दृष्टांतकं । वादेर्वादिगत प्रमाणमपि ये वाक्यं ।
(१) प्रमाण स्थितं ते वागीश्वर पुंगवा जिनपति प्रख्या वनूवु सूतः॥३अथ जिनेश्वर सरि यतीश्वरा दिनकरा व गोजर जास्वराः। भुवि विवोधित सत्कमला करा समुदिता बियति स्थिति सुन्दराः॥२४ जिन प्र
(१५) बोधा हत मोह योधा जने विरेजुजनित प्रवोधाः। ततः पदे पुण्य पदे दसीये मण्यं उपर्या यति धर्म धुर्याः ॥ २५ निरुधानो गोनिः प्रकृति जगधीनां विससितं ब्रमवश्य होतो रस दश कला केलि
(१३) विकसः । उदितस्तत्पट्टे प्रतिहत तमः कुग्रह मति नवीनो सौ चंो जगति जिन चंसो यतिपतिः ॥ २६ प्राकट्यं पंचमारे दधति विधि पथ श्रीविलास प्रकारे धर्मा धारे सुसारे विपुल गिरिवरे मानतुंगे विहा
(२४) रे कृत्वा संस्थापनां श्रीप्रथम जिनपते र्येन सोचे यशोनि चित्रंचक्रे जगत्यां जिन कुशल गुरु स्तपदे नाव शोजि ॥२७ वापियत्र गण नायक लक्ष्मिकांता केली विक्षों क्य सरसा हृदि शारदापि। सौलाग्य
(२५) तः सरन संविलक्षास सोयं जातस्ततो मुनि पति जिन पद्मसूरिः ॥ दृष्टा पदृष्ट सुविशिष्ट निजान्य शास्त्र व्याख्यान सम्यगवधान निधान सिद्धेः। जज्ञे ततोऽस्त कलिकाल जना समान ज्ञान क्रिया
(२६) ब्धि जिन अब्धि युग प्रधानः ॥२९ तस्यासने विजयते सम सूरिवर्यः सम्यग दृगंगि गण रंजक चारु चर्यः । श्रीजैन शासन विकासन नूरि धामा कामापनोदन मना जिन चंड नामा ॥३० तत्कोपदेश
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( ६२ )
( 29 ) वशत: प्रभु पार्श्वनाथ प्रासाद मुत्तम मची करत । श्रीमद्विद्दार पुर स्थिति व राज : श्री सिद्धये सुमति सोदर देवराजः ॥ ३१ मद्देन गुरुणा चात्र ववराजः सचान्धवः । प्रतिष्ठां कारयामास मंरुनान्वय
( २० ) मंगनः ॥ ३१ श्री जिनचंद्र सूरीन्द्रा येषां संयम दायकाः । शास्त्रेष्व ध्यापकास्तु श्री जिनलब्धि यतीश्वराः ॥ ३३ कर्त्तारोश्च प्रतिष्ठा या स्ते उपाध्याय पुङ्गवाः । श्री मंतो जुवन हिता निधाना गुरु शासनात् ॥ ३४ न
( २० ) यनचंद्र पयोनिधि भूमिते ब्रजति विक्रम जूभृदनेदसि । वहुल षष्ठि दिने श्रुचि मास मही मचीकर देव मयं सुधीः || ३५ श्रीपार्श्वनाथ जिन नाथ सनाथ मध्यः प्रासाद एष कल सध्वज ममितो
(३०) र्द्ध: । निर्माप कोस्य गुरवोत्र कृत प्रतिष्ठा नंदंतु संघ सद्दिता जुवि सुप्रतिष्ठा ॥ ३६ श्रीमनिर्जुवन दिता जिषेक वर्ये प्रशस्ति रेषाच । कृत्वा विचित्र वृत्ता लिखिता श्री कीर्त्ति वि मूर्त्ता ॥ ३७ उत्कीर्लाच सुवर्णा ठकुर मा
(३१) स्ट्रांग जेन पुण्यार्थं । वैज्ञानिक सुश्रावक वरेण वीधानिधानेन ॥ ३८ इति विक्रम संवत १४१२ वाषाढ़ बदि ६ दिने । श्रीखरतर गष्ठ शृङ्गार सुगुरु श्री जिनलब्धि सूरि पट्टालङ्कार श्री जिनेंद्र सूरिणामुपदे
(३२) शेन । श्रीमंत्रि बंश मंरुन ठे० मंगन नंदनाभ्यां । श्रीजुवन हितोपाध्ययानां पं० हरिप्रन गणि । मोद मूर्त्ति गणि । दर्ष मूर्त्ति गणि । पुण्य प्रधान गणि सहितानां पूर्व देश विहार श्रीमदातीर्थ यात्रा संसूत्र
( ३३ ) यादि महा प्रजावनया सकस श्रीविधि संघ समान नंदनाभ्यां । उं० वष्ठराज jo देवराज सुश्रावकाच्यां कारि स्य । श्रीपार्श्वनाथ प्रसादस्य प्रशस्तिः ॥ शुनं
भवतु श्रीसंघस्य ॥ ५ ॥ ० ॥
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(१५) गांव मन्दिर-धातुओंके मूर्ति पर।
( 237 ) सम्बत १११० चैत मास सुदि १३ संतनाथ प्रतिमा कारित--।
( 238 )
सं० १९८७ वर्षे आषाढ़ वदि रवी ज. ज्ञा० सा० सपुरा मा. सीतादे पु० कर्मसिंहेन श्री नमिनाथ विवपित मात मेयसे कारितं उकेश गच्छे श्रीसिद्धाचार्य संताने प्र. श्रीदेव गुप्त सूरिभिः।
पाषाण पर।
( 239 )
सम्बत् १५०४ वर्ष फागुण सुदि दिने महतिआण वंशे जादड़गोत्रेसा देवराज पुत्र सं० षीमराज पुत्र सं० सिवराज तेम पुत्र सं० रणमल धर्मदास। श्रीशांतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्टिते खरतर गच्छे श्री जिनवर्द्धन सूरिप श्रीजिन चन्द सूरिप श्री जिन सागर सूरीणां निदेसेन वाचनाचार्य शुभशील गणिभिः।
( 240 ) ॐ नमः सिद्धं ॥ सम्वत १८१६ वर्षे माघ मासे शुक्ल पक्ष ६ तिथौ गुरुवासरे श्री मुनि सुव्रत स्वामि जन्म कल्याणक चरण कमले स्थापिते हुगली वास्तव्य ओसर्वशे मंधीगोत्रे बुलाकीदास पुत्र साह माणिक चंदेन राजगृहे जीणोद्धार करापितं ।
( 241 )
सं० १८२५ माघ सु०३गुरुषेतासाह पुज्या उमरवाई केनशांतनाथ विवं कारापिता।
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(242 ) श्री गुम्न सम्बत १९०० वर्षे मार्गशीर्षमासे शुक्ल पक्ष दशम्यां तियो शुभवासरे श्री वर्द्धमान तीर्थंकरस्य चरण पादुका प्र. श्री वरखरतर गच्छे जंगम युग प्रधान महारक श्री जिनरंग सूरीश्वर शाषायां य० यु० भहारक श्रीजिन नंदीवर्द्धन सूरी राज्ये श्री वाच. नाचार्य श्री मुनि विनय विजयजी तत् शिष्य पं० कीर्योदयोपदेषात् ओसवाल वंशोशव बाबू खुस्यालचन्दस्य पत्नी वीवी पराण कवरी तेन प्र. का. श्री संघस्य कल्याण कारिणो भवतु शुभमस्तु ।
( 243 ) शु० स० १८०० व० मार्गशीर्षमासे शु० वा. श्रीचन्द्रप्रमकस्य च०० प्र० श्री ए. ख. ग. श्री जिन नन्दी वर्द्धन सू० ३० मुनिकीर्युदयोपदेशात् महतावचन्द संचीतीकस्य पनी चीरोंजी बीबी प्र० का शुभमस्तु ।
( 244 ) सं० १९११ व। शा० १७७६ प्र। शुचि शु। १० ति। श्रीचन्द्र प्रमविवं प्र. । । श्री जिन महेंद्र सूरिभिः का। सा श्री हफु----खरतर गच्छे ।
विपुलगिरि।
( 245 ) संवत १७०७ शाके १५७२ प्रवर्त्तमाने आश्विन शुक्ल पक्षे प्रयोदश्यां शुक्र वासरे। श्री बिहार वास्तव्येन महतीयाण ज्ञातीय चोपड़ा गोत्रेण म० तुलसीदास तत्मार्या संघवण निहालो तवनयेन मं० संग्रामेण यवीसात्पुत्र गोवर्द्धनेन सह श्रीराजगृहविपुल गिरी---- अमै जीर्णा उद्यरिता संघवी संग्रामेण प्र० कल्याण कीत्युपदेशात् श्रीखरतर गच्छे--- लिषतं रतनसी खंडेलवाल गोत्रे पाटनी गुमानासिंही रासिंग ग्राम मुकाम राजग्रिही।
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(246) स.१८१८ मिती कातिक सुदितियो।बीसंघेन । श्रीविपुलाचल मुक्किंगतस्याति मुक्तकमुने मूर्तिः कारिता । प्रतिष्ठिताच श्रीममृतधर्म वाचकः।।
( 347 ) सम्वत १९३८ ज्येष्ठमासे शुक्ल पक्ष द्वादशी गुरु वासरे श्रीचन्द्रमान जिन चरण न्यासः प्रतिष्ठित वृद्ध विजय गणि प्रथम जीर्णोद्वार माणिकचन्द गंधी फरापितं विपुलाचल दुतिय जीर्णोद्धार राय लछमीपति सिंह धनपति सिंह करापितं । श्रोरस्तु॥
( 248 ) संवत १८३८ ज्येष्ठ मासे शुक्ल पक्षे द्वादश्यां श्री मुनि सुव्रत जिन चरण न्यासः वृद्ध विजय प्रतिष्टितं राय लछमीपति सिंह धनपति सिंह जीर्णोद्धार करापितं श्रीरस्तु शुभं भूयात् बिपुलाचल।
रत्नगिरि।
( 249 )
ॐनमः ॥सम्बत १८१८ वर्षे माघ मासे शुक्ल पक्ष । तियो श्रीनेमिनाथ जिन चरणकमले स्थापित हुगली वास्तव्य ओश वंशेगांधी गोत्रे बुलाकीदास तत्पुत्र साह माणिक चन्देन श्रीराजगृहे रतनगिरी जीर्णोद्वार करापिते ॥ प्रियोस्तु ॥
( 250 ) ॥ ॐनमः ॥ सम्बत १८१८ वर्षे माघमासे शुक्लपक्ष हतियो श्रोशांतिनाजिम चरण कमले स्थापिते हुगली वास्तव्य ओशव गांधी गोत्रे बुलाकीदास तत्पुत्र साह माणिक चन्देन श्रीराजगृहे रतनगिरी जीर्णोद्धारं का।
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( 251 ) ॥ नमः ॥ संवत १८१८ वर्षे माघमासे शुक्ल पक्ष । तियो भी पार्श्वनाथ जिन चरण कमले स्थापित हुगली वास्तव्य ओशवंशे गांधी गोत्रे बुलाकीदास तत्पुत्र साह माणिक चन्देन श्रीराजगृहे रतनगिरी जीर्णोद्धार करापितं ॥ श्रीः ॥१॥
( 252 ) ॐनमः ॥ संवत १८१६ वर्षे माघमासे ६ तिथी श्री वासु पुज्य जिन चरण कमल स्थापिते हुगली वास्तव्य मोश वंशे गांधी गोत्रे बुलाकीदास तत्पुत्र माणिकचंदेन भी राजगृहे रतनगिरि पर्वते जीर्णोद्धार करापितं । स्वपरयोः शुभम् ॥ श्रीः ।
उदयगिरि।
( 253 ) ॥ ॐ नमः ॥ संवत १८२३ वर्षे वैशाष शुक्ल पक्ष ६ तिथी श्री अभिनन्दन जिन चरण कमले स्थापिते हुगली वास्तव्य ओश वंशे गांधी गीत्रे बुलाकीदास तत्पुत्र साह माणिक चन्देन उदयगिरी जीर्णोद्धार करापितं ॥
( 254 ) ॥ ॐनमः ॥ संवत १८२३ वर्षे वैशाष शुक्ल पक्ष ६ तिथौ श्री सुमति जिन चरण कमले स्थापिते हुगली वास्तव्य ओश वंशे गांधो गोत्रे युलाकीदास तत्पुत्र माणिकचन्देन उदय गिरी जीर्णोद्धारं करापित ॥
(255) ॐनमः ॥ संवत १८२३ वर्षे वैशाष मासे शुक्ल पक्ष षष्टी तिथौ श्री पार्श्वनाथ जिन चरण कमल स्थापिते ॥ हुगली वास्तव्य ओश वंशे गांधीगोत्रे बुलाकीदास तत्पुत्र साह माणिकचन्देन श्री राजगृहे उदयगिरि राजे जीर्णोद्धार करापितं ॥ स्वपरयो कल्याण हेतवे । श्रीः॥
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स्वर्ण गिरि।
( 266 ) सं० १५०१ फागुण सुदि दिने महतियाण शेजाट गोत्रे सं० देवराज सं० पीमराज पुत्र सं० सिवराजेन । भार्या सं० माणिकदे पुत्र सं० रणमल धर्मदास सकुटुम्वेन भी मादिनाप विवंकारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिन वर्द्धन सूरिप? श्री जिन चन्द्र सूरि पहे श्रीजिन सागरसूरीणां निदेसेन वाचकाचार्य शुम शील गणिभिः श्रीखरतर गच्छे ।
वैभार गिरि।
(267 ) सं० १५२१ आषाढ़ सुदि १३ खरतर गणेश भीजिन चन्द्रसूरि विजय राज्ये तदादेशे श्रीवैभार गिरी मुनि मेकणा मि०-- श्री कमल संयमोपाध्यायः स्वगुरु श्री जिन मुद्र सूरि पादुके प्र.का. श्री माल वं० प्रीपू पुत्र ठ० छीतमल पावकेण ।
( 258 )
सं० १५२७ आषाड सुदि १३ श्रोजिन चंद सूरिणामादेशेन श्री कमल संयमोपाध्यायः पक्षाणालि भद्र मूर्ति--का० प्र० धीमसिंह (?) पावकेण ।
(259 ) ॐनमः ॥ सम्वत १८२६ वर्षे माघ मासे शुक्ल पक्षे १३ तियो श्री आदिनाथ जिन चरण कमले स्थापित हुगली वास्तव्य ओसर्वशे गांधि गोत्रे बुलाकीदास तत्पुत्र साह माणिक चंदेन राजगृहे वैभार गिरे जीर्णोद्धार करापितं ॥ स्वपरयोः शुभाय ॥ श्री॥
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(६८)
(260 ) ॥ श्री सम्वत १८३० माघ शुक्ल ५ चन्द्र ओसवंशे गहलडा गोत्रे जगत्सेठजी श्री फते चन्दजी तत्पुत्र सेठ आणंदचन्दजी तत्पुत्र जगत्सेठजी श्री महताव रायजी तद्धर्म पत्नी जगत्सेठाणीजी श्रीशंगारदेजी श्रीमदेकादश गणधर पादुका कारापित। स्था० राजगह नगरोपरि मार गिरी॥
( 261 ) सम्बत १८७४ वर्षे शाके १७३९ मिति जेष्ठ वदि ५ सोमदिने श्री व्यवहार गिरि शिषरे श्री पार्श्वनाथ चरणन्यासः प्रतिष्ठितं म० श्रीजिन हर्ष सूरिमिः।
( 262 ) सम्वत १८७४ वर्षे शाके १५६ मिति ज्येष्ठ वदि ५ सोम दिने । श्री व्यवहार गिरि शिषरे । श्रीयुगादि देव चरण न्यासः प्रतिष्ठितं । महारक श्री जिन हर्ष सूरिभिः ॥
( 263 ) सुन स० १६०० वर्षे मार्गशीर्ष मासे शुक्लपक्ष १० दशम्यां तिथौ शुभवासरे श्रीमत् शांतिनाथ चरण कमलप्र० श्रीमत् वहत्खरतर ग. श्री जिन रंगसूरीश्वर साखायां व.. यं० यं० श्री जिन नन्दी वर्द्धन सूरि राज्ये वा०श्रीमुनि विनय विजयजि तत् शिष्य पं. मु. कीर्युदयोपदेशात् ओसवाल बं० बाबू मोहन लाल कस्यात्मज बाबू हकुमत रायेन प्र. का• शुभमस्तु ॥
( 284 ) अनमः सु० सं० १९०० वर्ष मार्गशीर्ष मासे शु० पक्षे १० द० श्री पद्म प्रभुकस्य चरण क० प्र० श्री वृ०प० ग० भ० श्रीजिन नन्दी वर्द्धन सूरीवा० श्री मुनि विनय विजयजि तत् शि० मु० कीर्युदयोपदेशात् बाबू पुस्याल चन्द पीपाडागोत्रीयास्य पत्नी पराण कुंवरेन प्र.का. श्री वैमार गिरे सुभमस्तु ।
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(६६)
( 465 ) ॥स.स. १९०० वर्षे मार्गशीर्ष मासे शुक्ल पक्ष १० दशम्यांशुमवासरे श्रीमत्पार्श्वनाथस्य चरण कमल प्र. श्रीमत् ग्रहत परतर ग० श्रोजिन रंग सूरीश्वर साषायां श्री जिन नन्दी वर्द्धन सूरि राज्ये वा० श्री मुनि विनय विजयजि तत् शि० मु. कोर्युदयोपदेशात् ओ० व. पुस्याल चन्द पीपाडा गोत्रस्य पत्नी पराणकुंवर माविका प्र० का वैमार गिरे।
( 266 ) ॥ॐनमः सिद्ध सं० १९०० वर्षे मार्गशीर्ष मासे शुक्ल पक्ष १० दयम्यां तियो शुभ वा. श्री कुंथनाथस्य चरण क० प्र० श्री मस्व० ख० ग. श्री जिन रंग सूरीश्वर साषा० श्री जिन नन्दी वर्द्धन सूरि ब० वा० श्री मुनि विनय विजयजि तत् शिष्य मुनि कीर्युदयोपदेशात् ओसवाल वंसोद्धव वावु मोहनलालजी कस्यात्मज वावु हकुमत राय--कस्य गोत्रीय प्र० कारापित शुभमस्तु । वैमार गिरी।
(
267)
ॐ नमःसिद्धं ॥ शु० सं १९०० वर्षे मार्गशीर्ष मासे शुक्ल पक्ष १० दशम्यां तियो शुभ वा श्रीचिंतामणि पार्श्वनाथस्य च० प्र० श्री मस्ट. खरतर ग. श्री जिन रंग सूरिश्वर साखा. भ. यं० यु०प्र० श्रीजिन नंदी बर्द्धन सूरि वर्तमान वा० भी विनय विजयजि तत् शि० मुनि कीर्युदयोपदेशात् बाबु महताब चन्दस्य सचिती गोत्रीयो तत्पत्नी चिरंजी वीवी प्र० का० शुभ मस्तु वैभार गिरे।
(268 ) सं० १९११ च । शाके १७७६ म०। शुचिः सुदि। तिथौ श्रीनेमनाथ पादन्यासो कारा० प्र० स० श्रीजिन महेन्द्र सूरिभिः का। से। गो। श्री उदयचन्द्रस्य पत्नी महाकुमा-तस्या श्रेयो) भवतुः॥
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[00)
कुण्डलपुर ।
आज कल यह स्थान वडगांव नामसे प्रसिद्ध है परन्तु शास्त्र में इस्का गुठवर ग्राम नाम है। यहां श्री महावीर स्वामीजीके प्रथम गणधर श्री गोतमस्वामी ( इन्द्रभूति ) जी का जन्म स्थान है । वौद्धोंके समय में निकटमें नालंदा नामका प्रसिद्ध विश्वविद्यालय और छात्रावास था । चारों तर्फ प्राचीन कीर्त्तियों के चिन्ह विद्यमान हैं। गवर्णमेंट के तर्फसे इस वर्ष यहां खुदाई आरम्भ भई है आशा है कि प्राचीन इतिहासके उपयुक्त बहुत से साघने यहां मिलेगी ।
पाषाणपर ।
( 269 )
॥ ५ ॥ संवत १४७७ वर्षे ज्येष्ट यदि ६ शुक्रे श्री आदिनाथ ऋषभ विवं का० ।
( 270 )
॥ सं ० १५०४ वर्षे फागुण सुदि दिने महतियाण वंशे काणा गोत्रे स० कउरसी पुत्र म० भीषण कारित श्री महावीर विंवं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनसागर सूरीणां निदेशेन वाचकाचार्य सुभ शील गणिभिः ।
(271)
सं० १६८६ वर्षे वैशाष सुदि १५ दिने मंत्रिदल वंशे चोपरा गोत्रे ठा० विमलदास तत्पुत्र ठा० तुलसीदास तरपुत्र ठा० संग्राम गोवर्द्धनदास तस्य माता ठ० नीहालो तत्पुत्र भार्या ठकुरेटी देहुरा गोतमस्वामीका चरण गुठवर ग्राम -- कारा पिता वृहत्स्खरतर गच्छे पूज्य श्री श्री जिनराज सूरि बिद्यमाने उ० अभय घर्मेन प्रतिष्ठा कृता ॥
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( १ )
(272)?
सम्बत १६८६ वर्षे शाके १५५१ प्रवर्त्तमाने
मासि शुक्ल पक्ष सप्तमी गुरु वासरे बृहत श्री परतरगच्छे युग प्रधान श्रीजिन चन्द्र सूरि पादुका ठाकुर देवा तस्यात्मज मांडन तस्य भार्या न्हालो श्राविका पुण्य प्रपात्रिका तस्य पुत्र दुलि चन्द्रेण प्रतिमा कारापिता श्री माहितीयाल (महतियाण) श्रावकेन गुरु भक्ति दुलिचन्द्र प्रतिष्टा क० श्री उपाध्याय श्री नातिलक गणि पादुके प्रतिष्ठितं वा० लब्धिसेन गणि प्रतिष्ठा० ।
पटना ( पाटलिपुत्र )
मगध राजाओं की राजधानी राजगृहीसे राजा श्रेणिकके पुत्र कोणिक चंपा नगरी को राजधानी वनाया। उनके पुत्र उदाई राजा वहांसे यह पाटलिपुत्र नवीन नगर वसा कर राजधानी कायम किया । पश्चात् यहां पर नत्रनन्द मौर्य वंशी चन्द्रगुप्त अशोक आदि बड़े २ राजा राज्य कर गये। पं० चाणक्य, आचार्य उमास्वाति, भद्रवाहू-उ -आर्य महागिरि, सुहस्थि, वज्ञ स्वामि महान् लोग यहां रह गये हैं। आचार्य श्री स्थूल भद्रजी और सेठ सुदर्शन जी का भी यहीं स्थान है । दादा जी की छत्री भी यहां प्राचीन है सहरका मंदिर जीर्ण होगया है - आज कल बिहार उड़ीसा के शासन कर्त्ता यहां रहने के कारण और प्रधान विचारालय स्थापित होनेसे यह स्थान उन्नति पर है ।
सहर मन्दिर - पाषाण पर ।
( 273 )
१८५२ वर्षे पोष शुक्ल ५ भृगुवासरे श्री पडलीपुर वास्तव्य । श्री सकल संघ समदान भी विशाल स्वामी । श्रो पार्श्वनाथ स्वामी प्रासादस्य जीर्णोद्वारं कारापिर्त । कार्यस्याग्रेश्वरो तपागच्छोय आर्द्धः । कुहाड श्रज्ञानचन्दजो प्रतिष्ठित च भी सकल सूरिभिः शुभं भूयात् ।
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धातुओं के मूर्तिपर।
(14)
सं० ११८५ वर्षे वैशाख सुदि ७ सोमे श्री श्री दूगड गोत्रे सामर्जुन पुत्रेण सा. उदय सिंहेन भार्या जयताही पु० सा. मूला सा. नगराज सा भी पालादि युतेन मास्मश्रेयसे मीचंद प्रभ कारित प्रतिष्ठितं वृहदगच्छीय श्री मुनीश्वर सूरि पद प्रा सूरिभिः ॥
( 25 ) सं० ११९२ वर्षे श्री आदिनाथ विवं प्रति श्रीखरतर गछे भी जिनमत सूरिभिः कारितं कांकरिया सा० सोहड़ मार्या हीरादेवी मो--कया।
(276) सं० १५०३ वर्षे माघ सुदिर बुधो वासरे घोरपट भी देवां कीर्ति मटकी धीरेय मुल संघे पाहिजे पतिमर्जर्षिः भ्यमिरि पुत्र उदत्य-षिम्वराजामन । शुभ ॥
(शा) सं० १५०० वर्षे वैशाष सु. ५ चन्द्रे उप. सा. घेता भा० घेतलदे पुत्र चाचा वील्हादेपा घेतान डूंगर निमित श्री धर्मनाथ घि० का० प्र० चैत्र गच्छे भ० श्री मुनि तिलक मूरिभिः.
(278)
सं० १५०६ माह सुदि १०के० साला गो. दो साल्हा मा.माल्ही पु. जदा मा. अमाद पु. राणा पिरदे कुंपा पांचा स• अदाकन पीकातमि० (१) श्रीवासुपुण्य विवं का.म.बी संडेर गच्छे श्री शांति सूरिभिः ।
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()
(20)
सं० १५१९ जडवाह ग्राम वासि मोसवाल सा.डीला मा. अमरी पुत्र सा. नाथ नाम्ना मा. चनू पुत्र इंगणादि युतेन मात उगम प्रेयसे श्री मुनि सुव्रत विवं का.प्र. बी तपा गच्छेश भी रवशेषर सूरि पुरंदरैः।
(280) सं० १५१७ वर्षे फा० शु०११ सीणरा वासि प्रा. वा० माई (?) मा बाकंसुत समघरेण मा. राजू पुत्र वानर पर्वतादि युतेन स्व श्रेयसे श्री कंय विवं का.प्र. तपागच्छे श्री रत्नशेषर सूरिपदे श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिः आचंद्रा जपतत् ॥ भो।
( 281 ) सं० ११९ वर्षे आषाड़ वदिश्री मंत्रिद० श्री काणा गोत्रे सा० लाघू मार्या धर्मिणि पुत्र सं० अचल दासेन पुत्र उग्रसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेन देवपाल महिराजादि युतेन स्वयोथं श्री पार्श्वनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री खरतरगच्छे भी जिन सुन्दर सूरिपदे श्री जिन हर्ष सूरिमिः।
( 282 ) सं० १५२३ वर्षे फा०३०८ छाव गोत्रे उकेश स. साहा मा० कलह पुत्र सं-नरसिंह मा. नामलदे पुत्र सं. साधकेन श्री यमना भात साहसमघर प्रमुख कुटुम्ब युतेन स्व श्रेयसे भी धर्मनाथ विवं कारित प्रतिष्ठितं श्री-रिमिः ॥ देप । तप--श्री।
( 283 ) सं० १५२१ के. मु०१५ मारवाट सं. आस. मा. रात सुत सा. आल्हा मा. सोनी पुत्र हासादि कुटुम्ब युतेन स्वयसे श्री वासु पूज्प विवं कारितं प्रतिष्ठितंतपा श्री लक्ष्मी सागर सूरिभिः।जाणांधारा (१) वास्तव्य वासियाः॥
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( 284 )
सं.१५३१ वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ सोमे श्रीमाल ज्ञातीय चेवरीया गोत्रे सा. केव्हणता. गणी पुत्र साहसू जगपतिकेन मा० सात पुत्र सहसू युतेन श्री विमल नाथ विंव कारि. प्र० श्री खरतर गच्छे श्री जिन हर्ष सूरिभिः ॥
( 285) सं० १५३४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० सोमे लोंबही वास्तव्य सं० खेमा भा० गोरी प्राविकया पुत्र घेडसीम हितया निज श्रेयसे श्री अंचल गच्छे श्री कुंध केसरि सूरीणामुपदेशेन श्री कुंधनाथ विंवं का. प्रतिष्ठितं श्री संघेन ॥
( 286 )
सं० १५३५ श्री मूलसंघ श्री विद्यानंदि गुरु रोहिणी व्रतोद्यापन वासु पूज्य स्वामी प्रतिष्ठितं सदा प्रणमति गुरवः।
( 287 ) सं० १५३६ फा० सु० ८ ओसवाल ज्ञा० सा० देल्हाणधासुः सरठवणेन (?) सु० सरवण श्री शांतिनाथ विवं का० ॥ प्र०॥ उके। - कव।
( 288 )
सं० १५३८ वर्षे आषाढ़ वदि ५ स--र मूलसंघ श्री मानिक चंद ल --- श्री ॥
( 289 ) सं० १५६३ वर्षे वैशाख सुदि ३ दिने श्रीमाल ज्ञातीय मांडिया गोत्रीय सा. अजिता पुत्री सा० लाषा भार्या आढो सुप्राधिकया श्री चन्द्र प्रभविवं कारितं स्व पुण्याचे प्रतिष्ठित
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(०५)
श्री खरतर गच्छे श्री जिन समुद्र सूरि पहाडंकार श्री जिन हंस सूरिभिः कल्याणं भूयात् माह सुदि १ ॥ दिने ॥
( 290 )
सं० १५६६ वर्षे ज्येष्ठ शुक्ल नवम्यां श्रीमाल वंशे महता गोत्रे सा० हाल्हा तस्य पुत्र ! सा० तकतनेनेदं पार्श्वनाथ विंवं कारितं खरतर गच्छे श्री जिनदत (?) सूरि अनुक्रमे श्री जिनराज सूरिपट्टे श्री जिन चन्द्र सूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥
( 291 )
सं० १५६६ वर्षे माघ व० ५ गुरौ उघु शाखायां सा० वीरम मा० कलापुत्र सा० आसा भा० कुंअरि नान्या मुनि सुव्रत विंवं का० स्वश्रेयसे प्र० तपागच्छे श्री हेम विमल सूरिभिः ॥ नलकछे ॥ (?) ॥
(292)
सं० १५७६ वर्षे वैशाष सु० ३ शुक्रे श्री श्री (?) वंशे । सा० माला भा० खातू नाम्ना सुण्यो (?) जावड़ शी० अदा समस्त कुटुम्ब युतया श्री अंचलगच्छे श्री भावसागर सूरीजामुपदेशेन श्री आदिनाथ विषं कारितं श्री संघेन ॥ योऽयं ॥
( 293 )
सं० १५७६ वर्षे वैशाख सु० ६ सोमे पं० अमयसार गणि पुण्याय शिष्याः पं० अभय मंदिर गणि अभय रत्न मुनि युताभ्यां भी शांतिनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठित तिब्र तपा पट्ट श्री सौभाग्य सागर सूरिभिः ।
( 294 )
•सं• १५७६ वर्षे माह सुदि ५ दिने उसवाल ज्ञातीय नवलपा गोत्रे साहवान भा०सिरि पु० पदमा - णापदमा-पांचा हेमादि युतेन सा० पहमाकेन पूर्वज पूण्यार्थं श्री
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(७६) पितलनाथ विवं कारित प्र० नागोरी तपागच्छे भ० को राजरत्न सूरिभिः वषषोर वास्त व्यःथी।
(295)
सं० १७०१ व मार्गशिर व० ११ दिने आगरा वास्तव्य भीमाल ज्ञातीय वढशाखीय सा० नानजी मा. गुजर--पुत्र सहीरानन्द भा. यमिन रंगदे नाम्ना स्वच पुत्र-- एवं प्रमुख कुटुम्व श्रेयोर्य श्री वासुपूज्य चविंशति पह कारितं प्रतिष्ठितं श्री तपागच्छे श्री ५ श्री विजयदेव सूरिप४ श्री विजय सिंह सूरिभिः पं० लाल कुशल लिः ॥ श्री ।
( 296 ) सं० १८ वर्षे वैशाष सुदि३ युधे पीवी मेंभाजी श्री आदिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं सर्व समुदायेन।
( 297 ) सं० १७२० वर्षे मार्गशिर ----श्री शांतिनाथ विवं कारित ।
(298 ) सं० १०६५ ३० सु०२----पार्व
( 299 ) सं० १०५ व• फा०व० १४ प्र० तत्र श्री पार्श्वनाथ ---।
(300) सं० १७७१ वर्षे शाके १९३६ वर्षे मगसिर सुदि १ युक्रे माखपूर वास्तव्य वीराणी गोत्रीय सा. वेणीदास तत्पुत्र सा० भीमसी तत्पुत्र सामाचंद वासी हाजीपुर पटणा
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(७७)
बातेन यांतिविवं गृहीतं श्री मेदिनीं पूरे प्रतिष्ठितं श्री तपागच्छे १० विजयरत्व सूरि राज्ये प. जय विजय गषिभिः। श्री।
( 301 ) सं० १७८६ वर्षे माघ सुदि १५ दिने चोडरिया गोत्रे सा. जीवण रामजी मार्या मन सुषदेजीः । सुत जगतसिंघजी विवं कारापितं ।
( 302 ) सं०१८२० वर्षे मिः मि-सु. ३ श्री भ० श्री जिन लाम सूरि ----
(303) सं० १८२० वर्ष मिः मा० सु० ५ श्री म० जिन लाभ सूरि प्र. धीर गोत्रे श्रे० मोतीचंद कारी--जिनः--।
( 304)
सं. १८२० मि० फा००२ बुध दूगड़ महताव कुवर का० प्र० सागर---श्री अमत्त चन्द्र सूरि राज्ये
( 305 )
२४ जिन माता पट्टपर। संवत १८४८ मिति माद सुदि ११ तियों। श्री पाटलिपुत्रे मारहू गोत्रे सा० हुकुमचन्दजी पुत्र गुलावचन्द भार्या फुल्डो वीवी कया इष्ट सिध्ययं श्री चतुर्विंशति जिन मातृ स्थापना कारिता प्रतिष्ठिता च श्री जिममक्ति सूरि प्रविष्य श्री अमृत धर्म वाचनाचार्य श्री रस्तु।
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(७८)
( 306 ) सं० १९०० मिः आषाढ़ सिः गुरी श्री महावीर जिन विवं प्रति. खरतर महारक गच्छे महारक श्री जिन हर्ष सूरिप दिनकर सभी जिन सौभाग्य सूरिभिः कारितं तेन ओसवंशे दूगड़ गोत्रे भोलानाथ पुत्र दोलतरामेन स्वश्रेय सोर्थम् ।
पाषाण के मूर्तियों और चरणों पर।
( 307 )
(चंन्द्रमान विवपर) सम्वत १९७१ श्री आगरा वास्तव्य ओसवाल ज्ञातीय लोढ़ा गोत्रेगाणी से स० ऋषभदास भार्या सुः रेष श्री तत्पुत्र संघराज सं० रूपचन्द चतुर्भुज सं० घनपालादि युते श्रीमदंचल गच्छे पूज्य श्री ५ धर्ममूर्ति सूरि तत् पहें पूज्य श्रीकल्याण सागर सूरीणा मुपदेशेन विद्यमान श्री विसाल जिन विंव प्रति--
( 308 ) संवत १९७१ वर्षे ओसवाल ज्ञातीय लोढा गोत्रे गाणी वंसे साह Qर पाल सं० सोनपाल प्रति० अंचल गच्छे श्री कल्याण सागर सूरीणामुपदेशेन वासु पूज्य बियं प्रतिष्ठापितं ॥
__( 300 ) ॥श्री मत्संवत १६७१वर्षे वैशाष सुदि ३ शनी आगरा वास्तव्योसवाल ज्ञातीय लोढा गोत्रे गावंसे संघपति ऋषम दास भा० रेष श्री पुत्र सं० क्रुरपाल सं० सोनपाल प्रवरी स्वपित ऋष दास पुन्यार्य श्रीमदंचल गच्छे पूज्य भी ५ कल्याण सागर सूरीणामुपदेशेन श्री पदम प्रभु जिन बिंध प्रतिष्ठापितं स० चागाकृतं।
( 310) श्री मत्संवत ११०१ वर्षे वैशाष सुदि ३ सनी श्री आगरा वास्तव्य उपकेस ज्ञातीय लोढा गोत्रे सा. प्रेमन मार्या शक्तादे पुत्र सातसी लघुचाता सा. मेतला
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युखेन श्री मदचल गच्छे पूज्य श्री ५ कल्याण सागर सूरीणामुपदेशेन श्री वास पूज्य विवं प्रतिष्ठापितं सं० कुरपाल सं०सोनपाल प्रतिष्ठितं ।
( 311 ) श्री मत्संवत् १९१ वर्षे वैशाष सुदि ३ शनी श्री आगरा नगरे ओसवाल ज्ञाती लोढा गोत्रे-गावसे सा० पेमन भार्या श्री सकादे पुत्र सा. तसो मा० प्रकादे पुत्र सा०- सांग -श्री अंचल गच्छे पूज्य श्री ५ कल्याण सागर सूरीणामुपदेशेन श्री विमलनाथ विवं प्रतिष्ठितं सा० क्रुरपाल--।
( 312 ) (सं० १६७१ ) ॥ संघपति श्री क्रूरपाल स. सोमपाले : स्वमात पुण्यार्य श्री अंचलगाछे पूज्य श्री ५ श्रीधर्ममूर्ति सूरि पहाम्बुजहंस श्री ५ श्री कल्याण सागर सूरीणामुपदेशेन श्रीपार्श्वनाथ विवं प्रतिष्ठापित पुज्यमानं चिरं नंदतु ।
( 813) ॥ सं० १७६२ वर्षे कार्तिक शु०६ सा वेणीदास पुत्र भीमसेन पुत्र मयाचन्द प्रतिष्ठा करापितं बीराणी गोत्रे पाडली पुरे।
( 314 ) सं. १७६२ वर्षे गर्दिक शुक्ल : सा. वेणीदास पुत्र भीमसेन पुत्र मयाचन्द वीराणी गोत्रे--- प्रतिष्ठा कराषितं पाटली पुरवरे।
( 315 ) ॥सं० १७६२ का सु. ६ सा. वेणीदास पुत्र भीमसेन पुत्र मयाचन्द प्र० बीराणी गोत्र पटना मार भी नेमनाथ श्री शांतिनाथ ॥
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(20)
(316)
। सं० १७८६ वर्षे आखोज सुदि ८ श्रीपासचन्द गच्छे ॥ श्री उपाध्याय प्रेमचन्द जीना पादुका
(317 )
॥ संघत १८१८ वर्षे श्री संभवनाथ जिनचरण कमल स्थापित साह माणिक चंदेन जीर्णोद्धार करापित ॥
( 318 ) सं० १८२५ वर्षे माघ शु. ३ गुरी गोवर्द्धन सत सरुपचंदेन प्रति महि- - नाथ बिंध कारापित।
( 319 ) ॥ संवत् १८२९ श्री ५ पं० लालचन्दजी पादुकं ॥ मनसारामेन स्थापितं । सर्वत् १८२६ भी ५५० रुपचन्दजी पादुका । संवत् १८२६ श्री ५ श्री वा० भारमल्डजी।
( 320 ) ॥ शुभ संवत् १८७० वर्षे ॥ वैसाख शुक्ल पंचम्यां चंद्रवासरे श्री जिन कुशल सूरीश्वर सदगुरुणा चरण पादुका प्रतिष्ठिता भी महत्खरतर गच्छे भहारक श्री जिन अक्षय सूरि पहालंकृत श्री जिनचन्द्र सूरिभिः श्री मस्पाटलिपुर वास्तव्य । समस्त भी संधः प्रतिष्ठा कारापिता। पं । गषि श्री की[दयोपदेशात् ॥ श्री रस्तु।
( 321 ) सम्बत् ॥ १८०० वर्षे वैशाष गुरु पंचम्यां चन्द्र वासरे शी जिन कुगल सूरीश्वर बदगुरुषां चरण पादुका प्रतिष्ठिता महारक श्री जिन मानव पूरि हाकत भी गिन
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Footprints, Pataliputra (Patna) Temple dated S. 1877 (1820 A. D. )
१७६ सारख वासरे श्री निरालसूरीश्वरसहरू । वरापोऽकाप्रतिष्ठि
श्रीम
रतरग
श्रीहिन
रिपहाल
aasa
તારલિક
समस्तश्री
ठाकारा
ीक
देशात्॥
बृहत्तरवस्त
तहारक
यस्त
रात श्रीजि
निःश्रीम
बास्तव्या
सधैः प्रति
पिता पाग
दियोप ॥ श्रीरक्त
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(१) चन्द्र सूरिभिः मनेर वास्तव्य श्रीमालाम्बवे--बदलिया गोत्रे सुमावक श्री कल्याणचन्द तत्पुत्र श्री अग्गुलाल कीचन्द्र तत्पीत्र किसनप्रसाद अन्नय चंद्रादि सपरिवारेण स्वयोग्य प्रतिष्ठा कारापिता पंगा कीर्युदयोपदेणात् ।
( 322 )
मी मागरा नगर वास्तव्य सं० पति श्री श्री चन्दपालन प्रतिष्ठा कारिता।
(30) ॥संवत २१६ वर्षे वेणाष सुदि भी मुलसंघे महारक जी श्री जिन चन्द्रदेव साह जीवराज पापडीवाल नित्य प्रणमति सर मम श्री राजाजी स संघ---
(324)
संबत १५१८ वर्षे वैताप सुदि ३ मुलसंघे महारक श्री जिन चन्द्र सा० जिवराज पापरिवाल सहरम-सा श्री राजसी संघ रावल ।
( 325 )
॥संवत १६०१ ज्येष्ठ पदिसोमवारे करवंशे महाराजधिराजजी श्री मत स्याहजा राज्य ॥ चंद्रकीर्तिजी वत्पदे म० भी देवेन्द्र कीर्तिजी सदाम्नाये सरस्वती गच्छे बलात्कारगण कुंदाचार्यान्वये गुना।
( 326 ) संवत १७५२ वर्षे मार्गशिर्ष वदि पंचमी गुरो ढाकामध्ये ---- काष्ठा संघ माथुर गच्छे पुष्कल गण डोहाचार्या म्वये दिगम्बर धर्म महारक रूपचन्द्र प्रतिष्ठितं अग्रवाल मांगा गोत्रे सा. गुलाल दास मा० मुलाई पुत्रः। सावलसिंघवी प्रमरसिंघवी केसर सिंह वि---प्रविहा कारापिवानि पुन्तिके ---- दायां प्रतिष्ठा । --- पादुकानां । योस्तुः ॥ पादुका मादिनापकी । गुरुपादुका ।
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( २ )
(327)
नेमनाथजीके विवपर ।
॥ सं० १९१० मार्च शु० १४ शनौ काष्ठासं (घ) माथुर गच्छ पुष्कर गण लोहाचार्य याम्नाय प्र० देवेंद्र कीर्त्तिदेव सत्पहं भ० जगत् कीर्त्तिदेव तत्पदे में ललित कीर्त्तिदेव सरपदे प्र० राजेन्द्र कीर्त्तदेव हदाम्नाय अग्रोत् कान्धय वासिल ग श्री सोषीलाल तत्पुत्र बाबु मुनिसुव्रत दासेन श्री जिनालय पूर्वक श्री जिन विंवं मातष्ठा कारापिता आरामपुर वास्तव्य - स्य रामसरा मध्ये श्रीरस्तु ॥ श्री ३ ॥
154
( 328 )
॥ श्री संवत १९१० शाके ॥ १७७५ साल मिली वैशाख शुक्ल पंचम्यां गुरौ पाटलीपुर सर जिनालय पूर्वक श्री श्री नेमनाथ मंदिरजी जेसबाल माणकचन्द तत्पुत्र मटरू म तत्पुत्र सीवनलाल प्रतिष्ठा कारापितं श्रीरस्तु ।
( 329 )
श्री स्थूलभद्रजी का मंदिर ।
॥ संवत १८४८ वर्षे मार्गशिर यदि ५ सोमवासरे श्री पाडली वास्तव्य श्री सकल संघ समुदायेन श्री स्थूलभद्र स्वामीजी प्रसादस्य कारापितं कार्य्यं स्याग्रेस्वरी श्री तपा गच्छीय आईः श्री लोढा श्री गुलाबचन्दजी प्रतिष्ठि तंसकल सूरिभिः ।
( 330 )
चरण पर ।
सं. १८४८ ॥ भाद्र सुदि ११ श्री संघेन । श्रुत केवल प्रीस्कूल भद्राचार्याणां देवग्रहं कारथित्वा तत्र तेषां चरण न्यासः कारितः प्रतिष्ठितं मी अमृतधर्मवाचनाचार्यैः"
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(20) सेठ सुदर्शनजी का मन्दिर ।
(331)
चरण पर। अव्ययपदाप्तस्य श्री श्रेष्ठि सुदर्शनस्य इमे पादुके संप्रतिष्ठिते सकल संघेन गुमसंवत्सरे।
दादा वाड़ी।
( 332) संवत १६८२ मार्गशिर्ष शुदि ५ सा० कटार मल तस्यात्मज साकल्याण मल पुत्र चिंतामणि श्रीजिन कुशल सूरि० । वेगमपुर वास्तव्य ।
( 333 ) संवत १९९६ वर्षे पूर्व देशे पाइलिपुर नगरे वेगमपुर --
( 334 तपागच्छ म० श्री ५ श्री हीर विजय सूरि जगत पादुकेभ्यो नमः पं० चंद्र कुशल गणि नित्यं प्रणमतिश्च । सं. १७६२ वर्षे कार्तिक शुक्ल : सा. वेणीदास पुत्र भीमसेन पुत्र मयाचन्द वीराणी गोत्रे प्रतिष्ठितं- वीराणी मयाचन्द प्र. क. पाडलोपुरे।
( 335 )
साध्वीजी के चरण पर।
___ सं० १८४४ वर्षे शाके १७०६ प्रवर्शमाने मिति माघ मासे शुक्ल पक्ष सूरीशाषायां साध्वी महरा सुजान विजयाजी तत् शिष्यणी दोप विजयाजी तत् शिष्यणी अंते वासिनी पान विजया कारापितं वाराणसी मनसा रामेन प्रतिष्ठा कारापितं शुभमस्तु ।
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(२)
श्री समेत शिखर तीर्थ । यह प्रसिद्ध जैन तीर्थ पूर्व देश जिला हजारिवागमें है। १ । १२ । २३ । २४ यह ४ तीर्थंकरोंके सिवाय और २० तीर्थंकरोंका निर्वाण कल्याणक यहां हुवे हैं। यह पवित्र पहाड़के २० टोंकमेंसे १९ टोंक पर छत्रिमें चरण पादुका विराजमान हैं और श्री पार्वनाथ स्वामीके टोंक पर मंदिर है। तलहटी मधुवनमें मंदिर और धर्मशाला वने हुवे हैं। यहांसे १ कोस पर ऋजुवालुका नदी बहती है जिसके समीपमें श्री वीर भगवानका केवल ज्ञान अया था। यहां पर चरण पादुका है। यहांका और मधुवनका लेख जैन तीर्थ गाइ उसे लिया गया है।
ऋजुवालुका नदीके किनारे छत्रिमें
चरण पर।।
( 336 ) ऋजुवालुका नदी तटे श्यामाक कुटुम्वी क्षेत्रे वैशाख शुक्ल १० तृतीय प्रहरे केवल ज्ञान कल्याणिक समवसरणमभत् मुर्शिदावाद वास्तव्य प्रतापसिंह सद्भार्या मेहताव कुवर तत्पुत्र लक्ष्मीपतसिंह बहादुर तस्कनिष्ट धाता धनपतसिंह वहादुरेण सं०१६३० वर्षे जीर्णोधारं कारापितं।
मधुवनके मन्दिरके मूर्तियों पर ।
( 337 ) संवत् १८५४ माघ कृष्ण पंचम्यां चंद्रवासरे श्रीपार्श्व जिन विवं प्रतिष्ठिसं -- ।
( 338 ) संवत १८५५ फाल्गुण शुक्ल तृतीयायां रवी श्रीपाश्र्वनाथस्य शूम स्वामी गणधर विवं प्रतिष्ठितं जिन हर्ष सूरिभिः कारितं च वालु घर वास्तव्य श्रीसंघेन ।
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(८५)
( 339 ) रंवत १८७७ - - प्रोपाव विवं प्रतिष्ठितं भी जिन हर्ष सूरिणा कारितं - - सांवत सिंहज पदार्थ मल्लेन --- ।
( 340 ) संवत् १८७७ वैशाख शुक्ल १५ श्रीपार्श्वविवं प्रतिष्ठितं श्रीजिनहर्ष सूरिणा गोलेछा महतावो - - मूलचन्द्र धर्मचन्द्रेण कारितं ।
( 341 )
संवत १८८७ वर्षे फाल्गुन शुक्ल १३ श्रीपार्श्वनाथ जिन विंवं दुगड ज्येष्ठमल्ल भार्या फत्ती नाम्न्या वाचक चारित्रनंदि गणि उपदेशात् कारितं प्रतिष्ठितं च ।
( 342 )
संवत १८८८ माघ शुक्ल पंचम्यां सोमवासरे श्री शितलनाथ विवं कारितं ओशवंश दुगड़ गोत्र प्रतापसिंहेन प्रतिष्ठितं च थी जिन चंद्र सूरिमिः ।
( 343 )
संवत १८८८ माघ शुक्ल पंचम्यां चंद्रवासरे श्रीचंद्रप्रभ जिनविवं कारितं ओशवंशे नवलखा गोत्रे मेटामल पुत्र जसरूपेन प्रतिष्ठितं च वृहद महारक खरतर गच्छ श्री जिनाक्षयसूरी चंचरीक श्रीजिनचंद्र सूरिभिः ।
( 34 )
सं० १८९७ वर्षे ---श्री ऋषम जिनवि कारितं प्रतिष्ठितं ---
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(८)
( 345 ) सागरांकवसुचंद्र वर्षे (१८८७) नेत्रषण गणधरायुते राके (१७९२) फाल्गुना तिमदले सुनागके (५) भार्गवे सितपटौषपालके वाणारस्यां श्रीमद्भागवत्सासफणालंकृत श्री पार्श्वनाथ जिनमूर्तिः कारापितं श्रे० उदय चंन्द्र धर्म पत्नी महाकुवराख्यया मूलचंद्र सुत युतया हत्खरतर गणेश श्री जिन हर्ष गणि पदालंकृत श्री जिन महेंद्र सूरिणा प्रतिष्ठिता।
(346) सं० १०० वर्षे.. श्री गोडी पार्श्वनाथ विका० ---।
( 347 ) सं०१९१० शाके १७७५माघ शुक्ल द्वितीयायां श्री पार्श्वविवं प्रतिष्ठित वृहत्खरतरगच्छे---।
टोंकपरके चरणों पर।
( 348 ) ॥ संवत् १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरो विरानी गोत्रीय सा० खुसाल चन्देन श्रो अजितनाथ पादुका कारापिता श्री मत्तपा गच्छे ।
(349) ॥ संबत् १९३९ । माघे । शु। १० चंद्र। श्री अजितनाथ जिनेन्द्रस्य चरण पादुका जीणोद्वार सपा श्री संघेन कारापिता। मलधार पूर्णिमा श्री मद्विजय गच्छे । महारक। श्री जिन शांतिसागर सूरिमि प्रतिष्ठितं च ॥
( 350 ) ॥ संवत् १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरौ विरानी गोत्रीय सा० खुसालचंदेन श्री संभव पादुका कारापिता श्री मचपा गच्छे ।
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(20)
( 351 )
संवत् १९३० । माघे ।। शु० १० । चंद्रे । श्री संभव जिनेंद्रस्य चरण पादुका श्री संघेन कारापितां । मलधार पूर्णिमा ॥ विजय गच्छे । श्री महारकोत्तम श्री पूज्य श्री जिन शांति सागर सूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥
( 359 ) ॥ सं० १९३३ का जेष्ट शुक्ल द्वादश्यां शनिवासरे श्री अभिनन्दन जिनेंद्रस्य चरण पादुका जीर्णोद्धार रूपा श्री संघेन कारिता मलधार पूनमीया विजय गच्छे श्री जिन चंद्र सागर सूरि पहोदय प्रमाकर महारक श्री जिन शांति सागर सूरिभिः प्रतिष्ठितां । स्थापितांच । शुभं श्रेयसे भवतु ।
(353 )
॥ सं० । १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरो विरानी गोत्रीय सा० खुसाल चंद्रेण श्री सुमति नाथ पादुका कारापिता छ । सर्व सूरिभिः श्री तपा गच्छे ।
( 35
)
॥ सं । १९३१ । माघे । शु। १० श्री सुमतिनाथ जिनेंद्रस्य चरण। पादुका। जीर्णोद्वार रूपा। गुर्जर देसे श्री संघेन स्थापिता। कारापिता। विजय गच्छे ।। श्री जिन शांति सागर सूरिभिः । प्रतिष्ठितं ॥
( 355 )
॥ सं १९४९ माघ सु० १० सुक्रवा। श्री समेत शैल पर्वते श्री पद्म प्रभु जिन चरण स्थापित प्रति।म। श्री विजय राज सूरि तपा गल्छे ।
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(८८)
( 356 ) 3. ॥ संवत् १८२५ मह सुदि ३ गुरौ विरामी गोत्रीय साह खुसाल चंदेन श्री सुपार्वपादुका कारापिता प्र०।
( 357 )
संवत् १८३१ । माघे । शु। १० । सुपार्श्वनाथ जिनेंद्रस्य । चरण पादुका जीर्णोद्धार रूपा । सेठ उमा भाई हठी सिंहेन तया स्थापना कारापित पूर्णिमा विजय गच्छे । महारक । भी जिन शांति सुरिति । प्रतिष्ठितं च ।
( 358 )
॥ संवत् १८४९ माघ मासे शुक्ल पक्ष पंचमी तिथौ बुद्धवारे । श्री चंद्र प्रमु जिनस्य चरण न्यासः श्री संघाग्रहेण । श्री वृहत् खरतर गच्छीय । जंगम । युग प्रधान महारक । श्री जिन चंद्र सूरिभिः। प्रतिष्ठितः ॥ श्री॥
( 359 )
॥ संवत् १९३१ वा वर्षे। माघ सुदि १० तिथौ श्री सुविधि जिनेंद्रस्य चरण पादुका। अहमदावाद वास्तव्य सेठ उमा भाई हठी सिंहेन कागपिता । मलधार पूर्णिमा विजय गच्छे । भहारक । श्री जिन शांति सागर सूरिभिः । प्रतिष्ठितं ॥
( 360 ) ॥ संवत १९३९ । माघे । शु। १० तियो । चंद्रे । श्री सुवधि जिनेंद्रस्य चरण पादुका जीर्णोद्धार रूपा । अहमदावाद वास्तव्य । सेठ उमा भाई हठी सिंहेन स्थापिता कारापित च। मलघार पूर्णिमा। श्री मद्विजय गच्छे । श्री महारकोत्तम । श्री श्री जिन शांति सागर सूरिभिः ॥ प्रतिष्ठितं । स्थापितं च शुभ श्रेय ।
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(६)
( 361 ) ॥ सं० । १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरे विरानी गोत्रीय सा० श्री खुसाल चंद्रेण । श्री शीतल जिन पादुका कारापिता श्री सपा गच्छे ॥
( 362 ) ॥ संवत् १९३१ वर्षे माघे । शु। १० । चंद्र श्री सीतल नाथ जिनेद्रस्य चरण पादुका जीर्णोधार रूपा गुजराती श्री संघे कारापिता ॥ मलधार पूर्णिमा विजय गच्छे । महारक। श्री जिन शांति सागर सूरिभिः । प्रतिष्ठितं । स्थापितं च ।
( 363 ) ॥ संवत १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरौ विरानी गोत्रीय साह सुसाल चंदेन श्री श्रेयांस प्रभु पादुका काराापता प्रतिष्ठिता च श्रीमत्तपा गच्छे।
( 364 ) ॥ संवत् १९३१ माघे शु। १० तिथी। श्री श्रेयांस नाथ जिनेंद्रस्य चरण पादुका जीर्णोद्वार रूपा । गुजरातका श्री संघेन तया स्थापना कारापितं पूर्णिमा श्रीमद्विजय गच्छे । म । श्री पूज्य । श्री जिन शांति सागर सूरिभिः ।प्र।
( 365 ) ॥ संवत् १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरो विरानी गोत्रीय साह खुसालचंदेन श्री विमल . नाथ पादुका कारापिता प्रतिष्ठिताच श्रीमत्तपा गच्छे ॥ श्री ॥
( 366)
॥ संवत् १९३१ माघ शुक्ले १० चंद्रो श्री विमलनाथ जिनेंद्रस्य पादुका चीर्णोद्धाररूपि। गुजरात का श्री संघेन । तया स्थापना कारापिता। मलधार श्री विजय गच्छे । जं। यु प्र। भहारक । श्री पूज्य । श्री जिन शांति सागर सूरि प्रतिष्ठितं च ।
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(१०)
( 367 ) •॥ संवत् १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरौ विरानी गोत्रीय साह खुसाल चंदेन श्री अनंत प्रभु पादुका कारापिता प्रतिष्ठिताच सर्व सूरिभिः श्रीमत्तपा गच्छे ॥ श्री रस्तुः ।
( 368 ) ॥ संवत् १९३१ वर्षे माघ शु०१० चंद्रे श्री अनंत नाथ जिनेन्द्रस्य चरण पादुका जीर्णोद्धार रूपा। श्री संघेन स्थापना कारापिता । मलघार पूर्णिमा श्री मद्विजय गच्छे प्रहारक । श्री शांति सागर सूरिभिः प्रतिष्ठितं । स्थापितं ।
( 389 ) ॥ सं १९१२ वर्षे शाके १७७७ मिते मापोत्तम माषे मार्गशीर्ष कृष्ण पक्षौ नवमी तिथी सोमवासरे विजय योगे कंस लग्ने यो सम्मेत शैले श्री धर्मनाथ चरण पादुका प्रतिष्ठिता वृहत् खरतर अहारकोत्तम प्रहारक श्री जिन हर्ष सूरीणां । पद प्रजाकर श्री जिन महेंद्र सूरिभिः स साधुभिः कारिताश्च वाराणसीस्य श्री संघेन कालिपुरस्य संघेनया।
( 370 )
॥ संवत् १९३१ माघे । शु। १० तिथी श्री धर्मनाथ जिनेंद्रस्य चरण पादुका जीर्णोद्धार रूपा । मम्बई वास्तव्य । सेठ नरसिंह भाई । केसवजी केन स्थापना कारापिता। पूर्णिमा विजय गच्छे । जं। य ।प्र। अहारक जिन शांति सागर सूरिभिः । प्रतिष्ठितं ॥ स्थापितं च । शुभं भवतु ॥
( 31 ) । संवत् १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरौ विरानी गोत्रीय साह खुसाल चंदेन श्री शांति नाथ पादुका कारापिता प्रतिष्ठितं च सर्व सूरिभिः श्री मनपा गच्छे ।
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( 372 ) । । संवत् १९३९ । माघे । शु।१०। चंद्र। श्री शांतिनाथ जिनेंद्रस्य । चरण पादुका जीणोद्वार सपा । महमंदावाद वास्तव्य । सेठ पगु भाइ पेम चंदेन स्थापना कारापिता। पूर्णिमा बिजय गच्छे । । यग प्रधान ।। श्री पूज्य श्री जिन शांति सागर सूरिभिः प्रतिष्ठित स्थापितं च ॥
( 273 )
॥ संवत १८२५वर्षे माघ सुदि३ गुरौ विरानीगोत्रीय साह खुसाल चंदन श्री कुंथुनाथ पादुका कारापिता प्रती० श्री तपा गच्छे ।
( 374 )
॥ संवत् १८३१ माघ शुक्ल १० चंद्रो श्री कुंथु निनेंद्रस्य। चरण पादुका - - जीर्णोद्धार रूपामम्बई वास्तव्य सेठ केसवजी नायकेन स्थापना कारिता --- पूर्णिमा। श्री विजय गच्छे। श्री जिनचंद्र सागर सूरि पहोदय प्रमाकर - - महारक श्री जिन शांति सागर सूरिभिः । प्रतिष्ठिता स्थापिता च।
( 375 )
॥ सं० १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरो विरानी गोत्रीय सा० खुसाल चन्देन श्री अरनाथ पादुका कारापिता प्र० श्री तपा गच्छे ।
(376) ॥संवत् १९३१ । माघे। शु।१०। चंद्र। श्री अरनाथ जिनेन्द्रस्य। चरण पादुका जीर्णोद्धार रूपा। गुजरातका श्री संघेन तया स्थापना कारापिता मल ॥ पूर्णिमा विजय गच्छे । जं। यु । प्रभाश्री जिन शांति सागर सूरिभिः । प्रतिष्ठितं।
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(६२) ( 37 )
॥ संवत् १८२५ वर्षे माघ मासे शुक्ल पक्ष ३ गुरौ विरानि गोत्रीय साह खुसाल चंदेन । भी मल्लीनाथ पादुका कारापिता प्र. श्री तपा गच्छे ।
( 378 )
॥ संवत् १९३१ माघे । शु। १० चंद्र। श्री मल्लि नाथ जिनेंद्रस्य । चरण पादुका जीर्णोद्धार रूपा अहमदावाद वास्तव्य । सेठ भग भाई पेम चंद स्थापना कारापिता मलघार पूर्णिमा। श्री मद्विजय गच्छे। महारक । श्री पूज्य। श्री जिन शांति सागरसूरिभि प्रतिष्ठितं । स्थापितं च ॥
( 379 )
॥ सं० । १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरी विरानी गोत्रीय साह खुसाल चंद्रेण श्री सुब्रत जिन पादुका कारिता श्रीमत्तपा गच्छे ।
( 380 )
॥ संवत् १९३१ माघे । शु।१०। श्री मुनि सुब्रत जिनेंद्रस्य । चरण पादुका। जीर्णोद्धार रूपा। गुजरातका। श्री संघेन स्थापना कारापिता। मल । पूर्णिमा । श्री मद्विजय गच्छे भी जिन शांति सागर सूरिभिः । प्रतिष्ठितं ॥ स्थापितं च ॥
( 331 )
। संवत १८२५ वर्षे माघ सुदि ३ गुरौ विरानी गोत्रीय साह खुसाल चंदेन भी नमि• नाय पादुका कारापिता प्रतिष्ठिता सर्व सूरिभिः श्री तपा गच्छे।
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(६३)
( 382) ॥ संवत १९३१ माघ शुक्ले दशम्यां चंद्रवासरे श्री नमिनाथ जिनेंद्रस्य चरण पादुका। जीर्णोद्धार रूपा । अहमदावाद वास्तव्य । सेठ उमा भाई हठी सिंहेन स्थापना कारापिता। पूर्णिमा विजय गच्छे महारक। श्री जिन शांति सागर सूरिभिः । प्रतिष्ठितं ॥
तेजपूर (आसाम) राय मेघराजजीका मंदिर ।
( 383) संवत १५१३ वर्षे वैशाष शुदि ७ रानी श्रीश्रीमाल ज्ञातीय श्रे० सानंद भार्या हीसू सुत पूनसीकेन मातृपित अयोयं श्रीशीतलनाथ विवं कारित प्रतिष्ठितं श्री सूरिभिः ।
( 384 ) सं० १९४३ का मिति वैशाष शुक्ल सप्तम्यां ----
( 385) सं० १९५७ वर्षे ज्ये० शु० १२ तिथौ शुक्रवासरे ॥ श्री जिन कीर्ति सूरि प्रतिष्ठितं श्री जिनदत्त सूरि नाम पादुका का० ।
कलकत्ता श्री कुमरसिंह हल - नं० ४६ इंडियन मिरर स्ट्रीट ।
धातुयोंके मूर्ति पर।
( 386 )
श्रीपार्श्वनाथ विंव। ब्रह्माण सत्व संयकः प्रियावे सुनः सुपुण्यक श्री द्वः (?) सीलगण सूरि भत्तस्प (?) द्रकुले कारयामास संवत १०३२
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( ६४ )
( 387 )
सं० ११५० ज्येष्ठ सुदि १० श्री महेशराचार्य श्रावक पूना सुताभ्यां पारहण राहणाभ्यां सोमा भेयसे चतुर्विंशतिः कारिता ॥
स्वमातृ
( 388 )
ॐ श्री मूलसंघे गुणभद्र सूरे: संडिल्ल ( खडिल्ल = खंडेल ? ) वालान्वय सारभूतः ।
यो वस्तु (ब्रु) तोसो सिवदेवि पुत्रः सच्छ्रावकोऽभून्मुनिचंद्र नामा ॥ १ तस्माच्छीतेति विख्याता मार्या शील विभूषणा ।
कारिता कर्मनाशाय चतुर्विंशतिका शुभा ॥ २ संतु १२३९ फा सु० २ गुरौ ॥
し
( 399 )
संवत १४८५ वर्षे जेठ सुदि १३ चंद्रवारे उपकेश गच्छे कक्क० उ०केश ज्ञातीय बापणा० सा० छाउ जीदा ( १ ) भा० जईतलदे पु० साचा माय - सिवराजकेन मातृपितृ श्रेयसे श्री शांतिनाथ विंवं कारा० प्रतिष्ठितं श्री सिद्ध सूरिभिः ।
-
बडाबजार - पंचायति मंदिर ।
( 390 )
मनाथ बीतनाग पत्नीलं मुलसरक ॥ सं० १०८३ वै० सु० १५
[ पृ० २२ के लेख नं० (८८) का संशोधित पाठ ]
संवत् १९५४ माघ सुदि १४ पद्मप्रभ सुत स्थिरदेव पल्या देवसिया श्रेयो नूहेन ॥ करिता |
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यति पन्नालालजी मोहनलालजीका घर देरासर।
॥ संवत १५०६ वर्षे भी श्रीमाल ज्ञातीय दोसी दूंगर मार्या म्यापुरि सुत पूजाउन भार्या सोही सुत बीका युतेन आत्मप्रेयसे श्री सुविधिनायादि चतुर्विशति पह कारितः। आगम गच्छे श्री ममासिंह सूरि पट्टे की हेमरल सूरि गुरुपदेशन प्रतिष्ठितः । गंधार वास्तव्य । शुभं भवतु ॥ श्रीः॥
( 392) सं० १५५ वर्षे फा• शु०८ प्राग्वाट सा जोगा मा मरगदे सुत सा० हदाकेन मा. करमी पु० पाल्हादे कुटुम्ब युतेन स्वश्रेयसे प्रोविमलनाथ विवं का. प्रतिष्ठित सपाग श्री सोमसुंदर सूरि प? श्रीरत्नशेषर सूरिभिः ।
( 9 ) सं० १७७१ वै. वदि ५ गुरी माग्वाट ज्ञातीय वृद्धशाषायां सा. प्रेमचंद ग्रामीदास स्वश्रेयसे श्री शांतिनाथ प्रतिष्ठित श्री विजय ऋद्धि सूरिभिः । कलकत्ता अजायब घर ( म्युजियम ) के पाषाणके मूर्तियों पर ।
( 394 ) --संवत १-८१ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १५ गुरी श्रीश्रीमाली ज्ञातीय जंबहरा स. केशव सुत सं० मंडिलक सुत० सं० चांपा भार्या चापलदे सुत सं० ---- भार्या श्री गांगी सुतमेघाकेन भार्या राजु पुत्र सा० माकर सा० मागादि तथा (१) पुत्री जीवणि प्रमुख रामसु(?) कुटुम्ब युतेन निज श्रेयोऽवाशाय श्री श्रेयांसनाथ विवं कारितं ॥ पद तपागच्छ, नायक म० श्री रत्नसिंह सूरि पहालंकरण ० भी उदय बरखा सूरिति श्री शाम सागर सूरियुतो प्रतिष्ठितं।
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(९६)
(395)
संवत १६०८ वर्षे माघ वदि ९ गुरौ प्राग्वाट ज्ञाती सा० राघव भा० रतना सा० नरसीमा भा० सुजलदे सा० रणमल भा० वेनीदे सुत लाला सीमल श्री संतनाथ विंवं प्रविष्ठितं ।
म्युनिक (जर्मन) के जादुघरके धातु की मूर्ति पर ।
( 396 )
सं० १५०३ वर्षे माघ वदि १ शुक्रे उ० गोष्टिक आल्हा भा० शृंगारदे सुख सुडाकेन भा० सुहवदे स० आत्मश्रेयसे श्री पार्श्वनाथ विंवं कारि० प्र० जरापल्लिय श्री शालिभद्र सूरि पट्ट े श्री उदय चन्द्र सूरिभिः शुभं भवतु ।
डाः कुमार स्वामिके पास ' समवसरण' के चित्र पर ।
(397)
संवत १६८० वर्षे प्राद्रव शुदि २ श्री मदुत्तराध गच्छे आचार्य श्री कृष्ण चंद विद्यमाने ठिः ऋषि ताराचंद शुभं भूयात् कल्याणमस्तु ॥ छ ॥
मेः लुवार्ड के मध्य भारतसे प्राप्त धातुकी मूर्तियों पर ।
( 398 )
सं० १५२७ पौष वदि ५ शुक्रे प्राग्वाट ज्ञातीय श्र० सहिजक तत्पुत्र थे ० डूंगर प्रा० मा० सुडि सपरिवार प्रा० सहिजलदे घरमसि करमण आदि पुत्रादि युतेन पुण्यार्थं श्री कुंथुनाथ विंवं का० तपागच्छे श्री लक्ष्मी सागर सूरिभिः प्रतिष्ठितं ।
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( 399 ) सं० १५३३ वै० शु० १२ गुरी प्राग्वाट ज्ञा० सा. तालहा मा० राजु पु० सा. लिमपाक तत् प्रा० रन रुटु नाता सा. किवालय मेघ आदि सपरिवारेन श्री कुंथुनाथ विंवं का. प्रति० श्री तपगच्छाचार्य श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिःभी वसंतनगरे।
जैपुरके वेपारियोंके पासकी मूर्तियों पर ।
.. ( 400 ) सं० १९०५ वैशाष सु०३ श्री उएस गच्छ तातहड़ गोत्र प्र० साः-ज्ज मा० ब्रह्मादे वही पुत्र संघ० सा० चाडूकेन सकुटुंवेन श्री रिषभ विवं का० प्र० श्री ककुदा चार्य संताने श्री कक्क सूरिभिः॥
( 401 )
सं० १५१२ वर्षे वै. शु. ५ ओसवाल गोत्रे सा० महणा भा० महणदे सुत सा० सीपा केन भा० सूलेसरि प्रमुख कुटुम्बयुतेन श्री आदिनाथ विवं का० श्री कक्क सूरिभिः ॥
अजमेर राजपुताना म्युजिउमके वारलि गांवसे प्राप्त पत्थर पर। *
( 402 ) ---विरय भगवत (त)-- 4 -- चतुरासि तिव (स) -- ( का ) ये सालिमालिनि -- रनि विठमाझिमिके--
मी महावीर स्वामिका नाम और ४ वर्ष मध्यनिकामगरका जो कि पित्तोकोस उत्तर था उनका है और यह ३।४ पूर्वधतादि का बहोत प्राचीन व ऐसा विद्वानांका विचार है।
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* बनारस * कागोदेशका वह वाराणसी वा वनारस सहर जैनियोंका बहुत पवित्र स्थान है। हिन्द ओंका भी प्रसिद्ध तीर्थ है। यहां प्रतिष्ठ राजा और पथ्वी राणीके पुत्र मां तीर्थंकर श्री सुपार्श्वनाथजी का च्यवन और जेठ सुदि १२ जन्म, जेठ सुदि १३ दीक्षा, फागुन वदि ६ केवल ज्ञान और अश्वसेन राजा वामा राणी के पुत्र २३ मां तीर्थंकर भी पार्श्वनाथजी का भी च्यवन, पोष वदि १० जन्म, पौष वदि ११ दीक्षा और चैत वदि केवल ज्ञान यह ८ कल्याणक भये हैं। महल्ले मेलुपुरा और प्रदेनीमें मंदिर बने हुए हैं सहरमें कई एक मंदिर हैं। यहां से ४ कोस पर सिंहपूरी है यहां ११ मां तीर्थंकर श्री श्रेयांसनाथजी का च्यवन, फागुन वदि १२ जन्म, फागुन वदि १५ दीक्षा और माघवदि केवल ज्ञान प्रया है। निकट में वौद्धोंका सारनाथनामक प्राचीन स्थान है।
सुत टोलका मंदिर। पंच तीर्थी पर।
( 403 ) सं० १५१५ वर्षे माह शुक्ल १३ दिने श्री ओसवाल ज्ञातीय मूंघा मार्या माधलदे सु० धनदत्तन पितृ श्रेयो) श्री शितलनाथ विव पूर्णिमा पक्ष : श्री सागरतिलक सूरि पहे श्री महितिलक सूरि कारितं प्रतिष्ठितं श्री सूरिभिः ॥
सं० १५५६ वर्षे आषाढ़ सुदि दिने चंपकनर वासि . जावड़ भार्या पूरी सुत घरपाकेन भार्या हाई सुत माकर प्रमुख कुटुम्ब युतेन श्रीशांतिनाथ विवं श्री निममानना भार्या कारितं प्रतिष्ठितं श्री निगमा विभावक भी इन्द्रनंदि सूरिभिः श्रीमीः ॥
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( 6 ) बट्ट का मंदिर।
( 405 )
सं० १५१९ वैशाष शु० ५ प्राग्वाट सा. सिधा मा० लादां सु० साह हीराकेन मा. संजत्री प्रमुख सुरत श्री-जिनावति का प्र. तपा रत्न शेखर सूरिमिः ॥
पटनी टोलेका मन्दिर।
( 406 )
सं० १४८५ वर्षे आ० सुदि १० रवी माल्हू --अ० ज्ञा० साह वीजड पु० साह हरपाल मा० हेमादे पुत्र साह साडाकेन श्रीपार्श्वनाथ विवं राजावर्तक रत्नमयं सपरिकरं का. प्रतिष्ठितं श्रीमल धारि गच्छे श्रीविद्यासागर सूरिभिः ।
( 407 )
सं १५८६ वर्षे वैशाष सुदि ३ भोमे श्री श्रीमाल ज्ञातीय परी. नरसिंघ धातपरी पनपा भार्या हीरूपुत्र कुरपालेन श्री श्री आदिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सुविहित सूरिभिः॥
चुनिजी यतिका मन्दिर गणेशघाट ।
( 408 )
संवत १२५७ ज्येष्ठ सु० १० महेष्ठीराचार्य ---स्वमात सोमा श्रेयसे चतुर्विशतिः .कारिताः॥
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(१०) रामचन्द्रजी का मंदिर।
( 400 ) सं० १४०६ वर्षे फागुन सु. ११ गुरी सूराणा गोत्रे सा० जतरा शु० सा. जगद मार्या जयत श्री पु. नरपाल रणमीरभ्यां मातृ भ. महावीर वि. का.प्र. श्रीधर्म घोष गच्छे श्री ज्ञान चंद्र सूरि शिष्य श्री सागरचंद्र सूरिभिः ।
( 410 )
सं. ११५६ ज्येष्ठ वदि १२ शनी सूराणा गो० सा. अमर मा० अइहव दे सतसा ताला साल्हा श्रेयसे श्री पारर्वनाथ विका०प्र० श्रीधर्म घोष ग०म० श्रीमलय चन्द्र सूरिभिः॥
( 11 ) सं० १९८१ वर्षे वैशाष पदि शुक्रे श्री उकेश वंशे मणी सा० पासर भार्या पाहण देवी सुत सा. सिवाकेन सा० सिधा मुख्य ? जिनोनुजः सहितेन स्वयसे श्रीआदिनाथ विवं श्री अंचल गच्छेश श्रीजय कीर्ति सूरीन्द्राणामुपदेशेन कारितंप्रतिष्ठत श्री संघेन॥ शुभं भवतु सर्वदा सर्व कुटुम्ब ॥ श्रीः॥
( 412 ) सं० १५०७ वर्षे मार्गशिर सुदि २ शुक्रे श्रीमाल ज्ञातीय गोवलिया गोत्रे सा० हेमा ... पु० --वाल्हा उपा -... उपदेशेन विमलनाथ विवं का प्रति० पवीर्य गच्छे श्री यशोदेव सूरिभिः॥
( 413 ) सं० १५४९ वर्षे ज्येष्ठ सुदि ११ घेवरिया गोत्रे श्री माल बीलीज देवी गोवेद पु०पीमा पु० सा. सिंघण सुमेक आत्म पुण्यार्य कुंथुनाथ विवं श्रीमल धार गच्छे १० गुण कीर्ति सूरि प्रतिष्ठितं वा. हर्ष सुन्दर शिष्य उपदेशेन ।
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(११)
( 414 ) सं १५६२ वर्षे वैशाष सु. १० रवी श्रीमाल मउवीया गोत्रे सा. परसंताने सा. पहराज पुत्र सा० ईसरेण मा. तिलकू पु० त्रिपुर दास युतेन पार्श्वनाथ विवं स्वपुण्यार्थ कारितं । प्र. श्री खरतर गच्छे भी जिन विलक सूरिप० श्री जिनराज सूरि पढे श्रीभिः ॥
श्रीकुशलाजी का मन्दिर-रामघाट ।
( 415 ) सं० १३७६ ज्येष्ठ वदि ७ गुम दिने श्रीषंडेरकीय गच्छे श्रीवाहड़ मार्य धीरु पु० धरा ---मयणल्ल---णिग मार्या केल्हण सहितेन विवं कारितं प्र० श्री सुमति सूरिभिः ।
( 416 ) सं० १५०३ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० गुरी उके० व० सा. रेडा भार्या रण श्री पुत्र पद सादा जीतकेन श्री अंचल गच्छेश श्री जय केसरि सूरीणामुपदेशेन श्री संभवनाथ विवं का. प्रतिष्ठितं च ॥ श्री॥
( 417 ) सं० १५.६ वै० वदि. ११ शुक्रे श्री कोरंट गच्छे श्री नवाचार्य संताने उवएश वंशे डागलिक गोत्रे साह धनापु० स०पासवीर मार्या संपूरद नाम्न्या निज मेयोयं श्रीकुंचनाथ विवं कारापितं प्र० श्रीकक्क सूरिप सद गुरु चक्रवर्ति महारक श्री सावदेव सरिमिः।
( 418 ) सं० १५१६ वर्षे भाषाढ़ वदि १ मंत्रिदलीय काणा गोत्रे ठ. नाग राज सु० लडू मार्या धर्मिणि सु० सं० भी केवल दास मार्या वीर सिंधि पु० स. सूर्यसेन श्रावकेण श्री कुंथुनाथ विवं कारितं. प. श्री खरतर गच्छे श्री जिन सागर सूरि पहूँ श्रीजिन सुन्दर सूरि पर भी जिन हर्ष सूरिभिः॥
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( १०२)
( 410 ) सं० १५१८ आषाढ़ वदि-मंत्रिदलीय श्री काणा गोत्रे ठा० लाघू मा० घर्मिणिपु०स० अचल दासेन पु० उग्रसेन लक्ष्मीसेन सूर्यसेन बुद्धिसेनादि युतेन श्री आदि विवं का०प्र० श्रीजिन भद्र सूरि पहें श्रीजिन चंद्र सूरिमिः श्री खरतर गच्छे ॥ श्रीः ।
( 420 )
सं० १५३६ वर्षे वै० वदि ११ ओसवंशे साह शिवराजमा० माणिकि सुत देवदत्त भा० रूपाई सुत साह कर्म सिहन भार्या हंसाई स्वकुटुम्ब युतेन स्वयसे श्री संभवनाथ विवं का०प्र० वृद्वतपापक्षे श्रीउदय सागर सूरिभिः श्री महुपे ।
( 421 ) सं० १५७० वर्षे माह सुदि ११ रवी उपकेश वंशे छजलाणी गोत्रे साह श्री पाल भार्या सुहवदे पु० सा० अधा सा० जोधा ऊधा मार्या उमादे प्रमुख कुटुम्ब सहितेन श्री चंद्रप्रम स्वामि विवं कारितं नागुहरी तपागच्छे श्री सोम रतन सूरि प्रतिष्टितं तिजारा नगरे॥
प्रतापसिंहजी का मंदिर।
__ ( 422 ) सं० १५२० वर्षे पोष सुदि १३ शुक्रे श्री ब्रह्माण गच्छे श्री श्रीमाल ज्ञातीय श्रे० मंडलिक सुत कामा भार्या कामीदे सुत काकण नगराज रत्ना सहितेन आरम श्रेपोयं श्री नमिनाथ विवं का०प्र० श्रीशील गुण सूरिभिः पाटरी वास्तव्यः ।
(423 ) सं० १५४८ वर्षे वैशाष शुदि ३ गुरी श्री श्रीमाल ज्ञातीय श्रे० वीरम सु० वेला मातर भार्या सोही सु० महिराज जिणदास महिपति लहूआ कुटुम्ब युतेन आत्म अयोर्थ भी श्रेयांस विवं आगम गच्छे श्रीसोम रत्न सूरि गुरूपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितं च विधिना घांटू वास्तव्यः ।
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( १०३ )
सिंहपूरी ।
424 )
सं० १५३४ वर्षे मार्ग सुदि १० शनौ प्राग्वाट ज्ञातीय सा० राज भार्या वारू पु० सा० असपति प्रा० असल देवी माई सुत गुणराज सरादि कुटुम्ब युतेन श्री मुनि सुव्रत विवं कारितं प्रतिष्ठतं श्री वृहसपाच्छे श्री उदयसागर सूरिभिः ।
( 425 )
चरण पर ।
सं० १=५७ मिति चैत्रक मासे कृष्ण पक्ष षष्ट्यां कर्म्मवा-पूज्य भट्टारक श्रीजिन हर्प सूरि विजयराज्ये श्रीसिंहपूर ग्रामे तेषां केवलोत्पत्ति स्थाने गांधि गोत्रीय मयाचंद प्रमुख समस्त श्रीसंघेन श्री श्रेयांसाख्या नामेकादशानां लोक नाथानां पादन्यासः कारितः प्र० श्रीजिन लाभ सूरिणां शिष्यैः उपाध्याय श्रीहोरधर्म गणिभिः खरतर गच्छै ।
मिर्जापुर | पञ्चायती मन्दिर | ( 426 )
श्री पार्श्वनाथ विंव पर ।
सं० १३७९ वर्षे उएसज्ञातीय वावेला गोत्रे देवात्मज सा० घीका पुत्र संघपति झाझा सुत सा०- - जूकेन पितृ श्रेयसे का० प्रति० श्री कृष्णर्षिगच्छे श्री प्रसन्न चंद्र सूरिभिः ॥
( 427 )
श्रेयसे
सं० १४२० वर्षे वैशाष शुदि १० शुक्रे श्री श्री मालज्ञातीय ठ० वीजा भार्या मोहनदेवि सुत जोलाकेन श्री पार्श्वनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं त्रिभवीया श्रीधर्मदेवसूरि संताने श्रीधर्म रत्न सूरिभिः ॥
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( १०१)
( 428 ) सं० १४८२ व० वैशाष वदि १ प्र० क्लर गोत्र सा० लाहट मा० वाहिणदे पु० महिराज जिनपितव्य सोमसिंह आरम में श्री वासुपूज्य विवं कारितं प्र० श्री धर्मघोष गच्छे श्रो मलयचद्र सूरिप? श्रीपशेखर सूरिभिः ॥ छः। श्री ॥
( 429 )
सं० १४८० व० वैशाष वदि र कंठउतिया गोत्रेसा० कमसिंह पुत्र डालण तत्सु नाभ्यां स्त्रपूर्वज पूण्यार्थं श्रोतुंधु विवं कारितं प्रति० श्रीहेम हंस सूरिभिः ॥
( 450 )
सं० १४९१ वर्षे फागुण सुदि २ सोमे श्री श्री माल ज्ञा० अ० देवस सुसवाछा मा० जसमादे सुत रागा भीमा पीमाभिः भ्रातषेता तथा पित्रोः श्रेयसे श्रीवासुपूज्य विवं का०प्र० श्री पोपलगच्छे प्रो सोमचन्द्र सूरिप४ श्री उदयदेव सूरिभिः ।
( 31 )
सं० १५१९ वर्षे माघ सु० ४ रवी उपकेश ज्ञा० व्यव० गोष्ट सा० माडण मा० मोहणि पु० काल्हा मा० मालूरूपी सहितेन ॥ पित्रो श्रेयसे श्री नेमिनाय यिंवं कारितं प्रतिष्ठितं पूर्णिमापक्ष जयचंन्द्र सूरिप श्रीजयभद्र सूरिभिः ॥ : ॥
( 432 ) सं० १५२६ वर्षे माह व० ६ रयो उप० ज्ञातीय कठउड़ गोत्रे सा० बरसा मा० माल्ही प. रामा भाडा राजा चांदा मा. मरधू पु० जीवा समस्त कुटु वेन पित श्रेयर्थं श्रीचन्द्रप्रास्वामि विवं कारा० प्रति० श्री चैत्रावाल गच्छे १० श्री सोमकीर्ति सूरिभिः सद्रंछलिया नगरे।
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( १०५)
( 433 ) श्री मत्संवत १९७१ वर्षे वैशाष सुदि ३ नो प्रो आगरा वास्तव्योसवाल ज्ञातीय लोढा गोत्रे गाव-जा स० ऋषभदास भार्या रेषश्री तत्पुत्र श्री कुरपाठ सोनपाल संघाधिपे स्वानुवर दुनोचंदस्य पुण्यार्य उपकाराय श्री अंचलगम्छे पूज्य श्री ५ कल्याण सागर सूरिणामुपदेशेन श्री आदिनाथ विवं प्रतिष्ठापितं ।
( 434 )
सं० १८७७ मि० फा० शु० १३ श्री कुंथुनाथ जिन विवं दू० विसनचंदेन कोरितं प्रतिष्ठितं श्री जिनहर्ष सृरिमिः ॥
( 435 )
सं० १८९७ फा० शु० ५ श्रीपार्श्वनाथ वि० प्र० श्री पार्श्वनाथ कि० प्र० श्रीजिन महेन्द्र सूरिण्युपदेशेन कारिता। सेठ उदयचन्द धर्म पत्नी महाकुमारिभिदया। वाचनाचार्य श्री चारित्र नन्दन गणिभिर्देश---
( 436 )
सं० १८६७ फा० सु०५ श्री आदिनाथ विवं प्र० श्री जिनमहेन्द्र सूरिणा का. वोहरा नाथूराम पत्नी साहवां नाम्न्यात्म श्रेयसे वाचक चारित्र नन्दन गण्युपदेशतः॥
सेठधनसुखदासजी का मंदिर।
( 437 ) सं० १४६३ वर्षे माह वदि १ वुधे श्री श्रीमाल ज्ञातीय व्य० नरपाल मार्या नयणादे सुत देपाकेन श्रीपद्मप्रभ विवं कारितं प्रतिष्टितं । -- गच्छे श्रीगुणदेवसूरिभिः ॥
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(१०६)
( 438 ) सं० १५३३ वर्षे माह सुदि १३ सोमदिने बघेरवाल ज्ञाती राय भंडारी गोत्रे सा. सीहा मा. पूरी पुत्र ठाकुरसी भा. मह पुत्र आका आत्मपूजार्थं श्री आदिनाथ विवं करापितं श्रोसर्व सूरिभिः शुभं भवतु ॥
(439)
सं० १८७७ वै० सु० १५ श्रीपावविध प्र. जिन हर्ष सूरिना कारित। छजलानी चतुर्भुज पुच्या दीपो नाम्न्या चोरडिया मनुलाल वधू --
( 40 ) सं० १८८७ का० भु० ५ श्रीपार्श्वविवं प्र० श्रीजिन महेन्द्र मूरिणा का० । सकल श्रोसंधै।
देहलि बा दिल्ली सहर । यह भारतवर्षका एक प्राचीन स्थान है। कुरु पांडधके समयमें यही 'इंद्रप्रस्थ' था। हिन्दराजा पृथ्वीराजकी राजधानी थी। मुसलमानों के समयमें बहुत काल तक यह राजघानी रही। कुछ दिनसे अपने सरकार बहादुरने भी दिल्ली में भारतकी राजधानी स्थापनकी है और आज कल उन्नतिपर है, यहां से १ कोस पर आचार्य महाराज भोजिन कुशल सूरिजीका स्थान है जिस्को छोटे दादाजी कहते हैं और ७ कोसपर प्रसिद्ध कुतुब मिनारके पास बड़े दादाजीका स्थान है वहां कोई लेख नहीं है।
चेलपुरी का मंदिर। धातुयोंके मूर्तिपर
( 41 ) सं० ११६३ मार्गशिर सुदि १ ओ गागसादेव धम्मीयम्--( आगे अक्षर अस्पष्ट पढ़ा नहीं जाता)
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( १०७ )
( 442 )
सं० १५१६ वर्षे जे० व० ११ शुक्रे सोमसर वासि उकेश सा० मेहा भा० माल्हणदे पुत्र धान भा० सही प्रमुख कुदुम्बयुतेन श्री कुंथुनाथ विंषं कारितं प्रतिष्ठित - श्री कक्क सूरिभिः ॥ सचितीगोत्रे ॥
(443)
सं० १५२९ वर्षे माघ सुदि १२ बुधे छोढ़ा गोत्रे सा० हरिचन्द गोगा गोरा संताने साधु आसपाल पुत्रेण सं० तेजपालेन पुत्र परवत सांडादि युतेन भातृ पूनपाल पुण्यार्थं श्री पार्श्वनाथ विंवं कारितं प्रतिष्टितं तपागच्छे श्री हेमहंस सूरि पट्ट म० । श्री हेम समुद्र सूरिभि: ॥
( 444 )
संवत १५२१ व० माघ सु० १३ प्राग्वाट थे० कटाया भा० रांउं सुत धुना भा० हमकू सुत चांपाकेन भा० धर्मिणि नामाणिकादि कुटुंबयुतेन स्वश्रेयोर्थं नेमिनाथ विंवं कारितं प्रति० तपागच्छे श्री लक्ष्मी सागर सूरि श्री सोमदेव सूरिभिः अहमदावादे |
( 445 )
सं० १५३४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० दिने उकेश वंशे साधुशाखायां सा० पाचाभा० पाल्ह दे तोही सा० देपा भा० जयती पुत्र सा० पेताकेन तोल्ही पुत्र झांझां जाल्हा रूपा चांपा घरमा युतेन सा० पोपा पुण्यार्फ श्री मुनि सुव्रत का० प्र० खरतर गच्छे श्री जिन चंद्र सूरिभिः ।
(446)
सं० १५३६ माघ शुदि ५ दिने प्राग्वाट ज्ञाति सा० काजा झा० सारू पुत्र सा० हापा केन मा० नाई प्रमुख कुटुंवयुतेन श्री चन्द्रप्रभ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री तपागच्छे श्री ५ लक्ष्मी सागर सूरिभिः ।
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(१०८)
( 447 ) संवत १५६० वर्षे ज्येष्ठ वदि ४ दिने श्रीमाल वंशे सिंधुड़ गोत्र व. अभय राज भार्या आमलदे पुत्र चउ० ठकुरसीहेन भा० ठकुरादे पुत्र व. भारमल्ल प्रमुख परिवृतेन श्री आदि जिन विवं कारितं प्रतिष्ठतं श्रीखतर गच्छे श्री पूज्य श्री जिनहंस सूरिभिः।
( 448 )
सं० १५६६ वर्षे फागुण सुदि ३ सोमे ब्रह्माणीया गच्छे पहुरा हीरा भा. हीरादे पु. जीदा सोमा रूपा पुण्यार्थं श्री शांतिनाथ विवं का. प्रतिष्ठितं श्री गुणसुन्दर सूरिभिः अहिलाणी।
( 410 )
॥ श्री पार्श्वनाथ स. १६०५ फागुन सुदी दसमी घरवडिया गोत्रे गागपत्नी त्वरमिनी पुत्र षेतु लधु प्रनमल गुरु श्री जिन भद्र सूरि रुद्रपला गच्छे १० श्री भावतिलक सूरिभिः प्रतिष्ठितं श्री समेत सिषर।
( 450 ) सं० १६१२ वर्षे ज्येष्ठ सु० ११ शनी उकेशवं से----।
( 41 ) .. सं० १६६० वर्षे फागुण वदि ५ गुरुवासरे महाराजाधिराज महाराजा मानसिंघ
जी राजे श्री मूलसंघे आम्नाये बलात्कार गणे सरस्वती गच्छे कुंदकुंदाचार्यन्वये १० श्री बिई कीर्ति स्तदाम्नाय पंडेलयालान्वये पोस ॥ सं श्री होला मा० कोसिगदे पु० म० श्री कचराज भा० उमदे कोउमदे गुजरि पु० २ थातु दान स० श्रीरायत प्रा० रयणदे---पु. हरदास---भा० महिमादे लाड़मदे--।
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( १०९ )
( 452 )
सं० १६७७ मार्ग शु० - रवी श्रीमाल ज्ञातीय सा० तेजसी नाम्ना श्रीपार्श्व बिंबं का० प्र० तपा गच्छे श्री विजयदेव सूरिभिः ॥
( 453 )
सं० १६८१ व० [फा० शु० १० भ० चंद्रकीर्त्ति प्र० अग्रवाल ज्ञाती गोयल गोत्रे सा० नीमा भ० सरूपादे ।
( 454 )
नवपदजी पर ।
सुझावक
सं० १८५९ वर्षे कार्त्तिक मासे कृष्णपक्ष प्रतिपदा तिथौ गुरुवासरे पुन्य प्रभावक देव गुरुभक्ति कारक फतेबन्द भार्या विदामो तरपुत्र वस्तिरामजी ॥ श्रीमाल ज्ञाती ।
नवघरेका मन्दिर |
मूलनायक श्री सुमतिनाथजीके विंव पर ।
(455)
संवत १६८७ वर्षे ज्येष्ठ शुक्ला १३ गुरौ मेरुता नगर वास्तव्य दुहाड गोत्रे सं० जयराव भा० सोभागदे पु० सं० ओहणकेन श्रीसुमतिनाथ बिंव का० प्र० तपागच्छे भ० श्री विजयदेव सूरिभिः आचार्य श्री विजयसिंह सूरि परिवृत्तिः ।
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(११) सर्व धातुयोंके मूर्तियों पर।
(456) ओ। संवत १९६७ वैशाष सुदि ५ श्री चंद्रप्रभाचार्य गच्छे सतु श्री वि---।
( 457 ) संवत १२८० वर्षे ----सांडा प्रणमंति ।
( 45 )
सं० १३३१.०२ हल ---
।
459 )
सं० ११३३ आषाढ शु०--प्रा० लघु व्य० आसा मा० ललतदे-- श्री पार्श्वनाथ वि० का० श्री गुणभद्र सूरीणामुपदेशेन।
( 460 ) सं० ११४५ पौष शुदि १२ वुधे ऊ० अ० जोला मा० हीरी पुत्र लालाकेन श्री शांतिनाथ विवं कारापितं प्र० ज० गच्छे श्री सिद्ध सूरिभिः।
(461 )
सं० १४५१ वर्षे मोढा गोत्रे उ. ज्ञा० सा. पोपा मा० पाषी पुत्र लाषाकेन स्वपुत्र वीसल श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ विवं का० श्रीरुद्रपल्लीय गच्छ सृरिमिः प्रतिष्ठितं कीदेव सुन्दर सूरिभिः।
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( १११)
( 462 ) सं० १११ ००१०-सा---
(463)
सं० १९७१ माघ शुदि १० रवी प्राग्वाट ज्ञातीय पाः रामा मा.-- ठाकुर पित अयोधं श्री आदि नाय लक्ष्मी ---1
(464)
सं० ११७२ वर्षे फागुण सु० ६ शुक्रे ऊ• ज्ञा० सा तिहुणा मा० तिहणाांसारपु० चाहड़ भा० केल्हु पु० हापा मा० तेजू पु० करमोकेन पितृ--श्री पद्मप्रम वि० का० प्र० श्री संडेर गच्छे श्री श्री यशोभद्र सूरि सं० श्री शांति सूरिभिः॥
( 465 )
सं० १४७६ वर्षे माघ ०१ दिने सा. धरणा पुत्र संग्राम समरासिंघ श्रावकः श्री महावीर विंवं पुण्यार्थं कारित प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्र सूरिभिः॥
( 466 )
सं० १४८२ वर्षे माह सुदि ५ सोमे नाहर गोत्रे सा• छाडा पु० जयता भार्या साल्ही पत्र पोषाकेन पित्रो श्रेयोर्थ श्री पार्श्वनाथ वि.का.प्र. श्री धर्म घोष ग. श्रीधर्म घोष ठा० श्री मलयचन्द्र सूरि पह श्री--देव सूरिभिः।
(467)
सं. १४८२ वर्षे माघ सु०५ सोमे ऊ• ज्ञा० पालडेचा गोत्रे सा• टापर मा० तेजलदे १० अगड़ाकेन भा० सहितेन पित्रो स्वश्रेयः श्री वासुपूज्य वि. का. प्र. श्री सुविप्रा सूरिभिः श्री वीरभद्र सूरि सहितेन ॥
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( १९२)
( 468 ) सं० १४८३ फा०व० ११ ज. ज्ञा० टपगोत्रे व्यव० सपा मा० रूपाई पु. कालू पाचाभ्यां भ्रा० अदा भा० आल्हणदेविः श्री पद्मप्रभाव. का. प्र. श्री संडेर गच्छे श्री शांति सूरिमिः ॥
( 469 )
सं० १४८६ वै. शु०-प्राग्वाट सा० साजण भा० लाप पुत्र केल्हाकेन भा. लक्ष्मो धातु भीम पदमदि कु० यु० श्री धर्मनाथ विवं कारितं प्रति० तपा श्री सोमसुन्दर सूरिभिः श्री-५॥
( 470 )
सं० १४८६ वर्षे जेष्ठ सु० १३ सोमे श्री दूगड़ गोत्रे सं० सिवराज मार्या सीधरही पुत्र सा० मोहिल धण राजाभ्यां पितुः श्रेयसे श्रीअजितनाथ वि० का० प्र० वृहडा० श्री मुनिश्वर सूरि पहे श्रीरत्नप्रमसूरिभिः ।
( 471 ) सं० १४८६ ० फा०व०२ उपकेश ज्ञातौ आदित्य माग गोत्रे सा० देसल मा० देसलदे पु. धमी मा० सुहगदे युतेन स्व० श्री आदिनाथ विवं का० उपकेश ग० ककुदाचार्य सं• प्रति० श्री कक्क सूरिभिः ।
( 472 )
" सं०१५०४ वर्ष आ० सु०६ श्री मूलसंघे भ० श्री जिनचंद्र देवाः जैसवालान्वये सा० उर मार्या रैनसिरि तत्पुत्र सोनिग भार्या षेमा प्रणमति ।
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( १९३)
(423)
सं० १५०७ वर्षे ज्येष्ठ सु. २ दिने उकेश वंशे नाहटागोत्रे सा० जयता भार्या जयतलदे तत्पुत्र सा. संगरेण पुत्र सलषा अजादि परिवार युतेन श्री सुमतिनाथ वि. का. प्र. श्री जिन भद्र सूरिभिः खरतर गच्छे ।
( 474 ) सं० १५०७ वर्षे माघ सु० १३ शके अवाणागोत्रे उदा भार्या लावि प. देवराजेन स्व पुण्यार्य श्री वासुपूज्य वि. का. प्र० श्री धर्मघोष गच्छे श्रो पदमसिंह सूरिभिः ।
(475) सं० १५०७ वर्षे वै० व०५ दिने अकेश ज्ञातीय सा० चापा मा० चापलदे सुत गंगच केन मा० वापू सु० चांईयादि कुटुम्बयुतेन श्री पार्श्वनाथ विं० का० प्र० तपगच्छेश श्री जयचन्द्र सूरि शिष्य श्री उदयनंदि सूरिभिः । कायषा ग्राम ।
( 476 ) सं० १५०७ वष वैशाष वदि गुरी श्री श्रीमाल ज्ञातीय अ० वोडा भा० कुतिकदे तयोः सुताः श्रे० भार्या समरानायक पांचा एतेषां मध्ये २० भादा भा० फवकूकेन आत्म श्रेयो) श्री मुनिसुव्रत स्वामि विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री आगम गच्छे श्री शीलरत्न सूरिभिः गोलोषा वास्तव्यः।
( 477 ) सं० १५०७ वर्षे फा० सु०-सं० हमा पोयपुत्र सा. सारंग मार्या मचकु पुत्र नाथा माडादि कुटुम्ब युतेन श्री सुपार्व का. तपा श्री सोम सुन्दर सूरि शिष्य श्री रत्नशेषर सूरिभिः।
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( १११)
(478 )
संवत १५२ वर्षे फा० शु० १२ दिने लोढा गोत्रे स० पासदत्त मार्या अपूदे तत्पुत्र सा. कमलाकेन पुत्र जावा गोरादि परियुतेन भेयसे पुण्यार्य श्री अभिनन्दन कारित श्रो खरतर गच्छे श्रोजिनराज सूरि प? श्री जिनभद्र सूरिभिः ॥ श्री ॥
( 479 ) सं० १५१३ वर्षे फा० बदि १२ अ. ज्ञा० सोघिलगो. रणसीपु० गहणा पु० वील्हा मा० जसपी पु० सादाकेन मा० चांदासहितेन पित पुण्यार्य श्रीकुंथुनाथ वि० का०प्र० श्री संडे. गच्छे श्री यशोभद्र मूरि संताने श्री श्री ५ शांति सूरोणां पह श्री ईश्वर गरिभिः सुभं भूयाः।
( 480 )
सं० १५१५ वर्षे माघ सु० ११ दिने ऊ. वं० जांगड़ा गोत्रे सा. काल्हा भार्या कवकू सुत सा. रुपाकेन सपरिवारेण श्री सम्भवनाथ विवं कारितं प्रतिष्टितं श्री ष. ग. श्री जिन सागर सूरि पट्टे श्री जिन सुन्दर सूरिभिः ॥
(481)
सं० १५१५ व० मा० सु. १ शुक्रे श्री श्रीमाल ज्ञा० ० गूगा भार्या लालू पुत्र जीवण केन पितृ मातृ निमित्तं आरमश्रेय्ये) श्री धर्मनाथ वि०प्र० श्री नागेंद्र गच्छे श्री विनय प्रभ सूरिभिः काकरवास्तव्य।
(482 )
सं० १५१६ वर्षे वैशा० शु० १३ हस्तार्क दिने महतिआण सा. सुरपति मा. त्रिलोकादे पुज्या सा० ग्यान भगिन्या सा० चाचिंग मार्या नारंगदेव्या श्री अजित विवं का. प्र. श्री खरतर गच्छे श्री जिन सागरसूरिपर्ट श्री जिनसुन्दर सूरिमिः ॥ श्री।
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(११५)
( 483 )
सं० १५१७ वै. शु०८ प्रा० सा० देपाल सु० हउसी करणा AT चन्हडा धर्मा कर्मा हासा काला भ्रातृ हीराकेन मा. हीरादे सुत अदा बरा लाजादि कुटवयुतेन श्री शांतिनाथ विवं का० प्र० तपा श्री सोमदेव सूरि शिष्य श्री रत्न शेषर सूरि शिष्य श्री लक्ष्मी सागर सूरिभिः ॥ कमल मेरू।
( 484 )
सं० १५२५ बरे मा० शु० ६ सोणुरा बासि प्रा. सा. राजा भास्या पूरि ए. तीपाकेन मा० राल पत्र सधारण हीरायतेन श्री पद्मप्रतवं स्वश्रेयसे का० प्र० तपा श्री सोम सुन्दर सूरि शिष्य श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिः ॥
(
465 )
सं० १५३० फा० शु०२ गोखरू गोत्रे सा० पासवीर भा० कुडी नाम्न्या पुत्र साधारण पुत्र देवा सश--युत श्री मुनि सुव्रत स्वामि विवं का० प्र० तपा गच्छनायक श्री लक्ष्मी सागर सूरिभिः ॥ वहादुर पुरे॥
( 486 )
सं० १५३५ वैशाष सुदि ५ गुरौ ---सिवो पुत्र काला सिरिपुत्र--
( 487 )
सं० १५३५ श्री मूलसंघे भ० श्री भुवन कीर्ति स्र० स० श्रीज्ञान भूषण गुरूपदेशात् । सः तसी भा० मः।
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( ११६ )
( 488 )
सं० १५३६ वर्षे फा० सुदि ३ दिने उकेश धंशे भेष्ठि गोत्रे श्री कीहट मार्या लषी पुत्र देवण मांडण धर्मा पायकैः • देवण भार्या दाडिमदे सुत सभरादि परिवार युतैः श्री धर्मनाथ विवं प्र० श्री खरतर गच्छे श्री जिन भद्रसूरि पट्टालंकार श्री जिन चंद्र सूरिभिः।
( 489 )
सं० १५३७ वर्षे वै० शु० १० सोमे उमापुरवासि उ० व्य० महिराज मा०माणिकदे सु० श्रीपाल सहिजाभ्यां भा० सुहवदे। अदादि कुटुंषयुताभ्यां श्री वासुपूज्य वि. का. प्र. श्री लक्ष्मी सागर मूरिभिः।
(490)
सं० १५४५ वर्षे वैशाष वदि जडिया गोत्रे स० नासण पु० स० पिमधर नोका पोमा पागा पहिराज आढू लाल्ला लेषसी पितरनिमित्त श्री शांतिनाथ विवं कारापितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे भहारक श्री सोम रतन सूरिभिः ॥
(491)
सं० १५४८ ज्ये० वदि ६ बुध १० श्री हेमचन्द्राम्नाये स० नगराज पु० दामू मा० स० हंसराज हापु---।
( 492) संवत १५१ वर्षे वै० सुदि १ रयो उपकेश ज्ञातीय नाहर गोत्रे सा० लाषा भार्या सोहिषी पु० चांपा आय पौत्र पुत्र पीतादि सहितेन आरमपुण्यार्थं श्री धर्मनाथ विव का० श्री धर्मनाथ विवं का० श्री धर्मघोष गच्छे प्र० श्री पुण्यवर्द्धन सूरिभिः ।
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( 493 ) संवत १५५३ वर्षे सिवनाग्राम वास्तव्य भीमाल ज्ञातीय वटा गोत्रे सा० जयत कर्ण सुत सा. जिणदच पुत्र सो० सोनपाल सुप्रावकेण मा. गउराई लघु धात रत्नपाल पृथ्वीमल्ल सस्रो केण श्री शांतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीखरतर गच्छे श्री जिन चंद्र सूरि पह श्री जिन समुद्र सूरिभिः॥
( 494 )
सं० १५५३ व० आ० सु०२ रवी श्री श्रीमाली ज्ञातीय सा० सीधर मा० सोही सुत सा. जूठा सा. संधा सा० भ-इ सा. पावाकै सा. जावड वचनेन श्री पार्श्वनाथ विवं का० प्र० मलधार गच्छे श्री सूरिभिः। सर्वेषां पूजनार्थ ॥
( 495 )
•
सं० १५५६ वैशाषवदि १३ श्री मूलसघे पंडेलवाल सा० देवा पुत्र परवत नित्यं प्रणमति गोधा गोत्र।
( 496 )
सं० १५५६ व० पोस बदि ४ दिने गुरी प्राग्वाट ज्ञातीय सा० राजा मा० राजलदे पु. पोमा RT० झमकू सु० श्रेयो) श्री वासपूज्य विवं का. प्र. महाहडीय गच्छे प्रतिष्ठितं श्रीमति सुन्दर सृरिभिः दधालीया वास्तव्यः ।
( 497 ) सं० १५६२ ३० वै० सु० १० रवी श्री उकेश ज्ञाती श्री आदित्यनाग पौत्रे चोरवेडिया पाषायां व डालण पु० रनपालेन स० श्रोवत व० घघुमल्ल युतेन मात पित श्री. श्री संभवनाथ वि. का. प्र. श्री उकेश गच्छे हकदाचार्य श्री देव गुप्तसूरिभिः॥
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( ११८)
( 498 )
सं० १५६२ वर्ष वैशाष शु० १३ बुधे श्री श्री मालीज्ञातीय सा० पूजा भात्र मूजा मा. विमलाई श्री मुनि सुब्रत स्वामि विवं कारापितं-श्री साधुसुन्दर सूरि प्रतिष्टितं ॥ श्री लषराज श्री अभयराज ॥
(499)
सं० १५६८ वर्षे माह सुदि १ दिने उकेशवंशे नाहटा गोत्रे सा० राजा भा० अपू पु० सा. पीम भार्या रत्त पु० भोपाल नाथभ्यां मातृ पुण्यार्थं श्री चंद्रप्रभ विवं का. प्र. श्री खरतर गच्छे श्रीजिन हंस सूरिभिः ॥
(500)
सं० १५७४ वर्षे माह सु० १३ शनी उ४ वं० पमार गोत्रे स० वक्रामा वुलदे प० सा० पतोला श्री अंचल गच्छेश आव सागर सूरीणामुपदेशेन ।
सं० १५९८ वर्षे वै० सु० ५ गुरौ श्री रुद्र पल्लीय गच्छे न० श्री गुण सुन्दर सूरि शिष्य उ० श्री गुणप्रम -- श्री आदि नाथ विवं का. प्रतिष्ठितं ।
(502 )
सं० १६०८ वर्षे वैशाख स०३ सोम श्री मलसंघे सरस्वती गच्छे अ० श्री ज्ञान अषण देवा स्तत्पदे न० श्री विजय कीर्ति देवास्तत्पहे महारक श्री शुभचंद्रोपदेशात् हूंवड़ ज्ञातीय गंगागोत्रे। सं। धारा। भार्या सं॥ धारु सुत सं० डाईआ भार्या सिरिक्षमणि । सुतसा० श्री पाल श्री शांतिनाथ विवं कारापितं नित्यं प्रणमंति ॥
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( ११९ )
( 503 )
सं. १९१० सिंघुड़ ता. गोपी भार्या विमला सुत घणराजेन कारितं ।
(504 )
सं० १६१३ वर्षे फाल्गुन सु. ११ गुरु प्रा. ज्ञा० से विधोगा भार्या वाई पूराई सुत देवचन्द भार्या वाई हासी सुत रायचन्द मीमा श्री शीतलनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं वृहत्तपा गच्छे श्री विजयदान सूरि तत्प? श्रीहीर विजय सूरि आचार्य श्री विजयसेन सूरि श्री पत्तन वास्तव्यः।
( 505)
"सं० १७०० फा० सु. १२ श्री मूल स. स्वर० गच्छे व० ग० श्री कुंदकुंदाचार्यान्वये सं. सांवल । साकार-साहमल अ-जा। गा---
( 506 )
सं० १७०१ व० मार्ग व० ११ दिने श्रीमाल ज्ञाती वाई गूजरदे सुत स० हीराणंद मा. सबरंगदे श्री पद्मप्रभ विका० प्रतिः तपागच्छे श्री विजयसिंह सूरिभिः आगरा वा.
चीरेखानेका मन्दिर ।
( 507 ) सं० १४६ वर्षे पोसवदि १० गुरौ श्री हुँबड़जातीय श्रे० उदवसीह भार्या वईराऊ तयोः । पुत्र तथा दोहीदासुत दोगा--पत्नी वई चमक नाम्न्या आरम मेयसे अजितनाथ -- विवं कारापितं श्रीवृहत्तपा पक्ष श्रीरत्न सिंह--।
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( १२० )
(508 )
सं० १४९२ वैशाख सुदि २-- ओसवाल ज्ञातिय भूरि गोत्रे -- श्रीश्रेयांस विंवं का. प्र० श्री धर्मघोष गच्छे श्री श्री महेन्द्र सूरि प्र० --।
(509 )
... सं० १५०९ माघ सदि ५ श्री केश वंशे चोपड़ा गोत्रे सा० ठाकुरसी सुत सा. कालू केन पुत्र मेघा माला नाल्हा पौत्र सुरजन प्र. परिवारेण स्वयोर्य श्री विमल विवंका. श्रो खरतर गच्छे श्री जिनभद्र सूरिभिः प्रतिष्ठितं ।
(510)
'सम्बत् १५१७ वर्षे फाल्गुण सुदि ६ गुरौ श्री श्री माल ज्ञातीय मंत्रि पोपा भार्या पाल्हणदे सुन मणयाकेन मार्या सोहासिणि सुत उधरण प्रमुख कुटुंब सहितेन मातृ पित अयोथै आत्म अयोर्थं च श्री संभव नाथ चविंशति पहजीवत स्वामी नागेन्द्र गच्छे श्री गुण समुद्र सूररुपदेशेन आचार्य श्री गुणदेव सूरिभिः प्रतिष्ठितं च चिमणीया वास्तव्यः । श्री।
(bll )
सं० १५-५ फा० वदि ( सोमे प्रा. ज्ञा० -- सा० घेरा भा० पूजी पुत्र पूना भा० ललतु पुत्र तोला पु० कर्मसिंह श्री संभव नाथ विंवं कारितं प्र० श्रीसर्व सूरिभिः ॥
(51:2 )
सं० १६०५ फागुण सुदि दशमि समेत सिखरे प्रतिष्ठितं मागपत्नी त्वरमिनी पुत्र षवू लघु एनमल गुरु श्रीजिन भद्र सूरि --
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( १२१ )
( 13 )
सं०.१६६३ वर्षे ज्ये० ३०.८ श्रो-धर्मनाथ विवं प्रति०-।
( 514 ) सं० १७०३ वर्षे ज्ये. १०७ शुक्रे श्री आसवाई नाम्न्या श्री पार्श्व वि० का. प्र. तप० ग. श्री विजय देव सूरिभिः ।
(515)
1 सं०.१७२५ वर्षे मार्गसिर सुदि ५ रवी श्री मालदास मार्या --पार्श्व वि० कारापित ।
(, 516 )
सं० १८५२ पोस सु० ४ दिने वृहस्पति वासरे श्री सि. च० यं० मिदं प्र. लालचन्द गणिना कारितं जैनगर वास्तव्य श्री माल रत्नचंद टोडरमल्लेन अयो) ।
लाला हजारीमलजी का घर देरासर ।
( 517 )
सं० १२१४ आषाढ़ सुदि २ श्री देवसेन संघे स०. रामचन्द्र भार्या मना-।
( 518 ) सं० १३०७ वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ गुरौ --- सुहब मा० ---।
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________________
( १२२ )
( 519 )
ॐ संवत १३५० वर्षे ज्येष्ठ वदि ५ श्रीषंढेर गच्छे श्री यशोभद्रसूरि संताने । अ० जगधर भार्या जमति पुत्र झांझण अरि सिंह लघुभ्राता अरिसिंहेन ज्येष्ठ भ्रातृ कांकण श्रेयसे श्री अजितनाथ विंवं कारितं । प्र० श्री सुमति सारिभिः ॥
( 520 )
सं० १४६९ माघ सु० ६ सागरदास भार्या नालू --
( 521 )
संत १४८३ वर्षे श्री श्रीमाल ज्ञातीय बहरा घड़ला भार्या ललता देवि साविलीदास हीराकेन भार्या हीरा देवि स० संघ श्रेयसे श्री शांतिनाथ विंवं कारित प्रतिष्ठितं । नागेंद्र गच्छे श्री रत्नप्रभ सूरि पट्ट े श्री संह दत सूरिभिः शुभं भवतु ।
1
( 522 )
सं० १४८९ वर्षे माघ वदि ११ बुध श्री देवीसिंग संघवी भे० कावा भार्या विजीपरनागढ प्रणमति ।
1
( 523 )
सं १६६१ ० ० वदि ११ शु० सा० वदी या कारितं श्रोपावं विंवं प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे। श्री जिनचंद्र सूरिभिः ॥
( 524 )
संवत १५६६ वर्षे ज्येष्ट सुदि ७ श्री माल ज्ञातीय सिंधुङ गोत्रे सा० घीरहरण पु० सा० छेयतन श्री श्रेयांसनाथ विंवं कारितं प्र० श्रीजिनचंद्र सूरिभिः ।
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________________
( १२३)
( 528 )
- सं. १८३५ वर्षे माघ कृष्ण पंचमी भूगो अहमदावाद वास्तव्य ओसवाल ज्ञातीय वृद्ध शाषायां सा० हठी संघ केशरी संघ भार्या वाई रुकमिणि स्वोर्थं श्री शांतिनाथ विव कारापितं हारक श्रीशांति सागर सूर्सिभः प्रतिष्ठितं सागर गच्छे तपा वीरुटे।
छोटे दादाजी का मन्दिर।
( 527 )
संवत १८७१ वर्षे वैशाष शुक्ल पक्ष तिथो ८ बुधे महारक श्रोजिन कुगल सूरि पादुका कारिता श्री स्याहजानावाद नगर वास्तव्य श्री संघेन प्रतिष्टितं च बृहदहारक खरतर गच्छीय श्रीजिनचंद्र सूरिभिः स्त्रयोओ मद्वादस्याह अकवर स्याह विजय राज्ये शुभं भूयात् ॥ संवत् १९०८ मिती चैत्र शुदि १२ सूर्य्यवारे श्रीजिन नंदि वर्द्धन सूरिभिः विजय सधर्म राज्ये श्री दिल्लि नगर वास्तव्य सकल श्रीसंघेन जीर्णोधार पूर्वकं कारापितं पूज्या राधकानां मङ्गलमाला वृद्धितरां यायात् ॥ श्रीमान्माणिक्य सूरि शाखायां पाठक मति कुमार सच्छिष्य हर्ष चंदोपदेशात् ॥
(
25 )
॥ संवत १९२८ वर्षे वैसाष मास शुक्ल पक्ष ३श्रीमाल ज्ञातीय धीधीद गोत्रे वखतावर सिंघकस्य भार्या महसाव बोवी श्री शांतिनाथ वि० प्र० करापितं प्रतिष्ठितं वहत् खरतर गच्छे श्रीजिन श्रीकल्याण सू०।
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________________
( १२४)
( 529 ) श्री सं० १९७२ मिः माघ शुक्ल : शनिवासरे रंग विजय खरतर गच्छीय जं. यु. प्र. म० श्रोजिन कल्याण सूरि चरण पादुका कारापितं । इंद्रप्रस्थ नगर वास्तव्य समस्त श्री संघेन प्रतिष्ठितं जं य० प्र० ० . रंग विजय खरतर गच्छीय श्रोजनचंद्र सूरि पदा श्रिते १० श्रीजिनरत्न सूरिभिः पूज्याराधकानां मंगल मासा वृद्धितरां यायात् ओ संघस्य शुभं भूयात् ॥ श्री॥
अजमेर।
यह भी प्राचीन नगर है। मुसल्मानोंके पूर्व में यहां श्री खरतर गच्छनायक महा प्रभाविक श्री जिनदत्त सूरि संवत् १२११ आषाड़ ११ देवलोक हुऐ।
श्री गाडी पार्श्वनाथका मंदिर। पंचतीर्थीयों पर।
( 530 ) संवत् १२४२ आषाढ़ वदि-गुरी श्री यश सूरि गच्छे श्रे० नागड सुत आसिग तत्पुत्र राल्हण थिरदेव मातृ सूहपादि पुत्रैः आसग श्रेयोर्थ पार्श्वनाथ विवं कारापिता ।
( 531 )
संवत् १४८५ वर्षे ज्येष्ठ सु० १३ उप. ज्ञातीय तातहड़ गोत्र सा. वीकम भा. देवल दे पुत्र रेडा मा. हीमादे पुत्र सुहड़ा भा० सुहडादे पु० संसारचंद । सामंत सोभा स० श्री सुमतिनाथ वि० श्री उपकेश गच्छे ककुदाचार्य स० श्री सिंह सूरिभिः ।
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________________
(१२५)
( 532 )
सं० १५०७ वर्षे वैशाष वदि ३ गुरौ श्री श्री माल ज्ञातीय श्रे० चांपामा चापलदे तयो सुता व्यघा वीघा विरा भार्या षीमा पूना भगिनी हरष एतेषां मध्ये पूनाकेन स्वमात पितृ श्रेयसे श्री संभवनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री मूरिभिः अष्टार वास्तव्यः ।
(533 ) सं० १५१३ वै० सु०२ सोमे उसवाल ज्ञातीय छाजहड गोत्रे माघाहरू पु० रानपाल भा० कपूरी पुत्र-हारलण भा० सारतादे माता डासाडा सहितेन श्री शीतलनाथ वि. प्र० श्री पल्लि गच्छे श्री यश सूरि।
( 534)
सं० १५१५ वर्षे फागुन सु. ६ रवी ऊ० आईचणा गोत्रेसा० समदा भा० सवाही पुत्र दसूरकेन आत्मश्रेयसे सितलनाथ वि० का०-प्रति० श्री कक्क सूरिभिः ॥
(
35 )
सं० १५२१ वर्षे ज्ये. शु. प्राग्वाट सा. जयपाल भा. वासू पुत्र्या सा• हीरा भा. हीरादे पुत्र सा० माउण भार्या रंगू नामा श्रेयसे श्री सुमतिनाथ विवं का० प्र० तपापक्ष श्री रत्न शेषर पहें श्री लक्ष्मी सागर सूरिभिः ।
( 536 ) सं० १५२१ वर्षे ज्येष्ठ सु. १३ गुगै श्री राजपुर वास्तव्य श्री श्री मालज्ञातीय श्रे० सारंग भार्या मवकू सुत लाईयाकेन मा० होरू सुत गाईया गुदा प्रमुख कुटुम्बयुतेन भार्या श्रेयसे श्री संसवनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं बृहसपा श्री उदय बल्लभ सूरिमिः ॥
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( १२६ )
( 537 )
संवत १५२५ वर्ष चैत्र वदि शनौ प्राग्वाट ज्ञातीय अ० सोमा भा० सूहूला सुत सिवा भार्या सोनागिणि सुत पद्मा भार्या पहती श्री सुविधिनाथ विंवं का• सद्गुरुप देशेन विधिना प्र० विंवं --
|----छ॥
( 538 )
सं० १५२७ वर्षे पोष बदि १ श्री० प्राग्वाट ज्ञा० म० हेमादे सु० बईजा स्वसाकला नाम्न्या श्री नेमिनाथ विंवं कारितं प्र० वृद्ध तपापक्ष भ० श्री जिन रत्न सूरिभिः ।
( 539 )
सं० १५२८ माह व० ५ बुधे श्री ओस वंशे धनेरीया गोत्रे साह भाड़ पुत्र वीका मार्या बल्हणदे पुत्रैः साह कोहा केल्हा मोकलारूपैः स्वश्रेयसे श्रीधर्मनाथ विंवं का० श्री पल्लिवाल गच्छे श्री नन्न सूरिभिः प्र० ।
( 540 )
सं० १५७० वर्षे माघ वदि १३ बुधे श्री पत्तन वास्तव्य मोढ़ ज्ञातीय ठ० भोजा भार्या वाली सुत • ८० रत्नाकेन भार्या रूपाई सुत ठ० जसायुतेन श्री आदिनाथ विंवं कारितं स्त्र श्रेयोर्थ श्रीवृद्भुतपा पक्ष े श्री रत्न सूरि संताने श्री उदय सूरिः ॥ श्रलक्ष्मी सागर सूरीणा पट्ट प्रतिष्ठितं श्री धन रत्न सूरिभिः श्री रस्तु ।
(541)
सं० १६०३ वर्ष आषाड वदि ४ गुरौ भिन्नमाल वास्तव्य म० देवसी भा० दाडिमदे पुत्र मानसिंघ भा० घेतसी युतेन स्वन यसे श्री वासुपूज्य विं० का० प्र० तपगच्छे भ० श्री ५ श्री विजयदेव सूरिभिः ।
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( १२७ )
( 542 )
सं० १६८३ वर्षे आषाढ़ वदि ? गु० उसवाल ज्ञातीय वेद महता गोत्रे म० प्रयरव भा० भरमादे पुत्र मे० सुरताणाख्येन श्री सुविधिनाथ विंवं का० प्र० तपा गच्छे भ० श्री विजयदेव सूरिभिः ॥
( 543 )
संवत १६८० वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ गुरौ मेडता नागर वास्तव्य उसभ गोत्र को० जयता भार्या जसदे पुत्र को० ० दीपा धनाकेन श्रीपार्श्व वि० का० प्र० तपा गच्छे भ० श्री विजय देव सूरिभिः स्वपद स्थापित श्री विजयधर्म
- सू --
श्री संभवनाथजी का मन्दिर ।
( 544 )
सं० १२९० माह सुदि ९० ० घन्नल सुत्त जैमल क्षेपोर्थं -- कारितः ॥
(545)
सं० १३७९ वर्षे वै० वदि ५ गुरौ प्राग्वाट ज्ञातीय महं कंधा भार्या --- पुत्र माहह श्री शांतिनाथ वि० का० प्र० श्री महेंद्र सूरिभिः ।
(546)
सं० १४५१ माघ शु० १० प्राग्वाट सुंदर सूरिभिः ।
1
स्व श्रेयसे पद्मप्रभ विंवं का० श्री सोम
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(१८) (57)
सं. ११५१ वर्षे वैशाष सु० ३ रवी रहूगली' (?) गोत्रे सा० वीजल भार्या विजय श्री पु. रावा----अयोधैं श्री अजितनाथ वि. म. श्री धम---श्रीपद्म शेषर सरिभिः।
सं० ११८५ वर्षे माघ सुदि १४ बुधे लिगा गोत्रे सा० माला सागू युतेन सा. जील्हा केन निज पित्रोः अयो) श्री समतिनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं तपा गच्छे श्री हेम हंस सूरिभिः ।
(
42 )
॥ॐn सं० १९८६ वर्षे माघ सु. ११ शनी श्री पंडेरकीय गच्छे उपकेश ज्ञा० गूगलीया गोत्रे सा. महूण पु० षोना पु. नेमा ए० ननाकेन भा० लषी पु० करमा नाल्हा सहितेन स्वयसे श्रीमुनि सुव्रत विवं का. प्रतिष्ठितं श्री शांति सृरिभिः शुभं भूयात् ॥श्री॥
(550) सं० ११८८ वर्षे पोष स०३ शनी उकेश ज्ञातौ तीवट गोत्रे वेसटान्वये सा. दाद भा० अणुपदे पु० सचवीर भा० सेत्त पु. देवा श्री वताभ्यां पित्रो श्रेयसे श्री विमलनाथ विवं का. प्र. श्री उकेश गच्छे ककदाचार्य स्ताने श्री सिद्ध सूरिभिः ।
( 51 )
/ सं० ११६. वै० सु० शनी श्री मूलसंघे नंदिसंघे वलात्कार गणे सरस्वती गच्छे श्री कुंद कुंदाचार्यान्वये भहारक भी पद्मनंदि देवाः सत्पह श्री सकल कीर्ति देवाः । उत्तरे
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( १२६ ) प्रख्योभि (2) हं. ज्ञातीय व आसपाल भा० जाणी सु० आजाकेन मा० मघूसुतविरुमा भात वीजा मा वान सुत समघरादि कुटुंव युतेन श्रीपद्म प्रम चतुर्विशति पहः कारितः तंच सदा प्रणमति सुकुटुंबः।
( 552 )
सं० १९८२ वर्षे मार्गशिर वदी । गुरुवारे श्री उपकेश वंशे लूसड गोत्रे सा. देव राज भार्या हेमश्रिया पुत्र सा० वाहडेन आरमा कुटुंव श्रेयो) श्री विमलनाथ विवं कारापिरं प्रतिष्ठितं श्रीधर्म घोष गच्छे १० श्रीपद्मशेखर सूरिभिः ।
(563 )
सं० ११६६ माघ सु० ५ प्राग्वाट व्य० धीरा धीरलदे पुध्या व्य. भीमा भावल दे सतव्य. वेला पत्नया वीरणि नाम्न्या श्रीसंभव विवं का. प्र. तपा श्री सोम संदर सूरिमिः ॥श्री॥
(554 )
सं० १५१६ वर्षे वैशाष वदि १२ शुक्रे श्री श्रीमाल ज्ञातीय पित सं० रामा मातृ शाणी अयोर्थ सत सागाकेन श्रीश्री अभिनंदन नाथ विवं कारितं श्री पूर्णिमा पक्ष श्री साधुरत्न सूरिणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं विधिना श्री संघेन गोरईया वास्तव्य ॥
(555)
॥ १५१६ आषाड़ सु. ५ ओष्ठे गोत्रे सीवा भार्या रूपा पु० तोल्हा तेजा ----- पद्मावति प्रणमंति।
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________________
(१३० )
( 556 )
सं० १५१७ वर्षे फागुन सुदि २ उकेश वंशे बुहरा गोत्रे सा० सोढा मा० शाणी पु० नगाकन मा० नायक दे पुत्र नापा गोपा प्र० परिवार सहितेन स्वपित सा. सोढा पुण्यार्थं श्री श्रेयांस विवं का. श्री खरतर गच्छे श्री जिन भद्र सूरि पह श्री जिनचंद्र सूरिभिः प्रतिष्ठितं ।
(
7 )
सं० १५१७ वर्षे माघ सु०५ शके प्राग्वाट ज्ञा० श्री. डउढा भा० हरष सु•• नागा भा० आजी सुत श्रे. जिनदासेन स्व श्रेयसे श्रीधर्मनाथ विवं आगम मच्छे श्रीदेवरत्न सूरि गुरूपदेशेन कारितं प्रतिष्टित।
(568)
२० १५१९ वर्षे ज्येष्ठ वदि ११ शुक्रे उपकेश ज्ञातीय चोरवेडिया गोत्रे उएस गच्छे सा० सोमा मा० धनाई पु. साधू सुहागढे सुत ईसा सहितेन स्वयसे श्री सुमति माथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीकव सरिभिः ॥ सीणोरा वास्तव्यः ।
(
)
सं १५२० वर्षे वै. शुदि ५ भीमे श्री ज्ञातीय श्री पल्हयउ गोत्रे सा० भीपात्मज सा० घेल्हा सत्पुत्र सा० सांगा---प्रभृतिभिः स्वपितृ पुण्यार्थं श्री आदिनाथ विवं कारितं । वृहद्गच्छे श्रीरत्नप्रभ सूरि पहें प्रतिष्ठितं श्री महेंद्र मूरिभिः ।
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________________
( १३१ )
( 560 )
--
सं० १५२४ आषाढ़ शु० १० शुक्रे उकेश वंशे- - भा० संपूरा पु० जेसाकेन भा० धर्मिणि पु० माईआ पोत्र इसा बीसालादि कुटुंब युतेन पु० माइया श्रेयसे श्री नमि बिंव का० प्र. तपा श्री सोमसुंदर सूरि संतान श्रीलक्ष्मी सागर सूरिभिः ।
(561)
सं० १५३२ वर्षे चैत्र बदि २ गुरौ श्री श्रीमाल ज्ञा० सं० जोगा मा० जीवाणि स० गोलाभा• कर्मी पु० नरबदेन श्री श्रेयांसनाथ विंषं कारितं श्रो पूर्णिमा पक्षीय श्री साधु सुंदर सूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठितं विधिना वलहरा ।
(562)
सं० १९५३५ वर्ष फागुण सुदि ३ दिने श्रो उकेशवंश भ० गोत्रे सा० नीवा भार्या पूजी सा० पूना श्रावण भातृ सजेहण मा० अंबा परिवार युतेन श्री संभवनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठित श्री खरतर गच्छे श्रीजिन भद्र सूरि पह श्री जिनचंद्र सूरिभिः ॥
(563)
संवत १५४७ वर्षे मा० वदि ६ दिने प्राग्वाट ज्ञातीय व्य० रूपा भा० देपू पुः मेरा मा० हीरू श्रेयोर्थं श्री वासुपूज्य विंवं प्रतिष्ठितं श्री सूरिभिः ।
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(१२)
( 564 )
॥ संवत १५५७ वर्षे वैशाष सुदि ३ दिने मंगलवासरे उ० ज्ञातीय उछाच गोत्र मा० पीमा पु० जाल नारिगदे अगस---श्रेयोथं श्रीशांतिनाथ विवं का. प्र. श्रीसंडेरग गच्छे श्रोशांति सूरिभिः तत्प-श्रीर-सूरिभिः ।
( 565 )
सं० १५५६ (?) वर्षे आषाड सु० १० सूराणा गोत्रे स० शिवराज भा० सोतादे पुत्र स० हेमराज भार्या हेमसिरी पु० पूजा काजा नरदेव श्री पार्श्वनाथ विवं कारितं प्र. श्रीधर्म घोष गच्छे अ० श्रीपद्मानंद सूरि प नंदिवर्द्धन सूरिमिः ।
( 566 )
सं० १५५८ वर्षे आपाढ सुदि १० आईचणाग गोत्रे तेजाणी शाषायां सा० सुरजन मा० सूहवदे पु० तहस मल्लेन भा० शीतादे पु० पाडा ठाकुर भा० द्रोपदी पौ० कसा पीघा प्रोवंत युतेनात्मपुण्यार्थं श्रीसुमतिनाथ विवं कारितं प्र. श्रीउपकेरागच्छे H० श्रोदेवगुप्त सूरिभिः ॥ श्रीः ॥
( 567 )
सं० १५६७ वर्षे श्री माह सुदि ५ बुधे गोठि गोत्रे सा० - - - तत्पु० पहराज तत्पुत्र राठा--- त्यादि परिवार युतेन सुविधि नाथ विवं का. प्र. खरतरगच्छे श्रीजनचन्द्र सूरिभिः।
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________________
( १३३ )
( 568 )
संवत १५७९ वर्षे आषाढ़ सुदि १३ दिने धिवारे श्री फसला गोत्रे मं० सधारण पुत्र रत्न मं० माणिक भार्या माणिकदे पुत्र मूलाकेन पुत्रपौत्रादि परिवृतेन श्री पार्श्वनाथ त्रिं कारित प्र० श्रीखरतरगच्छे श्रोजिनहंस सूरिभिः श्रोपत्तन महामगरे ।
( 669 )
सं० १९०४ वर्षे पौष मासे शुक्ल पक्ष पूर्णिमायां तिथौ श्रोअजमेर पूर्वी श्री चतुविंशति जिनमातृका पह लुनिया गोत्रेन सा० पृथिराजेन का० प्र० श्रीवृहत् खरतरगच्छाधीश्वर जंगमयुगप्रधान भ० श्रोजिन सौभाग्य सूरिभिः विजयराज्ये ।
श्रीदादाजी के छतरिके पास मन्दिरमें ।
( 570 )
सं० १५३५ वर्षे आषाढ़ सुदि ६ शुक्रे बड़नगर वास्तव्य उकेशज्ञातीय सा० साजण भार्या तारु पुत्र सा० उषाकेन मार्या लीलादे प्रमुख कुटुम्प्रयुतेन स्वयं यसे श्रीशांतिनाथ वि कारित प्रतिष्ठितं श्री तपागच्छनायक श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिः ॥ पं० पुण्यनन्दन गणीनामुपदेशेन ।
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( १३१)
जयपुर। यति श्यामलालजी के पासकी मूत्तियों पर
( 571)
सं०१३-- वर्षे माघ सुदि १३ सोमे श्रीकाष्ठासंघ श्रीलाड वागड (?) गण श्रीमन्-- मुरूपदेसेन हुंवउ ज्ञातीय व्य० वाहड भार्या लाछि सुत धीमा भार्या राजलदेवि भयोधं सुत दिधा भार्या संभव देवि नित्यं प्रणमति ।
( 572 )
सं० ११३८ वर्ष पौष : सोमे श्रीब्रह्माणगच्छे श्रीश्रीमा० - - - माथलदे पृ० सामलेन श्रोगांतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठित श्रीयुद्धिसागर सूरिमिः ॥ श्री ॥
(573 )
सं० १५१५ वर्षे फागुण शुदि १ शुक्रवारे। ओसवाल ज्ञातीय बच्छस गोत्रे सा. धीना भार्या फाई पु. देवा पद्मा मना वाला हरपाल धर्मसी आत्मपुण्यार्थ श्रीधर्मनाथ विवं कारितं श्रीम० तपागच्छे - - - - ।
(574)
सं० १५२१ वर्षे ज्येष्ट सुदि १३ गुरो रणसण वासि श्रीश्रीमाल ज्ञातीय श्रे. धर्मा मा. धर्मादे सुत मोजाकेन मा० भली प्रमुख कुटुम्ब युतेन स्वश्रेयसे श्रीशांतिनाथ चतुर्विंशति पहः कारितः प्रतिष्ठितः श्री सुविहत सूरिभिः ॥ श्रीरस्तु ॥
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( १३५) यति किसनचन्दजी के पासकी मूर्तियों पर ।
( 575 ) सं० १३१८ फागुन--- गेहलडा गोत्रे वटदेव पुत्र विसल पुत्र लषमणेन मातृ वीरो श्रेयो) श्री पार्श्वनाथ विवं कारित प्र. श्री भावदेव सूरिभिः ।
(576) सं० १५.५ वर्षे माह वदिशनी श्रो... गच्छे ... जलहरगोत्रे सा. लुणा मा. लुपादे पुत्र पविन पाल्हा सानाभि पितृमातृ श्रेयोर्य श्री संभवनाथ विवं कारि० प्र०...।
( 57 ) सं० १५०० वर्ष ज्येष्ठ सुदि १० श्रीमाल ज्ञाती मांडावत गोत्रे सा० मोजा मार्या सासु पुत्र नेना भार्या फुला श्री धर्मनाथ विवं कारितं श्री पल्लि गच्छे ---- ।
( 578 ) संवत १५०० वर्षे अएस बसे सा० हजदा मार्या आलणादे पुत्र केन्हाकेन श्री अंचल गच्छेश श्री जय केशरि सूरिणां उपदेशेन पित अयोथै श्री आदिनाथ विकारितं।
( 59 )
सं० १५३२ वर्षे ज्ये० ३० ३ रवौ वणागी गोत्रे सा. वादी म० पोमाइ सु० तिउण भयोथै सा. सावउन श्रीवंत साजण प्र० कुटुंब युतेन श्री पद्मप्रमविकारितं रोद्रपल्लिय गच्छे श्रीदेव सुंदर सूरि पहे प्रतिष्टितं श्री गुण सुंदर सूरिभिः ।
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( ३३६)
( 580 ) संवत १५५६ वर्षे माघ सुदि १५ गुरौ ओसवाल ज्ञातीय सा. हासा पत्र हरिचंदेन मा. हीरादे पुत्र पुना धूनादि कुटुंव युतेन गहिलढा गोत्रे श्री सुविधिनाथ विवं का. प्र. तपागच्छे श्री हेम विमल सूरिभिः नागपुरे।
(531 ) संवत १६७४ वर्षे माघ यदि २ दिने गुरु पुष्ययोगे ओसवाल ज्ञातीय चोरडिया गोत्रे स. सिधा भार्या नवलादे तत्पुत्र स० पैरवदास मार्या अर्मादे नान्या श्री नमिनाथ विंव कारितं प्रतिष्ठितं तपा गच्छे भहारक श्री विजयदेव सूरिभिः ।
( 582 ) सं० १६८८ ३० माघ ०१ गुरी----हस गोत्रिय सावंजाकेन ... सुविधिनाथ वि. गृहीत घ० ८० श्रीतपा गच्छे श्री विजयदेव आचार्य श्री विजयसिह सूरि प्रति ।
जोधपुर। यह मारवाड़ को राजधानी एक प्रसिद्ध स्थान है। श्रीमहावीर स्वामीका मन्दिर ( जुनी मंडि )
धातुओंके मूर्ति पर।
( 583 ) सं० १४५६ वर्षे माह सुदि ११ स० हाप-सीह पुत्रो सषदे-केन पुत्र पूजा काजा युतेन पित भयोथं श्री आदिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री जिनराज सूरिभिः ।
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( 584 )
सं. १४८० वर्षे वैशाष सु. ३ धांधगोत्रे सा० मोल्हा पुत्रेण सा. सांचडेन स्वपुत्रेण भार्या सिरियादे श्रेयसे श्रीआदिनाथ विवं कारितं प्र० श्री विद्यासागर सूरिभिः ॥ श्री॥
(585)
सं० १५०१ प्रा० ज्ञा० डोडा मा० राणी सुत सुपाकेन भा• सरसू पुत्र साजणादियुतेन श्री अजितनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सूरिमिः ।
( 586 )
सं० १५०३ आषा० सु० ६ शु० राउ खावरही गोत्रे सा० महिराज मा सीता पु. पीद मा० लोली पु. कीडा देताभ्यां यतेन श्री धर्मनाथ विं कारापितं श्री--र्षि गच्छे श्री जयसिंह सूरि पह श्रीजय शेषर सूरिमिः तपा पक्ष ।
(587)
सं० १५०३ वर्षे मार्ग वदि २ खुचंती अंडारी गोत्र सा० सोमाभा० सोम श्री पुत्र हीरा केन आत्म० श्री श्रेयांस विवं का० प्र० श्री धर्म घोष गच्छे श्री पन शेपर सूरि पह श्री विजय नरेन्द्र सूरिभिः ॥
( 538 )
सं० १५१७ वर्षे चैत्र सु. १३ गुरौ उप० ज्ञा० म० नूणा मा० माणिकदे पु. सांडा मा. वाल्हणदे पुत्र षेतसि वास. मा. मा. श्री सुमतिनाथ विवं का.प्र. ब्रह्माणीया ग. श्री उदय प्रः सूरिभिः।
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(३३८)
( 589 ) सं. १५२२ वर्षे वेशाष सु०३ नना ज्ञा० जइता मा० परि पुत्र गेला मा• वाली नामन्या पुत्र अमरसी भा. तिलू सजन कवेला मात दूसी ज्येष्टमाला प्रमुख कुटुंव युतया स्व अयोर्थ श्री विमलनाथ विवं का० प्र० तपा श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिः ॥ श्री ॥
( 590)
. सं० १५२४ वै० शु० ३ श्री मूलसंघे सरस्वती गच्छे श्रीकुंदकुंदाचार्य म० पद्मनंदि सत्प० १० श्रीसकल कीर्ति तत्प० १० श्री विमल कीा श्री शांतिनाप विवं प्रतिष्ठितं । श्रो जे संग मा० मरगादे सु० तेजा टमकू सु० सिवदाय ।
( 541 ) सं. १५२७ वर्षे माह सु० ६ बुधे श्री ... गोत्रे सा० भादा मा. सावलदे प० मेलाकेन मा० मालूणदे पुत्र वींका कान्हा रूपादि युतेन स्व श्रेयसे श्री आदिनाथ विव कारित प्रतिष्ठितं जिनदेव सूरि पह श्रीमत् श्री भावदेव सूरिः ।
(592 )
सं० १५३२ वर्षे वैशाष वदि ५ रवी उप. ज्ञा. गो. उरजण मा० राउं सुप्रीदा भा. भावलदे सु० गारगा वरजा युतेन आत्मा श्री सुमतिनाथ विवं का० प्र० श्री जीरापलीय गच्छे श्री उदयचन्द्र सूरि पट्टे श्रीसागर नाद सूरिभिः शुभं भवतु
( 593 )
सं० १५३५ श्री मूलसंघे २० श्री भुवन कीर्ति न० भ० श्री ज्ञान भूषण गुरूपदेशे--
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( १३६)
(594) सं० १५५५ वर्षे फागुण मासे शुरूपक्षे ३ वुध वासरे साइ चांपा भार्या मेयू डंगर भार्या चांदू पु. डाहा मा. मालू भी नमिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं पूर्णिमा पक्षिक खोली वाल गच्छे महारिक भी विजय राज सूरिभिः ॥ भी।
( 595 ) सं० १५६३ वर्षे माह सुदि १५ गुरौ प्रग्वाट ज्ञा० सा० कला मा० अमणादे पु. सदो ---पु० धना--- सहितेन आत्म पुण्याचे श्रीसुमति विवं का.प्र. पूर्णिमाक गच्छे ---सागर सूरि---
( 596 ) सं० १५६५ वर्षे चैत्र सु० १५ गुरो उप० भंडारी गोत्रे सा० नरा मा० नारिंगदे पु. तोली मा० लाछलदे पु. चिजा रूपा कूणा विजा मा० बीसलदे पु. नाम्ना डामर द्वि० मा० वालादे पु० खेतसी जीवा स्वकुटुंवेन पितृ निमित्त श्री सुमतिनाथ विवं कारितं प्र० श्री संडेर गच्छे भ० श्री शांति सूरिभिः ।
( 597 ) सं० १५६५ वर्षे माह सुदि ८ रवी श्री उपकेश वंशे वि० सांडा मार्याधम्माई सुत वीसा सूरा भार्या लाली द्वि. भार्या अरधाई धर्म अयसे श्री शीतलनाथ विवं प्रति सिद्धांती गच्छे श्रीदेव सुदर सूरिभिः प्र० ।
( 598) ॥ ॐ संवत १५६५ वर्षे वैशाष वदि १३ रखो ढेडीया ग्रामे श्री उएसवंशे सं• पीदा भार्या धरणू पुत्र सं० तोला सुश्रावकेष मा. नीनू पुत्र सा. राणा सा• उपमण भात
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( ११.) सा० आसा प्रमुख कुटुंब सहितेन स्वश्रेयोर्थ श्री अंचल गच्छेश श्री भाव सागर सूरीणा मुपदेशेन श्री अजितनाथ मूलनायके चतुर्विंशति जिन पह कारितः प्रतिष्टितः श्रीसंघेन।
( 569 ) सं० १५७० वर्षे आ० सु० ३ सोमे ओसवाल ज्ञातोय चंडलिआ गोत्रे सा० सारिग पुत्र कालू भा० हामी पु. हासा देवा गणाया भार्या दमाई प० साह विमलदास सा. हरवलदास सा. विमलदास मा. सोनाई पु० सुन्दर वच्छ रिषामदास भार्या अमरादे सुत अमरदत्त पूर्वत भु० श्री सुविधिनाथ विवं कारितं प्र. श्रीमलधार गच्छे १० श्री गुण सागर रिपट्टे श्री लक्ष्मीसागर सूरि प्रतिष्ठितः ॥
( 600 ) सं० १८२१ मि. वै० सुदी ३ श्री पार्वजिन-म० श्री जिन लाभ सू० यति हीरानंद कपितं।
देविजीके मूर्तिपर। (४ भूजा+ सर्प छत्र)
.( 601 ) सं० १४७२ वर्षे ज्येष्ठ वदि १२ सोमे वीजापूर वास्तव्य नागर ज्ञातीय ठा• अवासुत घरणाकेन कुटुंव सम-- अयोर्थ देवो वेइरुठा० रूपं प्रतिष्ठापित।
(600)
( 602 )
सं० १५५४ माह सुदि ५ दिने उ० ज्ञातीय मंडोवरा गोत्रे सा० पासवोर पु० सा० सूरा भा. सूहवदे पु० सा० श्रीकरण सा०शिवकरण सा. विजपाल श्रा० सहवदे आत्मपुण्यार्थ श्री शांतिनाथ विंवं का०प्र० श्रीधर्म घोष गच्छे १० श्रीपुण्यवर्द्धन सूरिभिः।
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( १९१३
( 603 )
संवत १५७९ वर्षे वैशाख सुदि ७ वुधे उग्रवाल ज्ञातीय युद्धशाषीय पोसालेवा गोत्रे सा. पीमा भा• अधी-पु० सा. श्रीवंत मा. सोनाई पु० सकल युतेन स्वश्रेयसे भीपापर्वनाथ विंव का श्री कीरद गच्छे श्री कक्क सूरिभिः ॥ श्री॥
( 604 )
स्वस्ति श्रीः॥ सं० १५९८ वर्षात्पौष वदि ११ सोमे उकेश वंशे व्यः परवत मा० फदक तत्पुत्र व्य० जयता मा० अहिवदे प० व्या श्री ५ सपरिवारेण सोक्त विहान कर्मा निज ... परिवार अयोथै आदिनाथ विवं कारित प्र० श्री पूर्णिमा पक्ष भीमपल्लीय . श्री मुनिचन्द्र सूरिप? श्री विनयचंद्र सूरिणामुपदेशेनेति भद्र।
( 605 )
ॐ संवत १९३८ वर्षे माघ सुदि १३ सोमे श्री स्तंभ तीर्थ वास्तव्य सोनो मनजी भायां मोहणदे सुत सोनी मंगलदास नाम्ना श्री श्री माल ज्ञातीय श्री अजितनाथ विवं कारापितं सपागच्छे श्री हीर विजय सूरीश्वरै प्रतिष्ठितं ।
श्री केसरियानाथजी का मदिर-मोती चौक ।
( 606 ) ॐ ॥ संवत १२३६ द्विः वैशाख सुदि ६ शुक्र पल्यपद्र वास्तव्य श्री ति-नि गच्छे १० श्री देवाचार्य सस्क श्री नवत्सार सुत-ष्टे-गुण स्वपत्नी सलखणायाः श्रयोयं श्री पार्श्वनाथ प्रतिमा कारिता प्रतिष्टिता श्री बुद्धि सागराचार्यः ।
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( १९२)
( 601 ) सं० ११५८ वर्षे माह सुदि ५ डोढा गोत्रे सा० देवसीह भार्या देलूपदे पुत्र रेडा मार्या संपादे पुत्र सा० सालू सायराभ्यां पितु मातृ पुण्यार्य भी आदिनाथ विवं का. प्रति. श्री धर्मघोष गच्छे श्री मलयचन्द्र सूरिभिः ।
( 608 )
सं० १५१३ वर्षे पोष वदि १ शुक्र श्रीमाल ज्ञा० ० संग मा० श्रेयादे सु० महिराजेन पित मात भात समघर सारंगा भी मान मित्रं स्वास्म श्रेयसे भीधी समतिनाथ विवं पंचतीर्थी कारापिता प्रतिष्ठित पिप्पल गच्छे • भी गुण रत्न सूरिभिः गंधारवास्तव्य ।
( 609 ) सं० १५२१ चैत्रवदि ५ -- ड माणिक मा वारूदे-श्री विमल कीर्ति-धर्मनाथ विवं प्र. वाई तपदे जा० काल्हा --
( 610) सं० १५२८ वर्षे वैशाख वदि दिने सोमे उकेश वंश कुर्कट शाखायां व्य० तोला मा. घेतलदे पुत्र सदस मल्लेन तील्हादि पुत्र पौत्रादि युतेन स्व अयोधं भी सुमतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठित श्री खरतर गच्छे श्री जिनचंद्र सूरिभिः ।
( 611)
सं० १५७२ वर्षे फागुण सु० ( म० अंडारी गोत्रे सा० तोला मा० पलाछदे पुत्र सा. विद्रा सा. परूपा सा. कूपा मा० करमादे पु० माता - पुण्यार्य भी सुमतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री संडेर गच्छे १० श्री शांति सूरिभिः।।
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( १९३) (812)
सं० १८९३ ना मा। सु० १० बु.। श्री जोधपूर वास्तव्य श्रीओसवाल ज्ञातीय अद शाखायां संघ माणक चंद तेउ स्वश्रेयाय श्री चतुर्विंशति जिन विवस्य परापोतं ।
( 613 )
सिद्ध चक्रके पट्ट पर।
• श्री सिद्धचको लिखती मया वै। महारकीयेन सुयंत्रराजः ॥ श्री सुन्दराणां किल शिष्यकेन । स्वरूपचंद्रेण सदर्य सिद्वैषः ॥ १॥ श्री मन्त्रागपुरे रम्ये चंद्रवेदाष्ट भूमिते । अब्दे वैशाखमासस्य तृतियायां सिते दले ॥२॥
श्री मुनिसुव्रतस्वामीजी का मन्दिर ।
( 614 )
सं० १४२३ वर्षे फागुन शु. १ श्री श्री ज्ञा० व्य० काला भा• काल्हणदे सु०--पन प्रभु वि० श्री पू० श्री उदयाणंद सू० प्र० ।
( 615 )
सं० ११११ वर्षे वैशाख वदि १२ दिने नाहर वंशालंकारेण सा. घड़सिंह पुत्रेण धातु सा० सलकेन सरवणादि युतेन श्री पार्श्वनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रीजिनराज सूरिभिः श्रो खरतर गच्छेशः॥
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( १४४ )
( 616 )
सं० १४९९ वर्षे फागुण वदि २ गुरौ श्री तावद्वार गच्छे पांढरा गोत्रे जैसा प्रा० जसमादे पु० सोजा भा० बापू पुठीयलमेदा सह० श्री शांतिनाथ वि० प्र० का० श्री कीर्त्तिका चार्य स० श्री वीर सूरिभिः ।
(617)
13
पुत्र सा०
सं० १५३६ वर्षे फा० सुदि ३ रत्री उके० पदे दोसी गोत्र े ० सा० सीरंग - डूडकेन भा० दाडिमदे पुत्र कीता तेजादि परिवारयुत श्री धर्मनाथ वित्रं कारितं श्रेयसे प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्र सूरि पट्टे श्री जिनचंन्द्र सूरि श्री जिन समुद्र सूरिभिः श्री पद्मप्रभ विं ।
( 618 )
सं० १५८२ वर्षे जे० सुदि १० शुक्र वढतप श्री वन रतन सूरि
श्री धर्मनाथजी का मन्दिर ।
(619)
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सं० १४९३ जेठ बदि ३ मंगले उप० ज्ञा० पावेचा गोत्र सा० बीरा भा० वील्हणदे पुत्र कुंभाकेन भा० कामलदे युतेन स्वश्रे० विमल विवं का० प्र० बृहत गच्छे देवाचार्यान्वये श्री हेमचन्द्र सूरिभिः ॥ छ ॥
( 620 )
सं० ९५०३ वर्षे ढोसी-धर्माकस्य पुण्यार्थं दो० वूछा पुत्र संग्राम आवकेण कारितः श्री श्रेयांस विंवं प्रतिष्टितं श्री जिनभद्र सूरिभिः श्री खरतर गच्छे ।
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( ११५)
( 621 )
सं० १५०४ वर्षे वै. शु० ३ प्राग्वाट ज्ञा. श्री. भंडारी शाणी सुत श्री. पीमसी सा. पाभ्यां मा० मदीखतजता मालादि कुटुंवयुताभ्यां स्वश्रेयसे श्री मुनि सुव्रत स्वामि विवं का०प्र० तपा श्री सोम सुन्दर सूरि शिष्य श्री जयचंद्र सूरिभिः धार वास्तव्यः शुभं भवतु ॥
( 23 ) सं० १५०७ वर्षे मार्गसिर वदि २ गुरी उपकेश वंशे जारंउडा गोत्रे सा. पिमपालात्मज सा. गिरराज पुत्र सहदेवो H० लोला समदा सहितेन मात गवरदे पूजार्थं श्री नमि विं. का०प्र० तपा महारक ओं हेमहंस सूरिभिः ॥
( 23 ) सं० १५१२ वर्षे फागुन सु. १२ आहतणा ( आईचणा ? ) गोत्रे सा० धना मा. रूपी पु. मोकल मा० माहणदे पु० हासादि युतेन स्वमाकल श्रेयसे श्री संभवनाथ विवं का. उकेश गच्छे श्री सिद्धाचार्य संताने प्र० म० श्री कक्क सूरिभिः ।
( 624 )
सं० १५२५ वर्षे दिवसा वासे प्रोमाल ज्ञातीय सा० दशरथ मा• सामिनी सुत माना केन भा० राना मातृसालू भा. सोढी कुटुंवयुतेन स्वयं योर्थे श्री शांतिनाथ विवं का० प्रतिष्ठितं सपा गच्छे श्री लक्ष्मी सागर सूरिमिः नलुरीया गोत्रः॥
( 625) सं० १५२८ वर्षे वैशाख वदि ६ चंद्र उपकेश ज्ञातो आदित्यनाग गोत्रे सा• तेजा पु० जासो-मा. जयसिरि पु• सायर मा. मेहिणि नाम्न्या पु० गुणा पूता, सहज सहितया
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( १४६ )
स्वपुण्यार्थं श्री संभवनाथ विंवं का० प्र० उपकेश गु० कुक्कदाचार्य स० श्री देव गुप्त रभिः ।
( 626 )
सं० १५६३ वर्षे माघ सु० १५ गुरौ उ० विदाणा गोत्र े सा० रतना भा० रतनादे पु• रामा० रूपा स० पि० श्री कुंपनाथ विंवं का० प्र० श्री खंडेर गच्छे श्री शांति सूरिभिः श्रयात् ॥
दिनाजपूर ।
श्री मूलनायकजी के विवं पर ।
( 627 )
- सु० 8 श्री चन्द्र प्रभ जिन विंवं संघेन कारितं प्रतिष्ठितं च ॥ श्रीजिनचन्द्र सूरिभिः ॥ श्री विक्रमपूरे ।
धातुके मूर्तियों पर ।
( 628 )
संवत १४४७ वर्षे फागुण सुदि सोमे श्री अंचल गच्छे श्री मेरुतुंग सूरीणामुपदेशेन शानापति ज्ञातीय मारू ठ० हरिपाल पत्नि सूत्र सुत मा० देपालेन श्री महावीर विवं कारितं । प्रतिष्ठितंच श्री सूरिभिः ॥
( 629 )
सं० १५१५
वर्षे
फागुण दि ५ गुरौ श्री श्रीमाल ज्ञातीय लघुशाखायां थे • अर्जन प्रा० मंदोअरि पितृ मातृ श्रेयसे सुत गोईदेन भा० माकू पुत्र मेहाजल सहितेन श्री कुथनाथ
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( १९७) विवं कारित पूर्णिमा पक्ष भीमपल्लीय प्रहारक श्री जयचंद्र सूरीणामुपदेशेन प्रतिष्ठित
श्रीः ॥ छ।
( 630 )
सं० १५३१ वर्षे माघ वदि सोमे श्री श्रीमाल ज्ञातीय अमरमा भार्या परमादे पुत्र आसा भार्या वईरामति नाम्न्या स्वात पुण्यार्थं आत्म अयो/ श्री जीवित स्वामि श्री सुविधिनाथ चतुर्विंशति पह का० प्र० श्री धर्मसागर सूरिभिः।
( 631 )
सं० १९२७ वर्षे वैशाख वदि १० श्री मूलसंघे १० श्री सुमति कीर्ति गुरूपदेशात् का. जो देवसुत को सिंघा सु. धर्मदास रुग्दिास अनंतनाथ नित्यं प्रणमति।
( 632 )
सं० १८१४ रा मिती अषाढ़ सुदी १३ श्री नेमनाथजी वि०॥ छ ।
दादाजी के चरण पर।
(633 )
सं० १८१८ मिति ज्येष्ठ कृष्ण तियो युधवारे । । श्रीजिनचद्र सूरिनि प्रतिष्ठितं ॥ म। श्री जिनकुशल सूरिजो पादुका ॥ । श्री जिनदत्त सूरिजीरा पादुका।
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( १४८)
श्री केसरियानाथजी ( मेवाड़) यह स्थान जो मेवाड़की राजधानी उठयपूरसे २० कोस पर है रखदेखो नामसे भी प्रसिद्ध है। मूलनायक श्री ऋषभदेवकी मर्ति स्थामवर्ण बहुत प्राचीन और इनका अतिशय बहुत विलक्षण हैं। मन्दिरके बाहर महाराणा साहबोंके अघाट बहुतसे हैं।
पंचतीर्थी पर।
( 635 ) सं० १५१८ वर्षे माघ सु. १३ दिने उप. ज्ञा० पोमा भा० पोमी सु० जावलकेन मा० गोलादे सु० जसा धना वना मना ठाकुर परवतादि कुटंवयुतेम स्वपित श्रेयसे श्री धर्मनाथ विंवं का. प्र. तपा गच्छे श्री सोम सुंदर सूरि संताने श्रीलक्ष्मी सागर सूरिभिः।
पाषाण पर।
( 636 ) श्री कायासवास वासीसा केवलापदाग नमो क्षमाग्रत (2) आदिनाथ प्रणमामि-- विक्रमादित्य संवत १४३१ वर्षे वैशाख सुदि अक्षय तिथौ बुध दिने चादी नाधुराल ...।
(637 ) श्री आदिनाथ प्रणमामि नित्यं विक्रमादित्य संवत १५७२ वैशाष सुदि ५वार सोमवार श्री जशकराज श्री कला भार्या सोवनवाई चोजीराज यहां धुलेवा ग्राम श्री ऋषभ नाथ प्रणम्य कडीआ फीईआ भार्या भरमी तस्या पवेई सा. भार्या हासलदे तस्य पगकारादेव रारगाय म्रात वेणीदास भार्या लास्टी चाचा आर्या लीसा सकलनाथ नरपाल श्री काष्ठा संघ----श्री ऋषभनाथजी श्री नाभिराज कुष श्री तां-री कुल --।
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( १४९ )
( 638 )
सबस १४४३ वे० ० शु० १५ पूर्णिमा तिथो रविवासरे बृहत्खरतर गच्छे श्री जिन भक्ति सूरि पहालंकार अहारक भो १०५ श्री जिनलाभ सूरिभिः आदेशात् सनीपुर - श्री ऋषभदेवजी
सहूक
--1
सरस्वतीजी महादेवजी के चरण चौकी पर ।
( 639 )
with
संवत १६७६ वर्षे मा० सुद० १३ --1
--1
श्री राम विजयादी प्रमुखे
मरुदेवी माताजी के हस्ति पर ।
( 640 )
संवत १७११ वर्षे वैशाष सुदि ३ सोमे श्री मूलसंघे सरस्वति गच्छे वलात्कारगणे श्री कुं -- 1
--1
( 641 )
संवत १७३४ व० माघ मासे शुक्लपक्षे - तिथी भृगुवासरे श्री मूलसंघ काष्ठासंघ महारक श्री रामसेनीन्वये तदाम्नाये भ० श्री विश्व भूषण अ० यशः कीर्त्ति भ० श्री चित्रन कीर्त्ति
( 642 )
संवत १७४६
वर्षे फागुण सु० ५ सोमे श्री मूलसंघ सरस्वति गच्छे बलात्कार गणे श्री श्री कुंदकुदाचार्यन्वये महारक श्री सकल कीर्त्ति स्तदन्तर भट्टारक श्री दामकीर्त्ति ।
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( १५०)
( 643 ) संवत १७६५ वर्षे माघ मासे कृष्णपक्ष पंचमी तियो सोमवासरे महारक श्री विजय रतकेश्वर तपागच्छे काष्ठासंघे श्रा०प० दे० वृ. शा० मुहता गोत्रे मुहताजी श्रीरामचंद्र जी तस्यमार्या बाई सूर्यदेवि तस्यात्मज मुहताजी श्री सोमाग चंद्रजी मुहताजी श्री सातु जी भाई मुहताजी श्री हरजीजी श्रीपार्श्वनाथ जिन विवं स्थापितं ।
श्री जगवल्लभ पार्श्वनाथ प्रशस्ति ।
( 644 )
॥ ॐ ॥ प्रणग्य परया भक्तया पद्मावत्याः पदाम्बुजं । प्रशस्तिल्लिख्यते पुण्या कविकेशर कीर्त्तिना ॥१॥श्रीअश्वसेन कुल पुष्पक रथजानुः । वामांग मानस विकासन राजहंसः ॥ श्रीपश्र्वनाथ पुरुषोत्तम एष भाति । घुलेव मंडनकरा करूणा समुद्रः ॥२॥ श्री मज्जगत्सिंह महीश राज्ये । प्राज्यो गुणे जर्जात ईहालयोयं ॥ आपुष्पदत्त स्थिरसामुपैतु। संपश्यतां सर्व सुख प्रदाता ॥३॥ __ दोहा। सुर मन्दिर कारक सुखद सुमतिचंद महा साधः । तपे गच्छमें सप जप तणो उयत उदधी अगाधः ॥ ४॥ पुन्यथाने श्रीपार्श्वनो पुहवी परगट कीधः । खेमतणो मनपा तिसु लाहो भवनो लीध ॥ ५॥ राजमान मुहता रतन चातुर लषमी चंद । उच्छव किंधा अति घणा आणिमन आनन्द ॥६॥ दिल सुषगोकल दासरे की प्रतिष्ठा पाम । सारे ही प्रगटपो सही जगतिमें असवास ॥ ७ ॥ सकल संघ हरषित हूओ निरमल रविजिन नाम राषो मुनि महंत सरस करता पुण्य सकाम ॥८॥
कवित्त । सांतिदास सचितसंत दावडा लषमी चंदहः । संघ मनुष्य सिरदार सहस किरण सुषके कंदहः ॥वल्लभ दोसी वीर धीर जिन धर्म धुरंधरः । मुलचंद गण मूलहीर धाया उरगुणहरः ॥ सकल संघ सानिधकरः सुमतिचंद महासाधः। पास सदन कियो प्रगट
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( १५१ ) निश्चल रहो निरवाधः ॥६॥
श्लोक ॥ तद्वारेक पूज्यकृद कृपाख्यो देवेरमविलग्न विचित्रः पूजावतेस्मै प्रविल लितावै संघेन सत्सोम्य गुणान्वितेन ॥ १०॥ गजधर सकल सुज्ञान धराहरी कीचो गणहेर । रच्योविवजिनराजको करुणा बंत कुवेरः ॥११॥ आर्या। शशीव सुख राज वर्षे। माधव मासे वलक्ष पक्षे च । पंचम्यां भृगुवारे हि कृता प्रतिष्ठा जिनेशस्य ॥ १२ ॥ महागिरि महा सूर्य शशिशेष शिवादयः । जगवल्लभ पार्श्वस्य तावतिच्छतु विवकं ॥ १३ ॥
श्रीसंवत १८०१ शाके १६६६ प्रमिति वैशाख सुदि ५ शुक्र वासरे श्री जगवल्लन पार्श्वनाथ विवं प्रतिष्टितं पृहत्तपा गच्छीघ सुमतिचन्द्रगणिना कारापितं ॥ श्रीरस्तु। शुभ प्रवतु॥
पगलीयाजी पर।
( 645 ) स्वस्ति श्री संवत १८७३ वर्षे शाके १७३९ वर्तमाने मासोत्तम मासे शुभकारी ज्येष्ठमासे शुभे शुक्ल पक्ष चतुर्दशि तियो गुरुवासरे उपकेश ज्ञातीय वृद्धिशाखायां कोष्ठागार गोत्रे सुश्रावक पुण्य प्रभावक श्री देव गुरु भक्तिकारक श्री जिनाज्ञा प्रतिपालक साह श्री शंभुदास तत्पुत्र कुलोद्धारक कुल दीपक सिवलाल अवाविदास सत्पुत्र दोलतराम ऋषभदास श्री उदेपूर वास्तव्य श्री तपागच्छे सकल भह रक शिरोमणि महारक श्री श्री विजय जिनेंद्र सूरिभिः उपदेशात् पं० मोहन विजयेन श्री धुलेवानगरे । भंडारी दुलिचंद आगुंछइं॥
दादाजी के चरण पर।
( 648 ) संवत १९१२ का मिति फागुन वदि ७ तिथी गुरु वासरे श्री घुलेवानगरे श्री क्षेम कीर्ति शाख्योद्भव महोपाध्याय श्री राम विजयजी गणि शिष्य महोपाध्याय शिवचंद्र
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( १५२ ) गणि शिष्य---- चंद्र मुनिना शिष्य मोहनचन्द्र युतेन श्री सत्गुरु चरण कमलानि कारितानि महोत्सवं कृत्वा प्रतिष्ठापितानि स्थापितानिच वर्तमान श्रीवृहत्खरतर गच्छ महारकाज्ञयाच श्री अभयदेव सूरिजिनदत्तसूरिजिनचंद्र सूरिजिन कुशल सूरिणां चरणन्यासः।
पालिताना। श्वेताम्बरियोंका विख्यात तीर्थ श्री शत्रुजय (सिद्धाचल) पहाड़ के नीचे यह काठियावाड़का एक प्रसिद्ध स्थान अवस्थित है।
मोती सुखियाजीका मन्दिर ।
(617)
संवत १५०३ वर्षे ज्येष्ठ शु. १. प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे० आमा मा० सेग सुत परवतेन मा० माई कुटुंवयुतेन स्वश्रेयोर्थ श्री श्रेयांस नाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं तपा श्री जयचंद्र सूरिभिः ॥ गणवाडा वास्तव्यः ।
( 648 )
संवत १५५८ वर्षे फागुण शुदि १२ शुक्र श्री उकेश वंशे गांधो गोत्र अविका भक्त। सा० छाजू सुत सेंघा पुत्र सूरा मा. मेधाई सु० साऊंया मा. मकू नाम्न्या स्व श्रेयार्थ श्री सुमतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्टितं मलधार गच्छे श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिः ।
( 649 )
संवत १५७१ वर्षे माघ वदि १ सोमे वीसल नगर वास्तव्य प्राग्वाट क्षतीय व्य. चहिता मा. लाली पु. व्य. नारद भार्या नारिंग पु. जयवंतकेन भार्या हर्षमदे प्रमुख
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( १५३ ) परिवार युतेन स्वयोर्थ । श्रो नमिनाथ चतुर्विंशति पहः कारित: प्रतिष्ठित तपागच्छे श्री सुमतिसाधु सूरि पट्टे परम गुरुगच्छ नायक श्री हेम विमल सूरिभिः ॥ श्री ॥
सिद्धचक्र पट्ट पर।
( 650 )
संवत १५५६ वर्षे आश्विन सुदि ८ वुधे श्रीस्तम तीर्थ वास्तव्य प्राग्वाट ज्ञातीय म० बछाकेन श्री सिद्ध चक्र यंत्र कारितः।
सेठ नरसी केशवजकिा मन्दिर।
( 651 )
संवत १६१४ वर्षे वैशाष सुदि २ बुधे प्राग्वाट ज्ञातीय दोसी देवा मार्या देमति सुत दो० वना भार्या वनादे सु० दो० कुधजी नाम्न्या पितु श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ विवं कारापितं तपागच्छाधिराज अहारक श्री विजयसेन सूरि शिष्य पं० धर्मविजय गणिना प्रतिष्ठिसमिदं मंगलं भूयात् ॥
( 652 )
संवत १९२१ वर्षे शाके १७८३ प्रवर्त्तमाने माघ शुदि तिथौ गुरुवासरे श्रीमदंचल गच्छे पूज महारक श्री रतन सागर सूरिश्वराणामुपदेशात् श्री कच्छदेसे कोठारा नगरे ओशवंशे लघुशाषायां गांधिमोती गोत्रे सा. नायकमणजी सा० नाक नणसों तस आर्या हीरवाई तत्सुत सेठ केशवजी तस भार्या पावो वाई (तत्पुत्र नरसी आई नाना मना) पंचतीर्थी जिनविंवं भरापितं ( अंजन शलाका करापितं ) अठास गण ।
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( १५१ ) सेठ नरसीनाथाका मन्दिर ।
( 653 ) सं० १५३० वर्षे वैशाख शुदि १० सोमे श्री गंधारवास्तव्य श्री श्री माल ज्ञातीय व्य. साहसा भा. वाल्ही ठ. सालिग भा० आसी ठ० श्रीराज भा० हंसाई। व्य. सहिसा सुत धनदत्त मा. हर्षाई पतै सात्म श्रेयो) आदिनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री वृहत्तपा पक्ष श्री विजयरत्न सूरिभिः ॥ श्री ॥
( 654 ) सं० १९२१ वर्षे माघ सुदि ७ गुरौ श्रीमदंचलगच्छे पूज प्रहारक श्री रत्न सागर सूरी श्वराणां सदुपदेशात् श्री कच्छदेशे श्री नलितपुर वास्तव्य । ओश वंशे लघुशाखायां नागडा गोत्रे सेठ होरजी नरसी सद्भार्या पूरवाईना पुण्यार्थे श्री पार्श्वनाथ विवं कारितं सकल संघेन प्रतिष्ठितं ।
( 655 ) सं० १९२१ वर्षेमाघ सुदिगुरो श्री मदंचल गच्छे पूज महारक श्री रत्न सागर सूरीणां मनुपदेशात् श्री कच्छदेशे श्री नलित पुर वास्तव्य । ओशवंशे लघुशाखायां नागडा गोत्रे सा० श्री राघव लषमण सद्धार्या देमतवाई तत्पुत्र सा० आरयचंदेन पुन्यार्थं शांतिनाथ विवं कारितं सकल सघेन प्रतिष्ठितं ॥
सेठ कस्तुरचन्दजी का मन्दिर
(656) संवत १६६३ वर्षे वईशाष सुदि । गिरी वास्तव्य श्रोपत्तन नगरे ओसवाल ज्ञातीय पद्धशाषायां सोनी तेजपाल सुत सोनी विद्याधर सुत सोनी रामजी भार्या वाई अजाई
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嚴
( १५५ )
सुत सोनी वमलदास सोनी धर्मदास सोनी रूपचन्द पुत्री वाई शीति एतेन श्री विजयनाथस्य विवं कारापितं श्री तपगच्छाधिराज श्री विजयदेव सूरि राज्ये प्रतिष्ठितं आचार्य श्री विजयसिंह सूरिभिः ।
श्री गौडी पार्श्वनाथजी का मन्दिर ।
( 657 )
सं० १३८३ वैसास्ख वदि ७ सोमे पल्लिवाल पदम भा० कील्हण देवि श्रेयसे सुत की मेन श्री महावीर विंवं कारित प्रति०
( 658 )
सं० १४८६ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १३ नाहर गोत्रे सं । आसो सुतेन देवाकेन स्वबांधव सहजा हरिचन्द पत्नि घेता यो निमित्त श्री विमलनाथ विंवं कारापितं प्र० श्री हेम हंस सूरिभिः ।
(659)
सं० १५०५ वर्षे माघ सुदि १० रबी उकेश वंशे मीठडीआ सा० साईआ भार्या सिरीआदे पुत्र सा० भोला सा सुश्रावकेण भार्या कन्हाई लघु भ्रातृ सा० महिराज हरराज पघ राज भ्रातृष्य सा• सिरिपति प्रमुख समस्त कुटुंब सहितेन श्रो विधिपक्ष गच्छपति श्री जयकेशर सूरिणापमुदेशेन स्व श्रेयोर्थं श्रो सुविधिनाथ त्रिंवं प्रतिष्टितं श्री संघेन ॥ आचन्द्रार्कं विजयतां ॥
( 660 )
सं० १५१५ वर्षे माह शुदि ५ शनी प्राग्वाट ज्ञा० म० राउल भा० राउलदे द्वितीया हांसलदे सु• मूलू भा० अरपू सु० भीजा हासा राजा प्रा० प्रकू सु० हीरामाणिक हरदास
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(११) युतेन स्वपूर्षिज पितु अयोर्य श्री शांतिमा विवं कारितं प्रतिष्टितं आगमगच्छे यो श्री पाद प्रभ सूरिभिः सायाला वास्तव्यः ।
( 661 )
सं० १५१८ वर्षे ज्येष्ठ वदिशनौ प्रा० सा० काला मा० माल्हणदे पुत्र स• अर्जुनेन भा. देऊ भातृ सं० भीम मा० देमति सुति हरपाल भा० टमकू युतेन स्व श्रेयसे श्री वासु पूज्य विवं का.प्र. श्री रत्नसिंह सूरिप श्री उदय वल्लभ सूरिमिः।
( 662 )
संवत १५२८ वर्षे वेशाष वदि ११ रवी श्री उकेश वंशे सा० चाचा भा० मायरि सुत राजाकेन भार्या वरजू सहितेन श्री सुविधिनाथ विवं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री जिनहर्ष सूरिभिः।
( 663 )
सं० १५२९ वर्षे फा० वदि ३ सोमे स० बाछा मा. राजू सु० महीपालेन भा• अहवदे पुत्र वसुपालादि युतेन मा० सपूरों श्रेयोर्य श्री मुनि सुव्रतनाथ विवं कारितं प्र० सपा गच्छेश श्री लक्ष्मी सागर सूरिभिः ॥ श्रो॥
(664 )
संवत १५३० वर्षे माघ शुदि १३ रवी श्रीश्री बंशे रे देवा मा० पाच पु. • हापा मा० पुहती पु० ० महिगज सुश्रावकेण मा० मातर सहितेन पित श्रेयसे श्री अंचल गच्छेश जय केसरि सूरिणामुपदेशेन श्री सुमतिनाथ विवं कारितं प्र० श्री संघेन ।
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( १५७)
( 665 ) सं० १५३१ वर्षे माघ सुदि ३ सोमे धो अंचल गच्छेश श्रीजय केशर सूरिणामुपदेशेन उएशवशे स. नहता भार्या जहतादे पुत्र माईया सुश्रावकेण रजाई मार्या युतेन स्वय से श्री अजितनाथ विवं कारितं प्रतिष्टितं सु---।
( 666 ) संवत १५३६ वर्षे वैशाख सुदि १० गुरौ श्री श्री वंशे ॥ • गुणोया मार्या तेजू पुत्र अमरा सुश्रावकेन भार्या अमरादे भात रत्ना सहितेन पितुः पुण्यार्थं श्री अंचल गच्छे। श्रीजय केसरि सुरिणामुपदेशेन वासु पूज्य विवं का. प्रतिष्ठितं ॥ श्री ।
___ ( 667 ) सं० १५६६ वर्षे माह वदि ६ दिने प्राग्वाट ६ ज्ञातीय पार विलाईआ मा. हेमाई सुत्त देवदास भा. देवलदे सहितेन श्री चंद्रप्रभ स्वामि विवं कारितं प्रतिष्ठितं द्विवंदनीक गच्छे अ० श्री सिद्धि सूरीणां पह श्री श्री कक्कसूरिभिः कालू-र ग्रामे ॥
( 668 )
सं० १५८३ वर्षे वैशाष सुदि ३ दिने उसवाल ज्ञाति मं० वानर मा० रहो पु० म० नाकर म. भाजी म. ना. मा. हर्षादे पु० पघु वनु भोजा भार्या अवलादे एवं कुटुंव सहित स्वमेयो) सुविधिनाथ वि० कारितं प्रति. विवदणीक ग० भ० श्रा देव गुप्त सूरिभिः । भारठा ग्रामे।
( 669 )
सं० १६८१ ब० माघ सुदि ६ गुरी देवक पत्तन वास्तव्य उ. ज्ञा० वृद्ध सा. जसमाल सत सा. राजपालेन मा. वाह पूराई प्रमुख कुटुंब यतेन श्री समतिनाथ विवं का. प्र. तप गम्छे १० श्री विजयदेव सूरिभिः ।
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( १५८ )
( 670 )
सं० १६८४ व० माघ सुदि ६ गुरौ देवक पत्तन वास्तव्य उकेश ज्ञातीय बुद्ध शाषायां सा० राजपाल सद्भार्या वा० पूराई सुतसा० वीरपाल नाम्न्या श्री संभव विवं प्र. तपा गच्छे श्री विजयदेव सूरिभिः ।
यति कर्म्मचन्द हेमचन्दजी का मन्दिर ।
( 671 )
संवत १५५८ वर्षे चैत्र वदि १३ सोमे उपकेश ज्ञा० वर्द्धन गोत्रे श्र० बना भार्या बनादे सुत श्र० जिणदास केन भार्या आलमदे पुत्र राजा सांढादि कुटुंब युतेन श्री शितलनाथ विंवं का० प्र० पल्लीवाल गच्छे श्रीनस सूरिपट्ट श्री उजोयण सूरिभिः ।
( 672 )
संवत १५५ वर्षे वैशाष वदि ११ शुक्र उपकेश ज्ञाती पीहरेचा गोत्रे सा-गोवल पु० सा-- भा० घारू पु० साह नर्वदेन भा० सो भादे पु० जावड । भा० चड --- -- पितुः श्र० श्री मुनि सुव्रत वि० का० प्र० श्री उपकेश - श्री कक्क सूरिभिः ॥ श्री कुक्कुदाचार्य संताने ॥
गांव मन्दिर बड़ा
( 673 )
सं० १५०७ वर्षे माघ सुदि १३ शुक्र श्री श्रीमाल वंशे व्य० जीदा १ पुत्र व्य० जेताणंद २ पु० व्य० आसपाल ३ पु० व्य० अभयपाल ४ पु० व्य० वांका ५ पु० व्य० श्री बाउडि ६ पु० व्य० अनंत ऽपु० व्य० सरजा ८ पु० व्य० घोंघा र पु० व्य• राजा १० पु० व्य० देपाल ११
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( १५६) पु०वसनाना १२ पु० व्य० राम १३ पुत्र व्य. मीना भार्या मांकू पुत्र वसाहर रयणायर सुश्रावकेण मा० गउरी पु०मभव पौत्र लारण वरदे भात समधरीसायर भ्रातृ व्यसगरा करणसी- सारंग वीका प्रमुख सर्व कुटुंव सहितेन श्री अंचल गच्छे पो गच्छेश श्री जय केसरि सूरिणामुपदेशात् स्व श्रेयसे श्री शांतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री संघेन श्री भवंतु ॥
( 674 ) सं० १५३१ वर्षे श्री अंचल गच्छेश भोजय केसरि सूरीणामुपदेशेन श्री श्री माल ज्ञातीय दो० मोटा मा• रत्तु पु० वीरा मा० वानू पु. लषा सुश्रावकेन भगिनी चमकू सहितेन श्री शांतिनाथ विवं स्वश्रेयोर्य कारितं श्री सघ प्रतिष्ठितं ।
( 675 ) सं० १५४८ वर्षे कातिक सुदि ११ गुरौ श्री श्रीमाल ज्ञातीय धामी गोवल भा० आपू सु० वावा भा• पोमी सु० गणपति स्वयसे श्रीचन्द्रप्रभ स्वामि वि० का० प्र० चैत्रगच्छे भी सोमदेव सूरि प्रतिष्ठितं ।
( 676 ) सं० १५४९ वर्षे वे सु. १० शु० श्री उ. ज्ञा० पीहरेवा गोत्र साह पावड भा. भरमादे आस्मश्रेयोर्थं श्रीजीवित स्वामी श्री सविधिनाय विवं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री उसवाल गच्छे श्री कक्क सूरि प श्री देव गुप्त सूरिभिः ॥
( 677 )
संवत १५७२ वर्षे वैशाष सुदि १३ सोमे श्री श्री प्राग्वाट ज्ञातीय दोसी सहिजा सुत दो• भरणा मार्या कूटि सुत दोसी बहु भार्या वल्हादे तेन आत्म पितृमातृणां श्रेयसे श्री
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( १६.) संभवनाथस्य चतुर्विशति पहः कारापितः श्री नागेन्द्र गच्छे R० श्रीगुणरत्र सूरि पट्टे आचार्य श्री गुण वर्द्धन सूरिभिः प्रतिष्ठितं प्रोजीर्ण दूर्ग वास्तव्य ॥
( 678 ) सं० १६०३ वर्षे चैत्रवदि १३ रवी उ. टप गोत्रे---क सा. नरपाल भा० रंगाई पु. महिराज सोहराज धनराज श्री महिराज भार्या धनादे पु. धनासुतेन स्वपुण्यार्थं श्री पार्श्वनाथ विवं कारापितं प्रतिष्ठितं श्री संडेर गच्छे अ. श्री यशोभद्र सूरि संताने श्री शांति सूरिभिः।
( 679 ) सं० १९२१ व० माह सु० ७ गुरुवासरे श्री जिनवि प्र. सा. जीवा अषाजो----।
दिगम्बरी पंचायती मन्दिर।
( 680 ) संवत १५२३ वर्षे वैशाख सुदि तेरस गुरौ श्रीमूलसंघे सरस्वति गच्छे बलात्कार गणे महारक श्रीविद्यानदि गुरूपदेशात् ब्रह्म पदमाकर कारापिता।
श्री शत्रुञ्जय तीर्थपर टोकोंमें पञ्चतीर्थीयों पर । साफरचंद प्रेमचन्द टोंक।
( 631 )
सं० १५.८ वर्षे मार्गशीर्ष वदि २ वुधे श्री दूताड़ गोत्रे सा. भूना भार्या मोल्ही एतयोः पुत्रण मा० नाजिग नान्याः पित्रो पु० श्रीचंद्रप्रभ विवं का०प्र० श्री वृहद् गच्छे श्री रत्नप्रभ सूरि पद श्री महेंद्र सूरिभिः ।
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( १६१ )
प्रेमा भाई हेमा भाई टोंक ।
( 682 )
सं० १५३२ वर्षे ज्येष्ठ बदि १३ बुधे आसापद आ (?) श्री श्री माल ज्ञातीय सा० मेघा सुत सा० कर्मण भार्या कम्र्मादे पुत्र व्य० समधर भार्या वईजू पुत्र व्य० सहिता व्य० सहिता व्य० सिहदत्त व्य० श्रो पति आत्म श्रेयसे सा० सहिसाकेन भार्या अमरादे - युतेन श्री आदिनाथ त्रिंवं कारितं प्रतिष्टितरच वृदुतपा पक्षे श्री श्री उदय सामर सूरिभिः ॥ श्री ॥
-
प्रेमचन्द मोदी टोंक |
( 683 )
सं० १३६८ वर्षे • जगधर भार्या दमल पुत्र सीकतेन भार्या सहजल सहितेन - श्रेयसे श्री शांतिनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं श्रोगुणचंद्र सूरि शिष्यैः श्रो घर्मदेव सूरिभिः ।
( 684 )
सं० १३७८ प्राग्वाट ज्ञातीय ठ० वयंजलदेव पुत्रिकाया वाएल - मलधारि श्री पद्मदेव सूरि --- श्री तिलक सूरिभिः ।
( 685 )
सं० १८८१ वर्षे चैत्र सुदि ६ बार रवि दिने श्री वृद्धपोसल गच्छे - श्री माली वृद्ध थास्वायां सा० माणकचंद कुवेरसा -- भार्या वाई डाहीकेम श्रीसुमतिनाथजी विवं भरापितः श्री आनंद सोम सूरिजी प्रतिष्टितं सुख यस्तु ।
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( १६२)
( 666 )
सं० १३१४ वै० सु०३ ---विवं का० श्री चन्द्र सूरिभिः ।
( 687 )
सं० १३७३ ज्ये. सु० १२ • राणिग भा० लाडी पु० महण सीहेनपितामाता अयोर्थ श्री महावीर विवं का० प्र०---- श्रीसालिभद्र (?) सूरि श्रीमणि भद्रसूरिभिः ।
( 688 )
सं० १३८७ --- श्री आदिनाथ वि० का० प्र० श्री महातिलक सूरिभिः ।
(689 )
सं० १११६ वर्षे वै० व० ३ सोमे प्रा० ज्ञा० पितृ घणसोंह मातृ हांसलदे श्रेयसे सुत सादाकेन श्री अजितनाथ विवं पंचतीर्थी का. प्र. श्रीनागेन्द्र गच्छे श्रीरत्नप्रस सूरिभिः॥छ॥
( 690 )
सं० १४६३ फा० सु. ६-- श्रीमाल - श्री तेजपाल भा० ... श्रेयसे सुत भादाकेन भी आदिनाथ वि०प्र० श्री जयप्रस सूरीणामुपदेशेन।
( 601 ) सं० १४८६ वर्षे --श्रीमाल .. आदिनाथ विवं प्र० श्री नरसिंह सूरीणामुपदेशेन ।
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(१५५)
(682)
सं० १५११ व ज्येष्ठ व रवी उसवाल ज्ञा. म०पूना प्रा. मेलादे सु. वीजल प्रा. हाही तयो श्रेयसे मातृ आसुदत्त हीराभ्यां श्री विमलनाथ विवं का• पूर्णिमापक्षे भीम पल्लीय महा. श्री जयचंद्र सूरीणामुपदेसेन प्रतिष्ठितं ॥
(603)
सं १५१८ व• फा० वा. १ गुरु श्रीमाली ज्ञा. म. गोवा भा० नाऊ सुत जूठाकेन पितमात अयोर्थ श्रीधर्मनाथ विंवं का.प्र. श्रीब्रह्माणगच्छे श्री मुनि चंद्र सूरि पहे श्री वीर सूरिभिः ॥ वलहारि वास्तव्यः । श्री।
(694)
सं० १६८५ व० वै० सु० १५ दिने क्षत्रि रा. पुजा का.... श्री नमिनाथ विवं श्री विजयदेव सूरिभिः प्रतिष्ठितं ॥
__(695 )
सं० १७७८ ०० --.. श्रीसुमतिनाथ वि. का. प्र० वि० श्रोधर्मप्रभ सूरिभिः पिप्पलगच्छे।
सेठ वाल्हा भाई टोंक।
( 696 ) - संवत १५२५ वर्षे फाल्गुन सुदि शनी श्रीमूलसंघ सरस्वती गच्छे बलात्कार गणे श्री कुंदकुंदाचार्यान्वये H• श्रीपद्मनंदिदेवा तत्पदे म० श्री सकल कोचि देवा तत्पदे
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. ( १९४) म० श्री विमलेंद्र कीर्ति गुरूपदेशात् श्री शांतिनाथ हूंवड़ ज्ञातीय सा. नादू मा० अंमल सु.सा. काहा मा० समति सु० लषराज भा० अजो धा० जेसंग भा. जसमादे भा. गांगेज मा. पदमा सु. श्री राजसचवीर नित्य प्रणमंसि श्रीः ।
( 697 )
संवत १६२८ वर्षे वै. बु० १० बुधे श्रीमालज्ञातीय महषेता मा हासी सुत मूलजी मा० अहिवदे केम ओ वासपूज्य विवं कारापितं श्री तपा ओ होर विजय सूरिभिः प्रतिहितं शुभं भवतु ॥ छ॥
मोती साह टोंक।
( 693 )
सं० १५०३ ज्येष्ठ शु. ६ प्राग्वाट स० कापा भार्या हासलदे पुत्र कामणेन भार्या नागलदे पुत्र मुकुंद नारद भ्रातृ धना श्रेयसे जीवादि कुटुम्ब युतेन निज पितृ श्रेयसे श्री नमिनाथविवं क. प्र. तपा गच्छे श्री जयचन्द्र सूरि गुरुभिः।
मूल टोंक ।*
( 699 )
सं० १८९३ ना मिती ज्येष्ठ वदी १२ गुरुवासरे प्रोमकसुदाबाद वास्तव्य ओसवाल जातीय वृद्ध शाषायां नाहार गोत्रीय सा. खड्ग सिंहजी तत् पुत्र सा उत्तम चंदजी तव मार्या वीवी मया कुवर श्री सिद्धाधलीपरि श्री ऋषभदेवजी परी मागाद मध्ये
श्री भादिश्वर भगवानके मूल मंदिरके ऊपर संग्रह कर्ताकी वृद्ध पितामही साहिवाकी प्रतिष्ठित यह आलेख का लेख है। महान तीर्थक और ख प्रशस्ति मादि पश्चात प्रकाशित होगा।
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माटोये प्रतिमा विधि मया कुंवर स्वहस्ते स्थापितं प्रतिष्टितं च श्री वृहत खरतर गच्छे । ।जु । श्री जिन सोमाग्य सूरि जीवित राज्ये पं. देवदच जी तत् शि. प. हीरा चंद्रेण प्रतिष्ठितं च श्री।
रैनपूर तीर्थ। मारवाड़के पंचतीर्थीमें रैनपूर तीर्थ नलिनीगुल्म विमानाकार तेमकिला अगणित स्तम्मोंसे भरा हुआ त्रिलोक्य दोपक नामक विशाल मंदिरके कारण जगत्प्रसिद्ध है। "आयुकी कोरणी रैनपूराकी मांडनी" देखने ही योग्य है।
मंदिरकी प्रशस्ति ।
( 700 ) स्वस्ति श्री चतुर्मुख जिन युगादीश्वराय नमः ॥ श्रीमद्विक्रमतः ११९६ संख्य वर्षे श्री मेदपाट राजाधिराज श्री वप्प १ श्री गुहिल २ मोज ३ शील १ कालसोज ५ अर्त भर सिंह ७ सहायक र राज्ञो सुत युतस्व सुवर्णतुला तोलक श्रीखुम्माण ६ श्रीमदल्लट १० नरवाहन ११ शक्तिकुमार १२ शुचिधर्म १३ कीर्गिवर्म १४ जोगराज १५ वैरट १६ वंशपाल १७ बैरिसिंह १५वीरसिंह १९ श्री अरिसिंह २० चोड़सिंह २१ विक्रमसिह २२ रणसिंह २३ क्षमसिंह २४ सामंतसिंह २५ कुमारसिंह २६ मधनसिंह २७ पद्मसिंह २८ प्रसिंह २६ तेजस्विसिह ३. समरसिंह ३१ चाहूमान भीकोतूक नृप श्रीअल्लावदीन सुरत्राण जैत्र वय वश्य श्री भुवन सिंह ३२ सुत श्रीजय सिंह मालवेश गोगादेव जैत्र श्री लक्ष्मसिंह पुत्र अजयसिंह ३५ भातु श्री अरिसिंह भी हम्मीर २७ भी खेतसिह ३८ मी लक्षाहूयनरेन्द्र ३६ मंदन सुवर्ण तुलादिदान पुण्य परोपकारादि सारगुण सुरद्रुम विश्राम नंदन श्रीमोकल महिपति १० कुलकानन पंचान
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( १६६ )
नस्य । विषम तमाभंग सारंगपुर नागपुर गागरण नराणका अजयमेरु मंडोर मंडलकर बुदी खाटू चाट सुजानादि नानादुर्ग लीलामात्र ग्रहण प्रमाणित जित काशिरवाभिमानस्य। निज अजोर्जित समुपार्जितानेक भद्र गजेन्द्रस्य। म्लेच्छ महीपाल व्याल चक्रवाल विदलन विहंगमेंद्रस्य। प्रचंड दोदंड खंडिताभिनिवेश नाना देश नरेश भाल माला लालित पादारावंदस्य। अस्खलित ललित लक्ष्मी विलास गोविंदस्य। कुनय गहन दहन दवानलायमान प्रताप व्याप पलायमान सकल बलस प्रतिकूल क्षमाप श्वापद वदस्य। प्रवल पराक्रमाकांत ढिल्लिमंडल गूर्जरत्रा सुरत्राण दत्तातपत्त प्रथित हिन्दु सुरत्राण विरुदस्य सुवर्ण सत्रागारस्य षड्दर्शन धर्माधारस्य चतुरंगवाहिनी वाहिनी पारावारस्य कीर्तिधर्म प्रजापालन सत्रादि गुण क्रियमान श्रीराम युधिष्ठिरादि नरेश्वरानुकारस्य राणा श्री कुमकर्ण सार्वीपतिसार्वभौमस्य ४१ विजयमान राज्ये तस्य प्रासद पात्रेण विनय विवेक धैर्योदार्य शुभ कर्म निर्मल शीलाद्यद्भुत गुणमणिमया भरण भासुर गात्रण श्री मदहम्मद सुरत्राण दत्त फुरमाण साधु श्रीगणराज संघ पति साहचर्य कृताश्चर्यकारि देवालयाडंबर पुरःसर श्री शत्रुजयादि तीर्थ यात्रेण । अजा हरी पिंडर वाटक सालेरादि बहुस्थान नवीन जैन विहार जीर्णोद्धार पद स्थापना विषम समय सत्रागार नाना प्रकार परोपकार श्री संघ सस्काराद्य गण्य पुण्य महार्य क्रयाणक पूर्यमाण अवार्णव तारण क्षम मनुष्य जन्म यान पात्रेण प्राग्वाट वंशावतंस स० सागर (मांगण ) सुत स० कुरपाल मा० कामलदे पुत्र परमार्हत धरणाकेन ज्येष्ठ भातृ सं० रत्ना भा. रत्नादे पुत्र सं० लापा म(स)जा सोना सालिग स्व मा० स० धारल दे पत्र जाज्ञा जावडानि प्रवर्द्धमान संतान यतेन राणपुर नगरे राणा श्री कनकर्ण नरेन्द्रण स्वनाम्ना निवेशिते तदीय सुप्रसादादेशसस्त्र लोक्यदीपकानिधानः श्री चतुर्मुख युगादीश्वर विहार कारितः प्रतिष्ठितः श्रीरहत्तपा गच्छे श्रीजगच्चंद्र सूरि श्रीदेवेंद्र सूरि संताने श्रीमत् श्रीदेवसुन्दर सूरि पह प्रभाकर परम गुरु सुविहित पुरंदर गच्छाधिराज श्रीसोमसुन्दर सृरिभिः ॥ कृतमिदंच सूत्रधार देपाकस्य अयं च श्रीचतुर्मुख विहार: आचंद्रार्क नंदाताद् ॥ शुभं भवतु ॥
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( १९७) पाषाण और धातुओंके मूर्ति पर।
(701 )
सं० ११८५ चैत्र सुदि १३ श्री ब्रह्माण गच्छे श्री यशोभद्र सूरिभिः --- स्थाने देव सरण सुत बीशके ---श्री गुह .. कारिता।
( 702 )
संवत १२९० वर्षे माघ सुदि ५ सुक्र में बढ़पाल श्री. जगदेवाभ्यां श्रेयोर्थे पुत्र सामदेवेन भातृ पून सिंह समेतेन चतुर्विंशति पह कारितः प्रतिाप्ठतं यद्गच्छीयैः श्रो शांति प्रम सूरिमिः।
( 70 )
संवत ११६८ वर्षे सा• साजण मार्या सिरिआदे पुत्र चांपाकेन भार्या चापल देव्यादि कुटुम्ब युतेन अनागत चतुर्विशत्यां श्री समाधि विवं का० प्र० तपा श्री सोम सुन्दर सूरिभिः ।
(704)
। संवत १५०१ ज्ये. सुदि १० प्राग्वाट व्य. करणा सुत रामाकेन मार्या तीचणि युतेन श्रो क सुमतिनाथ विवं कारित प्र. तपा श्री सोमसुंदर शिष्य श्री मुनि सुंदर सूरिभिः ।
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( १६८ )
( 705 )
शत्रुंजयके नक्से के निचे ।
॥ ॐ ॥ सं० १५०७ वर्षे माघ सु० १० ऊकेश वंशे स० भीला भा० देवल सुत सं० धर्मा सं० केल्हा मा० हेमादे पुत्र स० तोल्हा षांगां मोल्हा कोल्हा आल्हा साल्हादिभिः सकुटु'वैः स्वयसे श्री राणपुर महानगर त्रैलोक्य दीपकाभिधान श्री युगादि देव प्रासादे - • महातीर्थ शत्रु जय श्री गिरनार तीर्थ द्वय पहिका कारिता प्रतिष्ठिता श्री सूरि पुरंदरैः ॥ तीर्थनामुत्तमं तीर्थं नागानामुत्तमा नगः । क्षत्राणामुत्तमं क्षेत्र सिद्धाद्रिः श्री जिं - मं ॥ १ श्री रुसुपूजकस्य
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धन्त
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(306)
संवत १५३५ वर्षे फाल्गुन सुदि -- दिने श्री उसत्रंशे महोरा गोत्र सा० लाचा पुत्र सा० बीरपाल प्रा० नेमलादे पुत्र सा गयणाकेन भा० मोतादे प्रमुख युतेन माता विमलादे पुण्यार्थं श्री चतुर्मुख देव कुलिका कारिता ॥
(707)
॥ ॐ ॥ सं० १५५१ वर्षे माघ बदि २ सोमे श्री मंडपाचल वास्तव्य श्री उश बंध शंगार सा० धर्मसुत सा० नरसिंग भा० मनकू कुक्षि संभूत सा० नरदेव भायां सोनाई पुत्ररत्न सा० संग्रामेन कायोत्सर्गस्थ श्री आदिनाथ विंवं कारितं । प्र० वृ० तपा श्री उदयसागर सूरिभिः स्थापित श्री चतुर्मुख प्रासादे धरण बिहारे ॥ श्री ॥
1
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________________
(११
)
सहस्रकूट पर।
( 708 ) सं० १५५१ व० वैशाख पदि ११ सोमे से जावि भा० जिसमादे पु० गुणराज मा. सुगणादे पुजगमाल प्रा० श्री बच्छ करावित ( उत्तर तर्फ) वा. गांगांदे नागरदात वा. साडापति प्रो मूजा कारापिता मा० मीत्तवि० रामा० मा० कम --- ।
(709)
संवत १५५२ ब० मिगशर सुदि गुरु दिने श्री पाटण वास्तव्य ओस वस ज्ञातीय म. धणपति मा. चांपाई भाई मं० हरषा मा. कीकी पु. मं. गुणराज म० मिहपाल । करावत ॥
( 710)
सं० १५५६ वर्षे वे. सुदि ६ शनी श्री स्तम्भतीर्थ वास्तव्य श्री उस वश सा० गणपति भा. गंगादे सु० सा० हराज मा. धरमादे सु० सा. रत्नसीकेन भा.कपूरा प्रमु० कुटुंब युतेन राणपुर मंडन श्री चतुर्मख प्रासादे देव कुलिका का--- श्री उसबाल गच्छे श्री देव नाथ सूरिभिः।
( 711 )
सं० १५५६ वर्षे वै० सुदि ६ शनी श्री स्तभ्मतीर्थ वास्तव्य श्री उसवंश सा० आसदे भार्या सपांड सुत सा० साजा मार्या राजी सुत सा. श्री जोग राजेन भ्रातृ सभागा स्वमार्या प्रथ० सोवती देती० सं० अखा ---सहजो सा० माकर प्रमुख कुटुंब युतेन
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( १७०)
स्व यसे श्री राणपुर मंडन श्री चतुर्मुख प्रासाद देव कुलिका कारिता श्री चतुर्मुस प्रासादे श्री उदय सागर सूरि श्री -ष्टि सागर सूरिणामुपदेशेन ।
(712)
संवत १५८-- वर्षे माघ सुदि १० उकेश वंशे छाजहड़ गोत्रे सा. साध पुत्र सा. उमला मातृ पुण्यापं श्री धर्मनाथ का• प्र० श्री जिन सा--- सूरिमिः।
पूर्व सभामण्डपके खंभे पर।
(713)
॥ॐ॥सं १६११ वर्षे वैशाख शुदि १३ दिने पात साह श्री अकबर प्रदत्त जगद्गुरु विरुद धारक परम गुरु तपा गच्छाधिराज प्रद्यरक श्री हीर विजय सुरीणामुपदेशेन श्री राणपुर नगरे चतुर्मुख श्री धरण विहार श्री महम्मदाबाद नगर निकट वयुसमापुर वास्तव्य प्राग्वाट ज्ञासीय सा. रायमल भार्या वरजू भार्या सुरूपदे सरपुत्र खेता सा. नायकाभ्यां भावरधादि कुटुंब युताभ्यां पूर्व दिग् प्रतोल्या मेघनादाभिधो मंडपः कारितः स्व अयोर्थे ॥ सूत्रधार समल मंडप रिवनाद विरचितः ॥
दूसरे आंगनमें ।
( 714)
ॐ ॥ संवत १६४७ वर्षे फाल्गुन मासे शुक्लपक्षा पंचम्यां तिथी गुरुवासरे श्री तपा गरछाधिराज पाससाह श्री अकबरदत्त जगद् गुरु विरुद धारक महारिक श्री श्री श्री १ हीर विजय सूरीणामुपदेशेन चतुर्मुख श्री धरण विहारे प्रारबाट ज्ञातीय सुश्रावक सा.
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________________
( १७१ )
खेता नायकेन वर्द्धा पुत्र यशवंतादि कुटुम्बयुतेन अष्टचत्वारिंशत् (४८) प्रमाणानि सुवर्ण नाणकानि मुक्तानि पूर्व दिसल्क प्रतोली निमित्तमिति श्री अहमदाबाद पार्श्व उसमा पुरतः ॥ श्रीरस्तु ॥
( 715 )
नमः सिद्ध श्री गणेशाय प्रसादात् । संवत १७२८ वर्षे शाके १५६४ वर्तमाने जेठ सुदि १९ सोम जावर नगरे काठुड गोत्रं दोखी श्री सूजा मार्या कथनादे सुत गोकलदास भार्या गम्भीरदे अमोलिकादे सुत रणछोड़ हरीदास प्रतिष्ठित श्री संडेरगच्छे महारक श्री देवसुंदर सूरि प्रतिष्टित उपाध्याय श्री--न सुंदरजी चेला रतनसी
(716 j
सं० १७२८ मा० संडेरगच्छे उ० श्रो जनसुंदर सूरि बेला रतन राणकपूर महानगर लोक्य दीपकाभिधाने
---|
( 717 )
संवत् १९०३ वर्षे वैशाख सुदि १९ गुरौ दिने पूज्य परमपूज्य भट्टारक श्री श्री कक्क सूरिभिः गण २१ सहिता यात्रा सफली कृता श्री कवल गच्छे लि० पं० शिवसुंदर मुनिना ॥ श्रीरस्तु ॥
(718)
संवत् १९०३ वर्षे वैशाख सुदि ११ श्री जिनेश्वराणां चरणेषु । पं० शिवसुंदरः
क्षमागतः ।
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यह ग्राम रैनपुरसे ३ कोस पर है।
संवत १६२१
( १७२ )
सादडि ।
स्वस्ति श्री ऋद्धि वृद्धि जया मंगलाभ्युदय श्री- अथ श्रीतृ - विक्रमादित्य समयात्-१६४८ वर्षे वैशाख मासे कृष्णपक्ष अष्टम्यां तिथौ लामदासार गंगाजल निर्मलायां श्री उसवाल ज्ञाती कावेडिया गोत्र साह श्री भारमल गृहे भार्या बहू श्री मेवाडी - तत्पुत्र साह श्री तारा चंदजी स्वर्गारूढो जातः तत्र बहू श्री तारादे १ बह ओो त्रिभवणदे २ बहू श्री असवदे ३ बहू श्री सोभागदे ४ सहगत ---
नाकोडा ।
मारवाड़ के मालानी - परगने के नगरके पास पहाड़ों के बीच यह एक प्राचीन स्थान है ।
( 720 )
पार्श्वनाथ जिन चैत्ये चतुष्किका कारापित श्रावक संघेन ।
---
--
(719)
( 721 )
• संवत १६३८ आशाढ़ सुदि २ गुरुवार -
( 722 )
संवत १६४२ भाद्रपद सुदि १२ सोमवार
-1
- राउल श्री मेघराजजी विजय राज्ये -
--1
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________________
(१७३)
(723)
संवत १६६६ भाद्रपद शुक्ल पक्ष तिथि द्वितीया दिने शुक्रवासरे वीरमपुर श्री शांतिनाथ प्रासाद भूमि गृहे श्री खरतरगच्छे श्री जिन चंद्र सूरि विजयाधिराज आचार्य श्रो सिंह सुरि राज्ये श्री संघेन लिखितं ।
(724)
उपाध्याय श्री ५ देवशेखर विजय राज्ये ॥
॥ॐ॥ सं० १६ असाढ़ आदि ६७ वर्षे भाद्रपद शुक्ल पक्ष श्री नवमि दिने शुक्रवासरे श्री वीरमपुरवरे श्री पार्श्वनाथ श्री महावीर स्वामी श्री पल्लीवाल गच्छे महारिक श्री यशोदेव सूरि विजय राज्ये राउल श्री तेजसोजी विजय राज्ये कारित श्री संघेन पंडित श्री सुमति शेखरेण लिपीकृतं सुत्रधार दामा तत्पुत्र मना धना वरजांगेन कृतं ॥ भ्रात्रोज सामा मेया कला पुत्र कल्याण ॥ आनेज नासण श्री पार्श्वनाथ श्री महावीरजी रक्षा शुभं भवतु ---
(725) संवत् १६६८ वर्षे द्वितीय आसाढ़ शुक्ल ६ शुक्रवासरे उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्रे श्री तेजसिंहजी द्राज्ये श्रीतपागच्छे अहारक श्री विजय सेन सूरि विजय राज्ये आचार्य श्री विजयदेव सूरि विजय राज्ये ।
(726)
स्वस्ति श्री तथा मंगलमभ्युदयश्च । संवत १६७८ वर्षे शाके १५४४ प्रवर्त्तमान द्वितीय आसाढ़ सुदि २ दिने रविवारे रावल श्री जगमालजी विजय राज्ये श्री पलिकीय
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(१७१)
गच्छे अहारक श्री यशोदेव सूरिजो विजयमाने श्री महावीर चैत्ये श्री संघेन चतुष्किका कारिता श्री नाकोड़ा पार्श्वनाथ प्रसादात् शुभं भवतु । उपाध्याय श्री कनक शेखर शिष्य पं० सुमति शेखरेण लिखित श्री छाजद दीव सेखाजी संघेन कारापिता सूत्र धारः अजल मातु मामा घडिता भवन कचरा--1
छत्रीमें।
( 27 ) ॥ ॐ ॥ श्रीमत् श्री जिन भद्र सूरि भृत्याणां बुजाप्तोदया। धन्याचार्यपदावदातवदिताः श्री कीर्तिरत्नावया ॥ नम्रा नम्र सरोज रस्मणि विना प्रोच्छासितां हिद्वया। राजा नन्द करा जयंतु विलसत् भी शंखवालान्वया ॥ -
बालोतरा। श्री शीतलनाथजी का मंदिर धातु मूर्तियों पर।
( 748 ) सं० १२३४ ज्येष्ठ सुदि ११ सा० जणदेव आर्या जेउत पुत्र वीरा देवेन भात वाहह वीरदे श्रेयामकारि प्र. देव सूरिभिः।
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(१७५)
( 729 ) सं० ११०१ वैशाष : श्री आदित्य माग गोत्रे सघ• कुलियात्मजा सा० काम पुत्रण स-- पुत्र भेयसे श्री शांति विवं कारितं प्रति० श्री कक्क सूरिभिः ।
(730 )
सं० १५०१ वर्ष माघ यदि ६ बुधे उपकेश ज्ञाती आविणाग गोत्र सा० कालू पु. वील्ला भार्या देवा आत्म श्रेयसे श्री श्रेयांस विवं कारितं श्री उकेश गच्छे ककुदाचार्य संताने प्रतिष्ठितं श्री कुकुम सूरिभिः ।
( 731 )
सं० १५०४ वैशाख सु०७ दिने श्री उकेश वंशे सा० डोडा पुत्र सा. नाय --- सहितेन स्वपुण्यार्य श्री पार्व जिन विवं का प्र० श्री खरतरगच्छे श्रोजिन भद्र सूरिभिः ।
( 732 )
सं० १५०६ वर्षे कार्तिक सु० १३ गुरौ, उपकेश वंशे वहरा गोत्रे सा०---पुत्र हरिपाल भार्या राजलदे पुत्र सा. घरमा भार्या धनाई पुत्र सा. सहजाकेन स्वपित पुण्यार्थ श्री वासुपज्य विवं कारितं । श्री खरतर गच्छे श्री जिनराज सूरि पट्टे श्री जिन भद्र सूरि युगे प्रधान गुरुभिः प्रतिष्ठितः ।
(733)
सं० १५०० वर्षे -- उपकेश वंशे बहरा गोत्रे सा..-- श्री सुमतिनाथ विवं कारिता श्री खरतर गच्छे श्री जिनराज सूरि पह भी जिन भद्र सूरिभिः प्रतिष्ठितं ।
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( १७६)
( 734 ) सं० १५२५ वर्षे मार्ग शीर्ष बदि शुक्र श्री उपकेश ज्ञातीय त्री दगड़ गोत्र म. पनरपास पु० बछराज मा. कम्मी पुत्र सारंग सुदय बच्छाभ्यां पितु पुण्यार्थं श्री कुंघुनाथ विवं कारिता प्र० श्री रुद्र पल्लीय गच्छे श्री देवसुंदर सूरि पह H० श्री सोम सुंदर सूरिभिः।
( 735 ) सं० १५३७ वर्षे वैषाख सुदि ७ दिने श्रोउपकेश वंशे व - रा गोत्र अभयसिंह संताने सा• कुता भार्या लषमादे सा० डाहत्य श्रावण मा. पूराई पुत्र मरा जीवा देवादियुतेन श्री धर्मनाथ विंव का० श्री खरतर गच्छे श्री जिनमद्र सूरि पह श्री जिनचंद्र सूरि पट्टे त्री जिन समुद्र सूरिभिः प्रतिष्ठितः॥
भावहर्ष गच्छके उपासरेमें केशरियानाथजी का देरासर ।
( 36 ) ॥ॐ॥ सं० १०६-वैशाख बदि ५-..- प्रतिमा कारितेति ।
( 737 )
सं० १५३३ श्री माल फोफलिया गोत्रे सा० यहड़ मा० नापाई पुत्र बुढाकेन मा० --- कदयेन यतेन श्रीविमलनाथ विवं का०प्र० श्रीधर्म घोष गच्छे श्री पद्मानन्द सूरि श्री।
( 738 ) सं० १०१८ सा. रामजा सुत तेजसो श्री आदिनाथ विवं का. प्र. श्री विजय गच्छे वापणा सुमति सागर सूरिभिः आचार्य श्री -..।
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( १७७) वाड़मेड़। गोपोंका उपासरा। धातुके मूर्तियों पर।
( 739 ) स० १५२७ ३० माह शु० १३ उ० सा० साल्हा भा. होसलदे पुत्र सा० गुण दत्त न मा. गेलमदे पु. तिहणा गोपादि कु० युतेन श्रीसुमतिनाथ विवं का. प्र. तपागच्छे श्री सोम सुन्दर सूरि संताने श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिः ॥ श्री॥
(740)
सं० १५८० वर्षे वैशाष सुदि १३ शुक्र श्री श्री माल ज्ञा० म० डोरा भा• सपो सु. सं. हेमा मा. हमीरदे मं० प्रचाकेन भावमी सु० अमरा यतेन स्वयसे श्री सविधिनाय विवे श्री पू० श्री पुण्य रन सूरि पदे भो सुमति रत्न सूरिणामुपदेशेन कारितं प्रतिष्ठितंच विधिना ॥ श्रो॥
यति इंद्रचन्दजीका उपासरा ।
( 741 ) सं० १५१२ वर्षे बैशाष सुदि ५ श्री श्रीमाल ज्ञा० अ० सहसा मा० मोली पुत्र जिनदास महाजल युतेन स्वयसे श्री कुंथुनाथ विवं का० आगम गच्छे श्री हेम रत्न सूरिणा मुपदेशेन प्रतिष्ठितः।
(742) सं० १५१४ मा-शु० - प्राग्वाट ज्ञा० सल्हाकेन भा० वर्जू सुत सा० वीरा माणिक
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(१७) बछादि कुटुंध युतेन पितृव्य सा. चांपा अयोधं सुमति नाथ विवं कारितं प्र. तपा श्री सोम सुन्दर सूरि श्री मुनि सुन्दर सूरि पढे श्री रत्न शेखर सूरिमिः।
. बडा मन्दिर श्रीपार्श्वनाथजीका ।
सभा मण्डप।
(743)
ॐ नमो भगवते श्री पार्श्वनाथाय नमः ॥ संवत १८५८ वर्षे माह सुदि ५ शुक्ल पक्ष प्रतिपदा तिथी सोम वासरे राठउड़ वंशे राउत श्री उदयसिंह श्री वाक पत्राका नगर- . - राज्ये कुपा - श्री त्रां-कीय सहिभिः ॥ श्री विधि पक्ष मुख्यामिधान युग प्रधान श्री पता श्री धर्म मूर्ति सूरि अंचल गच्छीय समस्त श्री संघमें शांति श्रेयोर्थ श्री पार्श्वनाथ प्रासाद कारितः।
पञ्च तीर्थियों पर।
( 4 )
सं० १९०३ माह बदि ५ शुक्रे श्री उदयपुर नगर वास्तव्य श्री सहस्र फणा पार्श्वनाथजीकी धरिसातांता संघ समस्त मीणक बाई श्री शांतिनाथ पज तीर्थ कारापित तपा गच्छे पं० रूप विजय गणिभिः प्रतिष्टितं च ।
दुसरा मंदिर।
(1) संवत १५४० वर्षे जेष्ठ सुदि १० सोमे श्री श्री माल ज्ञातीय पितामह रा. बस्ता पितामही कोल्हणदे सुत पित स० पक्षा मात राजयोथै सुत सं० सहसा सागा सहदे
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( १७९ )
घरणा एवं श्री आदिनाथ मुख्यश्चतुर्विंशति पट्टः कारितः पुनिम पक्ष साधु रस्न सूरिणामुपदेशेन प्रतिष्ठित शंडलि वास्तव्यः ।
( 746 )
सं० १५२० श्री मूल संघेन महारक श्री विजय कीर्त्ति श्र०
सभा मंडप ।
( 747 )
रहन
॥ ॐ ॥ संवत् १६७६ वर्षे माघ सुदि १५ रात्र वासरे खरतर गच्छ भहारक श्री जिन - पुष्य नक्षत्रः राऊत श्री उदयसिंहजो विसरि विजय राज्ये जयराज्ये ॥ श्री सुमतिनाथ रउ नवत्रु कीउ श्रो संघ करावउ सूत्रधार पीसा पुत्र नवा नववु कीउ । सूत्रधार नारयण नट संघ धन ।
( 748 )
सं० १९२६ वर्षे भद्रपद कृष्णपक्ष ७ बुध - वृहत्खरतर गच्छे भहारक श्रीमगत सुर रावतजी श्री वाकीदासजी जुहारसिंग विजय राजे श्री सुमतनाथजीशिणगार कीधी.
--|
--|
( 749 )
॥ ॐ ॥ संवत १३५२ वैशाख सुदि ४ श्री वाहडमेरी महाराज कुल श्री सामंत सिंह देव कल्याण विजय राज्ये तन्नियुक्त श्रो करण मं० वीरामेल वेलाउल भा० मिगन प्रभुत बोधं अक्षराणि प्रयच्छति यथा । श्री आदिनाथ मध्ये संविष्ठमान श्री विघ्नमर्दन
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( १८०)
क्षेत्रपाल श्रीचउंड राज देवयो उमय मार्गीय समायात सार्थ उष्ट्र १० वृष २० उभयादपि उर्दू साथै प्रति द्वयो देवयोः पाइला पदे प्रियदश विशोप का अझैहुँन ग्रहीत. व्याः। असो लागो महाजनेन सामतः॥ यथोक्त बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजतिः सगरादिभिः । यस्य यस्य यदा भूमी तस्य तस्य तदाफल ॥ १॥ छ॥
मेडता
यह भी मारबाडका एक प्राचीन नगर है।
श्री आदिनाथजी का मंदिर-डानियोंका मुहल्ला ।
1750)
संवत १६७७ वर्से ॥ वैशाख मासे शुक्ल पक्ष तृतीयाया तिथौ शनि रोहिणी योग श्री मेडता नगर वास्तव्य श्री माल ज्ञातीय पाताणी गोत्रीय सं भोजा भार्या मोजलदे पुत्रेण संघपति घेतसोकेन स्व० मा० चतुरंगदे पुत्र डुंगसी प्रमुख कुटुंब युतेन स्व श्रेय से स्वकारित रंगदुत्तग शिखर बद्ध श्री ऋषभदेव विहार मंडन सपरिकर श्री आदिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठापितंच प्रतिष्टायां प्रतिष्ठितंच सपागच्छे श्रीमदकबर सुरप्राण प्रदत्त - - - क श्री शत्रजयादि कर मोचक अहारक श्रो होर विजय सूरि राज पहोदय पर्बत सहस्त्र फिरण यमान युग प्रधान प्रहारक श्री विजयसेन सूरिश्वर पह प्रभावक श्री ओ मद्द जांहगीर साहि प्रदत्त भी महानपा बिरुदधारक श्री महावीर तीर्थकर प्रतिष्ठित श्री सुधर्म स्वामि पट्टधर --- सुविहित सूरि समा शृगार महारक ओ विजय देव सूरिभिः ।
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( १८१ )
सर्व धातु की मूर्तियों पर ।
( 751 )
सं० १५३४ वर्षे आषाढ़ सुदि २ गुरौ भंडारी गोत्रे सा० बील्हा संताने मं० मायर भार्या सुहदे पुत्र स० अस्का भार्या लषमादे भातृ सांपायने श्रो कुंथुनाथ विंवं कारितं श्रयसे प्रति० संडेरंग गच्छे श्रोईवर सूरि पट्ट े श्री शांति सूरिभिः ।
तपगच्छका उपासरा ।
( 752 )
सं० १६५३ वर्षे चै० शु० ४ श्री कुंथनाथ विंवं गांदि गोत्रे श्री - स० सुरताण भा० वीरदे पुत्र सादूल श्री तपागच्छे श्री विजयसेन सूरि पं० विनय सुंदर गणि प्रतिष्ठितं ।
श्री पार्श्वनाथजी का मंदिर |
( 753 )
सं० १५२८ वर्षे फा० बदि १३ श्री माली श्र े० समरा भा० धर्मिणि ५० श्र े० मूलू भा० ० काका झा० काउ पुत्री लापू नाम्न्या पु० सांगा भा० बाधी २० कुटुम्ब युतया श्री शांति विवं का० तथा श्री क्ष ेम सुन्दर सूरि -
---|
( 754 )
सं० १६७७ वर्षे अक्षय तृतीया दिने शनि रोहिणी योगे मेढता नगर वास्तव्य सा०
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( १८२ )
लाषा भा० सरूपदे नाम्न्या श्री मुनि सुव्रत विंवं कारितं प्रतिष्ठितं भहारक श्री विजयसेन सूरीश्वर पह प्रभाकर जिहांगीर महातपा विरुद विख्यात युग प्रधान समान सकल सुविहित सूरि सभा शृंगार प्रहारक श्री ५ श्री विजय देव सूरि राजेंद्रः ।
श्री वासुपूज्यजी का मंदिर ।
(755)
सं० १५३२ वर्षे ज्येष्ठ बदिा १३ बुध प्राग्वाट ज्ञा० अ० आसघर भार्या गागी सुत मदन दमा जिनदास गीवा पुत्र पौत्रादि सहितेन आत्म श्रयार्थं श्री श्री शांतिनाथ विवं कारित प्रतिष्ठितं श्री बृहत्तपा गच्छे श्री जिनरत्न सूरिभिः ।
(755)
सं० १६८७ व० ज्येष्ठ सुदि १३ गुरौ स० जसवंत भा० जसवंत दे पु० अचलदास केन श्री विजय चिन्तामणि पार्श्वनाथ विंवं का० प्र० तपा श्री विजयदेव सूरिभिः ॥
श्री धर्मनाथजी का मंदिर ।
(757)
सं० १४५० बर्ष फाल्गुन सुदि १० बुधे ऊ० गुगलिया गोत्र सा० चीरा प० सोहाकेन श्री आदिनाथ विषं स्व श्रं यसार्थे संडर गच्छे प्रतिष्ठा श्री शांति सूरिभिः ।
( 758 )
सं० १४६९ वर्षे माघ सुदि ६ रवी ऊकेश ज्ञा० टप गोत्रे सा० ललना मा० उलनादे पुत्र रुपमा भार्या लाखष्ण दे पुत्र दील्हा मार्या चील्हणदे पुत्र घडसी सकुटुम्बेन श्री
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(१३) वासपूज्य विवं कारापित श्री संडेर गच्छे श्री यशोभद्र सूरि संताने प्र० श्री सुमति सूरिभिः।
(759 )
सं० १५१५ वर्षे आषाढ़ पदि १ दिने श्री उकेश वंशे घुल्ल गोत्र सा• सार्दूल जाया सुहवादे पुत्र स. पासा प्रावकेण भार्या रूपादे पुत्र पूजा प्रमुख परियार यतेन श्रीशांतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं भो खरतर गच्छे श्री जिन भद्र सूरिमिः ।
( 760 ) सं० १५१७ वर्षे माह सुदि १० सोमे सोनी गोत्र सा० धन्ना पुत्र सा० हिमपाल पुत्राभ्यां सा० देवराज खिमराजाभ्यां स्वपितृ पुण्यार्य श्री श्रेयांस विवं कारित प्रतिष्ठित तपागच्छ महारक श्री हेम हंस पदे श्री हेम समुद्र मूरिभिः ।
(781 ) सं० १५४७ वर्षे माध सु. १३ रवी श्रीमाल दो शिवा भार्या हेली सुत दो० घाईया केन भा० सलषू सु० दो० दासा संना कणेसी गांगा पौत्र कमल सीक भार्या चाडा दाया प्र० कुटुंबयुतेन श्री शितल त्रिवं कारितं श्री मधूकरा खरतर ---।
(762 )
सं० १५५६ वर्षे चैत्र सु० ७ सोम प्राग्याठ ज्ञातीय सा० चां (2) दरा भार्या संलषणदे पुत्र लोला सा० पीमा भा. पंतलदे ---- सकुटुम्बयुतेन आत्म पु. श्री चंद्रप्रभ स्वामि विवं का० अंचल गच्छे श्री सिवांश सागर सरि विद्यमाने रा. भाव बर्द्धन मणीमामुपदेशेन प्रतिष्ठित श्रीसंघेन -..।
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(११)
( 16 ) सं० १५६८ वर्ष माघ सुदि । दिन श्री माल वंशे भांडिया गोत्रे सा० साहा पुत्र सा. मरहा सुत सा. नरपाल भा० नामल दे स्वपुण्यार्थं श्री श्री श्री श्रेयांस विवं कारित प्रतिष्ठितं श्री जिन हस सूरिभिः खरतर गच्छे ।
(764)
___ सं० १५७२ वर्षे वैशाप सु०२ सोमवारे पट बड गोत्र सा० सा-र---अयसे श्री आदिनाथ विवं कारापितं श्री प्रभाकर गच्छे स्ट. पुण्यकीर्ति सूरि पह महा० श्री लक्ष्मीसागर सूरि प्रतिष्ठितं ।
(160)
सं० १५८१ वर्षे श्री विक्रम नगरे उकेश वंश वादि-रा गोत्रै सा० तेमंजउ सा. जीवास भावकेण भार्या नीवदे पुत्र जेवा काजी ताल्हण पंचायण भारमल सांदा नरसिंह सहितेन श्री श्रेयांस विवं कारित --1
( 766 )
सं० १८८३ माघ व सु०५-- पार्श्वनाथ विंध श्री विजय जिनेन्द्र सूरि --।
श्री आदिश्वरजी का नवा मंदिर ।
( 187 )
सं० १५०७ वर्षे फा० ब० ३ वुधे । ओश वंशे वहरा हीरा भा० हीरादे पु० ३० घेता
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(१५)
मा० घेतलदे पु० व. हियति पितृ श्रेयसे श्री शांतिनाय विवं कारितं श्री खरतर गच्छे श्री जिनभद्र सूरि श्री जिन सागर सूरिभिः प्रतिष्ठिता ।।
( 768 )
सं० १५२७ वर्षे वैशाख बदिइ शुक्र श्री माल ज्ञातीय पितामह वीरापितामही वीरादे सुत पितृ डाहा मात्र जासू श्रेयो) सुस राजा भोज ठाकुर सी एतै श्री विमलनाथ मुख्य चतुर्विशति पहः कारितः श्री पूणिमा पक्षे श्री साधु रत्न सूरि पढे श्री साधु सुंदर सूरीणामुपदेशेन प्रतिः विधिना श्री संधेन आंवरणि वास्तव्यः ।
( 760 )
संवत १५७६ वर्ष माघ सुदि १३ दिने बुध वासरे स्तम्भ तीर्थ धासी जकेश ज्ञातीय सा० पातल भा० पातलदे पुत्र सा जइसाभार्या फते पुत्र सा० सीहा सहिजा मा• गुरी (?) पुत्र सा० पडलिक भा० कमला पुत्र सा जीराकेन भा० पुनी पितव्य सा० सीमा पापा वजा कुटुंब युतेन पितृ वचनात् स्वसंतान अयोर्थे श्री सुमतिनाध विवं कारितं प्रति. तपागच्छे श्री साम सुन्दर सूरि संताने श्री सुमति साधु सू० पट्टे श्री हेम बिमल सूरिभिः महोपाध्याय श्री अनंत हंस गणि प्र० परिवार परिवृत्तौ।
( 770 ) संवत १६१९ वर्षे वृहत खरतर गच्छे श्री जिन माणिक्यसूरि विजय राज्ये श्री माल ज्ञातीय पापड़ गोत्र ठाकुर रावण तत्पुत्र उणगढमल तद्धार्या नयणी तत्पुत्र जीवराजेन श्री पार्श्वनाथ परिग्रह कारापितं - - धर्म सुंदर गणिना प्रतिष्ठितं शुभं भवतु ।
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( १८६)
(171)
सं० १९७७ ज्येष्ट वदि ५ गुरौ ओसवाल ज्ञातीय गणधर चोपड़ा गोत्रीय स. नामा मार्या नयणादे पुत्र संग्राम आर्या तोली पु० माला पायो मालहणदे पु० देका मा. देवलदे पु० कचरा सार्या कउडमदे चतुरंगदे पुत्र अमरसी भार्या अमरादे पुत्र रत्नसेन श्री अर्युदाचल श्री विमलाचलादि प्रधान तीर्थ यात्रादि सद्धर्म कर्म करण सम्प्राप्त संघपति तिलकेन श्री मास करणेन पितृव्य धांपसी भातु अमोपाल कपरचंद स्वपत्र ऋषभदास सूरदास भातव्य गरीवदास प्रमुख सस्त्रीक परिवारण संपरूप जी कारित शत्रजयाष्टमोद्धारमध्य स्वयं कारित अवर विहार शृगार हार श्री आदिश्वर विवे कारित पितामह बचनेन प्रपितामह पुत्र मेघा कोणा रताना समुख पूर्वज नाम्मा प्रतिष्ठितं श्री वृहत्खरतर गच्छाधीश्वर साधपद्रववारक प्रतियोधित साहि प्रोमदकघर प्रदत्त युगप्रधान पद धारक श्रीजिन चन्द्र सूरि जहांगीर साहि प्रदत्त युगप्रधान पदधारक श्री जिन सिद्ध सूरि पह पूर्वाचल सहन करावतार प्रतिष्ठित श्री शत्रुजयाप्टमोदार श्री आणवट नगर श्री शांतिनाथादि विष प्रतिष्ठा समयनि-रत्सधार श्री पार्श्व प्रतिहार सकल महारक चक्रवर्ति श्री जिनराज सूरि शिरः शृंगार सार मुकुटोपमान प्रधानः।
(772 )
सं० १७०० ३० द्वि० ० सित गुरौ गोलकुंडा था. सा. मेघा मा० मीहणदे सुत सा० नानजी नाम्ना श्री मुनि सुब्रत विवं का० प्रतिष्ठितं सपाधिपति परम गुरु महारक श्री विजय सेन सूरि पहालङ्कार पतिस्याहि श्री जहांगीर प्रदत्त महातप विरुध धारि श्री विजयदेव सूरिभिः।
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(१८७)
चिंतामाणि पार्श्वनाथजीका मंदिर।
(773) सं० १६६९ वर्ष माघ सुदि ५ शुक्रवारे म्हाराजा धिराज महाराज श्री सूर्य सिंह विजय राज्ये श्री उपकेशि ज्ञातीय लोढा गोत्र स० टाहा तत्पुत्र स. राय मल्ल भार्या रंगादे तत्पुत्र स० डाषाकेन भार्या लाडिमदे पुत्र ॥ वस्तपाल सहितेन श्री पार्श्वनाथ विवं कारित प्रतिष्ठित श्रीमत श्रीवहत्खरतर गएछे श्री आद्यपक्षीय श्री जिन सिंह सूरि तत्पहोदयाद्रि मार्तड श्री जिन चंद्र सूरिभिः ॥ शुभंभवतु ॥
पंचतीर्थियों पर।
( 774 )
सं० १४७१ वर्षे माघ स०१३ युध दिने जकेश वंशे वापणा गोत्र सा. सोहड सु. दाद मा० - - ण पितृ .. निमित्त श्री शांतिनाथ विवं का० प्र० उएसगळे श्री देव गुप्त सूरभिः।
(775)
सं० १५१० जेष्ठ सु०३ दिने प्राग्वाट पोपलिया बासिया तीरा मा० वीरी पुत्र सा. डुंगर भ्रातृ सा० खेतसि सहसा समरंदे घारकमी मार्या जासलि जत भाई कर्मादि कुटुम्ब युतेन श्री मुनि सुव्रत (?) विवं का० प्र० तपा श्री सोमसुन्दर सूरि श्री मुनिसुन्दर सूरि पढे श्री रत्नशेखर सूरिभिः।
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( १८८ )
(776)
सं० १५२९ बर्षे माघ बदि ५ रवौ ऊकेश ज्ञातीय श्री दणवट गोत्र े सा० भीम ना० भरमादे पु० दि कुटुंब युतेन श्री कुंघुनाथ विंवं का० प्र० श्री धर्मघोष गच्छे श्री प्रज्ञ शेखर सूरि पट्ट े श्री पद्मानन्द सूरिभिः ।
(777)
सं० १५३२ जेष्ठ सुदि १३ बुधे प्राग्वाट ज्ञातीय सा० मही श्री भा० राणी सुत होर झा० भरमी नाम्न्या स्व श्रयार्थं श्री सुविधिनाथ बिंबं का० प्र० तपा श्री रत्न शेखर सूरि पहाल करण श्री लक्ष्मी सागर सूरिभिः ॥ श्री ॥
( 778 )
सं० १५४७ वर्षे वैशाख सुदि २ सोमे श्री काष्टा १४. श्री सोम कीर्त्ति आ० श्री बिमलसेन नारसिंह ज्ञातीय बोरटेच गोत्रे सा० पेईथा भा० खेद्र पुत्र सा० भीमा जा० प्रटी श्री आदि - - कारापितं नित्यं प्रणमति ।
(779)
गौरी
सं० १५५२ वर्षे माघ सु० ५ प्रा० ज्ञा० सा० पुंजा भार्या रमक पुत्र - सोमकेन भा० पुत्र सा० हर्षादि कुटुम्ब युतेन श्री आदिनाथ विंवं कारितं प्रतिष्ठितं वपा गच्छे श्री सोमसुन्दर सूरिभिः श्री इन्द्रनन्दि सूरि श्री कमल कलस सूरिभिः ।
( 780 )
सं० १६५६ बर्षे वैशाष मासे सित ३ दिने रविवारे ऊकेश वंशे लोढा गोत्र संघवी हा भार्या तेजलदे पुत्र रा० रायमल्ल आर्या रंगदे पुत्र सं० जयवन्स भीमराज तयो
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( १८६) भगिनी सुश्राविका वीरा नाम्न्या स्वग्नेयसे श्री अजित नाथ विधं कारित प्रतिष्ठित प्रो चतुर्विंशति जिन बिंबं प्रतिष्ठित श्री वहत्खरतर गच्छे श्री जिन देव सूरि तत्प? श्रो जिनहंस सूरि तत्पहालङ्कार विजयमान श्रीजिनचंद्र सूरिनि सकल संघेन पूज्यमान आचन्द्रार्क नन्दतात् शुभं भवतु ॥
कडलाजी का मंदिर।
(781)
संवत १९८१ वर्षे माघ शुदि १० सोमे सघ हरषा मा० मीरा दे तत् पु० संघवो जसवंत मा. जसवंत दे तत्पुत्र सं० अचलदाससं० शामकरण कारितं प्रतिष्ठितं तपागच्छे भहारिक श्री विजय चंद्र सूरिभिः।
महावीरजी का मंदिर।
( 782 ) सं० १६५३ वर्ष वै० शु०४ बुधे श्री शांतिनाथ विवं गादहीमा गोत्रे सं० सुरताण भा• हर्षमदे पु० स० हांसा भा० लाडमदे पु० पदमसी कारित प्रतिष्ठतं श्री तपागच्छे श्री हीर विजय सूरि पह श्री विजयसेन सूरिभिः॥ पं. विनय सुन्दर गणिः प्रणमति । श्री रस्तु ।
(783 )
॥ ॐ ॥ संवत १६८६ वर्षे वैशाख सु०८ महाराज श्री गजसिंह विजयमान राज्य श्री मेडता नगर वास्तव्य ओसवाल ज्ञातीय सुराणा गोत्र वाई पूरा नाम्न्या पु० सक
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( १९० )
र्मणादि सपरिवार - श्री सुमतिनाथ विंवं कारित प्रतिष्ठित तथा गच्छाधिराज प्रहारक श्री विजय देव सूरिभिः स्वपद प्रतिष्टिताचार्य श्री श्री श्री श्री विजय सिंह सूरि प्रमुख परिकर परिवृतैः ॥
( 784 )
संवत १६७७ वर्षे वैशाख मासे अक्षय तृतीया दिवसे श्री मेडता वास्तव्य ऊ० ज्ञा. समदडिआ गोत्रीय सा० माना भा० महिमादे पुत्र सा० रामाकेन भ्रातृ राय संगच्छात प्रा० केसरदे पुत्र जईतसी उपमीदास प्रमुख कुटुंब युतेन श्री मुनि सुव्रत बिंबं का० प्र. तपा गच्छे भट्टारक श्री पं श्री विजय सेन सूरि पट्टालङ्कार भ० श्री बिजय देव सूरि सिंहैः ।
( 715 )
सं० १६७७ ज्येष्ट बदि ५ गुरौ श्री ओसलबाल ज्ञातीय गणधर चोपड़ा गोत्रीय स० कचरा भार्या कउडिमदे चतुरगदे पुत्र स० अमरसी भा० अमराठे पुत्ररत्न स० अमीपालेन पितृव्य चांपसी वृद्ध भातृ स० आसकरण लघु भातृ कपूरचन्द स्वभार्या अपूर वदे पु० गरीबदासादि परिवारेण श्री अजितनाथ वि० का० प्र० वृ० खरतर गच्छाश्वर श्री जिनराज सूरि सूरिचक्रवर्त्ति ॥
(786)
पह प्रभाकरे श्री अकबर साहि प्रदत्त युग प्रधान पद प्रवरैः प्रति वर्षापादीया ष्टाहकादि पामोसिका अमारि प्रवर्त्तकैः श्री-तं तीर्थोदधि मीनादि जीव रक्षकैः श्री शत्रुंजयादि तीर्थकर मोचकैः । सर्व्वत्र गोरक्षा कारकैः पंचनदी पीर साधकैः युग प्रधान श्री जिन चन्द्र सूरिभिः आचार्य श्री जिन सिंह सूरि श्री समय राजोपाध्याय ॥ वा० हंस प्रमोद वा० समय सुन्दर वा० पुण्य प्रधानादि साधु युतैः ।
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( १९१ )
( 787 )
संवत १६७७ ज्येष्ठ बदि ५ गुरुवारे पातसाहि श्री जिहांगीर विजय राज्ये साहियादा साहिजहां राज्ये ओसवाल ज्ञातीय गणधरचोपड़ा गोत्रीय स० नामा भार्या नयणादे पुत्र संग्राम भा० तोली पु० माला भा० माल्हणदे पु० देका भा० देवलदे पु० कचरा भा० कउडिमदे पु० अमरसी - भा० अमरादे पुत्ररत्न संप्राप्त श्रो अर्बुदाचल विमलाचल संघपति तिलक कारित युग प्रधान श्री जिन सिंह सूरि पह नंदि महोत्सव विविध धर्म कर्त्तव्य विधायक स० आस करणेन पितृव्य चांपसी भातृ अमीपाल कपूरचन्द स्वभार्या अजाइब पु० ऋषभदास सूर दास भ्रातृव्य गरीबदासादि सार परिवारेज यो स्वयं कारित मम्र्माणीमय बिहार शृंगारक श्री शांतिनाथ बिंबं कारित प्रतिष्टितं श्री महावीरदेव परंपरायत श्री वृहस्खरतर गच्छाधिप श्रीजिन भद्र सूरि संतानीय प्रतिबोधित साहि श्री मदकव्वर प्रदत्त युग प्रधान पदवीधर श्री जिन चंद्र सूरिविहित कथित काश्मीर विहार वार सिंदूर गर्जणा विविध देशामारि प्रवर्त्तक जहांगीर साहि : प्रदत्त युग प्रधान पद साधक श्रीजिनसिंह सूरि पट्टोत्तरं स खब्ध श्री अम्बिका वर प्रतिष्ठित श्री शत्रुंजयाष्ठमोद्धार प्रदर्शित भाण वडमध्य प्रतिष्ठित श्री पार्श्व प्रतिमा पीयूष वर्षण प्रभाव बोहित्थ वंशमण्डन धर्मसी घारलदे नन्दन महारक चक्रवर्त्ति श्री जिनराज सूरि दिन करैः ॥ आचार्य श्री जिन सागर सूरि प्रभृति यति राजः ॥ सुत्रधार सुजा । प्रतिष्ठित भहारक प्रभु श्री जिन राज सूरि पुरंदरैः श्रा मेडता नगर मध्ये ।
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(१९२)
प्रोसियां। ओसियां एक प्राचीन ऐतिहासिक स्थान है, विशेषकर ओसवालों के लिये यह तीर्थ रूप है। यहां पर बहससे प्राचीन कीर्ति चिन्ह विद्यमान है। शासन नायक श्री महावीर स्वामीके मन्दिरका कुछ दिनसे जीर्णोद्धार का कार्य चल रहा है। सचियाय देवी का मन्दिर भी बहुत जीर्ण हो गया है और भी बहुतसे प्राचीन मंदिर इधर उधर टूटे फूट पड़े हैं ओर समिपमें एक छोटी डूगरी पर मुनियों के अनशनके स्थान पर चरण प्रतिष्ठित है।
मंदिर प्रशस्ति ।
(788 )
॥ ॐ ॥ जयति जनन मृत्यु व्याधि सम्बन्ध शून्यः परम पुरुष संज्ञः सर्ववित्सर्व दी। समुर ननुज राजामीश्वरोनीश्वरोपि, प्रणिहित मतिभिर्यः स्मर्यते योगिवय्यः ॥ १॥ मिथ्या ज्ञान धनान्धकार निफरावष्टव्य सद्वोध दृग्दृष्टा विष्टपमुद्भवद् घनघणः प्राणभतां सर्वदा कृत्वा नीति मरीचिभिः कृत युगस्यादौ सहस्रां शुवत्प्रात: प्रास्तसमास्तनोतु भवतां पद्रस नालेः सुसः ॥२॥ यो गाण सर्व निद लिहितां शक्ति मश्रधा नः क्रूरः क्रोड़ा चिकीर्ष्या कृत --- - वृद्ध - . - -- मष्ट्या यस्याहतो सौ मृति मित इयता नामरत्वं यतो भूत्पुण्यः सत्पुण्य वृद्धि वितरतु भगवान्यस्स सिद्धार्थ सूनुः ॥ ३॥ स्यामिन्किं स्वन्निवासालय बन समयोस्माक माहं ---- नस्यावसाने - - - उस महसी काचिदन्याय देष! इत्युभ्रान्तरात्मा हरि मति भयतः सस्व जेशच्य नीचैय्य॑त्पादांगुष्टकोद्याकनक नगपती प्रेरिते व्यांत्सवीरः ॥४॥ श्री मानासीत्प्रारिह भुवि--- येक वीर स्त्रैलोक्येयं प्रकट महिमा राम नामासयेन चक्रे
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( १९३) शानं दृढनरमुरो नियालिङ्गनेषु स्व यस्या दशमुख वधोत्पादित स्वास्थ्य वृत्तिः ॥५॥ तस्या कापस्किल प्रेम्णालक्ष्मणः प्रतिहारताम् ततोऽभवत् प्रतोहार वंशोराम समद्धवः ॥ ६ ॥ तद्वशे सबशी वशी कृत रिपुः श्री वत्स राजोऽभवत्कीर्तिर्यस्य तुषार हार विमला ज्योत्स्नास्तिरस्कारिणी नस्मिन्मामि सुखेन विश्व विवरे नस्वेव तस्माद्वहिन्निर्गन्तु दिगिभेन्द्र दस्त मुसल व्याजाद कायन्मनुः ॥ ७॥ समुदा समुदायेन महता चमूः पुरा पराजिता येन... समदा॥८॥--समदारण तेनावनोशेन कृता भिरक्षः सद्ब्राह्मण क्षत्रिय वेश्य शूद्रः। समेतमेतत्प्रथितं पृथिव्या मूकेशनामास्ति पुरं गरीयः॥९॥ --- सक्रान्तं परैः ----मिव श्री मत्पालितं यन्महोभुजा। तस्यान्तस्तपनेश्वर स्थ भबन बिभद्ध शं शनतामअस्पमुद्गराज कुंजर य तं सवजयन्ती लतम् किं कूट हिम --- सत रसि ---॥१०॥ सद कायं तार्य बचसा संसार ---- या ॥ ११॥ क्यचित् - - - रबुद्धयोधिकम धोयते साधवः क्वचिस्पट पदीयसों प्रकटयन्ति धर्म स्थितिम् । क्वचिन्तु भगवत्स्तुतिं परिपठयन्ति यस्या जिरे - - - • • • - ध्वनिमदेव गाम्नायंत ॥ १२ ॥ वीक्षणे क्षणदां स्वस्य वर्गलक्ष्मी विपश्चिताम् । बुद्धिभयस्यवशास्ते यत्र पश्यन्त्यदः सदा ॥ १३ ॥ आचार्यादेवचन बन ... नि ... मुच्चः सवि-.-. पयार्यः प्रतिध्यान दण्डम् सत्यं मन्ये यदु दित मितीवा वादीसमन्सारसोय भूयः प्रकट महिमा मण्डपः कारितोत्र ॥१४॥ --- किं चान्ह ------ यिकार त्रैव -- . . . . . . -..-धः । तारापितं येन सुबंश भाजा सट्टानस माणित मार्गणेन ॥ १५॥ पुत्रस्तस्या भवत्सोम्यो वणिग्जिन्दक संज्ञितः। इन्दुघकान्ति ... लयः ॥१६॥ . . . चदुह्वग. - ह्वया प्रसाद युक्तास्त्रयशोतिरामा। सदानुसत्रों स्वपतिनदीनं मार्गणावात . . . . तरगा ॥१७॥ तस्मात्तस्याममूटुर्मा त्रिवर्ग . . . . . . . . • . . . . . . . ॥१८॥ यन्नाकारि सितेतरच्छवि . . नत्वा दिन याचित ध्यर्थे न्नास्थिं जनरपि प्रतिगतं यद्रोहमभ्यत्थितं । किं चान्यद्धबने दरोरु सर्रास व्याप .. नीर नोर दसित .............
." ॥ १८ ॥ जिनेन्द्र धर्म प्रति युक्त "योनयो
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......
.......
( १९४) .ताये ...कुमतेर्मनागपि। मि..."। बंसतोपिहि मण्डलेयवान सन्मणीनां भवतीहकाचता .....॥२०॥ यदि वादि. .."संज्ञिता" जाकलावपि ॥२१॥ तत्र ब्रह्म वो स्वगो सम्पाप्त तन्महिलया। दुर्गया प्रतिमा कारिस
प्रधामनि ॥ २२ ॥ आवकात्सर्वदेव्यात..........."यत.........."देवदत्त
....... मिवागमे ॥ ...... "पति दिनमिति ......... ... या कार्य प्रति विदधते यदधिकं ॥ ध्येयवन्तो पिये त्यन्तं भीरबः परलोकतः । मोगि . ..हिको . .. पच दूरगाः ॥ ... सि. बला बतत्स
पुत्रयं भूमण्डनो मण्डपः । पूर्वस्यां ककुमि त्रिनारा विकलः सन्गोष्ठिकानु . . "जिन्दक .. . मतदु ...व्य . कृतोय .. नेन जिनदेव धाम तत्कारित पुनरमुष्य अषणं । मत्स दृग्दृश्यते वजयत्री भ्रूजयन्त .. ॥ संवत्सर दशशत्यामधिकायां वत्सरे स्त्रयो दशभिः फाल्गुन शुक्ल तृतीया भाद्र पदाजा . सं० १०१३ ..... ....
या॑म ॥ पाजापत्यं दधदपि मना गक्षमालो पयोमी शंख चक्र स्फुटमपिव . .. करोवः पाया .."भुवन गुरुन्नति .. ॥ भावद्गोग्Y ढ वन्हिग्गुरु भर विन मन्मूर्द्धभियंते घोयावन्मेरुमरुभिन्नि . ति युते.... पशिखमुखच्छेद ... श्री मद . ..दशा पुच. .. नित्यमस्तु ॥ जयतु अगवांसताव.. कीर्तिनि रीति वपुः सदा॥ यस्मादस्मिन्निजम्मन्यवरि पति पति श्री ........समा ... "प्रकट सुतारनो ".."" सूत्रधारत्व ......": ब्धिति..दित मिदं।
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(१९५) तोरण पर।
( 789 ) सं० १०३५ आषाढ़ सुदि १. आदित्य वारे स्वाति नक्षत्रे श्री तोरणं प्रतिष्ठापिमिति
स्तम्भ पर।
( 790 ) सं. १२३१ मार्ग सुदि ५ वांधल पुत्र यशोधर वोहिव्य मूला देवि ---।
२४ माताके पट्ट पर।
( 791 ) सं० १२५९ कार्तिक सु० १२ सुचेत गुत्री सहदिग पूरैः शशु दरदी सुखदी सल्ल सर्व प्रसाद चतुर्विशति जिनः मातृ पट्टिका निज मातृ जन्हव अयोर्थ कारिता श्री कल सूरिभिः प्रतिष्ठिता।
मूर्तियों पर।
( 792 ) सं० १०८८ फाल्गुन बदि ४ श्री नागेन्द्र गच्छे श्रो बासदेव सूरि संघ नानेतिहड़ श्रेया राखदोव कारिता।
(793 )
सं० १२३४ वैसाख सुदि ११ मंगल । नागदेव वर्षा शामपद धनाय शोध । भार्या यशोदेव्या त्राम पोय पदे।
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( १९६ )
( 794 )
सं० १२३४ वैशाख शुक्ल १४ मंगलवार सार्व्वदेव सुत नागदेव तत्सुतेन पारो पारेन जिन त्रित सादेव मणि कुतेन ।
( 295 )
सं. १४३८ वर्षे आषाढ सुदि ६ शुक्रे मोढ़ वास्तव्य सा० डा- भार्या यससारदे भार्या सूमलदे सुत साहूण सामल पितृ मातृ श्रयार्थं ठ० महिपालेन श्री पार्श्वनाथ विंवं कारित आगम गच्छे श्री जय तिलक सूरि उपदेशेन ।
( 796 )
सं० १४९२ वर्षे वैशाख वदि ५ श्री कोरंटकीय गच्छे सा. ३० शंष बालेवा गोत्रे सा० बास माल भार्या लक्ष्मीदे पुत्र ३ प्रता मिहा सूरांयानी पितृ में बसे श्री संभवनाथ विंवं कारितं पुताकेन का० प्र० श्रो सावदेव सूरिभिः ।
797 )
सं० १५१२ वर्षे फाल्गुन सुदिप शनि श्री उसम से० भार्या माणिकदे सुत रणाग्र भार्यायां ४० पिधा भार्या वां सुतयो याते जूखाण श्री कुंथुनाथ विवं कारित प्रतिष्ठित श्री वृहद् तपापंकज श्री बिजय तिलक सूरि पट्ट े श्री विजय धर्म्म सारे श्रो भूयात् ॥
( 798 )
सं० १५३४ वर्षे माघ सुदि ५ दिने सीढ ज्ञातीय मंत्रि देव वक्कु सुत मंत्रि सह साह - ताभ्यां श्री धर्मनाथ विंवं पित्रो श्रेयसे प्रतिष्ठित श्री विद्याधर गच्छे श्री हेम प्रभु सूरि मंडलिराभ्यां कृपः ।
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(१०)
( 799 ) सं० १५४६ वर्षे माघ सु. ५ गुरौ गंधार वास्तव्य श्री श्री माल ज्ञातीय सा० शिवाभार्या माणिक्यदे नाम्नी सयो सुत सा• लोजकेन मा० अमादे धर्मादे नाम्नी युतेन स्वमात्री श्रेयसे श्री विमल नाथ विवं कारित प्रतिष्ठा श्री बृहत् सपा पक्षे श्री उदय सागर सूरिभिः।
( 800 )
सं० १६१२ वैशाख सुदि ५ दिने श्री लालूण करापितं ।
( 601 ) स० १६८३ ज्येष्ठ सु० ३ कडु या मति गच्छे भादेवा पुत्री राजवाई केन श्री सम्भव वित्र सा. तेजपालेन प्र।
( 802) संवत् १७५८ वर्षे आषाढ़ सुदि १३। रविवार शुभ दिने श्री वृहत् खरतर गच्छ महारक भी जिन राज सूरि । गणे शिष्य - - - ।
नींवमें प्राप्त मूर्त्तिके टूटे चरण चौकि पर ।
(803 )
ॐ संवत् ११०० मार्गशिर मुदि६ ....... - सालीभद्र . . . . . . . देव कर्म अयो) कारित जिनेत्रिकम् - . -।
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________________
(१९८) श्री सचियाय माताका मंदिर।
(804)
सं० १२३६ कार्तिक सुदि १ बुधवारे अद्यह भी केलहण देव महाराज राज्ये तत्पुत्र श्री कुमर सिंह सिंह विक्रमे श्री माढव्य पुराधिपती-- - दमिकान्वीय कीर्ति पाल राज्य वाहके तद्भुक्तो श्री उपकेशीय श्री सञ्जिका देवि देव गृहे श्री राजसेवक गुहिल गो ऋय विषयी धारा वर्षेण श्री क संचिका देवि भक्ति परेण श्री संच्चिका देवि गोष्ठिकान णित्वा तत्समक्ष सइयं व्यवस्था लिखापिता। यथा। श्री सच्चिका देवि द्वारं भोजकैः प्रहरमेकं यावदुवाट्य द्वार स्थितम् स्थातव्यं । भोजक पुरुष प्रमाणं द्वादश वर्षायोत्परः । तथा गोष्ठिकैः श्री सच्चिका देवि कोष्ठागारात् मुग मा घृत कर्ष १ मोजकम्यो दिन प्रति दातव्यः ।
( 805)
संवत् १२३१ चैत्र सुदि १० गुरी घोर घड़ांशु गोत्र साध बहुदा सुत साघ जाल्हण तस्य भार्या सूहवं तयोः सुतेन साधु माल्हा दोहित्रन साधु गयपालन-.. सरिचको देवि प्रासाद कर्मणि चंडेका शीतला श्री सच्चिका देवि क्षमं करी श्री क्षेत्र पाल प्रतिमाभिः सहितं जंघा घरं आत्म श्रेयाय कारित।
( 806 )
संवत् १२४५ फाल्गुन सुदि ५ अद्येह श्री महावीर स्यशाला निमितं पाल्हिया धीय देव चन्द्र बधू यशोधर भार्या सम्पूर्ण श्राविकया आत्म श्रेयार्थ आत्मीय स्वजन वर्गा समन्तेन स्वगृहं दत्त।
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( १९९ )
( 807 )
सं० १२४५ फाल्गुन सुदि ५ अद्येह श्री महाबीर रथशाला निमित्तं पाल्हिया धीत देव चंड बंधू यशघर भार्या सम्पूर्ण श्राविकया आत्म श्रयार्थं समस्त गोष्ठि प्रत्यक्ष व आत्मीया स्वजन वर्ग समतेन आत्मीय गृहं दत्त ।
इंगरीके चरण पर |
( 808 )
सं० १२४६ माघ बदि १५ शनिवार दिने श्री मज्जिनभद्रोपाध्याय शिष्यैः श्री कनक मन महत्तर मिश्र कायोत्सर्गः कृतः ।
पाली ।
यह भी मारवाड़का एक प्राचीन स्थान है। यहांके लेख पण्डित रामानन्दजीने संग्रह किया है।
नौलखा मंदिर |
( 809 )
संवत् १९४४ वैशाख बदि ७ पल्लिका चैत्ये वीर ।
संवत् १९४४ ज्येष्ठ वदि ४ शील
( 810 )
--1
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(२००)
( 811 ) संवत् ११४४ माघ सु० ११ वीर उल्लदेव कुलिकायां पुल भाजिताभ्यां सांत्याप्त कृतः श्री ब्राह्मी गच्छां प्रदेवाचार्यन प्रतिष्ठितः।
(812 )
संवत् ११५१ मासाढ सुदि ८ गुरौ - - - ।
( 813 ) ॥ॐ ॥ संवत् ११७८ फाल्गुन सुदि ११ शनी श्री पल्लिका श्री वीरनाथ महा चेत्ये श्री मदुद्योतनाचार्य महेश्वराचार्यामनाय देवाचार्य गच्छे साहार सुत धार सघण देवी तयोर्मस्य धनदेव सुत देवचन्द्र पारस सुत हरिचन्द्राभ्यां देव चन्द्र भार्या वसुन्धरिस्तस्या निमित्तं श्री ऋषभ नाथ प्रथम तीर्थंकर विवं कारितं गोत्राधं च मंगलं महावीरः ।
(214)
ॐ। संवत् १२०१ ज्येष्ठ पदि ६ रखो श्री पल्लिकायां श्री महावीर चैत्ये महामात्य श्री आनन्द सुत महामान्य श्रो पृथ्वीपालेनात्मयोथं जिन युगलं प्रदत्तम् श्री अनन्त नाध देवस्य।
1815)
ॐ। संवत १२०१ ज्येष्ट यदि ६ रवी श्रो पल्लिकायां श्री महावीर चैत्ये महामान्य श्री आनन्द सुत महामान्य श्री पृथ्वी पालेनात्म श्रेयोर्थ जिन युगलं प्रदत्तम् श्री विमल नाथ देवस्य।
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- सुदि ३ सा
सं. १५ विवं का० प्र० श्री भिम्नमाल गच्छे ।
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( २०१ )
(816)
का० सा० मद्या ---
( 817 )
संवत् १५०६ वर्षे भाद्र सुदि ५ रबी
....
स्व श्रयसे श्री कुंपनाथ
( B18 )
सं० १५१३ माघ सुदि ३ दिने उकेस सा० मदा भा० वालहदे पुत्र खा० क्षैमाकेन भा० सेल भातृ हेमा कान्हर मल प्रमुख कुटुंब युतेन श्रो अजित नाथ बिंबं का० प्र० तपा श्री रत्न शेखर सूरिभिः ।
(819)
सं० १५२९ वर्षे माह सु० ५ रबी ऊ० भोगर गो० सा० राणा भा० रत्नादे पु० चाहड़ भा० रइणे पु० खरहथ खादा खात खना धित श्री नेमिनाथ विंवं कारि० श्री नागेन्द्र गच्छे प्रतिष्ठित श्री सोम रतन सूरिभिः ।
( 820 )
संवत् १५३२ वर्षे चेंत्र सुदि ३ गुरु ऊ० गुगलिया गोत्र सा० खीमा पुत्र काजा भा० रतमादे पु० वरसा नरसा थादा मार्या पुत्र सहितेन स्व श्रयसे श्री खंडेर गच्छे श्री जियो भद्र सूरि संताने श्री चंद्र प्रभ स्वामि विंवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री सालि सू
--1
( 82I )
स. १५३४ वर्षे ज्येष्ठ सुदि १० श्री ऊक्रेश वंशे गणधर गोत्र साधु पासड़ भार्या लखमादे पुत्र सा० भोजा सुश्रावक्रेण भ्रातृ सा० पदा तत्पुत्र सा० कोका प्रमुख परिवार
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( २०२) सहितेन स पुण्यार्थ श्री संभवनाथ विवं कारित प्रतिष्ठितं श्री खरतर गच्छे पो जिन भद्र सूरि पहा जिन चन्द्र सूरिभिः ॥
(822)
सं० १५३१ वर्षे फागुन शु०२ गरी ऊ० चूदालिया गोत्रच ऊ. सा. सिवा भा० सहागदे पुत्र सा. देवाकेन भार्या दाडिमदे पुत्र आसा भार्या जमादे इत्यादि कुटुय युतेन स्व श्रेयसे श्री संभवनाथ विवं का. प्रति श्री सूरिभिः श्री वीरमपुरे।
( 823 ) संवत् १५३६ वर्षे फाल्गुन सुदि ३ रवी फोफलिया गोत्रं सा० मूला पुत्र देवदत्त भार्या साह पुत्र सा० वरु श्रावकेण भार्या नामल दे परिवार यतेन श्री आदिनाथ विवं श्रेयसे कारितं श्री खरतर गच्छे श्री जिन भद्र सूरि प? श्री जिनचन्द्र सूरि श्री जिन समुद्र सूरि प्रतिष्ठितं ।
824 ) संवत् १५५५ वर्षे जेष्ठ दि १ शुक्रे उकेस न्यातीय काकरेचा गात्रे साह जारमल पुः ऊदा चांपा ऊदा मा० रूपी प. वाला खतावाला भावहरङ्गदे सकट व अ० उदा पूर्व प. श्री चंद्र प्रत मूलनायक चतर्विशति जिनानां विंवं कारितं प्रतिष्ठित श्री संडेर गच्छे श्रो जसो भद्र सूरि सन्ताने ही शांति सूरिमिः ।
(825)
सम्वत् १६८६ वर्षे वैशाख सुदि ८ शनी महाराजाधिराज महाराज श्री गज सिंह विजय माम राज्ये युवराज कुमार श्री अमर सिंह राजिते तत्प्रसाद पात्र चाहमान वशावतन्स श्री जसवन्त सुत भा जगन्नाथ शासने श्री पाली नगर बास्तव्य श्री श्री श्री
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( २०३ ) माल ज्ञातीय सा० मोटिल मा० सोमाग्यदे पुत्र रत्न सा. इंगर भाखर नाम भात द्वयेन सा. डंगर मा. नाथदे पुत्र सा. रूपा रायसिंह रतन सा. पौत्र सा० टीला सा. भाखर प्रा. माबलदे पुत्र ईसर अरोल प्रमुख कुटुव यतेन स्व द्रव्य कारित नवलखाख्य प्रसादोर श्री पार्श्वनाथ विवं सपरिकरा स्व श्रेयसे कारितं प्रतिष्ठापितंच स्व प्रतिष्ठायां प्रतिष्टितंच श्रीमदकवर सुरत्राण प्रदत्त जगद्गुरु विरुद धारक तपा गच्छाधिराज अहारक श्री हीर विजय सूरि पह प्रभाकर महारक श्री विजयसेन सूरि पहालंकार भहारक श्री बिजय देव सरिभिः स्वपद प्रतिष्टिताचार्य श्री विजय सिंह प्रमुख परिकर परिकरितः ओं श्री पल्लीकीये द्योतनाचार्य गच्छे ब्रही भादा मादा को तयोः अयार्थं लखमण सुत देशलेन रिखानाथ प्रतिमा श्री वीरनाथ महाचैत्ये देवकुलिकायां कारित ॥
(826)
संवत् १६८६ वर्षे वैशाख मासे शुक्ल पक्ष अति पुण्य योगे अष्टमी दिवसे श्री मेड़ता नगर वास्तव्य मूत्र धार कुधरण पुत्र सूत्र० ईसर हदाह सा नामनि पुत्र लखा चोखा सुरताण ददा पुत्र नारायण हंसा पुत्र केशवादि परिवार परिवर्तः स्व श्रेयसे श्री महावीर विंवं कारित प्रतिष्टापितं च श्री पाली वास्तव्य सा. दुगर आखर कारित प्रतिष्ठायां प्रतिष्ठितं च महारक श्री विजय सेन सूरि पहालंकार भहारक श्री श्री श्रो विजय देव सूरिभिः स्वपद प्रतिष्ठाचार्य श्री विजय सिह सरिभिः ।
(827) सं० १६८६ वर्षे वैसाख मासे शुक्ल पक्षे पुण्य योगे अप्ठमी दिससे महाराजाधिराज महाराज श्री गजसिंह विजयमान राज्ये तस्सुत युवराज कुमार श्री अमर सिंह राजिते तत्प्रसाद पात्रं चाहमान वंशावतंस श्री जगन्नाथ नाम्नि श्री पालि नगर राज्यं कुर्वति सन्नगर वास्तव्य श्री श्री श्री माल ज्ञातीय सा. मोटिल आ. सोभाग्यदे पुत्र रत्न सा. भाखर नाम्ना मा० भावलदे पुत्र स० ईसर अटोल प्रमुख परिवार युतेन स्व श्रेयसे श्री
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( २०१) सुपार्श्व विवं कारितं प्रतिष्ठापितं स्व प्रतिष्ठिायां प्रतिष्ठितं पातशाह श्री मदकवर शाहप्रदत्त जगद्गरु विरुद धारक तप गच्छाधिपति प्रतिष्ठिताचार्य श्री विजय सेन सूरि।
( 828 ) स. १७०० वर्ष माघ सित द्वादश्यां बुधे श्री श्री योधपुर वास्तव्य उसवाल ज्ञातीय मुहंणोत्र गोत्र जयराज भार्या मनोरथ दे पुत्र सुभा पु० ताराचन्द भाज राजादि युतेन श्री शीतल पार्श्व वीर नेमी मूर्ति स्फूर्ति मरकोश विशन्ति जिन विंव विराजित दल दशकं चतुर्विशति जिन कमल कारितं प्रतिष्ठितं सपा गच्छे भहारक श्री विजय देव सूरि आचार्य श्री विजय सिंह निदेशात् उ० सप्तमे चंद्र गणिमिः ।
श्री गौड़ी पाश्वनाथजीका मंदिर ।
मूलनायकजी पर।
(629) संवत् १६८६ वर्षे वैशास्त्र सुदि र राजाधिराज महाराज श्री गजसिह विजय मान रोज्ये मेड़ता नगर वास्तव्य - - - - हा वंशे कुहाड़ गोत्रं सा. हरपा भार्या मिराटे पत्र सा.चसवंत केन स्व श्रेयसे श्री पार्श्वनाथ विवं कारितं स्थापित च। महाराणा श्रीजगतसिंह बिजय राज्ये श्री गोढ़वाड़ देशे श्री विजयदेव सूरीश्वरोपदेशतः वापरला । वास्तव्य समस्त संघेन। शिरिराया उपार निर्मापितेन विधेन प्री० श्रा प्रतिष्टितंच तप गच्छाधिराज अहारक श्री मदकवर सुरत्राण प्रदत्त जगद्गुरु बिरुद धारक भ० हीर विजय सूरीश्वर पह प्रमाकर महारक श्री विजय सेन सूरीश्वर पहालंकार महारक श्री विजय देव सरिभिः स्वपद प्रतिष्ठाचार्य श्री विजय सिंह सूरि प्रमख परिकर परिकरितः।
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( २०५ )
लोढारो बासका मंदिर |
(830)
ॐ ह्रीं श्रीं नमः ॥ श्री पातिसाह पुण साहजी विजय राज्ये । संवत् १६८६ वर्षे वैशाख सिताष्टमी शनिवासरे महाराजाधिराज महाराजा श्री गजसिंह जी विजय रा श्री पालिका नगरे सोनिगरा श्री जगंनाथ जी राज्ये ऊपकेस ज्ञातीय श्री श्री माल चंडालेचा गोत्रे सा० गोटिल भार्या सोभागदे पुत्र सा० हु गर भातृ सा-भाषर नामभ्यां - डुगर भार्या नाथलदे पुत्र रूपसी राई स्यघर भना भाषर भार्या चाचलदे पु० ईसर आयेल रूपा - पु० टीला युतेनं स्व श्र ेयसे श्री शांतिनाथ विवं कारापितं प्रतिष्ठित ॥ श्री चैत्र गच्छे शार्दूल शाखायां राज गच्छान्वये भ० श्री मानचन्द्र सूरी तत्पद्द े श्री रत्नचन्द्र सूरि वा० तिलक चंद्र मु० पति रूपचंद्र युतेन प्रतिष्ठ। कृता स्व
यो श्री पालिका नगरे श्री नवलषा • प्रासादे जोर्णोद्धार कारापित मूल नायक श्री पाश्वनाथ प्रमुख चतुर्विशति जिनानां बिंब० प्रतिष्ठापितानि सुवर्णमय कलश डंडे रुप्य सहस्त्र ५ द्रव्य कृते नाव बहु पुन्य उपार्जितं अन्य प्रतिष्ठा गुरजर देशे कृता श्री पार्श्व गुरु गोत्र देवी श्री अम्बिका प्रसादात् सर्व कुटुम्ब वृद्धि भूयात् ॥
श्री शांतिनाथजी का मंदिर ।
( 831 )
संवत् १९४५ आषाढ सुदी ६-० ।
श्री सोमनाथका मंदिर ।
( 839 )
संवत् १२०८ द्वि० ज्येष्ठ बदि : अद्य हे श्री पल्लिकायां ग्रामे अणहिल पाटकाधिष्टित
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समस्त राजावलो विराजित परम महारक महाराजाधिराज परमेश्वर उमापति वर लब्ध ----- ---निज विक्रमे रणांगन विनिर्जित शाकं भरी मूशल श्री मस्कुमार पाल देव कल्याण विजय राज्ये - - - - - ।
नाडोल । मारवाड़के देसूरी जिलेके समीप यह स्थान भी बहुत प्राचीन है।
श्री आदिनाथजी का मंदिर।
( 833 )
ॐ संवत् १२१५ वैशाख सुदि १० मोमे वीसाढा स्थाने श्री महावीर चैत्ये समुदाय सहितैः देवणाग नागढ जोगह सतैः देम्हाजघरण जसचन्द्र जसदेव जसधवले जसपाल. श्री नेमिनाथ वि कारितं ॥ वहद्गच्छीय श्री मोव सूरि शिष्येन पं० पद्मचन्द्र गणिना प्रतिष्टितं ॥
(631)
ॐ संवत् १२१५ वैशाख सुदि १० भीमे वीसाढा स्थाने श्री महावीर चैत्ये समुदाय सहितः देवणाग नागड जोगड सुतैः देम्हाजधरण जसचन्द्र जसदेव जसधवल जसपालैः श्री शांतिनाथ विवं कारितं ॥ प्रतिष्टितं वृहदगछीय श्री मन्मुनिचन्द्र सूरि शिष्य श्री मट्टीव सूरि विनेवेन पाणिनीय पं० पदमचन्द्र गणिना। यादृिषि चन्द्र खीस्यातां धर्मोजिन प्रणीसोस्ति। सावज्जाया देस जिन युगलं वीर जिन भुवने।
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(२०७)
( 835 )
संवत् १४३२ वर्षे पोह सुदि-यवत जैता मार्या० कह पुत्र नामसी मार्या कमालदे पितदय निमित्तं श्री शांति नाथ विंव कारापित्त प्रतिष्टितं श्री नांवदेव सूरिभिः ॥
(836)
सं० १४८५ वै० शु. ३ बुधे प्राग्वाट श्री समरसी सुत दो० घारा मा० सूहयदे सुत दो महिपाल भा. माणदे सुत दो. मलाकेन पितव्य दो. धर्मा भ्रात दो० माईआभ्यां च दो० महिपा श्रेयसे श्री सुविधिविध कारितं प्रतिष्टितं श्री तपागच्छेश श्री सोम सुदर सूर्गिभः।
(837 )
श्री नन्दा प्रभु विवं। सं० १६८३ प्रथमाषाढ़ वदि ५ शुक्र राजाधिराज श्री गज सिंह प्रदत्त सकल राज्य व्यापाराधिकारेण मं० जेसा सुत जयमल्ल जी नाम्ना श्री चन्द्र प्रभु विवं कारितं प्रतिष्ठापितं स्वप्रतिष्ठायां श्री जालोर नगरे प्रतिष्ठितं च तपागच्छाधिराज । श्री हरि विजय सेन सूरि पहालंकार । श्री विजय सेन सूरि पहालंकार पातशाहि जहांगीर प्रदत्त महासपा विरुदं धारक १० श्री ५ श्री विजयदेव सूरिभिः स्व पद प्रतिष्ठिताचार्य श्री विजय सिंह सुरि प्रमुख परिवार परिकरितैः राणा श्री जगव सिंह राज्ये नाडुल नगर राय विहारे श्री पदम प्रभविंवं स्थापित ।
(838)
संवत् १९८६ वर्षे प्रथमाषाढ व०५ शुक्र राजाधिराज गजसिंह जी राज्ये योधपुर जगर वास्तव्य मणोत्र मेमा सुनेर । जयमल जी केन श्री शांतिनाथ विवं कारिस
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(२०)
प्रतिष्ठापित स्व प्रतिष्टाया प्रतिष्ठितं च श्री तपा गच्छेश ओ५ श्री विजय देव सूरिभिः स्व पहालंकार आचार्य श्री ५ श्री विजय सिंह सूरि प्रमुखः स परिवारः ।
ताम्र शासन ।*
(939 )
ओं ॥ ओं नमः सर्वज्ञाय । दिसतु जिन कनिष्ठः कर्म बंध क्षयिष्ठः परिहत मद मार क्रोध लोमादि धारः । दुरित शिखरि सम्यः स्वो वशीयं च सम्ध स्त्रिभुवन कृतसेवा श्री महाबीर देवः ॥१॥ अस्ति परम आजल निधि जगति तले चाहुमाण वंशोहि तत्रासान नले भूपः श्री लक्ष्मणादी ॥२॥ तस्मात् बभूव पुत्री राजा श्री सोहिया रसदन सूनुः । श्री बलि राजो राजा विग्रह पालोनू चपितव्यं ॥३॥ तस्यात्तनुजो भूपालः श्री महेन्द्र देवाख्यः। सज्जः श्री अणहिल्लो नृपति वरो भूत पृथुल तेजः ॥४॥ तत्सूनुः श्री वाल प्रसाद इरय जना पार्थिव ध्रष्टः । तदभ्राताऽभूत क्षितिपः सुभटः श्री जैद्र राजारूयः ॥५॥ श्री प्रथिवी पालोऽभूत् सत्पुत्राः सौर्य वृत्ति शोसाठ्यः । तस्मादसवरमाता श्री जाजलाला रणरमारमा॥६॥ सदेवराजो भूस्छीमान् आशाराजः प्रतापवर निलयः। सत्पुत्राः क्षोणिपः श्री अरुहण देव नामाभूत् ॥७॥ यस्य प्रताप प्साले सकुल दिक चक्र पृथुल विस्तारं । सिंचंति मुदिताहित गण ललमा नयन सलिलोधः ॥८५ सोय महा सितिशः सामिदं यद्धिमान चिन्तयत । इह संसार असारं सर्व जन्मादि जन्तुनां यतः । गर्म खि कुक्षिः मध्ये पल रुधिर बसा मेदसा बटु पिण्डी मातु प्राणांतकारी पसवन समये प्राणनां स्थान्नु जन्मा धर्मादानामवेत्ता प्रतिहि नियतम् बाल नाव स्ततः स्यात् तारुण्यम स्वरूप मात्रं स्वजन परिभव स्थानता वृद्ध नावः ॥१०॥ खद्योतोयोम तुल्यः क्षणः मिह सुखदाः सम्पदा दष्ट नष्टः प्राणित्वं चंचलं म्यादामुपरि यया नार विन्मुन्नलिन्याः ज्ञास्वैमं स्त्र * यह नामापत्र प्रसिद्ध कर्नेल र माहब यहांसे लेकर विलायतके रयल एशियाटिक मुसाइटीमें दान किया है।
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(२०६ )
पिनो स्पृहयनमरताम् चेहिकम् धर्म कोर्ति देशान्तो राज पुत्रान जन पद गणान बोधयत्येव वोस्तु ॥११॥ सं० १२१८ वर्षे प्रावण सुदि ११ रवी अस्मिन्नेव महा चतुर्दशी पर्वणो। स्नास्वा घोत पटें निबेश्य दहने दस्वाहुनीन पुण्य न मार्तण्डस्य समः प्रपाटन पटोः सम्पर्य चापंजजलि । लोकस्य प्रभु चराचर गुरू' संस्नप्य पंचामतः ईशान कनकाम्न वस्त्र नदन सम्पूज्य विमां गुरु ॥१२॥ अन्तिल कशाक्षतोदकः प्रगुणी प्रता पसव्यकः पाणिः शासनमेनमयच्छत यावत् चंद्राकं भूपालं ॥१३॥ श्री नडल महास्थाने श्री संडेरक गम्छे श्री महावीर देवाय श्री नड्डूल तल पद शुल्क मंडपिकायां मासानुमासं धूप वेलार्थ शासनेन द्र०५ पंच प्रादात् अस्य देवरस्यन अंजानस्य अस्मद्रशे जयिविमोक्तिभिरपरैश्च परिपंधाना न कार्या। यतः सामान्योयं धर्म सेत न पाणां काले काले पालनीयो भवद् मिः सर्वान एवं भावीनः पार्थिवेन्द भूयो भूयो याचते रामचन्द्रः ॥१४॥ तस्मात्। अस्मदन्वयजा भूपा मावी भूपतयश्च ये। तेषामहं करे लग्नः पालनीयं इदं सदा ॥१५॥ अस्मद्वंशे परीक्षीणे यः कश्चिन नपति भवेत् तस्याहं करे लग्नोस्मि शासनन व्यतिक्रमेत् ॥१६॥ यहनिर्वसुधा भुक्ता राजकः: सगरादिभिः यस्य यस्य यदा भूमि तस्य सस्य सदा फल ॥१७॥ षष्टि वर्ष सहस्राणि स्व तिष्ठति दानदः आच्छेत्ता चानुमत्ता च तान्येव नरकम् वशेत् ॥१८॥ स्व दत्तं पर दत्त वा देव दायं हरेत यः स विष्टायां कृमि स्वा पितृभिः सह मज्जति ॥१६॥ शून्याटवो व्यतोयासु शुष्क कोटर बासिनः । कृष्णा हयोनि जायंते देव दायम हरंति ये ॥२०॥ महल महा प्राः। प्राग्वाट वंशे धरणिग्ग नाम्नः सुतो महो मात्यवरः सुकर्मा वनय दूताः प्रतिमा निवासी लक्ष्मीधरः श्री करणे नियोगी ॥२१॥ आसीत् स्वच्छ मला मनोरथ इति पार नगमानां कुल शास्त्र ज्ञान सुधारस प्लवित धिष्टज्जो प्रवत वासलः । पुत्रस्तस्य बभूव लोक वसनिः श्री श्री धरः श्री धरे सूपास्ति रचयांचकार लिलिखे चेदं महा शासन ॥२२॥ स्व हस्तीयं महाराज श्री मल्हण देवस्य।
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( २१. )
तामापत्र ( महाजनों के पास )
ॐ स्वस्ति । श्रिये भवंत वो देवा ब्रह्म श्रीधर शंकराः । सदा विरागवंतो में जिना जगति विश्रुमाः ॥१॥ शाकंभरो नाम पुरे पुरासी छी चाहमानान्धय लब्ध जन्मा। राजा महाराज नतांति युग्मः ख्यातो वनो वाक्पति राज नामा ॥२॥ नड्डूले समाभूत्तदोय तनयः श्री लक्ष्मणा भपति स्तस्मात्सर्व गुणान्वितोः न पवरः श्री शाभिताख्यः सुतः । तस्मा च्छी बलिराज नाम नपतिः पश्चात् तदीयो मही ख्यातो विग्रह पाल इत्यभिधया राज्ये पितृव्याज प्रवत् ॥३॥ सस्मितीव्र महा प्रताप तरणिः पत्रो महेंद्री भवसज्जा छी अहिल्ल देव न पतेः श्री जेंद्रराजः सुतः। तस्माद्दुर्द्धर बौर कुंजर बघ प्रशाल सिंहोपमः सत्कीया धवलाली कृताखिलजग च्छी आशराजो न पः ॥४॥ सत्पत्रो निज विक्रमार्जित महाराज्य प्रतापोदयो यो जग्राह जयश्रिय रण अरे व्यापाद्य सौराष्ट्रकान । शोचाचार विचार दानव सति नड्डल नाथा महा संख्योत्पादित वोर वृत्तिरमलः श्री अल्हणो भूपतिः ॥५॥ अनेन राज्ञा जन वितेन। राष्ट्रौड वंश जय रा सहलस्य पुत्री अन्नल्ल देवीरिति शोल विवेक युक्ता । रामेण बै जनकजेव वियाहिता सौ ॥६॥ आभ्यां जाताः सपत्रा जग धियो रूप सौंदर्य युक्ताः। शरः शाखः प्रगलमाः प्रवर गुणः गणास्त्यागवन्तः सुशाला: ज्येष्ठ श्री केल्हणाख्य स्तदनु च गज सिंह स्तथा कीर्ति पालो। यद्वन्नेत्राणि शंभो खि पुरुष वदधामीजने बंदनीयाः ॥७॥ मध्यादमासा परिवारानथो ज्येष्ठोगंजः क्षोणि तले प्रसिद्धः । कृतः कमारो निज राज्य धारी श्री केरुहणः सर्व गुणोरुपेतः ॥८॥ आभ्यां राज कुल श्री आल्हण देव कमार श्री केल्हण देवाभ्यां राजपुत्र को कात्त पालस्य प्रसादे दत्त नडूलाई प्रतिवद्ध द्वादश ग्राम ततोराज पत्र श्री पालः । संवत् १२१८ श्रावण वदि ५ सोमे॥ अद्यहं भी नडले स्नात्वा धौ ।। - राय निलाक्षत कश प्रणयिन दक्षिण कर कृत्या
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( २११ )
देवान्दकेन संमर्य। वहलतम तिमिर पटल पाटन पटीयसो निःशेष पातक पंक प्रक्षालनस्य दिवाकरस्य पूजां विधाय। चराचर गुरु महेश्वरं नमस्कृत्य । हुन भुजि होम द्रव्याहुती वा नलिनी दल गत जल लव तरलं जीवितव्यमाकलच्य। ऐहिकं पारत्रिक च फलमंगीकृत्य स्व पण्य यशोनि वृद्धये शासनं प्रयच्छसि यथा ॥ श्री नइलाई ग्रामे श्री महावीर जिनाय नडलाई द्वादश ग्रामेष ग्राम प्रति द्वौ द्रम्मौ स्नपन विलेपन दीप धूपोपतोगार्थं । शासने वर्ष प्रति माद्रपद मासे चंद्राकं क्षिति कालं यावत् प्रदत्तो। नद लाइ ग्राम । सूजेर । हरिजी कविलाडं। सोनाणं। मोरकरा । हरबंदं माहाड । काण सुवं । देवसूरो । नाडाड मउबड़ो। एवं ग्रामाः एतेषु द्वादश ग्रामेषु सर्वदाप्यस्मामिः शासने दत्तो। एभिमरधुना संवत्सर लगित्या सर्वदापि वर्ष प्रति भाद्र पदे दातव्यो। अत ऊई केनापि परिपंथना न कर्तव्या। अस्मद्वंशे व्यतिक्रांते योऽन्य कोपि भविष्यति तस्याहं करे लग्नो न लोप्य मम शासनं । षष्ठि वर्ष सहस्राणि स्वर्गो तिष्ठति दायकः । आच्छेत्ता चानमंसा च तान्येव नरके वसेत् ॥ वहनिर्वसधा भक्ता राजभिः सगरादिभिः । यस्य यस्य यदा मि तस्य तस्य तदा फलं॥ स्व हस्तोयं महाराज पुत्र श्री कीर्ति पालस्य ॥ नैगमान्वय कायस्थ साढनप्ता शुभं कर: दामोदर सुतो लेखि शासनं धर्म शासनं ॥ मंगल महा श्रीः ।।
(
41 )
संवत् १२१३ वर्षे मार्गा वदि १० शुक्रे ॥ श्रीमदहिल्ल पाटके समस्त राजा बली समलं कृत परम महारक महाराजाधिराज परमेश्वर उमापति बर लब्ध प्रसाद प्रोद प्रताप निज भुज विक्रम रणं गण विनिर्जित शाकंभरी भूपाल श्री कुमार पाल देव कल्याण विजय राज्ये। तत्पाद पद्मोपजीविनि महामात्य श्री बहड़ देव श्री श्री करणादौ सकल मुद्रा व्यापारान्परि पंचयसि यथा। अस्मिन् काले प्रवर्त्तमाने पोरित्य वोडाणान्वये महाराज श्री योगराज स्तदे तदीय सुत संजात महामंडलीक. श्री वस्त
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राजस्सदस्य सुत संजात ऽनेक गुण गणालंकृत महा मंडलीक० श्री मता प्रताप सिंह शासन प्रयच्छति यथा। अत्र नदूल डागिकायां देव श्री महायोर चैत्ये। सथाहारष्टनेमि चैत्ये शील बंदडा ग्रामे श्री अजित स्वामि देव चैत्ये एवं देव त्रयाणां स्वीय धर्माथे वदर्य मंडपिका मध्यात् समस्त महाजन महारक ब्राह्मणादय प्रमुख प्रदत्त त्रिहाइका रूपक १ एक दिन प्रति प्रदातव्यामदं । यः कोपि लोपि पति सो ब्रह्महत्या गो हत्या सहस्रेण लिप्यते । यस्य यस्य यदा भूमि तस्य तस्य तदा फलं । बहुतिर्वसुधा भुक्ता राजभिः । यः कोपि बालयति तस्याहं पाद लग्न स्तिष्टामीति। गौडान्वये कायस्थ पण्डित. महीपालन शासनमिदं लिखितं ।
नाडलाई।
वर्तमान में मारवाड़ के देसूरी जि के नाडोलके पास एक छोटासा गांव है परन्तु प्राचीन काल में यह एक बड़ा आबादी नगर था और वही स्थान है कि
संघत दश दाहोतरे बदिया चोरासी बाद।
खेड नगर धो लापिया, नारलाई प्रासाद ॥१॥ यहां पर बहुत से प्राचीन जैन मंदिर वर्तमान है ।
श्री आदिनाथजी का मंदिर ।
( 6
)
संवत् ११८७ फाल्गुन सुदि १४ गुरुवार श्री पंडे रकान्यय देशी चैत्य देव श्री महावीर दत्तः। मोरकरा ग्रामे घाणक तैल बल मध्यात् चतुर्थ साग चाहुमाण पत्ता सुक्त विसराकेन कलसो दत्तः ॥ रा. वाच्छल्य समेत। साखिय भण्डो नाग सिउ । अतिवरा
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। २१३७ बीटुरा पोसरि । लष्मणु । वहुभिर्वसुधा मुक्ता राजिलिः सागरादिभिः । जस्य जस्य यदा भूमि । तस्य तस्य तदा फलं ॥१॥
( 843 )
ॐ ॥ संवत् ११८६ माघ सुदि पंचम्यां श्रो चाहमानान्वय श्री महाराजाधिराज रायपाल । देव तस्य पुत्री रुद्र पाल अमत पालौ। ताभ्यां माता श्री राज्ञो मानल देवी तया नद ल डागिकायां ॥ सतां परजतीनां राजक्ल पल मध्याद पलिका द्वयं । घाणकं प्रति धर्माय प्रदत्त नागसिव प्रमुख समस्त ग्रामीणक। रा०त्तिमदा वि० सिरिया वणिक पासरि। लक्ष्मण एते साखिं कृत्वा दत्तं। लोपकस्य यदु पापं गो हत्या सहरेण। ब्रह्म हत्या सतेन च। तेन पापेन लिप्यते सः ॥ श्री॥
(644 )
ॐ ॥ संवत् १२०० जेष्ट सुदि ५ गुरौ श्री महाराजाधिराज श्री राय पाल देव राज्ये - - - हास - - समाए रथयात्रायां आगतेन । रा. राजदेवेन । आत्म। पाइला मध्यात् सव्वं साउत पुत्र विसोपको दत्तः॥ आत्मीय घाणक तेल बल मध्यात् । माता निमित्तं पलिका द्वयं । प्लो २ दत्तः ॥ महाजन ग्रमीण। जन पद समसाय : धर्माय निमित्त बिंसोपको पलिका द्वयं दत्त ॥ गो हत्याना सहस्रेण ब्रह्म हत्या सतेन च । स्त्री हत्या भ्र ण हत्या च जतु पापं तेन पापेन लिप्यते सः ॥९॥
(848)
संवत् १२०० कार्तिक यदि १ रवो महाराजाधिराज श्री राय पाल देव राज्ये । श्री मदूल डागिकायां रा. राजदेव ठकरायां। श्री नदला इय महाजनेन सवै मिलित्वा श्री महावीर चैत्ये । दान दत्त। स तैल चौपड़ मणि पित पाइय प्रति। क०.: धान लव
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नमपि तद्रोणं प्रति मा० कपास लोह गुढर षाड होंग माजीठा तौल्ये घडो पति । पु... पूगहरी सकि पमुख गणितः। सहस्रं पति । पग १ एततु महाजनेन चे सरेण धर्माय पदत्तं लोपकस्य जतु पापं । गो हत्या सहस्रेण ब्रह्महत्या शतेन च तेन पापेन लिप्यते सः ॥
(846)
____ ॐ ॥ संवत् १२०२ आसोज यदि ५ शुक्र । श्री महाराजाधिरान श्री गयपाल देव राज्ये प्रवर्त्तमाने । यो नदल डागि कायां । रा. राजदेव ठकरेण प्रवर्गमानेन । श्री महावीर चैत्ये साधुतपोधन निष्ठार्थे । श्री अभिनव पुरीय वदारया । अत्रेषु समस्त वणजार केषु । देसी मिलित्वा वृषा भरिस । जतु पाइल ल गमाने। ततु श्रीसं प्रति। रुआ २ किराड उआ। गाडं पति रु. १ वणजारकै धर्माय पदत्तं ॥ लापकस्य जतु पापं गो हत्या सहस्रेण ॥ ब्रह्म हत्या सतेन। पापेन । लिप्यते सः ।
संवत् १४८६ वर्षे अपाढ़ बदि नाडलाई रीमाउहीत को-निर्मात को तेल सेर० ।। दीधे टि सुपासना श्री संघ मतं दिना १ पत्त देस ।
(818)
१५६८ वीरम ग्राम वास्तव्य श्री संघेन पक्ष
सं. १५६८ वर्षे । कुसयपुरा पक्ष रुपागच्छाधिराज श्री इन्द्र नन्दि मूरि गुरूपदेशात् म जिगपुर श्री संघेन कारिता देव कुलिका चिरनन्दतात् ॥
(it) सं० १५७१ वर्ष कुनवपुरा तपागच्छाधिाज श्री इन्द्र नन्दि मूरि शिष्य श्री प्रमोद मुन्दर मारराज गुरुपदेशात् चम्पर दुर्ग श्री राधेन करापिता दंव कुलिका धिर नन्दतात्
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सं० १५७' वर्ष कुतथपरा पक्ष तपागच्छाधिराज श्री इन्द्र नंदि सूरि शिष्य प्रमोद सुन्दर सूरि गुरुणामुपदेशात् पत्तनोय श्री संघेन कारिता देव कुलिका चिरं जीयात् ॥
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श्री यशोभद्रसूरि गुरुपादुकाभ्यां नमः । संवत् १५६७ वर्षे वैशाख मासे शुक्ल पक्ष यांति शुक्रवासरे पुनवसु ऋक्ष प्राप्त चंद्र योगे श्रो संदुर गच्छे कलिकाल गौतमवतारः समस्त भविक जन मनोबुज विबोधनैक दिन करः सकल लब्धि विश्रामः युग प्रधानः जितानेक वादीश्वर वृंदः प्रणतानेक नर नायक मुकुट कोटि घृष्ट पादारविंदः श्री सूर्य इव महा प्रसादः चतुः षष्टि सुरेन्द्र संगीयमान साधुवादः । श्री पंडेरकीय गण बुधावतंसः सुभद्रा कुक्षि सरोवर राजहंसः यशोवीर साधु कुलांबर ननी मणिः सकल चारित्रि चक्रवर्ति वक्त चूड़ामणिः भ० प्रभु श्री यशोभद्र सूरयः तर श्री चाहुमान वंश श्रङ्गारः लब्ध समस्त निरवद्य विद्या जलधि पारः श्री बदरा देवी दत्त गुरु पद प्रसादः स्व विमल कुल प्रबोधक प्राप्त परम यशो बादः अ० श्री शालि सूरि स्त० श्री सुमति सूरिः त० श्री शांति सूरिः त० श्री ईश्वर सूरिः । एवं यथा क्रममनेक गुण र्माणि गण रोहण गिरीणां महा सूराणां बंशे पुनः श्री शालि सूरिः त० श्री सुमति सृरिः सत्पालंकार हार भ० श्री शांति सूरि बराणां सपरिकराणों विजय राज्ये ॥ अथेह श्री मदेपाट देशे । श्री सूर्य वंशाय महाराजाधिराज श्री शिला दिव्य वंशे श्री गुहिदत्त राउल श्री बप्पाक श्री खुमाणादि महाराजान्वये राणा हमीर श्री पेस सिंह श्री लखम सिंह पुत्र श्री मोकल मृगांक वशोद्यतिकार प्रताप मार्तंडावतारः आ समुद्र मही मंडला खंडलः अतुल महाबल राणा श्री कुम्भकर्ण पुत्र राणा श्री राय मल्ल विजय मान प्राज्य राज्ये सत्पुत्र महाकुमार श्री पृथ्वो राजानुशासनास । श्री उकेश वंश राय जडारो गोत्र राउल श्री लाखण पुत्र मं० दूदवंशे मं० मयूर सुत मं० सादूल स्तत्पुत्राभ्यां मं० साहा समदाभ्यां सद्वृांधव मं० कर्मसाधा रालाखादि सुकुटुम्ब
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( २१६ )
श्री नंदकुलवत्यां पुर्या सं० ९६४ श्रो यशोभद्रसूरि मंत्र शक्ति समानीतायां त० सायर कारित देव कुलिकाबुद्वारितः सायर नाम श्री जिन वस्यां श्री आदीश्वरस्य स्थापना कारिता कृता श्री शांति सूरि पट्टे देव सुंदर इत्यपर शिष्य नामभिः आ० श्री ईश्वर सूरिभिः । इति लघु प्रशस्तिरिय लि० आचाय्य या ईश्वर सूरिणा उत्कीर्ण सूत्रधार सोमाकेन शुभं ॥
(853)
संवत् १६७४ वर्षे माघ यदि १ दिने गुरु पुष्य योगे उसबाल ज्ञाती भण्डारी गोत्र • सायर तुत्र साहल सत पु० समदा लषा धर्मा कर्मा सोहा लखमदा पु० पहराज प्रद मान गम भार्या तत् पु० । भीमा में पहराज पुत्र कला मं० नगा पुत्र काजा मं० पदमा पुत्र जईचन्द्र मं भीमा पुत्र राजसो मं वाला पुत्र सकर उसबाल: जैचन्द्र पुत्र जस चंद जादव । मं० सिवा पुत्र पूजा जेठा संयुतेन श्री अदिनाध विंवं कारित प्रतिष्ठित तपा गच्छाधिराज भटा० श्री हीर विजय सूरि तत्पटालंकार श्री विजयसेन सृरि ततपटालंकार भटारक श्री विजय देव सूरिभिः ।
( 854 )
महाराजाधिराज श्री अभय राज राज्ये संवत् १७२१ वर्षे ज्येष्ट सुदि ३ री श्री नडुलाई नगर वास्तव्य प्राग्वाट ज्ञातोय वृ० सा । जीवा भार्या जसमादे सुत सा । नाथान श्री मुनि सुव्रत विवं कारापितं प्रतिष्ठित च । महारक श्री हीर विजय सूरिभिः ।
( 855 )
संवत् १७६८ वर्षे वैशाख सुदि २ दिने ऊकेश ज्ञान १ बोहरा काग गोत्र साह ठाकुर सी पुत्र लाला हेत सुवर्णमये कलस करापितं श्री आदिनाथजी सेतरभेद पूजा गुहिलेन संप्रति प्रतष (प्रतिष्ठितं) माणिक्य त्रिजै शि० जित विजय शिष्य ॥ कुश विजय उपदेशात् शुभे भूयात् ।
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। २९७)
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856 )
संवत् १६८६ वर्ष वैशाख मासे शुक्ल पक्ष शनि पुष्य योगे अष्टमी दिवसे महाराणा श्री जगत सिंह जी विजय राज्ये जहांगोरी महा तपा विरुद धारक भहारक श्री विजय देव सूरीश्वरोपदेश कारित प्राक प्रशस्ति पहिका ज्ञात राज श्री संप्रति निर्मापित श्रो जे पल पध्वंतस्य जोर्ण प्रासादोधारेण श्री नडलाई वास्तव्य समस्त संघेन स्वयसे श्री श्री आदिनाथ विवं कारित प्रतिष्ठितं च पातशाह श्री मदकबर शाह प्रदत्त जगगरु विरुदधारक तपागच्छाधिराज महारक श्री श्री श्री श्री श्रीहोर विजय सूरीश्वर पह प्रभाकर १० श्री विजय सेन सूरीश्वर पट्टालंकार प्रभु श्री विजयदेव सूरिभिः स्व पद प्रतिष्ठिताचार्य श्री विजय सिंह सूरि प्रमख परिवार परिवृत्तः श्री नडुलाई मंडन श्री ज खल पर्वतस्य प्रासाद मूलनायक श्री आदिनाथ विवं॥ श्री ॥
श्री नेमिनाथजी का मंदिर।
( 57 ) ओ नमः सर्वज्ञाय ॥ संवत् ११९५ आस उज वदि १५ कुजे ॥ अद्यह श्री नलडागिकायां महाराजाधिराज श्री रायपाल देवे। विजयीराज्यं कुर्वतस्ये तस्मिन काले श्री मदार्जित तीर्थः श्री नेमिनाथ देवस्य दीप धूप नैवेद्य पुष्प पजाद्यर्थ गुहिलान्वयः । राउस उधरण सूनुना मोक्तारि १ ठ• राजदेवेवन स्व पुण्यार्थं स्वीयादान मध्यात् माग्गे गच्छता नामा गतानों वृपमानां शेकेषु यदा माव्यं भवति तन्मध्यात् विशतिमो भागः चंद्रार्क यावत् देवस्थ प्रदत्तः ॥ अस्मद्वंशीयेनान्येन वा केनापि परिपंथना न करणीया ॥ अस्मदत्त न केनापि लोपनीयं ॥ स्वहस्ते पर हस्ते वा यः कोपिं लोपयिष्यति । तस्याहं करे लग्नो न लोप्य मम शासनमिदं ॥ लि. पांसिलेन ॥ स्व हस्तोत्रं साविज्ञान पूर्वक राउ. राज देवेन मतु दत्त ॥ अत्राहं साक्षिण ज्योतिषिक दूदू पासूनुमा गूगिना ॥ तथा पला. पाला पधिं वा १ मांगुला ॥ देवसा । रापसा ॥ मंगलं महा श्रीः ॥
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(२१८)
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मो॥ स्वरित श्रीप विक्रम समयासीस सं० १४४३ वर्षे कार्तिक बदि १४ शुक्रे श्री नहलाई नगरे चाहमानान्वय महाराजाधिराज श्री वणवीर देव सुत राज श्री रणवीर देव विजय गज्ये अत्रस्थ स्वच्छ श्री मदवहद्गच्छ नभस्सल दिनकरोपम श्री मानतुग सूरिवंशोद्भव श्री धर्मचन्द्र सृरि पट्ट लक्ष्मी श्रवणा उत्पलाय मान : श्री विनय चंद्र सूरि मिररूप गुण माणिक्य रत्नाकारस्य यदुवंश शृगार हारस्य श्री नेमीश्वरस्य निराकृत जगद विषादः प्रसाद समुदृधे आचंद्राक नन्दतात् ॥ श्रो॥
कोट सोलंकी।
( 5 ) ॐ ॥ स्वस्ति श्री न प विक्रम कालातोत संवत् १३९४ वर्ष चैत्र दि १३ शुक्र श्री मासल पुरे महाराजाधिराज श्री वण वीर देव राज्ये राउन मालहणान्वये राउत साम पुत्र राउत वांवी आर्या जाखल देवि पत्रण राउत मल राजेन श्री पार्श्वनाथ देवस्य ध्वजारोपण समये राउत बाला राउत हाथा कुमर लुआ नीवा समक्ष मात पित्रा: पुण्यार्थं ढिकय उबाडी सहितः प्रदत्तः आचंद्रार्क यावदियं व्यवस्था प्रमाण ॥ बह निर्व सुधा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः । यस्य यस्य यदा अमी सस्य सस्य सदा फलं ॥ शुभ अवतु ॥ श्री॥
धानेराव।
( 66 ) मुंवत् १२१३ भाद्रपद सुदि ४ मंगल दिने श्री दंडनायक बैजल्ल देन राज्ये श्री वंस
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( २१९ )
गत्तीय राउत महण सिंह भुक्ति बंसंह उवाट मध्यात श्री महावीर देव वर्षं प्रति ट्राम ४ खाज सूणो दत्ताः जस्य भूमिः तस्य तदांभत्य | सेठ रायपाल सुत राव राजमल्ल महाजन रक्ष पाल विनाणि यस्स दिवहिं ।
बेलार ।
मारवाड़ के देसूरी जिलेके घानेराव नामक स्थानके समीप यह ग्राम है ।
श्री आदिनाथ जी का मंदिर ।
( 861 )
ओ संवत १२३५ वर्षे श्र े० साधिग भार्या माल्ही तत्पुत्रा आववीर घदाक आवधराः आववीर पुत्र साल्हण गुण देवादि समन्वित आत्म श्रयसे उगिकां कारितवान ।
( 862 )
ॐ संवत १२३५ वर्ष फाल्गुन वदि ७ गुरौ प्रौढ प्रताप श्री मद्वांचल देव कल्याण विजय राज्ये बाधल दे वैस्ये श्री नाणकीय गच्छे श्री शांति सूरि गच्छाधिपे शाश्च । आसीद् धर्केट वंश मुख्य उसम: श्राद्धः पुरा शुद्धधीस्तद्गोत्रस्य विभूषणां समजनि श्रेष्ठि सपावभिधः । पुत्रौ तस्य वभूवतुः क्षितितले विख्यात कीर्त्ति भृशं पूमल्ह प्रथमो बभूव सगुणी रामाभिधश्चापरः ॥ तथान्यः ॥ श्री सर्व्वज्ञ पदाचर्च्चने कृत मर्तिद्दाने दयालु
हुराशादेव इति क्षिती समप्रवत पुत्रस्य घांघाभिधः । तत्पुत्रो यति संप्रतिः प्रति दिन गोसाक नामा सुधीः शिष्टाचार विद्यारदी जिन गृहोद्धारोबतो योऽजनि ॥२॥
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( २२० ) कदाचिदन्यदा चित्त विचित्य चपलं धनं । गोष्ट्याच राम गोसाभ्यां कारितो रंग मंडपः ॥३॥ भद्र भवतु ।
( 863 ) संवत १२३८ पौष वदि १० वला नागू पुत्र थे. उद्धरण मार्यया अ. देवणाग पुत्रिकया उत्तम परम श्राविकया स्व अयोर्थ श्री पार्श्वनाथ देव चैत्य महपे स्तंभोयं कारितः।
( 864 ) अ॥ संवत १२३८ पौष यदि १० श्री मांध कुमार पुत्र श्री. धवल भार्यया वला. नागू पुत्रिकया संतोस परम प्राधिकया स्व श्रेयार्थ श्री पा।
(565) ॐ सं० १२६५ वर्षे यांथां भार्या तिण देवि तत्पुत्रिका पउसिणि पुत्र गोसा मार्या लक्षा श्री पाल्हाया --- माल्हा - . - - भार्या श्री ति - - - - मायां - -- - न आर्या पूरां श्री गोसाकेन सकल बंधु सहितेन सोहि ।
( 66 ) __ॐ गच्छे श्री नाणकालिख्ये सुधर्म सुत वल्हणः । अनुच्चारित्र संयुक्तो बाल भद्रो मुनिः पुरा ॥१॥ तच्छिप्यो हरिचंद्राह्वो मुनिचन्द्र- . परः । तदन्वये धनदे . . पार्श्व दे। घोस सोमकौ ॥२॥ पार्श्व देवः स्वशिष्येन धीर चंद्रंण संयतः। लगिका कारयामास गुरु कंद विपद्धये ॥३॥
( 567) ओं संवत १२६५ वर्षे धर्कट वंशे भार्या जिन देवि तत्पुत्रा पंचगोसा० सदेव आर्या सुखमति तत्सुत धांधां काल्हा राल्ह घोर सीह पाल्हण प्रमुख गोसा पुत आम्
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वीर आम जाल काल्हा पुत्र लक्ष्मीधर महीधर राल्हण पुत्र आखे शूर घोरहसी पुत्र देव जस पाल्हण पुत्र घण चंडा रथ चंडादि स्वकलत्र समन्विताः स्व श्रेवोर्थ स्तंभ लगामिमं कारापयामासः ।
( 868 )
ओं संवत १२६५ वर्षे उस गोत्र श्रोष्ठि पार्थ भायां दूल्हेवि तत्पुत्र मगाकेन मार्या राजमति राल्हू तस्याः पुत्राश्चत्वारी लक्ष्मीधर अभय कुमार मेघ कुमार शक्ति कुमार लक्ष्मीधर पुत्र वीर देव अभय दे पुत्र सर्वदेवादिषु कुल कुटुय सहितेन स्तंभन माकारितेदमिति...।
( 869 ) ॐ संवत १२६५ वर्षे श्री नाणकीय गच्छे धर्कट गोत्र आसदेव सत्सुत जागू भार्याथिर मति सत्सुत गाहड़स्तस्य भार्या सातु तत्पुत्र आजमदादेः समुर्तिका सूरि काम कारयदात्म यसे॥छ॥
फलोदी। यह स्थान मारवाड़के मेड़ता नगरके पास है।
बड़े जैन मंदिरके देहलीके पत्थरों पर ।
( 870 ) संवत् १२२१ मार्गसिर सुदि ६ श्री फलवाईकायां देवाधिदेव श्री पार्श्वनाथ चैत्ये श्री प्राग्वाट वंसीय रोपि मुणि म० दसाढ़ाभ्यो आस्म श्रेयार्थ श्री चित्रकूटीय सिलफट सहितं चन्द्रको प्रदत्तः शुभं भवत् ॥
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( २२२ )
( 871 )
चैत्यो नरवरे येन श्री सल्लक्ष्ट कारिते । पंडपो मंडनं लक्ष्या कारितः संघ भास्वता ॥ १ ॥ अजयमेरु श्री वीर चैत्ये येन विधापिता श्री देवा बालकाः ख्याताश्चतुर्विंशति शिखराणि ॥ २ ॥ श्रेष्ठी श्री मुनि चंद्राख्यः श्री फलवर्द्धिका पुरे उत्तान पह श्री पार्श्व चैरयेऽचीकरदद् भूतं ॥३॥
केकिन्द |
यह प्राचीन स्थान भी मारवाड़ के मेड़ता जिलेमें है
श्री पार्श्वनाथजी का मंदिर ।
(872)
ॐ ॥ संवत् १२३० आषाढ़ सुदि श्री किष्कंधर दिवा प्रमुख वाला मलण बास ददिवा राबधी विधि चैस्ये मूल नायकः श्री आनन्द सूरि देशनया श्र ॥१॥
( 873 )
ॐ ॥ संवत १२३० आषाढ़ सुदि ९ किष्कंध विधि चैत्य मूल नायकः श्री आनंद सूरि देशनया श्र े० धाधल श्रे० वाला लण दास ददिवा पीवर दिवा प्रमुख श्राक --|
( 874 )
ॐ ॥ नमो बीतरागाय ॥ श्री सिद्धिर्भवतु ॥ स्वांस श्रियामास्पदमापसिद्धिर्जगत्त्रये यस्य भवत् प्रसिद्धि । सोऽस्तु श्रिये स्फूर्जदनंव रिद्धिरादीश्वरः शारद भास्य दिद्धि ॥१॥ यमाता शैव मताऽवलंबा | हिन्दु प्रकाराय वन प्रकाराः । सर्वेऽप्यमी
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( २२३ )
मोद भतो मजंते। यमादि देवो दुरितं महंतु ॥२॥ दुर्वा प्रसारः सबट प्रसारः । कन्छ प्रसारो ब्रतति प्रसारः। इमे समे कोदितमेऽपिमागेऽपत्य प्रसारस्य न यांति यस्य ॥३॥ गीर्वाण सालो नहि काष्ठ भावात् । तथा पशुस्वान्नहि कामधेनुः। मृदा विकारान्नहि काम कुंभश्चिंतामणिन्नव च करत्वात् ॥४॥ सूर्या न तापाकुलता करत्वात् । सुधाकरोनैव कलंकवत् त्वात् ॥ सुवर्ण शैलो न कठोर भावात् । नाभ्यंगजातेन तुलामुपैति ॥५॥ दुग्धो दधौ संस्थित तोय विंदून। पुष्पोच्चयान्नंदन कानन स्थान् । करोत्करान् शारद:चन्द्र सस्कान् । कश्चिन्मिमीतेन गणान् यगादेः ॥६॥ यस्माद् जगत्यां प्रावति विद्याः। सुर्पव्वलोकादिव काम गव्यः । दुग्योऽपि वाच्छाधिक दान दक्षाः । पुष्णातु एण्यानि स नामि सूनुः ॥७॥ यतोतराया स्त्वरिसं प्रणेशु। मृगाधिराजा दिव मार्गः पूगाः । यद्वा मयूरादि वले लिहानाः । स मारु देवो भवसाद विभूत्यै ॥६॥ राठोड वंश ब्रतति प्रताना नीकोपमो नीक निकाय नेता। राजाधिराजो जनि मल्ल देव । सिरस्कृतारि प्रति मल्ल देवः ॥ ६॥ तस्मौरसस्सम जनिष्ट बलिष्ठ बाहुः प्रत्यर्थिता पनकदर्थन पर्व राहुः। श्री मल्लदेव नृप पह सहस्र रश्मिः। श्री मानभूदुदय सिंह नृपः सरश्मिः ॥१०॥ कम धज कुल दीप: कांति कुल्या नदीप। स्तनु जित मधु दीपः सौम्यता कौमुदीपः। नपतिरुदय सिंहा स्व प्रतापास्त सिंह सितरद मुचुकुंदः सर्व नित्या मुकुन्दः ॥११॥ राज्ञां समेषामय मेव वृद्धो। वाच्यस्तद न्यरथ वृद्ध राजः। यस्येति शाहिर्विरुदं स्मदया। दकरो वर्वर वंश हंसः ॥१२॥ तस्पट्ट हेम्नः कष पट्ट शोमा । मबीभरत्संप्रति सूर सिंहः । यो माष पेषं द्विषतः पिपेष। निर्मल कार्ष कषितार्तितांतिः ॥१३॥ राज्य श्रियां साजन मिटु घामा। प्रताप मंदी कृत चह धामा। संपन्न नागावलि नाव सिंहः पृथ्विी पती राजति सूर सिंहः ॥११॥ प्रतापतो विक्रम रच सूर्य। सिंही गती व्योम वनं च भीती। अन्वयसो नाम जगाम सूर्य । सिंहे तियः सर्व जन प्रसिद्धं ॥१५॥ यदीय सेनोच्छलित रजोभि । मलीमसांगो दिनसाधि नायः । परो दया वस्त मिषेण मन्ये। स्नात् प्रबंशं कुरुते विनम्रः ॥२६५ अप्येक मीहेतन
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( २२१ )
शुद्ध वंशो। धारे चकं तृप्ति युतो विशेषात् । स्वयं हतारासि वसुन्धरा खो परिग्रहात्त द्वहुता करस्सः ॥१७॥ तथापि राज्ञः परितोष माजः। स्तवंति विज्ञा विविधैः कवित्वेः । वहति भक्तिं स्व कुटुबलोका। अहो यशो भाग्य वशोपलभ्यं ॥१८॥ द्वाभ्यां युग्मं । सुरेष यद्वन्मघवा विभाति । यथैव तेजस्विषु चंड रोचिः । न्यायानुयायि घिव रामचंन्द्र। स्तथापना हिन्दषु अधयोयं ॥१९॥ द्रव्य जिनाचौचित कुकमादि दीपार्थ मा नाबममारि घोषं । आचामतोम्लादि तपो विशेष विशेषतः कारयते स्वदेशे ॥२०॥ ना पुत्र वित्ताहरणं न चौरी नभ्या समोषोन च मद्यपानं। नाखेटको नान्य वशा निषेवे। स्यादि स्थितिः शाससि राज्यमस्मिन् ॥२१॥ अभूदृधानो युवराज मुद्रां तस्मात्कुमारी गजसिंह नामा। गस्या गजोरसीव बलन सिंहस्ते नैव लेमें गजसिंह नाम ॥२२॥ श्रो ओसबालान्वय वाढेि चन्द्रः। प्रशस्त कार्यषु विमुक्त तंद्रः। विज्ञ प्रगेयो चितवाल गोत्रः पणेष्वपिस्वेष्व चलस्व गोत्रः ॥२३॥ आसीन्निवासो नगरांतरेच। प्रायः प्रततै विणरुपेतः जगाभिधानी जगदीश सेवा । हेवाभिरामा व्यवहारि मुख्यः ॥२४॥ द्वाभ्यां युग्मं । विद्यापुर: सूरि सुवाचकानां। करे पुरे गेधपुराभिधाने। दंतं प्रमाणाब्दवया जगाख्यः सएष तुर्य व्रतमुच्चचार ॥२५॥ तदंगजन्मा जनित प्रमोदः पुण्यात्मनां पुण्य सहाय मावात्। विशिष्ट दानादि गुणेः सनायो। नाथा भिधी नाथ समाप्त मानः ॥२६॥ तस्याज्वलस्फार विशाल शाला। भार्या भवद् गूजर दे सनामा। रूपेण वर्या गृह भार घुर्या। श्री देव गुर्वाः परिचर्य यार्या ॥२७॥ असूत सा पूर्व दिगेव सर्य। मुक्ता मणिं वंश विशेष यष्टिः । वजांकुरं रोहण भूमि केव। नापाभिधानं सुत राज रत्न ॥२८॥ गणेरनेकैः सकृत रनेकैः। लेप्रसिद्धि भुवि तेन विष्धक। तदर्थिनोन्येषि समर्जयतु । गुणान्सपुण्यान्विधुवद्विशुद्धान ॥२॥ तस्यासीन्नधलादे। अनिता वनितार सार रूप गुणा । शीलालंकृत रम्या गम्या नापाहुये नव ॥३०॥ आसामिधानोरामृताविश्व । सुधर्म सिंहोप्युदयानिधोपि । साल नामेति च सति पंच। तयोस्तनूजा इव पांडु कुस्याः ॥३१॥ आसा भिधानस्य बभूव भार्या सरूप देवोति सयोः सुलो दी।
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( २२५ )
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तयोरभूदादिम वीर दासो । लघुश्चिरं जीवित जीव राजः ॥ ३२ ॥ वृद्धे तरस्याऽमृत संज्ञितस्य । मृगे चणा मलिक देभिधाना । सुता वभूतामनयोस्तथा द्वौ मनोहरारूपो पर वर्द्धमानः ॥ ३३ ॥ सदा मुद्दे घारल दे भिधाना । सुधर्म सिंहस्य सधर्मिणीति कुटु बिनी साउछ रंगदेवी । प्रिया वभूवादय संज्ञितस्य ॥३४॥ इति परिवार युत श्वोज्जयंत शत्रुंजये बकुल यात्रां । निधि शर नरपति १६५९ संरुये । वर्ष हर्षेण ना पारुयः ॥ ३५॥ अर्बुद गिरि राज पुरे नारदपुर्याच शिवपुरी देशे । योत्रां युग बटू पद पढ़ | कला १६६४ मिनेटदे चकार पुनः ॥ ३६ ॥ श्रीविक्रमाह तकं षडम् । वर्ष १६६६ गते फाल्गुन शुक्ल पक्ष । तो दंपती स्वी कुरुतः स्मतुर्य । व्रतं तृतीया हनि रुप्य दानैः॥३७॥ दानं च शीलं च तथोपकार । स्त्रयात्मकोयं शुभ योग आस्ते । नापाभिधान व्यवहारि मुख्ये । यथाहिलोके गुरु पुष्य पूर्णा ॥ ३८ ॥ भुजार्जिताया निज चारु संपदो । न्यायजितायाः फलमिष्टमिच्छता । वांणागषट् शीतगु १६६५ संख्य हायने । विधापित स्तेर्नाह मूल मंडपः ॥३९॥ चतुष्किके द्वे अपि पार्श्वयो यो । नपा भिधानेन विधापिते इमे । पित्रोर्यशः कीर्त्ति रुभे इव स्वयोः । कर्णा द्वयं सोडर सूत्र धारकः ॥४०॥ विविध बादि मतं गज केसरी | कपट पंजर भंग कृते करी । भव पयोधि समुत्तरणे तरी । प्रबल धैर्य हरेवंसनेदरी ॥४१॥ असम भाग्य पथश्चय सागरः । स्त्र गुण रंजित नायक नागरः । विजय सेन गुरु स्तप गच्छ राड् । विजयते जय तेज उदाहृतः ॥४२॥ द्वाभ्यां युग्मं । तत्पहोदयि वयो विजयंते विजय सूरोशः । श्रो उचितवाल गोत्रावतंस तुल्या अनूनानाः ॥ ४३ ॥ तेषां निदेशेन सदो विभा करे। गंगा तरंगालिल सद्य शोभरैः । जिनालयोय प्रतिभा बधूवरे । प्रतिष्ठितो वाचक लब्धि सागरैः ॥४४॥ पंडित पंक्ति प्रभाव श्री विजय कुशल विवध वरास्तेषां शिष्येणादय रुचिना प्रशस्तिरेषा विनिमश्री सहज सागर सुधी विनेय जय सागरः प्रशस्ति ममां । उदली लिख सोडर सूत्रधारेण ॥४६॥
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( २२६ )
सेवाड़ी |
मारवाड़ के गोड़वाड़ इलाकेके वालो जिलेके समीप यह प्राचीन स्थान है ।
श्री महावीर जी का मंदिर |
(875)
।
महा
ॐ ॥ सं० १९६७ छेत्र सु० ६ महाराजाधिराज श्री अरथराज राज्ये । श्र कटुक्क राज युवराज्ये । समी पाठीय चैत्ये जगतो श्रो धर्मनाथ देवसां नित्य पूज्जार्थं । साहणिय पूरवि पौत्रेण ऊशिम राज पुत्रेण उप्पल राकेन। मां गढ आंबल || वि० सल खण जोगरादि कुटुब समं । पांडा ग्रामे तथा मेद्र चा ग्रामे तथा छेछड़िया मी ग्रामे ॥ अरहर अरहट प्रति दत्तः जब हारक: ॥ एक यः कोपि लोपयिष्यति ते स्मदीय धर्म भाग्याः सदा भविष्यति । इति मत्वा प्रतिपालनीय | यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदाफलं । बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः खगरादिभिः ॥ १॥छ॥
( 876 )
ॐ ॥ स्वजन्मनि जनताया जाता परतोषकारिणी शांतिः । विबुध पति विनुत चरण: स शांति नामा जिना जयति ॥ १॥ आसीदुग्र प्रतापाद्यः श्रो मदण हिल भूपतिः । येन प्रचंड देोईड प्रराक्रम जिता मही ॥२॥ तत्पुत्रः चाहमाना नामन्वये नीति सद्वहः । जिन्द राजाभिधो राजा सत्यस शोर्य समाश्रयः ॥३॥ तत्त नूजस्ततो जातः प्रतापा क्रांत भूतलः । अश्वराजः श्रियाधारो भूपतिर्भूभृतां वरः ॥ ४॥ ततः कटुकराजेति तत्पुत्रो धरणी तले । जज्ञे स त्याग सोभाग्य विख्यातः पुन्य विस्मितः ||५|| सद्धकी पत्तनं रम्यं शमी पाटी ति नामकं । तस्त्रास्ति वीर नाथस्य चेत्यं स्वर्ग समोपमं ॥६॥ इतश्चासीद विशुद्धात्मां
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( २२७ )
यशोदेवो बलाधिपः । राज्ञां महाजनस्यापि सप्तायामग्रणी स्थितः ॥७॥ श्री पंडेरक सदच्छे बंधूनां सुहृदां सतां । निस्योपकुर्व्वता येन न श्रांत समचेतसा ॥८॥ तत्सुतो बाहो जाती नराधिप जन प्रियः । विश्व कर्मेव सर्व्वत्र प्रसिद्धो विदुषां मतः ॥९॥ तत्पुत्रः प्रथितो लोके जैन धर्म्म परायणः । उत्पन्नः थल्लको राज्ञः प्रसाद गुण मंदिर ॥ १० ॥ दया दाक्षिण्य गांभार्य बुद्धिचिध्यान संयुक्तः । श्री मस्कटुक राजेन यस्य दानं कृतं शुभं ॥ ११ ॥ माधेत्र्यंबक संप्राप्तो वितीष्णं प्रति वर्षकं । द्रम्माष्टकं प्रमाणेन चल्लकाय प्रमोदतः ॥१२॥ पूजाछें शांति नाथस्य यशोदेवस्य खत्तके । प्रबर्द्धयतु चंद्रार्क यावदादनमुज्वलं ॥ १३ ॥ पितामहेन तस्येदं समीपाट्यां जिनालये । कारितं शांति नाथस्य बिंबं जन मनोहरं ॥१४॥ धर्मेण लिप्यते राजा पृथिवीं भुनक्ति यो यदा । ब्रह्महत्या सहस्रेण पातकेन विलोपयन् ॥ १५॥ संवत् १९७२ ॥
(877)
ॐ ॥ संवत् १९९८ असोज बदि १३ रघो अरिष्ट नेमि पूर्व दिसायां अपवरिका अग्रे भित्ति द्वार पत्र चर्तुभाते कन्तु मम च गोष्ठ्या मिलित्वा निषेधः कृतः ॥ लिखितं पं० अश्वदेवेन ।
सं० १२४४ आसाढ बदि
पधर
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- हेतु
१५ रवी -
- सुदि १४
श्री बहेव ॥ - --
ण शांवर ॥
(878)
...लर - -
रखो श्रो संभव देव फागुण सुदि ८ चवण जंसो - हेकर जिस देव ॥ --- सुदि १५ विरवार कार्त्तिक बदि ५ माणु देव पास देव ॥
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- सुदि
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( 879 )
ॐ ॥ सं० १२५१ कार्त्तिक यदि १ रवो अब वाससा नालिकेर ध्वजा खासटी मूल्यं
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( २२८ )
निज गुरु श्री शालिभद्र सूरि मूर्ति पूजा तो श्री सुमति सूरिभिः । प्रदतात् वलाः ५ मास पाटकेने चके व्ययनीयाः ॥ छ ॥
( 880 )
॥ ॐ ॥ संवत् १२९७ वर्षे ज्येष्ठ सुदि २ गुरौ बासहड़ वास्तव्य ऊजाजल गोत्र श्रेष्ठि चांदा सुत नाना देव सधीरण सुत आस पाल गुण पाल सेहड़ सुत पूस देव साबूदेव पूसदेव सुत घण देव सहड़ भायां शीत पुत्रिका साजणि जाल्ह सती रण भार्या राहीबाई - सेहड़ भार्या अहव सूमदेव भार्या मदावति सावदेव भार्या महल सिरि कुटुब समुदायेन सेहडेन भार्या समम्बितेन देव कुलिका कारापिता ॥ मेढ पुत्रिका देह साहुखा उसम दासेन सुभं भवत् ॥
सांडेराव |
यह भी मारवाड़के बाली जिले में है ।
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श्री शांतिनाथजी का मंदिर ।
( 881 )
1
श्री पंढेरक चैश्ये पंडित । जिन चन्द्रेण गोष्ठियुतेन धीमता देव नाग गुरो मूर्त्ति कारिता थिरपाल मुक्ति बांछतां सं० १९४९ वैशाख वदि -- ।
( 882 )
रु० १२ पुत्रीकाया गो कारापिता ।
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वर्षे
फागुण सुदि १४ गुरौ अब ह श्री पंडेरक निवासी श्रेष्टि गुणपाल ला -- सुखमिणि नामिकाया। श्री महावीर देव चेत्ये चतुष्किका
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( २२९)
( 883 ) ॥ संवत १२२१ माघ बदि २ शुक अोह श्री केलाण देव विजय राज्ये। तस्य मात राज्ञी श्री आनन देख्या भी पंडेरकीय मलनायक श्री महावीर देवाय चैत्र वाद १३ कल्याणिक निमिशं राजकीय प्रोग मध्यात्। युगंधर्याः हाएल एकः प्रदत्तः । तथा राष्ट्रकूट पातू केल्हण तद्भातृज उत्तमसीह सूद्रग काल्हण आहड आसल अतिगादिमिः तला रामाव्यवस? गटसस्कात् । अस्मिन्नेव कल्याण केद्र १ प्रदत्तः ॥१॥ तथा श्री पंडेरक वास्तव्य रघकार धणपाल सूरपाल जोपाल सिगहा अमियपाल जिसहडदेण्हणादिभिः क्षेत्र सुदि १३ कल्याणके युगंधर्माः हाएल एक १५ - - - -
( 884 ) सम्बत् १२३६ कार्तिक बदि २ बुधे अद्य श्री नड्ले महाराजाधिराज श्री केल्हण देव कल्याण विजय राज्ये प्रवर्तमाने राज्ञी श्री जालहण देवि भुको श्रो षंडेरक देव श्री पार्श्वनाथ प्रतापतः थांपा सुत राल्हाकेन मा मात पाहा पुत्र सोढा सुमकर रामदेव धरणि यवोहीष वर्द्धमान लक्ष्मीधर सहजिग सहदेव सहियगछा ? रागां धीरण हरिचन्द्र वर देवादिभिः युतेन म .. - परम श्रेयो) विदित निज गृहं प्रदत्तः ॥ राबहारा सरक मानुषे घसद्भिः वर्ष प्रति द्रा० एला ? प्रदेया। शेष जनानां बसतां साधुभिः गोष्टिके सारा कार्या ॥ संवत १२६६ वर्षे ज्येष्ट सुदि १३ शनी सोयं मातृ धारमति पुनः स्तंभको उधृत । थांथा सुत राल्हा पाल्हाभ्यां मातृ पद श्री निमित्त स्तमको प्रदत्तः ।
नाना मारवाड़के वाली जिलेमें यह ग्राम है।
(885) संवत १२०३ वैशाख सुदि १२ सोम दिने भो महत सूरिमिः प्रतिष्ठितः समस्तः ।
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( 886 ) संवत ११२६ माह बदि ७ चंद्र श्री विद्याधर गच्छ मोढ ज्ञा० ठ० रत्न ठ० अर्जन ठं. तिहणा पुत्र मोन्द देव श्रेयसे भात टाहाकेन श्री पार्श्व पंचतीर्थी का०प्र० श्री उद. देव सूरिभिः ।
( 887 ) सं० १५०५ वर्षे माह बाद ः शनी श्री ज्ञावकीय गॅच्छे महावीर विवं प्र० श्री शांति सूरिभिः - - . . ष ण जिन --- भवतं
__( 868 ) सं० १५०६ वर्षे माघ वदि ११ सा० दूदा वोर मं महिया - - - लहराज - ..
( 889 ) सं १५०६ वर्षे माघ यदि १० गुरी गोत्र वेलहस ऊ. ज्ञातीय सा. रसन भार्या रसना दे पुत्र दूदा वीरम माह पादे पल णा देव राजादि कुटम्ब युसेन श्रीवीर परिकरः कारित प्रतिष्ठितः श्री शांति सूरिभिः ।
(80)
॥ ॐ अथ संवत्सरे नप विक्रमादित समयात संवत १६५८ भाद्रपद मासा शुक्ल पक्ष ७ सातमी तिथौ शनिवारे। श्री बैद्य गोत्रे। श्री सविया किण्णोत्रजा। मंत्रीश्वर त्रिभुवन सत्पुत्र पूना० तत्पुत्र मुहता चांदा तत्पुत्र मु० षेतसी सत्पुत्र मुहता नीसल १ चाइमल २ वीसन पुत्र मुहता श्री उरजन तत्पुत्र मुहता पतागढ़ सिवाणे साको करी मउ। पिता पुत्र मुहता ओ नाराइण १ सादूल २ सूजा३ सिघा १ सहसा ५ मुहता श्री नारायण नु राणा श्री अमर सिंघ जी मया करेने गांव नाणो दीयो मुहतो नाराइण अरहट १ साईमल देव श्री महावीर नु सतर भेद पूजा सारु केसर दीघेल सारु दीधी
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( २३१) होदूनां घरोस। उस्थापे तियेनु गाईरो--सुस। तुरक उत्थापे तियेनं सुयररी संस बले ..... को उथाप जो- - - गांव नाणारो चढियो गांव वीषलाणे--वो-सि-ए। इजाएन - गांय - दम १ घेटियो- -- - तको उधाप जो। वोजोको उथापसी तिणनु गदहउ गाव महता श्री नारायण मार्या नवरंगदे तत्पत्र मु० श्री राज -- जणयल -.. दा पुत्री जपपी... नाराइण विजी मार्या नवलदे पुत्र जसवंत १ सहितं श्री... गच्छे सहारक श्री सिद्ध सूरि विद्यमाने--..श्री ...-चंद शिष्य चांपा लिषितं । ए--- जको - - - सिणु - - - - ।
लालराई। मारवाड़के वाली जिलेके समीप इस ग्रामके एक प्राचीन खंडर जैन मंदिरमें यह लेख है।
( 891 )
संवत् १२३३ वैशाख सुदि ३ संनाणक मोक्ता राज पुत्र लाखण पाल राज पुत्र अभय पाल तास्मन राज्ये वर्तमाने चा० भीवड़ा पड़ि देह बसी सू० आसपर समस्त सीर सहित खाडि सीर जव मध्यात् जवा से १ गूजरी जात्रा निमित्त श्री शांति नाथ देवस्य दत्ता पूण्याय य: कोपि लुप्यते स पापोन छिद्यतेमंगल भवतू ॥ तथा अड़िया उम अरह आसधर सीरोइय समस्त सीरण जवा हरीषु १ गूजर तयात्रहि वील्हस्य पुण्याचं ॥ १॥
(892)
ॐ॥ संवत् १२३३ ज्येष्ठ बदि १३ गरी अयोह भी मडूले महाराजाधिराज श्री केरहण देव राज्ये व मानः श्री कीर्तिपाल देव पुत्रै सिनाणकं मोक्ता राज पुत्र लाषण
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पाल राज पुत्र अभय पाल राज्ञी श्री महिबल देवि सहितः श्री शांतिनाथ देव यात्रा निमित्त भडिया उव अरघट उरहार मध्यात् गूजर तुहार १ जवा ग्राम पंच कुल समक्षि एतत् --- दामं कृतं पुण्याय साक्षि अत्र वास्त - - -गण ---सी० देवलये. समीपाटीय ---पाजून आम्र--.समक्ष आदानं - - ..मितस्य २ स... हत्या पातकेन लि - .. ११।
हलूंदी। मारवाड़ के गोड़वाड़ इलाके के बीजापुर के पास यह प्राचीन स्थान है।
श्री महावीरजी का मंदिर।
(843)
ॐ ॥ सं० १२९६ वर्षे चैत्र सुदि ११ शुक्र श्री रत्न प्रमोपाध्याय शिष्यः श्री पृ चन्द्रोपाध्याय रालक द्वय शिखराणि च कारितानि सर्वानि।
1894 )
ॐ सं० १३३५ वर्षे श्रावण वदि १ सोमे यह समीपाही। मंडपिकायां भी पाहट उस वां। पथरा महं सजन उ मह. धीणा उधण सीह उ. व देव सिंह प्रमृति पंच कलेन श्री रातामिधान श्री महावीर देवस्य नेचाप्रयं? वर्ष स्थिति के कृत द्र० २१ चत्व विंशति। द्रम्माः वर्ष वर्ष प्रति समी मंडपिका पंच कुलेन दातव्याः पालनीयश्च बहुतिर्वसुघा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः यस्य यस्य - . . यदा भूमि हस्य तस्य तदा फलं शुभं भवतु ।
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( २३३ )
(895)
सं० १३३६ वर्षे श्रष्टको नाग श्र । श्र अर सोहेन सय पक्ष दस द्र० उमयं द्र ३६ समीपाटी मढपिका व्याष्टपृष माण पंच कुलेन वर्ष वर्ष प्रति आचंद्रार्क - यावत् दातव्याः । शुभमस्तु
(896)
नमो बीतरागाय संवत् १३४६ वर्षे श्रावण वदि ३ शुक्र दिने खहेड़ा ग्रामे महादपाल उभारावा कर्म सीइपा ----1
माता के मंदिर के स्तम्भ पर ।
( 897 )
॥ ॐ ॥ नमो श्रोत रागाय ॥ संवत् १३४५ वर्षे प्रथम भाद्रमा बदि शुक्र दिने अह श्री नडूल मंडले महाराज कुल श्री सम्पत सिंह देव राज्येव तन्नियुक्त श्रा ॥ श्री करण महं ललनादि पंचकुल प्रच्छति भूमि अक्षराणि पञ्चा | सभी तल पदित्य मंडपिकायां साधू • हेमाकेन भाति हाथीउड़ी ग्रामें श्री महाघोर देत्र नेवार्थ वर्षे प्रति वर्षा
०
* द्र
२४ चरबबिसि मा० प्रदत्ता शुभं भवतु । बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभि सगरादपि । जस्य जस्य जदा भूमी तस्य तस्य वदा फलं ॥ कपूर विजय लिपतं ॥
खण्डहर में मिला हुआ पाषाण पर ।
( 898 )
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॥ विरके - पजे रक्षा संस्था जवस्तवः । परिशास्तु ना - परार्थ ख्यापना जिनाः ॥ १ ॥ ते वः पातु जिना धिनाम समये यत्पाद पद्मोन्मुख में खा संख्य मयूख
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( २३४) शेखर नख श्रेणीषु विम्योदयात् । प्राय कादशभिग्गुणं दशयतो शक्रस्य शुम्मदृशां कस्य स्योद्गुण कारको न यदि वा स्वच्छात्मनां सङ्गमः ॥२॥ - - क्त - - नासरकरीलोप शोसितः। सुशेखर . - लो मर्द्धि रूढो महीमतां ॥३॥ अमि बिभ्रचिं काता सावित्रों चतुराननः हरिव िवभूवात्र भूविक्षनवनाधिकः ॥४॥ सकल लोक विलोचन पंकज स्फुरदनं बुद बाल दिवाकरः। रिप बध्वदनेन्द हृत यतिः समुदपादि विदग्ध नपस्ततः ॥५॥ स्थाचार्य या रुधिर बचनेर्वासुदेवाभिधाने बोधं नीतो दिनकर करैन्नीर जन्मा करो व। पूर्व जैनं निमिव यशो कारयदस्तिकुण्ड्यां रम्यं हम्मे गुरु हिम गिरेः शृङ्ग शृङ्गार हारि ॥६॥ दानेन तुलिस बलिना तुलादि दानस्य येन देवाय । मागद्वयं व्यतीर्यत भागश्चाचार्य वर्याय ॥७॥ तस्मादच्छुद्ध सत्त्वो मंमटाख्यो महीपतिः । समुद्र बिजयी श्लाघ्य तरवारिः सदूर्मिकः ॥८॥ तस्माद समः समजनि समस्त जन जनित लोचनानंदः। धवलो बसुधा ब्यापी चंद्रादिव चन्द्रिका निकरः ॥६॥ अक्तवाधाट घटाभिः प्रकदमिव मद मेदपाठे भटानां जन्ये राजन्य जन्ये जनयति जनताजं रणं मज राजे। श्रीमाणे प्रणष्ट हरिण इव भिया गूजरेशे विनष्ट तत्सैन्यानां शरण्यो हरिरिव शरणेयः सुरणा बभूव ॥१०॥ श्री मलम राज भूभुजि भजै जत्य भंगां भुवं दंडैभण्डन शौंड चंड सुझटै स्सस्याभिभून विभुः। यो दैत्योरव तारक प्रभृतिभिः श्री मान्महेनं परा सेनानीरिव नीति पौरुष परो नैषोत्परां निवृतिं ॥११॥ यं मलादुद मूलयदगरू बलः श्री मल राजो नपो दर्पा धो धरणो बराह नृपतिं यद्वद्द वापः पादपं । आयातं भविकां दिशी कममिको यस्तं शरण्यो दधो दंष्ट्रायानिव रूढ मूढ महिमा कोलो मही मण्डलं ॥१२॥ इत्यं पृथ्वी पर्तृभिर्नाथ मानः सा -. - सुस्थितैरास्थितोयः । पायो नायो वा विपक्षात्स्व पदां रक्षा कांक्ष रक्षणे बढ़ कक्षाः ॥१३॥ दिवाकरस्वेव करैः कठोरैः करालिता भर कदम्बकस्य। अशि श्रियं ताप हृतोरुताप यमुन्नतं पादप वज्ज नौधा ॥११॥ धनुर्द्धर शिरोमणे रमल धर्ममभ्यस्यतो जगाम जलधेग्गुणो गहरमध्य पारंपरं। समोयुपि सन्मुखाः सुमुख मार्गणानां गणाः सतां चरितमद्धतं सकलमेव
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( २३५ )
लोकोत्तरं ॥१५॥ यात्रासु यस्य वयदोषर्ण विषुर्व्विशेषात् वल्गलुरंग खुरखात मही रजांसि । तेजोभिरूर्जित मनेन विनिर्जित त्वाद्वास्वान्विलज्जित इवातितरां तिरोभूत् ॥१६॥ न कामनां मनो धीमान् घ - लनां दधो । अनन्योढार्य सरकार्य भार घुर्येर्थ - तोपि यः ॥१७॥ यस्तेजोभिरहस्करः करुणया शौद्धोदनिः शुद्धया । भीष्मो वंचन वंचितेन reer धर्मेण धर्मात्मजः । प्राणेन प्रलाय निलो बलभिदो मंत्रेण मंत्री परो रूपेण प्रमदा प्रियेण मदनो दानेन कण्णभवत् ॥१८॥ सुनय तनयं राज्ये बाल प्रसाद मतिष्ठिप स्परिणतवया निःसंगो यो बभूत सुधीः स्वयं । कृत युग कृतं कृत्वा कृत्यं कृतात्म चमत्कृती कृत सुकृतीनो कालुष्यं करोति कलिः सतां ॥ १८॥ काले कलावपि किलामलमेतदीयं लोका विलोक्य कनातिगतं गुणोधं । पार्थादि पार्थिव गुणान् गणयन्तु सत्यानेकं व्यचाद्गुणनिधि यमितीव वेधाः ॥ २०॥ गोचरयति न वाचो यच्चरितं चंद्र चंद्रिका रुचिरं । वाचस्पते वर्षचस्वी को वान्यो वर्णयेत्पूर्ण ॥२१॥ राजधानी भुत्रो भर्त्तु स्तस्यास्ते हस्ति ffuser root धनदस्येव धनाढ्य जन सेविता ॥ २२॥ नीहार हार हर हास हिमांशु द्वारि कारकार वारि भुवि राज विनिर्झराणां । वास्तव्य भव्य जन वित्त समं समंतात्संताप संपदपहार परं परेषां ॥ २३ ॥ धौत कलधौत कलशाभिराम रामास्तना इव न यस्यां । संस्य परेप्यपहारा: सदा सदाचार जनतायां ॥२४॥ समद मदना लीलालापाः प- नाकुलाः कुवलय दृशां संदृश्यंते दृशस्तरलाः परं । मलिनित मुखा यत्रोद्ववृत्ताः परं कठिनाः कुखा निषिड रचना नीवौ वंधाः परं कुटिलाः कचाः ||२५|| गाढ़ोत्तुं गानि साईं शुचि कुच कलशैः कामिनीनां मनोज्ञ विस्तीर्णानि प्रकामं सहं धन जघनर्देवता मंदिराणि । भ्राजते दा शुत्राण्यतिशय सुभगं नेत्र पात्रैः पवित्रैः सत्रं चित्राणि धात्री जन हृत हृदयैर्व्विभूमैर्यत्र सत्रं ॥ २६ ॥ मधुरा धन पर्व्वाणो हृद्यरूपा रसाधिकाः । यत्रेक्षु वाटा लोकेभ्यो नालिकत्वाद्भिदेलिमाः ॥२७॥ अस्यां सूरिः सुराणां गुरु शिव गुरुभि गौर वा गुणौघै भूपालानां fretat are विलसिता नंतरानंत कीर्त्तिः । नाम्ना श्री शांति भद्रो भवदभि भवितुं भासमाना समानो कामं कामं समर्था जनित जनमनः संमदा यस्य मूर्त्तिः ॥ २८ ॥ मन्येमुना मुनीन्द्रेण मनोभूरूप निर्जितः । स्त्रघ्नेपि न स्वरूपेण समगन्स्ताति लज्जतः ॥२६॥
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(२३६ ) प्रोद्यत्पद्माकरस्य प्रकटित विकटा शेष मावस्य सूरेः सूर्यस्येवामृतांशुं स्फुरित शुम रुचि बासुदेवाभिघस्य। अध्यासीनं पदव्यां यम मल विलसज्ज्ञान मालोक्य लोको लोका डोकावलोकं सकलमचकलत्केवल संप्रवीति ॥३०॥ धर्माभ्यास रतस्यास्य संगतो गुण संग्रहः। अभग्न मार्गणेच्छस्य चित्र निर्धाण वांछना ॥१॥ कमपि सर्वगुणानुगत जनं विधिरयं विदधाति न दुर्विधः । इति कलंक निराकृतये कृती पमकृतेव कृताखिल सद्गुणं "३२॥ तदीय वचनान्निजं घन कलत्र पुत्रादिकं विलोक्य समलं चल दल मिवा. निलांदोलितं । गरिष्ठ गण गोष्ठ्यदः समददी धरवीर धीरुददार मति सुंदरं प्रथम तीर्थ कृन्मंदिरं ॥३॥ रक्तं वा रम्य रामाणां मणि ताराव राजितं । इदं मुख मिया माति भास मान वरालकं ॥३४॥ चतुरन पट उजन घाड्ड निकं शुम शुक्ति करोटक युक्त मिदम् । बहु भाजन राजि जिनायतनं प्रविराजति भोजन धाम समं ॥३॥ विदग्ध नप कारिते जिन गृहति जीणे पुनः समं कृत समुद्धसायिह अवांधिरात्मनः । अतिष्टिपत सोप्यथ प्रथम तीर्थ नाथा कृति स्वकीर्तिमिव मर्शतामुपगतां सितांशु श्रुति ॥३६॥ शांत्याचार्य खिपंचाशे सहस्र शरदा मियं । माघ शुक्ल त्रयोदश्यां सुप्रसिष्ठः प्रतिष्ठिता ॥३७॥ विदग्ध नृपतिः पुरा यद तुलं तुलादेदी सुदान मवदान धारिदम पोपलन्नाद्भुतं । यतो धवल भूपतिर्जिनपतेः स्वयं सात्मजोरघहमथ पिप्पलोप पद कूपकं प्रादिशत् ॥३८॥ यावच्छेष शिरस्थ मेक रजतस्थ्णा स्थिताभ्युल्ल सत्पातालातुल महपा मल तुलामा लंबते भूतलं । तावत्तार रवाभिराम रमणी गंधर्व धीर ध्वनिर्धामन्यत्र धिनोतु धार्मिक धियः सदुप वेला विधी ॥३६॥ सालंकारा समधि करसा साधु संधान बंधा श्लाघ्यश्लेषा ललित विलसत्तद्धिता ख्यात नामा। सत्ताढ्यारुचिरविरतिद्व र्यमाधर्यवर्या सूर्याचार्य व्यरचिरमणी वाति रम्या प्रशस्तिः ॥४०॥ सम्बत १०५३ माघ शुक्ल १३ रवि दिने पुष्य नक्षत्रे श्री ऋषभ नाथ देवस्य प्रतिष्ठा कृता महा ध्वज चारोपितः ॥ मूलनायकः ॥ नाहक जिन्दज सशम्प परभद्रः नागपोचिस्थ श्रावक गोष्ठिकर शेष कर्म क्षया स्व संतान प्रवाब्धि सरणार्थं च न्यायापार्जित वितन कारित: ॥ परवादि दर्प मधनं हेतु नय सहस्र अंगकाकीण । भव्य जन दुरित शमनं जिनेंद्र वर शासन जयति ॥१॥ आसीद्धी धन संमतः शुभगुणा भास्वत्प्रतापोज्वलो विस्पष्ट प्रतिभा
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( २३७ ) मनाव कलितो भूपत्तिमांगार्चितः। योषिस्पीन पयोधरांतर सुखामिष्वङ्ग सन्ताडितो यः श्री मान्हरि धर्म उत्तम मणिः सदंश हारे गुरी ॥२॥ तस्माद्वभूव भुवि भूरि गुणोपपेतो धूप प्रभूत मुकुटार्चित पाद पीठः। श्री राष्ट्रकूट कुल कानन कल्प वृक्षः श्री मान्विदग्ध नृपतिः प्रकट प्रतोपः ॥३॥ तस्माद.प गुणान्वित तमा कीर्चः परं भाजनं संभूतः सुतनुः सुताति मतिमान् श्री मंमटी विश्रुतः । येनास्मिनिज राज वंश गगने चंद्रायितं चारणा तेनेदं पितु शासनं समधिकं कृत्वा पुनः पाल्यते ॥॥ श्री बलभद्राचार्य विदग्ध नप पूजितं समभ्यर्थे । आचंद्राकं यावद्वत्त अवते मया प्रपाल्यते सर्वम् ॥५॥ श्री हस्ति कुडिकायां चैत्य गृहं जन मनोहरं मक्त्या । श्री मालभद्र गुरोर्यद्विहितं भी विदग्धेन ॥ तस्मिल्लोकान्समाय नाना देश समागतान । आचंद्राक्कं स्थितिं यावच्छासनं दत्त मक्षयं ॥७॥ रूपक एको दयो बहतामिह विशतेः प्रत्रहणानां । धर्म ----क्रय विक्रयेच तथा ॥ संभूत गंध्या देयस्तथा वहंत्याश्च रूपकः श्रष्टः। घाणे घटेच कर्क देयः सर्वेण परिपाट्या ॥६॥ श्री अहलोक दत्ता पत्राणां चोल्लिका त्रयोदशिका। पेरुलक पेल्लक मेतद् चूत करैः शासने देयं ॥१०॥ देयं पलाश पाटक मर्यादावर्तिक - - - प्रत्यर घट्ट धान्याढकं तु गोधूम यव पूर्ण ॥११॥ पेड्डा च पंच पलिका धर्मस्य विश्वोपक स्तथा मारे। शासन मेतत्पूर्व विदग्धेन राजेन रदत्तं ॥१२॥ कासकोस्य कुंकुम पुर मांजिष्ठादि सर्व मांडस्य। दश दश पलानि सारे देयानि विक -- -- ॥१३॥ आदानादे तस्मादाग द्वय महंतः कृतं गुरुणा। शेषस्ततीय भागो विद्या धनमात्मनो विहितः॥११॥राज्ञा तत्पुत्र पोत्रैश्च गोप्ट्या पुरजनेन च। गुरुदेव धनं रक्ष्यं नापेक्ष्यं हितमीप्सुभिः ॥१५॥ दस्ते दाने फलं दानोस्पोलिते पालनास्फलं । अक्षिता पेक्षिते पापं गुरु देव धनेधिकं ॥१६॥गोधम मुदग यव लवण रालकादेस्तु मेयजा तस्य । द्रोणम् प्रति माणकमेक मत्र सवेंण दातव्यं ॥१७॥ बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः सगरादिमिः। यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलं ॥१८॥ राम गिरि नंद कलिते विक्रम काले गते तु शुचिमासे। श्री मद्वलभद्र गुर्विदग्ध राजेन दत्त मिदं ॥१०॥ नवसु शतेषु गतेषु तु षण्णवती समधि केषु माघस्य कृष्ण कादश्यामिह समर्थितं ममद नूपेण ॥२०॥ यावद भूधर भूमि भानु भरत भागीरथी
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( २३८ )
भारती भास्वद्मानि भुङ्ग राज भवन भाजद, भवांभोदयः । तिष्ठन्त्यत्र सुरासुरेंद्र महितं जैनं च सच्छासनं श्री मटकेशव सूरि सन्तति कृते तावत्प्रभूयादिदम् ॥२१॥ इदम् चाक्षय धर्म साधनम् शासनम् श्री विदग्ध राजेन दत्तं ॥ सम्बत ६७३ श्री मंमट राजेन समर्थितम् सम्बत् ९९६ ॥ सूत्रधारोद्भव शत योगेश्वरेण उत्कीर्णे यम् प्रशस्तिरिति ।
जालोर ।
मारवाड़का यह भी बहुत प्राचीन स्थान है। इसका प्राचीन नाम जावालीपूर था । तोपखाना |
(899)
- का लक्ष्मी विपुल कुलगृहं धर्मवृक्षालवाल । श्री मन्ना भैय नाथ क्रम कमल युगं मंगलं व स्तनोतु । मन्ये मंगल्य माला प्रणत भव भूतां सिद्धि सोध प्रवेशे यस्य स्कंध प्रदेशे विलसति गल श्यामला कुंतलाठी ॥१॥ श्री चाहुमान कुलांवर मृगांक श्री महाराज अपहिला न्वयोवद्भव श्री महाराज आल्हण सुत - fire दुर्ललित दलित रिपुबल श्री महाराजकीर्तिपाल हे हृदयानं दिनंदन महाराज श्री समर सिंह देव कल्याण विजय राज्ये सत् पाद पद्मोपजीविनि निज प्रौढि मातिरेकतिरस्कृत सकल पील्वाहिका मंडल तस्कर व्यतिकरे । राज्यश्चिंत के जोजल राजपुत्रे इत्येवं का प्रवर्त्तमाने । रिपुकुलकमले दुःपुण्यलावण्यपोत्रं नय विनय निधान धाम सौंदर्य लक्ष्म्याः । धर्राण तरुण नारी लोचनान' दकारी जयति - समर सिंह क्ष्मा पतिः सिंह वृत्तिः ॥ २ तथा ॥ औत्पत्तिकी प्रमुख बुद्धि चतुष्टयेन निर्णीत भुप भवनोचित कार्य वृत्तिः । यन्नातुलः समभवत् किल जो जलाह्वो - - खंडित दुरत विपक्ष लक्षः ॥ ३ श्री चंद्रगच्छ मुख मंडन सुविहित यतिसिलक सुगुरु श्री श्री चन्द्रसूरि चरण नलिन युगल दुर्लखित राजहंस श्री पूर्ण भद्र सूरि चरण कमल परि चरण चतुर मधुकरेण समस्त गोष्टिक समुदाय समन्वितेन श्री श्रीमाल वंश विभूषण श्रेष्टि यशोदेव सुतेन सदाज्ञाकारि निज-सूयशोराज जगधर विधीयमान निखिल मनोरथेन श्रेष्ठि यशोवीर
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( २३९) परम पावकेण संधत् १२२६ वैशाख सुदि ५ गरी सफल त्रिलोकी तलामोग भ्रमेण परिश्रांत कमला विलासिमी विश्राम विलास मंदिरं अयं मंडपो निर्मापितः ॥ तथा हि. नाना देश समागते वनवैः खी पंसवर्ग मुंहु र्यस्य -- -- पाव लोकन परेनों तमिरासाद्यते। स्मारं स्मारमथो पदीय रचना वैविध्य विस्फूर्जितं तैः स्वस्थान गतेरपि प्रतिदिन सोरकठमावर्ण्यते ॥१॥विश्वरावर वधू तिलक किमेतल्लीलारविंदमध किं दुहितुः पयोधेः। दत्त सुरै रमृत कुंड मिदं किमत्र यस्यावलोकनविधी विविधा विकल्पाः ॥५॥ ग पूरेण पातालं ... प महीतलं । तुंगत्वेन नमो येन व्यानशे भुवन त्रयं ॥ ६॥ किं च ॥ स्फूर्जटुपोमसर: समीनमकरं कन्यालिकुमाकुलं मेषाढय सकुलीरसिंह मिथुनं प्रोद्यवृषालंकृतं । ताराकैरवमिंदुधाम सलिलं सद्राजहंसास्पदं यावत्तावदिहादिनाथ भवने नंवादसी मंडपः ॥ ७ ॥ कृतिरिय श्री पूर्ण भद्र सूरीणां ॥ भद्रमस्तु श्री संघाय ॥
1899 )
ओं ॥ संवत् १२२१ श्री जावालिपुरीय कांचनगिरि गढ़स्योपरि प्रभु श्री हेम सूरि प्रयो. धित गूर्जर घराधीश्वर परमाईत चोल्लक्य ॥ महाराजाधिराज श्री कुमार पाल देवकारिते श्री पार्श्वनाथ सत्कमूल विंव सहित श्री कुवर विहाराभिधाने जैन चैत्ये। सद्विधि प्रष
नाय वृहद्गच्छीय वादीद्र देवाचार्याणां पक्षे आचंद्रार्क समर्पिते । सं० १२१२ वर्षे एतद्वेशाधिप चाहमान कुलतिलक महाराज श्री समर सिंह देवादेशेन मा० पासू पुत्र मां. यशोवीरेण समुदते । भी मद्राजकुलादेशेन श्री देवा चार्य शिष्यैः श्रो पर्ण देवाचार्यः । सं० १२५६ वर्षे ज्येष्ठ सु. ११ श्री पार्श्वनाथ देवे तोरणादीनां प्रतिष्ठा कार्ये कृते। मूल शिखरेच कनकमय ध्वजा दंडस्य ध्वजा रोपण प्रतिष्ठायां कृतायां । सं० १२१८ वर्षे दीपोत्सव दिने अभिनव निष्पसप्रेक्षा मध्य मंस्पे श्री पूर्णदेव सूरि शिष्यैः श्री रामचंद्राचार्यः सुवर्णमय कलसारोपण प्रतिष्ठा कृता । सुमं भवतु ॥ छ ।
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( २१०)
( 900 ) संवत् १२९४ वर्षे श्री मालीय श्रे० वीसल सुत नाग देवस्तरपुत्रो देल्हा सलक्षण शोपाख्याः शांवा पुत्रो वीजाकस्तेन देवड़ सहितेन पितृकां श्रेयोर्य श्री जावालिपुरीय श्री महावीर जिन चैत्ये करोदि कारिताः ॥ शुभं भवतु ॥
( 901 ) संवत् १३२० वर्षे माघ सुदि १ सोमे श्री नाणकीय हाच्छ प्रतिबद्ध जिनालये महाराज श्री चंदन विहारे श्री क्षो व रायेश्वर स्थान पतिना महारक रावल लक्ष्मीधरेण देव श्री महावीरस्य आसोज मासे अष्टाहिका पदे द्रम्माणां १.० शतमेकं प्रदत्तं ॥ तद्वधाज मध्यात् मठ पतिना गोष्ठिकैश्च द्रम्म १० दशकं वेचनीयं पूजाविधाने देव श्री महावीरस्य ॥
( 20 ) ओ संवत् १३२३ वर्षे माग सुदि ५ बुधे महाराज श्री चाचिग देव कल्याण विजय राज्ये तन्मद्रालंकारिणि महामात्यः श्री जक्षदेवे ॥ श्री नाणकीय गच्छ प्रतिबद्ध महाराज श्री चंदन विहारे विजयिनि श्री मद्धनेश्वर सूरौ तैलं गृह गोत्रोद् भवेन महं नरपसिना स्वयं कारित जिन युगल पजा निमित्तं मठ पति गोष्ठिक समक्ष श्री महावीर देव मांडागारे द्रम्माणां शनाई प्रदत्त ॥ तद्व्याजोद्भवेन द्रम्मा?न नेचकं मासं प्रति करणीयं ॥ शुभं भवतु ॥
( 903 ) ऑ॥ संवत् १३५३ वर्ष वैशाख वदि ५ सोमे श्री सुवर्ण गिरी अद्येह महाराज कल श्री सामंतसिंह कल्याण विजय राज्ये तत्पादपद्मोपजीविनि ॥ राज श्री कान्हदेव राज्य घरामदहमाने इहैव वास्तव्य संचपति गुणधर ठकर आंबह पुत्र ठकर जस पत्र सोनी महणसोह भार्या मालहणि पुत्र सोनी रतनसिंह णाखी मालहण गजसीह तिहषा पुत्र सोनी नरपति जयसा विजयपाल नरपति आर्या नायकदेवि पुत्र लखमीधर भूषण
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( २४१ )
पाल सुहडपाल द्वितीय भार्या जाल्हण देवि इत्यादि कुटंब सहितेन भार्या नायक देवि यो देव श्री पार्श्वनाथ चैत्ये पंचमी बलि निमित्त निश्रा निक्ष ेप हहमेव नरपतिना दत्तं तव भाटकेन देव श्री पार्श्वनाथ गोष्ठिकैः प्रति वर्षः आचंद्रार्कं पंचमी वलिः कार्या ॥ शुभं भवतु ॥ छ ॥
महावीरजी का मन्दिर ।
( 904 )
संवत् १६८९ वर्षे प्रथम चैत्र बाद ५ गुरौ अह श्री राठोड़ वंशे श्री सूरि सिंह पह श्री महाराजे श्री गजसिंह जी विजयि राज्ये मुहणोत्र गोत्रे वृद्ध उसवाल ज्ञातीय सा० जेसा भार्या जयवंत दे पुत्र सा० जयराज भार्या मनोरथदे पुत्र सा० सादा सुभा सामल सुरताण प्रमुख परिवार पुण्यार्थं श्री स्वर्ण गिरि गढ़ादुर्गं परिस्थित श्री मत कुमार विहारे श्री मती महावीर चैत्ये सा० जैसा भार्या जयवंत पुत्र सा० जयमल जी वृद्ध भार्या सरूपदे पुत्र सा० नङ्गणसी सुन्दरदास आस करण लघुभार्या सोहागदे पुत्र सा० जगमालदि पुत्र पोत्रादि श्रेयसे सा० जयमल जी नाम्ना श्री महाबोर विवं प्रतिष्ठा महोत्सव पूर्व कारित प्रतिष्ठितं च श्रोतपागच्छ पक्ष सुविहिताचारकारक शिथिलाare area साधु क्रियोद्धार कारक श्री ६ आनंद विमल सूरि पह प्रभाकर श्री विजय दान सूरि पट्ट शृङ्गार हार महा म्लेच्छाधिपति पातशाह श्री अकवर प्रतिबोधक सद्दत्त जगद्गुरू विरुद धारक श्री शत्रुंजयादि तीर्थ जीजीयादि कर मोचक षण्मास अमारि प्रवर्धक भट्टारक श्री ६ हीर विजय सूरि पट्ट मुकुटायमान भ० श्री ६ विजय सेन सूरि पह े संप्रति विजयमान राज्य सुविहित शिरः शेखरायमाण महारक श्री ६ विजय देव सूरीश्वराणामादेशेन महोपाध्याय श्री विद्यासागर गणि शिष्य पण्डित श्री सहज सागर गणि शिष्य पं० जय सागर गणिना श्रेयसे कारकस्य ॥
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(२४२)
( 905 ) संवत् १९८३ आषाढ़ वदि गुरी भवण नक्षत्रे श्री जालोर नगरे स्वर्ण गिरि दुर्गे महाराजाधिराज महाराजा श्रो गजसिंह जी विजय राज्ये महुणोत गोत्र दीपक में अचला पुत्र मं जेसा मार्या जेवंत दे पु० मं श्री जयल्ला नाम्ना मा. सरूपदे द्वितीय सुहागदे पुत्र नयणसी सुंदरदास आसकरण नरसिंहदास प्रमुख कुटुव यतेन स्व श्रेयसे श्री धर्मनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठितं श्री तपा गच्छ नायक प्रहारक श्री हीर विजय सूरि पहालंकार प्रहारक श्री विजय सेन ...।
( 906 ) संवत् १६८३ वर्षे अषाढ़ दि ५ गुरी सूत्रधार उद्धारण तत्पुत्र तोडरा इसर टाहा। दूहा हांगकेन कारापितं प्रतिष्ठितं तपा गच्छ भ० श्री विजय देव सूरिभिः ॥
(907 ) संवत् १९८३ वर्षे अषाढ़ वदि ४ गुरौ। महणोत्र गोत्र । प्र. जमल भार्या सरूपदे समर्पित। श्री सुपार्श्व विवं । प्रतिष्ठितं तपागच्छे R० - - ।
( 908 } संवत् १९८३ वर्षे श्री अजिस बिंब प्र० स० प्र० श्री विजय देव सूरिभिः॥
( 909 ) संवत् १६८४ वर्षे माघ सुदि १० सोमे श्री मेड़ता नगर वास्तव्य उकेश ज्ञातीय मामेचा गोत्र तिलक सं हर्ष लघु भार्या मनरंगदे सुत संघपति सामीदासकेन श्री
धनाथ विवं कारितं प्रतिष्ठित भी तपा गच्छे श्री तपा गच्छाधिराज महारक श्री विजय देव सूरिभिः । आचार्य श्री विजयसिंह सूरि प्रमुख परिवार परिकरितः। श्रीरस्तुः॥
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(२४३ )
( 910 ) संवत् १९८५ वर्षे मा.व. गुरी भ. लठांक श्री माण विप्र मा. विजयदेव सूरिभिः ।
( 1 )
चौमुखजी का मन्दिर। संवत् १९८१ वर्षे प्रथमा चैत्र वदि ५ गुरौ श्री श्री मुहपोत्र । गोत्र सा० जेसा मार्या जसमादे पुत्र सा. जयमाल भार्था सोहागदेवी श्री आदिनाथ विवं कारित प्रतिष्ठा महोत्सव पूर्वकं प्रतिष्ठितं च श्रो तपा गच्छे श्री विजय देव सूरीणा मादेशेन जय मागर गणिना।
हरजी
यह मारवाड़के जालोर के पास गांव है।
( 912 )
संवत् १२३१ मार्गा सुदि - R० शांति शिष्येण नेमिचंद्रप आत्म अयार्थं प्रदरः ।
( 1
)
संवत् १५१० वर्षे ज्येष्ठ सुदि ३-वा० श्री मुनिशेषर शिष्य दया रत्न श्री वीरस्य स्कया केकृत
( 14 ) संवत् १५१७ वर्षे फागुण सुदि ११ दिने रा. श्री विलास म. सोम रात्रे पाः - -
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( २४४ )
(915)
श्री शीले सार्थो मतिर्यस्थातः स्पृहा बीर देशिते । महिमा कीर्ति लेखा स्या । तस्य
देवेषु दुर्लभा ॥
श्री पज्जु बधू असोचय uty धम्मटथम कारि लग एसा ॥
चंदण वाट नासा
( 916 )
बहुया भज्जा सुहंकर वणिस्स । सो अन सरात्रि
१ ॥
( 917 )
षा मति सिरी सा पी लगा कारिता
जूना ।
यह मारवाड़का वाडमेर इलाके में गांव है।
( 918 )
ओं ॥ संवत् १३५२ वैशाख सुदि १ श्री बाहर मेरी महाराज कुल श्री सामंत सिंह देव कल्याण विजय राज्ये तनियुक्त श्री करणे मं० चीरासेल वेलाउल मां० मिगल प्रभृतयो घर्माक्षराणि प्रयच्छन्ति यथा । श्री आदिनाथ मध्ये संतिष्ठमान श्री विघ्न मर्दन क्षेत्रपाल श्री चउंडराज देवयोः उभय मार्गय समायात सार्थ उष्ट्र १० वृष २० उयादीप ऊर्द्ध सार्थं प्रति द्वयोर्देवयोः पाइला । पक्ष भीम प्रिय दर्शावशापक अढर्द्धन ग्रहीतव्याः । ओसो लागो महाजनेन मानितः ॥ यथोक्तं बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः । यस्य यस्य यदा भूमिस्तस्य तस्य तदा फलं ॥ १ ॥ छ ॥
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( २१५ ) जूना वेडा (मारवाड)
( 919 ) ॐ ॥ संवत् ११४४ माघ सु० ११ भ पतेरं प्रदेव्यास्तु सूनुना जेजकेन स्वयं प्रपूर्ण बन मानावे मिलित्वा सर्व बांधवः ॥१॥ खनके पूर्ण भद्रस्य वीरनाथस्य मंदिरे कारिता वीर नाथस्य श्रेयसे प्रतिमानघा ॥२॥ सूरे प्रद्योतनार्यस्य ऐन्द्र देवेन सूरिणा अषिते सांप्रतं गच्छे निःशेष नय संजुते ॥३॥
( 920 ) संवत् १६४१ वर्षे फागुण दि १३ उकेस ज्ञासीय वापणे गोत्रे सेंधवी टीलु आर्या दीड़म दे पत्र सं० गोपा भार्या गेलमदे पत्र रूपा चंदा श्री रादुलिया भार्या मन अगोदे पुत्र भोजा भा० ना - - . . श्री पार्श्वनाथ विंव कारित सपा गच्छ भहारक श्री श्री हीर विज --..।
( 921 )
संवत् १३४७ वर्षे वैशाख मुदि १५ रवी श्री अकेश गोत्रे श्री सिद्धा चार्य संताने श्रे० वेल्हू भा० देमलतरपत्र अ० जन सीहेन सक्दुम्बेन आत्म श्रेयसे पारवनाथ विवं कारितं प्र. श्री देव गुप्त सूरिभिः ।
संवत् १५०७ वर्षे माहि सुदि ५ रवी प्र० ग० दोला राजू पु. वीसा भा० विमलादे । पु. ड्रगर सहितेन स्व पुण्यार्थे श्री बिमलनाथ विवे का० म० श्री मडाहड़ा गच्छे श्री नय कीधिसूरि भि० माल्हेणसू ग्रामे वास्तव।
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(२१६ )
( 923 )
सं० १६३० वापि वैशाख वदि दिने श्री वहड़ा ग्रामे उसवाड सुते गोत्र सोलाकी बाधणे सागासाहा भी दामा• खेमलदे पुत्र राजा भार्या सेवादे पुत्र माना कमरसी भी कुंथुनाथ विवं श्री हीर
( 924 )
सं० १५३० वर्षे सा०व०६ प्राग्वाट ज्ञाति ध्य० चाहड मार्या राणी पु० व्य० वेला प्रमुख कुटुम्ब युतेन स्व श्रेयसे श्री संभवनाथ विवं का.म. सपा श्री लक्ष्मी सागर सूरिभिः चुंपरा ग्रामे
( 925)
सं० १६३० वर्षे वैशाख पदि दिने श्री वहड़ा ग्राम उसवाल ज्ञातीय गोत्र तिलहरा सा. सूदा भार्या सीहलादे पुत्र नासण वीदा नासण भार्या न काग देवीदा भार्या कनकादे सुत वला श्री आदिनाथ विवं कारापित श्री हीर विजय सूरिभिः प्रतिष्ठितः ।
( 926 . )
सं० १५१५ वर्षे माघ शु. १५ उकेश लोढ़ा गोत्र सा. कांत श्रा० कपूरी सुत सा. वीरपालेन मा० गांगी पुत्र पनर्वल कर्मभी भातृ दिल्हादि युतेन पा संमबनाय विवं, कारित प्रतिष्ठितं तपा श्री रत्न शेखर सूरिभिः ।
(827) सं० १९२३ वर्षे वैशाख मासे शुक्रवारे १. तिथो इहर नगर वास्तव्य उसवाल ज्ञातीय। मं० श्री। उहुआ सुत मं• जसा मं श्री रामा महा भाधेन भार्या रला। दमकदुआ
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(२१०) म. सिंघराज प्रमुख सकल कुटुंब युतेन प्रो शांतिनाथ विवं कारित। श्री श्रीतपागच्छ पुगप्रधान विजय दान सूरि पढ़े भी हीर विजय सूरिति प्रतिष्ठितं । वैशाख सुदि दशमी दिन ।
(928)
संवत् १९५४ वर्षे माघ सु० ६ उप० ज्ञाती गादहीया गोत्रे सा० कोहा मा. रसनादे पु. आका मा० यस्मीदे पु० हराजावड़ मेरादि साहितिथी पति मतं श्री वास पूज्य विवं कारि० श्री वपु श्री कुकुदाचार्य संताने प्र. देव गुप्त सूरिमिः । श्री।
(929 ) सं० ११२२ श्री सर प्रमु सूरि उपदेशेन प्रतिष्ठितं ।
(930 ) संवत् १६४४ वर्षे फागुण वदि १५ उपकेश ज्ञातीय वाहड़ा गोत्रे..... संसवनाय ---- लघगछ बुध श्री श्री होर विजर सरि।
नगर गांव (मारवाड)
( 931 ) संवत् १५१६ वर्षे पोसष वदि११ दिने गुरुवारे श्री राउड राज्ये श्री सोध बम पुत्र श्री श्री वयं रसल्ल नरेस्वरेण बांधव सामंत सल्हा पुत्र हरुव मुख सपरिवारेण तेज बाई भरतार माटी महिप पुण्यार्थं गोविंदराजेन श्री श्री महावीर चैत्ये वा. मोदराज गणि उपदेशेन पटहो बांधव मं० धारा पुत्र थाथल मंडाही पुत्र नाल्हा म. जाणा मं.दे. जट प्रमुख श्री संघ समु मां पटही वापमानो चिरं जबातः शुभं भवतु नारदेन उषतं ।
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( २१८ ) सांचोर (मारवाड)
( 932 ) स्वस्ति श्री संवत् १२२५ वर्षे वैशाख वदि १३ दिने श्री सत्य पर महा स्थाने राज श्री भीमदेव कल्याण विजय राज्ये उपकेश ज्ञातीय भंडारी मंजग सिंह पुत्र भंडारी पाल्हा सुत छोघाकेन वृद्ध मात म. साम वध घासकितेन. श्री महावीर चैत्ये आरम अयसे चतुष्किका उद्धारः काारतः ॥
रत्नपुर। मारवाड़के जसवंत पुरा इलाके में यह स्थान भी बहुत प्राचीन है।
( 933 ) ॐ संवत् १२३८ पोष वदि १० बला० नागू पुत्र श्रे० उद्धरण भार्यया श्रे. देवणाग पुत्रिकया. उत्तम परम भाविकया स्व श्रेयो) श्री पार्श्वनाथ देव चैत्य मंडपे स्तंभोयंकारितः ॥
( 934 )
___ॐ॥ संवत् १२३८ पोष वदि. १०० आंघ मार पुत्र श्रे० धवल भार्ययावला. नागू पुत्रिकया संतोस परम श्राविकया स्व श्रेयाचं श्रा पार्श्वनाथ देव चैत्य मंडपे स्तमाय कारितः ॥
( 35 ) ॐ ॥ संवत् १३३३ वर्षे माघ सुदि १ प्रतिपदायां महामण्डलेश्वर राज श्री चाचिग देव कल्याण विजय राज्ये संवियुक्त महामात्य श्रा जारमा प्रति पंच कुल प्रतिपत्ती रत्न पुरे देव श्री पार्श्वनाथाय पोष कल्याणिक यात्रा निमित्तं महं माधव
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१२१६) सुत महं मदन सुन महं धीणा । श्री कुमरसिंह सुत महं ऊदल प्रभूति पंच कुलेन श्री पार्श्वनायः देव प्रतिवद्ध श्री चैत्र गच्छीय श्रीदेवचंद्र सूरि संताने श्री अमरचंद्र सूरि शिष्य श्री अजित देव सूरीणा मुपदेशेन हह द्वय भूमिः प्रदत्ता आ चंद्रा नंदतु ॥ बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजभिः सगरादिभिः। यस्य यस्य यदा भूमि स्तस्य तस्य तदा फलं ।
(936 ) संवत् १३४५ वर्षे चेत्र सुदि १५ गुरावधेह रत्न पुरे महाराज कुल श्री सांवा सिंह। कल्याण विजह राज्ये नियुक्त महं• कदुआ प्रभूति पंच कुल प्रतिपत्ती श्री पार्श्वनाथ प्रतिवद्ध महा महणावे सांता मह विजयपाल गो. लषण प्रति समस्त गोष्ठिकानां विदितं अक्ष्यराणि प्रयच्छति यथा रत्नपर वास्तव्य गूर्जर न्यातीय . राजा सुत बादा गांगा सुत मंडलिक मदन प्रति कानां देव श्री पार्श्वनाथ प्रतिबद्ध तोडक प्रवेश द्वार दक्षिण हस्त प्रथम हहात् द्वितीय हह . गांगा श्रेयोर्य वादा सत्क देव कुलिका विंध पूजापनार्थं श्री पार्श्वनाथ देवेन गोष्ठिके। विदित रह समर्पितं । अस्य हह निक्रद प्रतिदेव श्री पार्श्वनाथस्य श्री वाचकेन वीसल प्रीययाय एक विशसत्याधिक शत मेकं प्रदत् । हमिदं चक्षि गोष्टिक: संमिलते मूत्वा भाहक संस्था करणीया स्वास्मीय परिणा घोष्ठि शादा अतक सांध विनः माह के हह कस्यापि नार्पणीयं । तथा सस्क उसपत्ति व्यय कर्ण वागोष्ठिकान विना एकाकिनैः न कर्तव्या। उतपत्ति मध्यातु देव कुलिकाया बिंधानां नेचकप देवी• दु२। ३ वर्ष प्रतिदातव्या उतपत्ति मध्यात् हह पतित दुसित पदे कमठाय कारापनीया। यच्च माहक स्वरु द्रव्यं बर्द्धति सत् पोष कल्याणक दिने देव कलिकाया बिंव भोग करणोय। उरितं द्रव्यं श्री पार्श्वनाथ सत्क नालि कायां यवं । ग्यां खेपनीयं निक्षेप उधार गोष्ठिकै करणीय। अत्र मतान महा महणा मतं घोष्टि सोता मत्तं धराणे गमी वा हस्तेन महं विजय पाल मतं । गोष्टिक षणा मतंस
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( २५० )
बिलाड़ा (मारवाड )
( 937 )
सं० १८०३ वर्षे शाके १६६८ प्रवर्त्तमाने मगशिर सुदि २ दिने सोम वारे महाराज राज राजेश्वर महाराजा जी श्री अभयसिंह जी कुंवर श्री रामसिंह जो विजय राज्ये वृहत खरतर श्री आचार्य गच्छे। महारक श्री जिन कीर्त्ति सूरि जी वर्त्तमाने सति । "भी बिलाड़ा नगरे कटारीया कलावत साह श्री तुरंता जी पुत्र गिरधरदासजीकेन जिनालय करापितः स्थानको यमः उपाध्यायजी श्री करम चंद हरष चन्दाभ्यां कृतः estad श्रावकाणामपि विशेषोपदेशो दत्तस्ते नायं श्री सुमतिनाथ जी देव लो - द्वघर भीषन कमाभ्यां कृतः उपाध्याय श्री करमचंद गणि पं० हरषचंद गणि पं० प्रतापसी गणि प्रमुख सपरिकरेन विव- श्री भवतु ।
जातः
बोईया (मारवाड)
(938)
संवत् १२५० आषाढ़ वदि १४ या भुडपट वास्तव्य भावक सामण भार्या जिसवई सुत रोहड रामदेव भावदेव कुटुंब सहितेन राम्बदेवेन स्तंभ उता प्रदधा द्वा० २० ।
( 939 )
म० संवत् १२५० आसाढ़ यदि १४ रवो बहुविध वास्तव्य २० रोहिल सुत तत्सुत गुप्ण घर साल्हणाभ्यां मातृ थिरम्मति श्रयार्थे स्तम्भ उता ..... प्रदत्ता ।
घांघल
द्रां० २०
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( २५१ ) कोटार (गोड़वाड़)
( 940 ) संवत् ११३५ वर्षे श्रावण वदि १ सोमेऽयह समाण · · · सf • • • या प्रा. इनउ - पयरा महं सज्जन ठ० मह मा . ' धणसीह ठ देवसीह प्रति पञ्च कलेन श्रीधात भिधान श्रीमहावीर देवस्य ने चके - . - वर्ष स्थितके कृत द्र २१ चतुविशति द्रम्माः वर्ष वर्षे प्रति - मी मंडपिका पंच कुलेम दातव्याः ॥ पालनीया च । बहुभिर्वसुधा भुक्ता राजमिः सगरादिभिः यस्य यस्य यदा भूमी तस्य तस्य सदा फल । शुभं भवतु।
( 941 ) सं० १३३६ वर्षे श्रेष्ठि को सीहन चयपने दत्तद्र १२३ - यद २६ सप. १ मा. या स्वस्ति यमाण पञ्च कुलेन वर्ष वर्ष प्रति- - - - या दातव्याः॥
किराडू। मारवाड़ के मालानी परगने में यह स्थान प्राचीन है। हिन्दुओं के समय में इस स्थान का नाम किराट कृपया और जैनियों के प्रसिद्ध मपति कुमार पाल ने इस स्थान में जैन धर्म में दीक्षित होने के पूर्व कईएक बहुत सुन्दर शिव मन्दिर बनवाया था। काल के चक्र से इस समय उन देवालयों की बहुत बुरी हालत है और सब लेख भी नष्ट हो गये हैं।
( 93 )
ॐ नमः सर्वज्ञाय ॥ नमोऽनंताय सूक्ष्माय ज्ञान गम्याय वेधसे । विश्वरूपाय शुद्धाय देव देवाय शंभवे ॥१॥ देवस्य तस्य चरितानि अति शंतोः स () स्वत् कपात
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(२५२) विधु ( भस्म ) विभूषणस्य । गर्वः स कोपि हृदि यस्य पदं करोति गौरी जितं च चिरवल्कल वर्ष दर्यात् ॥२॥ वशिष्ठ . . . . . . भूषिते उडूंद भूधरे। सुरभ्याः परमाराणां वंशो - . - नल कंडतः ॥३॥ तत्रानेक मही पाल - - - - - सिंधु धिराजो महाराज - - - रणे समन्मरु मंडले ॥१॥ निरर्गाल मिलवारि - • - - - प्रतापो बल द्रसलः ॥५॥ शंभवद् भरि अमोशाभ्यर्चनीयो भ - - -- सूः ॥६॥ खड्स रणस्कार रावणो ल्वण वैरिहं भवः ॥ - - - - ७॥ सिधु राज घरा धार घरणी घर धाम वान ॥ मा . - ८॥ जो भवत्त स्मात् सुर राजो हराया देव राजेश्वर- - - - - - - मपहाय मही मिमां। मन्ये कल्प द्रुमः प्रायाद दृश्यक - - • ॥१॥ - - दारणात् । श्री मदुर्लभ राजोषि राजेंद्रो रंजितो - - - ११॥ - - - धंधुक - तः। येन दुर्वार वीर्येण अषितं मरु मंडलं ॥ १२॥ धर्म करो वन-.--- कृष्ण राजो महा शब्द विभूषितः ॥१३॥ तत्पुत्रः सोछट्ट राजाख्यः च्य --- स्व ----कल्पद्रमो प्रवत् ॥ १४ ॥ तस्मा दुदय राजारूयो महाराज- - - मंडलीक पदाधिकः ॥ १५॥ प्राचोड़ गोड़ कर्णाट मालवोत्तर पश्चिमं । - - - शजं ॥ १६ ॥ प्राश्च सिंधु राज भूपालास्पित पुत्र क्रमात्पुनः । तस्मादुदय राजश्च पुत्रः सोमेश्वरः सुतः ॥१७॥ उत्कीर्ण भपि यो राज्य मधे भुज वीयतः । जयसिंह महिपालात् --- यवं - ॥१८॥ - - अतश्च नक गत वर्षे ११८६ १२०० विक्रम भूपतेः प्रसादा जयसिंहस्य सिद्धराजस्य भू भुजः ॥ १६ ॥ श्री सोमेश्वर राजेन सिंधु राजपुरोद्धवं । भूपो निर्व्याज शोर्येण राज्य मेतत्समुद्धतं ॥ २० ॥ पुनादश संख्येषु पंचाधिक शते १२०५ प्वलं । कुमार पाल भूपालात् सप्रतिष्ठ मिदं कृतं ॥२१॥ किराट कूप मारमोयं शिव कूप समन्वितं । निजेन क्षत्र धर्मेण पालयामास यश्चिरं॥२२॥
अष्टा दशाधिके चास्मिन शत द्वादशकेऽश्विने । प्रतिपदगुरु संयोगे सार्धयामे गते दिनात् ॥ २३ ॥ दंड सप्तदश शता न्यश्वानां नप जज्जकात् । मह पंच नखांश्चैवमयरादिभिरष्टभिः ॥ २४ ॥ तणु कोद नवसरो दुग्र्गो सोमेश्वरो ग्रहात् । उच्चांगवरहा साढ्यां चने चैवात्म सादसी ॥२५॥ बहुशः सेवकी कृत्य चौलन्य जगती पतेः। पुनः
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( २५३ ) संस्थापयामास तेषु देशेषु जज्जकं ॥ २६ ॥ प्रशस्ति मकरो देतां नरसिंहो नपाज्ञया। लेखको त्रय (णे ] देवः सूत्र धारोस्तु अयोधरः ॥ २७ ॥ विक्रम संवत् १२१८ अश्विन सुदि १ गुरो ॥ मंगलं महा श्राः ॥
सूंघा पहाड़ी। मारवाड़के जसवंतपुरा के पास उत्तरकी तर्फ पहाड़ीके ढलावमें सुंधा माता नामक चामुंडाके मदिरमें लगे हुए दो पत्थरों पर यह लेख खुदें हुए हैं।
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मओं ॥ श्वेतांभोजातपत्रं किमु गिरि दुहितुः स्वस्तटिन्या गवाक्षः किंवा सोख्यासन वा महिम मुख महाधिद्ध देवी गणस्य। त्रैलोक्यानंदहेतोः किमदिसमनघं इलाध्य नक्षत्र मुमचे शंजोआलस्थलेंदुः सुकृति कृतनुतिः पातु वो राज लक्ष्मी ॥१॥ ईशस्यांकार्यानरनपमानंद संदोह मला चंचढासोंचल दलमयी झूषण प्रौढ पुष्पा। सल्लावण्योदय सुफलिनी पार्वती प्रेम वल्ली लक्ष्मी पुष्णात्वनु दिन मति व्यक्त भक्त्या नतानां ॥२॥ विकट मुट माधत्तेजसा व्योम्मि दैत्यानिव भुवि मणिमण्या मेखलायाः कणेन । अनणरणित लीला हंसस्त्रासयंती फणि पति भुषनांतश्चंडिका वः श्रियेस्त ॥३॥ श्री मद्वत्समहर्षि हर्ष नयनो द्वस्तांव पूर प्रभा पूर्वबोधिर मौलि मुख्य शिखरालंकार तिग्मद्युतिः। पृथ्वी त्रातु मपास्त दैत्य तिमिरः श्री चाहमानः पुरा वीर: क्षीर समुद्र सोदर यशो राशि प्रकाशो भवत् ॥ १॥ रत्ना वल्यामिव नृपततो तत्क्रमे विश्रुसायां धर्मस्थान प्रकर करण प्राप्त पुण्योत्सवायां। श्री नलाधि पसिर भव लक्ष्मणो नाम राजा लक्ष्मीलीला सदन सदृशाकार शाकंभरीद्रः ॥५॥ आपाताला समर जलधिं मदरो यस्य खड्गो मुष्टिव्याजाद्धजग पतिना शृंखले नावपटुः। निर्मथ्योच्चैः सपदि कमला लीलयोद्धृत्य मत्तश्चक्रे नत्तं रणित कटकः केलि कंपच्छलेन
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( २५४) ॥६॥ तस्माद्धि माद्रि भवनाय यशो पहारी श्रीशोमितो जनि नृपो स्य तनूद्रवोध । गांभीर्यधैर्य सदनं बलि राज देवो यो मञ्जराज यल अंगमचीकरशं ॥ साम्राज्याशा क रेणु रिपु नपति गज स्तोम माक्रम्य जह यरखगो गंध हस्ती समर रस भरे विंध्य शैलाब माने । मुक्ता शक्तींटु कांतोज्जाल रुचिष सत्कोतिरेवातटेष प्रौढ़ाने दोपचारो वण पुलकतति: पुष्कराणां छलेन ॥ तस्पितव्य जतयाथ बांधवः श्री महादुर जनिष्ट भूपतिः। यत्कृपाण लतिकामुपेयुषां छायया विरहितं मुखं द्विषां ॥ ॥ जज्ञ कांतस्तदनु चभुवस्तत्तनुजो श्वपाल: कालः करे द्विपि सुचरिते पूर्ण चंद्रायमानः। यः संलग्नो न खलु तमसा नैव दोषाकरात्मा तेजो मक्तः क्वचिदपि न यः किंच मित्रोदयेष ॥१॥ केयूराय निविष्ट रत्न निकर प्रोद्यममार्ड बरं व्यक्तं संगर रंग मंडपतले यं वैरिलक्ष्मीः श्रिता। धीरेषु प्रसृतेषु तेषु रजसा नीतेषु दुर्लक्ष्यतां लब्धो पायवलापि निर्मल गुणेश्या प्रशस्या कृतिः ॥ ११॥ पुत्रस्तस्याहिल इति नपस्तन्मयूख छलेन स्रष्टा यस्य व्यषित यशसां तेजसा तोलनां न । गंगा तोले शशि तपनयो दंतश्चारु चेले मध्यस्थायि • ध्रुवमिष लसत् कंटके कोतुकेन ॥ १२॥ गुर्जराधिपति भीम भूभुज: सैन्य पूर मजय
द्रणेषु यः । शमवत् त्रिपुर संभवं बलं वाडवानल इशांबधे जलं ॥१३॥ सैन्या क्रांसा खिल वसुमती मंडलस्तस्पिसृत्यः श्रीमान् राजा प्रवदध जिताराति मल्लो पहिल्युः । भीम क्षोणी पति गज घटा येन अग्ना रणाग्र हृद्यार्था भोनिधि रघु कृते वहे पंक्तिः खलानां ॥ १४ ॥ अंमोजानि मुखान्यहो मग दृशां चंद्रो दयानां मुदो लक्ष्मीर्यत्र नरोत्तमानुसरण व्यापार पारंगमा। पानानि प्रसभं शुमानि शिखरि अणीव गुप्यद्गुरुस्तोमो यस्य नरेश्वरस्य तलनां सेनायु राशेर्दधौ ॥ १५ ॥ उव्वीरुद् विटपावलंब सुग्रही हयेषु दत्वा दृशं ध्यातास्यंत मनोहराकृति निज प्रासाद वातायनः। भूस्फोटानि वनांतरेषु विततान्या लोक्य हाहेति वा सस्मारा तपवारणानि शतशो यद्वीरि राज व्रज--॥ १६ ॥ दृष्टः केनं चतुजः स समरे शाकंभरी यो बलाज्जग्राहामजघान मालव पतेभोजस्व साढाह्वयं । दंडाधीशम पार सैन्य विनवं तीव्र तुरुष्कं च यः साक्षाद्विष्णुर साधनीय यससा शगारिता येन भूः ॥ १७ ॥ जज्ञे भूभृत्तदनु तनयस्तस्य बाल प्रसादो भीमक्ष्मा
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(२५) पुरचरण युगडी मर्द्धन ध्याजतो यः। कुर्वम्पीडा मति बलतया मोचयामास कारागाराद्ध भूमी पति मपि तथा कृष्णदेवाभिधानं ॥१८॥श्रीको जलश्रमं दधरहोसैन्यस्य से. वारसा यात प्रतिमे समुज्ज्वल पटा वासा मराल श्रियं । कंपं वायु परोन केतु निवहाः शस्वानुकारं च ते सवीतानि च कोकिलारव तुलां चि तु तापं द्विषः॥१९॥ श्रीमांस्तस्याजनि नर पति धियो जिंदुराजो यः संडेरेऽर्क इव तिमिर वैरि वद विभेद । यस्य ज्योति प्रकरममितो विद्विषः कोशिकाभा द्रष्टुं शक्ता न हि गिरि गुहा मध्य. मध्या श्रितास्तत् ॥२०॥ गच्छतीनां रिपु मृगदशां भ्रूषणानां प्रपाते वाष्पासायेनिति तुलां बिभ्रतीनामरण्ये । दूर्वा भ्रांति मरकत मणि भणयो यत्प्रयाणे तांबलीय भ्रममिव चिरं चक्रिरे पत्र रागाः ॥ २१ ॥ पृथ्वी पालयितु' पवित्र मतिमान् यः कर्षकाणां करं मंचन प्राप यशांसिकंद घपला न्यानंद हृद्याननः । पृथ्वी पाल इति ध्र वं क्षिति पति स्तस्यांग जन्माभवत्प्रत्येक्षोरु निधिः स गूर्जर पतेः कण्वस्य सैन्या पहः ॥ २२॥ यत्सेना किल कामधेनु सदृशी कीर्ति खवंती पयः स्वच्छंदं सचराचरेपि भुवने रात्र'. स्तणी कर्वती। धर्म वत्समिव स्वकीय मनघं वृद्धि नयंतीमुदा कस्यानंद करीबभूवनभुवोभीष्टं समातन्वती ॥ २३ ॥ श्री योजको भूपतिरस्य बंधु विवेक सौध प्रबल प्रतापः। श्वेतात पत्रण विराजमानः शक्त्याहिल्लाख्य परेपि रेमे ॥ २१ ॥ त्यक्त्वा सौधमदार केलि विपिनं क्रीडाचले दीर्घिकां पल्यं का प्रयणं करेणषु मुदां स्थानं समंतादपि । यस्यारि क्षितिपाठ घाल ललनाः शैले वने निरे स्थूल ग्रावशिरस्सु संस्मृति मगुः पूर्वोपभुक्त श्रियां ॥ २५ ॥ श्री आशा राज नामा समनि वसुधा नायक स्तस्य बंधुः साहाय्यं मा. बवानां मुवि यदसि कृतं वीक्ष्य सिद्धाधिराजः। तुष्टो धत्ते स्म कनक मय महो यस्य गुप्यद्गुरु स्थ तं हतुं नैव शक्तः कलुषित हृदयः शेष भूपाल वाग्मिः ॥ २६॥ उदय गिरि शिरः स्थं कि सहस्त्रांश बिंबं विसत विशद की मंनि किनु प्रतापः । उपरि सुभग ताया उद्गता मंजरी कि कनक कलश आमावस्य गुप्यद्गुरु स्थः ॥ २७ ॥ कनक रुचि शरोरः शैलसाराभिरामः फणि पति मयनीयस्यावतारः स विष्णोः । सलिल निधि सुखाया मंदिरे स्कंध देशे दधदवनि मुदारामग्रिमः पुण्य मूर्तिः ॥२८॥ सत्रागार
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( २५६ ) तड़ाग-कानन-रप्रासाद-वापी-प्रपा-पादोनि विनिर्ममे द्विज जनानंदी क्षमा मण्डले। धर्मस्थान शतानि यः किल बुध श्रेणीषु कल्पद्रमः कस्तस्यंदु तुषार शैल धवलं स्तोतुं यशः कोविदः ॥ २६ ॥ श्वेतान्येव यशांसि तुंगतुरंग स्तोमः सितः सुभ्रषां चं चन्मोक्तिकभूषणानि धवलान्यच्चः समग्राग्यपि। प्रेमालाप भवं स्मितं च विशदं शुभ्राणि बखोकसां वदानीति नपस्य यस्य एतना कैलास-लक्ष्मी श्रिता॥ ३०॥ प्रशस्ति रियं हदगच्छीय-श्री जयमंगला चार्य-कृतिः॥ भिषग्विजयपाल-पुत्र-नाम्ब सिंहन लिखिता। सूत्र जिसपाल-पुत्र-जिसरविणोत्कीर्णा ।
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ॐ॥ जटा मूले गंगा प्रबल लहरी पूरकहना समन्मोल छन्त्र प्रकर इव ननेष नपतां । प्रदातं श्री शंभुः सकल भुवनाधीश्वर तया तया वा देयाद्वः शुम मिह सुगंधाद्रि मुकुटः ॥३१॥ आशा राज क्षितिप तनयः श्री मदाल्हादनाह्वो जज्ञ भूभद्धवन विदित रचाहमानस्य वंशे । श्रीनले शिव भवन कृटुर्म सवस्व वेत्ता यत्सा हाय्यं प्रति पद महो गूर्जरेश सूचकांक्ष ॥ ३२॥ चंचकेतक चम्पक प्रविलसत्ताली तमाला गुरु स्फर्ज पचन्दन नालिकेर कदली द्राक्षान कम्र गिरी । सौराष्ट्र कुटिलोग्र कण्टक भिदात्यद्दाम कीतस्तदा यस्या भूभिमान भासुर तया सेनाथराणां रवः ॥ ३३ ॥ श्री मांस्तस्यांगज इह नृपः केल्हणो दक्षिणा शाधीशोददिलिम नपते मान हुसैन्य सिंधुः । निर्भिद्योच्चैः प्रबल कलितं य स्तुरुष्कं व्यधस श्री सोमेशास्पद मुकट वत्तोरणं कांचनस्य ॥३४॥ मातास्य प्रबल प्रताप निलयः श्री कीर्तिपालो अवद् भूनाथः प्रति पक्ष पार्थिव चमूदावायु वाहो पमः । यस्खयां बुनिधौ हतारि करिणां भरुचलीभ्यः क्षरन्मुक्तानां निकरो मराल ललितं धत्ते स्म धारा श्रयः ॥३५॥ यो दुर्दात किरात कूट नृपति भिस्वाशरैरासलं तस्मि न्कांसहदे तुरुष्क निकरंजिरवारण प्रांगणे। श्री जावालि पुरे स्थिति व्यरचयक्षद्वदल राज्येश्वर शिचता रत्न निमः समग्र विदुषां निःसीम सैन्याधिपः ॥ ३६॥ श्री
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( २५७ ) समर सिंह देवस्तत्तनयः क्षोणि मण्डलाधिपतिः। इन्द्र इव विवध हृदयानन्दी पुरुषोत्तमो हरिवत् ॥ ३७॥ प्राकारः कनका चले विरचितो येनेह पुण्यात्मना नामा यंत्र मनोज्ञ कोष्ठक ततिर्विद्याधरी शीर्षवान । किं शेषः फण व दमेटर सनर्वक्षस्थले वा भुवो हारः किं ममण अमादुइंगणः किं वेष मेज स्थिति ॥ ३८॥कमल धनमिवेदं वशीर्षा लि दंझाविखिल विपुल देश श्री समा कर्षणाय । लिखित विशद विदुः प्रोणिवन्मस बैरि क्षितिपति विफला जिस्तोम संख्या निमिच ॥ ३९ ॥ तोलयामास यः स्वर्णैरास्मानं सोमपर्वणि । आराम रम्यं समरपुरं यः कृतवानय ॥ १० ॥ श्री कीर्ति पाल ‘भूपति पुत्रो जावालि पुरवरे चक्रे । भी रूदल देवो शिव मंदिर पुगले पवित्र मतिः ॥११॥
भी समरसिंह देवस्य नंदनः प्रबल शौर्य रमणीयः । श्री उदयसिंह भूपतिर भूत्प्रभा भास्वदुपमामः ॥ १२ ॥ श्री नद्दूल-श्री जावालि पुर-माण्डव्यपुर-वाग्मटमेरु-सूराचंद्रराहद-खेड--रामसैन्य श्री माल-रत्नपुर-सत्यपुर-प्रभूति देशा नामय मधिपतिः ॥४३॥ शेषः स्तोतुमिव प्ररुढ रसमा मारः समंतादभूत् क्षीराब्धिः परिरब्ध मुद्धुरभुजः कल्लोल माला मिषात् । द्रष्टुं चानिमिषाक्षि पंकज बनो वास्तोः पतिर्यस्य तां विश्व यो हृदयस्य हारतिकां कार्ति सितांशपला । १४॥श्रा प्रहलादनदेवी राज्ञो यस्यां गज प्रसूते स्म। श्री चाचिग देवाह तथैव चामुंडराजाख्यं ॥ १५ ॥ धीरो दात्तस्तुरूष्काधिपमददलतो गूर्जरेंद्रेर जेयः सेवायात क्षितीशांचित करण पदः सिंध राजांतको यः। प्रोढामन्याय हेतु भरत मुख महा ग्रन्थ तवा वेता श्री मज्जावालि संज्ञपुरि शिव सदन कर्ता कृतज्ञः॥१६॥ सस्पष्टोदय शैल भानुरनधप्रोट्टाम धर्म क्रिया निष्णातः कमनीय रूप निलयो दानेश्वरः सु प्रभुः। सौम्यः शूर शिरोमणिश्च सदयः साक्षादिवेंद्रः स्वयं भी मांश्चिाधिग देव एव जयति प्रत्यक्ष कल्प द्रुमः ॥ १७ ॥
मंगेन भयंकरण विजित प्रत्यर्थि भूमी पतिः श्री मांश्चाधिग देव एव तनुते निर्विघ्न वृशि भुवं। दीजिह्वप विदधातु पनग पतिर्वक्र वराहो मुखं कूमो नक्रसतिं करींद्र निवहः संघात सीस्थ्य परं॥१८॥ मेरोः स्पर्य वचम रचनं वाक्पते यस्य तुल्यं पृथ्वी भारोद्धरणमसमं पनगेंद्रानुषंगि। साक्षाद्रामः किमयमथवा पूर्ण पीयूष रश्मिश्चिंता
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रक्त' प्रणयिनि जने देव एवैष तस्मात् ॥ ४६ ॥ स्फूर्जवीरम गूर्जरेश दलनो यः शत्रु शल्य द्विषंश्वंचरपातुक पातनैकरसिकः संगस्य रंगा पहः । उन्माद्यन्नहरा चल स्य कुलिशा कार त्रिलोकी तल ग्राम्यत्कीर्त्तिर शेष वैरि दहनोदय प्रतापोल्वणः ॥ ५० ॥ श्री माले द्विज जानुवटिक कर त्यागी तथा त्रिग्रहादित्य स्यापि च राम सैन्य नगरे नित्याचंमार्थ प्रदः । प्रोत्तुंगेप्य पराजितेश भवने सौवर्ण-कुंभध्वजारोपी रूपयज मेखला वितरण स्तस्यैव देवस्य यः ॥ ५१ ॥ चक्रे श्री अप राजितेश भवने शाला तथास्यां रथः कैलास प्रतिमस्त्रिलोक कमलालंकार रत्नोश्वयः । येन क्षोणि पुरंदरेण कृतिना मानंद संवित्तये भाग्यं वा निज मेव पर्वत तुलां नीतं समंतादपि ॥ ५२ ॥ कर्णौ दान रुचिश्चि सुकृती श्लाघ्यो दधीचि स्तथा हृद्यः कल्पतरुः प्रकाम मधुराकारश्च चिन्तामणिः । श्री मच्चाचिगदेव दान मुदिता स्तन्नाम गृहूणंति यत्तत्कीरपि नूतनर मनवद्भूमीभुजां सद्मसु ॥ ५३ ॥ स्फूर्ज निर्झर झांकृतेन सुभगं तस्केलकीनां वनं मिश्री भूतमनेक कम्र कदली वृ देन पत्तन्न यः । आम्राणां विपिन व देव ललना वक्षोरुह स्पर्द्धये बोद्यरप्रोढ़ फलावली कवचितं जम्बू वने नाचितं ॥ ५४ ॥ मरो मेरो स्तुल्यस्त्रिदश ललना केलि सदनं सुगन्धादिर्नानातरु निकर सन्नाह सुभगः । न. पेणेंद्र ेणेव प्रसृमर तुरङ्गोस्वय खुर प्रकं प्रार्थी पीठ रतिरस वशात्तेन ददृशे ॥ ५५ ॥ तन्मूर्दिन त्रिदशेंद्र पूजित प्रदां भोज द्वयां देवतां चामुंडा मघटेश्व रीति विदिताम स्यचितां पूर्वजः । नत्वा भ्यर्च्य नरेश्वरोय विदधेस्या मंदिरे मंडपं क्रोडरिकंनर frat कल वो न्माद्यन्मयूरी कुलं ॥ ५६ ॥ सम्वत् १३१८ त्रयोदश शर्त कोनविंशती मासि माघवे । चक्रेऽक्षय तृतीयायां प्रतिष्ठा मंडपे द्विजैः ॥ ५७ ॥ संपल्ला घटयतु शुभं कुंभि वक्त्री गणेशः सिद्धि देयादभि मत तमां चंडिका चारु मूर्त्तिः । कल्याणाय प्रभवतु सतां धेनु वर्गः पृथिव्यां राजा राज्यं भजतु विपुलं स्वस्ति देव द्विजेभ्यः ॥ ५८ ॥ स श्रीकरी सप्तक बादि देवा चार्य स्य शिष्योऽजनि रामचन्द्रः । सूरिर्विनेयो जय मङ्गलो ser प्रशस्तिमेतां सुकृती व्यधत्त ॥ ५८ ॥ भिषग्वर - विजय पाल पुत्रेण नाम्बसीहेन लिखिता ॥ सूत्रधार - जिसपाल - पुत्रेण - जिस रावणोत्कीर्णा ॥
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घटियाला। वह स्थान मारवाड़ के राजधानी जोधपुर के पश्चिम उत्तर की ओरमें अवस्थित है और इसी गांव के पास यह शिला लेख मिला था इसकी भाषा प्राकृत है और मारवाड़ के सब लेखों से प्राचीन है। ___ यह लेख जोधपुर के प्रसिद्ध ऐतिहासिक मुंगी देवीप्रसादजी ने अपने मारवाड़ के प्राचीन लेख नामक पुस्तक में संस्कृत अनुवाद के साथ उपवाया था वही यहां पर प्रकाशित किया जाता है।
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घटियाला। ओं सग्गापगमग्गं पढ़म सयलाण कारणं देवं । णीसेस दुरिम दलणं परम गुरु णमह जिणणाहं ॥१॥ रहुतिलो परिहारो आसी सिरिलक्खणोतिरामस्स । तेण परि हार वसो समुषई एत्य सम्पत्तो ॥२॥ विपो सिरि हरिअन्दो भज्जा आसीति खत्तिा भट्टा । अस्स सुओ उप्पणो वीरो सिरि रज्जिलो एल्थ ॥३॥ अस्सविणहड़ णांमोजा मोसिरिणहड़ोतिए अस्स। अस्सवि तणओ ताओ तस्सवि जसवटुणो जाओ॥१॥ अस्सवि चन्दु णांमा उप्पणो सिल्लओ विए मस्स । झोडोति तस्स तणओ अस्स वि सिरि भिल्लु ओ जाई॥५॥ सिरि भिल्लुअल्स तणमो कक्को गुरु गुणेहि गारविमो। अस्सवि कक्कअ णामो दुल्लह देवीए उप्पणो ॥६॥ईसिविआसंहसिम महुरं भणि पलोई सोम्मं । णमयं जस्सण दीणां रासोथे ओधिरामेत्ती ॥ ७॥णोजम्पि ण हसियंण कर्य ण पलोइ जसरिअ। णधि परिदम मिअ जेण जणे कज परिहीणं ॥८॥ सुत्थादुत्थादि पया महमात हउत्तिमा पिसोक्खेण । जणणिन्ध जेण धरिआ णिणिय मण्डले सम्वा ॥६॥ उअगेहरा अमच्छर लोहे हिमिणाय वज्जि अजेण । पक ओदो एह विसेसो ववहारे कावमण यपि ॥ १०॥ दिअवर दिएमाणुउर्ज जेष जणं रंज्जिजण सवलम्पि। णिम्मछरेण जणिमट्ठाण विदण्ड पिट्टणं । ११.
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. (२.) धमरिद्ध समिट्ठाणं विपउराणं णिकरस्स अमहि। लक्ख सयञ्च सरिसं तर्णच तह जेण दिट्ठाई॥ १२॥ पवजोव्वणकअपसाहिएण सिंगार गुणग कक्केण । जणवयाणज्ज मज्जं जेण णेह संचरिम ॥ १३ ॥ वालाण गुरु तरु णाण तह सही गय वयाण तण मोग्य । इय सुचरिऐडि पिच्चं जेण जणो पालिओ सध्यो । १४ ॥ जेण णमन्तेणसया सम्माणं गुण पई कणं सेण । जम्पन्तेण य ललिम दिण्णं पणईण धांणवहं ॥१५॥मह मारवल्ड तमणी परिअंशा अज्जगञ्जरित्तानु । जणिोजेण जणाणं सच्चरिअ गणेडि मणराओ। १५॥गहिऊण गोहणाई गिरिम्मि जाला उलाओ पल्लिओ। जणिआओ जेण विस मेवडणाणय मण्डले पयर्ड ॥१७॥णीलुप्पल दल गन्धारम्मा मायं दमह अविं देहि । वरइच्छुपण्ण छण्णा एसा भूमी कया जेण ॥१८॥ वरिस सएसु अणवसु अट्ठारह समग्गलेसु चेम्मि । णक्खन विहु हरये वहवारे धवल वीआये॥ १९ ॥ सिरि कक्कुएण हट्ट महाजणं विप्यपय इवणि बहुलं । रोहिन्स कुअ गामे णिवेसिकिशि विद्धिए ॥२०॥ मडोअरममे एक्को वीओ रोहिन्स अगामंम्मि । जेण जसस्स व पुजांए एस्थामा स. मुत्थविआ ॥ २१ ॥ तेण सिरि ककएणं जिणस्स देवस्स दुरिम णिलणं । कारविअ अचल मिमं भवणं असीए सुहजणयं ॥ २२ ॥ अप्पिअमेए भवणं सिद्धस्स धणेसरस्स गच्छम्मि । तह सन्त जम्ब अम्बय वणि भाउड पमुह गोट्ठीए ॥ २३ ॥ श्लाध्ये जन्म कले कलंक रहितं रूपं नवं योवनं । सोजाग्यं गुण भावन शुचि मनः क्षांति यशो नम्रता ॥ २४ ॥
संस्कृत अनुवाद। स्व र्गापवर्ग मार्ग प्रयमं सकलानां कारणं देवं । निःशेष दुरित दलनं परम गुरु नमत जिन मायम् ॥१॥ रघु तिलकः प्रतिहार आसीत् श्री लक्ष्मण इति रामस्य । तेन प्रतिहार वंशः समनतिमत्र संप्राप्तः ॥२॥ विप्रः श्री हरिचंद्रः भार्या आसीत इति क्षत्रिया भद्रा। भस्य सुत उत्पनः वीरः श्री रज्जिलोत्र ॥३॥ अस्यापि नर अट नामा जातः श्री नाग पटइति एतस्प। अस्यापि तनयस्तासः तस्यापि यशो वर्द्धनो जातः॥४॥ अस्यापि
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( २६१ )
चंदु नामा उत्पन्नः खिल्लुकोपि एतस्य । क्रोट इति तस्य तनयः अस्यापि श्री भिल्लुको जातः ॥ ५ ॥ श्री भिल्लुकस्य तनयः श्री कक्कः गुरु गुणैः गर्वितः । अस्यापि कक्कुक नामा दुर्लभ देव्यामुत्पन्नः ॥ ६ ॥ ईषद्विकाशं हसितं मधुर भणितं प्रलोकितं सौम्यं । नमन यस्य न दीनं राखः स्थेयः स्थिरा मैत्री ॥ ७ ॥ नो जल्पितं न हसितं न कृतं न प्रलोकितं म संमृतम् । न स्थितं न परिभ्रातं येन जने कार्य परिहीनं ॥ ८ ॥ सुस्था दुःस्या द्विपदा अधमा तथा उत्तमा अपि सौख्येन । जनन्येव येन घृता नित्यं निज मण्डले सर्व ॥ ९ ॥ उपरोध राग मत्सर लोमैरपि न्याय वर्जितं येन न कृतो द्वयोर्विशेषः व्यवहारे कदापि मनागपि ॥ १० ॥ द्विजवर दत्तानुज्ञं येन जनं रक्तवा सकलर्माप । निर्मत्सरेण जनितं दुष्टानामपि दण्डनिष्टपनम् ॥ ११ ॥ धन ऋव समृद्धानामपि पौराणां निज करस्याभ्यर्थितम । लक्षच सदृशत्वेन तथा येन दृष्टानि ॥ १२ ॥ नव योवन रूप प्रसाधितेन शृङ्गार गुणज्ञ कक्कक्रेण जनवचनीयमलज्जं येन जने नेह संचरितम् ॥ १३ ॥ बालामां गुरुस्तरुणानां तथा सखा गत वयसां तनय इव । प्रिय सुचरितैर्नित्यं येन जनः पालितः सर्वः ॥ १४ ॥ येन नमता सदा सम्मानं गुणस्तुतिं कुर्वना। जल्पता च ललितं दत्तं प्रणयिभ्यो घननिवहः ॥ १५ ॥ मरुमाडवल्लख मणी परि अका अज्जगुर्जरेषु । जनितो येन जनानां सच्चरित गुणैरनुरागः ॥ १६ ॥ गृहीत्वा गोधनानि गिरौ जाला कुलाः पल्लयः । जनिता येन विषमें बटनाण कमण्डले प्रकटम ॥ १७ ॥ नीलोत्पल दन्या रम्यमाकन्द मधुप वृन्दैः । वेरक्षुपर्णछत्रा एषा भूमिः कृतायेन ॥ १८ ॥ वर्ष शतेषु च नवसु अष्टादश सम ग्रलेषु चैत्रे नक्षत्रे विधु भस्थे बुधवारे धवलि द्वितीयायाम् ॥ १९ ॥ श्री कक्ककेन हह महाजन विप्र प्रकृति यणिज बहुलम् । रोहिन्स कूप ग्रामे निवेशितं कीर्त्ति वृद्धे ॥ २० ॥ मण्डोवरे एको द्विनोयो रोहिन्स कूप ग्रामे । येन यशस इव पुजावेतौ स्तंभो समुतथ्धी | २१ ॥ तेन श्री कक्कुकेन जिनस्य देवस्य दुरित निर्दलनम् | कारितमचटमिदं भवनं भक्तया शुभ जनकम् ॥ २२ ॥ यपितमेतद्धधनं सिद्धस्य धनेश्वरस्य गच्छे। सह शांत जम्बु ias वनि नाटक प्रमुख गोष्टये ॥ २३ ॥ श्लाध्य जन्म कुले कलंक रहितं रूपं नवं योवनं । सोभाग्यं 'गुण भावगं शुचिमनः क्षान्तिर्यशो नम्रता ॥ २४ ॥
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( २१२)
पिंडवाडा। सिरोही राज्यका यह स्थान भी प्राचीन है। यहां रेलवे स्टेशन है और सिरोही जाने वाले लोग यहां उतर कर जाते हैं।
(946)
औं । संवत १९०३ वर्षे माह वदि शुक्र श्री सिरोही नगरे रायि दूर्जण सालजी श्री विजय राज्य प्राग वंशे साह गोयंद भार्या धनी पुत्र केल्हा मार्या चापलदे गुसदे पुत्र जीवा जिणदास केल्ला पीडरवाड़ा ग्रामे श्री माहावीर प्रासादे देहरी कारापितं श्री सपा गच्छे श्री कमल कलस सूरि तत्पर श्री विजय दान सूरि। साः जीवा श्रेयोर्थ सा. जीवा दिने १० अणसण सीधा संवत् १६०२ का० फागुण वदि ८ दिने अणसण सीधा शुभं भवतु कल्या०॥
( 947 ) ओ। संवत् १६.३ वर्षे माह वदि ८ शुक्र श्री सीरोही नगरे। रायि श्री दुर्जण साल जी विजय राज्य प्राग वंशे कोठारी छाछो भार्या हासिलदे पुत्र कोठारी यो पाल भार्या घेतलदे तस्य पुत्र कोठारी तेजपाल राज पाल रतन सी राम दास - -.-- वाई लाछल दे श्रेयो) पीडरबाडा ग्रामे श्री माहावीर प्रासादे देहरी कारापितं । श्री तपा गच्छे श्री हेम विमल सरि सत्पष्टुं श्री आणंद विमल सूरि तत्पी श्री विजय दान सूरि। शुभ प्रवतु कल्याणमस्तु श्रा० वा. सालदे अं।
(
948 )
सं० १६०३ वर्षे माह वदि ८ शुक्र श्री सिरीही नगरे यि श्री दुर्जण साल जी विजय राज्ये प्राग वंशे कोठारी छाछा भार्या हासल दे पुत्र कोठारी श्री पाल भार्या पतलदे।
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(२६३)
बाछलदे ससारदे पत्र कोठारी तेज पाल राजपाल रतन सी रामदास महंस कर्णपीसरवा ग्रामे श्री माहावीर प्रासादे देहरी करापित कोठारी तेजपाल अयोथै श्री तपा गच्छे श्री हेम विमल सूरि सरपई श्री आंणद विमल सूरि तत्प भी विजय दान सू. शुभं भवतु कल्याणमस्तु ।
मो। संवत् १५.३ वर्षे माह वदिशुक्रे श्री सिरोही नगरे रायि बी दूर्जण सालजी विजय राज्ये प्राग वंशे सा थाथा भार्या गांगादे पुत्र सा - मा भार्या कसमीरदे पुत्री रसी पीडर वाडा ग्रामे श्री माहावीर प्रासादे देहरी फरापितं बाई गांगादे अयोर्थ श्री सपा गच्छ श्री कमल फलस सूरि सुमं भवतु कल्याणमस्तु ।
( 860 ) ओं । संवत् १६१२ वर्षे भागुण यदि ११ शुळे श्री सिरोही नगरे माहाराज श्री उदा सिंघ जी विजय राज्ये प्राग वंशे कोठारी छाछा मार्या हंसलदे पुत्र कोठारी श्री पाल भार्या लाछलदे पुत्र रामदास करण सी सहस करण- - -पीडर वाड़ा ग्रामे भी माहावीर प्रासादे देहरी करापितं श्री तपा गच्छे श्री हेम विमल सूरि तत्प माणद विमल सुरि-.--
( 51 ) मोनमः श्री वर्द्धमानाय : प्राग्वाट वंशे ध्यवहारि सागा सूनुः प्रसनोज्वल कांत कारिः। श्री पुण्य पुणा जनि पूर्ण सिंह स्वस्य प्रिया जाल्हण देवि नाम्नी ॥१॥ मदर भट्टारत रोरु -- -- -- कलापः किल कुर पालः । जाया धर्म मोदिकन्दो प्रमुक्ता तस्या अवकामल देवि नाम्नी । २ ॥ सदयो २ वामामृतैः सुहिती लोक हितो सतां मतिः ।
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( १६४ ) समय विमयो चिती चणी विजयते तनयो तयोरिमो ॥ ३ ॥ तत्राद्यः सज्जन श्रेणी रख रवासियो धर्म । धनाणख्य जन मूढ़ - राज मान्यो घियां निधिः ॥ ४ ॥ द्वितीय सुद्वितीतेंदु कांति कांच गुणोच्चयः । धरणः शरणं श्रीणां प्रवीणः पुण्य कर्मणि ॥ ५ ॥ रखा देवी arre देव्यो जात्यो तयोरनुक्रमतः । समभूता मति निर्मल गोलाकार चारिण्यो ॥ ६ ॥ तस्य सुता ५- तेजा पासल वास जाल्हणेनारूयाः | शांत स्वभाव कलिसा गुण बरु मलया: कला निलया: ॥ ७ ॥ इतश्च । श्री प्राग्वाटाभिध जाति शुंग श्रृंगार शेखरः । पुरा भून्महुणा नामा व्यवहारी परस्थितिः ॥ ८ ॥ तस्य जोला भिधः सूनु स्तपुत्र भावोऽशठः ॥ ९ ॥ तदीय पुत्रः सुगुणैः पवित्रः स्वाजन्य विश्वः सुनया सूषितः । श्रीवाभिधानः सुकृति प्रधानः सत्कार्य घुर्यो व्यवहार वर्यः ॥ १० ॥ नयणा देवी नाम सू देवी विख्यात संज्ञिक तस्या दयिते ढययो पेते शीलाद्युद्यम गुण कलिते ॥ ११ ॥ नयणा देवी तनुजो मनुजो चित चारु लक्ष्मणो पेतः । अमरो भ्रमरो गुरु जन जन जनन्यादि पद कमले ॥ १२ ॥ भीम कांत गुण ख्याते प्रजा पालन लालसे। हाजाभिधे घरा धीशे प्राज्य राज्यं - रीक ॥ १३ ॥ आस्यामुभाभ्यां धनि पूर पाल लोधाभिघाभ्यां सदुपासकाभ्यां । ग्रामेऽग्रिमे पींडर वाढकारूये प्रसाद - विरुद धारि सारः ॥ १४ ॥ विक्रमाद्वाण कांधि भूमिते वत्सरे तथा । फाल्गुनारूये शुभे मासे शुक्लायां प्रतिपत्तिथौ ॥ १५ ॥ कल्याण वृद्धघ भ्युदयेक दायकः, श्री वर्द्धमान श्रमो जिनेश्वरः । श्री मत्तपः संयम धार सूरिभिः प्रतिष्ठितः स्पष्ट महा महादीह ॥ १६ ॥ आरवींदु समयादनया श्री वर्द्धमान जिन नायक मूर्या । राजमानमभिनंदतु विश्वानंद दायक मिदंर चैत्यं ॥ १७ ॥ श्लो० ॥
1
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(952)
आजक
राज श्री समर सिंह जी उषावता देहनारा देहधी आरोहतो - कमनड़ काथोछइ । वान देश माहि घोलसह सिनइ गधड़ ड गाए छह सं १७२३ वर्षे मगसिर सुदि -- ॥
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( २९५)
वीरवाडा (सिरोही) महावीर स्वामी का मंदिर।
(
53 )
सं० १९१० वर्षे महणा मा० कपूर दे. पु० जगमालेन मा० सुतलदे पु०कड्या देल्हा सम वीरवाडा ग्राम श्री महावीर चैत्योहारः कारितः कछोलीवाल गच्छे श्री मरचंद्र सूरि प? श्री रत्रम सूरीणामुपदेशेन प्रतिष्टितः । मंगलं ॥ प्राग्वाट ज्ञातीयः ।
बसंत गढ़ (सिरोही) (किले के अन्दर जैन मंदिर के मूर्ति पर। ( असन के दोनो तरफ पीठ पर)
( 934 ) सं० १५०७ वर्षे मात्र सुदि ११ वुधे राणा श्री कुंम कर्ण राज्ये वसंत पुर चैत्ये सदद्वार कारको प्राग्वाट व्य. मगड़ा मा० मेघादे पुत्र व्य० संडनेन भा. माणिक दे पुत्र कान्हा पौत्र जोणादि युतेन प्राग्वाद व्य. धणसी मा. लीवी पुत्र व्य० भादान मा० आल्ह पत्र जावडेन भोजादि युतेन मूल नायक. श्री शांतिनाथ विवं कारितं प्रतिष्टिन सपा श्री सोम सुन्दर सूरि तत्पहालंकरणं श्री मुनि सुन्दर सूरि श्री जय चन्द्र सूरि पह प्रतिष्ठित गरछाधिराज श्री रत्न शेषर सूरि गुरुमिः ।
पालडी (सिरोही)
( 935 ) सं० १२१८ बर्ष माघ सुदि १० गुरौ अद्येह शो नदूले महाराजाधिराज श्री केल्हण देव राज्ये तत्पुत्र राज श्री जयत सीह देवो विजयी ज.. तत्पादपद्मोपजीविन महा
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( २६६ )
श्रीरमय वाल्हण प्रमृति पंच कुलेन महं सुम देव सुत राजदेवेन देव श्री महावीर प्रदत द्र० १ पाहाडी मध्यात् । बहुभिर्वसुधा मुक्ता राजभि सागरादिभि यस्य यस्य यदा दत्तं तस्य तस्य तदा फलं ॥
कालाजर ( नवाना के निकट )
(956)
सं० १३०० वरषे जेठ सुदि १० सोमे अर्थ है चंद्रावत्यां महाराजाधिराज श्री आरहण सिंह देव कल्याण विजय राज्ये सत्रियुक्त मुद्रायां महं श्री घेता प्रभूति पंच कुलं शासन मभि लिख्यते यथा मह श्री पेताकेन - नान कलागर ग्रामे श्री पार्श्व नाथ देवस्य लो- रहिता - एवं ॥ आचंद्रार्क- यस्य यस्य यदा भूमी तय तस्य तदा फलं ॥ खाखि राउल० व्रा अठिणव बाद उब- ब्रजव सोहण -
वणादे
सणा
कल्हा ।
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कामद्रा (सिरोही)
( 957 )
औं। श्री भिल्लमा निर्यातः प्राग्वाटः वणिजांवरः श्री पतिरिव लक्ष्मी युग्गो ( च्छों ) राज पूजितः ॥ आकरो गुण रत्नार्ना - बंधु पद्म दिवाकरः उजुजकस्तस्य पुत्र स्यात् नम्मराम्मै ततो परौ । जज्जु सुत गुणाद्य बामनेन भसाङ्ख्यम् । दृष्ट्वा चक्रे गृह जैम मुक्त विश्व मनोहरम् ॥ सम्बत १०९१ - सपने -
उथमा (सिरोही)
( 959 )
संवत् १२५१ आषाढ़ वदि ५ गुरी श्री नाणकीय गच्छे उथप सदधिष्ठाने । श्रीपार्श्वमाघ चेत्ये ॥ घनेश्वर पुत्रेण देव घरेण धीमता । सयुक्त ेन यशोभद्र आरहा पावहा
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( २६७ )
सहोदरैः । यसो भटस्य पुत्र ेण । सार्द्धं यरा घरेण मा पुत्र पौत्रादि युक्तेन धम्मं हेतु मह ना | भगनी घारमत्याख्या । भूतश्चैत्र यशो भटः । कारितं श्रेयसे ताभ्यां । रम्येदस्तुंग
मंडप ॥ छ ॥
वीणा (सिरोही)
( 953 )
संवत् १३५९ वर्षे वेशास्त्र शुदि १० शनि दिने न ल देशे वाघ सीप ग्रामे महाराजा श्री सामंतसिंह देव कल्याण विजय राज्ये एवं काजे वर्शमाने खोटं• बामट पु० रजरसोलं• गागदेव पु० आंगद मंडलिक सोल० सी माल पु० कुताधारा सो० माला पु० मोहण त्रिभुवन पट्टा सोहरपाल सो० धूमण पर्ट पायत् वणिग् सीहा सर्व सोलंकी समुदायेन वाघसीण ग्रामीय अर हट अरहट प्रति गोधूम से० 8 ढींगड़ा प्रति गोधूम सेई २ तथा धूलिया ग्रामे सो० नयण सीह पु० जयत माल सो. मंडलिक अरहट प्रति गोधूम सेई ४ ढीवड़ा प्रति गोधूम सेई २ सेतिका २ श्री शांतिनाथ देवस्य यात्रा महोनिमित्त दत्ता ॥ एतत् आदानं सोलंकी समुदायः दातव्यं पालनीयं च । आचंद्रार्कं ॥ यस्य यस्य यदा भूमीतस्य तस्य तदा फलं ॥ मंगलं भवतु ॥
लाज-नीतोड़ा (सिरोही)
( 560 )
संवत् १२ वर्षे 88 माह सु० ६ ० जेतू आसल प्रति पतैमधिक कुअर सीह पतिना ।
पाऊ हनु ।
मन्दिर घर लषम सिंघेन करावी ।
( 961 )
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( २६८) नोदिया (सिरोही)
( 962 ) संवत् ११३० वैसाष सुदि १३ नंदियक चैत्य साले वापी निर्मापिता सिव गणेः ।
(983 )
ॐ॥ सतिणि सील पंता । सद्धाव भक्ति संयुता ॥ जिन गृहे सैल स्तंमा द्वी। मंडप मूले पापिताः ॥ १ ॥
श्री महावीर स्वामि जी के मादर के स्तंभ पर ।
( 36 ) ओ ॥ संवत् १२०१ भादवा सुदि १० सोम दिने निवा मार्या वरा पुत्र मोतिणि या स्तंभ का०२
( 965 ) श्री विजयते ॥ संवत् १२९८ वर्षे पोस सुदि ३ राठउड पून सीहसुस रा० कमण श्रेयो) पुत्र भीमेण स्तंभो कारितः । श्री---- सूरि श्री--।
कोटरा (सिरोही)
( 969 ) ॥पूर्व डीडिला ग्राम मल नायकः श्री महावीरः संवत् १२०८ वर्ष पिप्पल गच्छीय श्री विजय सिंह सूरिभिः प्रतिष्ठिसः पश्चात वीर पल्या प्रा. साह सहदेव कारित प्रसादे पिप्पालचार्य श्री वीर मन सूरिभिः स्थापितः। संवत् १४६५ वर्षे ।
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( २३९)
वरमांण (सिरोही)
( 967 )
सं० १३५१ वर्ष माघ वदि १ सोमे प्राग्वाट ज्ञातीय श्रे० साजण मा. राल्ह प. पून सीह मा० २ पद्मल जालू पुत्र पदमेन भा० मोहिणि पुत्र विजय सोह सहितेन जिन युगल युग्मं कारितं ॥ छ।
( 968 )
ओं० संवत १११६ वर्षे वैशाख वदि ११ बुधे ब्रह्माणीय गप महारक श्री मदन प्रस सूरि पहुं श्री नादिश्वर सूरि पट्टे श्री विजय सेन सूरि प? श्री रत्नाकर सूरि पट्टे श्री हेम तिलक सूरिभिः पूर्वं गुरु अयोर्थ रंग मंडपः कारापितः ॥
लोटाना (सिरोही)
( 989 )
संवत १३०८ वर्षे उदे सोह सुत पदम सीह ।
माकरोरा [ सिरोही
( 370 )
भी सुविधि जिन प्रासादात माकोड़ा मध्येः । संवत् १७८० घरपे कमल कलसा गच्छे महारिक श्री मत् रत्नसूरि प० कमल विजय गणि धेठाणा ७ संघाति चौमासु रह्या । मंहुता
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12
(890)
मोटा सा० घना मु० दसरथ जीवा सा० अमरा सा० कोठारी करमसी सा० केसर सा० जगनाथसा• लषमा सा० राजा लाघा संषा तेजाः जीवाः पीथाः जगा अमरा रण छोड़ देवा देवा भगवान रामजी राज जोगा कल्याणः सुजाणः जोगाः रामजी आसा बाई चांपी बाई जगी समस्त श्राविक श्रावि-काइ सेवा भगत भली रीति कीधी संघस्य कल्याणाय भवतु ॥
धवली [ सिरोही ]
( 971 )
॥ सं० । १९६१ वैशाख शुक्ल ५ बुध वासरे श्री महावीर प्रसाद जीर्णोद्धार श्री संघेन प्राग्वाट ज्ञातीय सा० । खुबचंद मोती सा । लुंबा उमा सा । तलका वाला प्रमुख कारापितम् तस्यो परी ध्वज दंड गच्छ नायक श्री कमल कलसा गच्छेश महा० । श्री विजय महेंद्र सूरिस्वरभिः प्रतिष्ठितम् गं० । पं० डुंगर विजय वां० । नघु प्रमुख, इति ज्ञेयम् । शुभं
सीवेरा [ सिरोही ]
( 972 )
संवत् १३६५ वर्षे पंडित श्री माहा शिष्य जय कुशल जस कुसल कार्तिक चौमासु कीघु ठाणा: २ सीवेरा ग्रामे ।
जरिवल पार्श्वनाथ [ सिरोही ]
(973)
संवत् १४८३ वर्षे प्रथम वैशाख सुदि १३ गुरी श्री अंचल गच्छे श्री मेरु तुङ्ग सूरोणां पदोहरण श्री जय कीर्त्ति सूरीश्वर सुगुरुपदेशेन पत्तन वास्तव्य ओसवाल ज्ञातीय मीठ
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( २०१ )
डोया सा० संग्राम सुन सा० सलषण सुत सा० तेजा मार्या तेजल दे तयोः पुत्रा सा. दीडा सा० बीमा सा० भूरा सा० काला सा० गांगा सा• डीडा सुत सा० नाग राज सा० काला सुत सा० पासा सा० जीव राज सा० जिणदास सा० तेजा द्वितीय भ्राता सा० नर सिंह भार्या कउनिग दे तयोः पुत्री सा. पास दत्त सा० देव दत्त श्री जीराउला पाश्र्श्वनाथ to चे देहरी ३ का पिता श्री देव गुरु प्रसादात् प्रवर्द्ध मान भद्रं मांगलिकं भूयात् ॥
( 974 )
ओं ॥ सं० १४८३ वर्षे भाद्रवा वदि ७ गुरु कृष्ण पक्ष श्री सपा गच्छ नायक श्री श्री देव सुंदर सूरि पदे श्री सोम सुंदर सूरि श्री मुनि सुंदर सूरि श्री जय चंद्र सूरि श्रो भुवन सुंदर सूरि उपदेशेन श्री कल वर्ग्रा नगरे कोठारी बाहउ सामत से नाने को नरपति AT. देमाई पुत्र सं० उकदे पासदे पूनसी मना श्री उसबाल ज्ञातीय कदारीया गोत्र श्री जीराउला भुवने देव कुलिका कारापिता ॥ शुभं भवतु ॥ श्री पार्श्वनाथ प्रसादात् ॥ कटारिया गोत्र वरं महीयं नासु पिता मे जननी माई | श्री सोम सुंदर गुरुगुरव श्रदेयाः श्री छालज मंडन मात्र शालं ॥ १u
( 975 )
ओ ॥ सं० १४८३ वर्षे भाद्र वदि ७ गुरु दिने कृष्ण पक्षे श्री सपा गच्छ नायक श्री देव सुंदर सूरि पट्ट े श्री सोम सुंदर सूरि श्री मुनि सुदर सूरि श्री जयचंद्र मूरि श्री भुवन सुंदर सुरि श्री उपदेशेन श्री कलवग्रां नगरे श्री उसवाल ज्ञातीय सा० घणसी संताने सा० जयता भा० वा० तिलक सुत सं० समरसी सं० मोषसी श्री जीराउला भुवने देवकुलिका कारापिता । शुभं भवतु । श्रीपार्श्वनाथ प्रसादात् ।
( 976 )
यों ॥ सं० १४८३ वर्षे प्राद्रवा वदि ७ गुरु दिने कृष्ण पक्षे श्री सपा गच्छ नायक श्री देव सुंदर सूरि पट्टे श्री सोम सुंदर सृषि श्री मुनि सुदर सूरि श्री जयचंद्र सूरि श्री भुवन
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(६७२) सुंदर सूरि उपदेशेन श्री कलवा नगरे ओसवाल ज्ञातीय म० मलुसी संताने सं० रतन भार्या वा० वीरू सुत सं० आमसी श्री जीराउल भुवने देवकुलिका कारापिता।शु अवतु भी पार्श्वनाथ प्रसादात ॥ छ । सा० आमसी पुत्र गुणराज सहस राज ।
977 )
स्वस्ति श्री संवत् १४८१ वर्षे वैशाख सुदि ३ वृहत्तपा पो अटा० श्री रत्नाकर सूरीणामनुक्रमेण श्री अभयसिंह सूरोणा प? श्री जय तिलक सूरीश्वर पहावतंस महा० श्री रत्न सिंह सूरीणामुपदेशेन श्री बीसल नगर वास्तव्य प्रारबाटान्वय मंडन श्रे. पेत सीह नंदन श्रे. देवल सीह पत्र अ. पोषा तस्य भार्या सं० प्रण न देव्ये तयो. सभा सं० सादा सं० दादा सं० मूदा सं० दूधाभिधं रेतेः कारि।
स्वस्ति संधत् १५०८ वर्षे आपाठ सुदि १२ गने सू० साला सहडा नरसी नीमा मांडण सांडा गोपा मेरा मोकल पांचा सूरा नित्य प्रणम्य अष्टांग सकुटु य ।
( 079.)
ओ। सं० १८५१ वर्ष आसाढ़ सुदि १५दिने श्री जीरावल पार्श्वनाथजीरी जीणोद्वार कारापितः सकल महारक पुरंदर भहारक जी श्री श्री श्री श्री श्री १०८ - घर राज्येन जीर्णोद्धार करापितं हजार ३०१११ रुपीया परचीवी नाल लीघो भी जीरावल वास्तव्य मु०। चजा। को। दला। सा. कला। सा. रसा। सा० सपा । सा. जोयन सा. अणला। सा. बारम । सा. रामल । - - - यकी काम कारापितः । जोसी दुरगा। प्रात राजा जात्रा सफलः ॥
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( २७३ )
श्री अंजारा पार्श्वनाथ ।
( 930 ) स्वति भी संवत् १६५२ वर्षे कार्तिक वदि ५ बुधे येषां जगद्गुरुणां संवेग वेराग्य सौभाग्यादि गुणगण अवणांत् घमस्कृतमहाराजाधिराज पाति शाहि श्री अकराअिघानः गुर्जरदेशात दिल्ली मंडलेश बहमानमाकार्य धर्मोपदेश कर्णन पूर्वकं पुस्तक कोश समर्पणं डायरामिधान महासरो मत्स्यवध निवारणं प्रति वर्ष षडमासिकामारि प्रवर्तन सर्वदा श्रीशत्रुज तीर्य मुंडकाभिधान कर निवर्तनं जीजियाभिधान करकर्तन निज सकल देश दानमृत्त स्वमी वनसदेव वंदय रुण निवारणं वित्यादि धर्म कृपानि प्रवतं तेषां भी शपूजये सकल देश संघयुत कृत यात्राणां भाद्रपद अक्लंकादशी दिने जात निवाणां शरीर संस्कार स्छानासव फलित सहकारणां श्री हिर विजय सूरिश्वराणां प्रति दिन दिव्य नाद्यनाद श्रवण दीप दर्शनादिकै जीय प्रमायाः स्तूप सहिताः पादुका: कारिताः५० मेधेन आर्या लाडकी प्रमुख कटुव यतेन प्रतिष्ठिाश्म तपागच्छाधिराजे. महारक श्री विजयसेन सूरिभिः ओं श्री विमल हर्प गणि ओं श्री कल्याण विजयगणि ओं श्री सोम विजय गणिभिः प्रणता भव्य जनैः पुज्यमानाश्चिरं नन्द। लिखता प्रशस्तिः पद्माणकगणिना भो उनत मगरे शुभं भवतु ॥
श्री कापड़ा पाश्र्वनाथ ।
(
991)
सेंवत् १६०८ वर्षे वेगाखसित १५ तिथौ सोमवारे स्वाती महाराजाधिराज महाराज श्रो गजसिंह विजय राज्ये केशेरायलारवण संताने मांडागारिक गोत्रे अमरा पुत्र भांना केन भार्या भगतादेः पुत्र रत्न नारायण नरसिंह सोठका पौत्र ताराचंद खगार-नेमि दासादि
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( २९४) परिवार सहितेन श्री भीकर्पटहेटके स्वयंभु पार्श्वनाथ बेस्ये श्री पार्श्वनाथ ... ... .. ... ... ... ... ... .. सिंह सूरि पहाल कार श्री जिन चंद्र सूरिभिः सुप्रसन्नो मवतु ।
अलबर । अलवर राज्यकी राजधानी यह छोटा और सुन्दर शहर है।
( 2 ) सं० १२५५ माघ मुदि ६ - - - - ।।
(963) सं० १२९४ ० ५० ५ गुरौ श्री ... वंशे पितामही प्याऊपिउ पित सोला श्रेयो पत्र नाग दिन - न भा० जागत्र मात एतेन सहितेन श्री पाश्र्वनाथो विषं कारितः । प्रतिष्ठित भी पार्श्वनदेव सूरिभिः।
(
8
)
सं० १३०३ वर्षे माघ सुदि . - सोमे देवानं हित गच्छे अं. १ माला भार्या सिंगार देवो पुण्यार्थं सुत हरिपालादिमिः श्री शांतिनाथ बिंय कारित प्रतिष्टिष श्री सिंहदत्त सूरिभिः ।
स० १३२४ वैशाख सुदि ३ थरुपति कुलेन सापे छोसा .....
( 9 ) सं० १३७८ जेष्ट वदि ५ गुरु श्री उपकेश गच्छे लिङ्ग - । गोत्रे ... सा. खिंन घर सिर पाल भार्या पत्र कील्हा मुणि चंद्र लाहड वाहढादि सहिताभ्यां कुटुम्ब श्रेयो श्री शांतिनाप बिका. प्रतिधी कक्क सूरिभिः ।
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सं० १४८० वर्षे फागुण सुदि १० शांति नाथ विं
सोनादे -
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( २७५ )
( 987 )
उ० छत्रवाल गोत्रे सा० तिहुणा पु० सोना भा०
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(988)
सं० १४९९ वर्षे मागसिर सुदि ५ काकरिया गोत्र सा० सधारण तत्पुत्र, सा० सांगा श्री आदिनाथ बिवं करापितं श्री नयचन्द्र सूरिभिः प्रतिष्ठितं ।
(989)
सं० १५०१ पोष वदि ६ बुधे श्री हुंबड ज्ञातीय परज गोत्रे ठ० कडुआ भा० कामल दे सुख ठकुर पीमा आ० रूपिणी सुखीया पीमा सुख देवसी करमा देवसी झा० चमकू सुखमा घरमा घना वना देत्री । करमा भा० गांगी लखमा भार्या भोली एवं समस्त परिवार सहितेन ठ० देव सिंघेन श्री संभव नाथ विषं कारापित स्व पुण्यार्थं प्र० श्री सर्व रामः ।
(990)
सं० १५०१ वर्ष माघ वदि ६ उपकेंश ज्ञाती लोढ़ा मोत्रे खा० भार्या पूना पु० हांसाकम निज पूर्वजा पेमधर माहा प्रीत्यर्थं श्री आदिनाथ बिंबं कारितं श्री रुद्रपल्ली य गच्छे भ० आ देव सुंदर सूरि पदे प्र० श्री सोम सुंदर सूरिभिः ।
( 991 )
सं० १५१२ वर्ष फागुण सुदि. १२ बुधे उ० ज्ञा० बढ़बढ़ गोत्रे सा० पाल्हा भार्या पाल्हाद पुत्र सं० साद्य खायर सोठारय आत्मश्रेयसे श्री सुमतिनाथ बिंबं कारितं प्र० श्री मलधार गच्छे गुण सुन्दर सूरिभिः ।
Page #303
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २७६ )
( 992) सं० १५१९ वर्षे अषाढ़ वदि ६ शनी भरतपुर ज्ञा० डीघोडीया -..सा जगसी सा. हर श्री प० स. हापा स. धर्मा हापा घर्मा भा० खेहा पु. माहवा मा. गागी पु० नाथ चांदा यतेन श्री शांतिनाथ विधं का० प्र० श्री चैत्र गच्छे भ० श्री गुणाकर सूरिमिः।
सं० १५२६ वर्षे जेठ पदि १३ मंगल वारे उपकेश जातीय नाहर गोत्रे घेता प० रुल्हा भार्या रजलदे खकांषर अमरा -. . - श्री शांतिनाथ विंवं कारित प्र० श्री धर्मघोष गच्छे श्री महेंद्र सूरिभिः।
सं. १५२६ वर्षे वैशाख वदि ५ दिने उप. ज्ञा० बालत्य गोत्रे सा० - - दे प० राउल पु० सुर जल सीहा - - - मात पित पुन्यार्थं आत्म श्रेयसे श्री वास पृज्य विं करापित प्र. उप० गच्छे कक. संताने प्र. श्री कक्क सूरिभिः ।
सं० १५२७ वर्षे पोष वदि ४ गुरौ श्री माल ज्ञातीय श्रेष्ठि जोगा आर्या स्नू सुत हेमा हरजाभ्यां पित मात निमित्त आत्म श्रेयो) श्री अजिमनाथ विंबं का. प्र. श्री महकर गच्छे भी धन प्रम सूरिभिः । मेलिपुर नगरे।
सं० १५२८ वर्षे अषाढ़ सुदि २ सोमे श्री उकेश वंशे संखवाल गोत्रे सा. मेढा पुत्र साहेफकिन भ्रातृ उधरण चेला पु० पोमादि सहितेन श्री शांतिनाथ विवं का. प्र. श्री खरसर श्री जिन चंद्र सूरिभिः ।
Page #304
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २७७ )
( 997 )
संवत् १५५८ वर्षे. - सु० ११ गुरी उपकेश ज्ञातीय श्री रांका गोत्र साप तध सुत साब्बूहडेन महराज महिय युतेन आत्म श्रेयसे श्री मुनि सुव्रत स्वामि विंवं कारित प्रतिष्ठितं श्रीमदूकेश गच्छे श्री ककुदाचार्य संताने श्री कक्कसूरि पह श्री देव गुप्त सूरिभिः ।
--
( 998 )
सं• १५६१ वर्षे पोस यदि ५ सोमे ओश वंशे लोढ़ा गोत्रे तउघरी लाघा भार्या / मेह्मणि सु० प्रेम पाल -- सुश्रायकेण तेजपाल श्रेयोर्थं श्री अञ्चल गच्छे श्री भाव सागर सूरिणामुपदेशेन श्री आदि नाथ विंवं का० प्र० श्री र-
( 999 )
सं०
-
१६६१ वै० सु० अ० भ० सटी
---|
( 1000 )
सं० १९३१ मोघ शुक्ल पक्षे द्वा• तिथो १२ बुधे श्री ऋषभ जिन बिंबं फारित अलवर नगर वास्तव्य श्री संग मलधार पुनमियां विजय गच्छे सार्वभौम भट्टारक श्री जिन चंद सागर सूरि पहालंकार सोभित श्री जिन शांति सागर सूरिभिः प्रतिष्ठितं मधुबन मध्ये ।
पटना म्युझ्यम |
( 523 )
संवत् १८७४ शाके १७३८ प्रवर्तमाने शुभ येष्ठमासे कृष्ण पक्षे पंचम्यां तिथौ सोमदिने श्री व्यवहार गिरि शिखरे श्री शांतिजिन चरण प्रतिष्टितं भट्टारक श्री जिनहर्ष सूरिभिः ॥
Page #305
--------------------------------------------------------------------------
________________
( २० )
( 634 )
संवत् १९११ वर्षे शाके १७७६ शुचि । • दिने श्री शांतिजिन पाद ग्यासः । प्रतिष्टितः स्वरतर गच्छ महारक श्री महेन्द्र सूरिभिः सेठ श्री उदयचंद भार्या पास कुमारजी ॥
उपसंहार |
सर्व शक्तिमान परमात्माके कृपासे यह "जैन लेख संग्रह" एक सहस्र लेख सहित वर्षत्र में समाप्त हुआ । इस संग्रह के लेखों के गुण दोष विचारको आवश्यकता नहीं है । जैनियों की प्राचीन कीर्त्ति संरक्षण ही मुख्य उद्देश्य है । मुद्राकरके दोष से, संशोधनकर्त्ताके प्रमाद इत्यादि कारणों से छपाई में बहुत अशुद्धियां रह गई हैं। मर्थना है कि विद्वज्जम अपराध क्षमा करें और सुधार कर पढ़ें। और पाठक जनों से निवेदन है कि बहुत सी अशुद्धियां मूल में ही विद्यमान है, जिसको सुधारा नहीं गया है । पाठकों के सुगमता के लिये ज्ञाति, गोत्र, गच्छ, आचार्यों की अकारादिक्रमसे तालिका भी दी गई है। जिन सज्जनों ने “संग्रह में" मदद दी है उन सभीका में कृतज्ञ हूं। यदि यह संग्रह जैन माई आदर से ग्रहण कर मुझे अनुगृहीत करें तो इसका दूसरा भाग शीघ्र प्रकाशित करने का उत्साह बढ़ेगा। अलमिति विस्तरेण
कलकत्ता
संग्रहकर्ता
ई० सं० १९९८
Page #306
--------------------------------------------------------------------------
________________
ज्ञाति - गोत्र
लेखांक
ओसवाल - ११, १८, २४, ३५, ४६, ५१, ६४,
१६, ६५, १८५, १०६. ११५, १२३, १३३, २१२, २२६, २३८, २४२, २६३, २६६, २७७, २७६, २८७, ३९६, ४०१, ४०३, ४०६, ४१९, ४१६, ४२०, ४३१. ४४५,४५०,४६०, ४६४, ४७५,५६०, ५७०, ५७८, ५८८, ५२, ५३७, ५६८, ६०४. ६३५ ६६२, ६६५.६६०, ६९२, ७०५७०७, ७०६, ७११, ७३१, ७३६, ७६५, ७६९.८०४, ८१८, ६२१, ६२०, ६७,६७६, ९८६
गांधी मोती
नागड़ा
श्रावकों की जाति - गोत्रादि की सूची ।
ज्ञाति - गोत्र
ओसवाल [ लघुशाखा ]
गोत्र
3
आदित्यनाग
ओसवाल [वृद्धशाखा ]
५६, ७, ११३, १९४, १३०. ५२६, ६९२, ६५६, ६६६, ६७०
ओसवाल [ गोत्र ]
६५२ ६५४,६५५
...
[ चोरडीया शाखा ]
९०, ४७९, ६२५, ७२६
आयचणाग
आईचणा
आईचणी
आभू सं० उचितवाल
कटारिया
कठउड
कंठउतिया
कठाग
काकरेचा
काकरिया
कातेल
कावेडीया
कुहाड
कुर्कट
कोठारी
कोठागार
खटबढ
गणधर
गहलडा
गहिला
गेलडा
गादहिया
लेखांक
७७, ५६६
५३४, ६२३
१५६
१०७
८७४
१४,६३७, ६७४
४३२
४२६
१६०
८०, ८२४
६७, १६, २७५, ९८८
६७
७१६
२०३, ८२९
६१०
१३६, ६७४
કું
६६१
८२१
२६०
५८०
७८२, ६२८
Page #307
--------------------------------------------------------------------------
________________
ज्ञाति-गोत्र गांधि ...
गुगलिया गोखरू
गोलेच्छा
चत्तकरिया बंडलीया बरडिया योग्धेडिया चौरसीया पदालिया,
५९
[-] लेखांक ज्ञाति-गोत्र
लेखांक ५-६२, ०५:२०८, २४०, २४६तिलहरा
१२५ २५५, २५६, ४२५, ६४८,०५२ नीवट
५४६, १५७, ८२० दणवट ... ... ८६, ६३, ४८५ दृगड़
३६,४४, ५७, १८.८५, १४६, १४८, १५०-१६४, १६५, १६-१६०,१७४, १.७७, १७६, १८४, २७४, ३०४, ३०६, ३३६,
३४१.३.२, ४३५, ४७१, ३४ धेडिया
२२,६२ दोमी
२२० १८२, ३०१, ५८१ धनेरिया মান্না
१८३ भीर .७१, ८५, १७ नवलम्बा
२६४.३४३ नाहटा __५१, १२ नार
___५.४१, २, ६१५.
जोपड़ा
बापरा (गणधर) कालानि
उत्रवार
बाजहर
6 AM
जडिया जारसदिया
पमार
०
०
२२
.'
जम्मा जांगड़ा जार उहा जाणेचा टप
पामेचा पावचा पालमा गीपारा पाहांचा पांमालेवा
४६८, ६१८, ११८
: :: :::
१२१
रागन्टिक
दींक
बरहा बर्द्धन बरडिया
नातहर
१२८. ४६.५११
:
Page #308
--------------------------------------------------------------------------
________________
ज्ञाति-गोत्र
लेखांक
ज्ञाति-गोत्र बोदा ..
(बारा
खांक १२२, २१३॥ २१४, ३०७-३११ ३२६, ४२३,४०५८, ६.७ ७७३, ७८०, १२६, ६०, ९८
३८०७८,७४, २०
४२६
बाप(फ)णा बायेगा बांठीया बांभ
.
.
.
.
पळहि (संकाशाखा ) ... पाइहा
... ७३२, १३, ७३५, ७६७ मारचा
भणशाली
भं०
बालत्व
সায়াজি मंडारी
विदाणा बीराणी
५८
५४६, ६११,
३.०, ३१३-३१५, ३३४, ३४८, ३५१, १५३, ३५६, ३१, ३६, ३६५, ३६७, ३०१,३७३, 3१५, ३०७. ३७६, १८१
भग भोर
V
.
भोदा भोगर महाग मंडोषग मिठडीमा मु(महणोत्र
१०६ ६०२
बेदमहत्ता बोहराकाग सीती सुचेत सुचिंतित समरिया संखवाल
१६१
• ०४, ६२५. .
४१, ६EE
मूचाला माल रायजदागी
१६. ३०५
सुगणा सेठीया सेठ ( श्रेष्टि) सिंघाडीमा सोधिक
२६,... १७५६५, ७८३
४२, १६४ २७२९, २३३. १६८,४८८
गंका
AL
लिगा लणीया टून
PM .
..
Page #309
--------------------------------------------------------------------------
________________
५२१
११०
४१३
ज्ञाति-गोत्र लेखांक ज्ञाति-गोत्र
लेखांक श्रीमाल-३, ६, १, २४, ५५, ६६, १००, १०४ ।
फोफलोया
૨૭ ૮૨૩ बदलीया
२००, २३१, ३२१ १९१० ११६, ११७, १२५, १२७, १३२,
बहरा १८०, ६५१, ३०३, ४०७, ४२२, ४२३,
भांहावत ४२७, ४३०, ४३५, ४५२, ४५४, ४७६,
भांडिया ४८१, ४६४,४८, ५०६, ५१०. ५१६,
४२, २८९७ ७६३ मउवीया ५३२, ५३६, ५५४, ५६१, ५७२, ५७४,
४१४ महता
- २१८. २० ६०६,६०८,६१४,६३०६५३,६७३,
महरोल ६७५, ६८२,६१०, ६६१, ६३, ६९७,
माथलपूरा ७४०,७४१, १४५, ७५३, १८, ११,
मौटिप्पा ८२५, २७, ८E , RE५
१८७
वह कटा श्रीमाल (लघुशाखा) ... २५. ६२९
साह श्रीमाल (पद्धशाखा)
२६५, ६८५ सिंधूड
४४७, ५३, ५२४ श्रीमाल ( गोत्र)
श्री श्री गोषलिया
. ., पल्हयड ( गोत्र ) ... ... घेवरिया
२८४, ४१३ चंडालेखा
३, प्राग्वाट ( पोरवाह ) २.१५, ४०, ५२, १४, ५८, जम्बहरा जरगड
१.७, २८०, २८३, ३६२, ३६३.३.५. टांक
१२.
३.८३०६, ४०५, ४२४, ४५४,४४६, उडा
४५६. ४६३, ४६३, ४.३, ४८४,४९६,
५०४, ५११,५३५, ५३७,५३८.५४५, दोसो
१५४६, ५५३, ५५७, ५६३, ५८५६५, धामी
६४७, ६४६, ६५०, ६६०.६६१, ६६७, धीधीद
६८४, ६८६, ६१८, 900, 9०४, ७१३, मलुरिया
७१४.७४२, ७५५, ७६२, १५, ७७७, पाताणी
११६, ३६, ८३, १४६, ६४६, ५१, पाप
५३, ९५४,६५१, ६७, ९७१, १७,
४१२
10
३६
Page #310
--------------------------------------------------------------------------
________________
ज्ञाति-गोत्र प्राग्वाट ( वृद्धशाखा)
[गोत्र] कोठारी
लेखांक ज्ञाति-गोत्र
लेखांक . १५५, ८५४ नना ... ...
नागर ... ... १४७, १४८, १५० नारसिंह
[गोत्र] ६५१, ६७७
घोरठेन नीमा ... ... पल्लीवाल ... ... पापडीवाल ... ... ७६, ३२३, ३२४ मंत्रिदलीय ( महतियाण ) ४८, २३६, ४८२
गोत्र]
७७८
उसियड
१८६
काणा
१०३, १६१, ११२, २१५, २१७, २१०, २८१, ४१८, ४११
दोसी भंडारी मंठलिया लींवा अग्रवाल [ अग्रोतक]
[ गोत्र ] गांगल गयाट पिपल, धामिल अत्ताल
। गोत्र ! गापल बार खंडेलवाल ... "
[ गोत्र गोधा संडिल्लवाल ... जेसवाल
[गोत्र] कप्रहार
१२
२८४ १७६, १०, १६८, २४५, २१
काद्रडा घेवरिया चोपडा चोपडा ( मंडन) ... चोपडा (शृङ्गार)... जीजीआण जाटड दान्हडा
१९२
१९२
२३६, २५६
४१५ ३९८
१९२
नान्हढा बालिढिवा भांडिया
८६२,८६७,२६६
महता
२६०
Page #311
--------------------------------------------------------------------------
________________
लेखांक ज्ञाति-गोत्र
लेखांक ९७९, १७२
__ECE गोत्र ( ज्ञाति, वंशादि उल्लेख नहीं है।
१०
ज्ञाति-गोत्र मुंडतोड रोहदिया वायडा वार्सिदीपा सयला माल्हण मोट
उजावल
८८०
उसभ
५४३, 99,८६३
ओष्ट
७१५
:: :: :: :: :
राजपूत
५६७ ८०५
काड गोठी घोग्वहांश जलहर डोमी दृतार धांध फमला
चाहमान
नौलुक्स
मिश्रृज २६१ मुहता
: ::
प्रनिहार गठउड सोलंकी लघुशाखा बघेरवाल [ गोत्रा राय भंडारी शंववाल शानापति पंडरेक सीढ
:
२२८. . गउन्या वरही
रहुराली (!) वणागीआ वपुगणा तुढिला वालिडिवा
श्रवाणा 980 परवड
पाटगा । मंग्ववालेचा
१.२ १०१
..
हुबड [गोत्र गंगा मंत्रीश्वर रजीप्राण
Page #312
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
१४४७
१४४६
१४८१
१४८३
१.०३
१९०७
१९५६०
१.२२
१:२३
7430
२०३१
१०३२
१५३६
१५५१
१०६१
१५६५
१५७४
१५७६
१६७१
१८५६
१६२१
१४४७
आचार्यो के गच्छ और संवत की सूची ।
लेखांक संवत्
४४६
नाम
अंचल गच्छ ।
तुंग सु०
"
जयको सू०
जयकेसरि सू०
9
""
31
"
"
"
"
5+
५
मिद्धान्तमागर सूक्ष्
भावसागर सू०
"1
99
णग
धर्म सू०
रतमागर सू०
श्री सूरि
६२८
१४४०
२ १५५६
४११
६७३१४३८
१५०६
१५१२
9209
४१६
93
५१८
१२३
४६
६६५६७४
१०८
६६६
११९ १२५६
१३४३
५६८
૨
३०७-३१२/४३३
१५१०
१९०१५
१५१७
१९५४५
१०७५
६५२०६५४,६५५
१४०५
१४४५
१४११
१४८०
૭૪૨ १४८५
९४८८
९४६५
नाम
श्री सूरि
कुंकेसर सू० भाववर्धन गणि
आगम गच् ।
जयतिलक सू०
हेमरल सु
"9
शीलरत्न सू०
जिनरत्न सू
पादप्रम सू०
देवरत्न सू०
सोमरत
आनंदरन सू०
उपकेश गच्छ ।
कक्क सू०
देवगुप्त सु०
व.क. मू०
मिद्ध सू०
देवगुप्त सू०
सिद्ध सू०
19
99
$:
लेखांक
६३
२८५
GR
१६५
३६१
७४१
૪૩
१००
६६०
५५७
४२३
१९१
SF%
२१
ર
४६०
७७४
のの
३८
५५०
२३१
Page #313
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
२४७ १४६
देवगुप्त सू० कक्रसू०
७१७
१९०३
२१६४४७१
लेखांक संवत् नाम
लेखांक देवगुप्त मू.
कक सू०
उतराध गच्छ। ४०१६.२३
ऋ० ताराचन्द
[क] छोलीवाल गछ। ५०१२२२ १.५४
विजयराज मू० कडुआमति गच्छ।
89
१५१५
१५२४ १५२५
सिद्ध मू० कक मू० देवगुप्त म.
:
कमलकलसा गच्छ।
१५२८ १५४६ १५४६
१७००
६७६
१
।
७९
in
कक मू० देवगुप्त म.
१२८१४५ १३७
१५५६ १५६२ १५६३ १५७
रत्न मू० कमलविजय र्माण विजयमहेंद्र म
इंमविजय गणि कृषार्षि गच्छ।
प्रसन्नचंद्र म्: जयशेम्बर मू.
नयचंद्रमा कोरंट गच्छ।
नन्नमः सं० ककम् पट्टे मर्वदेव सू० मार्वदेव म्
२०१५ ७१.२५६
मिदम
१६३४
११.
देवगुप्त मूल सिद्ध सर
कंकुम मू विवंदणीक गस्छ।
( उपकेश) मन सु. का मा
१४.२ १५०६
का मू०
Page #314
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
१४१२
१४३८
૧૪**
१४५६
શર્દ
१४७६
$%C%
१४६५
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१५०३
१५०४
१५००
१५००
१५११
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१५१५
१५१७
१५१६
१५२८
१५२९
१५३२
१५३४
१५३५
नाम
खरतरगच्छ ।
जिनचंद्र सू०
fearfu
मोदमूर्तिगणि हर्षभूतिं गणि
जिनराज सू०
"
93
जिनवर्द्धन सु०
जन o
29
"
13
15
"
39
22
"2
11
जिनचन्द्र सु०
"
"
"
17
"
[ - ]
लेखांक | संवत्
१५३६
२३६
२११
६१५
५८३
२.२
४६५
*
२७५
८
६२०
७३१
»
" १०३।१८६।२१५२१७१४१६
२२४।४७३।७६७
५०६४७३२१७३३
१२१
४७८
१२९/०५६
65
१५३७
१५४८
१५५१
५६९
१५५३.
૫૮
१५६०
१५६३
१५६५
१५६८
१५
१५७९
१६५६
१६५७
१६६१
१६६६
४० / १६७०
५५६ १६८९
१६६८
JET
१६७६
KtJ / be
७८ | १६६०
१०७
नाम
"1
जिनसमुद्र सू०
99
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जिनल खू०
39
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जिनचन्द्र सू०
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"
"
31
..
जिन o
जिनराज सू०
"
३० अभयधर्म
""
जिनराज सू०
लेखांक
२९१४८८
६१०
७३५
२२०
30 कमल लाभ
पं० लब्धक
पं० राजहंस
8:
४६३
ܘ
४४७०
૨૮૬
१८७
४६६४१६३
४२
५६५
036
४३
५२३
७२३
१३५
७७३
989
१७१७८५/७८७
२०१
१७६
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--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
लेखांक । संवत्
नाम
लेखांक
६००
१५२७
१९०५३
१८२१ १८४४
१५२८
जिनलाभ सू० जिनचन्द्र सू०
वा अमृतधर्म या० क्षमाकल्याण जिनचन्द्र सू
१५४
३० कमलसंयम
१८४८ १८४६
६२७६३३१५२४
३५८ १५२७ १३३१४४
२५८
१६५५
जिनहर्ग सा
जिनतिलक सू पट्टे । সিনার লু
४१४ श्रीभिः जिनचंद्र सू० २६०५२४
८७१५२७ २६१९२२५२५
१८७४ १८७५
१५७१
१६२
१९७१ A00
२२४०३३३४०
१२।३०६
जिनसौभाग्य सू.
" जिनरत पक्ष आचाय मिह मुक रननिलक मूः वा लब्धिसेन गणि कल्याणकीनि जिनस
पं० हीराचंद जिनसौभाग्य मूर
२६.३.१२.१६
२४.
१७०७
१८०४
Lemm
१९०७
१७ १७८०
१९१०
१९५७
जिनकीति सूर डा० शुभशीलगणि
वा भुवनचंद्र जिनकीति सू०
१७२।२३
७१०
हरखचन्द प्रतापसी
२५६२७० धर्मसुन्दरगांण उ. हीरधर्मगणि
१८२१ जिनमुन्दर सू०
१८४६
४८२ जिनहर्ष सू ४८१६१७१८७६
२१६२८१४४१८ १८७
४६०
महेंद्रसागर म० रूपविजय
२०६
६८
१. रत्नसुन्दरगण कोय॑दयगणि
Page #316
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________________
. [
]
सत्रत
लेखांक संवत्
नाम
लेखांक
१८८८
माम जिनअक्षय सू० प?) जिनसन्द्र सू. जिनमहेंद्र सू० कुशलबन्दगणि
३४३ |
१८९७
१५३२
जरपलीयगच्छ उदयचन्द्र सू०
सागरदसू० सपा गछ।
सोमसुंदर मू.
२००३४५
जिननंदिवर्धन सू० २४२॥२४॥ बालविनयविजय शिष्य २६३-२६५
१४७५
१३१
१४८५
पं० कीर्युदय जिनमहेन्दसू.
२४४.२६८६३४
१४८८ १४५६
७००
१४९६
रनसिंह सू०
१७७
१४८१ १४५६
मुकमोहनचन्द्र जिनकल्याण सू० जिनरल सू० चन्द्र गच्छ।
पूर्णभद्र सूत्र चंद्रप्राचार्य गच्छ।
भुवनसुंदर सू० हेमहंस सू०
१४८५ १४१० १५२७
११०
१५०
मुनिसुन्दर सूर जयचन्द्र म
१५०३
६४७६१८
चित्रवाल गच्छ।
मुनितिलक सू०
१५०८
उदयनंदि मू० रखशेखर सू०
१५१० १५१२ १५१३
दोणाकर सू सोमकीर्ति सू० सोमदेव स० रनचंद सू. घा० तिलकचंद्रमु० ) चैत्र गच्छ। भजितश्व सू गुणाकर सू०
२७४२
१५१५
१३३३
Page #317
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
नाम
लेखांक
१५४६
४२०
सोमरन सू०
१५२२ १५२३ १५२४
नाम
लेखांक | संवत् विजयतिलक सू० पट्टे विजयधर्म सू० लक्ष्मीसागर सू०
२८०४३ १६३५
१५४५ ४४४५३५
१५७० ५८६
१५५२
१४ 10411०६।२८३५६०
४८४२४ १५५३ ३९८७३६
१६०३ ૭૪૮ષા ૨૪.
)
सोमसुन्दर स० इन्द्रनन्दि सू० कमलकलश स० हेमधिमाल म० कमलकलश सू० कमलकलश लुक हेमविमल स.
५८३६६
પદાપર
१९७१
७॥४४६
act
हेमसमुद्र सू०
२५२ s.
५० अनंतहसर्माण वनरत्न स. सौभाग्यसागर सर राजरत्न सा बनरत्त सू० विशालसोम
२६
४३
१५८२
सोमदेव सू० दयवलभ सू०
४४४
६१८
५५२५
जिनरल सू०
विजयदान सुरु
५३८ १४१२
१५३ १४६-६५८
होविजय स०
६५० ७१३
क्षेमसुन्दर स. विजयरन म० उदयसागर स.
६०२
शत्रशल२५
Page #318
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
१६३४
१६३८
ર્દક
१६४७
१६१९.
१९४३
१६५२
१६५३
१६६७
१६८६
१६५०
©
ries
$462
१६०५
१६७५
१६८३
*
१६०५
१६८६
우슥19
१६६४
११००
19:3
नाम
हीरविजय सू०
19
विजयसेन सू० शि०
धर्मविजयगणि
विजयसेन सू०
13
महजसा० जयसा०
विजयमेन सू०
विजयदेवसू
विजयदेव सूर
*3
विनयसुन्दर गणि कल्याणविजय गणि
बा० लब्धिसा० उदयसा०
""
[ - ]
लेखांक संवत्
35
१२४१६८१
६०५ १६६४
१२०/३० | १६८६
७१४ १६८७
१६८८
१९३ १६०३
१६६७
२२३।५०४
€20
१७०१
१८२
१७६२
१२० १७६५
८२६८२७ | १७११
9
१९३ ९८०१
१६२८
१८४५
१८७३
698
७२५
१८८५३ १६.०३
४५२।७५० १६४६
७५१७८४
५४२००५४०६
FOR
६६४ २०६६
७८३/८२५१८२६८३७ ९५१९ ५४३७५६
१.९१
૩૭૦
७७२।८२८
५१४
१५०५
नाम
जयसागर गणि विजयसिंह सू०
"
"
"
चन्द्रकुशल गणि विजयरत सूर
33
जयविजय गणि
सुमतिचन्द्र गणि
वीरविजय सू
विजयजिनेंद्र सू०
}
99
पं० मोहनविजय
पं० रूपविजय गणि विजयराज सृ०
कुतुवपुरा गच्छ ।
[ सपा | इन्द्रनन्दि सू०
प्रमोदसुन्दर सृ
सौभाग्यनन्दि स०
तावकीय गच्छ ।
शांति स
लेखांक
६०४११
६०६
०३८८५६
४५५
५८२
११४
२०१६
}
३३४
ક
३००
१३६
३१
७४४
३५५
Pe
८५८५१
५४
८८७
Page #319
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
लेखांक संवत्
१५८०
५२१
१४२०
४२७
नाम त्रिविया गच्छ।
धर्मदेव सू० सं०
धर्मरत्न सू० देवानंदित गच्छ।
सिंहदत्त सू० धर्मघोष गच्छ।
सागरचन्द्र स० प्रलयचन्द्र सू०
६५२९
१२३५
नाम लेखांक सिंहदत्त सू० विनयप्रभ सू० गुणदेव सू० सोमरत्न सू०
गुणवर्द्धन मू० नाणकीय गच्छ।
शांति मू० धनेश्वर मू
वीरचन्द्र सूक नाणवाल गच्छ।
धनेश्वर सर विभावक ग
इन्द्र नंदिम पखिलवाल गच्छ।
१३२३
.
४१०
१४८२
याशेखर म.
महेंद्र सूर विजयनरेंद्र म० माधुरत्न स.
४७४
"
राम सिंह म० महेंद्र म पमानन्द सः
यश मा
।
RANG
उजोगण म.
.
0
पायवद्धन सू
०
AY Om
0
१५०७
पवीर्य गच्छ।
यशादेव मू० पार्श्वनाथ गच्छ।
नदिवद्धनमः उदयप्रममा
नयचंद्र सू० नागेंद्र गच्छ।
१५१०
१३.६
RY
जिनहर्ष सू. भानुचन्द्रसम
Page #320
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
लेखांक
लेखांक संवत्
११८५ २४३६ १४४६
१०१
९६६
૧૭૨ ९६८
४३०
१८५६
नाम पिप्पल गच्छ।
विजयसिंह मू० वीरप्रभ सू० उदयदेव सू० गुणरन सू० अमरचन्द्र सू.
धर्मप्रभ सू० पर्णिमा गच्छ।
जिनवलभ मू० जयचंद्र स.
१५१७
नाम यशोभद्र सू० बुद्धिसागर सू० हेमतिलक सू. उदयानंद मू० विमल मू० उदयप्रम सू० वीर सू० शीलगुण सू०
गुणसुन्दर सू० भावहार गच्छ ।
वीर मू
भावदेव सू० भिवमाल गछ।
११७
५८८ १०४६६३
१७१८
९५२०
१५११
AN NU
१९१०
४.३
१५३२
महितिलक सू० माधुरत सू० जयभद्र मू० विजयचन्द्र सू०
माधमन्दर सू०
OM ..
१२५९
१५३१
पायरल सू०
६४५ १२.१२ १५४६
मलधारि गच्छ।
देवनंद सू० तिलक मू० विद्यासागर सू. गुणसुन्दर मू० गुणकोति मू० श्री सू० लक्ष्मीसागर मूर
१५७०
ܘ ܗ ؛؛
C
मुनिनन्द्र म विनयचन्द्र सू०
मुनिरन सू० प्रभाकर गच्छ।
लक्ष्मीसागर सू० ब्रह्माणीय गच्छ।
१५५०
६४८
१५७२
महाहडीय गच्छ।
दयकीर्सि सू. मतिसुन्दर म
Page #321
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
लेखांक संवत्
लेखांक
नाम महुकर गच्छ।
धनप्रम सू० यशसूरि गच्छ।
१२४२
रुद्रपल्लीय गच्छ।
देवसुन्दर सू० मोमसुन्दर मू
८३३३८३४
९.
नाम विधिपक्ष गच्छ।
অষয়াৰ সু वृद्धपोसल गच्छ।
आनंदमोम सू० वद् गच्छ।
पं० पनवन्द्र गणि शातिप्रभ मू० जयमङ्गल सू विनयचंद्र : अमरप्रभ म प्रम स. हेमचन्द्र मल महेंद्र म रक्षाकर म.
महेन्द्र म.. सरवाल गन्छ।
१४३१४४
७३४ १४३३
१५६६
गुणग्नुन्दर सू० सगुणप्रभ भायतिलक म०
८७२
'.०१ १५० ४८. १४३
"
0
लपकगच्छ।
"
११२५
उसागरचंद्र गणि १४१५० अजयराज स०
१८४२० .
१९३३
संरक गच्छ।
१७१८
सुमति मूरि
अमृचंद्रमा
१६८१६० १५१० विजय गच्छ।
मुमतिसागर सू शांतिसागर स. १६७३४
१३१६ ३६४३६६३८३९३७२
३७६७८१३८०३८।१००० विद्याधर गच्छ।
१४१२ उदयदेवमा हमाम मा
१६८१४६
शांतिम सुमनि म शांति म
१५८
Page #322
--------------------------------------------------------------------------
________________
लेखांक जिनके गच्छोंके नाम नहीं लिखे हैं]
नाम
E६६
ईश्वर मा सालि { शांति शांति स.
स
२८.
८१८
८२४
६१६ ८८
m
१९६३
८८५ ८१२१८७३
साल स.
७२८ ६०
६४
.
शांति सूर १० नयसुन्दर र देवसुन्दर मूरि जिनसुंदर सू० सागर गच्छ।
अमृतचन्द्र स्. शांतिसागर सूब
98
१२५७ १२६८
देवदत्त सू० शांतिभद्र सू० ऐन्द्रदेव सू० শিল্প ও महेश्वराचार्य महंत सू० आनन्द म. नैमिचन्द्र सू० देव सू. बुद्धिसागर सुमति सूक महेष्ठीराचार्य रामचन्द्राचार्य पूर्णचन्द्रोपाध्याय चन्द्र सू० भावदेव सू० धर्मदेव सू मणिभद्र हेमप्रभ सू० महेन्द्र सरि महातिलक सू० सरप्रभ सू० उदयानन्द सू० गुणभद्र सू. जिनराज लूक जयप्रभ स०
१२९६
0
१३१४
0
१३६८
सिद्धान्ति गच्छ।
देवसुन्दर मू हुंबड गच्छ।
सिंघदस सू त. शीलकंजर न.
६५
१३८७ १४२२ १४२३
१४३८
Page #323
--------------------------------------------------------------------------
________________
संवत्
नं. संवत्
ने.
१४७१
२२
१५४० १९४७
१४८१
१४८१
१५४८
१४८२
४६७
४६८
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१५८० १५६
.
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१४८६ १४१ १४
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. .
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१६४
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विजयप्रम सू० विद्यासागर मू० मोममुन्दर सू० पन्न शेश्वर मू० सुविप्रभ सू० वीरभद्र म० हेमहंम सु. नरसिंहमू० रमप्रभमा हमहम मू नयचन्द्र धीम श्रीम नयचन्द्र सू० श्री स. सर्वानन्द मा गनशेवर स. या मंदराज गणि दयारत पद्मानन्द मा उदयलनमा न: विजयकीन म मुविहितम् साधुमन्दर म.
१७०
नाम श्री स० साधुग्न म श्री मू० भ. हेमचन्द्र सर श्री सू० माधुसुन्दर मा श्रीम सुमतिरत्न स. मुविहित स. जिनभद्र म० नेजरत्र सा कनकगिजयग शुभकोति जिनचन्द्र स. विजयानन्द म. माहीविजयम ভূ:হানি विजयदि म. कर विजय या श्रान्तर म. अमृतधर्म সম্বসম খানা विजयजिनेन्द्र म বা অাৰিমনকি তা जिनचन्द्र सा ও আৰিগান ।
..
.
. .
१.१.१४
४ ..
१५१८
१८८८
१८१
भावदेव मू.
६५२७
४३६
Page #324
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________________
संवत्
नाम
जिनमहेंद्र सू०
लेखांक संवत्
नाम
लेखांक मूलसंघ [ सरस्वती गच्छ ।
म. विद्यानन्दि भ० विमलकीर्ति विमलेन्द्रकीर्ति भ. देवेन्द्रकीति
भ० शुभचन्द्र १७४ १६३०
मं० मेगकीर्ति १८२१८३
विकीर्ति
१४
अमृतचन्द्र म० या सदालाभ मागरचन्द्र ग ३० सदालामगर सागरचन्द्र ग. मुनिपयजय जिनमुक्ति मा
३
१७७
१६००
१७०० । १७११
जिनचन्द्र सू० मलसंघ।
V
१
.
गुणभद म. जिनचंद्र देव भ० दवकानि जिन चन्द्रमा বিল भःप्रानभूषण
कनककीति मूलसंघ-नन्दिसंघ।
भः सफल काति मूट संघ-काष्ठासंघ।
त्रिभुवनकीर्ति काष्ठासंघ।
२८६
१५०
२९८
ur ...
काष्ठासंघ माथुर गच्छ]
. रूपचन्द्र जगत्कीर्तिम. राजेन्द्रको नि देव
१५४
म. जिनचन्द्र देव
जिन वन्द्र देव
३२४
a
२५१
.
तास
ABD
सुमतिकोति मा भर रनचन्द्र जयकीर्ति जल
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Page #326
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________________ वीर सेवा मन्दिर पुस्तकालय नाव नं. शीर्षक लेना बरु व --- . निन पान का वापसी का दिन