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सम्बत १६८६ वर्षे शाके १५५१ प्रवर्त्तमाने
मासि शुक्ल पक्ष सप्तमी गुरु वासरे बृहत श्री परतरगच्छे युग प्रधान श्रीजिन चन्द्र सूरि पादुका ठाकुर देवा तस्यात्मज मांडन तस्य भार्या न्हालो श्राविका पुण्य प्रपात्रिका तस्य पुत्र दुलि चन्द्रेण प्रतिमा कारापिता श्री माहितीयाल (महतियाण) श्रावकेन गुरु भक्ति दुलिचन्द्र प्रतिष्टा क० श्री उपाध्याय श्री नातिलक गणि पादुके प्रतिष्ठितं वा० लब्धिसेन गणि प्रतिष्ठा० ।
पटना ( पाटलिपुत्र )
मगध राजाओं की राजधानी राजगृहीसे राजा श्रेणिकके पुत्र कोणिक चंपा नगरी को राजधानी वनाया। उनके पुत्र उदाई राजा वहांसे यह पाटलिपुत्र नवीन नगर वसा कर राजधानी कायम किया । पश्चात् यहां पर नत्रनन्द मौर्य वंशी चन्द्रगुप्त अशोक आदि बड़े २ राजा राज्य कर गये। पं० चाणक्य, आचार्य उमास्वाति, भद्रवाहू-उ -आर्य महागिरि, सुहस्थि, वज्ञ स्वामि महान् लोग यहां रह गये हैं। आचार्य श्री स्थूल भद्रजी और सेठ सुदर्शन जी का भी यहीं स्थान है । दादा जी की छत्री भी यहां प्राचीन है सहरका मंदिर जीर्ण होगया है - आज कल बिहार उड़ीसा के शासन कर्त्ता यहां रहने के कारण और प्रधान विचारालय स्थापित होनेसे यह स्थान उन्नति पर है ।
सहर मन्दिर - पाषाण पर ।
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१८५२ वर्षे पोष शुक्ल ५ भृगुवासरे श्री पडलीपुर वास्तव्य । श्री सकल संघ समदान भी विशाल स्वामी । श्रो पार्श्वनाथ स्वामी प्रासादस्य जीर्णोद्वारं कारापिर्त । कार्यस्याग्रेश्वरो तपागच्छोय आर्द्धः । कुहाड श्रज्ञानचन्दजो प्रतिष्ठित च भी सकल सूरिभिः शुभं भूयात् ।