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( २५३ ) संस्थापयामास तेषु देशेषु जज्जकं ॥ २६ ॥ प्रशस्ति मकरो देतां नरसिंहो नपाज्ञया। लेखको त्रय (णे ] देवः सूत्र धारोस्तु अयोधरः ॥ २७ ॥ विक्रम संवत् १२१८ अश्विन सुदि १ गुरो ॥ मंगलं महा श्राः ॥
सूंघा पहाड़ी। मारवाड़के जसवंतपुरा के पास उत्तरकी तर्फ पहाड़ीके ढलावमें सुंधा माता नामक चामुंडाके मदिरमें लगे हुए दो पत्थरों पर यह लेख खुदें हुए हैं।
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मओं ॥ श्वेतांभोजातपत्रं किमु गिरि दुहितुः स्वस्तटिन्या गवाक्षः किंवा सोख्यासन वा महिम मुख महाधिद्ध देवी गणस्य। त्रैलोक्यानंदहेतोः किमदिसमनघं इलाध्य नक्षत्र मुमचे शंजोआलस्थलेंदुः सुकृति कृतनुतिः पातु वो राज लक्ष्मी ॥१॥ ईशस्यांकार्यानरनपमानंद संदोह मला चंचढासोंचल दलमयी झूषण प्रौढ पुष्पा। सल्लावण्योदय सुफलिनी पार्वती प्रेम वल्ली लक्ष्मी पुष्णात्वनु दिन मति व्यक्त भक्त्या नतानां ॥२॥ विकट मुट माधत्तेजसा व्योम्मि दैत्यानिव भुवि मणिमण्या मेखलायाः कणेन । अनणरणित लीला हंसस्त्रासयंती फणि पति भुषनांतश्चंडिका वः श्रियेस्त ॥३॥ श्री मद्वत्समहर्षि हर्ष नयनो द्वस्तांव पूर प्रभा पूर्वबोधिर मौलि मुख्य शिखरालंकार तिग्मद्युतिः। पृथ्वी त्रातु मपास्त दैत्य तिमिरः श्री चाहमानः पुरा वीर: क्षीर समुद्र सोदर यशो राशि प्रकाशो भवत् ॥ १॥ रत्ना वल्यामिव नृपततो तत्क्रमे विश्रुसायां धर्मस्थान प्रकर करण प्राप्त पुण्योत्सवायां। श्री नलाधि पसिर भव लक्ष्मणो नाम राजा लक्ष्मीलीला सदन सदृशाकार शाकंभरीद्रः ॥५॥ आपाताला समर जलधिं मदरो यस्य खड्गो मुष्टिव्याजाद्धजग पतिना शृंखले नावपटुः। निर्मथ्योच्चैः सपदि कमला लीलयोद्धृत्य मत्तश्चक्रे नत्तं रणित कटकः केलि कंपच्छलेन