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पर पहाड़ के निचे ब्रह्मकुरू. सूकुक यादि उम्ण कुरू बहुत से है और स्थान देखने योग्य है। पांच पाहाड़ जो सामने दिखाई देते हैं (१) विपुत्र गिरि () रत्नगिरि (३) उदय गिरि (४) वर्ष गिरि (५) वैनारगिरि । पहाड़ पर बहुतसे जैन मंदिर बने हुये हैं। बहुत से चरण वा मूर्ति इधरसे उधर विराजमान है इस कारण यहांके सब लेख प्रक साथ मिला दिया गया है।
पार्श्वनाथ मंदिर प्रशस्ति ।
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(१) प० ॥ नमः श्री पार्श्वनाथाय ॥ श्रेयः श्री विपुलाचप्लामरगिरि स्थेयः स्थिति खीकृतिः पत्र श्रेणि रमा जिराम जुजगाधीशस्फटासंस्थितिः। पादासीन दिवस्पतिः शुन्न फल श्री कीर्ति पुष्पोजमः श्री संघाय ददातु बांछित फ
(१) खं श्री पार्श्वकल्पद्रुमः ॥ १ यत्र श्री मुनि सुव्रतस्य सुविनोर्जन्म व्रतं केव साम्राजां जय राम लक्षण जरासंधादि नूमीजुजां । जझे चकि वलाच्युत प्रतिदरि श्री शालिनां संनवः प्रापुः श्रेणिक जूधवादि
*"जैन तीर्थ गाईड" के तवारिख सुने विहार में उस्के ग्रंथकता लिखते है कि मर्यायान महल्लाके “ मंदिर में एक शिला लेख जो अलग रखा हुवा है - - - सवत तिथि वगेरा की जगह टुटी हुई है पंक्ति ( १६) हर्फ उमदा मगर घीस जानेकी वजह से कम पढ़ने में आता है अखीर की पंक्ति में जहां गच्छ का नाम है वहां किसीने तोड़ दिया है बन शाखा बगरह नाम बेशक मौजूद है" यह पढ़ कर मुझे देखने की बहुत अभिलाषा हुई । पता लगाने पर १७ पंक्तिका एक लेख दिवार पर लगा भया पाया। किसी२ जगह दूर गया है संबत वगेरह साफ है और दुसरा टुकड़ा मालन भया । पहिले टुकड़े के लिये बहुत परिश्रम करने पर पता लगा और अब वहाँक रईस वाच धन्नलालजी सुचंति के यहां रखा गया है । यह प्रशस्ति पूर्व देशकी अपूर्व वस्तु है आज तक अप्रकाशत था। इसमें श्री खरतरगच्छकी पट्टावली है जिस्से बहुत पक्षपातीयों का भ्रम दूर हो जावेगा। यह पांच गौ माठ वर्ष प्राचीन है और उस समयके मुसलमान सम्राट और प्रादेशिक शासन कत्तीका भी नाम विद्यमान है गाडिन्य और पद लालित्य भा पुरा है।