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[288] . सं० । १३ए फाल्गुन कृष्ण ७ गुरौ श्री जिन कुशल सुरी पादन्यास । जंग। युप्र न । श्री जिन मुक्ति सूरिश्वराणामादेशात् श्री दालचंद गणिनिः प्रतिष्ठितं ॥ सेठ गोत्रीय ताराचंदात्मज रामचंण कारितः स्वश्रेयोर्य मिरजापुर बरो
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॥ ॐ नमः सिद्धम् । संवत् १एएस सि० फागुण सुदि ३ श्री मूलसंधे सरखति गछे बला त्कार गण कुंद कुंदाचार्य थाम्नाय सकल कीर्चि नहारक तत्प? । जहारक कनक कीर्चि उपदेशात् शा कुषेरचंद हरीचंद तनार्या केशरबाई खुरदेवाले प्रति
[ 235] संवत् १९५५ पोस सुद १५ गुरु ॥ श्री ढुंपक गछे श्री पूज्य अजयराज सूरिः प्रतिष्टितम् ॥ बाब सबमीपत गोविंदचंद की माजी करापितं श्री दादाजी चतुः चरण पाकेन्योः ॥ श्री स्थूलना सूरिः ॥ श्री जिनदत्त सूरिः ॥ श्री जिनकुशल सूरिः ॥ श्री जिनवं सूरिः ॥
राज गृह ।
मगध देशको राजधानी यह राजगृह ( राजगिरि ) बहुत प्राचीन नगर है । २० मां तीर्थंकर श्री मुनि सुब्रत स्वामीका ३ कल्याणक ज्येष्ट बदि-जन्म फाल्गुन सुदि-१५ दीक्षा फाल्गुन बदि-१५ केवल ज्ञान यहां होनेके कारण यह स्थान पवित्र है । २५ मां तीर्थंकर श्री नेमिनाथ के समय में जरासंघकी जी यही राजधानी थी। श्वमा तीर्थकर श्री महावीर स्वामी के समयमें प्रसिद्ध नगर था । गौतम बुद्ध की जी यही लीला चूमि थी। प्रसेन जित उनके पुत्र श्रेणिक, उनके पुत्र कोणिक यहांके राजा थे। श्री महावीर स्वामी जी १४ चौमासे यहां किये । जंबुस्वामी, धन्ना, शाखिलजी श्रादि बड़े ५ खोग यहां के रहने वाले थे। यहां