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नस्य । विषम तमाभंग सारंगपुर नागपुर गागरण नराणका अजयमेरु मंडोर मंडलकर बुदी खाटू चाट सुजानादि नानादुर्ग लीलामात्र ग्रहण प्रमाणित जित काशिरवाभिमानस्य। निज अजोर्जित समुपार्जितानेक भद्र गजेन्द्रस्य। म्लेच्छ महीपाल व्याल चक्रवाल विदलन विहंगमेंद्रस्य। प्रचंड दोदंड खंडिताभिनिवेश नाना देश नरेश भाल माला लालित पादारावंदस्य। अस्खलित ललित लक्ष्मी विलास गोविंदस्य। कुनय गहन दहन दवानलायमान प्रताप व्याप पलायमान सकल बलस प्रतिकूल क्षमाप श्वापद वदस्य। प्रवल पराक्रमाकांत ढिल्लिमंडल गूर्जरत्रा सुरत्राण दत्तातपत्त प्रथित हिन्दु सुरत्राण विरुदस्य सुवर्ण सत्रागारस्य षड्दर्शन धर्माधारस्य चतुरंगवाहिनी वाहिनी पारावारस्य कीर्तिधर्म प्रजापालन सत्रादि गुण क्रियमान श्रीराम युधिष्ठिरादि नरेश्वरानुकारस्य राणा श्री कुमकर्ण सार्वीपतिसार्वभौमस्य ४१ विजयमान राज्ये तस्य प्रासद पात्रेण विनय विवेक धैर्योदार्य शुभ कर्म निर्मल शीलाद्यद्भुत गुणमणिमया भरण भासुर गात्रण श्री मदहम्मद सुरत्राण दत्त फुरमाण साधु श्रीगणराज संघ पति साहचर्य कृताश्चर्यकारि देवालयाडंबर पुरःसर श्री शत्रुजयादि तीर्थ यात्रेण । अजा हरी पिंडर वाटक सालेरादि बहुस्थान नवीन जैन विहार जीर्णोद्धार पद स्थापना विषम समय सत्रागार नाना प्रकार परोपकार श्री संघ सस्काराद्य गण्य पुण्य महार्य क्रयाणक पूर्यमाण अवार्णव तारण क्षम मनुष्य जन्म यान पात्रेण प्राग्वाट वंशावतंस स० सागर (मांगण ) सुत स० कुरपाल मा० कामलदे पुत्र परमार्हत धरणाकेन ज्येष्ठ भातृ सं० रत्ना भा. रत्नादे पुत्र सं० लापा म(स)जा सोना सालिग स्व मा० स० धारल दे पत्र जाज्ञा जावडानि प्रवर्द्धमान संतान यतेन राणपुर नगरे राणा श्री कनकर्ण नरेन्द्रण स्वनाम्ना निवेशिते तदीय सुप्रसादादेशसस्त्र लोक्यदीपकानिधानः श्री चतुर्मुख युगादीश्वर विहार कारितः प्रतिष्ठितः श्रीरहत्तपा गच्छे श्रीजगच्चंद्र सूरि श्रीदेवेंद्र सूरि संताने श्रीमत् श्रीदेवसुन्दर सूरि पह प्रभाकर परम गुरु सुविहित पुरंदर गच्छाधिराज श्रीसोमसुन्दर सृरिभिः ॥ कृतमिदंच सूत्रधार देपाकस्य अयं च श्रीचतुर्मुख विहार: आचंद्रार्क नंदाताद् ॥ शुभं भवतु ॥