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________________ (२००) ( 811 ) संवत् ११४४ माघ सु० ११ वीर उल्लदेव कुलिकायां पुल भाजिताभ्यां सांत्याप्त कृतः श्री ब्राह्मी गच्छां प्रदेवाचार्यन प्रतिष्ठितः। (812 ) संवत् ११५१ मासाढ सुदि ८ गुरौ - - - । ( 813 ) ॥ॐ ॥ संवत् ११७८ फाल्गुन सुदि ११ शनी श्री पल्लिका श्री वीरनाथ महा चेत्ये श्री मदुद्योतनाचार्य महेश्वराचार्यामनाय देवाचार्य गच्छे साहार सुत धार सघण देवी तयोर्मस्य धनदेव सुत देवचन्द्र पारस सुत हरिचन्द्राभ्यां देव चन्द्र भार्या वसुन्धरिस्तस्या निमित्तं श्री ऋषभ नाथ प्रथम तीर्थंकर विवं कारितं गोत्राधं च मंगलं महावीरः । (214) ॐ। संवत् १२०१ ज्येष्ठ पदि ६ रखो श्री पल्लिकायां श्री महावीर चैत्ये महामात्य श्री आनन्द सुत महामान्य श्रो पृथ्वीपालेनात्मयोथं जिन युगलं प्रदत्तम् श्री अनन्त नाध देवस्य। 1815) ॐ। संवत १२०१ ज्येष्ट यदि ६ रवी श्रो पल्लिकायां श्री महावीर चैत्ये महामान्य श्री आनन्द सुत महामान्य श्री पृथ्वी पालेनात्म श्रेयोर्थ जिन युगलं प्रदत्तम् श्री विमल नाथ देवस्य।
SR No.011019
Book TitleJaina Inscriptions
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year1918
Total Pages326
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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