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मुतेन सह सायरेण खश्रेपसे श्री जीवत्खामि श्री सुपार्श्वनाथ विं कारापितं प्रतिष्ठित श्री बृहत्तण पक्षे श्री रत्नसिंह सूरिनिः शुजंनवतु ।
[70] सं० १५३० वर्षे माघ सुदि । शुक्र सांबोसण वासि प्राग्वाट झा० व्या सोना ना माऊ पु० व्या नारद बंधु व्य० बिरूयाकेन जावीदषदे पु० देधर मेला साश्यादि कुटुंब युतेन निज श्रेयसे श्री सम्नवनाथ विवं का०प्र० श्री तपा गछे श्री लक्ष्मीसागर सरिनिः ।
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सं० १५०३ शाके १७६० प्रवर्त्तमाने माघ कृष्ण ५ भृगु अहमदावाद बास्तव्य उसवाल झासी वृद्ध शाखायां सा केसरीसिंह तत्पुत्र साह बिसंघजि तत्जार्या रुषमणी खयर्थे श्री आदिश्वर जिन बिवं जरापितं श्री शांतिसागर सुरिनिः प्र०॥
श्री जगत्सेवजी का मन्दिर - महिमापूर ।
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सं० १५५५ बर्षे माघ वदि १ गुरो प्रा शा म जेसा जा० मुरी पुत्र सर्वणेन लान रूपाइ मात पितृ श्रेयसे खश्रेयसे श्री कुंथुनाथ विवं का प्र० श्री साधु पूर्मिमा पक्षे श्री पुण्य चंड सूरीणामादशेन विधिना श्री विजयचंद्र सूरिभिः ॥ श्री रस्तु ।
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सं० १५३६ ब० फा० सु० १५ प्राग्वाट व्य० होरा जा रूपादे पुत्र व्यण देपा ना० गीमति पु० गांगाफेन जा नाथी पुत्र मेरा जातृ गोगादि कुटुंब युतेन श्री नमिनाथ विवं का प्र० तपा गछे श्री लक्ष्मीसागर सूरिभिः । पीकरवाड़ा प्रामे मुंगलिया वंशे श्रीः ।