________________
(३९) सेन अव्येण धर्मशाला जिनालय कारापितं प्रतिष्ठितं सर्व सुनिभिः श्रीसंघ च संजालली श्री संप मालिक श्री रस्तु श्री कल्याण मस्तु श्री जीकटरीया श्मप्रेश राज्ये पुष्टाब्द १७ए ।
पाषाणके चरणों पर।
[ 185] (१) च्यवन (२) जन्म (३) दीक्षा (५) केवख (५) निर्वाण कल्याणक पातुका । साधु ७२००० । साध्वी १५५००० । श्रावक ११५००० । श्राविका ४३६००० ॥ --- श्रीवासु पूज्य पञ्चकल्याणक चरण कारापितं चंपा नगरे श्रोशवास वृ । शा। दूगड़ गोत्रे वा। श्रो बुधसिंघजी तत्पुत्र श्री प्रतापसिंघजी तत्लायर्या महतावकुमर बीबी तत्पुत्र राय श्री सदमी पतसिंघ श्री धनपतसिंघ बहादुर कारापितं प्रतिष्ठितं सर्वसूरिनि श्री संघस्य शुजंजवतु ।।
[18]
॥ए ए॥ सम्बहाणर्षि नागेन्दो राप शुक्लादशी भृगौ मलि नम्योः पदं जीर्णमुद्धृत खरतरेण श्री जिनहर्ष निदेशी वा जाग्यधीर गणि किस माहू गोत्रस्य प्रष्णेन्दोर्वित्तमुदिश्य काय्यकृत् ५ युग्मम् ॥ सं० ११३५ मिती बैशाख मुदि १० शुके मिथिला नगा श्रीमखि जिन चरणन्यासः ॥
[167]
सं० १९३१ माघ शुक्लपक्षे १५ खुवे श्री वासुपूज्य (अजितनाथ, सम्नवनाप ) जिन
* यह चरण दरभङ्गा लैन में सीतामढी सनक पास मिथिला नगरी से उठाकर लाया भया है। वहाँ इस समय कोई जैन मन्दिर नही है। १९ मा तीर्यङ्कर भी मल्लिनाथ स्वामी के चार कल्याणक और २१ मा श्री नमि नाथ सामीके चार कल्याणक यहाँ भये थे । श्री मल्लिनाप मिथिलाके कुंभ राजा और प्रभावती रानीकी कुमरी थी। जन्म, दीक्षा, केवलझान मार्गशीर्ष सदि ११ के दिन भया था। इसी नगरके विजय राजा और विमा रानीके पुत्र भी नाममाप स्वामीका जन्म भाषण वदी , दीक्षा आषाद वदि , केवल ज्ञान मार्गशीर्ष १० ११ के दिन भयावा किसी अन्यमें "मिथिला" के स्थानमें "मयुरा" नगरी भी देखने में आया है। सत्या. सत्य मानागम्य है। चरम सीकर महावीर भगवानका भी (चौमासा यहाँ भपाया ।