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[32] श्री जिन शासनो जयति ॥ श्री मत्तगण शुनांवर धर्मरश्मिः । श्री सूरि हीर विज योजित ज्ञान लक्ष्मी ॥ यस्योपदेश वचनाय्यवनेश मुख्यो । हिंसानिराकृत परो प्रगुणो वनूत्र १॥ तत्पट्टे क्रमतारखीव विजय जैनें सूरीश्वर । स्तपाज्ये प्रगुणो जिनालय घरो वाखोचरे इंगके ॥ श्री संघेश सहायता शुनरुचिः श्री केशरी सिंहक । स्तत्पल्या जिन राज नक्ति मशतः कारापिनायं मुदा ॥ १ ॥ श्री वीर हीर सूरीश संघाटक गुणाकरः । वाचकोत्तम सूमान्यः श्री शशि बिजयाजवत् ॥ ३॥ तछिव्य नाव विजयोपदेश वाक्येन कारित रम्ब. प्रतिष्ठितं च सदनं जिन देव निवेशनं । शुनतः॥४॥ नई जवतु संघस्य नई प्रासाद कारके तथा नई तपा गर्छ जई जवतु धर्मिणां ॥
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॥ धातुर्योपरका लेख ॥ सवत १४ए बेशाख सुदि ५ जार उडिया गोत्र । सा० लोंदा सुत । सारा पदाकेन पु. फामु रजनादि सहितेन खनार्या पदम श्री पुण्यार्थ श्री विमलनाथ विवं श्रीहेमहंस सुरिनिः ।
[34] संवत १५१३ ये सुदि ५ गुरो श्री तुंबड झातीय फडी० शिवराज सुत महीया श्रेयसे । जात हीराकन घातृज कुसूया सुतेन श्री शांतिनाथ विवं कारितं प्रति वृद्ध तपा पक्ष श्री रत्नसिंह सूरिनिः॥
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संवत १५२७ वर्षे माघ वदि ५ गुरौ ऊपकेश ज्ञातीय श्रेण तेजा जा तेजलदे पुत्र जून जा० पतसमादे पुत्र देवदास गणपति पोपट जेसिंग पोचा युतेन करणा श्रेयोर्थ संजवनाथ वि का श्री साधू पुर्णिमा पक्षे श्री पुण्यचं सूरीणामुपदेशेन प्र० श्री बिजयजल सुरिणा कडी वास्तव्यः ।।