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________________ ( २२२ ) ( 871 ) चैत्यो नरवरे येन श्री सल्लक्ष्ट कारिते । पंडपो मंडनं लक्ष्या कारितः संघ भास्वता ॥ १ ॥ अजयमेरु श्री वीर चैत्ये येन विधापिता श्री देवा बालकाः ख्याताश्चतुर्विंशति शिखराणि ॥ २ ॥ श्रेष्ठी श्री मुनि चंद्राख्यः श्री फलवर्द्धिका पुरे उत्तान पह श्री पार्श्व चैरयेऽचीकरदद् भूतं ॥३॥ केकिन्द | यह प्राचीन स्थान भी मारवाड़ के मेड़ता जिलेमें है श्री पार्श्वनाथजी का मंदिर । (872) ॐ ॥ संवत् १२३० आषाढ़ सुदि श्री किष्कंधर दिवा प्रमुख वाला मलण बास ददिवा राबधी विधि चैस्ये मूल नायकः श्री आनन्द सूरि देशनया श्र ॥१॥ ( 873 ) ॐ ॥ संवत १२३० आषाढ़ सुदि ९ किष्कंध विधि चैत्य मूल नायकः श्री आनंद सूरि देशनया श्र े० धाधल श्रे० वाला लण दास ददिवा पीवर दिवा प्रमुख श्राक --| ( 874 ) ॐ ॥ नमो बीतरागाय ॥ श्री सिद्धिर्भवतु ॥ स्वांस श्रियामास्पदमापसिद्धिर्जगत्त्रये यस्य भवत् प्रसिद्धि । सोऽस्तु श्रिये स्फूर्जदनंव रिद्धिरादीश्वरः शारद भास्य दिद्धि ॥१॥ यमाता शैव मताऽवलंबा | हिन्दु प्रकाराय वन प्रकाराः । सर्वेऽप्यमी
SR No.011019
Book TitleJaina Inscriptions
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPuranchand Nahar
PublisherPuranchand Nahar
Publication Year1918
Total Pages326
LanguageEnglish
ClassificationBook_English
File Size13 MB
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