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( १५१ ) निश्चल रहो निरवाधः ॥६॥
श्लोक ॥ तद्वारेक पूज्यकृद कृपाख्यो देवेरमविलग्न विचित्रः पूजावतेस्मै प्रविल लितावै संघेन सत्सोम्य गुणान्वितेन ॥ १०॥ गजधर सकल सुज्ञान धराहरी कीचो गणहेर । रच्योविवजिनराजको करुणा बंत कुवेरः ॥११॥ आर्या। शशीव सुख राज वर्षे। माधव मासे वलक्ष पक्षे च । पंचम्यां भृगुवारे हि कृता प्रतिष्ठा जिनेशस्य ॥ १२ ॥ महागिरि महा सूर्य शशिशेष शिवादयः । जगवल्लभ पार्श्वस्य तावतिच्छतु विवकं ॥ १३ ॥
श्रीसंवत १८०१ शाके १६६६ प्रमिति वैशाख सुदि ५ शुक्र वासरे श्री जगवल्लन पार्श्वनाथ विवं प्रतिष्टितं पृहत्तपा गच्छीघ सुमतिचन्द्रगणिना कारापितं ॥ श्रीरस्तु। शुभ प्रवतु॥
पगलीयाजी पर।
( 645 ) स्वस्ति श्री संवत १८७३ वर्षे शाके १७३९ वर्तमाने मासोत्तम मासे शुभकारी ज्येष्ठमासे शुभे शुक्ल पक्ष चतुर्दशि तियो गुरुवासरे उपकेश ज्ञातीय वृद्धिशाखायां कोष्ठागार गोत्रे सुश्रावक पुण्य प्रभावक श्री देव गुरु भक्तिकारक श्री जिनाज्ञा प्रतिपालक साह श्री शंभुदास तत्पुत्र कुलोद्धारक कुल दीपक सिवलाल अवाविदास सत्पुत्र दोलतराम ऋषभदास श्री उदेपूर वास्तव्य श्री तपागच्छे सकल भह रक शिरोमणि महारक श्री श्री विजय जिनेंद्र सूरिभिः उपदेशात् पं० मोहन विजयेन श्री धुलेवानगरे । भंडारी दुलिचंद आगुंछइं॥
दादाजी के चरण पर।
( 648 ) संवत १९१२ का मिति फागुन वदि ७ तिथी गुरु वासरे श्री घुलेवानगरे श्री क्षेम कीर्ति शाख्योद्भव महोपाध्याय श्री राम विजयजी गणि शिष्य महोपाध्याय शिवचंद्र