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तभी से मेरी यह भावना प्रवल हो उठी थी कि इन वत्तीम योगो की विस्तृत व्याख्या करु, किन्तु कार्य की कठिनता, समय के प्रभाव और अनेक ग्रन्तरायो के कारण यह कार्य 'कुछ विलम्ब से ही हो पाया है, फिर भी मुझे सन्तोप है कि अपने कथ्य एव मन्तव्य को जन-जन तक पहुंचाने की अपनी भावना को मैने साकार कर दिया है ।
विपय अत्यन्त गहन एवं विस्तृत था, फिर भी मैंने यथाशक्य यह प्रयास किया है कि विषय कही भी दुम्ह न रह जाए, साकेतिक भी न रह जाय और अस्पष्ट भी न रहे। इसी बात को लक्ष्य मे रख कर मैंने अपने कर्तव्य की पूर्ति कर दी है, पाठको ने यदि इस प्रयास से जानद्रुम का एक पुप्प भी प्राप्त कर लिया तो मैं अपने प्रयास को सफल समझू गा ।
- प्रस्तुत पुस्तक के प्रकाशन कार्य में मुझे विद्वदुख्न श्री रतन मुनि जी महाराज द्वारा जो उचित सहयोग प्राप्त हुआ है उम के लिए मैं उनका हार्दिक धन्यवादी हूं ।
इस पुस्तक के सम्पादन मे 'आत्म- रश्मि के सम्पादक श्री तिलकधर शास्त्री का सहयोग प्रशस्त रहा है, उन्ही के श्रम से पुस्तक की साज-सज्जा भी मनोहारी वन पाई है । उनके लिये जो कहना चाहिये वह मेरा अन्तःकरण कर रहा है ।
फूलचन्द्र श्रमण
उपाध्याय
लुधियाना
२३ सितम्बर १६७७ भाद्रपद शुक्ला द्वादशी सं २०३४
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