Book Title: Yog Ek Chintan
Author(s): Fulchandra Shraman, Tilakdhar Shastri
Publisher: Atmaram Jain Prakashan Samiti

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Page 9
________________ स्वकथ्य योग-साधना के प्रति मेरा रुझान साधक जीवन के प्रथम चरण मे ही उत्पन्न हो गया था, क्योकि चित्त वृत्तियो का निरोध करके मैं अन्तर्जगत् के रहस्यो को जानना चाहता था, साधना भी बढती गई और जिज्ञासाओं का विस्तार भी होता गया । जिज्ञासा अपूर्ण रहे यह असह्य सा होता है, ग्रत मै जिज्ञासापूर्ति के लिये स्वाध्याय करता रहा, पतञ्जलि के योग दर्शन का आद्योपान्त मनन करते हुए तदनुसार कुछ करने का प्रयास भी किया, श्रद्धेय आचार्य श्री आत्माराम जी महाराज के चरणो में बैठ कर ध्यान-सम्बन्धी ग्रनेक जिज्ञासाओ की पूर्ति भी की, परन्तु जिज्ञासा अव भी प्रश्न चिन्ह को पकड़ कर मेरे सामने खडी रहती है । मैं भी उसके नव-नव समाधानो के ग्रन्वेपणार्थ यत्नशील रहता हू और यत्नशील रहूंगा । ममवाबाग सूत्र का अध्ययन करते हुए मैंने जव वत्ती योगो का नामोल्लेख देखा तो मेरे हृदय ने चिन्तन - सागर की तल गहराइयों को छूते हुए पतजलि के योग मार्ग और बत्तीस योगो के समन्वयात्मक अध्ययन से कुछ परितोष का अनुभव किया, जैसे-जैसे समन्वय के पथ पर मेरे चिन्तन की धारा बढ़ती गई वेमे-वैसे विश्वास होता गया कि महपि पतजलि ने प्रकारान्तर - गैली में से इन्ही बत्तीस योगो की व्याख्या करते हुए सूत्रचित्तवृत्तियो को निरुद्ध कर शान्ति प्राप्त करने के पथ का ही निर्देश किया है । योग एक चिन्तन ] May [ तो

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