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प्रथमः] __ भाषाटीकासहितः।
वैद्यके लक्षण और कर्तव्य । नाड्या मूत्रस्य जिह्वाया लक्षणं यो न विन्दते । __ मारयत्याशुवै जन्तून्स वैद्यो न यशो लभेत् ॥ १॥
नाडी, मूत्र और जिह्वाकी जो परीक्षा नहीं जाने वह वैद्य मनुष्योंको तत्काल नाश करै है, उसको यशकी प्राप्ति नहीं होती है ॥ १॥
स्थिरचित्तः प्रसन्नात्मा मनसा च विशारदः। स्पृशेदङ्गुलिभिर्नाडी जनीयादक्षिणे करे ॥२॥ एकाग्र चित्त कर प्रसन्नात्मा मनसे चतुर ऐसा वैद्य तीन अंगुलियोंसे दहिने हाथकी नाडी देखे ॥ २ ॥
त्यक्तमूत्रपुरीषस्य सुखासीनस्य रोगिणः । अन्तर्जानुकरस्यापि सम्यङ्नाडी परीक्षयेत् ॥३॥ जो रोगी मल मूत्रका त्याग कर चुका होय, सुखपूर्वक बैठा होय और दोनों जानुओंके बीच जिसने अपना हाथ रक्खा होय उसकी नाडीकी भले प्रकार परीक्षा करे ॥ ३ ॥
नाडी परीक्षा। स्त्रीणां भिषग्वामहस्ते पुरुषाणां तु दक्षिणे । शास्त्रेण संप्रदायेन तथा स्वानुभवेन च ॥ परीक्षेद्रत्नवच्चासावभ्यासादेव जायते ॥४॥ स्त्रियों के बायें हाथकी और पुरुषोंके दहिने हाथकी नाडी वैद्य शास्त्रकी संप्रदायसे और अपने अनुभवसे परीक्षा करें. जैसे जौहरी अपनी बुद्धिसे रत्नोंकी परीक्षा करता ॥ ४ ॥ वारत्रयं परीक्षेत धृत्वा धृत्वा विमुच्य च । विमृश्य बहुधा बुद्ध्या रोगव्यक्तिं विनिर्दिशेत् । ५॥
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