Book Title: Yatindravihar Digdarshan Part 03
Author(s): Yatindravijay
Publisher: Saudharm Bruhat Tapagacchiya Shwetambar Jain Sangh

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Page 13
________________ खित है, जो इतिहास लेखकों के लिये उपयोगी और पादविहार करनेवाले जैन साधु-साध्वियों के लिये मार्ग दर्शक है / इसके परिशिष्ट में संस्कृतमय प्रशस्ति लेखों का हिन्दी अनुवाद भी दर्ज है जिससे प्रशस्तिलेखों का भाव निःसंदेह समझ में आ सकता है। इसका प्रथम भाग सं० 1986 में फतापुरा (मारवाड) के श्रीसौधर्मबृहत्तपोगच्छीय-जैनसंघ के तरफ से और द्वितीय भाग हरजी (मारवाड) के श्रीसौधर्मबृहत्तपोगच्छीयजैनसंघ के तरफ से संवत् 1987 में छपकर प्रकाशित हुआ था। उनके प्रकाशित होते ही कतिपय मुनिवर और प्रसिद्ध संस्थाओंने योग्य अभिप्राय देकर उनको हार्दिक धन्यवाद के साथ अपनाये थे / आज हम इसका तृतीय भाग भी उसी सजधज के साथ वाचकों के शुभ करकमलों में उपस्थित करते हैं / आशा है कि पाठक पूर्व प्रकाशित दो भागों के समान इसे भी अपना कर हमे सफल मनोरथ बनावेंगे। ___ इस तृतीय भाग को अस्मच्छिष्य मुनिश्रीविद्याविजयजी और मुनिश्रीसागरानन्दविजयजी के सदुपदेश से बागरा (मारवाड) निवासी धर्मचुस्ता, आर्हद्धर्मानुरक्ता, तपोरता और सद्गुणानुरागरसिका सुश्राविका गेनीबाई के पुत्ररत्न शा. प्रतापचन्द्र धूराजीने सर्व साधारण को उपहार ( भेट ) देने के लिये छपाकर प्रसिद्ध किया है / अतएव उनको हार्दिक

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