Book Title: Vishsthanak Tap Vidhi Author(s): Punyavijay Publisher: Bhuvan Bhadrankar Sahitya Prachar Kendra View full book textPage 9
________________ (३) ९ श्री स्वपरापायनिवारकातिद यधराय श्री महंते नमः श्री पंत्रिशवाणोगुणयुक्ताय सुरासुरदेवेन्द्र नरेन्द्राणां पूज्याय श्री मदहते नमः ११ श्री सर्वभाषानुगामिसकलसंशयीच्छेदकवचनातिशयोय श्री. ___महने नमः १२ श्री लोकालोकप्रकाशककेवलज्ञानरूपज्ञानातिशयेश्वराय श्रीमदहते नमः ओ प्रमाणे खामसमण दइने, पछी भगवाननी सामे अथवा उपाश्रय मां स्थापनाजी सामे इरियावही पडिक्कमी, अक लोगरसनो काउस्सग्ग करी प्रगट लोगस्स कहीं खमासमण दड़ इच्छा-कारेण संदिसह भगवन् ! अरिहंत पद आराधनार्थ का उस्सग करु? अम कही आदेश मांगे. (गुरु बेठा होय तो 'करेह' कहे) अटले पोते 'इच्छ' कही वंदणवत्तिया, अन्नथ्थ. कही २४ अथवा १२ लोग:सनो काउस्सग्ग मौन पणे करे, काउस्सग्ग मां लोगस्स 'चंदेसु निम्मलयरा' सुधी चितवे. पछी नमो अरिहंताण' कही, काउस्सग्ग पारी प्रगट लोगस्स कहे. पछी अंक खमासमण दइ 'विधि करतां अविधि थइ होय तो मिच्छामि दुक्कड" अ म कहें. गुरुनो योग न होय तो स्थापनाजो सामे आदेश मांगी इच्छं.'कहीने आ प्रमाणे विधि करे. आ पदनु ध्यान उज्ज्वल वणे करव आ पदनो आराधना करवाथी देवपाल तीर्थकर थया छे. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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